diff --git "a/DharmicData/Vedas/Ramcharitmanas.txt" "b/DharmicData/Vedas/Ramcharitmanas.txt" new file mode 100644--- /dev/null +++ "b/DharmicData/Vedas/Ramcharitmanas.txt" @@ -0,0 +1,20441 @@ +वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि। + +मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ।।1।। + +भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ। + +याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम्।।2।। + +वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शङ्कररूपिणम्। + +यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते।।3।। + +सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ। + +वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कबीश्वरकपीश्वरौ।।4।। + +उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्। + +सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्।।5।। + +यन्मायावशवर्तिं विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा + +यत्सत्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः। + +यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां + +वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्।।6।। + +नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद् + +रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि। + +स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा- + +भाषानिबन्धमतिमञ्जुलमातनोति।।7।।जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन। + +करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।।1।। + +मूक होइ बाचाल पंगु चढइ गिरिबर गहन। + +जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन।।2।। + +नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन। + +करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन।।3।। + +कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन। + +जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन।।4।। + +बंदउ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि। + +महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर।।5।।बंदउ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।। + +अमिय मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू।। + +सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती।। + +जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी।। + +श्रीगुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य द्रृष्टि हियँ होती।। + +दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू।। + +उघरहिं बिमल बिलोचन ही के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के।। + +सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक।।जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान। + +कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान।।1।।गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन।। + +तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन। बरनउँ राम चरित भव मोचन।। + +बंदउँ प्रथम महीसुर चरना। मोह जनित संसय सब हरना।। + +सुजन समाज सकल गुन खानी। करउँ प्रनाम सप्��ेम सुबानी।। + +साधु चरित सुभ चरित कपासू। निरस बिसद गुनमय फल जासू।। + +जो सहि दुख परछिद्र दुरावा। बंदनीय जेहिं जग जस पावा।। + +मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू।। + +राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा। सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा।। + +बिधि निषेधमय कलि मल हरनी। करम कथा रबिनंदनि बरनी।। + +हरि हर कथा बिराजति बेनी। सुनत सकल मुद मंगल देनी।। + +बटु बिस्वास अचल निज धरमा। तीरथराज समाज सुकरमा।। + +सबहिं सुलभ सब दिन सब देसा। सेवत सादर समन कलेसा।। + +अकथ अलौकिक तीरथराऊ। देइ सद्य फल प्रगट प्रभाऊ।।सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग। + +लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।2।।मज्जन फल पेखिअ ततकाला। काक होहिं पिक बकउ मराला।। + +सुनि आचरज करै जनि कोई। सतसंगति महिमा नहिं गोई।। + +बालमीक नारद घटजोनी। निज निज मुखनि कही निज होनी।। + +जलचर थलचर नभचर नाना। जे जड़ चेतन जीव जहाना।। + +मति कीरति गति भूति भलाई। जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई।। + +सो जानब सतसंग प्रभाऊ। लोकहुँ बेद न आन उपाऊ।। + +बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।। + +सतसंगत मुद मंगल मूला। सोइ फल सिधि सब साधन फूला।। + +सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई।। + +बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं।। + +बिधि हरि हर कबि कोबिद बानी। कहत साधु महिमा सकुचानी।। + +सो मो सन कहि जात न कैसें। साक बनिक मनि गुन गन जैसें।।बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ। + +अंजलि गत सुभ सुमन जिमि सम सुगंध कर दोइ।।3(क)।। + +संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु। + +बालबिनय सुनि करि कृपा राम चरन रति देहु।।3(ख)।।बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ।। + +पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें। उजरें हरष बिषाद बसेरें।। + +हरि हर जस राकेस राहु से। पर अकाज भट सहसबाहु से।। + +जे पर दोष लखहिं सहसाखी। पर हित घृत जिन्ह के मन माखी।। + +तेज कृसानु रोष महिषेसा। अघ अवगुन धन धनी धनेसा।। + +उदय केत सम हित सबही के। कुंभकरन सम सोवत नीके।। + +पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं। जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं।। + +बंदउँ खल जस सेष सरोषा। सहस बदन बरनइ पर दोषा।। + +पुनि प्रनवउँ पृथुराज समाना। पर अघ सुनइ सहस दस काना।। + +बहुरि सक्र सम बिनवउँ तेही। संतत सुरानीक हित जेही।। + +बचन बज्र जेहि सदा पिआरा। सहस नयन पर दोष निहारा।।उदासीन अरि मीत ह��त सुनत जरहिं खल रीति। + +जानि पानि जुग जोरि जन बिनती करइ सप्रीति।।4।।मैं अपनी दिसि कीन्ह निहोरा। तिन्ह निज ओर न लाउब भोरा।। + +बायस पलिअहिं अति अनुरागा। होहिं निरामिष कबहुँ कि कागा।। + +बंदउँ संत असज्जन चरना। दुखप्रद उभय बीच कछु बरना।। + +बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं। मिलत एक दुख दारुन देहीं।। + +उपजहिं एक संग जग माहीं। जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं।। + +सुधा सुरा सम साधू असाधू। जनक एक जग जलधि अगाधू।। + +भल अनभल निज निज करतूती। लहत सुजस अपलोक बिभूती।। + +सुधा सुधाकर सुरसरि साधू। गरल अनल कलिमल सरि ब्याधू।। + +गुन अवगुन जानत सब कोई। जो जेहि भाव नीक तेहि सोई।।भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीचु। + +सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु।।5।।खल अघ अगुन साधू गुन गाहा। उभय अपार उदधि अवगाहा।। + +तेहि तें कछु गुन दोष बखाने। संग्रह त्याग न बिनु पहिचाने।। + +भलेउ पोच सब बिधि उपजाए। गनि गुन दोष बेद बिलगाए।। + +कहहिं बेद इतिहास पुराना। बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना।। + +दुख सुख पाप पुन्य दिन राती। साधु असाधु सुजाति कुजाती।। + +दानव देव ऊँच अरु नीचू। अमिअ सुजीवनु माहुरु मीचू।। + +माया ब्रह्म जीव जगदीसा। लच्छि अलच्छि रंक अवनीसा।। + +कासी मग सुरसरि क्रमनासा। मरु मारव महिदेव गवासा।। + +सरग नरक अनुराग बिरागा। निगमागम गुन दोष बिभागा।।जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार। + +संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार।।6।।अस बिबेक जब देइ बिधाता। तब तजि दोष गुनहिं मनु राता।। + +काल सुभाउ करम बरिआई। भलेउ प्रकृति बस चुकइ भलाई।। + +सो सुधारि हरिजन जिमि लेहीं। दलि दुख दोष बिमल जसु देहीं।। + +खलउ करहिं भल पाइ सुसंगू। मिटइ न मलिन सुभाउ अभंगू।। + +लखि सुबेष जग बंचक जेऊ। बेष प्रताप पूजिअहिं तेऊ।। + +उधरहिं अंत न होइ निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू।। + +किएहुँ कुबेष साधु सनमानू। जिमि जग जामवंत हनुमानू।। + +हानि कुसंग सुसंगति लाहू। लोकहुँ बेद बिदित सब काहू।। + +गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा। कीचहिं मिलइ नीच जल संगा।। + +साधु असाधु सदन सुक सारीं। सुमिरहिं राम देहिं गनि गारी।। + +धूम कुसंगति कारिख होई। लिखिअ पुरान मंजु मसि सोई।। + +सोइ जल अनल अनिल संघाता। होइ जलद जग जीवन दाता।।ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग। + +होहि कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलच्छन लोग।।7(क)।। + +सम प्रकास तम पाख दुहुँ नाम भेद बिधि ���ीन्ह। + +ससि सोषक पोषक समुझि जग जस अपजस दीन्ह।।7(ख)।। + +जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि। + +बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि।।7(ग)।। + +देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब। + +बंदउँ किंनर रजनिचर कृपा करहु अब सर्ब।।7(घ)।।आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ बासी।। + +सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।। + +जानि कृपाकर किंकर मोहू। सब मिलि करहु छाड़ि छल छोहू।। + +निज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं। तातें बिनय करउँ सब पाही।। + +करन चहउँ रघुपति गुन गाहा। लघु मति मोरि चरित अवगाहा।। + +सूझ न एकउ अंग उपाऊ। मन मति रंक मनोरथ राऊ।। + +मति अति नीच ऊँचि रुचि आछी। चहिअ अमिअ जग जुरइ न छाछी।। + +छमिहहिं सज्जन मोरि ढिठाई। सुनिहहिं बालबचन मन लाई।। + +जौ बालक कह तोतरि बाता। सुनहिं मुदित मन पितु अरु माता।। + +हँसिहहि कूर कुटिल कुबिचारी। जे पर दूषन भूषनधारी।। + +निज कवित केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका।। + +जे पर भनिति सुनत हरषाही। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं।। + +जग बहु नर सर सरि सम भाई। जे निज बाढ़ि बढ़हिं जल पाई।। + +सज्जन सकृत सिंधु सम कोई। देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई।।भाग छोट अभिलाषु बड़ करउँ एक बिस्वास। + +पैहहिं सुख सुनि सुजन सब खल करहहिं उपहास।।8।।खल परिहास होइ हित मोरा। काक कहहिं कलकंठ कठोरा।। + +हंसहि बक दादुर चातकही। हँसहिं मलिन खल बिमल बतकही।। + +कबित रसिक न राम पद नेहू। तिन्ह कहँ सुखद हास रस एहू।। + +भाषा भनिति भोरि मति मोरी। हँसिबे जोग हँसें नहिं खोरी।। + +प्रभु पद प्रीति न सामुझि नीकी। तिन्हहि कथा सुनि लागहि फीकी।। + +हरि हर पद रति मति न कुतरकी। तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुवर की।। + +राम भगति भूषित जियँ जानी। सुनिहहिं सुजन सराहि सुबानी।। + +कबि न होउँ नहिं बचन प्रबीनू। सकल कला सब बिद्या हीनू।। + +आखर अरथ अलंकृति नाना। छंद प्रबंध अनेक बिधाना।। + +भाव भेद रस भेद अपारा। कबित दोष गुन बिबिध प्रकारा।। + +कबित बिबेक एक नहिं मोरें। सत्य कहउँ लिखि कागद कोरे।।भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक। + +सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह कें बिमल बिवेक।।9।।एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा।। + +मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी।। + +भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ। राम नाम बिनु सोह न सोऊ।। + +बिधुबदनी सब भाँति सँवारी। सोन न बसन बिना बर नारी।। + +सब गुन रहित कुकबि कृत बानी। राम नाम जस अंकित जानी।। + +सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही। मधुकर सरिस संत गुनग्राही।। + +जदपि कबित रस एकउ नाही। राम प्रताप प्रकट एहि माहीं।। + +सोइ भरोस मोरें मन आवा। केहिं न सुसंग बडप्पनु पावा।। + +धूमउ तजइ सहज करुआई। अगरु प्रसंग सुगंध बसाई।। + +भनिति भदेस बस्तु भलि बरनी। राम कथा जग मंगल करनी।।मंगल करनि कलि मल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की।। + +गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की।। + +प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी।। + +भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी।।प्रिय लागिहि अति सबहि मम भनिति राम जस संग। + +दारु बिचारु कि करइ कोउ बंदिअ मलय प्रसंग।।10(क)।। + +स्याम सुरभि पय बिसद अति गुनद करहिं सब पान। + +गिरा ग्राम्य सिय राम जस गावहिं सुनहिं सुजान।।10(ख)।।मनि मानिक मुकुता छबि जैसी। अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी।। + +नृप किरीट तरुनी तनु पाई। लहहिं सकल सोभा अधिकाई।। + +तैसेहिं सुकबि कबित बुध कहहीं। उपजहिं अनत अनत छबि लहहीं।। + +भगति हेतु बिधि भवन बिहाई। सुमिरत सारद आवति धाई।। + +राम चरित सर बिनु अन्हवाएँ। सो श्रम जाइ न कोटि उपाएँ।। + +कबि कोबिद अस हृदयँ बिचारी। गावहिं हरि जस कलि मल हारी।। + +कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना। सिर धुनि गिरा लगत पछिताना।। + +हृदय सिंधु मति सीप समाना। स्वाति सारदा कहहिं सुजाना।। + +जौं बरषइ बर बारि बिचारू। होहिं कबित मुकुतामनि चारू।।जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग। + +पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।11।।जे जनमे कलिकाल कराला। करतब बायस बेष मराला।। + +चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े। कपट कलेवर कलि मल भाँड़ें।। + +बंचक भगत कहाइ राम के। किंकर कंचन कोह काम के।। + +तिन्ह महँ प्रथम रेख जग मोरी। धींग धरमध्वज धंधक धोरी।। + +जौं अपने अवगुन सब कहऊँ। बाढ़इ कथा पार नहिं लहऊँ।। + +ताते मैं अति अलप बखाने। थोरे महुँ जानिहहिं सयाने।। + +समुझि बिबिधि बिधि बिनती मोरी। कोउ न कथा सुनि देइहि खोरी।। + +एतेहु पर करिहहिं जे असंका। मोहि ते अधिक ते जड़ मति रंका।। + +कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ। मति अनुरूप राम गुन गावउँ।। + +कहँ रघुपति के चरित अपारा। कहँ मति मोरि निरत संसारा।। + +जेहिं मारुत गिरि मेरु उड़ाहीं। कहहु तूल केहि लेखे माहीं।। + +समुझत अमित राम प्रभुताई। करत कथा मन अति कदराई।।सारद सेस महेस बिधि आगम निगम प���रान। + +नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गान।।12।।सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई।। + +तहाँ बेद अस कारन राखा। भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा।। + +एक अनीह अरूप अनामा। अज सच्चिदानंद पर धामा।। + +ब्यापक बिस्वरूप भगवाना। तेहिं धरि देह चरित कृत नाना।। + +सो केवल भगतन हित लागी। परम कृपाल प्रनत अनुरागी।। + +जेहि जन पर ममता अति छोहू। जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू।। + +गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।। + +बुध बरनहिं हरि जस अस जानी। करहि पुनीत सुफल निज बानी।। + +तेहिं बल मैं रघुपति गुन गाथा। कहिहउँ नाइ राम पद माथा।। + +मुनिन्ह प्रथम हरि कीरति गाई। तेहिं मग चलत सुगम मोहि भाई।।अति अपार जे सरित बर जौं नृप सेतु कराहिं। + +चढि पिपीलिकउ परम लघु बिनु श्रम पारहि जाहिं।।13।।एहि प्रकार बल मनहि देखाई। करिहउँ रघुपति कथा सुहाई।। + +ब्यास आदि कबि पुंगव नाना। जिन्ह सादर हरि सुजस बखाना।। + +चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे। पुरवहुँ सकल मनोरथ मेरे।। + +कलि के कबिन्ह करउँ परनामा। जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा।। + +जे प्राकृत कबि परम सयाने। भाषाँ जिन्ह हरि चरित बखाने।। + +भए जे अहहिं जे होइहहिं आगें। प्रनवउँ सबहिं कपट सब त्यागें।। + +होहु प्रसन्न देहु बरदानू। साधु समाज भनिति सनमानू।। + +जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं। सो श्रम बादि बाल कबि करहीं।। + +कीरति भनिति भूति भलि सोई। सुरसरि सम सब कहँ हित होई।। + +राम सुकीरति भनिति भदेसा। असमंजस अस मोहि अँदेसा।। + +तुम्हरी कृपा सुलभ सोउ मोरे। सिअनि सुहावनि टाट पटोरे।।सरल कबित कीरति बिमल सोइ आदरहिं सुजान। + +सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान।।14(क)।। + +सो न होइ बिनु बिमल मति मोहि मति बल अति थोर। + +करहु कृपा हरि जस कहउँ पुनि पुनि करउँ निहोर।।14(ख)।। + +कबि कोबिद रघुबर चरित मानस मंजु मराल। + +बाल बिनय सुनि सुरुचि लखि मोपर होहु कृपाल।।14(ग)।। + +बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ। + +सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित।।14(घ)।। + +बंदउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस। + +जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जसु।।14(ङ)।। + +बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहि कीन्ह जहँ। + +संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी।।14(च)।। + +बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउँ कर जोरि। + +होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि।।14(छ)।।पुनि बंदउँ सारद सुरसरित��। जुगल पुनीत मनोहर चरिता।। + +मज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अबिबेका।। + +गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी।। + +सेवक स्वामि सखा सिय पी के। हित निरुपधि सब बिधि तुलसीके।। + +कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा। साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा।। + +अनमिल आखर अरथ न जापू। प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू।। + +सो उमेस मोहि पर अनुकूला। करिहिं कथा मुद मंगल मूला।। + +सुमिरि सिवा सिव पाइ पसाऊ। बरनउँ रामचरित चित चाऊ।। + +भनिति मोरि सिव कृपाँ बिभाती। ससि समाज मिलि मनहुँ सुराती।। + +जे एहि कथहि सनेह समेता। कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता।। + +होइहहिं राम चरन अनुरागी। कलि मल रहित सुमंगल भागी।।सपनेहुँ साचेहुँ मोहि पर जौं हर गौरि पसाउ। + +तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ।।15।।बंदउँ अवध पुरी अति पावनि। सरजू सरि कलि कलुष नसावनि।। + +प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी। ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी।। + +सिय निंदक अघ ओघ नसाए। लोक बिसोक बनाइ बसाए।। + +बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची। कीरति जासु सकल जग माची।। + +प्रगटेउ जहँ रघुपति ससि चारू। बिस्व सुखद खल कमल तुसारू।। + +दसरथ राउ सहित सब रानी। सुकृत सुमंगल मूरति मानी।। + +करउँ प्रनाम करम मन बानी। करहु कृपा सुत सेवक जानी।। + +जिन्हहि बिरचि बड़ भयउ बिधाता। महिमा अवधि राम पितु माता।।बंदउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद। + +बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तृन इव परिहरेउ।।16।।प्रनवउँ परिजन सहित बिदेहू। जाहि राम पद गूढ़ सनेहू।। + +जोग भोग महँ राखेउ गोई। राम बिलोकत प्रगटेउ सोई।। + +प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना। जासु नेम ब्रत जाइ न बरना।। + +राम चरन पंकज मन जासू। लुबुध मधुप इव तजइ न पासू।। + +बंदउँ लछिमन पद जलजाता। सीतल सुभग भगत सुख दाता।। + +रघुपति कीरति बिमल पताका। दंड समान भयउ जस जाका।। + +सेष सहस्त्रसीस जग कारन। जो अवतरेउ भूमि भय टारन।। + +सदा सो सानुकूल रह मो पर। कृपासिंधु सौमित्रि गुनाकर।। + +रिपुसूदन पद कमल नमामी। सूर सुसील भरत अनुगामी।। + +महावीर बिनवउँ हनुमाना। राम जासु जस आप बखाना।।प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन। + +जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।17।।कपिपति रीछ निसाचर राजा। अंगदादि जे कीस समाजा।। + +बंदउँ सब के चरन सुहाए। अधम सरीर राम जिन्ह पाए।। + +रघुपति चरन उपासक जेते। खग मृग सुर नर असुर समेते।। + +बंदउँ पद सरोज सब केरे। जे बिनु काम राम के चेरे।। + +सुक सनकादि भगत मुनि नारद। जे मुनिबर बिग्यान बिसारद।। + +प्रनवउँ सबहिं धरनि धरि सीसा। करहु कृपा जन जानि मुनीसा।। + +जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुना निधान की।। + +ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।। + +पुनि मन बचन कर्म रघुनायक। चरन कमल बंदउँ सब लायक।। + +राजिवनयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुख दायक।।गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न। + +बदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न।।18।।बंदउँ नाम राम रघुवर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को।। + +बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो।। + +महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू।। + +महिमा जासु जान गनराउ। प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ।। + +जान आदिकबि नाम प्रतापू। भयउ सुद्ध करि उलटा जापू।। + +सहस नाम सम सुनि सिव बानी। जपि जेई पिय संग भवानी।। + +हरषे हेतु हेरि हर ही को। किय भूषन तिय भूषन ती को।। + +नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास।। + +राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास।।19।।आखर मधुर मनोहर दोऊ। बरन बिलोचन जन जिय जोऊ।। + +सुमिरत सुलभ सुखद सब काहू। लोक लाहु परलोक निबाहू।। + +कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके। राम लखन सम प्रिय तुलसी के।। + +बरनत बरन प्रीति बिलगाती। ब्रह्म जीव सम सहज सँघाती।। + +नर नारायन सरिस सुभ्राता। जग पालक बिसेषि जन त्राता।। + +भगति सुतिय कल करन बिभूषन। जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन । + +स्वाद तोष सम सुगति सुधा के। कमठ सेष सम धर बसुधा के।। + +जन मन मंजु कंज मधुकर से। जीह जसोमति हरि हलधर से।।एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ। + +तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ।।20।।समुझत सरिस नाम अरु नामी। प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी।। + +नाम रूप दुइ ईस उपाधी। अकथ अनादि सुसामुझि साधी।। + +को बड़ छोट कहत अपराधू। सुनि गुन भेद समुझिहहिं साधू।। + +देखिअहिं रूप नाम आधीना। रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना।। + +रूप बिसेष नाम बिनु जानें। करतल गत न परहिं पहिचानें।। + +सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें। आवत हृदयँ सनेह बिसेषें।। + +नाम रूप गति अकथ कहानी। समुझत सुखद न परति बखानी।। + +अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी। उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी।।राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरी द्वार। + +तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर।।21।।नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी। बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी।। + +ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा। अकथ अनामय नाम न रूपा।। + +जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ। नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ।। + +साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।। + +जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।। + +राम भगत जग चारि प्रकारा। सुकृती चारिउ अनघ उदारा।। + +चहू चतुर कहुँ नाम अधारा। ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा।। + +चहुँ जुग चहुँ श्रुति ना प्रभाऊ। कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ।।सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन। + +नाम सुप्रेम पियूष हद तिन्हहुँ किए मन मीन।।22।।अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा। अकथ अगाध अनादि अनूपा।। + +मोरें मत बड़ नामु दुहू तें। किए जेहिं जुग निज बस निज बूतें।। + +प्रोढ़ि सुजन जनि जानहिं जन की। कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मन की।। + +एकु दारुगत देखिअ एकू। पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू।। + +उभय अगम जुग सुगम नाम तें। कहेउँ नामु बड़ ब्रह्म राम तें।। + +ब्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी। सत चेतन धन आनँद रासी।। + +अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी। सकल जीव जग दीन दुखारी।। + +नाम निरूपन नाम जतन तें। सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें।।निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार। + +कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार।।23।।राम भगत हित नर तनु धारी। सहि संकट किए साधु सुखारी।। + +नामु सप्रेम जपत अनयासा। भगत होहिं मुद मंगल बासा।। + +राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी।। + +रिषि हित राम सुकेतुसुता की। सहित सेन सुत कीन्ह बिबाकी।। + +सहित दोष दुख दास दुरासा। दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा।। + +भंजेउ राम आपु भव चापू। भव भय भंजन नाम प्रतापू।। + +दंडक बनु प्रभु कीन्ह सुहावन। जन मन अमित नाम किए पावन।।। + +निसिचर निकर दले रघुनंदन। नामु सकल कलि कलुष निकंदन।।सबरी गीध सुसेवकनि सुगति दीन्हि रघुनाथ। + +नाम उधारे अमित खल बेद बिदित गुन गाथ।।24।।राम सुकंठ बिभीषन दोऊ। राखे सरन जान सबु कोऊ।। + +नाम गरीब अनेक नेवाजे। लोक बेद बर बिरिद बिराजे।। + +राम भालु कपि कटकु बटोरा। सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा।। + +नामु लेत भवसिंधु सुखाहीं। करहु बिचारु सुजन मन माहीं।। + +राम सकुल रन रावनु मारा। सीय सहित निज पुर पगु धारा।। + +राजा रामु अवध रजधानी। गावत गुन सुर मुनि बर बानी।। + +सेवक सुमिरत नामु सप्रीती। बिनु श्रम प्रबल मोह दलु जीती।। + +फिरत सन��हँ मगन सुख अपनें। नाम प्रसाद सोच नहिं सपनें।।ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि। + +रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि।।25।।नाम प्रसाद संभु अबिनासी। साजु अमंगल मंगल रासी।। + +सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी। नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी।। + +नारद जानेउ नाम प्रतापू। जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू।। + +नामु जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू। भगत सिरोमनि भे प्रहलादू।। + +ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ। पायउ अचल अनूपम ठाऊँ।। + +सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू।। + +अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ। भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ।। + +कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई। रामु न सकहिं नाम गुन गाई।।नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु। + +जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु।।26।।चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका। भए नाम जपि जीव बिसोका।। + +बेद पुरान संत मत एहू। सकल सुकृत फल राम सनेहू।। + +ध्यानु प्रथम जुग मखबिधि दूजें। द्वापर परितोषत प्रभु पूजें।। + +कलि केवल मल मूल मलीना। पाप पयोनिधि जन मन मीना।। + +नाम कामतरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला।। + +राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता।। + +नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू।। + +कालनेमि कलि कपट निधानू। नाम सुमति समरथ हनुमानू।।राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल। + +जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल।।27।।भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ।। + +सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा।। + +मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती।। + +राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो। निज दिसि दैखि दयानिधि पोसो।। + +लोकहुँ बेद सुसाहिब रीतीं। बिनय सुनत पहिचानत प्रीती।। + +गनी गरीब ग्रामनर नागर। पंडित मूढ़ मलीन उजागर।। + +सुकबि कुकबि निज मति अनुहारी। नृपहि सराहत सब नर नारी।। + +साधु सुजान सुसील नृपाला। ईस अंस भव परम कृपाला।। + +सुनि सनमानहिं सबहि सुबानी। भनिति भगति नति गति पहिचानी।। + +यह प्राकृत महिपाल सुभाऊ। जान सिरोमनि कोसलराऊ।। + +रीझत राम सनेह निसोतें। को जग मंद मलिनमति मोतें।।सठ सेवक की प्रीति रुचि रखिहहिं राम कृपालु। + +उपल किए जलजान जेहिं सचिव सुमति कपि भालु।।28(क)।। + +हौहु कहावत सबु कहत राम सहत उपहास। + +साहिब सीतानाथ सो सेवक तुलसीदास।।28(ख)।।अति बड़ि मोरि ढिठाई खोरी। सुनि अघ नरकहुँ न���क सकोरी।। + +समुझि सहम मोहि अपडर अपनें। सो सुधि राम कीन्हि नहिं सपनें।। + +सुनि अवलोकि सुचित चख चाही। भगति मोरि मति स्वामि सराही।। + +कहत नसाइ होइ हियँ नीकी। रीझत राम जानि जन जी की।। + +रहति न प्रभु चित चूक किए की। करत सुरति सय बार हिए की।। + +जेहिं अघ बधेउ ब्याध जिमि बाली। फिरि सुकंठ सोइ कीन्ह कुचाली।। + +सोइ करतूति बिभीषन केरी। सपनेहुँ सो न राम हियँ हेरी।। + +ते भरतहि भेंटत सनमाने। राजसभाँ रघुबीर बखाने।।प्रभु तरु तर कपि डार पर ते किए आपु समान।। + +तुलसी कहूँ न राम से साहिब सीलनिधान।।29(क)।। + +राम निकाईं रावरी है सबही को नीक। + +जों यह साँची है सदा तौ नीको तुलसीक।।29(ख)।। + +एहि बिधि निज गुन दोष कहि सबहि बहुरि सिरु नाइ। + +बरनउँ रघुबर बिसद जसु सुनि कलि कलुष नसाइ।।29(ग)।।जागबलिक जो कथा सुहाई। भरद्वाज मुनिबरहि सुनाई।। + +कहिहउँ सोइ संबाद बखानी। सुनहुँ सकल सज्जन सुखु मानी।। + +संभु कीन्ह यह चरित सुहावा। बहुरि कृपा करि उमहि सुनावा।। + +सोइ सिव कागभुसुंडिहि दीन्हा। राम भगत अधिकारी चीन्हा।। + +तेहि सन जागबलिक पुनि पावा। तिन्ह पुनि भरद्वाज प्रति गावा।। + +ते श्रोता बकता समसीला। सवँदरसी जानहिं हरिलीला।। + +जानहिं तीनि काल निज ग्याना। करतल गत आमलक समाना।। + +औरउ जे हरिभगत सुजाना। कहहिं सुनहिं समुझहिं बिधि नाना।।मै पुनि निज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत। + +समुझी नहि तसि बालपन तब अति रहेउँ अचेत।।30(क)।। + +श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़। + +किमि समुझौं मै जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़।।30(ख)।।तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा।। + +भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई।। + +जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें।। + +निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी।। + +बुध बिश्राम सकल जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि।। + +रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी।। + +रामकथा कलि कामद गाई। सुजन सजीवनि मूरि सुहाई।। + +सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि। भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि।। + +असुर सेन सम नरक निकंदिनि। साधु बिबुध कुल हित गिरिनंदिनि।। + +संत समाज पयोधि रमा सी। बिस्व भार भर अचल छमा सी।। + +जम गन मुहँ मसि जग जमुना सी। जीवन मुकुति हेतु जनु कासी।। + +रामहि प्रिय पावनि तुलसी सी। तुलसिदास हित हियँ हुलसी सी।। + +सिवप्रय मे���ल सैल सुता सी। सकल सिद्धि सुख संपति रासी।। + +सदगुन सुरगन अंब अदिति सी। रघुबर भगति प्रेम परमिति सी।।राम कथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु। + +तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु।।31।।राम चरित चिंतामनि चारू। संत सुमति तिय सुभग सिंगारू।। + +जग मंगल गुन ग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के।। + +सदगुर ग्यान बिराग जोग के। बिबुध बैद भव भीम रोग के।। + +जननि जनक सिय राम प्रेम के। बीज सकल ब्रत धरम नेम के।। + +समन पाप संताप सोक के। प्रिय पालक परलोक लोक के।। + +सचिव सुभट भूपति बिचार के। कुंभज लोभ उदधि अपार के।। + +काम कोह कलिमल करिगन के। केहरि सावक जन मन बन के।। + +अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद घन दारिद दवारि के।। + +मंत्र महामनि बिषय ब्याल के। मेटत कठिन कुअंक भाल के।। + +हरन मोह तम दिनकर कर से। सेवक सालि पाल जलधर से।। + +अभिमत दानि देवतरु बर से। सेवत सुलभ सुखद हरि हर से।। + +सुकबि सरद नभ मन उडगन से। रामभगत जन जीवन धन से।। + +सकल सुकृत फल भूरि भोग से। जग हित निरुपधि साधु लोग से।। + +सेवक मन मानस मराल से। पावक गंग तंरग माल से।।कुपथ कुतरक कुचालि कलि कपट दंभ पाषंड। + +दहन राम गुन ग्राम जिमि इंधन अनल प्रचंड।।32(क)।। + +रामचरित राकेस कर सरिस सुखद सब काहु। + +सज्जन कुमुद चकोर चित हित बिसेषि बड़ लाहु।।32(ख)।।कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी। जेहि बिधि संकर कहा बखानी।। + +सो सब हेतु कहब मैं गाई। कथाप्रबंध बिचित्र बनाई।। + +जेहि यह कथा सुनी नहिं होई। जनि आचरजु करैं सुनि सोई।। + +कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी। नहिं आचरजु करहिं अस जानी।। + +रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं।। + +नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा।। + +कलपभेद हरिचरित सुहाए। भाँति अनेक मुनीसन्ह गाए।। + +करिअ न संसय अस उर आनी। सुनिअ कथा सारद रति मानी।।राम अनंत अनंत गुन अमित कथा बिस्तार। + +सुनि आचरजु न मानिहहिं जिन्ह कें बिमल बिचार।।33।।एहि बिधि सब संसय करि दूरी। सिर धरि गुर पद पंकज धूरी।। + +पुनि सबही बिनवउँ कर जोरी। करत कथा जेहिं लाग न खोरी।। + +सादर सिवहि नाइ अब माथा। बरनउँ बिसद राम गुन गाथा।। + +संबत सोरह सै एकतीसा। करउँ कथा हरि पद धरि सीसा।। + +नौमी भौम बार मधु मासा। अवधपुरीं यह चरित प्रकासा।। + +जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं। तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं।। + +असुर नाग खग नर मुनि देवा। आइ करहिं रघुनायक सेवा।। + +जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना। करहिं राम कल कीरति गाना।।मज्जहि सज्जन बृंद बहु पावन सरजू नीर। + +जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर।।34।।दरस परस मज्जन अरु पाना। हरइ पाप कह बेद पुराना।। + +नदी पुनीत अमित महिमा अति। कहि न सकइ सारद बिमलमति।। + +राम धामदा पुरी सुहावनि। लोक समस्त बिदित अति पावनि।। + +चारि खानि जग जीव अपारा। अवध तजे तनु नहि संसारा।। + +सब बिधि पुरी मनोहर जानी। सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी।। + +बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा। सुनत नसाहिं काम मद दंभा।। + +रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा।। + +मन करि विषय अनल बन जरई। होइ सुखी जौ एहिं सर परई।। + +रामचरितमानस मुनि भावन। बिरचेउ संभु सुहावन पावन।। + +त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन। कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन।। + +रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा।। + +तातें रामचरितमानस बर। धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर।। + +कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई। सादर सुनहु सुजन मन लाई।।जस मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु। + +अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु।।35।।संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी। रामचरितमानस कबि तुलसी।। + +करइ मनोहर मति अनुहारी। सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी।। + +सुमति भूमि थल हृदय अगाधू। बेद पुरान उदधि घन साधू।। + +बरषहिं राम सुजस बर बारी। मधुर मनोहर मंगलकारी।। + +लीला सगुन जो कहहिं बखानी। सोइ स्वच्छता करइ मल हानी।। + +प्रेम भगति जो बरनि न जाई। सोइ मधुरता सुसीतलताई।। + +सो जल सुकृत सालि हित होई। राम भगत जन जीवन सोई।। + +मेधा महि गत सो जल पावन। सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन।। + +भरेउ सुमानस सुथल थिराना। सुखद सीत रुचि चारु चिराना।।सुठि सुंदर संबाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि। + +तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि।।36।।सप्त प्रबन्ध सुभग सोपाना। ग्यान नयन निरखत मन माना।। + +रघुपति महिमा अगुन अबाधा। बरनब सोइ बर बारि अगाधा।। + +राम सीय जस सलिल सुधासम। उपमा बीचि बिलास मनोरम।। + +पुरइनि सघन चारु चौपाई। जुगुति मंजु मनि सीप सुहाई।। + +छंद सोरठा सुंदर दोहा। सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा।। + +अरथ अनूप सुमाव सुभासा। सोइ पराग मकरंद सुबासा।। + +सुकृत पुंज मंजुल अलि माला। ग्यान बिराग बिचार मराला।। + +धुनि अवरेब कबित गुन जाती। मीन मनोहर ते बहुभाँती।। + +अरथ धरम कामादिक चारी। कहब ग्यान बिग्यान बिचा���ी।। + +नव रस जप तप जोग बिरागा। ते सब जलचर चारु तड़ागा।। + +सुकृती साधु नाम गुन गाना। ते बिचित्र जल बिहग समाना।। + +संतसभा चहुँ दिसि अवँराई। श्रद्धा रितु बसंत सम गाई।। + +भगति निरुपन बिबिध बिधाना। छमा दया दम लता बिताना।। + +सम जम नियम फूल फल ग्याना। हरि पत रति रस बेद बखाना।। + +औरउ कथा अनेक प्रसंगा। तेइ सुक पिक बहुबरन बिहंगा।।पुलक बाटिका बाग बन सुख सुबिहंग बिहारु। + +माली सुमन सनेह जल सींचत लोचन चारु।।37।।जे गावहिं यह चरित सँभारे। तेइ एहि ताल चतुर रखवारे।। + +सदा सुनहिं सादर नर नारी। तेइ सुरबर मानस अधिकारी।। + +अति खल जे बिषई बग कागा। एहिं सर निकट न जाहिं अभागा।। + +संबुक भेक सेवार समाना। इहाँ न बिषय कथा रस नाना।। + +तेहि कारन आवत हियँ हारे। कामी काक बलाक बिचारे।। + +आवत एहिं सर अति कठिनाई। राम कृपा बिनु आइ न जाई।। + +कठिन कुसंग कुपंथ कराला। तिन्ह के बचन बाघ हरि ब्याला।। + +गृह कारज नाना जंजाला। ते अति दुर्गम सैल बिसाला।। + +बन बहु बिषम मोह मद माना। नदीं कुतर्क भयंकर नाना।।जे श्रद्धा संबल रहित नहि संतन्ह कर साथ। + +तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ।।38।।जौं करि कष्ट जाइ पुनि कोई। जातहिं नींद जुड़ाई होई।। + +जड़ता जाड़ बिषम उर लागा। गएहुँ न मज्जन पाव अभागा।। + +करि न जाइ सर मज्जन पाना। फिरि आवइ समेत अभिमाना।। + +जौं बहोरि कोउ पूछन आवा। सर निंदा करि ताहि बुझावा।। + +सकल बिघ्न ब्यापहि नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही।। + +सोइ सादर सर मज्जनु करई। महा घोर त्रयताप न जरई।। + +ते नर यह सर तजहिं न काऊ। जिन्ह के राम चरन भल भाऊ।। + +जो नहाइ चह एहिं सर भाई। सो सतसंग करउ मन लाई।। + +अस मानस मानस चख चाही। भइ कबि बुद्धि बिमल अवगाही।। + +भयउ हृदयँ आनंद उछाहू। उमगेउ प्रेम प्रमोद प्रबाहू।। + +चली सुभग कबिता सरिता सो। राम बिमल जस जल भरिता सो।। + +सरजू नाम सुमंगल मूला। लोक बेद मत मंजुल कूला।। + +नदी पुनीत सुमानस नंदिनि। कलिमल तृन तरु मूल निकंदिनि।।श्रोता त्रिबिध समाज पुर ग्राम नगर दुहुँ कूल। + +संतसभा अनुपम अवध सकल सुमंगल मूल।।39।।रामभगति सुरसरितहि जाई। मिली सुकीरति सरजु सुहाई।। + +सानुज राम समर जसु पावन। मिलेउ महानदु सोन सुहावन।। + +जुग बिच भगति देवधुनि धारा। सोहति सहित सुबिरति बिचारा।। + +त्रिबिध ताप त्रासक तिमुहानी। राम सरुप सिंधु समुहानी।। + +मानस मूल मिली ���ुरसरिही। सुनत सुजन मन पावन करिही।। + +बिच बिच कथा बिचित्र बिभागा। जनु सरि तीर तीर बन बागा।। + +उमा महेस बिबाह बराती। ते जलचर अगनित बहुभाँती।। + +रघुबर जनम अनंद बधाई। भवँर तरंग मनोहरताई।।बालचरित चहु बंधु के बनज बिपुल बहुरंग। + +नृप रानी परिजन सुकृत मधुकर बारिबिहंग।।40।।सीय स्वयंबर कथा सुहाई। सरित सुहावनि सो छबि छाई।। + +नदी नाव पटु प्रस्न अनेका। केवट कुसल उतर सबिबेका।। + +सुनि अनुकथन परस्पर होई। पथिक समाज सोह सरि सोई।। + +घोर धार भृगुनाथ रिसानी। घाट सुबद्ध राम बर बानी।। + +सानुज राम बिबाह उछाहू। सो सुभ उमग सुखद सब काहू।। + +कहत सुनत हरषहिं पुलकाहीं। ते सुकृती मन मुदित नहाहीं।। + +राम तिलक हित मंगल साजा। परब जोग जनु जुरे समाजा।। + +काई कुमति केकई केरी। परी जासु फल बिपति घनेरी।।समन अमित उतपात सब भरतचरित जपजाग। + +कलि अघ खल अवगुन कथन ते जलमल बग काग।।41।।कीरति सरित छहूँ रितु रूरी। समय सुहावनि पावनि भूरी।। + +हिम हिमसैलसुता सिव ब्याहू। सिसिर सुखद प्रभु जनम उछाहू।। + +बरनब राम बिबाह समाजू। सो मुद मंगलमय रितुराजू।। + +ग्रीषम दुसह राम बनगवनू। पंथकथा खर आतप पवनू।। + +बरषा घोर निसाचर रारी। सुरकुल सालि सुमंगलकारी।। + +राम राज सुख बिनय बड़ाई। बिसद सुखद सोइ सरद सुहाई।। + +सती सिरोमनि सिय गुनगाथा। सोइ गुन अमल अनूपम पाथा।। + +भरत सुभाउ सुसीतलताई। सदा एकरस बरनि न जाई।।अवलोकनि बोलनि मिलनि प्रीति परसपर हास। + +भायप भलि चहु बंधु की जल माधुरी सुबास।।42।।आरति बिनय दीनता मोरी। लघुता ललित सुबारि न थोरी।। + +अदभुत सलिल सुनत गुनकारी। आस पिआस मनोमल हारी।। + +राम सुप्रेमहि पोषत पानी। हरत सकल कलि कलुष गलानी।। + +भव श्रम सोषक तोषक तोषा। समन दुरित दुख दारिद दोषा।। + +काम कोह मद मोह नसावन। बिमल बिबेक बिराग बढ़ावन।। + +सादर मज्जन पान किए तें। मिटहिं पाप परिताप हिए तें।। + +जिन्ह एहि बारि न मानस धोए। ते कायर कलिकाल बिगोए।। + +तृषित निरखि रबि कर भव बारी। फिरिहहि मृग जिमि जीव दुखारी।।मति अनुहारि सुबारि गुन गनि मन अन्हवाइ। + +सुमिरि भवानी संकरहि कह कबि कथा सुहाइ।।43(क)।। + +अब रघुपति पद पंकरुह हियँ धरि पाइ प्रसाद । + +कहउँ जुगल मुनिबर्ज कर मिलन सुभग संबाद।।43(ख)।।भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। तिन्हहि राम पद अति अनुरागा।। + +तापस सम दम दया निधाना। परमारथ पथ परम सुजाना।। + +माघ मकरगत रब�� जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई।। + +देव दनुज किंनर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं।। + +पूजहि माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता।। + +भरद्वाज आश्रम अति पावन। परम रम्य मुनिबर मन भावन।। + +तहाँ होइ मुनि रिषय समाजा। जाहिं जे मज्जन तीरथराजा।। + +मज्जहिं प्रात समेत उछाहा। कहहिं परसपर हरि गुन गाहा।।ब्रह्म निरूपम धरम बिधि बरनहिं तत्त्व बिभाग। + +कहहिं भगति भगवंत कै संजुत ग्यान बिराग।।44।।एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं। पुनि सब निज निज आश्रम जाहीं।। + +प्रति संबत अति होइ अनंदा। मकर मज्जि गवनहिं मुनिबृंदा।। + +एक बार भरि मकर नहाए। सब मुनीस आश्रमन्ह सिधाए।। + +जगबालिक मुनि परम बिबेकी। भरव्दाज राखे पद टेकी।। + +सादर चरन सरोज पखारे। अति पुनीत आसन बैठारे।। + +करि पूजा मुनि सुजस बखानी। बोले अति पुनीत मृदु बानी।। + +नाथ एक संसउ बड़ मोरें। करगत बेदतत्व सबु तोरें।। + +कहत सो मोहि लागत भय लाजा। जौ न कहउँ बड़ होइ अकाजा।।संत कहहि असि नीति प्रभु श्रुति पुरान मुनि गाव। + +होइ न बिमल बिबेक उर गुर सन किएँ दुराव।।45।।अस बिचारि प्रगटउँ निज मोहू। हरहु नाथ करि जन पर छोहू।। + +राम नाम कर अमित प्रभावा। संत पुरान उपनिषद गावा।। + +संतत जपत संभु अबिनासी। सिव भगवान ग्यान गुन रासी।। + +आकर चारि जीव जग अहहीं। कासीं मरत परम पद लहहीं।। + +सोपि राम महिमा मुनिराया। सिव उपदेसु करत करि दाया।। + +रामु कवन प्रभु पूछउँ तोही। कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोही।। + +एक राम अवधेस कुमारा। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा।। + +नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा। भयहु रोषु रन रावनु मारा।।प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि। + +सत्यधाम सर्बग्य तुम्ह कहहु बिबेकु बिचारि।।46।।जैसे मिटै मोर भ्रम भारी। कहहु सो कथा नाथ बिस्तारी।। + +जागबलिक बोले मुसुकाई। तुम्हहि बिदित रघुपति प्रभुताई।। + +राममगत तुम्ह मन क्रम बानी। चतुराई तुम्हारी मैं जानी।। + +चाहहु सुनै राम गुन गूढ़ा। कीन्हिहु प्रस्न मनहुँ अति मूढ़ा।। + +तात सुनहु सादर मनु लाई। कहउँ राम कै कथा सुहाई।। + +महामोहु महिषेसु बिसाला। रामकथा कालिका कराला।। + +रामकथा ससि किरन समाना। संत चकोर करहिं जेहि पाना।। + +ऐसेइ संसय कीन्ह भवानी। महादेव तब कहा बखानी।।कहउँ सो मति अनुहारि अब उमा संभु संबाद। + +भयउ समय जेहि हेतु जेहि सुनु मुनि मिटिहि बिषाद।।47।।एक बार त्रेता जुग माहीं। संभु गए कुंभज रिषि पाहीं।। + +संग सती जगजननि भवानी। पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी।। + +रामकथा मुनीबर्ज बखानी। सुनी महेस परम सुखु मानी।। + +रिषि पूछी हरिभगति सुहाई। कही संभु अधिकारी पाई।। + +कहत सुनत रघुपति गुन गाथा। कछु दिन तहाँ रहे गिरिनाथा।। + +मुनि सन बिदा मागि त्रिपुरारी। चले भवन सँग दच्छकुमारी।। + +तेहि अवसर भंजन महिभारा। हरि रघुबंस लीन्ह अवतारा।। + +पिता बचन तजि राजु उदासी। दंडक बन बिचरत अबिनासी।।ह्दयँ बिचारत जात हर केहि बिधि दरसनु होइ। + +गुप्त रुप अवतरेउ प्रभु गएँ जान सबु कोइ।।48(क)।। + +संकर उर अति छोभु सती न जानहिं मरमु सोइ।। + +तुलसी दरसन लोभु मन डरु लोचन लालची।।48(ख)।।रावन मरन मनुज कर जाचा। प्रभु बिधि बचनु कीन्ह चह साचा।। + +जौं नहिं जाउँ रहइ पछितावा। करत बिचारु न बनत बनावा।। + +एहि बिधि भए सोचबस ईसा। तेहि समय जाइ दससीसा।। + +लीन्ह नीच मारीचहि संगा। भयउ तुरत सोइ कपट कुरंगा।। + +करि छलु मूढ़ हरी बैदेही। प्रभु प्रभाउ तस बिदित न तेही।। + +मृग बधि बन्धु सहित हरि आए। आश्रमु देखि नयन जल छाए।। + +बिरह बिकल नर इव रघुराई। खोजत बिपिन फिरत दोउ भाई।। + +कबहूँ जोग बियोग न जाकें। देखा प्रगट बिरह दुख ताकें।।अति विचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान। + +जे मतिमंद बिमोह बस हृदयँ धरहिं कछु आन।।49।।संभु समय तेहि रामहि देखा। उपजा हियँ अति हरपु बिसेषा।। + +भरि लोचन छबिसिंधु निहारी। कुसमय जानिन कीन्हि चिन्हारी।। + +जय सच्चिदानंद जग पावन। अस कहि चलेउ मनोज नसावन।। + +चले जात सिव सती समेता। पुनि पुनि पुलकत कृपानिकेता।। + +सतीं सो दसा संभु कै देखी। उर उपजा संदेहु बिसेषी।। + +संकरु जगतबंद्य जगदीसा। सुर नर मुनि सब नावत सीसा।। + +तिन्ह नृपसुतहि नह परनामा। कहि सच्चिदानंद परधमा।। + +भए मगन छबि तासु बिलोकी। अजहुँ प्रीति उर रहति न रोकी।।ब्रह्म जो व्यापक बिरज अज अकल अनीह अभेद। + +सो कि देह धरि होइ नर जाहि न जानत वेद।। 50।।बिष्नु जो सुर हित नरतनु धारी। सोउ सर्बग्य जथा त्रिपुरारी।। + +खोजइ सो कि अग्य इव नारी। ग्यानधाम श्रीपति असुरारी।। + +संभुगिरा पुनि मृषा न होई। सिव सर्बग्य जान सबु कोई।। + +अस संसय मन भयउ अपारा। होई न हृदयँ प्रबोध प्रचारा।। + +जद्यपि प्रगट न कहेउ भवानी। हर अंतरजामी सब जानी।। + +सुनहि सती तव नारि सुभाऊ। संसय अस न धरिअ उर काऊ।। + +जासु कथा कुभंज रिषि गाई�� भगति जासु मैं मुनिहि सुनाई।। + +सोउ मम इष्टदेव रघुबीरा। सेवत जाहि सदा मुनि धीरा।।मुनि धीर जोगी सिद्ध संतत बिमल मन जेहि ध्यावहीं। + +कहि नेति निगम पुरान आगम जासु कीरति गावहीं।। + +सोइ रामु ब्यापक ब्रह्म भुवन निकाय पति माया धनी। + +अवतरेउ अपने भगत हित निजतंत्र नित रघुकुलमनि।।लाग न उर उपदेसु जदपि कहेउ सिवँ बार बहु। + +बोले बिहसि महेसु हरिमाया बलु जानि जियँ।।51।।जौं तुम्हरें मन अति संदेहू। तौ किन जाइ परीछा लेहू।। + +तब लगि बैठ अहउँ बटछाहिं। जब लगि तुम्ह ऐहहु मोहि पाही।। + +जैसें जाइ मोह भ्रम भारी। करेहु सो जतनु बिबेक बिचारी।। + +चलीं सती सिव आयसु पाई। करहिं बिचारु करौं का भाई।। + +इहाँ संभु अस मन अनुमाना। दच्छसुता कहुँ नहिं कल्याना।। + +मोरेहु कहें न संसय जाहीं। बिधी बिपरीत भलाई नाहीं।। + +होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा।। + +अस कहि लगे जपन हरिनामा। गई सती जहँ प्रभु सुखधामा।।पुनि पुनि हृदयँ विचारु करि धरि सीता कर रुप। + +आगें होइ चलि पंथ तेहि जेहिं आवत नरभूप।।52।।लछिमन दीख उमाकृत बेषा चकित भए भ्रम हृदयँ बिसेषा।। + +कहि न सकत कछु अति गंभीरा। प्रभु प्रभाउ जानत मतिधीरा।। + +सती कपटु जानेउ सुरस्वामी। सबदरसी सब अंतरजामी।। + +सुमिरत जाहि मिटइ अग्याना। सोइ सरबग्य रामु भगवाना।। + +सती कीन्ह चह तहँहुँ दुराऊ। देखहु नारि सुभाव प्रभाऊ।। + +निज माया बलु हृदयँ बखानी। बोले बिहसि रामु मृदु बानी।। + +जोरि पानि प्रभु कीन्ह प्रनामू। पिता समेत लीन्ह निज नामू।। + +कहेउ बहोरि कहाँ बृषकेतू। बिपिन अकेलि फिरहु केहि हेतू।।राम बचन मृदु गूढ़ सुनि उपजा अति संकोचु। + +सती सभीत महेस पहिं चलीं हृदयँ बड़ सोचु।।53।।मैं संकर कर कहा न माना। निज अग्यानु राम पर आना।। + +जाइ उतरु अब देहउँ काहा। उर उपजा अति दारुन दाहा।। + +जाना राम सतीं दुखु पावा। निज प्रभाउ कछु प्रगटि जनावा।। + +सतीं दीख कौतुकु मग जाता। आगें रामु सहित श्री भ्राता।। + +फिरि चितवा पाछें प्रभु देखा। सहित बंधु सिय सुंदर वेषा।। + +जहँ चितवहिं तहँ प्रभु आसीना। सेवहिं सिद्ध मुनीस प्रबीना।। + +देखे सिव बिधि बिष्नु अनेका। अमित प्रभाउ एक तें एका।। + +बंदत चरन करत प्रभु सेवा। बिबिध बेष देखे सब देवा।।सती बिधात्री इंदिरा देखीं अमित अनूप। + +जेहिं जेहिं बेष अजादि सुर तेहि तेहि तन अनुरूप।।54।।देखे जहँ तहँ रघुपति ���ेते। सक्तिन्ह सहित सकल सुर तेते।। + +जीव चराचर जो संसारा। देखे सकल अनेक प्रकारा।। + +पूजहिं प्रभुहि देव बहु बेषा। राम रूप दूसर नहिं देखा।। + +अवलोके रघुपति बहुतेरे। सीता सहित न बेष घनेरे।। + +सोइ रघुबर सोइ लछिमनु सीता। देखि सती अति भई सभीता।। + +हृदय कंप तन सुधि कछु नाहीं। नयन मूदि बैठीं मग माहीं।। + +बहुरि बिलोकेउ नयन उघारी। कछु न दीख तहँ दच्छकुमारी।। + +पुनि पुनि नाइ राम पद सीसा। चलीं तहाँ जहँ रहे गिरीसा।।गई समीप महेस तब हँसि पूछी कुसलात। + +लीन्ही परीछा कवन बिधि कहहु सत्य सब बात।।55।।सतीं समुझि रघुबीर प्रभाऊ। भय बस सिव सन कीन्ह दुराऊ।। + +कछु न परीछा लीन्हि गोसाई। कीन्ह प्रनामु तुम्हारिहि नाई।। + +जो तुम्ह कहा सो मृषा न होई। मोरें मन प्रतीति अति सोई।। + +तब संकर देखेउ धरि ध्याना। सतीं जो कीन्ह चरित सब जाना।। + +बहुरि राममायहि सिरु नावा। प्रेरि सतिहि जेहिं झूँठ कहावा।। + +हरि इच्छा भावी बलवाना। हृदयँ बिचारत संभु सुजाना।। + +सतीं कीन्ह सीता कर बेषा। सिव उर भयउ बिषाद बिसेषा।। + +जौं अब करउँ सती सन प्रीती। मिटइ भगति पथु होइ अनीती।।परम पुनीत न जाइ तजि किएँ प्रेम बड़ पापु। + +प्रगटि न कहत महेसु कछु हृदयँ अधिक संतापु।।56।।तब संकर प्रभु पद सिरु नावा। सुमिरत रामु हृदयँ अस आवा।। + +एहिं तन सतिहि भेट मोहि नाहीं। सिव संकल्पु कीन्ह मन माहीं।। + +अस बिचारि संकरु मतिधीरा। चले भवन सुमिरत रघुबीरा।। + +चलत गगन भै गिरा सुहाई। जय महेस भलि भगति दृढ़ाई।। + +अस पन तुम्ह बिनु करइ को आना। रामभगत समरथ भगवाना।। + +सुनि नभगिरा सती उर सोचा। पूछा सिवहि समेत सकोचा।। + +कीन्ह कवन पन कहहु कृपाला। सत्यधाम प्रभु दीनदयाला।। + +जदपि सतीं पूछा बहु भाँती। तदपि न कहेउ त्रिपुर आराती।।सतीं हृदय अनुमान किय सबु जानेउ सर्बग्य। + +कीन्ह कपटु मैं संभु सन नारि सहज जड़ अग्य।।57क।। + +जलु पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि। + +बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि।।57ख।।हृदयँ सोचु समुझत निज करनी। चिंता अमित जाइ नहि बरनी।। + +कृपासिंधु सिव परम अगाधा। प्रगट न कहेउ मोर अपराधा।। + +संकर रुख अवलोकि भवानी। प्रभु मोहि तजेउ हृदयँ अकुलानी।। + +निज अघ समुझि न कछु कहि जाई। तपइ अवाँ इव उर अधिकाई।। + +सतिहि ससोच जानि बृषकेतू। कहीं कथा सुंदर सुख हेतू।। + +बरनत पंथ बिबिध इतिहासा। बिस्वनाथ पहुँचे कैलासा।। + +तहँ पुनि संभु समुझि पन आपन। बैठे बट तर करि कमलासन।। + +संकर सहज सरुप सम्हारा। लागि समाधि अखंड अपारा।।सती बसहि कैलास तब अधिक सोचु मन माहिं। + +मरमु न कोऊ जान कछु जुग सम दिवस सिराहिं।।58।।नित नव सोचु सतीं उर भारा। कब जैहउँ दुख सागर पारा।। + +मैं जो कीन्ह रघुपति अपमाना। पुनिपति बचनु मृषा करि जाना।। + +सो फलु मोहि बिधाताँ दीन्हा। जो कछु उचित रहा सोइ कीन्हा।। + +अब बिधि अस बूझिअ नहि तोही। संकर बिमुख जिआवसि मोही।। + +कहि न जाई कछु हृदय गलानी। मन महुँ रामाहि सुमिर सयानी।। + +जौ प्रभु दीनदयालु कहावा। आरती हरन बेद जसु गावा।। + +तौ मैं बिनय करउँ कर जोरी। छूटउ बेगि देह यह मोरी।। + +जौं मोरे सिव चरन सनेहू। मन क्रम बचन सत्य ब्रतु एहू।।तौ सबदरसी सुनिअ प्रभु करउ सो बेगि उपाइ। + +होइ मरनु जेही बिनहिं श्रम दुसह बिपत्ति बिहाइ।।59।।एहि बिधि दुखित प्रजेसकुमारी। अकथनीय दारुन दुखु भारी।। + +बीतें संबत सहस सतासी। तजी समाधि संभु अबिनासी।। + +राम नाम सिव सुमिरन लागे। जानेउ सतीं जगतपति जागे।। + +जाइ संभु पद बंदनु कीन्ही। सनमुख संकर आसनु दीन्हा।। + +लगे कहन हरिकथा रसाला। दच्छ प्रजेस भए तेहि काला।। + +देखा बिधि बिचारि सब लायक। दच्छहि कीन्ह प्रजापति नायक।। + +बड़ अधिकार दच्छ जब पावा। अति अभिमानु हृदयँ तब आवा।। + +नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं। प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं।।दच्छ लिए मुनि बोलि सब करन लगे बड़ जाग। + +नेवते सादर सकल सुर जे पावत मख भाग।।60।।किंनर नाग सिद्ध गंधर्बा। बधुन्ह समेत चले सुर सर्बा।। + +बिष्नु बिरंचि महेसु बिहाई। चले सकल सुर जान बनाई।। + +सतीं बिलोके ब्योम बिमाना। जात चले सुंदर बिधि नाना।। + +सुर सुंदरी करहिं कल गाना। सुनत श्रवन छूटहिं मुनि ध्याना।। + +पूछेउ तब सिवँ कहेउ बखानी। पिता जग्य सुनि कछु हरषानी।। + +जौं महेसु मोहि आयसु देहीं। कुछ दिन जाइ रहौं मिस एहीं।। + +पति परित्याग हृदय दुखु भारी। कहइ न निज अपराध बिचारी।। + +बोली सती मनोहर बानी। भय संकोच प्रेम रस सानी।।पिता भवन उत्सव परम जौं प्रभु आयसु होइ। + +तौ मै जाउँ कृपायतन सादर देखन सोइ।।61।।कहेहु नीक मोरेहुँ मन भावा। यह अनुचित नहिं नेवत पठावा।। + +दच्छ सकल निज सुता बोलाई। हमरें बयर तुम्हउ बिसराई।। + +ब्रह्मसभाँ हम सन दुखु माना। तेहि तें अजहुँ करहिं अपमाना।। + +जौं बिनु बोलें जाहु भवानी। रहइ न सीलु सनेहु न कानी।। + +जदपि मित्र प्रभु पितु गुर गेहा। जाइअ बिनु बोलेहुँ न सँदेहा।। + +तदपि बिरोध मान जहँ कोई। तहाँ गएँ कल्यानु न होई।। + +भाँति अनेक संभु समुझावा। भावी बस न ग्यानु उर आवा।। + +कह प्रभु जाहु जो बिनहिं बोलाएँ। नहिं भलि बात हमारे भाएँ।।कहि देखा हर जतन बहु रहइ न दच्छकुमारि। + +दिए मुख्य गन संग तब बिदा कीन्ह त्रिपुरारि।।62।।पिता भवन जब गई भवानी। दच्छ त्रास काहुँ न सनमानी।। + +सादर भलेहिं मिली एक माता। भगिनीं मिलीं बहुत मुसुकाता।। + +दच्छ न कछु पूछी कुसलाता। सतिहि बिलोकि जरे सब गाता।। + +सतीं जाइ देखेउ तब जागा। कतहुँ न दीख संभु कर भागा।। + +तब चित चढ़ेउ जो संकर कहेऊ। प्रभु अपमानु समुझि उर दहेऊ।। + +पाछिल दुखु न हृदयँ अस ब्यापा। जस यह भयउ महा परितापा।। + +जद्यपि जग दारुन दुख नाना। सब तें कठिन जाति अवमाना।। + +समुझि सो सतिहि भयउ अति क्रोधा। बहु बिधि जननीं कीन्ह प्रबोधा।।सिव अपमानु न जाइ सहि हृदयँ न होइ प्रबोध। + +सकल सभहि हठि हटकि तब बोलीं बचन सक्रोध।।63।।सुनहु सभासद सकल मुनिंदा। कही सुनी जिन्ह संकर निंदा।। + +सो फलु तुरत लहब सब काहूँ। भली भाँति पछिताब पिताहूँ।। + +संत संभु श्रीपति अपबादा। सुनिअ जहाँ तहँ असि मरजादा।। + +काटिअ तासु जीभ जो बसाई। श्रवन मूदि न त चलिअ पराई।। + +जगदातमा महेसु पुरारी। जगत जनक सब के हितकारी।। + +पिता मंदमति निंदत तेही। दच्छ सुक्र संभव यह देही।। + +तजिहउँ तुरत देह तेहि हेतू। उर धरि चंद्रमौलि बृषकेतू।। + +अस कहि जोग अगिनि तनु जारा। भयउ सकल मख हाहाकारा।।सती मरनु सुनि संभु गन लगे करन मख खीस। + +जग्य बिधंस बिलोकि भृगु रच्छा कीन्हि मुनीस।।64।।समाचार सब संकर पाए। बीरभद्रु करि कोप पठाए।। + +जग्य बिधंस जाइ तिन्ह कीन्हा। सकल सुरन्ह बिधिवत फलु दीन्हा।। + +भे जगबिदित दच्छ गति सोई। जसि कछु संभु बिमुख कै होई।। + +यह इतिहास सकल जग जानी। ताते मैं संछेप बखानी।। + +सतीं मरत हरि सन बरु मागा। जनम जनम सिव पद अनुरागा।। + +तेहि कारन हिमगिरि गृह जाई। जनमीं पारबती तनु पाई।। + +जब तें उमा सैल गृह जाईं। सकल सिद्धि संपति तहँ छाई।। + +जहँ तहँ मुनिन्ह सुआश्रम कीन्हे। उचित बास हिम भूधर दीन्हे।।सदा सुमन फल सहित सब द्रुम नव नाना जाति। + +प्रगटीं सुंदर सैल पर मनि आकर बहु भाँति।।65।।सरिता सब पुनित जलु बहहीं। खग मृग मधुप सुखी सब रहहीं।। + +सहज बयरु सब जीवन्ह त्यागा। गिरि पर स��ल करहिं अनुरागा।। + +सोह सैल गिरिजा गृह आएँ। जिमि जनु रामभगति के पाएँ।। + +नित नूतन मंगल गृह तासू। ब्रह्मादिक गावहिं जसु जासू।। + +नारद समाचार सब पाए। कौतुकहीं गिरि गेह सिधाए।। + +सैलराज बड़ आदर कीन्हा। पद पखारि बर आसनु दीन्हा।। + +नारि सहित मुनि पद सिरु नावा। चरन सलिल सबु भवनु सिंचावा।। + +निज सौभाग्य बहुत गिरि बरना। सुता बोलि मेली मुनि चरना।।त्रिकालग्य सर्बग्य तुम्ह गति सर्बत्र तुम्हारि।। + +कहहु सुता के दोष गुन मुनिबर हृदयँ बिचारि।।66।।कह मुनि बिहसि गूढ़ मृदु बानी। सुता तुम्हारि सकल गुन खानी।। + +सुंदर सहज सुसील सयानी। नाम उमा अंबिका भवानी।। + +सब लच्छन संपन्न कुमारी। होइहि संतत पियहि पिआरी।। + +सदा अचल एहि कर अहिवाता। एहि तें जसु पैहहिं पितु माता।। + +होइहि पूज्य सकल जग माहीं। एहि सेवत कछु दुर्लभ नाहीं।। + +एहि कर नामु सुमिरि संसारा। त्रिय चढ़हहिं पतिब्रत असिधारा।। + +सैल सुलच्छन सुता तुम्हारी। सुनहु जे अब अवगुन दुइ चारी।। + +अगुन अमान मातु पितु हीना। उदासीन सब संसय छीना।।जोगी जटिल अकाम मन नगन अमंगल बेष।। + +अस स्वामी एहि कहँ मिलिहि परी हस्त असि रेख।।67।।सुनि मुनि गिरा सत्य जियँ जानी। दुख दंपतिहि उमा हरषानी।। + +नारदहुँ यह भेदु न जाना। दसा एक समुझब बिलगाना।। + +सकल सखीं गिरिजा गिरि मैना। पुलक सरीर भरे जल नैना।। + +होइ न मृषा देवरिषि भाषा। उमा सो बचनु हृदयँ धरि राखा।। + +उपजेउ सिव पद कमल सनेहू। मिलन कठिन मन भा संदेहू।। + +जानि कुअवसरु प्रीति दुराई। सखी उछँग बैठी पुनि जाई।। + +झूठि न होइ देवरिषि बानी। सोचहि दंपति सखीं सयानी।। + +उर धरि धीर कहइ गिरिराऊ। कहहु नाथ का करिअ उपाऊ।।कह मुनीस हिमवंत सुनु जो बिधि लिखा लिलार। + +देव दनुज नर नाग मुनि कोउ न मेटनिहार।।68।।तदपि एक मैं कहउँ उपाई। होइ करै जौं दैउ सहाई।। + +जस बरु मैं बरनेउँ तुम्ह पाहीं। मिलहि उमहि तस संसय नाहीं।। + +जे जे बर के दोष बखाने। ते सब सिव पहि मैं अनुमाने।। + +जौं बिबाहु संकर सन होई। दोषउ गुन सम कह सबु कोई।। + +जौं अहि सेज सयन हरि करहीं। बुध कछु तिन्ह कर दोषु न धरहीं।। + +भानु कृसानु सर्ब रस खाहीं। तिन्ह कहँ मंद कहत कोउ नाहीं।। + +सुभ अरु असुभ सलिल सब बहई। सुरसरि कोउ अपुनीत न कहई।। + +समरथ कहुँ नहिं दोषु गोसाई। रबि पावक सुरसरि की नाई।।जौं अस हिसिषा करहिं नर जड़ि बिबेक अभिमान। + +परहिं कलप भर��� नरक महुँ जीव कि ईस समान।।69।।सुरसरि जल कृत बारुनि जाना। कबहुँ न संत करहिं तेहि पाना।। + +सुरसरि मिलें सो पावन जैसें। ईस अनीसहि अंतरु तैसें।। + +संभु सहज समरथ भगवाना। एहि बिबाहँ सब बिधि कल्याना।। + +दुराराध्य पै अहहिं महेसू। आसुतोष पुनि किएँ कलेसू।। + +जौं तपु करै कुमारि तुम्हारी। भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी।। + +जद्यपि बर अनेक जग माहीं। एहि कहँ सिव तजि दूसर नाहीं।। + +बर दायक प्रनतारति भंजन। कृपासिंधु सेवक मन रंजन।। + +इच्छित फल बिनु सिव अवराधे। लहिअ न कोटि जोग जप साधें।।अस कहि नारद सुमिरि हरि गिरिजहि दीन्हि असीस। + +होइहि यह कल्यान अब संसय तजहु गिरीस।।70।।कहि अस ब्रह्मभवन मुनि गयऊ। आगिल चरित सुनहु जस भयऊ।। + +पतिहि एकांत पाइ कह मैना। नाथ न मैं समुझे मुनि बैना।। + +जौं घरु बरु कुलु होइ अनूपा। करिअ बिबाहु सुता अनुरुपा।। + +न त कन्या बरु रहउ कुआरी। कंत उमा मम प्रानपिआरी।। + +जौं न मिलहि बरु गिरिजहि जोगू। गिरि जड़ सहज कहिहि सबु लोगू।। + +सोइ बिचारि पति करेहु बिबाहू। जेहिं न बहोरि होइ उर दाहू।। + +अस कहि परि चरन धरि सीसा। बोले सहित सनेह गिरीसा।। + +बरु पावक प्रगटै ससि माहीं। नारद बचनु अन्यथा नाहीं।।प्रिया सोचु परिहरहु सबु सुमिरहु श्रीभगवान। + +पारबतिहि निरमयउ जेहिं सोइ करिहि कल्यान।।71।।अब जौ तुम्हहि सुता पर नेहू। तौ अस जाइ सिखावन देहू।। + +करै सो तपु जेहिं मिलहिं महेसू। आन उपायँ न मिटहि कलेसू।। + +नारद बचन सगर्भ सहेतू। सुंदर सब गुन निधि बृषकेतू।। + +अस बिचारि तुम्ह तजहु असंका। सबहि भाँति संकरु अकलंका।। + +सुनि पति बचन हरषि मन माहीं। गई तुरत उठि गिरिजा पाहीं।। + +उमहि बिलोकि नयन भरे बारी। सहित सनेह गोद बैठारी।। + +बारहिं बार लेति उर लाई। गदगद कंठ न कछु कहि जाई।। + +जगत मातु सर्बग्य भवानी। मातु सुखद बोलीं मृदु बानी।।सुनहि मातु मैं दीख अस सपन सुनावउँ तोहि। + +सुंदर गौर सुबिप्रबर अस उपदेसेउ मोहि।।72।।करहि जाइ तपु सैलकुमारी। नारद कहा सो सत्य बिचारी।। + +मातु पितहि पुनि यह मत भावा। तपु सुखप्रद दुख दोष नसावा।। + +तपबल रचइ प्रपंच बिधाता। तपबल बिष्नु सकल जग त्राता।। + +तपबल संभु करहिं संघारा। तपबल सेषु धरइ महिभारा।। + +तप अधार सब सृष्टि भवानी। करहि जाइ तपु अस जियँ जानी।। + +सुनत बचन बिसमित महतारी। सपन सुनायउ गिरिहि हँकारी।। + +मातु पितुहि बहुबिधि समुझाई। चलीं उमा तप हित हरषाई।। + +प्रिय परिवार पिता अरु माता। भए बिकल मुख आव न बाता।।बेदसिरा मुनि आइ तब सबहि कहा समुझाइ।। + +पारबती महिमा सुनत रहे प्रबोधहि पाइ।।73।।उर धरि उमा प्रानपति चरना। जाइ बिपिन लागीं तपु करना।। + +अति सुकुमार न तनु तप जोगू। पति पद सुमिरि तजेउ सबु भोगू।। + +नित नव चरन उपज अनुरागा। बिसरी देह तपहिं मनु लागा।। + +संबत सहस मूल फल खाए। सागु खाइ सत बरष गवाँए।। + +कछु दिन भोजनु बारि बतासा। किए कठिन कछु दिन उपबासा।। + +बेल पाती महि परइ सुखाई। तीनि सहस संबत सोई खाई।। + +पुनि परिहरे सुखानेउ परना। उमहि नाम तब भयउ अपरना।। + +देखि उमहि तप खीन सरीरा। ब्रह्मगिरा भै गगन गभीरा।।भयउ मनोरथ सुफल तव सुनु गिरिजाकुमारि। + +परिहरु दुसह कलेस सब अब मिलिहहिं त्रिपुरारि।।74।।अस तपु काहुँ न कीन्ह भवानी। भउ अनेक धीर मुनि ग्यानी।। + +अब उर धरहु ब्रह्म बर बानी। सत्य सदा संतत सुचि जानी।। + +आवै पिता बोलावन जबहीं। हठ परिहरि घर जाएहु तबहीं।। + +मिलहिं तुम्हहि जब सप्त रिषीसा। जानेहु तब प्रमान बागीसा।। + +सुनत गिरा बिधि गगन बखानी। पुलक गात गिरिजा हरषानी।। + +उमा चरित सुंदर मैं गावा। सुनहु संभु कर चरित सुहावा।। + +जब तें सती जाइ तनु त्यागा। तब सें सिव मन भयउ बिरागा।। + +जपहिं सदा रघुनायक नामा। जहँ तहँ सुनहिं राम गुन ग्रामा।।चिदानन्द सुखधाम सिव बिगत मोह मद काम। + +बिचरहिं महि धरि हृदयँ हरि सकल लोक अभिराम।।75।।कतहुँ मुनिन्ह उपदेसहिं ग्याना। कतहुँ राम गुन करहिं बखाना।। + +जदपि अकाम तदपि भगवाना। भगत बिरह दुख दुखित सुजाना।। + +एहि बिधि गयउ कालु बहु बीती। नित नै होइ राम पद प्रीती।। + +नैमु प्रेमु संकर कर देखा। अबिचल हृदयँ भगति कै रेखा।। + +प्रगटै रामु कृतग्य कृपाला। रूप सील निधि तेज बिसाला।। + +बहु प्रकार संकरहि सराहा। तुम्ह बिनु अस ब्रतु को निरबाहा।। + +बहुबिधि राम सिवहि समुझावा। पारबती कर जन्मु सुनावा।। + +अति पुनीत गिरिजा कै करनी। बिस्तर सहित कृपानिधि बरनी।।अब बिनती मम सुनेहु सिव जौं मो पर निज नेहु। + +जाइ बिबाहहु सैलजहि यह मोहि मागें देहु।।76।।कह सिव जदपि उचित अस नाहीं। नाथ बचन पुनि मेटि न जाहीं।। + +सिर धरि आयसु करिअ तुम्हारा। परम धरमु यह नाथ हमारा।। + +मातु पिता गुर प्रभु कै बानी। बिनहिं बिचार करिअ सुभ जानी।। + +तुम्ह सब भाँति परम हितकारी। अग्या सिर पर नाथ तुम्हारी।। + +प्रभु तोषेउ सुनि संकर बचना। भक्ति बिबेक धर्म जुत रचना।। + +कह प्रभु हर तुम्हार पन रहेऊ। अब उर राखेहु जो हम कहेऊ।। + +अंतरधान भए अस भाषी। संकर सोइ मूरति उर राखी।। + +तबहिं सप्तरिषि सिव पहिं आए। बोले प्रभु अति बचन सुहाए।।पारबती पहिं जाइ तुम्ह प्रेम परिच्छा लेहु। + +गिरिहि प्रेरि पठएहु भवन दूरि करेहु संदेहु।।77।।रिषिन्ह गौरि देखी तहँ कैसी। मूरतिमंत तपस्या जैसी।। + +बोले मुनि सुनु सैलकुमारी। करहु कवन कारन तपु भारी।। + +केहि अवराधहु का तुम्ह चहहू। हम सन सत्य मरमु किन कहहू।। + +कहत बचत मनु अति सकुचाई। हँसिहहु सुनि हमारि जड़ताई।। + +मनु हठ परा न सुनइ सिखावा। चहत बारि पर भीति उठावा।। + +नारद कहा सत्य सोइ जाना। बिनु पंखन्ह हम चहहिं उड़ाना।। + +देखहु मुनि अबिबेकु हमारा। चाहिअ सदा सिवहि भरतारा।।सुनत बचन बिहसे रिषय गिरिसंभव तब देह। + +नारद कर उपदेसु सुनि कहहु बसेउ किसु गेह।।78।।दच्छसुतन्ह उपदेसेन्हि जाई। तिन्ह फिरि भवनु न देखा आई।। + +चित्रकेतु कर घरु उन घाला। कनककसिपु कर पुनि अस हाला।। + +नारद सिख जे सुनहिं नर नारी। अवसि होहिं तजि भवनु भिखारी।। + +मन कपटी तन सज्जन चीन्हा। आपु सरिस सबही चह कीन्हा।। + +तेहि कें बचन मानि बिस्वासा। तुम्ह चाहहु पति सहज उदासा।। + +निर्गुन निलज कुबेष कपाली। अकुल अगेह दिगंबर ब्याली।। + +कहहु कवन सुखु अस बरु पाएँ। भल भूलिहु ठग के बौराएँ।। + +पंच कहें सिवँ सती बिबाही। पुनि अवडेरि मराएन्हि ताही।।अब सुख सोवत सोचु नहि भीख मागि भव खाहिं। + +सहज एकाकिन्ह के भवन कबहुँ कि नारि खटाहिं।।79।।अजहूँ मानहु कहा हमारा। हम तुम्ह कहुँ बरु नीक बिचारा।। + +अति सुंदर सुचि सुखद सुसीला। गावहिं बेद जासु जस लीला।। + +दूषन रहित सकल गुन रासी। श्रीपति पुर बैकुंठ निवासी।। + +अस बरु तुम्हहि मिलाउब आनी। सुनत बिहसि कह बचन भवानी।। + +सत्य कहेहु गिरिभव तनु एहा। हठ न छूट छूटै बरु देहा।। + +कनकउ पुनि पषान तें होई। जारेहुँ सहजु न परिहर सोई।। + +नारद बचन न मैं परिहरऊँ। बसउ भवनु उजरउ नहिं डरऊँ।। + +गुर कें बचन प्रतीति न जेही। सपनेहुँ सुगम न सुख सिधि तेही।।महादेव अवगुन भवन बिष्नु सकल गुन धाम। + +जेहि कर मनु रम जाहि सन तेहि तेही सन काम।।80।।जौं तुम्ह मिलतेहु प्रथम मुनीसा। सुनतिउँ सिख तुम्हारि धरि सीसा।। + +अब मैं जन्मु संभु हित हारा। को गुन दूषन करै बिचारा।। + +जौं तुम्हर�� हठ हृदयँ बिसेषी। रहि न जाइ बिनु किएँ बरेषी।। + +तौ कौतुकिअन्ह आलसु नाहीं। बर कन्या अनेक जग माहीं।। + +जन्म कोटि लगि रगर हमारी। बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी।। + +तजउँ न नारद कर उपदेसू। आपु कहहि सत बार महेसू।। + +मैं पा परउँ कहइ जगदंबा। तुम्ह गृह गवनहु भयउ बिलंबा।। + +देखि प्रेमु बोले मुनि ग्यानी। जय जय जगदंबिके भवानी।।तुम्ह माया भगवान सिव सकल जगत पितु मातु। + +नाइ चरन सिर मुनि चले पुनि पुनि हरषत गातु।।81।।जाइ मुनिन्ह हिमवंतु पठाए। करि बिनती गिरजहिं गृह ल्याए।। + +बहुरि सप्तरिषि सिव पहिं जाई। कथा उमा कै सकल सुनाई।। + +भए मगन सिव सुनत सनेहा। हरषि सप्तरिषि गवने गेहा।। + +मनु थिर करि तब संभु सुजाना। लगे करन रघुनायक ध्याना।। + +तारकु असुर भयउ तेहि काला। भुज प्रताप बल तेज बिसाला।। + +तेंहि सब लोक लोकपति जीते। भए देव सुख संपति रीते।। + +अजर अमर सो जीति न जाई। हारे सुर करि बिबिध लराई।। + +तब बिरंचि सन जाइ पुकारे। देखे बिधि सब देव दुखारे।।सब सन कहा बुझाइ बिधि दनुज निधन तब होइ। + +संभु सुक्र संभूत सुत एहि जीतइ रन सोइ।।82।।मोर कहा सुनि करहु उपाई। होइहि ईस्वर करिहि सहाई।। + +सतीं जो तजी दच्छ मख देहा। जनमी जाइ हिमाचल गेहा।। + +तेहिं तपु कीन्ह संभु पति लागी। सिव समाधि बैठे सबु त्यागी।। + +जदपि अहइ असमंजस भारी। तदपि बात एक सुनहु हमारी।। + +पठवहु कामु जाइ सिव पाहीं। करै छोभु संकर मन माहीं।। + +तब हम जाइ सिवहि सिर नाई। करवाउब बिबाहु बरिआई।। + +एहि बिधि भलेहि देवहित होई। मर अति नीक कहइ सबु कोई।। + +अस्तुति सुरन्ह कीन्हि अति हेतू। प्रगटेउ बिषमबान झषकेतू।।सुरन्ह कहीं निज बिपति सब सुनि मन कीन्ह बिचार। + +संभु बिरोध न कुसल मोहि बिहसि कहेउ अस मार।।83।।तदपि करब मैं काजु तुम्हारा। श्रुति कह परम धरम उपकारा।। + +पर हित लागि तजइ जो देही। संतत संत प्रसंसहिं तेही।। + +अस कहि चलेउ सबहि सिरु नाई। सुमन धनुष कर सहित सहाई।। + +चलत मार अस हृदयँ बिचारा। सिव बिरोध ध्रुव मरनु हमारा।। + +तब आपन प्रभाउ बिस्तारा। निज बस कीन्ह सकल संसारा।। + +कोपेउ जबहि बारिचरकेतू। छन महुँ मिटे सकल श्रुति सेतू।। + +ब्रह्मचर्ज ब्रत संजम नाना। धीरज धरम ग्यान बिग्याना।। + +सदाचार जप जोग बिरागा। सभय बिबेक कटकु सब भागा।।भागेउ बिबेक सहाय सहित सो सुभट संजुग महि मुरे। + +सदग्रंथ पर्बत कंदरन्हि महुँ जाइ तेहि अवसर दुरे।। + +��ोनिहार का करतार को रखवार जग खरभरु परा। + +दुइ माथ केहि रतिनाथ जेहि कहुँ कोपि कर धनु सरु धरा।।जे सजीव जग अचर चर नारि पुरुष अस नाम। + +ते निज निज मरजाद तजि भए सकल बस काम।।84।।सब के हृदयँ मदन अभिलाषा। लता निहारि नवहिं तरु साखा।। + +नदीं उमगि अंबुधि कहुँ धाई। संगम करहिं तलाव तलाई।। + +जहँ असि दसा जड़न्ह कै बरनी। को कहि सकइ सचेतन करनी।। + +पसु पच्छी नभ जल थलचारी। भए कामबस समय बिसारी।। + +मदन अंध ब्याकुल सब लोका। निसि दिनु नहिं अवलोकहिं कोका।। + +देव दनुज नर किंनर ब्याला। प्रेत पिसाच भूत बेताला।। + +इन्ह कै दसा न कहेउँ बखानी। सदा काम के चेरे जानी।। + +सिद्ध बिरक्त महामुनि जोगी। तेपि कामबस भए बियोगी।।भए कामबस जोगीस तापस पावँरन्हि की को कहै। + +देखहिं चराचर नारिमय जे ब्रह्ममय देखत रहे।। + +अबला बिलोकहिं पुरुषमय जगु पुरुष सब अबलामयं। + +दुइ दंड भरि ब्रह्मांड भीतर कामकृत कौतुक अयं।।धरी न काहूँ धिर सबके मन मनसिज हरे। + +जे राखे रघुबीर ते उबरे तेहि काल महुँ।।85।।उभय घरी अस कौतुक भयऊ। जौ लगि कामु संभु पहिं गयऊ।। + +सिवहि बिलोकि ससंकेउ मारू। भयउ जथाथिति सबु संसारू।। + +भए तुरत सब जीव सुखारे। जिमि मद उतरि गएँ मतवारे।। + +रुद्रहि देखि मदन भय माना। दुराधरष दुर्गम भगवाना।। + +फिरत लाज कछु करि नहिं जाई। मरनु ठानि मन रचेसि उपाई।। + +प्रगटेसि तुरत रुचिर रितुराजा। कुसुमित नव तरु राजि बिराजा।। + +बन उपबन बापिका तड़ागा। परम सुभग सब दिसा बिभागा।। + +जहँ तहँ जनु उमगत अनुरागा। देखि मुएहुँ मन मनसिज जागा।।जागइ मनोभव मुएहुँ मन बन सुभगता न परै कही। + +सीतल सुगंध सुमंद मारुत मदन अनल सखा सही।। + +बिकसे सरन्हि बहु कंज गुंजत पुंज मंजुल मधुकरा। + +कलहंस पिक सुक सरस रव करि गान नाचहिं अपछरा।।सकल कला करि कोटि बिधि हारेउ सेन समेत। + +चली न अचल समाधि सिव कोपेउ हृदयनिकेत।।86।।देखि रसाल बिटप बर साखा। तेहि पर चढ़ेउ मदनु मन माखा।। + +सुमन चाप निज सर संधाने। अति रिस ताकि श्रवन लगि ताने।। + +छाड़े बिषम बिसिख उर लागे। छुटि समाधि संभु तब जागे।। + +भयउ ईस मन छोभु बिसेषी। नयन उघारि सकल दिसि देखी।। + +सौरभ पल्लव मदनु बिलोका। भयउ कोपु कंपेउ त्रैलोका।। + +तब सिवँ तीसर नयन उघारा। चितवत कामु भयउ जरि छारा।। + +हाहाकार भयउ जग भारी। डरपे सुर भए असुर सुखारी।। + +समुझि कामसुखु सोचहिं भोगी। भए अकंटक साधक जोगी।।जोगि अकंटक भए पति गति सुनत रति मुरुछित भई। + +रोदति बदति बहु भाँति करुना करति संकर पहिं गई। + +अति प्रेम करि बिनती बिबिध बिधि जोरि कर सन्मुख रही। + +प्रभु आसुतोष कृपाल सिव अबला निरखि बोले सही।।अब तें रति तव नाथ कर होइहि नामु अनंगु। + +बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु।।87।।जब जदुबंस कृष्न अवतारा। होइहि हरन महा महिभारा।। + +कृष्न तनय होइहि पति तोरा। बचनु अन्यथा होइ न मोरा।। + +रति गवनी सुनि संकर बानी। कथा अपर अब कहउँ बखानी।। + +देवन्ह समाचार सब पाए। ब्रह्मादिक बैकुंठ सिधाए।। + +सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता। गए जहाँ सिव कृपानिकेता।। + +पृथक पृथक तिन्ह कीन्हि प्रसंसा। भए प्रसन्न चंद्र अवतंसा।। + +बोले कृपासिंधु बृषकेतू। कहहु अमर आए केहि हेतू।। + +कह बिधि तुम्ह प्रभु अंतरजामी। तदपि भगति बस बिनवउँ स्वामी।।सकल सुरन्ह के हृदयँ अस संकर परम उछाहु। + +निज नयनन्हि देखा चहहिं नाथ तुम्हार बिबाहु।।88।।यह उत्सव देखिअ भरि लोचन। सोइ कछु करहु मदन मद मोचन। + +कामु जारि रति कहुँ बरु दीन्हा। कृपासिंधु यह अति भल कीन्हा।। + +सासति करि पुनि करहिं पसाऊ। नाथ प्रभुन्ह कर सहज सुभाऊ।। + +पारबतीं तपु कीन्ह अपारा। करहु तासु अब अंगीकारा।। + +सुनि बिधि बिनय समुझि प्रभु बानी। ऐसेइ होउ कहा सुखु मानी।। + +तब देवन्ह दुंदुभीं बजाईं। बरषि सुमन जय जय सुर साई।। + +अवसरु जानि सप्तरिषि आए। तुरतहिं बिधि गिरिभवन पठाए।। + +प्रथम गए जहँ रही भवानी। बोले मधुर बचन छल सानी।।कहा हमार न सुनेहु तब नारद कें उपदेस। + +अब भा झूठ तुम्हार पन जारेउ कामु महेस।।89।।सुनि बोलीं मुसकाइ भवानी। उचित कहेहु मुनिबर बिग्यानी।। + +तुम्हरें जान कामु अब जारा। अब लगि संभु रहे सबिकारा।। + +हमरें जान सदा सिव जोगी। अज अनवद्य अकाम अभोगी।। + +जौं मैं सिव सेये अस जानी। प्रीति समेत कर्म मन बानी।। + +तौ हमार पन सुनहु मुनीसा। करिहहिं सत्य कृपानिधि ईसा।। + +तुम्ह जो कहा हर जारेउ मारा। सोइ अति बड़ अबिबेकु तुम्हारा।। + +तात अनल कर सहज सुभाऊ। हिम तेहि निकट जाइ नहिं काऊ।। + +गएँ समीप सो अवसि नसाई। असि मन्मथ महेस की नाई।।हियँ हरषे मुनि बचन सुनि देखि प्रीति बिस्वास।। + +चले भवानिहि नाइ सिर गए हिमाचल पास।।90।।सबु प्रसंगु गिरिपतिहि सुनावा। मदन दहन सुनि अति दुखु पावा।। + +बहुरि कहेउ रति कर बरदाना। सुनि हिमवंत बहुत सुखु माना।��� + +हृदयँ बिचारि संभु प्रभुताई। सादर मुनिबर लिए बोलाई।। + +सुदिनु सुनखतु सुघरी सोचाई। बेगि बेदबिधि लगन धराई।। + +पत्री सप्तरिषिन्ह सोइ दीन्ही। गहि पद बिनय हिमाचल कीन्ही।। + +जाइ बिधिहि दीन्हि सो पाती। बाचत प्रीति न हृदयँ समाती।। + +लगन बाचि अज सबहि सुनाई। हरषे मुनि सब सुर समुदाई।। + +सुमन बृष्टि नभ बाजन बाजे। मंगल कलस दसहुँ दिसि साजे।।लगे सँवारन सकल सुर बाहन बिबिध बिमान। + +होहि सगुन मंगल सुभद करहिं अपछरा गान।।91।।सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा।। + +कुंडल कंकन पहिरे ब्याला। तन बिभूति पट केहरि छाला।। + +ससि ललाट सुंदर सिर गंगा। नयन तीनि उपबीत भुजंगा।। + +गरल कंठ उर नर सिर माला। असिव बेष सिवधाम कृपाला।। + +कर त्रिसूल अरु डमरु बिराजा। चले बसहँ चढ़ि बाजहिं बाजा।। + +देखि सिवहि सुरत्रिय मुसुकाहीं। बर लायक दुलहिनि जग नाहीं।। + +बिष्नु बिरंचि आदि सुरब्राता। चढ़ि चढ़ि बाहन चले बराता।। + +सुर समाज सब भाँति अनूपा। नहिं बरात दूलह अनुरूपा।।बिष्नु कहा अस बिहसि तब बोलि सकल दिसिराज। + +बिलग बिलग होइ चलहु सब निज निज सहित समाज।।92।।बर अनुहारि बरात न भाई। हँसी करैहहु पर पुर जाई।। + +बिष्नु बचन सुनि सुर मुसकाने। निज निज सेन सहित बिलगाने।। + +मनहीं मन महेसु मुसुकाहीं। हरि के बिंग्य बचन नहिं जाहीं।। + +अति प्रिय बचन सुनत प्रिय केरे। भृंगिहि प्रेरि सकल गन टेरे।। + +सिव अनुसासन सुनि सब आए। प्रभु पद जलज सीस तिन्ह नाए।। + +नाना बाहन नाना बेषा। बिहसे सिव समाज निज देखा।। + +कोउ मुखहीन बिपुल मुख काहू। बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू।। + +बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना। रिष्टपुष्ट कोउ अति तनखीना।।तन खीन कोउ अति पीन पावन कोउ अपावन गति धरें। + +भूषन कराल कपाल कर सब सद्य सोनित तन भरें।। + +खर स्वान सुअर सृकाल मुख गन बेष अगनित को गनै। + +बहु जिनस प्रेत पिसाच जोगि जमात बरनत नहिं बनै।।नाचहिं गावहिं गीत परम तरंगी भूत सब। + +देखत अति बिपरीत बोलहिं बचन बिचित्र बिधि।।93।।जस दूलहु तसि बनी बराता। कौतुक बिबिध होहिं मग जाता।। + +इहाँ हिमाचल रचेउ बिताना। अति बिचित्र नहिं जाइ बखाना।। + +सैल सकल जहँ लगि जग माहीं। लघु बिसाल नहिं बरनि सिराहीं।। + +बन सागर सब नदीं तलावा। हिमगिरि सब कहुँ नेवत पठावा।। + +कामरूप सुंदर तन धारी। सहित समाज सहित बर नारी।। + +गए सकल तुहिनाचल गेहा। गावहिं मंगल सहित सनेहा।। + +प्रथमहिं गिरि बहु गृह सँवराए। जथाजोगु तहँ तहँ सब छाए।। + +पुर सोभा अवलोकि सुहाई। लागइ लघु बिरंचि निपुनाई।।लघु लाग बिधि की निपुनता अवलोकि पुर सोभा सही। + +बन बाग कूप तड़ाग सरिता सुभग सब सक को कही।। + +मंगल बिपुल तोरन पताका केतु गृह गृह सोहहीं।। + +बनिता पुरुष सुंदर चतुर छबि देखि मुनि मन मोहहीं।।जगदंबा जहँ अवतरी सो पुरु बरनि कि जाइ। + +रिद्धि सिद्धि संपत्ति सुख नित नूतन अधिकाइ।।94।।नगर निकट बरात सुनि आई। पुर खरभरु सोभा अधिकाई।। + +करि बनाव सजि बाहन नाना। चले लेन सादर अगवाना।। + +हियँ हरषे सुर सेन निहारी। हरिहि देखि अति भए सुखारी।। + +सिव समाज जब देखन लागे। बिडरि चले बाहन सब भागे।। + +धरि धीरजु तहँ रहे सयाने। बालक सब लै जीव पराने।। + +गएँ भवन पूछहिं पितु माता। कहहिं बचन भय कंपित गाता।। + +कहिअ काह कहि जाइ न बाता। जम कर धार किधौं बरिआता।। + +बरु बौराह बसहँ असवारा। ब्याल कपाल बिभूषन छारा।।तन छार ब्याल कपाल भूषन नगन जटिल भयंकरा। + +सँग भूत प्रेत पिसाच जोगिनि बिकट मुख रजनीचरा।। + +जो जिअत रहिहि बरात देखत पुन्य बड़ तेहि कर सही। + +देखिहि सो उमा बिबाहु घर घर बात असि लरिकन्ह कही।।समुझि महेस समाज सब जननि जनक मुसुकाहिं। + +बाल बुझाए बिबिध बिधि निडर होहु डरु नाहिं।।95।।लै अगवान बरातहि आए। दिए सबहि जनवास सुहाए।। + +मैनाँ सुभ आरती सँवारी। संग सुमंगल गावहिं नारी।। + +कंचन थार सोह बर पानी। परिछन चली हरहि हरषानी।। + +बिकट बेष रुद्रहि जब देखा। अबलन्ह उर भय भयउ बिसेषा।। + +भागि भवन पैठीं अति त्रासा। गए महेसु जहाँ जनवासा।। + +मैना हृदयँ भयउ दुखु भारी। लीन्ही बोलि गिरीसकुमारी।। + +अधिक सनेहँ गोद बैठारी। स्याम सरोज नयन भरे बारी।। + +जेहिं बिधि तुम्हहि रूपु अस दीन्हा। तेहिं जड़ बरु बाउर कस कीन्हा।।कस कीन्ह बरु बौराह बिधि जेहिं तुम्हहि सुंदरता दई। + +जो फलु चहिअ सुरतरुहिं सो बरबस बबूरहिं लागई।। + +तुम्ह सहित गिरि तें गिरौं पावक जरौं जलनिधि महुँ परौं।। + +घरु जाउ अपजसु होउ जग जीवत बिबाहु न हौं करौं।।भई बिकल अबला सकल दुखित देखि गिरिनारि। + +करि बिलापु रोदति बदति सुता सनेहु सँभारि।।96।।नारद कर मैं काह बिगारा। भवनु मोर जिन्ह बसत उजारा।। + +अस उपदेसु उमहि जिन्ह दीन्हा। बौरे बरहि लगि तपु कीन्हा।। + +साचेहुँ उन्ह के मोह न माया। उदासीन धनु धामु न जाया।। + +पर घर घालक लाज न भीरा। बाझँ कि जान प्रसव कैं पीरा।। + +जननिहि बिकल बिलोकि भवानी। बोली जुत बिबेक मृदु बानी।। + +अस बिचारि सोचहि मति माता। सो न टरइ जो रचइ बिधाता।। + +करम लिखा जौ बाउर नाहू। तौ कत दोसु लगाइअ काहू।। + +तुम्ह सन मिटहिं कि बिधि के अंका। मातु ब्यर्थ जनि लेहु कलंका।।जनि लेहु मातु कलंकु करुना परिहरहु अवसर नहीं। + +दुखु सुखु जो लिखा लिलार हमरें जाब जहँ पाउब तहीं।। + +सुनि उमा बचन बिनीत कोमल सकल अबला सोचहीं।। + +बहु भाँति बिधिहि लगाइ दूषन नयन बारि बिमोचहीं।।तेहि अवसर नारद सहित अरु रिषि सप्त समेत। + +समाचार सुनि तुहिनगिरि गवने तुरत निकेत।।97।।तब नारद सबहि समुझावा। पूरुब कथाप्रसंगु सुनावा।। + +मयना सत्य सुनहु मम बानी। जगदंबा तव सुता भवानी।। + +अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि। सदा संभु अरधंग निवासिनि।। + +जग संभव पालन लय कारिनि। निज इच्छा लीला बपु धारिनि।। + +जनमीं प्रथम दच्छ गृह जाई। नामु सती सुंदर तनु पाई।। + +तहँहुँ सती संकरहि बिबाहीं। कथा प्रसिद्ध सकल जग माहीं।। + +एक बार आवत सिव संगा। देखेउ रघुकुल कमल पतंगा।। + +भयउ मोहु सिव कहा न कीन्हा। भ्रम बस बेषु सीय कर लीन्हा।।सिय बेषु सती जो कीन्ह तेहि अपराध संकर परिहरीं। + +हर बिरहँ जाइ बहोरि पितु कें जग्य जोगानल जरीं।। + +अब जनमि तुम्हरे भवन निज पति लागि दारुन तपु किया। + +अस जानि संसय तजहु गिरिजा सर्बदा संकर प्रिया।।सुनि नारद के बचन तब सब कर मिटा बिषाद। + +छन महुँ ब्यापेउ सकल पुर घर घर यह संबाद।।98।।तब मयना हिमवंतु अनंदे। पुनि पुनि पारबती पद बंदे।। + +नारि पुरुष सिसु जुबा सयाने। नगर लोग सब अति हरषाने।। + +लगे होन पुर मंगलगाना। सजे सबहि हाटक घट नाना।। + +भाँति अनेक भई जेवराना। सूपसास्त्र जस कछु ब्यवहारा।। + +सो जेवनार कि जाइ बखानी। बसहिं भवन जेहिं मातु भवानी।। + +सादर बोले सकल बराती। बिष्नु बिरंचि देव सब जाती।। + +बिबिधि पाँति बैठी जेवनारा। लागे परुसन निपुन सुआरा।। + +नारिबृंद सुर जेवँत जानी। लगीं देन गारीं मृदु बानी।।गारीं मधुर स्वर देहिं सुंदरि बिंग्य बचन सुनावहीं। + +भोजनु करहिं सुर अति बिलंबु बिनोदु सुनि सचु पावहीं।। + +जेवँत जो बढ्यो अनंदु सो मुख कोटिहूँ न परै कह्यो। + +अचवाँइ दीन्हे पान गवने बास जहँ जाको रह्यो।।बहुरि मुनिन्ह हिमवंत कहुँ लगन सुनाई आइ। + +समय बिलोकि बिबाह कर पठए देव बोलाइ।।99।।बोलि सकल सुर सादर लीन्हे। सबहि जथोचित आसन दीन्हे।। + +बेदी बेद बिधान सँवारी। सुभग सुमंगल गावहिं नारी।। + +सिंघासनु अति दिब्य सुहावा। जाइ न बरनि बिरंचि बनावा।। + +बैठे सिव बिप्रन्ह सिरु नाई। हृदयँ सुमिरि निज प्रभु रघुराई।। + +बहुरि मुनीसन्ह उमा बोलाई। करि सिंगारु सखीं लै आई।। + +देखत रूपु सकल सुर मोहे। बरनै छबि अस जग कबि को है।। + +जगदंबिका जानि भव भामा। सुरन्ह मनहिं मन कीन्ह प्रनामा।। + +सुंदरता मरजाद भवानी। जाइ न कोटिहुँ बदन बखानी।।कोटिहुँ बदन नहिं बनै बरनत जग जननि सोभा महा। + +सकुचहिं कहत श्रुति सेष सारद मंदमति तुलसी कहा।। + +छबिखानि मातु भवानि गवनी मध्य मंडप सिव जहाँ।। + +अवलोकि सकहिं न सकुच पति पद कमल मनु मधुकरु तहाँ।।मुनि अनुसासन गनपतिहि पूजेउ संभु भवानि। + +कोउ सुनि संसय करै जनि सुर अनादि जियँ जानि।।100।।जसि बिबाह कै बिधि श्रुति गाई। महामुनिन्ह सो सब करवाई।। + +गहि गिरीस कुस कन्या पानी। भवहि समरपीं जानि भवानी।। + +पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा। हिंयँ हरषे तब सकल सुरेसा।। + +बेद मंत्र मुनिबर उच्चरहीं। जय जय जय संकर सुर करहीं।। + +बाजहिं बाजन बिबिध बिधाना। सुमनबृष्टि नभ भै बिधि नाना।। + +हर गिरिजा कर भयउ बिबाहू। सकल भुवन भरि रहा उछाहू।। + +दासीं दास तुरग रथ नागा। धेनु बसन मनि बस्तु बिभागा।। + +अन्न कनकभाजन भरि जाना। दाइज दीन्ह न जाइ बखाना।।दाइज दियो बहु भाँति पुनि कर जोरि हिमभूधर कह्यो। + +का देउँ पूरनकाम संकर चरन पंकज गहि रह्यो।। + +सिवँ कृपासागर ससुर कर संतोषु सब भाँतिहिं कियो। + +पुनि गहे पद पाथोज मयनाँ प्रेम परिपूरन हियो।।नाथ उमा मन प्रान सम गृहकिंकरी करेहु। + +छमेहु सकल अपराध अब होइ प्रसन्न बरु देहु।।101।।बहु बिधि संभु सास समुझाई। गवनी भवन चरन सिरु नाई।। + +जननीं उमा बोलि तब लीन्ही। लै उछंग सुंदर सिख दीन्ही।। + +करेहु सदा संकर पद पूजा। नारिधरमु पति देउ न दूजा।। + +बचन कहत भरे लोचन बारी। बहुरि लाइ उर लीन्हि कुमारी।। + +कत बिधि सृजीं नारि जग माहीं। पराधीन सपनेहुँ सुखु नाहीं।। + +भै अति प्रेम बिकल महतारी। धीरजु कीन्ह कुसमय बिचारी।। + +पुनि पुनि मिलति परति गहि चरना। परम प्रेम कछु जाइ न बरना।। + +सब नारिन्ह मिलि भेटि भवानी। जाइ जननि उर पुनि लपटानी।।जननिहि बहुरि मिलि चली उचित असीस सब काहूँ दईं। + +फिरि फिरि बिलोकति मातु तन तब सखीं लै सिव पहिं गई।। + +जाचक सकल संतोषि संकरु उमा सहित भवन चले। + +सब अमर हरषे सुमन बरषि निसान नभ बाजे भले।।चले संग हिमवंतु तब पहुँचावन अति हेतु। + +बिबिध भाँति परितोषु करि बिदा कीन्ह बृषकेतु।।102।।तुरत भवन आए गिरिराई। सकल सैल सर लिए बोलाई।। + +आदर दान बिनय बहुमाना। सब कर बिदा कीन्ह हिमवाना।। + +जबहिं संभु कैलासहिं आए। सुर सब निज निज लोक सिधाए।। + +जगत मातु पितु संभु भवानी। तेही सिंगारु न कहउँ बखानी।। + +करहिं बिबिध बिधि भोग बिलासा। गनन्ह समेत बसहिं कैलासा।। + +हर गिरिजा बिहार नित नयऊ। एहि बिधि बिपुल काल चलि गयऊ।। + +तब जनमेउ षटबदन कुमारा। तारकु असुर समर जेहिं मारा।। + +आगम निगम प्रसिद्ध पुराना। षन्मुख जन्मु सकल जग जाना।।जगु जान षन्मुख जन्मु कर्मु प्रतापु पुरुषारथु महा। + +तेहि हेतु मैं बृषकेतु सुत कर चरित संछेपहिं कहा।। + +यह उमा संगु बिबाहु जे नर नारि कहहिं जे गावहीं। + +कल्यान काज बिबाह मंगल सर्बदा सुखु पावहीं।।चरित सिंधु गिरिजा रमन बेद न पावहिं पारु। + +बरनै तुलसीदासु किमि अति मतिमंद गवाँरु।।103।।संभु चरित सुनि सरस सुहावा। भरद्वाज मुनि अति सुख पावा।। + +बहु लालसा कथा पर बाढ़ी। नयनन्हि नीरु रोमावलि ठाढ़ी।। + +प्रेम बिबस मुख आव न बानी। दसा देखि हरषे मुनि ग्यानी।। + +अहो धन्य तव जन्मु मुनीसा। तुम्हहि प्रान सम प्रिय गौरीसा।। + +सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं।। + +बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू। राम भगत कर लच्छन एहू।। + +सिव सम को रघुपति ब्रतधारी। बिनु अघ तजी सती असि नारी।। + +पनु करि रघुपति भगति देखाई। को सिव सम रामहि प्रिय भाई।।प्रथमहिं मै कहि सिव चरित बूझा मरमु तुम्हार। + +सुचि सेवक तुम्ह राम के रहित समस्त बिकार।।104।।मैं जाना तुम्हार गुन सीला। कहउँ सुनहु अब रघुपति लीला।। + +सुनु मुनि आजु समागम तोरें। कहि न जाइ जस सुखु मन मोरें।। + +राम चरित अति अमित मुनिसा। कहि न सकहिं सत कोटि अहीसा।। + +तदपि जथाश्रुत कहउँ बखानी। सुमिरि गिरापति प्रभु धनुपानी।। + +सारद दारुनारि सम स्वामी। रामु सूत्रधर अंतरजामी।। + +जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी।। + +प्रनवउँ सोइ कृपाल रघुनाथा। बरनउँ बिसद तासु गुन गाथा।। + +परम रम्य गिरिबरु कैलासू। सदा जहाँ सिव उमा निवासू।।सिद्ध तपोधन जोगिजन सूर किंनर मुनिबृंद। + +बसहिं तहाँ सुकृती सकल सेवहिं सिब सुखकंद।।105।।हरि हर बिमुख धर्म रति नाहीं। ते नर तहँ सपनेहुँ नहिं जाहीं।। + +तेहि गिरि पर बट बिटप बिसाला। नित नूतन सुंदर सब काला।। + +त्रिबिध समीर सुसीतलि छाया। सिव बिश्राम बिटप श्रुति गाया।। + +एक बार तेहि तर प्रभु गयऊ। तरु बिलोकि उर अति सुखु भयऊ।। + +निज कर डासि नागरिपु छाला। बैठै सहजहिं संभु कृपाला।। + +कुंद इंदु दर गौर सरीरा। भुज प्रलंब परिधन मुनिचीरा।। + +तरुन अरुन अंबुज सम चरना। नख दुति भगत हृदय तम हरना।। + +भुजग भूति भूषन त्रिपुरारी। आननु सरद चंद छबि हारी।।जटा मुकुट सुरसरित सिर लोचन नलिन बिसाल। + +नीलकंठ लावन्यनिधि सोह बालबिधु भाल।।106।।बैठे सोह कामरिपु कैसें। धरें सरीरु सांतरसु जैसें।। + +पारबती भल अवसरु जानी। गई संभु पहिं मातु भवानी।। + +जानि प्रिया आदरु अति कीन्हा। बाम भाग आसनु हर दीन्हा।। + +बैठीं सिव समीप हरषाई। पूरुब जन्म कथा चित आई।। + +पति हियँ हेतु अधिक अनुमानी। बिहसि उमा बोलीं प्रिय बानी।। + +कथा जो सकल लोक हितकारी। सोइ पूछन चह सैलकुमारी।। + +बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी। त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी।। + +चर अरु अचर नाग नर देवा। सकल करहिं पद पंकज सेवा।।प्रभु समरथ सर्बग्य सिव सकल कला गुन धाम।। + +जोग ग्यान बैराग्य निधि प्रनत कलपतरु नाम।।107।।जौं मो पर प्रसन्न सुखरासी। जानिअ सत्य मोहि निज दासी।। + +तौं प्रभु हरहु मोर अग्याना। कहि रघुनाथ कथा बिधि नाना।। + +जासु भवनु सुरतरु तर होई। सहि कि दरिद्र जनित दुखु सोई।। + +ससिभूषन अस हृदयँ बिचारी। हरहु नाथ मम मति भ्रम भारी।। + +प्रभु जे मुनि परमारथबादी। कहहिं राम कहुँ ब्रह्म अनादी।। + +सेस सारदा बेद पुराना। सकल करहिं रघुपति गुन गाना।। + +तुम्ह पुनि राम राम दिन राती। सादर जपहु अनँग आराती।। + +रामु सो अवध नृपति सुत सोई। की अज अगुन अलखगति कोई।।जौं नृप तनय त ब्रह्म किमि नारि बिरहँ मति भोरि। + +देख चरित महिमा सुनत भ्रमति बुद्धि अति मोरि।।108।।जौं अनीह ब्यापक बिभु कोऊ। कबहु बुझाइ नाथ मोहि सोऊ।। + +अग्य जानि रिस उर जनि धरहू। जेहि बिधि मोह मिटै सोइ करहू।। + +मै बन दीखि राम प्रभुताई। अति भय बिकल न तुम्हहि सुनाई।। + +तदपि मलिन मन बोधु न आवा। सो फलु भली भाँति हम पावा।। + +अजहूँ कछु संसउ मन मोरे। करहु कृपा बिनवउँ कर जोरें।। + +प्रभु तब मोहि बहु भाँति प्रबोधा। नाथ सो समुझि करहु जनि क्रोधा।। + +तब कर अस बिमोह अब नाहीं। रामकथा पर रुचि मन माहीं।। + +कहहु पुनीत राम गुन गाथा। भुजगराज भूषन सुरनाथा।।बंदउ पद धरि धरनि सिरु बिनय करउँ कर जोरि। + +बरनहु रघुबर बिसद जसु श्रुति सिद्धांत निचोरि।।109।।जदपि जोषिता नहिं अधिकारी। दासी मन क्रम बचन तुम्हारी।। + +गूढ़उ तत्व न साधु दुरावहिं। आरत अधिकारी जहँ पावहिं।। + +अति आरति पूछउँ सुरराया। रघुपति कथा कहहु करि दाया।। + +प्रथम सो कारन कहहु बिचारी। निर्गुन ब्रह्म सगुन बपु धारी।। + +पुनि प्रभु कहहु राम अवतारा। बालचरित पुनि कहहु उदारा।। + +कहहु जथा जानकी बिबाहीं। राज तजा सो दूषन काहीं।। + +बन बसि कीन्हे चरित अपारा। कहहु नाथ जिमि रावन मारा।। + +राज बैठि कीन्हीं बहु लीला। सकल कहहु संकर सुखलीला।।बहुरि कहहु करुनायतन कीन्ह जो अचरज राम। + +प्रजा सहित रघुबंसमनि किमि गवने निज धाम।।110।।पुनि प्रभु कहहु सो तत्व बखानी। जेहिं बिग्यान मगन मुनि ग्यानी।। + +भगति ग्यान बिग्यान बिरागा। पुनि सब बरनहु सहित बिभागा।। + +औरउ राम रहस्य अनेका। कहहु नाथ अति बिमल बिबेका।। + +जो प्रभु मैं पूछा नहि होई। सोउ दयाल राखहु जनि गोई।। + +तुम्ह त्रिभुवन गुर बेद बखाना। आन जीव पाँवर का जाना।। + +प्रस्न उमा कै सहज सुहाई। छल बिहीन सुनि सिव मन भाई।। + +हर हियँ रामचरित सब आए। प्रेम पुलक लोचन जल छाए।। + +श्रीरघुनाथ रूप उर आवा। परमानंद अमित सुख पावा।।मगन ध्यानरस दंड जुग पुनि मन बाहेर कीन्ह। + +रघुपति चरित महेस तब हरषित बरनै लीन्ह।।111।।झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें। जिमि भुजंग बिनु रजु पहिचानें।। + +जेहि जानें जग जाइ हेराई। जागें जथा सपन भ्रम जाई।। + +बंदउँ बालरूप सोई रामू। सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू।। + +मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी।। + +करि प्रनाम रामहि त्रिपुरारी। हरषि सुधा सम गिरा उचारी।। + +धन्य धन्य गिरिराजकुमारी। तुम्ह समान नहिं कोउ उपकारी।। + +पूँछेहु रघुपति कथा प्रसंगा। सकल लोक जग पावनि गंगा।। + +तुम्ह रघुबीर चरन अनुरागी। कीन्हहु प्रस्न जगत हित लागी।।रामकृपा तें पारबति सपनेहुँ तव मन माहिं। + +सोक मोह संदेह भ्रम मम बिचार कछु नाहिं।।112।।तदपि असंका कीन्हिहु सोई। कहत सुनत सब कर हित होई।। + +जिन्ह हरि कथा सुनी नहिं काना। श्रवन रंध्र अहिभवन समाना।। + +नयनन्हि संत दरस नहिं देखा। लोचन मोरपंख कर लेखा।। + +ते सिर कटु तुंबरि समतूला। जे न नमत हरि गुर पद मूला।। + +जिन्ह हरिभगति हृदयँ नहिं आनी। जीवत सव समान तेइ प्रानी।। + +जो नहिं करइ राम गुन गाना। जीह सो दादुर जीह समाना।। + +कुलिस कठोर निठुर सोइ छाती। सुनि हरिचरित न जो हरषाती।। + +गिरिजा सुनहु राम कै लीला। सुर हित दनुज बिमोहनसीला।।रामकथा सुरधेनु सम सेवत सब सुख दानि। + +सतसमाज सुरलोक सब को न सुनै अस जानि।।113।।रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उडावनिहारी।। + +रामकथा कलि बिटप कुठारी। सादर सुनु गिरिराजकुमारी।। + +राम नाम गुन चरित सुहाए। जनम करम अगनित श्रुति गाए।। + +जथा अनंत राम भगवाना। तथा कथा कीरति गुन नाना।। + +तदपि जथा श्रुत जसि मति मोरी। कहिहउँ देखि प्रीति अति तोरी।। + +उमा प्रस्न तव सहज सुहाई। सुखद संतसंमत मोहि भाई।। + +एक बात नहि मोहि सोहानी। जदपि मोह बस कहेहु भवानी।। + +तुम जो कहा राम कोउ आना। जेहि श्रुति गाव धरहिं मुनि ध्याना।।कहहि सुनहि अस अधम नर ग्रसे जे मोह पिसाच। + +पाषंडी हरि पद बिमुख जानहिं झूठ न साच।।114।।अग्य अकोबिद अंध अभागी। काई बिषय मुकर मन लागी।। + +लंपट कपटी कुटिल बिसेषी। सपनेहुँ संतसभा नहिं देखी।। + +कहहिं ते बेद असंमत बानी। जिन्ह कें सूझ लाभु नहिं हानी।। + +मुकर मलिन अरु नयन बिहीना। राम रूप देखहिं किमि दीना।। + +जिन्ह कें अगुन न सगुन बिबेका। जल्पहिं कल्पित बचन अनेका।। + +हरिमाया बस जगत भ्रमाहीं। तिन्हहि कहत कछु अघटित नाहीं।। + +बातुल भूत बिबस मतवारे। ते नहिं बोलहिं बचन बिचारे।। + +जिन्ह कृत महामोह मद पाना। तिन् कर कहा करिअ नहिं काना।।अस निज हृदयँ बिचारि तजु संसय भजु राम पद। + +सुनु गिरिराज कुमारि भ्रम तम रबि कर बचन मम।।115।।सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा। गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा।। + +अगुन अरुप अलख अज जोई। भगत प्रेम बस सगुन सो होई।। + +जो गुन रहित सगुन सोइ कैसें। जलु हिम उपल बिलग नहिं जैसें।। + +जासु नाम भ्रम तिमिर पतंगा। तेहि किमि कहिअ बिमोह प्रसंगा।। + +राम सच्चिदानंद दिनेसा। नहिं तहँ मोह निसा लवलेसा।। + +सहज प्रकासरुप भगवाना। नहिं तहँ पुनि बिग्यान बिहाना।। + +हरष बिषाद ग्यान अग्याना। जीव धर्म अहमिति अभिमाना।। + +राम ब्रह्म ब्यापक जग जाना। परमानन्द परेस पुराना।।पुरुष प्रसिद्ध प्रकास निधि प्रगट परावर नाथ।। + +रघुकुलमनि मम स्वामि सोइ कहि सिवँ नायउ माथ।।116।।निज भ्रम नहिं समुझहिं अग्यानी। प्रभु पर मोह धरहिं जड़ प्रानी।। + +जथा गगन घन पटल निहारी। झा���पेउ मानु कहहिं कुबिचारी।। + +चितव जो लोचन अंगुलि लाएँ। प्रगट जुगल ससि तेहि के भाएँ।। + +उमा राम बिषइक अस मोहा। नभ तम धूम धूरि जिमि सोहा।। + +बिषय करन सुर जीव समेता। सकल एक तें एक सचेता।। + +सब कर परम प्रकासक जोई। राम अनादि अवधपति सोई।। + +जगत प्रकास्य प्रकासक रामू। मायाधीस ग्यान गुन धामू।। + +जासु सत्यता तें जड माया। भास सत्य इव मोह सहाया।।रजत सीप महुँ मास जिमि जथा भानु कर बारि। + +जदपि मृषा तिहुँ काल सोइ भ्रम न सकइ कोउ टारि।।117।।एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई। जदपि असत्य देत दुख अहई।। + +जौं सपनें सिर काटै कोई। बिनु जागें न दूरि दुख होई।। + +जासु कृपाँ अस भ्रम मिटि जाई। गिरिजा सोइ कृपाल रघुराई।। + +आदि अंत कोउ जासु न पावा। मति अनुमानि निगम अस गावा।। + +बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना।। + +आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी।। + +तनु बिनु परस नयन बिनु देखा। ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा।। + +असि सब भाँति अलौकिक करनी। महिमा जासु जाइ नहिं बरनी।।जेहि इमि गावहि बेद बुध जाहि धरहिं मुनि ध्यान।। + +सोइ दसरथ सुत भगत हित कोसलपति भगवान।।118।।कासीं मरत जंतु अवलोकी। जासु नाम बल करउँ बिसोकी।। + +सोइ प्रभु मोर चराचर स्वामी। रघुबर सब उर अंतरजामी।। + +बिबसहुँ जासु नाम नर कहहीं। जनम अनेक रचित अघ दहहीं।। + +सादर सुमिरन जे नर करहीं। भव बारिधि गोपद इव तरहीं।। + +राम सो परमातमा भवानी। तहँ भ्रम अति अबिहित तव बानी।। + +अस संसय आनत उर माहीं। ग्यान बिराग सकल गुन जाहीं।। + +सुनि सिव के भ्रम भंजन बचना। मिटि गै सब कुतरक कै रचना।। + +भइ रघुपति पद प्रीति प्रतीती। दारुन असंभावना बीती।।पुनि पुनि प्रभु पद कमल गहि जोरि पंकरुह पानि। + +बोली गिरिजा बचन बर मनहुँ प्रेम रस सानि।।119।।ससि कर सम सुनि गिरा तुम्हारी। मिटा मोह सरदातप भारी।। + +तुम्ह कृपाल सबु संसउ हरेऊ। राम स्वरुप जानि मोहि परेऊ।। + +नाथ कृपाँ अब गयउ बिषादा। सुखी भयउँ प्रभु चरन प्रसादा।। + +अब मोहि आपनि किंकरि जानी। जदपि सहज जड नारि अयानी।। + +प्रथम जो मैं पूछा सोइ कहहू। जौं मो पर प्रसन्न प्रभु अहहू।। + +राम ब्रह्म चिनमय अबिनासी। सर्ब रहित सब उर पुर बासी।। + +नाथ धरेउ नरतनु केहि हेतू। मोहि समुझाइ कहहु बृषकेतू।। + +उमा बचन सुनि परम बिनीता। रामकथा पर प्रीति पुनीता।।हिंयँ हरषे कामारि तब संकर सहज सुजान + +बहु बिधि उमहि प्रसंसि पुनि बोले कृपानिधान।।120(क)।। + +सुनु सुभ कथा भवानि रामचरितमानस बिमल। + +कहा भुसुंडि बखानि सुना बिहग नायक गरुड।।120(ख)।। + +सो संबाद उदार जेहि बिधि भा आगें कहब। + +सुनहु राम अवतार चरित परम सुंदर अनघ।।120(ग)।। + +हरि गुन नाम अपार कथा रूप अगनित अमित। + +मैं निज मति अनुसार कहउँ उमा सादर सुनहु।।120(घ।।सुनु गिरिजा हरिचरित सुहाए। बिपुल बिसद निगमागम गाए।। + +हरि अवतार हेतु जेहि होई। इदमित्थं कहि जाइ न सोई।। + +राम अर्तक्य बुद्धि मन बानी। मत हमार अस सुनहि सयानी।। + +तदपि संत मुनि बेद पुराना। जस कछु कहहिं स्वमति अनुमाना।। + +तस मैं सुमुखि सुनावउँ तोही। समुझि परइ जस कारन मोही।। + +जब जब होइ धरम कै हानी। बाढहिं असुर अधम अभिमानी।। + +करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।। + +तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहि कृपानिधि सज्जन पीरा।।असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु। + +जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु।।121।।सोइ जस गाइ भगत भव तरहीं। कृपासिंधु जन हित तनु धरहीं।। + +राम जनम के हेतु अनेका। परम बिचित्र एक तें एका।। + +जनम एक दुइ कहउँ बखानी। सावधान सुनु सुमति भवानी।। + +द्वारपाल हरि के प्रिय दोऊ। जय अरु बिजय जान सब कोऊ।। + +बिप्र श्राप तें दूनउ भाई। तामस असुर देह तिन्ह पाई।। + +कनककसिपु अरु हाटक लोचन। जगत बिदित सुरपति मद मोचन।। + +बिजई समर बीर बिख्याता। धरि बराह बपु एक निपाता।। + +होइ नरहरि दूसर पुनि मारा। जन प्रहलाद सुजस बिस्तारा।।भए निसाचर जाइ तेइ महाबीर बलवान। + +कुंभकरन रावण सुभट सुर बिजई जग जान।।122 ।मुकुत न भए हते भगवाना। तीनि जनम द्विज बचन प्रवाना।। + +एक बार तिन्ह के हित लागी। धरेउ सरीर भगत अनुरागी।। + +कस्यप अदिति तहाँ पितु माता। दसरथ कौसल्या बिख्याता।। + +एक कलप एहि बिधि अवतारा। चरित्र पवित्र किए संसारा।। + +एक कलप सुर देखि दुखारे। समर जलंधर सन सब हारे।। + +संभु कीन्ह संग्राम अपारा। दनुज महाबल मरइ न मारा।। + +परम सती असुराधिप नारी। तेहि बल ताहि न जितहिं पुरारी।।छल करि टारेउ तासु ब्रत प्रभु सुर कारज कीन्ह।। + +जब तेहि जानेउ मरम तब श्राप कोप करि दीन्ह।।123।।तासु श्राप हरि दीन्ह प्रमाना। कौतुकनिधि कृपाल भगवाना।। + +तहाँ जलंधर रावन भयऊ। रन हति राम परम पद दयऊ।। + +एक जनम कर कारन एहा। जेहि लागि राम धरी नरदेहा।। + +प्रति अवतार कथा ��्रभु केरी। सुनु मुनि बरनी कबिन्ह घनेरी।। + +नारद श्राप दीन्ह एक बारा। कलप एक तेहि लगि अवतारा।। + +गिरिजा चकित भई सुनि बानी। नारद बिष्नुभगत पुनि ग्यानि।। + +कारन कवन श्राप मुनि दीन्हा। का अपराध रमापति कीन्हा।। + +यह प्रसंग मोहि कहहु पुरारी। मुनि मन मोह आचरज भारी।।बोले बिहसि महेस तब ग्यानी मूढ़ न कोइ। + +जेहि जस रघुपति करहिं जब सो तस तेहि छन होइ।।124(क)।। + +कहउँ राम गुन गाथ भरद्वाज सादर सुनहु। + +भव भंजन रघुनाथ भजु तुलसी तजि मान मद।।124(ख)।।हिमगिरि गुहा एक अति पावनि। बह समीप सुरसरी सुहावनि।। + +आश्रम परम पुनीत सुहावा। देखि देवरिषि मन अति भावा।। + +निरखि सैल सरि बिपिन बिभागा। भयउ रमापति पद अनुरागा।। + +सुमिरत हरिहि श्राप गति बाधी। सहज बिमल मन लागि समाधी।। + +मुनि गति देखि सुरेस डेराना। कामहि बोलि कीन्ह सनमाना।। + +सहित सहाय जाहु मम हेतू। चकेउ हरषि हियँ जलचरकेतू।। + +सुनासीर मन महुँ असि त्रासा। चहत देवरिषि मम पुर बासा।। + +जे कामी लोलुप जग माहीं। कुटिल काक इव सबहि डेराहीं।।सुख हाड़ लै भाग सठ स्वान निरखि मृगराज। + +छीनि लेइ जनि जान जड़ तिमि सुरपतिहि न लाज।।125।।तेहि आश्रमहिं मदन जब गयऊ। निज मायाँ बसंत निरमयऊ।। + +कुसुमित बिबिध बिटप बहुरंगा। कूजहिं कोकिल गुंजहि भृंगा।। + +चली सुहावनि त्रिबिध बयारी। काम कृसानु बढ़ावनिहारी।। + +रंभादिक सुरनारि नबीना । सकल असमसर कला प्रबीना।। + +करहिं गान बहु तान तरंगा। बहुबिधि क्रीड़हि पानि पतंगा।। + +देखि सहाय मदन हरषाना। कीन्हेसि पुनि प्रपंच बिधि नाना।। + +काम कला कछु मुनिहि न ब्यापी। निज भयँ डरेउ मनोभव पापी।। + +सीम कि चाँपि सकइ कोउ तासु। बड़ रखवार रमापति जासू।।सहित सहाय सभीत अति मानि हारि मन मैन। + +गहेसि जाइ मुनि चरन तब कहि सुठि आरत बैन।।126।।भयउ न नारद मन कछु रोषा। कहि प्रिय बचन काम परितोषा।। + +नाइ चरन सिरु आयसु पाई। गयउ मदन तब सहित सहाई।। + +मुनि सुसीलता आपनि करनी। सुरपति सभाँ जाइ सब बरनी।। + +सुनि सब कें मन अचरजु आवा। मुनिहि प्रसंसि हरिहि सिरु नावा।। + +तब नारद गवने सिव पाहीं। जिता काम अहमिति मन माहीं।। + +मार चरित संकरहिं सुनाए। अतिप्रिय जानि महेस सिखाए।। + +बार बार बिनवउँ मुनि तोहीं। जिमि यह कथा सुनायहु मोहीं।। + +तिमि जनि हरिहि सुनावहु कबहूँ। चलेहुँ प्रसंग दुराएडु तबहूँ।।संभु दीन्ह उपदेस हित नहिं नारदहि सोहा���। + +भारद्वाज कौतुक सुनहु हरि इच्छा बलवान।।127।।राम कीन्ह चाहहिं सोइ होई। करै अन्यथा अस नहिं कोई।। + +संभु बचन मुनि मन नहिं भाए। तब बिरंचि के लोक सिधाए।। + +एक बार करतल बर बीना। गावत हरि गुन गान प्रबीना।। + +छीरसिंधु गवने मुनिनाथा। जहँ बस श्रीनिवास श्रुतिमाथा।। + +हरषि मिले उठि रमानिकेता। बैठे आसन रिषिहि समेता।। + +बोले बिहसि चराचर राया। बहुते दिनन कीन्हि मुनि दाया।। + +काम चरित नारद सब भाषे। जद्यपि प्रथम बरजि सिवँ राखे।। + +अति प्रचंड रघुपति कै माया। जेहि न मोह अस को जग जाया।।रूख बदन करि बचन मृदु बोले श्रीभगवान । + +तुम्हरे सुमिरन तें मिटहिं मोह मार मद मान।।128।।सुनु मुनि मोह होइ मन ताकें। ग्यान बिराग हृदय नहिं जाके।। + +ब्रह्मचरज ब्रत रत मतिधीरा। तुम्हहि कि करइ मनोभव पीरा।। + +नारद कहेउ सहित अभिमाना। कृपा तुम्हारि सकल भगवाना।। + +करुनानिधि मन दीख बिचारी। उर अंकुरेउ गरब तरु भारी।। + +बेगि सो मै डारिहउँ उखारी। पन हमार सेवक हितकारी।। + +मुनि कर हित मम कौतुक होई। अवसि उपाय करबि मै सोई।। + +तब नारद हरि पद सिर नाई। चले हृदयँ अहमिति अधिकाई।। + +श्रीपति निज माया तब प्रेरी। सुनहु कठिन करनी तेहि केरी।।बिरचेउ मग महुँ नगर तेहिं सत जोजन बिस्तार। + +श्रीनिवासपुर तें अधिक रचना बिबिध प्रकार।।129।।बसहिं नगर सुंदर नर नारी। जनु बहु मनसिज रति तनुधारी।। + +तेहिं पुर बसइ सीलनिधि राजा। अगनित हय गय सेन समाजा।। + +सत सुरेस सम बिभव बिलासा। रूप तेज बल नीति निवासा।। + +बिस्वमोहनी तासु कुमारी। श्री बिमोह जिसु रूपु निहारी।। + +सोइ हरिमाया सब गुन खानी। सोभा तासु कि जाइ बखानी।। + +करइ स्वयंबर सो नृपबाला। आए तहँ अगनित महिपाला।। + +मुनि कौतुकी नगर तेहिं गयऊ। पुरबासिन्ह सब पूछत भयऊ।। + +सुनि सब चरित भूपगृहँ आए। करि पूजा नृप मुनि बैठाए।।आनि देखाई नारदहि भूपति राजकुमारि। + +कहहु नाथ गुन दोष सब एहि के हृदयँ बिचारि।।130।।देखि रूप मुनि बिरति बिसारी। बड़ी बार लगि रहे निहारी।। + +लच्छन तासु बिलोकि भुलाने। हृदयँ हरष नहिं प्रगट बखाने।। + +जो एहि बरइ अमर सोइ होई। समरभूमि तेहि जीत न कोई।। + +सेवहिं सकल चराचर ताही। बरइ सीलनिधि कन्या जाही।। + +लच्छन सब बिचारि उर राखे। कछुक बनाइ भूप सन भाषे।। + +सुता सुलच्छन कहि नृप पाहीं। नारद चले सोच मन माहीं।। + +करौं जाइ सोइ जतन बिचारी। जेहि प्रकार मोहि बर��� कुमारी।। + +जप तप कछु न होइ तेहि काला। हे बिधि मिलइ कवन बिधि बाला।।एहि अवसर चाहिअ परम सोभा रूप बिसाल। + +जो बिलोकि रीझै कुअँरि तब मेलै जयमाल।।131।।हरि सन मागौं सुंदरताई। होइहि जात गहरु अति भाई।। + +मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहि अवसर सहाय सोइ होऊ।। + +बहुबिधि बिनय कीन्हि तेहि काला। प्रगटेउ प्रभु कौतुकी कृपाला।। + +प्रभु बिलोकि मुनि नयन जुड़ाने। होइहि काजु हिएँ हरषाने।। + +अति आरति कहि कथा सुनाई। करहु कृपा करि होहु सहाई।। + +आपन रूप देहु प्रभु मोही। आन भाँति नहिं पावौं ओही।। + +जेहि बिधि नाथ होइ हित मोरा। करहु सो बेगि दास मैं तोरा।। + +निज माया बल देखि बिसाला। हियँ हँसि बोले दीनदयाला।।जेहि बिधि होइहि परम हित नारद सुनहु तुम्हार। + +सोइ हम करब न आन कछु बचन न मृषा हमार।।132।।कुपथ माग रुज ब्याकुल रोगी। बैद न देइ सुनहु मुनि जोगी।। + +एहि बिधि हित तुम्हार मैं ठयऊ। कहि अस अंतरहित प्रभु भयऊ।। + +माया बिबस भए मुनि मूढ़ा। समुझी नहिं हरि गिरा निगूढ़ा।। + +गवने तुरत तहाँ रिषिराई। जहाँ स्वयंबर भूमि बनाई।। + +निज निज आसन बैठे राजा। बहु बनाव करि सहित समाजा।। + +मुनि मन हरष रूप अति मोरें। मोहि तजि आनहि बारिहि न भोरें।। + +मुनि हित कारन कृपानिधाना। दीन्ह कुरूप न जाइ बखाना।। + +सो चरित्र लखि काहुँ न पावा। नारद जानि सबहिं सिर नावा।।रहे तहाँ दुइ रुद्र गन ते जानहिं सब भेउ। + +बिप्रबेष देखत फिरहिं परम कौतुकी तेउ।।133।।जेंहि समाज बैंठे मुनि जाई। हृदयँ रूप अहमिति अधिकाई।। + +तहँ बैठ महेस गन दोऊ। बिप्रबेष गति लखइ न कोऊ।। + +करहिं कूटि नारदहि सुनाई। नीकि दीन्हि हरि सुंदरताई।। + +रीझहि राजकुअँरि छबि देखी। इन्हहि बरिहि हरि जानि बिसेषी।। + +मुनिहि मोह मन हाथ पराएँ। हँसहिं संभु गन अति सचु पाएँ।। + +जदपि सुनहिं मुनि अटपटि बानी। समुझि न परइ बुद्धि भ्रम सानी।। + +काहुँ न लखा सो चरित बिसेषा। सो सरूप नृपकन्याँ देखा।। + +मर्कट बदन भयंकर देही। देखत हृदयँ क्रोध भा तेही।।सखीं संग लै कुअँरि तब चलि जनु राजमराल। + +देखत फिरइ महीप सब कर सरोज जयमाल।।134।।जेहि दिसि बैठे नारद फूली। सो दिसि देहि न बिलोकी भूली।। + +पुनि पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं। देखि दसा हर गन मुसकाहीं।। + +धरि नृपतनु तहँ गयउ कृपाला। कुअँरि हरषि मेलेउ जयमाला।। + +दुलहिनि लै गे लच्छिनिवासा। नृपसमाज सब भयउ निरासा।। + +मुनि अति बिकल मोंहँ मति नाठी। मनि गिरि गई छूटि जनु गाँठी।। + +तब हर गन बोले मुसुकाई। निज मुख मुकुर बिलोकहु जाई।। + +अस कहि दोउ भागे भयँ भारी। बदन दीख मुनि बारि निहारी।। + +बेषु बिलोकि क्रोध अति बाढ़ा। तिन्हहि सराप दीन्ह अति गाढ़ा।।होहु निसाचर जाइ तुम्ह कपटी पापी दोउ। + +हँसेहु हमहि सो लेहु फल बहुरि हँसेहु मुनि कोउ।।135।।पुनि जल दीख रूप निज पावा। तदपि हृदयँ संतोष न आवा।। + +फरकत अधर कोप मन माहीं। सपदी चले कमलापति पाहीं।। + +देहउँ श्राप कि मरिहउँ जाई। जगत मोर उपहास कराई।। + +बीचहिं पंथ मिले दनुजारी। संग रमा सोइ राजकुमारी।। + +बोले मधुर बचन सुरसाईं। मुनि कहँ चले बिकल की नाईं।। + +सुनत बचन उपजा अति क्रोधा। माया बस न रहा मन बोधा।। + +पर संपदा सकहु नहिं देखी। तुम्हरें इरिषा कपट बिसेषी।। + +मथत सिंधु रुद्रहि बौरायहु। सुरन्ह प्रेरी बिष पान करायहु।।असुर सुरा बिष संकरहि आपु रमा मनि चारु। + +स्वारथ साधक कुटिल तुम्ह सदा कपट ब्यवहारु।।136।।परम स्वतंत्र न सिर पर कोई। भावइ मनहि करहु तुम्ह सोई।। + +भलेहि मंद मंदेहि भल करहू। बिसमय हरष न हियँ कछु धरहू।। + +डहकि डहकि परिचेहु सब काहू। अति असंक मन सदा उछाहू।। + +करम सुभासुभ तुम्हहि न बाधा। अब लगि तुम्हहि न काहूँ साधा।। + +भले भवन अब बायन दीन्हा। पावहुगे फल आपन कीन्हा।। + +बंचेहु मोहि जवनि धरि देहा। सोइ तनु धरहु श्राप मम एहा।। + +कपि आकृति तुम्ह कीन्हि हमारी। करिहहिं कीस सहाय तुम्हारी।। + +मम अपकार कीन्ही तुम्ह भारी। नारी बिरहँ तुम्ह होब दुखारी।।श्राप सीस धरी हरषि हियँ प्रभु बहु बिनती कीन्हि। + +निज माया कै प्रबलता करषि कृपानिधि लीन्हि।।137।।जब हरि माया दूरि निवारी। नहिं तहँ रमा न राजकुमारी।। + +तब मुनि अति सभीत हरि चरना। गहे पाहि प्रनतारति हरना।। + +मृषा होउ मम श्राप कृपाला। मम इच्छा कह दीनदयाला।। + +मैं दुर्बचन कहे बहुतेरे। कह मुनि पाप मिटिहिं किमि मेरे।। + +जपहु जाइ संकर सत नामा। होइहि हृदयँ तुरंत बिश्रामा।। + +कोउ नहिं सिव समान प्रिय मोरें। असि परतीति तजहु जनि भोरें।। + +जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी। सो न पाव मुनि भगति हमारी।। + +अस उर धरि महि बिचरहु जाई। अब न तुम्हहि माया निअराई।।बहुबिधि मुनिहि प्रबोधि प्रभु तब भए अंतरधान।। + +सत्यलोक नारद चले करत राम गुन गान।।138।।हर गन मुनिहि जात पथ देखी। बिगतमोह मन हरष बिसेषी।। + +अति सभीत नारद पहिं आए। गहि पद आरत बचन सुनाए।। + +हर गन हम न बिप्र मुनिराया। बड़ अपराध कीन्ह फल पाया।। + +श्राप अनुग्रह करहु कृपाला। बोले नारद दीनदयाला।। + +निसिचर जाइ होहु तुम्ह दोऊ। बैभव बिपुल तेज बल होऊ।। + +भुजबल बिस्व जितब तुम्ह जहिआ। धरिहहिं बिष्नु मनुज तनु तहिआ। + +समर मरन हरि हाथ तुम्हारा। होइहहु मुकुत न पुनि संसारा।। + +चले जुगल मुनि पद सिर नाई। भए निसाचर कालहि पाई।।एक कलप एहि हेतु प्रभु लीन्ह मनुज अवतार। + +सुर रंजन सज्जन सुखद हरि भंजन भुबि भार।।139।।एहि बिधि जनम करम हरि केरे। सुंदर सुखद बिचित्र घनेरे।। + +कलप कलप प्रति प्रभु अवतरहीं। चारु चरित नानाबिधि करहीं।। + +तब तब कथा मुनीसन्ह गाई। परम पुनीत प्रबंध बनाई।। + +बिबिध प्रसंग अनूप बखाने। करहिं न सुनि आचरजु सयाने।। + +हरि अनंत हरिकथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता।। + +रामचंद्र के चरित सुहाए। कलप कोटि लगि जाहिं न गाए।। + +यह प्रसंग मैं कहा भवानी। हरिमायाँ मोहहिं मुनि ग्यानी।। + +प्रभु कौतुकी प्रनत हितकारी।।सेवत सुलभ सकल दुख हारी।।सुर नर मुनि कोउ नाहिं जेहि न मोह माया प्रबल।। + +अस बिचारि मन माहिं भजिअ महामाया पतिहि।।140।।अपर हेतु सुनु सैलकुमारी। कहउँ बिचित्र कथा बिस्तारी।। + +जेहि कारन अज अगुन अरूपा। ब्रह्म भयउ कोसलपुर भूपा।। + +जो प्रभु बिपिन फिरत तुम्ह देखा। बंधु समेत धरें मुनिबेषा।। + +जासु चरित अवलोकि भवानी। सती सरीर रहिहु बौरानी।। + +अजहुँ न छाया मिटति तुम्हारी। तासु चरित सुनु भ्रम रुज हारी।। + +लीला कीन्हि जो तेहिं अवतारा। सो सब कहिहउँ मति अनुसारा।। + +भरद्वाज सुनि संकर बानी। सकुचि सप्रेम उमा मुसकानी।। + +लगे बहुरि बरने बृषकेतू। सो अवतार भयउ जेहि हेतू।।सो मैं तुम्ह सन कहउँ सबु सुनु मुनीस मन लाई।। + +राम कथा कलि मल हरनि मंगल करनि सुहाइ।।141।।स्वायंभू मनु अरु सतरूपा। जिन्ह तें भै नरसृष्टि अनूपा।। + +दंपति धरम आचरन नीका। अजहुँ गाव श्रुति जिन्ह कै लीका।। + +नृप उत्तानपाद सुत तासू। ध्रुव हरि भगत भयउ सुत जासू।। + +लघु सुत नाम प्रिय्रब्रत ताही। बेद पुरान प्रसंसहि जाही।। + +देवहूति पुनि तासु कुमारी। जो मुनि कर्दम कै प्रिय नारी।। + +आदिदेव प्रभु दीनदयाला। जठर धरेउ जेहिं कपिल कृपाला।। + +सांख्य सास्त्र जिन्ह प्रगट बखाना। तत्व बिचार निपुन भगवाना।। + +तेहिं मनु राज कीन्ह बहु काला। प्रभु आयसु सब ��िधि प्रतिपाला।।होइ न बिषय बिराग भवन बसत भा चौथपन। + +हृदयँ बहुत दुख लाग जनम गयउ हरिभगति बिनु।।142।।बरबस राज सुतहि तब दीन्हा। नारि समेत गवन बन कीन्हा।। + +तीरथ बर नैमिष बिख्याता। अति पुनीत साधक सिधि दाता।। + +बसहिं तहाँ मुनि सिद्ध समाजा। तहँ हियँ हरषि चलेउ मनु राजा।। + +पंथ जात सोहहिं मतिधीरा। ग्यान भगति जनु धरें सरीरा।। + +पहुँचे जाइ धेनुमति तीरा। हरषि नहाने निरमल नीरा।। + +आए मिलन सिद्ध मुनि ग्यानी। धरम धुरंधर नृपरिषि जानी।। + +जहँ जँह तीरथ रहे सुहाए। मुनिन्ह सकल सादर करवाए।। + +कृस सरीर मुनिपट परिधाना। सत समाज नित सुनहिं पुराना ।द्वादस अच्छर मंत्र पुनि जपहिं सहित अनुराग। + +बासुदेव पद पंकरुह दंपति मन अति लाग।।143।।करहिं अहार साक फल कंदा। सुमिरहिं ब्रह्म सच्चिदानंदा।। + +पुनि हरि हेतु करन तप लागे। बारि अधार मूल फल त्यागे।। + +उर अभिलाष निंरंतर होई। देखअ नयन परम प्रभु सोई।। + +अगुन अखंड अनंत अनादी। जेहि चिंतहिं परमारथबादी।। + +नेति नेति जेहि बेद निरूपा। निजानंद निरुपाधि अनूपा।। + +संभु बिरंचि बिष्नु भगवाना। उपजहिं जासु अंस तें नाना।। + +ऐसेउ प्रभु सेवक बस अहई। भगत हेतु लीलातनु गहई।। + +जौं यह बचन सत्य श्रुति भाषा। तौ हमार पूजहि अभिलाषा।।एहि बिधि बीतें बरष षट सहस बारि आहार। + +संबत सप्त सहस्त्र पुनि रहे समीर अधार।।144।।बरष सहस दस त्यागेउ सोऊ। ठाढ़े रहे एक पद दोऊ।। + +बिधि हरि तप देखि अपारा। मनु समीप आए बहु बारा।। + +मागहु बर बहु भाँति लोभाए। परम धीर नहिं चलहिं चलाए।। + +अस्थिमात्र होइ रहे सरीरा। तदपि मनाग मनहिं नहिं पीरा।। + +प्रभु सर्बग्य दास निज जानी। गति अनन्य तापस नृप रानी।। + +मागु मागु बरु भै नभ बानी। परम गभीर कृपामृत सानी।। + +मृतक जिआवनि गिरा सुहाई। श्रबन रंध्र होइ उर जब आई।। + +ह्रष्टपुष्ट तन भए सुहाए। मानहुँ अबहिं भवन ते आए।।श्रवन सुधा सम बचन सुनि पुलक प्रफुल्लित गात। + +बोले मनु करि दंडवत प्रेम न हृदयँ समात।।145।।सुनु सेवक सुरतरु सुरधेनु। बिधि हरि हर बंदित पद रेनू।। + +सेवत सुलभ सकल सुख दायक। प्रनतपाल सचराचर नायक।। + +जौं अनाथ हित हम पर नेहू। तौ प्रसन्न होइ यह बर देहू।। + +जो सरूप बस सिव मन माहीं। जेहि कारन मुनि जतन कराहीं।। + +जो भुसुंडि मन मानस हंसा। सगुन अगुन जेहि निगम प्रसंसा।। + +देखहिं हम सो रूप भरि लोचन। कृपा करहु प्रनतारति मोचन।��� + +दंपति बचन परम प्रिय लागे। मुदुल बिनीत प्रेम रस पागे।। + +भगत बछल प्रभु कृपानिधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।नील सरोरुह नील मनि नील नीरधर स्याम। + +लाजहिं तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम।।146।।सरद मयंक बदन छबि सींवा। चारु कपोल चिबुक दर ग्रीवा।। + +अधर अरुन रद सुंदर नासा। बिधु कर निकर बिनिंदक हासा।। + +नव अबुंज अंबक छबि नीकी। चितवनि ललित भावँती जी की।। + +भुकुटि मनोज चाप छबि हारी। तिलक ललाट पटल दुतिकारी।। + +कुंडल मकर मुकुट सिर भ्राजा। कुटिल केस जनु मधुप समाजा।। + +उर श्रीबत्स रुचिर बनमाला। पदिक हार भूषन मनिजाला।। + +केहरि कंधर चारु जनेउ। बाहु बिभूषन सुंदर तेऊ।। + +करि कर सरि सुभग भुजदंडा। कटि निषंग कर सर कोदंडा।।तडित बिनिंदक पीत पट उदर रेख बर तीनि।। + +नाभि मनोहर लेति जनु जमुन भवँर छबि छीनि।।147।।पद राजीव बरनि नहि जाहीं। मुनि मन मधुप बसहिं जेन्ह माहीं।। + +बाम भाग सोभति अनुकूला। आदिसक्ति छबिनिधि जगमूला।। + +जासु अंस उपजहिं गुनखानी। अगनित लच्छि उमा ब्रह्मानी।। + +भृकुटि बिलास जासु जग होई। राम बाम दिसि सीता सोई।। + +छबिसमुद्र हरि रूप बिलोकी। एकटक रहे नयन पट रोकी।। + +चितवहिं सादर रूप अनूपा। तृप्ति न मानहिं मनु सतरूपा।। + +हरष बिबस तन दसा भुलानी। परे दंड इव गहि पद पानी।। + +सिर परसे प्रभु निज कर कंजा। तुरत उठाए करुनापुंजा।।बोले कृपानिधान पुनि अति प्रसन्न मोहि जानि। + +मागहु बर जोइ भाव मन महादानि अनुमानि।।148।।सुनि प्रभु बचन जोरि जुग पानी। धरि धीरजु बोली मृदु बानी।। + +नाथ देखि पद कमल तुम्हारे। अब पूरे सब काम हमारे।। + +एक लालसा बड़ि उर माही। सुगम अगम कहि जात सो नाहीं।। + +तुम्हहि देत अति सुगम गोसाईं। अगम लाग मोहि निज कृपनाईं।। + +जथा दरिद्र बिबुधतरु पाई। बहु संपति मागत सकुचाई।। + +तासु प्रभा जान नहिं सोई। तथा हृदयँ मम संसय होई।। + +सो तुम्ह जानहु अंतरजामी। पुरवहु मोर मनोरथ स्वामी।। + +सकुच बिहाइ मागु नृप मोहि। मोरें नहिं अदेय कछु तोही।।दानि सिरोमनि कृपानिधि नाथ कहउँ सतिभाउ।। + +चाहउँ तुम्हहि समान सुत प्रभु सन कवन दुराउ।।149।।देखि प्रीति सुनि बचन अमोले। एवमस्तु करुनानिधि बोले।। + +आपु सरिस खोजौं कहँ जाई। नृप तव तनय होब मैं आई।। + +सतरूपहि बिलोकि कर जोरें। देबि मागु बरु जो रुचि तोरे।। + +जो बरु नाथ चतुर नृप मागा। सोइ कृपाल मोहि अति प्रिय लागा।। + +प्रभु परंतु सुठि होति ढिठाई। जदपि भगत हित तुम्हहि सोहाई।। + +तुम्ह ब्रह्मादि जनक जग स्वामी। ब्रह्म सकल उर अंतरजामी।। + +अस समुझत मन संसय होई। कहा जो प्रभु प्रवान पुनि सोई।। + +जे निज भगत नाथ तव अहहीं। जो सुख पावहिं जो गति लहहीं।।सोइ सुख सोइ गति सोइ भगति सोइ निज चरन सनेहु।। + +सोइ बिबेक सोइ रहनि प्रभु हमहि कृपा करि देहु।।150।।सुनु मृदु गूढ़ रुचिर बर रचना। कृपासिंधु बोले मृदु बचना।। + +जो कछु रुचि तुम्हेर मन माहीं। मैं सो दीन्ह सब संसय नाहीं।। + +मातु बिबेक अलोकिक तोरें। कबहुँ न मिटिहि अनुग्रह मोरें । + +बंदि चरन मनु कहेउ बहोरी। अवर एक बिनति प्रभु मोरी।। + +सुत बिषइक तव पद रति होऊ। मोहि बड़ मूढ़ कहै किन कोऊ।। + +मनि बिनु फनि जिमि जल बिनु मीना। मम जीवन तिमि तुम्हहि अधीना।। + +अस बरु मागि चरन गहि रहेऊ। एवमस्तु करुनानिधि कहेऊ।। + +अब तुम्ह मम अनुसासन मानी। बसहु जाइ सुरपति रजधानी।।तहँ करि भोग बिसाल तात गउँ कछु काल पुनि। + +होइहहु अवध भुआल तब मैं होब तुम्हार सुत।।151।।इच्छामय नरबेष सँवारें। होइहउँ प्रगट निकेत तुम्हारे।। + +अंसन्ह सहित देह धरि ताता। करिहउँ चरित भगत सुखदाता।। + +जे सुनि सादर नर बड़भागी। भव तरिहहिं ममता मद त्यागी।। + +आदिसक्ति जेहिं जग उपजाया। सोउ अवतरिहि मोरि यह माया।। + +पुरउब मैं अभिलाष तुम्हारा। सत्य सत्य पन सत्य हमारा।। + +पुनि पुनि अस कहि कृपानिधाना। अंतरधान भए भगवाना।। + +दंपति उर धरि भगत कृपाला। तेहिं आश्रम निवसे कछु काला।। + +समय पाइ तनु तजि अनयासा। जाइ कीन्ह अमरावति बासा।।यह इतिहास पुनीत अति उमहि कही बृषकेतु। + +भरद्वाज सुनु अपर पुनि राम जनम कर हेतु।।152।।सुनु मुनि कथा पुनीत पुरानी। जो गिरिजा प्रति संभु बखानी।। + +बिस्व बिदित एक कैकय देसू। सत्यकेतु तहँ बसइ नरेसू।। + +धरम धुरंधर नीति निधाना। तेज प्रताप सील बलवाना।। + +तेहि कें भए जुगल सुत बीरा। सब गुन धाम महा रनधीरा।। + +राज धनी जो जेठ सुत आही। नाम प्रतापभानु अस ताही।। + +अपर सुतहि अरिमर्दन नामा। भुजबल अतुल अचल संग्रामा।। + +भाइहि भाइहि परम समीती। सकल दोष छल बरजित प्रीती।। + +जेठे सुतहि राज नृप दीन्हा। हरि हित आपु गवन बन कीन्हा।।जब प्रतापरबि भयउ नृप फिरी दोहाई देस। + +प्रजा पाल अति बेदबिधि कतहुँ नहीं अघ लेस।।153।।नृप हितकारक सचिव सयाना। नाम धरमरुचि सुक्र समाना।। + +सचिव सयान बंधु बलब���रा। आपु प्रतापपुंज रनधीरा।। + +सेन संग चतुरंग अपारा। अमित सुभट सब समर जुझारा।। + +सेन बिलोकि राउ हरषाना। अरु बाजे गहगहे निसाना।। + +बिजय हेतु कटकई बनाई। सुदिन साधि नृप चलेउ बजाई।। + +जँह तहँ परीं अनेक लराईं। जीते सकल भूप बरिआई।। + +सप्त दीप भुजबल बस कीन्हे। लै लै दंड छाड़ि नृप दीन्हें।। + +सकल अवनि मंडल तेहि काला। एक प्रतापभानु महिपाला।।स्वबस बिस्व करि बाहुबल निज पुर कीन्ह प्रबेसु। + +अरथ धरम कामादि सुख सेवइ समयँ नरेसु।।154।।भूप प्रतापभानु बल पाई। कामधेनु भै भूमि सुहाई।। + +सब दुख बरजित प्रजा सुखारी। धरमसील सुंदर नर नारी।। + +सचिव धरमरुचि हरि पद प्रीती। नृप हित हेतु सिखव नित नीती।। + +गुर सुर संत पितर महिदेवा। करइ सदा नृप सब कै सेवा।। + +भूप धरम जे बेद बखाने। सकल करइ सादर सुख माने।। + +दिन प्रति देह बिबिध बिधि दाना। सुनहु सास्त्र बर बेद पुराना।। + +नाना बापीं कूप तड़ागा। सुमन बाटिका सुंदर बागा।। + +बिप्रभवन सुरभवन सुहाए। सब तीरथन्ह बिचित्र बनाए।।जँह लगि कहे पुरान श्रुति एक एक सब जाग। + +बार सहस्त्र सहस्त्र नृप किए सहित अनुराग।।155।।हृदयँ न कछु फल अनुसंधाना। भूप बिबेकी परम सुजाना।। + +करइ जे धरम करम मन बानी। बासुदेव अर्पित नृप ग्यानी।। + +चढ़ि बर बाजि बार एक राजा। मृगया कर सब साजि समाजा।। + +बिंध्याचल गभीर बन गयऊ। मृग पुनीत बहु मारत भयऊ।। + +फिरत बिपिन नृप दीख बराहू। जनु बन दुरेउ ससिहि ग्रसि राहू।। + +बड़ बिधु नहि समात मुख माहीं। मनहुँ क्रोधबस उगिलत नाहीं।। + +कोल कराल दसन छबि गाई। तनु बिसाल पीवर अधिकाई।। + +घुरुघुरात हय आरौ पाएँ। चकित बिलोकत कान उठाएँ।।नील महीधर सिखर सम देखि बिसाल बराहु। + +चपरि चलेउ हय सुटुकि नृप हाँकि न होइ निबाहु।।156।।आवत देखि अधिक रव बाजी। चलेउ बराह मरुत गति भाजी।। + +तुरत कीन्ह नृप सर संधाना। महि मिलि गयउ बिलोकत बाना।। + +तकि तकि तीर महीस चलावा। करि छल सुअर सरीर बचावा।। + +प्रगटत दुरत जाइ मृग भागा। रिस बस भूप चलेउ संग लागा।। + +गयउ दूरि घन गहन बराहू। जहँ नाहिन गज बाजि निबाहू।। + +अति अकेल बन बिपुल कलेसू। तदपि न मृग मग तजइ नरेसू।। + +कोल बिलोकि भूप बड़ धीरा। भागि पैठ गिरिगुहाँ गभीरा।। + +अगम देखि नृप अति पछिताई। फिरेउ महाबन परेउ भुलाई।।खेद खिन्न छुद्धित तृषित राजा बाजि समेत। + +खोजत ब्याकुल सरित सर जल बिनु भयउ अचेत।।157।।फिरत बिप���न आश्रम एक देखा। तहँ बस नृपति कपट मुनिबेषा।। + +जासु देस नृप लीन्ह छड़ाई। समर सेन तजि गयउ पराई।। + +समय प्रतापभानु कर जानी। आपन अति असमय अनुमानी।। + +गयउ न गृह मन बहुत गलानी। मिला न राजहि नृप अभिमानी।। + +रिस उर मारि रंक जिमि राजा। बिपिन बसइ तापस कें साजा।। + +तासु समीप गवन नृप कीन्हा। यह प्रतापरबि तेहि तब चीन्हा।। + +राउ तृषित नहि सो पहिचाना। देखि सुबेष महामुनि जाना।। + +उतरि तुरग तें कीन्ह प्रनामा। परम चतुर न कहेउ निज नामा।।भूपति तृषित बिलोकि तेहिं सरबरु दीन्ह देखाइ। + +मज्जन पान समेत हय कीन्ह नृपति हरषाइ।।158।।गै श्रम सकल सुखी नृप भयऊ। निज आश्रम तापस लै गयऊ।। + +आसन दीन्ह अस्त रबि जानी। पुनि तापस बोलेउ मृदु बानी।। + +को तुम्ह कस बन फिरहु अकेलें। सुंदर जुबा जीव परहेलें।। + +चक्रबर्ति के लच्छन तोरें। देखत दया लागि अति मोरें।। + +नाम प्रतापभानु अवनीसा। तासु सचिव मैं सुनहु मुनीसा।। + +फिरत अहेरें परेउँ भुलाई। बडे भाग देखउँ पद आई।। + +हम कहँ दुर्लभ दरस तुम्हारा। जानत हौं कछु भल होनिहारा।। + +कह मुनि तात भयउ अँधियारा। जोजन सत्तरि नगरु तुम्हारा।।निसा घोर गम्भीर बन पंथ न सुनहु सुजान। + +बसहु आजु अस जानि तुम्ह जाएहु होत बिहान।।159(क)।। + +तुलसी जसि भवतब्यता तैसी मिलइ सहाइ। + +आपुनु आवइ ताहि पहिं ताहि तहाँ लै जाइ।।159(ख)।।भलेहिं नाथ आयसु धरि सीसा। बाँधि तुरग तरु बैठ महीसा।। + +नृप बहु भाँती प्रसंसेउ ताही। चरन बंदी निज भाग्य सराही।। + +पुनि बोले मृदु गिरा सुहाई। जानि पिता प्रभु करउँ ढिठाई।। + +मोहि मुनीस सुत सेवक जानी। नाथ नाम निज कहहु बखानी।। + +तेहि न जान नृप नृपहि सो जाना। भूप सुह्रद सो कपट सयाना।। + +बैरी पुनि छत्री पुनि राजा। छल बल कीन्ह चहइ निज काजा।। + +समुझि राजसुख दुखित अराती। अवाँ अनल इव सुलगइ छाती।। + +सरल बचन नृप के सुनि काना। बयर सँभारि हृदयँ हरषाना।।कपट बोरि बानी मृदुल बोलेउ जुगुति समेत। + +नाम हमार भिखारि अब निर्धन रहित निकेति।।160।।कह नृप जे बिग्यान निधाना। तुम्ह सारिखे गलित अभिमाना।। + +सदा रहहि अपनपौ दुराएँ। सब बिधि कुसल कुबेष बनाएँ।। + +तेहि तें कहहि संत श्रुति टेरें। परम अकिंचन प्रिय हरि केरें।। + +तुम्ह सम अधन भिखारि अगेहा। होत बिरंचि सिवहि संदेहा।। + +जोसि सोसि तव चरन नमामी। मो पर कृपा करिअ अब स्वामी।। + +सहज प्रीति भूपति कै देखी। आपु बिषय बिस्वास बिसेषी।। + +सब प्रकार राजहि अपनाई। बोलेउ अधिक सनेह जनाई।। + +सुनु सतिभाउ कहउँ महिपाला। इहाँ बसत बीते बहु काला।।अब लगि मोहि न मिलेउ कोउ मैं न जनावउँ काहु। + +लोकमान्यता अनल सम कर तप कानन दाहु।।161(क)।। + +तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर। + +सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि।।161(ख)।।तातें गुपुत रहउँ जग माहीं। हरि तजि किमपि प्रयोजन नाहीं।। + +प्रभु जानत सब बिनहिं जनाएँ। कहहु कवनि सिधि लोक रिझाएँ।। + +तुम्ह सुचि सुमति परम प्रिय मोरें। प्रीति प्रतीति मोहि पर तोरें।। + +अब जौं तात दुरावउँ तोही। दारुन दोष घटइ अति मोही।। + +जिमि जिमि तापसु कथइ उदासा। तिमि तिमि नृपहि उपज बिस्वासा।। + +देखा स्वबस कर्म मन बानी। तब बोला तापस बगध्यानी।। + +नाम हमार एकतनु भाई। सुनि नृप बोले पुनि सिरु नाई।। + +कहहु नाम कर अरथ बखानी। मोहि सेवक अति आपन जानी।।आदिसृष्टि उपजी जबहिं तब उतपति भै मोरि। + +नाम एकतनु हेतु तेहि देह न धरी बहोरि।।162।।जनि आचरुज करहु मन माहीं। सुत तप तें दुर्लभ कछु नाहीं।। + +तपबल तें जग सृजइ बिधाता। तपबल बिष्नु भए परित्राता।। + +तपबल संभु करहिं संघारा। तप तें अगम न कछु संसारा।। + +भयउ नृपहि सुनि अति अनुरागा। कथा पुरातन कहै सो लागा।। + +करम धरम इतिहास अनेका। करइ निरूपन बिरति बिबेका।। + +उदभव पालन प्रलय कहानी। कहेसि अमित आचरज बखानी।। + +सुनि महिप तापस बस भयऊ। आपन नाम कहत तब लयऊ।। + +कह तापस नृप जानउँ तोही। कीन्हेहु कपट लाग भल मोही।।सुनु महीस असि नीति जहँ तहँ नाम न कहहिं नृप। + +मोहि तोहि पर अति प्रीति सोइ चतुरता बिचारि तव।।163।।नाम तुम्हार प्रताप दिनेसा। सत्यकेतु तव पिता नरेसा।। + +गुर प्रसाद सब जानिअ राजा। कहिअ न आपन जानि अकाजा।। + +देखि तात तव सहज सुधाई। प्रीति प्रतीति नीति निपुनाई।। + +उपजि परि ममता मन मोरें। कहउँ कथा निज पूछे तोरें।। + +अब प्रसन्न मैं संसय नाहीं। मागु जो भूप भाव मन माहीं।। + +सुनि सुबचन भूपति हरषाना। गहि पद बिनय कीन्हि बिधि नाना।। + +कृपासिंधु मुनि दरसन तोरें। चारि पदारथ करतल मोरें।। + +प्रभुहि तथापि प्रसन्न बिलोकी। मागि अगम बर होउँ असोकी।।जरा मरन दुख रहित तनु समर जितै जनि कोउ। + +एकछत्र रिपुहीन महि राज कलप सत होउ।।164।।कह तापस नृप ऐसेइ होऊ। कारन एक कठिन सुनु सोऊ।। + +कालउ तुअ पद नाइहि सीसा। एक बिप्रकुल छाड़ि महीसा।। + +तपबल बि��्र सदा बरिआरा। तिन्ह के कोप न कोउ रखवारा।। + +जौं बिप्रन्ह सब करहु नरेसा। तौ तुअ बस बिधि बिष्नु महेसा।। + +चल न ब्रह्मकुल सन बरिआई। सत्य कहउँ दोउ भुजा उठाई।। + +बिप्र श्राप बिनु सुनु महिपाला। तोर नास नहि कवनेहुँ काला।। + +हरषेउ राउ बचन सुनि तासू। नाथ न होइ मोर अब नासू।। + +तव प्रसाद प्रभु कृपानिधाना। मो कहुँ सर्ब काल कल्याना।।एवमस्तु कहि कपटमुनि बोला कुटिल बहोरि। + +मिलब हमार भुलाब निज कहहु त हमहि न खोरि।।165।।तातें मै तोहि बरजउँ राजा। कहें कथा तव परम अकाजा।। + +छठें श्रवन यह परत कहानी। नास तुम्हार सत्य मम बानी।। + +यह प्रगटें अथवा द्विजश्रापा। नास तोर सुनु भानुप्रतापा।। + +आन उपायँ निधन तव नाहीं। जौं हरि हर कोपहिं मन माहीं।। + +सत्य नाथ पद गहि नृप भाषा। द्विज गुर कोप कहहु को राखा।। + +राखइ गुर जौं कोप बिधाता। गुर बिरोध नहिं कोउ जग त्राता।। + +जौं न चलब हम कहे तुम्हारें। होउ नास नहिं सोच हमारें।। + +एकहिं डर डरपत मन मोरा। प्रभु महिदेव श्राप अति घोरा।।होहिं बिप्र बस कवन बिधि कहहु कृपा करि सोउ। + +तुम्ह तजि दीनदयाल निज हितू न देखउँ कोउँ।।166।।सुनु नृप बिबिध जतन जग माहीं। कष्टसाध्य पुनि होहिं कि नाहीं।। + +अहइ एक अति सुगम उपाई। तहाँ परंतु एक कठिनाई।। + +मम आधीन जुगुति नृप सोई। मोर जाब तव नगर न होई।। + +आजु लगें अरु जब तें भयऊँ। काहू के गृह ग्राम न गयऊँ।। + +जौं न जाउँ तव होइ अकाजू। बना आइ असमंजस आजू।। + +सुनि महीस बोलेउ मृदु बानी। नाथ निगम असि नीति बखानी।। + +बड़े सनेह लघुन्ह पर करहीं। गिरि निज सिरनि सदा तृन धरहीं।। + +जलधि अगाध मौलि बह फेनू। संतत धरनि धरत सिर रेनू।।अस कहि गहे नरेस पद स्वामी होहु कृपाल। + +मोहि लागि दुख सहिअ प्रभु सज्जन दीनदयाल।।167।।जानि नृपहि आपन आधीना। बोला तापस कपट प्रबीना।। + +सत्य कहउँ भूपति सुनु तोही। जग नाहिन दुर्लभ कछु मोही।। + +अवसि काज मैं करिहउँ तोरा। मन तन बचन भगत तैं मोरा।। + +जोग जुगुति तप मंत्र प्रभाऊ। फलइ तबहिं जब करिअ दुराऊ।। + +जौं नरेस मैं करौं रसोई। तुम्ह परुसहु मोहि जान न कोई।। + +अन्न सो जोइ जोइ भोजन करई। सोइ सोइ तव आयसु अनुसरई।। + +पुनि तिन्ह के गृह जेवँइ जोऊ। तव बस होइ भूप सुनु सोऊ।। + +जाइ उपाय रचहु नृप एहू। संबत भरि संकलप करेहू।।नित नूतन द्विज सहस सत बरेहु सहित परिवार। + +मैं तुम्हरे संकलप लगि दिनहिंकरिब जेवनार।।168।।एहि ���िधि भूप कष्ट अति थोरें। होइहहिं सकल बिप्र बस तोरें।। + +करिहहिं बिप्र होम मख सेवा। तेहिं प्रसंग सहजेहिं बस देवा।। + +और एक तोहि कहऊँ लखाऊ। मैं एहि बेष न आउब काऊ।। + +तुम्हरे उपरोहित कहुँ राया। हरि आनब मैं करि निज माया।। + +तपबल तेहि करि आपु समाना। रखिहउँ इहाँ बरष परवाना।। + +मैं धरि तासु बेषु सुनु राजा। सब बिधि तोर सँवारब काजा।। + +गै निसि बहुत सयन अब कीजे। मोहि तोहि भूप भेंट दिन तीजे।। + +मैं तपबल तोहि तुरग समेता। पहुँचेहउँ सोवतहि निकेता।।मैं आउब सोइ बेषु धरि पहिचानेहु तब मोहि। + +जब एकांत बोलाइ सब कथा सुनावौं तोहि।।169।।सयन कीन्ह नृप आयसु मानी। आसन जाइ बैठ छलग्यानी।। + +श्रमित भूप निद्रा अति आई। सो किमि सोव सोच अधिकाई।। + +कालकेतु निसिचर तहँ आवा। जेहिं सूकर होइ नृपहि भुलावा।। + +परम मित्र तापस नृप केरा। जानइ सो अति कपट घनेरा।। + +तेहि के सत सुत अरु दस भाई। खल अति अजय देव दुखदाई।। + +प्रथमहि भूप समर सब मारे। बिप्र संत सुर देखि दुखारे।। + +तेहिं खल पाछिल बयरु सँभरा। तापस नृप मिलि मंत्र बिचारा।। + +जेहि रिपु छय सोइ रचेन्हि उपाऊ। भावी बस न जान कछु राऊ।।रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिअ न ताहु। + +अजहुँ देत दुख रबि ससिहि सिर अवसेषित राहु।।170।।तापस नृप निज सखहि निहारी। हरषि मिलेउ उठि भयउ सुखारी।। + +मित्रहि कहि सब कथा सुनाई। जातुधान बोला सुख पाई।। + +अब साधेउँ रिपु सुनहु नरेसा। जौं तुम्ह कीन्ह मोर उपदेसा।। + +परिहरि सोच रहहु तुम्ह सोई। बिनु औषध बिआधि बिधि खोई।। + +कुल समेत रिपु मूल बहाई। चौथे दिवस मिलब मैं आई।। + +तापस नृपहि बहुत परितोषी। चला महाकपटी अतिरोषी।। + +भानुप्रतापहि बाजि समेता। पहुँचाएसि छन माझ निकेता।। + +नृपहि नारि पहिं सयन कराई। हयगृहँ बाँधेसि बाजि बनाई।।राजा के उपरोहितहि हरि लै गयउ बहोरि। + +लै राखेसि गिरि खोह महुँ मायाँ करि मति भोरि।।171।।आपु बिरचि उपरोहित रूपा। परेउ जाइ तेहि सेज अनूपा।। + +जागेउ नृप अनभएँ बिहाना। देखि भवन अति अचरजु माना।। + +मुनि महिमा मन महुँ अनुमानी। उठेउ गवँहि जेहि जान न रानी।। + +कानन गयउ बाजि चढ़ि तेहीं। पुर नर नारि न जानेउ केहीं।। + +गएँ जाम जुग भूपति आवा। घर घर उत्सव बाज बधावा।। + +उपरोहितहि देख जब राजा। चकित बिलोकि सुमिरि सोइ काजा।। + +जुग सम नृपहि गए दिन तीनी। कपटी मुनि पद रह मति लीनी।। + +समय जानि उपरोहित आवा। नृपहि मते सब कहि समुझावा।।नृप हरषेउ पहिचानि गुरु भ्रम बस रहा न चेत। + +बरे तुरत सत सहस बर बिप्र कुटुंब समेत।।172।।उपरोहित जेवनार बनाई। छरस चारि बिधि जसि श्रुति गाई।। + +मायामय तेहिं कीन्ह रसोई। बिंजन बहु गनि सकइ न कोई।। + +बिबिध मृगन्ह कर आमिष राँधा। तेहि महुँ बिप्र माँसु खल साँधा।। + +भोजन कहुँ सब बिप्र बोलाए। पद पखारि सादर बैठाए।। + +परुसन जबहिं लाग महिपाला। भै अकासबानी तेहि काला।। + +बिप्रबृंद उठि उठि गृह जाहू। है बड़ि हानि अन्न जनि खाहू।। + +भयउ रसोईं भूसुर माँसू। सब द्विज उठे मानि बिस्वासू।। + +भूप बिकल मति मोहँ भुलानी। भावी बस आव मुख बानी।।बोले बिप्र सकोप तब नहिं कछु कीन्ह बिचार। + +जाइ निसाचर होहु नृप मूढ़ सहित परिवार।।173।।छत्रबंधु तैं बिप्र बोलाई। घालै लिए सहित समुदाई।। + +ईस्वर राखा धरम हमारा। जैहसि तैं समेत परिवारा।। + +संबत मध्य नास तव होऊ। जलदाता न रहिहि कुल कोऊ।। + +नृप सुनि श्राप बिकल अति त्रासा। भै बहोरि बर गिरा अकासा।। + +बिप्रहु श्राप बिचारि न दीन्हा। नहिं अपराध भूप कछु कीन्हा।। + +चकित बिप्र सब सुनि नभबानी। भूप गयउ जहँ भोजन खानी।। + +तहँ न असन नहिं बिप्र सुआरा। फिरेउ राउ मन सोच अपारा।। + +सब प्रसंग महिसुरन्ह सुनाई। त्रसित परेउ अवनीं अकुलाई।।भूपति भावी मिटइ नहिं जदपि न दूषन तोर। + +किएँ अन्यथा होइ नहिं बिप्रश्राप अति घोर।।174।।अस कहि सब महिदेव सिधाए। समाचार पुरलोगन्ह पाए।। + +सोचहिं दूषन दैवहि देहीं। बिचरत हंस काग किय जेहीं।। + +उपरोहितहि भवन पहुँचाई। असुर तापसहि खबरि जनाई।। + +तेहिं खल जहँ तहँ पत्र पठाए। सजि सजि सेन भूप सब धाए।। + +घेरेन्हि नगर निसान बजाई। बिबिध भाँति नित होई लराई।। + +जूझे सकल सुभट करि करनी। बंधु समेत परेउ नृप धरनी।। + +सत्यकेतु कुल कोउ नहिं बाँचा। बिप्रश्राप किमि होइ असाँचा।। + +रिपु जिति सब नृप नगर बसाई। निज पुर गवने जय जसु पाई।।भरद्वाज सुनु जाहि जब होइ बिधाता बाम। + +धूरि मेरुसम जनक जम ताहि ब्यालसम दाम।।।175।।काल पाइ मुनि सुनु सोइ राजा। भयउ निसाचर सहित समाजा।। + +दस सिर ताहि बीस भुजदंडा। रावन नाम बीर बरिबंडा।। + +भूप अनुज अरिमर्दन नामा। भयउ सो कुंभकरन बलधामा।। + +सचिव जो रहा धरमरुचि जासू। भयउ बिमात्र बंधु लघु तासू।। + +नाम बिभीषन जेहि जग जाना। बिष्नुभगत बिग्यान निधाना।। + +रहे जे सुत सेवक नृप केरे। भए निसाचर घोर घनेरे।। + +कामरूप खल जिनस अनेका। कुटिल भयंकर बिगत बिबेका।। + +कृपा रहित हिंसक सब पापी। बरनि न जाहिं बिस्व परितापी।।उपजे जदपि पुलस्त्यकुल पावन अमल अनूप। + +तदपि महीसुर श्राप बस भए सकल अघरूप।।176।।कीन्ह बिबिध तप तीनिहुँ भाई। परम उग्र नहिं बरनि सो जाई।। + +गयउ निकट तप देखि बिधाता। मागहु बर प्रसन्न मैं ताता।। + +करि बिनती पद गहि दससीसा। बोलेउ बचन सुनहु जगदीसा।। + +हम काहू के मरहिं न मारें। बानर मनुज जाति दुइ बारें।। + +एवमस्तु तुम्ह बड़ तप कीन्हा। मैं ब्रह्माँ मिलि तेहि बर दीन्हा।। + +पुनि प्रभु कुंभकरन पहिं गयऊ। तेहि बिलोकि मन बिसमय भयऊ।। + +जौं एहिं खल नित करब अहारू। होइहि सब उजारि संसारू।। + +सारद प्रेरि तासु मति फेरी। मागेसि नीद मास षट केरी।।गए बिभीषन पास पुनि कहेउ पुत्र बर मागु। + +तेहिं मागेउ भगवंत पद कमल अमल अनुरागु।।177।।तिन्हि देइ बर ब्रह्म सिधाए। हरषित ते अपने गृह आए।। + +मय तनुजा मंदोदरि नामा। परम सुंदरी नारि ललामा।। + +सोइ मयँ दीन्हि रावनहि आनी। होइहि जातुधानपति जानी।। + +हरषित भयउ नारि भलि पाई। पुनि दोउ बंधु बिआहेसि जाई।। + +गिरि त्रिकूट एक सिंधु मझारी। बिधि निर्मित दुर्गम अति भारी।। + +सोइ मय दानवँ बहुरि सँवारा। कनक रचित मनिभवन अपारा।। + +भोगावति जसि अहिकुल बासा। अमरावति जसि सक्रनिवासा।। + +तिन्ह तें अधिक रम्य अति बंका। जग बिख्यात नाम तेहि लंका।।खाईं सिंधु गभीर अति चारिहुँ दिसि फिरि आव। + +कनक कोट मनि खचित दृढ़ बरनि न जाइ बनाव।।178(क)।। + +हरिप्रेरित जेहिं कलप जोइ जातुधानपति होइ। + +सूर प्रतापी अतुलबल दल समेत बस सोइ।।178(ख)।।रहे तहाँ निसिचर भट भारे। ते सब सुरन्ह समर संघारे।। + +अब तहँ रहहिं सक्र के प्रेरे। रच्छक कोटि जच्छपति केरे।। + +दसमुख कतहुँ खबरि असि पाई। सेन साजि गढ़ घेरेसि जाई।। + +देखि बिकट भट बड़ि कटकाई। जच्छ जीव लै गए पराई।। + +फिरि सब नगर दसानन देखा। गयउ सोच सुख भयउ बिसेषा।। + +सुंदर सहज अगम अनुमानी। कीन्हि तहाँ रावन रजधानी।। + +जेहि जस जोग बाँटि गृह दीन्हे। सुखी सकल रजनीचर कीन्हे।। + +एक बार कुबेर पर धावा। पुष्पक जान जीति लै आवा।।कौतुकहीं कैलास पुनि लीन्हेसि जाइ उठाइ। + +मनहुँ तौलि निज बाहुबल चला बहुत सुख पाइ।।179।।सुख संपति सुत सेन सहाई। जय प्रताप बल बुद्धि बड़ाई।। + +नित नूतन सब बाढ़त जाई। जिमि प्रतिलाभ लोभ अधिकाई।। + +अतिबल कु��भकरन अस भ्राता। जेहि कहुँ नहिं प्रतिभट जग जाता।। + +करइ पान सोवइ षट मासा। जागत होइ तिहुँ पुर त्रासा।। + +जौं दिन प्रति अहार कर सोई। बिस्व बेगि सब चौपट होई।। + +समर धीर नहिं जाइ बखाना। तेहि सम अमित बीर बलवाना।। + +बारिदनाद जेठ सुत तासू। भट महुँ प्रथम लीक जग जासू।। + +जेहि न होइ रन सनमुख कोई। सुरपुर नितहिं परावन होई।।कुमुख अकंपन कुलिसरद धूमकेतु अतिकाय। + +एक एक जग जीति सक ऐसे सुभट निकाय।।180।।कामरूप जानहिं सब माया। सपनेहुँ जिन्ह कें धरम न दाया।। + +दसमुख बैठ सभाँ एक बारा। देखि अमित आपन परिवारा।। + +सुत समूह जन परिजन नाती। गे को पार निसाचर जाती।। + +सेन बिलोकि सहज अभिमानी। बोला बचन क्रोध मद सानी।। + +सुनहु सकल रजनीचर जूथा। हमरे बैरी बिबुध बरूथा।। + +ते सनमुख नहिं करही लराई। देखि सबल रिपु जाहिं पराई।। + +तेन्ह कर मरन एक बिधि होई। कहउँ बुझाइ सुनहु अब सोई।। + +द्विजभोजन मख होम सराधा।।सब कै जाइ करहु तुम्ह बाधा।।छुधा छीन बलहीन सुर सहजेहिं मिलिहहिं आइ। + +तब मारिहउँ कि छाड़िहउँ भली भाँति अपनाइ।।181।।मेघनाद कहुँ पुनि हँकरावा। दीन्ही सिख बलु बयरु बढ़ावा।। + +जे सुर समर धीर बलवाना। जिन्ह कें लरिबे कर अभिमाना।। + +तिन्हहि जीति रन आनेसु बाँधी। उठि सुत पितु अनुसासन काँधी।। + +एहि बिधि सबही अग्या दीन्ही। आपुनु चलेउ गदा कर लीन्ही।। + +चलत दसानन डोलति अवनी। गर्जत गर्भ स्त्रवहिं सुर रवनी।। + +रावन आवत सुनेउ सकोहा। देवन्ह तके मेरु गिरि खोहा।। + +दिगपालन्ह के लोक सुहाए। सूने सकल दसानन पाए।। + +पुनि पुनि सिंघनाद करि भारी। देइ देवतन्ह गारि पचारी।। + +रन मद मत्त फिरइ जग धावा। प्रतिभट खौजत कतहुँ न पावा।। + +रबि ससि पवन बरुन धनधारी। अगिनि काल जम सब अधिकारी।। + +किंनर सिद्ध मनुज सुर नागा। हठि सबही के पंथहिं लागा।। + +ब्रह्मसृष्टि जहँ लगि तनुधारी। दसमुख बसबर्ती नर नारी।। + +आयसु करहिं सकल भयभीता। नवहिं आइ नित चरन बिनीता।।भुजबल बिस्व बस्य करि राखेसि कोउ न सुतंत्र। + +मंडलीक मनि रावन राज करइ निज मंत्र।।182(क)।। + +देव जच्छ गंधर्व नर किंनर नाग कुमारि। + +जीति बरीं निज बाहुबल बहु सुंदर बर नारि।।182ख।।इंद्रजीत सन जो कछु कहेऊ। सो सब जनु पहिलेहिं करि रहेऊ।। + +प्रथमहिं जिन्ह कहुँ आयसु दीन्हा। तिन्ह कर चरित सुनहु जो कीन्हा।। + +देखत भीमरूप सब पापी। निसिचर निकर देव परितापी।। + +करहि उपद्रव असुर निकाया। नाना रूप धरहिं करि माया।। + +जेहि बिधि होइ धर्म निर्मूला। सो सब करहिं बेद प्रतिकूला।। + +जेहिं जेहिं देस धेनु द्विज पावहिं। नगर गाउँ पुर आगि लगावहिं।। + +सुभ आचरन कतहुँ नहिं होई। देव बिप्र गुरू मान न कोई।। + +नहिं हरिभगति जग्य तप ग्याना। सपनेहुँ सुनिअ न बेद पुराना।।जप जोग बिरागा तप मख भागा श्रवन सुनइ दससीसा। + +आपुनु उठि धावइ रहै न पावइ धरि सब घालइ खीसा।। + +अस भ्रष्ट अचारा भा संसारा धर्म सुनिअ नहि काना। + +तेहि बहुबिधि त्रासइ देस निकासइ जो कह बेद पुराना।।बरनि न जाइ अनीति घोर निसाचर जो करहिं। + +हिंसा पर अति प्रीति तिन्ह के पापहि कवनि मिति।।183।।बाढ़े खल बहु चोर जुआरा। जे लंपट परधन परदारा।। + +मानहिं मातु पिता नहिं देवा। साधुन्ह सन करवावहिं सेवा।। + +जिन्ह के यह आचरन भवानी। ते जानेहु निसिचर सब प्रानी।। + +अतिसय देखि धर्म कै ग्लानी। परम सभीत धरा अकुलानी।। + +गिरि सरि सिंधु भार नहिं मोही। जस मोहि गरुअ एक परद्रोही।। + +सकल धर्म देखइ बिपरीता। कहि न सकइ रावन भय भीता।। + +धेनु रूप धरि हृदयँ बिचारी। गई तहाँ जहँ सुर मुनि झारी।। + +निज संताप सुनाएसि रोई। काहू तें कछु काज न होई।।सुर मुनि गंधर्बा मिलि करि सर्बा गे बिरंचि के लोका। + +सँग गोतनुधारी भूमि बिचारी परम बिकल भय सोका।। + +ब्रह्माँ सब जाना मन अनुमाना मोर कछू न बसाई। + +जा करि तैं दासी सो अबिनासी हमरेउ तोर सहाई।।धरनि धरहि मन धीर कह बिरंचि हरिपद सुमिरु। + +जानत जन की पीर प्रभु भंजिहि दारुन बिपति।।184।।बैठे सुर सब करहिं बिचारा। कहँ पाइअ प्रभु करिअ पुकारा।। + +पुर बैकुंठ जान कह कोई। कोउ कह पयनिधि बस प्रभु सोई।। + +जाके हृदयँ भगति जसि प्रीति। प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहिं रीती।। + +तेहि समाज गिरिजा मैं रहेऊँ। अवसर पाइ बचन एक कहेऊँ।। + +हरि ब्यापक सर्बत्र समाना। प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना।। + +देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं। कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं।। + +अग जगमय सब रहित बिरागी। प्रेम तें प्रभु प्रगटइ जिमि आगी।। + +मोर बचन सब के मन माना। साधु साधु करि ब्रह्म बखाना।।सुनि बिरंचि मन हरष तन पुलकि नयन बह नीर। + +अस्तुति करत जोरि कर सावधान मतिधीर।।185।।जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता। + +गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिधुंसुता प्रिय कंता।। + +पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई। + +जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई।। + +जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा। + +अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा।। + +जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगतमोह मुनिबृंदा। + +निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा।। + +जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा। + +सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा।। + +जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा। + +मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुर जूथा।। + +सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहि जाना। + +जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना।। + +भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा। + +मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा।।जानि सभय सुरभूमि सुनि बचन समेत सनेह। + +गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह।।186।।जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा। तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा।। + +अंसन्ह सहित मनुज अवतारा। लेहउँ दिनकर बंस उदारा।। + +कस्यप अदिति महातप कीन्हा। तिन्ह कहुँ मैं पूरब बर दीन्हा।। + +ते दसरथ कौसल्या रूपा। कोसलपुरीं प्रगट नरभूपा।। + +तिन्ह के गृह अवतरिहउँ जाई। रघुकुल तिलक सो चारिउ भाई।। + +नारद बचन सत्य सब करिहउँ। परम सक्ति समेत अवतरिहउँ।। + +हरिहउँ सकल भूमि गरुआई। निर्भय होहु देव समुदाई।। + +गगन ब्रह्मबानी सुनी काना। तुरत फिरे सुर हृदय जुड़ाना।। + +तब ब्रह्मा धरनिहि समुझावा। अभय भई भरोस जियँ आवा।।निज लोकहि बिरंचि गे देवन्ह इहइ सिखाइ। + +बानर तनु धरि धरि महि हरि पद सेवहु जाइ।।187।।गए देव सब निज निज धामा। भूमि सहित मन कहुँ बिश्रामा । + +जो कछु आयसु ब्रह्माँ दीन्हा। हरषे देव बिलंब न कीन्हा।। + +बनचर देह धरि छिति माहीं। अतुलित बल प्रताप तिन्ह पाहीं।। + +गिरि तरु नख आयुध सब बीरा। हरि मारग चितवहिं मतिधीरा।। + +गिरि कानन जहँ तहँ भरि पूरी। रहे निज निज अनीक रचि रूरी।। + +यह सब रुचिर चरित मैं भाषा। अब सो सुनहु जो बीचहिं राखा।। + +अवधपुरीं रघुकुलमनि राऊ। बेद बिदित तेहि दसरथ नाऊँ।। + +धरम धुरंधर गुननिधि ग्यानी। हृदयँ भगति मति सारँगपानी।।कौसल्यादि नारि प्रिय सब आचरन पुनीत। + +पति अनुकूल प्रेम दृढ़ हरि पद कमल बिनीत।।188।।एक बार भूपति मन माहीं। भै गलानि मोरें सुत नाहीं।। + +गुर गृह गयउ तुरत महिपाला। चरन लागि करि बिनय बिसाला।। + +निज दुख सुख सब गुरहि सुनायउ। कहि बसिष्ठ बहु���िधि समुझायउ।। + +धरहु धीर होइहहिं सुत चारी। त्रिभुवन बिदित भगत भय हारी।। + +सृंगी रिषहि बसिष्ठ बोलावा। पुत्रकाम सुभ जग्य करावा।। + +भगति सहित मुनि आहुति दीन्हें। प्रगटे अगिनि चरू कर लीन्हें।। + +जो बसिष्ठ कछु हृदयँ बिचारा। सकल काजु भा सिद्ध तुम्हारा।। + +यह हबि बाँटि देहु नृप जाई। जथा जोग जेहि भाग बनाई।।तब अदृस्य भए पावक सकल सभहि समुझाइ।। + +परमानंद मगन नृप हरष न हृदयँ समाइ।।189।।तबहिं रायँ प्रिय नारि बोलाईं। कौसल्यादि तहाँ चलि आई।। + +अर्ध भाग कौसल्याहि दीन्हा। उभय भाग आधे कर कीन्हा।। + +कैकेई कहँ नृप सो दयऊ। रह्यो सो उभय भाग पुनि भयऊ।। + +कौसल्या कैकेई हाथ धरि। दीन्ह सुमित्रहि मन प्रसन्न करि।। + +एहि बिधि गर्भसहित सब नारी। भईं हृदयँ हरषित सुख भारी।। + +जा दिन तें हरि गर्भहिं आए। सकल लोक सुख संपति छाए।। + +मंदिर महँ सब राजहिं रानी। सोभा सील तेज की खानीं।। + +सुख जुत कछुक काल चलि गयऊ। जेहिं प्रभु प्रगट सो अवसर भयऊ।।जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल। + +चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल।।190।।नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।। + +मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा।। + +सीतल मंद सुरभि बह बाऊ। हरषित सुर संतन मन चाऊ।। + +बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा। स्त्रवहिं सकल सरिताऽमृतधारा।। + +सो अवसर बिरंचि जब जाना। चले सकल सुर साजि बिमाना।। + +गगन बिमल सकुल सुर जूथा। गावहिं गुन गंधर्ब बरूथा।। + +बरषहिं सुमन सुअंजलि साजी। गहगहि गगन दुंदुभी बाजी।। + +अस्तुति करहिं नाग मुनि देवा। बहुबिधि लावहिं निज निज सेवा।।सुर समूह बिनती करि पहुँचे निज निज धाम। + +जगनिवास प्रभु प्रगटे अखिल लोक बिश्राम।।191।।भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी। + +हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी।। + +लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी। + +भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी।। + +कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता। + +माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता।। + +करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता। + +सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता।। + +ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै। + +मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर पति थिर न रहै।। + +उपजा जब ग्याना प्रभु मुसकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै। + +कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै।। + +माता पुनि बोली सो मति डौली तजहु तात यह रूपा। + +कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा।। + +सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा। + +यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा।।बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार। + +निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार।।192।।सुनि सिसु रुदन परम प्रिय बानी। संभ्रम चलि आई सब रानी।। + +हरषित जहँ तहँ धाईं दासी। आनँद मगन सकल पुरबासी।। + +दसरथ पुत्रजन्म सुनि काना। मानहुँ ब्रह्मानंद समाना।। + +परम प्रेम मन पुलक सरीरा। चाहत उठत करत मति धीरा।। + +जाकर नाम सुनत सुभ होई। मोरें गृह आवा प्रभु सोई।। + +परमानंद पूरि मन राजा। कहा बोलाइ बजावहु बाजा।। + +गुर बसिष्ठ कहँ गयउ हँकारा। आए द्विजन सहित नृपद्वारा।। + +अनुपम बालक देखेन्हि जाई। रूप रासि गुन कहि न सिराई।।नंदीमुख सराध करि जातकरम सब कीन्ह। + +हाटक धेनु बसन मनि नृप बिप्रन्ह कहँ दीन्ह।।193।।ध्वज पताक तोरन पुर छावा। कहि न जाइ जेहि भाँति बनावा।। + +सुमनबृष्टि अकास तें होई। ब्रह्मानंद मगन सब लोई।। + +बृंद बृंद मिलि चलीं लोगाई। सहज संगार किएँ उठि धाई।। + +कनक कलस मंगल धरि थारा। गावत पैठहिं भूप दुआरा।। + +करि आरति नेवछावरि करहीं। बार बार सिसु चरनन्हि परहीं।। + +मागध सूत बंदिगन गायक। पावन गुन गावहिं रघुनायक।। + +सर्बस दान दीन्ह सब काहू। जेहिं पावा राखा नहिं ताहू।। + +मृगमद चंदन कुंकुम कीचा। मची सकल बीथिन्ह बिच बीचा।।गृह गृह बाज बधाव सुभ प्रगटे सुषमा कंद। + +हरषवंत सब जहँ तहँ नगर नारि नर बृंद।।194।।कैकयसुता सुमित्रा दोऊ। सुंदर सुत जनमत भैं ओऊ।। + +वह सुख संपति समय समाजा। कहि न सकइ सारद अहिराजा।। + +अवधपुरी सोहइ एहि भाँती। प्रभुहि मिलन आई जनु राती।। + +देखि भानू जनु मन सकुचानी। तदपि बनी संध्या अनुमानी।। + +अगर धूप बहु जनु अँधिआरी। उड़इ अभीर मनहुँ अरुनारी।। + +मंदिर मनि समूह जनु तारा। नृप गृह कलस सो इंदु उदारा।। + +भवन बेदधुनि अति मृदु बानी। जनु खग मूखर समयँ जनु सानी।। + +कौतुक देखि पतंग भुलाना। एक मास तेइँ जात न जाना।।मास दिवस कर दिवस भा मरम न जानइ कोइ। + +रथ समेत रबि थाकेउ निसा कवन बिधि होइ।।195।।यह रहस्य काहू नहिं जाना। दिन मनि चले करत गुनगाना।। + +देखि महोत्सव सुर मुनि नागा। चले भवन बरनत निज भागा।। + +औरउ एक कहउँ निज चोरी। सुनु गिरिजा अति दृढ़ मति तोरी।। + +काक भुसुंडि संग हम दोऊ। मनुजरूप जानइ नहिं कोऊ।। + +परमानंद प्रेमसुख फूले। बीथिन्ह फिरहिं मगन मन भूले।। + +यह सुभ चरित जान पै सोई। कृपा राम कै जापर होई।। + +तेहि अवसर जो जेहि बिधि आवा। दीन्ह भूप जो जेहि मन भावा।। + +गज रथ तुरग हेम गो हीरा। दीन्हे नृप नानाबिधि चीरा।।मन संतोषे सबन्हि के जहँ तहँ देहि असीस। + +सकल तनय चिर जीवहुँ तुलसिदास के ईस।।196।।कछुक दिवस बीते एहि भाँती। जात न जानिअ दिन अरु राती।। + +नामकरन कर अवसरु जानी। भूप बोलि पठए मुनि ग्यानी।। + +करि पूजा भूपति अस भाषा। धरिअ नाम जो मुनि गुनि राखा।। + +इन्ह के नाम अनेक अनूपा। मैं नृप कहब स्वमति अनुरूपा।। + +जो आनंद सिंधु सुखरासी। सीकर तें त्रैलोक सुपासी।। + +सो सुख धाम राम अस नामा। अखिल लोक दायक बिश्रामा।। + +बिस्व भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई।। + +जाके सुमिरन तें रिपु नासा। नाम सत्रुहन बेद प्रकासा।।लच्छन धाम राम प्रिय सकल जगत आधार। + +गुरु बसिष्ट तेहि राखा लछिमन नाम उदार।।197।।धरे नाम गुर हृदयँ बिचारी। बेद तत्व नृप तव सुत चारी।। + +मुनि धन जन सरबस सिव प्राना। बाल केलि तेहिं सुख माना।। + +बारेहि ते निज हित पति जानी। लछिमन राम चरन रति मानी।। + +भरत सत्रुहन दूनउ भाई। प्रभु सेवक जसि प्रीति बड़ाई।। + +स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।। + +चारिउ सील रूप गुन धामा। तदपि अधिक सुखसागर रामा।। + +हृदयँ अनुग्रह इंदु प्रकासा। सूचत किरन मनोहर हासा।। + +कबहुँ उछंग कबहुँ बर पलना। मातु दुलारइ कहि प्रिय ललना।।ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद। + +सो अज प्रेम भगति बस कौसल्या के गोद।।198।।काम कोटि छबि स्याम सरीरा। नील कंज बारिद गंभीरा।। + +अरुन चरन पकंज नख जोती। कमल दलन्हि बैठे जनु मोती।। + +रेख कुलिस धवज अंकुर सोहे। नूपुर धुनि सुनि मुनि मन मोहे।। + +कटि किंकिनी उदर त्रय रेखा। नाभि गभीर जान जेहि देखा।। + +भुज बिसाल भूषन जुत भूरी। हियँ हरि नख अति सोभा रूरी।। + +उर मनिहार पदिक की सोभा। बिप्र चरन देखत मन लोभा।। + +कंबु कंठ अति चिबुक सुहाई। आनन अमित मदन छबि छाई।। + +दुइ दुइ दसन अधर अरुनारे। नासा तिलक को बरनै पारे।। + +सुंदर श्रवन सुचारु कपोला। अति प्रिय मधुर तोतरे बोला।। + +चिक्कन कच कुंचित गभुआरे। बहु प्रकार रचि मातु सँवारे।। + +पीत झगुलिआ तनु पहिराई। जानु पानि बिचरनि मोहि भाई।। + +रूप सकहिं नहिं कहि श्रुति सेषा। सो जानइ सपनेहुँ जेहि देखा।।सुख संदोह मोहपर ग्यान गिरा गोतीत। + +दंपति परम प्रेम बस कर सिसुचरित पुनीत।।199।।एहि बिधि राम जगत पितु माता। कोसलपुर बासिन्ह सुखदाता।। + +जिन्ह रघुनाथ चरन रति मानी। तिन्ह की यह गति प्रगट भवानी।। + +रघुपति बिमुख जतन कर कोरी। कवन सकइ भव बंधन छोरी।। + +जीव चराचर बस कै राखे। सो माया प्रभु सों भय भाखे।। + +भृकुटि बिलास नचावइ ताही। अस प्रभु छाड़ि भजिअ कहु काही।। + +मन क्रम बचन छाड़ि चतुराई। भजत कृपा करिहहिं रघुराई।। + +एहि बिधि सिसुबिनोद प्रभु कीन्हा। सकल नगरबासिन्ह सुख दीन्हा।। + +लै उछंग कबहुँक हलरावै। कबहुँ पालनें घालि झुलावै।।प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान। + +सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।200।।एक बार जननीं अन्हवाए। करि सिंगार पलनाँ पौढ़ाए।। + +निज कुल इष्टदेव भगवाना। पूजा हेतु कीन्ह अस्नाना।। + +करि पूजा नैबेद्य चढ़ावा। आपु गई जहँ पाक बनावा।। + +बहुरि मातु तहवाँ चलि आई। भोजन करत देख सुत जाई।। + +गै जननी सिसु पहिं भयभीता। देखा बाल तहाँ पुनि सूता।। + +बहुरि आइ देखा सुत सोई। हृदयँ कंप मन धीर न होई।। + +इहाँ उहाँ दुइ बालक देखा। मतिभ्रम मोर कि आन बिसेषा।। + +देखि राम जननी अकुलानी। प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी।।देखरावा मातहि निज अदभुत रुप अखंड। + +रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्मंड।। 201।।अगनित रबि ससि सिव चतुरानन। बहु गिरि सरित सिंधु महि कानन।। + +काल कर्म गुन ग्यान सुभाऊ। सोउ देखा जो सुना न काऊ।। + +देखी माया सब बिधि गाढ़ी। अति सभीत जोरें कर ठाढ़ी।। + +देखा जीव नचावइ जाही। देखी भगति जो छोरइ ताही।। + +तन पुलकित मुख बचन न आवा। नयन मूदि चरननि सिरु नावा।। + +बिसमयवंत देखि महतारी। भए बहुरि सिसुरूप खरारी।। + +अस्तुति करि न जाइ भय माना। जगत पिता मैं सुत करि जाना।। + +हरि जननि बहुबिधि समुझाई। यह जनि कतहुँ कहसि सुनु माई।।बार बार कौसल्या बिनय करइ कर जोरि।। + +अब जनि कबहूँ ब्यापै प्रभु मोहि माया तोरि।। 202।।बालचरित हरि बहुबिधि कीन्हा। अति अनंद दासन्ह कहँ दीन्हा।। + +कछुक काल बीतें सब भाई। बड़े भए परिजन सुखदाई।। + +चूड़ाकरन कीन्ह गुरु जाई। बिप्रन्ह पुनि दछिना बहु पाई।। + +परम मनोहर चरित अपारा। करत फिरत चारिउ सुकुमारा।। + +मन क्रम बचन अगोचर जोई। दसरथ अजिर बि��र प्रभु सोई।। + +भोजन करत बोल जब राजा। नहिं आवत तजि बाल समाजा।। + +कौसल्या जब बोलन जाई। ठुमकु ठुमकु प्रभु चलहिं पराई।। + +निगम नेति सिव अंत न पावा। ताहि धरै जननी हठि धावा।। + +धूरस धूरि भरें तनु आए। भूपति बिहसि गोद बैठाए।।भोजन करत चपल चित इत उत अवसरु पाइ। + +भाजि चले किलकत मुख दधि ओदन लपटाइ।।203।।बालचरित अति सरल सुहाए। सारद सेष संभु श्रुति गाए।। + +जिन कर मन इन्ह सन नहिं राता। ते जन बंचित किए बिधाता।। + +भए कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता।। + +गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई।। + +जाकी सहज स्वास श्रुति चारी। सो हरि पढ़ यह कौतुक भारी।। + +बिद्या बिनय निपुन गुन सीला। खेलहिं खेल सकल नृपलीला।। + +करतल बान धनुष अति सोहा। देखत रूप चराचर मोहा।। + +जिन्ह बीथिन्ह बिहरहिं सब भाई। थकित होहिं सब लोग लुगाई।।कोसलपुर बासी नर नारि बृद्ध अरु बाल। + +प्रानहु ते प्रिय लागत सब कहुँ राम कृपाल।।204।।बंधु सखा संग लेहिं बोलाई। बन मृगया नित खेलहिं जाई।। + +पावन मृग मारहिं जियँ जानी। दिन प्रति नृपहि देखावहिं आनी।। + +जे मृग राम बान के मारे। ते तनु तजि सुरलोक सिधारे।। + +अनुज सखा सँग भोजन करहीं। मातु पिता अग्या अनुसरहीं।। + +जेहि बिधि सुखी होहिं पुर लोगा। करहिं कृपानिधि सोइ संजोगा।। + +बेद पुरान सुनहिं मन लाई। आपु कहहिं अनुजन्ह समुझाई।। + +प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा।। + +आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित हरषइ मन राजा।।ब्यापक अकल अनीह अज निर्गुन नाम न रूप। + +भगत हेतु नाना बिधि करत चरित्र अनूप।।205।।यह सब चरित कहा मैं गाई। आगिलि कथा सुनहु मन लाई।। + +बिस्वामित्र महामुनि ग्यानी। बसहि बिपिन सुभ आश्रम जानी।। + +जहँ जप जग्य मुनि करही। अति मारीच सुबाहुहि डरहीं।। + +देखत जग्य निसाचर धावहि। करहि उपद्रव मुनि दुख पावहिं।। + +गाधितनय मन चिंता ब्यापी। हरि बिनु मरहि न निसिचर पापी।। + +तब मुनिवर मन कीन्ह बिचारा। प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा।। + +एहुँ मिस देखौं पद जाई। करि बिनती आनौ दोउ भाई।। + +ग्यान बिराग सकल गुन अयना। सो प्रभु मै देखब भरि नयना।।बहुबिधि करत मनोरथ जात लागि नहिं बार। + +करि मज्जन सरऊ जल गए भूप दरबार।।206।।मुनि आगमन सुना जब राजा। मिलन गयऊ लै बिप्र समाजा।। + +करि दंडवत मुनिहि सनमानी। निज आसन बैठारेन्हि आनी।। + +चरन पखारि कीन्हि ���ति पूजा। मो सम आजु धन्य नहिं दूजा।। + +बिबिध भाँति भोजन करवावा। मुनिवर हृदयँ हरष अति पावा।। + +पुनि चरननि मेले सुत चारी। राम देखि मुनि देह बिसारी।। + +भए मगन देखत मुख सोभा। जनु चकोर पूरन ससि लोभा।। + +तब मन हरषि बचन कह राऊ। मुनि अस कृपा न कीन्हिहु काऊ।। + +केहि कारन आगमन तुम्हारा। कहहु सो करत न लावउँ बारा।। + +असुर समूह सतावहिं मोही। मै जाचन आयउँ नृप तोही।। + +अनुज समेत देहु रघुनाथा। निसिचर बध मैं होब सनाथा।।देहु भूप मन हरषित तजहु मोह अग्यान। + +धर्म सुजस प्रभु तुम्ह कौं इन्ह कहँ अति कल्यान।।207।।सुनि राजा अति अप्रिय बानी। हृदय कंप मुख दुति कुमुलानी।। + +चौथेंपन पायउँ सुत चारी। बिप्र बचन नहिं कहेहु बिचारी।। + +मागहु भूमि धेनु धन कोसा। सर्बस देउँ आजु सहरोसा।। + +देह प्रान तें प्रिय कछु नाही। सोउ मुनि देउँ निमिष एक माही।। + +सब सुत प्रिय मोहि प्रान कि नाईं। राम देत नहिं बनइ गोसाई।। + +कहँ निसिचर अति घोर कठोरा। कहँ सुंदर सुत परम किसोरा।। + +सुनि नृप गिरा प्रेम रस सानी। हृदयँ हरष माना मुनि ग्यानी।। + +तब बसिष्ट बहु निधि समुझावा। नृप संदेह नास कहँ पावा।। + +अति आदर दोउ तनय बोलाए। हृदयँ लाइ बहु भाँति सिखाए।। + +मेरे प्रान नाथ सुत दोऊ। तुम्ह मुनि पिता आन नहिं कोऊ।।सौंपे भूप रिषिहि सुत बहु बिधि देइ असीस। + +जननी भवन गए प्रभु चले नाइ पद सीस।।208(क)।। + +पुरुषसिंह दोउ बीर हरषि चले मुनि भय हरन।। + +कृपासिंधु मतिधीर अखिल बिस्व कारन करन।।208(ख)।।अरुन नयन उर बाहु बिसाला। नील जलज तनु स्याम तमाला।। + +कटि पट पीत कसें बर भाथा। रुचिर चाप सायक दुहुँ हाथा।। + +स्याम गौर सुंदर दोउ भाई। बिस्बामित्र महानिधि पाई।। + +प्रभु ब्रह्मन्यदेव मै जाना। मोहि निति पिता तजेहु भगवाना।। + +चले जात मुनि दीन्हि दिखाई। सुनि ताड़का क्रोध करि धाई।। + +एकहिं बान प्रान हरि लीन्हा। दीन जानि तेहि निज पद दीन्हा।। + +तब रिषि निज नाथहि जियँ चीन्ही। बिद्यानिधि कहुँ बिद्या दीन्ही।। + +जाते लाग न छुधा पिपासा। अतुलित बल तनु तेज प्रकासा।।आयुष सब समर्पि कै प्रभु निज आश्रम आनि। + +कंद मूल फल भोजन दीन्ह भगति हित जानि।।209।।प्रात कहा मुनि सन रघुराई। निर्भय जग्य करहु तुम्ह जाई।। + +होम करन लागे मुनि झारी। आपु रहे मख कीं रखवारी।। + +सुनि मारीच निसाचर क्रोही। लै सहाय धावा मुनिद्रोही।। + +बिनु फर बान राम तेहि मारा। सत जोजन गा सागर पारा।। + +पावक सर सुबाहु पुनि मारा। अनुज निसाचर कटकु सँघारा।। + +मारि असुर द्विज निर्मयकारी। अस्तुति करहिं देव मुनि झारी।। + +तहँ पुनि कछुक दिवस रघुराया। रहे कीन्हि बिप्रन्ह पर दाया।। + +भगति हेतु बहु कथा पुराना। कहे बिप्र जद्यपि प्रभु जाना।। + +तब मुनि सादर कहा बुझाई। चरित एक प्रभु देखिअ जाई।। + +धनुषजग्य मुनि रघुकुल नाथा। हरषि चले मुनिबर के साथा।। + +आश्रम एक दीख मग माहीं। खग मृग जीव जंतु तहँ नाहीं।। + +पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी। सकल कथा मुनि कहा बिसेषी।।गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर। + +चरन कमल रज चाहति कृपा करहु रघुबीर।।210।।परसत पद पावन सोक नसावन प्रगट भई तपपुंज सही। + +देखत रघुनायक जन सुख दायक सनमुख होइ कर जोरि रही।। + +अति प्रेम अधीरा पुलक सरीरा मुख नहिं आवइ बचन कही। + +अतिसय बड़भागी चरनन्हि लागी जुगल नयन जलधार बही।। + +धीरजु मन कीन्हा प्रभु कहुँ चीन्हा रघुपति कृपाँ भगति पाई। + +अति निर्मल बानीं अस्तुति ठानी ग्यानगम्य जय रघुराई।। + +मै नारि अपावन प्रभु जग पावन रावन रिपु जन सुखदाई। + +राजीव बिलोचन भव भय मोचन पाहि पाहि सरनहिं आई।। + +मुनि श्राप जो दीन्हा अति भल कीन्हा परम अनुग्रह मैं माना। + +देखेउँ भरि लोचन हरि भवमोचन इहइ लाभ संकर जाना।। + +बिनती प्रभु मोरी मैं मति भोरी नाथ न मागउँ बर आना। + +पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना।। + +जेहिं पद सुरसरिता परम पुनीता प्रगट भई सिव सीस धरी। + +सोइ पद पंकज जेहि पूजत अज मम सिर धरेउ कृपाल हरी।। + +एहि भाँति सिधारी गौतम नारी बार बार हरि चरन परी। + +जो अति मन भावा सो बरु पावा गै पतिलोक अनंद भरी।।अस प्रभु दीनबंधु हरि कारन रहित दयाल। + +तुलसिदास सठ तेहि भजु छाड़ि कपट जंजाल।।211।।चले राम लछिमन मुनि संगा। गए जहाँ जग पावनि गंगा।। + +गाधिसूनु सब कथा सुनाई। जेहि प्रकार सुरसरि महि आई।। + +तब प्रभु रिषिन्ह समेत नहाए। बिबिध दान महिदेवन्हि पाए।। + +हरषि चले मुनि बृंद सहाया। बेगि बिदेह नगर निअराया।। + +पुर रम्यता राम जब देखी। हरषे अनुज समेत बिसेषी।। + +बापीं कूप सरित सर नाना। सलिल सुधासम मनि सोपाना।। + +गुंजत मंजु मत्त रस भृंगा। कूजत कल बहुबरन बिहंगा।। + +बरन बरन बिकसे बन जाता। त्रिबिध समीर सदा सुखदाता।।सुमन बाटिका बाग बन बिपुल बिहंग निवास। + +फूलत फलत सुपल्लवत सोहत पुर चहुँ पास।।212।।बनइ न बरनत नग��� निकाई। जहाँ जाइ मन तहँइँ लोभाई।। + +चारु बजारु बिचित्र अँबारी। मनिमय बिधि जनु स्वकर सँवारी।। + +धनिक बनिक बर धनद समाना। बैठ सकल बस्तु लै नाना।। + +चौहट सुंदर गलीं सुहाई। संतत रहहिं सुगंध सिंचाई।। + +मंगलमय मंदिर सब केरें। चित्रित जनु रतिनाथ चितेरें।। + +पुर नर नारि सुभग सुचि संता। धरमसील ग्यानी गुनवंता।। + +अति अनूप जहँ जनक निवासू। बिथकहिं बिबुध बिलोकि बिलासू।। + +होत चकित चित कोट बिलोकी। सकल भुवन सोभा जनु रोकी।।धवल धाम मनि पुरट पट सुघटित नाना भाँति। + +सिय निवास सुंदर सदन सोभा किमि कहि जाति।।213।।सुभग द्वार सब कुलिस कपाटा। भूप भीर नट मागध भाटा।। + +बनी बिसाल बाजि गज साला। हय गय रथ संकुल सब काला।। + +सूर सचिव सेनप बहुतेरे। नृपगृह सरिस सदन सब केरे।। + +पुर बाहेर सर सारित समीपा। उतरे जहँ तहँ बिपुल महीपा।। + +देखि अनूप एक अँवराई। सब सुपास सब भाँति सुहाई।। + +कौसिक कहेउ मोर मनु माना। इहाँ रहिअ रघुबीर सुजाना।। + +भलेहिं नाथ कहि कृपानिकेता। उतरे तहँ मुनिबृंद समेता।। + +बिस्वामित्र महामुनि आए। समाचार मिथिलापति पाए।।संग सचिव सुचि भूरि भट भूसुर बर गुर ग्याति। + +चले मिलन मुनिनायकहि मुदित राउ एहि भाँति।।214।।कीन्ह प्रनामु चरन धरि माथा। दीन्हि असीस मुदित मुनिनाथा।। + +बिप्रबृंद सब सादर बंदे। जानि भाग्य बड़ राउ अनंदे।। + +कुसल प्रस्न कहि बारहिं बारा। बिस्वामित्र नृपहि बैठारा।। + +तेहि अवसर आए दोउ भाई। गए रहे देखन फुलवाई।। + +स्याम गौर मृदु बयस किसोरा। लोचन सुखद बिस्व चित चोरा।। + +उठे सकल जब रघुपति आए। बिस्वामित्र निकट बैठाए।। + +भए सब सुखी देखि दोउ भ्राता। बारि बिलोचन पुलकित गाता।। + +मूरति मधुर मनोहर देखी। भयउ बिदेहु बिदेहु बिसेषी।।प्रेम मगन मनु जानि नृपु करि बिबेकु धरि धीर। + +बोलेउ मुनि पद नाइ सिरु गदगद गिरा गभीर।।215।।कहहु नाथ सुंदर दोउ बालक। मुनिकुल तिलक कि नृपकुल पालक।। + +ब्रह्म जो निगम नेति कहि गावा। उभय बेष धरि की सोइ आवा।। + +सहज बिरागरुप मनु मोरा। थकित होत जिमि चंद चकोरा।। + +ताते प्रभु पूछउँ सतिभाऊ। कहहु नाथ जनि करहु दुराऊ।। + +इन्हहि बिलोकत अति अनुरागा। बरबस ब्रह्मसुखहि मन त्यागा।। + +कह मुनि बिहसि कहेहु नृप नीका। बचन तुम्हार न होइ अलीका।। + +ए प्रिय सबहि जहाँ लगि प्रानी। मन मुसुकाहिं रामु सुनि बानी।। + +रघुकुल मनि दसरथ के जाए। मम हित लाग��� नरेस पठाए।।रामु लखनु दोउ बंधुबर रूप सील बल धाम। + +मख राखेउ सबु साखि जगु जिते असुर संग्राम।।216।।मुनि तव चरन देखि कह राऊ। कहि न सकउँ निज पुन्य प्राभाऊ।। + +सुंदर स्याम गौर दोउ भ्राता। आनँदहू के आनँद दाता।। + +इन्ह कै प्रीति परसपर पावनि। कहि न जाइ मन भाव सुहावनि।। + +सुनहु नाथ कह मुदित बिदेहू। ब्रह्म जीव इव सहज सनेहू।। + +पुनि पुनि प्रभुहि चितव नरनाहू। पुलक गात उर अधिक उछाहू।। + +म्रुनिहि प्रसंसि नाइ पद सीसू। चलेउ लवाइ नगर अवनीसू।। + +सुंदर सदनु सुखद सब काला। तहाँ बासु लै दीन्ह भुआला।। + +करि पूजा सब बिधि सेवकाई। गयउ राउ गृह बिदा कराई।।रिषय संग रघुबंस मनि करि भोजनु बिश्रामु। + +बैठे प्रभु भ्राता सहित दिवसु रहा भरि जामु।।217।।लखन हृदयँ लालसा बिसेषी। जाइ जनकपुर आइअ देखी।। + +प्रभु भय बहुरि मुनिहि सकुचाहीं। प्रगट न कहहिं मनहिं मुसुकाहीं।। + +राम अनुज मन की गति जानी। भगत बछलता हिंयँ हुलसानी।। + +परम बिनीत सकुचि मुसुकाई। बोले गुर अनुसासन पाई।। + +नाथ लखनु पुरु देखन चहहीं। प्रभु सकोच डर प्रगट न कहहीं।। + +जौं राउर आयसु मैं पावौं। नगर देखाइ तुरत लै आवौ।। + +सुनि मुनीसु कह बचन सप्रीती। कस न राम तुम्ह राखहु नीती।। + +धरम सेतु पालक तुम्ह ताता। प्रेम बिबस सेवक सुखदाता।।जाइ देखी आवहु नगरु सुख निधान दोउ भाइ। + +करहु सुफल सब के नयन सुंदर बदन देखाइ।।218।।मुनि पद कमल बंदि दोउ भ्राता। चले लोक लोचन सुख दाता।। + +बालक बृंदि देखि अति सोभा। लगे संग लोचन मनु लोभा।। + +पीत बसन परिकर कटि भाथा। चारु चाप सर सोहत हाथा।। + +तन अनुहरत सुचंदन खोरी। स्यामल गौर मनोहर जोरी।। + +केहरि कंधर बाहु बिसाला। उर अति रुचिर नागमनि माला।। + +सुभग सोन सरसीरुह लोचन। बदन मयंक तापत्रय मोचन।। + +कानन्हि कनक फूल छबि देहीं। चितवत चितहि चोरि जनु लेहीं।। + +चितवनि चारु भृकुटि बर बाँकी। तिलक रेखा सोभा जनु चाँकी।।रुचिर चौतनीं सुभग सिर मेचक कुंचित केस। + +नख सिख सुंदर बंधु दोउ सोभा सकल सुदेस।।219।।देखन नगरु भूपसुत आए। समाचार पुरबासिन्ह पाए।। + +धाए धाम काम सब त्यागी। मनहु रंक निधि लूटन लागी।। + +निरखि सहज सुंदर दोउ भाई। होहिं सुखी लोचन फल पाई।। + +जुबतीं भवन झरोखन्हि लागीं। निरखहिं राम रूप अनुरागीं।। + +कहहिं परसपर बचन सप्रीती। सखि इन्ह कोटि काम छबि जीती।। + +सुर नर असुर नाग मुनि माहीं। सोभा असि कहुँ सुनिअति नाहीं।। + +बिष्नु चारि भुज बिघि मुख चारी। बिकट बेष मुख पंच पुरारी।। + +अपर देउ अस कोउ न आही। यह छबि सखि पटतरिअ जाही।।बय किसोर सुषमा सदन स्याम गौर सुख घाम। + +अंग अंग पर वारिअहिं कोटि कोटि सत काम।।220।।कहहु सखी अस को तनुधारी। जो न मोह यह रूप निहारी।। + +कोउ सप्रेम बोली मृदु बानी। जो मैं सुना सो सुनहु सयानी।। + +ए दोऊ दसरथ के ढोटा। बाल मरालन्हि के कल जोटा।। + +मुनि कौसिक मख के रखवारे। जिन्ह रन अजिर निसाचर मारे।। + +स्याम गात कल कंज बिलोचन। जो मारीच सुभुज मदु मोचन।। + +कौसल्या सुत सो सुख खानी। नामु रामु धनु सायक पानी।। + +गौर किसोर बेषु बर काछें। कर सर चाप राम के पाछें।। + +लछिमनु नामु राम लघु भ्राता। सुनु सखि तासु सुमित्रा माता।।बिप्रकाजु करि बंधु दोउ मग मुनिबधू उधारि। + +आए देखन चापमख सुनि हरषीं सब नारि।।221।।देखि राम छबि कोउ एक कहई। जोगु जानकिहि यह बरु अहई।। + +जौ सखि इन्हहि देख नरनाहू। पन परिहरि हठि करइ बिबाहू।। + +कोउ कह ए भूपति पहिचाने। मुनि समेत सादर सनमाने।। + +सखि परंतु पनु राउ न तजई। बिधि बस हठि अबिबेकहि भजई।। + +कोउ कह जौं भल अहइ बिधाता। सब कहँ सुनिअ उचित फलदाता।। + +तौ जानकिहि मिलिहि बरु एहू। नाहिन आलि इहाँ संदेहू।। + +जौ बिधि बस अस बनै सँजोगू। तौ कृतकृत्य होइ सब लोगू।। + +सखि हमरें आरति अति तातें। कबहुँक ए आवहिं एहि नातें।।नाहिं त हम कहुँ सुनहु सखि इन्ह कर दरसनु दूरि। + +यह संघटु तब होइ जब पुन्य पुराकृत भूरि।।222।।बोली अपर कहेहु सखि नीका। एहिं बिआह अति हित सबहीं का।। + +कोउ कह संकर चाप कठोरा। ए स्यामल मृदुगात किसोरा।। + +सबु असमंजस अहइ सयानी। यह सुनि अपर कहइ मृदु बानी।। + +सखि इन्ह कहँ कोउ कोउ अस कहहीं। बड़ प्रभाउ देखत लघु अहहीं।। + +परसि जासु पद पंकज धूरी। तरी अहल्या कृत अघ भूरी।। + +सो कि रहिहि बिनु सिवधनु तोरें। यह प्रतीति परिहरिअ न भोरें।। + +जेहिं बिरंचि रचि सीय सँवारी। तेहिं स्यामल बरु रचेउ बिचारी।। + +तासु बचन सुनि सब हरषानीं। ऐसेइ होउ कहहिं मुदु बानी।।हियँ हरषहिं बरषहिं सुमन सुमुखि सुलोचनि बृंद। + +जाहिं जहाँ जहँ बंधु दोउ तहँ तहँ परमानंद।।223।।पुर पूरब दिसि गे दोउ भाई। जहँ धनुमख हित भूमि बनाई।। + +अति बिस्तार चारु गच ढारी। बिमल बेदिका रुचिर सँवारी।। + +चहुँ दिसि कंचन मंच बिसाला। रचे जहाँ बेठहिं महिपाला।। + +तेहि पाछें समीप चहुँ पासा। अपर मंच मंडली बिलासा।। + +कछुक ऊँचि सब भाँति सुहाई। बैठहिं नगर लोग जहँ जाई।। + +तिन्ह के निकट बिसाल सुहाए। धवल धाम बहुबरन बनाए।। + +जहँ बैंठैं देखहिं सब नारी। जथा जोगु निज कुल अनुहारी।। + +पुर बालक कहि कहि मृदु बचना। सादर प्रभुहि देखावहिं रचना।।सब सिसु एहि मिस प्रेमबस परसि मनोहर गात। + +तन पुलकहिं अति हरषु हियँ देखि देखि दोउ भ्रात।।224।।सिसु सब राम प्रेमबस जाने। प्रीति समेत निकेत बखाने।। + +निज निज रुचि सब लेंहिं बोलाई। सहित सनेह जाहिं दोउ भाई।। + +राम देखावहिं अनुजहि रचना। कहि मृदु मधुर मनोहर बचना।। + +लव निमेष महँ भुवन निकाया। रचइ जासु अनुसासन माया।। + +भगति हेतु सोइ दीनदयाला। चितवत चकित धनुष मखसाला।। + +कौतुक देखि चले गुरु पाहीं। जानि बिलंबु त्रास मन माहीं।। + +जासु त्रास डर कहुँ डर होई। भजन प्रभाउ देखावत सोई।। + +कहि बातें मृदु मधुर सुहाईं। किए बिदा बालक बरिआई।।सभय सप्रेम बिनीत अति सकुच सहित दोउ भाइ। + +गुर पद पंकज नाइ सिर बैठे आयसु पाइ।।225।।निसि प्रबेस मुनि आयसु दीन्हा। सबहीं संध्याबंदनु कीन्हा।। + +कहत कथा इतिहास पुरानी। रुचिर रजनि जुग जाम सिरानी।। + +मुनिबर सयन कीन्हि तब जाई। लगे चरन चापन दोउ भाई।। + +जिन्ह के चरन सरोरुह लागी। करत बिबिध जप जोग बिरागी।। + +तेइ दोउ बंधु प्रेम जनु जीते। गुर पद कमल पलोटत प्रीते।। + +बारबार मुनि अग्या दीन्ही। रघुबर जाइ सयन तब कीन्ही।। + +चापत चरन लखनु उर लाएँ। सभय सप्रेम परम सचु पाएँ।। + +पुनि पुनि प्रभु कह सोवहु ताता। पौढ़े धरि उर पद जलजाता।।उठे लखन निसि बिगत सुनि अरुनसिखा धुनि कान।। + +गुर तें पहिलेहिं जगतपति जागे रामु सुजान।।226।।सकल सौच करि जाइ नहाए। नित्य निबाहि मुनिहि सिर नाए।। + +समय जानि गुर आयसु पाई। लेन प्रसून चले दोउ भाई।। + +भूप बागु बर देखेउ जाई। जहँ बसंत रितु रही लोभाई।। + +लागे बिटप मनोहर नाना। बरन बरन बर बेलि बिताना।। + +नव पल्लव फल सुमान सुहाए। निज संपति सुर रूख लजाए।। + +चातक कोकिल कीर चकोरा। कूजत बिहग नटत कल मोरा।। + +मध्य बाग सरु सोह सुहावा। मनि सोपान बिचित्र बनावा।। + +बिमल सलिलु सरसिज बहुरंगा। जलखग कूजत गुंजत भृंगा।।बागु तड़ागु बिलोकि प्रभु हरषे बंधु समेत। + +परम रम्य आरामु यहु जो रामहि सुख देत।।227।।चहुँ दिसि चितइ पूँछि मालिगन। लगे लेन दल फूल मुदित मन।। + +तेहि अवसर सीता तहँ आई। गिरिजा पूजन जननि पठाई।। + +संग सखीं सब सुभग सयानी। गावहिं गीत मनोहर बानी।। + +सर समीप गिरिजा गृह सोहा। बरनि न जाइ देखि मनु मोहा।। + +मज्जनु करि सर सखिन्ह समेता। गई मुदित मन गौरि निकेता।। + +पूजा कीन्हि अधिक अनुरागा। निज अनुरूप सुभग बरु मागा।। + +एक सखी सिय संगु बिहाई। गई रही देखन फुलवाई।। + +तेहि दोउ बंधु बिलोके जाई। प्रेम बिबस सीता पहिं आई।।तासु दसा देखि सखिन्ह पुलक गात जलु नैन। + +कहु कारनु निज हरष कर पूछहि सब मृदु बैन।।228।।देखन बागु कुअँर दुइ आए। बय किसोर सब भाँति सुहाए।। + +स्याम गौर किमि कहौं बखानी। गिरा अनयन नयन बिनु बानी।। + +सुनि हरषीं सब सखीं सयानी। सिय हियँ अति उतकंठा जानी।। + +एक कहइ नृपसुत तेइ आली। सुने जे मुनि सँग आए काली।। + +जिन्ह निज रूप मोहनी डारी। कीन्ह स्वबस नगर नर नारी।। + +बरनत छबि जहँ तहँ सब लोगू। अवसि देखिअहिं देखन जोगू।। + +तासु वचन अति सियहि सुहाने। दरस लागि लोचन अकुलाने।। + +चली अग्र करि प्रिय सखि सोई। प्रीति पुरातन लखइ न कोई।।सुमिरि सीय नारद बचन उपजी प्रीति पुनीत।। + +चकित बिलोकति सकल दिसि जनु सिसु मृगी सभीत।।229।।कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि। कहत लखन सन रामु हृदयँ गुनि।। + +मानहुँ मदन दुंदुभी दीन्ही।।मनसा बिस्व बिजय कहँ कीन्ही।। + +अस कहि फिरि चितए तेहि ओरा। सिय मुख ससि भए नयन चकोरा।। + +भए बिलोचन चारु अचंचल। मनहुँ सकुचि निमि तजे दिगंचल।। + +देखि सीय सोभा सुखु पावा। हृदयँ सराहत बचनु न आवा।। + +जनु बिरंचि सब निज निपुनाई। बिरचि बिस्व कहँ प्रगटि देखाई।। + +सुंदरता कहुँ सुंदर करई। छबिगृहँ दीपसिखा जनु बरई।। + +सब उपमा कबि रहे जुठारी। केहिं पटतरौं बिदेहकुमारी।।सिय सोभा हियँ बरनि प्रभु आपनि दसा बिचारि। + +बोले सुचि मन अनुज सन बचन समय अनुहारि।।230।।तात जनकतनया यह सोई। धनुषजग्य जेहि कारन होई।। + +पूजन गौरि सखीं लै आई। करत प्रकासु फिरइ फुलवाई।। + +जासु बिलोकि अलोकिक सोभा। सहज पुनीत मोर मनु छोभा।। + +सो सबु कारन जान बिधाता। फरकहिं सुभद अंग सुनु भ्राता।। + +रघुबंसिन्ह कर सहज सुभाऊ। मनु कुपंथ पगु धरइ न काऊ।। + +मोहि अतिसय प्रतीति मन केरी। जेहिं सपनेहुँ परनारि न हेरी।। + +जिन्ह कै लहहिं न रिपु रन पीठी। नहिं पावहिं परतिय मनु डीठी।। + +मंगन लहहि न जिन्ह कै नाहीं। ते नरबर थोरे जग माहीं।।करत बतकहि अनुज सन मन सिय रूप लोभान। + +मुख सरोज मकरंद छबि करइ मधुप इव पान।।231।।चितवहि चकित चहूँ दिसि सीता। कहँ गए नृपकिसोर मनु चिंता।। + +जहँ बिलोक मृग सावक नैनी। जनु तहँ बरिस कमल सित श्रेनी।। + +लता ओट तब सखिन्ह लखाए। स्यामल गौर किसोर सुहाए।। + +देखि रूप लोचन ललचाने। हरषे जनु निज निधि पहिचाने।। + +थके नयन रघुपति छबि देखें। पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें।। + +अधिक सनेहँ देह भै भोरी। सरद ससिहि जनु चितव चकोरी।। + +लोचन मग रामहि उर आनी। दीन्हे पलक कपाट सयानी।। + +जब सिय सखिन्ह प्रेमबस जानी। कहि न सकहिं कछु मन सकुचानी।।लताभवन तें प्रगट भे तेहि अवसर दोउ भाइ। + +निकसे जनु जुग बिमल बिधु जलद पटल बिलगाइ।।232।।सोभा सीवँ सुभग दोउ बीरा। नील पीत जलजाभ सरीरा।। + +मोरपंख सिर सोहत नीके। गुच्छ बीच बिच कुसुम कली के।। + +भाल तिलक श्रमबिंदु सुहाए। श्रवन सुभग भूषन छबि छाए।। + +बिकट भृकुटि कच घूघरवारे। नव सरोज लोचन रतनारे।। + +चारु चिबुक नासिका कपोला। हास बिलास लेत मनु मोला।। + +मुखछबि कहि न जाइ मोहि पाहीं। जो बिलोकि बहु काम लजाहीं।। + +उर मनि माल कंबु कल गीवा। काम कलभ कर भुज बलसींवा।। + +सुमन समेत बाम कर दोना। सावँर कुअँर सखी सुठि लोना।।केहरि कटि पट पीत धर सुषमा सील निधान। + +देखि भानुकुलभूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।233।।धरि धीरजु एक आलि सयानी। सीता सन बोली गहि पानी।। + +बहुरि गौरि कर ध्यान करेहू। भूपकिसोर देखि किन लेहू।। + +सकुचि सीयँ तब नयन उघारे। सनमुख दोउ रघुसिंघ निहारे।। + +नख सिख देखि राम कै सोभा। सुमिरि पिता पनु मनु अति छोभा।। + +परबस सखिन्ह लखी जब सीता। भयउ गहरु सब कहहि सभीता।। + +पुनि आउब एहि बेरिआँ काली। अस कहि मन बिहसी एक आली।। + +गूढ़ गिरा सुनि सिय सकुचानी। भयउ बिलंबु मातु भय मानी।। + +धरि बड़ि धीर रामु उर आने। फिरि अपनपउ पितुबस जाने।।देखन मिस मृग बिहग तरु फिरइ बहोरि बहोरि। + +निरखि निरखि रघुबीर छबि बाढ़इ प्रीति न थोरि।। 234।।जानि कठिन सिवचाप बिसूरति। चली राखि उर स्यामल मूरति।। + +प्रभु जब जात जानकी जानी। सुख सनेह सोभा गुन खानी।। + +परम प्रेममय मृदु मसि कीन्ही। चारु चित भीतीं लिख लीन्ही।। + +गई भवानी भवन बहोरी। बंदि चरन बोली कर जोरी।। + +जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। + +जय गज बदन षड़ानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। + +नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। + +भव भव बिभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस ब���हारिनि।।पतिदेवता सुतीय महुँ मातु प्रथम तव रेख। + +महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा सेष।।235।।सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनी पुरारि पिआरी।। + +देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। + +मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही कें।। + +कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। + +बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। + +सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। + +सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। + +नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।।मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो। + +करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।। + +एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली। + +तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।।जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि। + +मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।236।।हृदयँ सराहत सीय लोनाई। गुर समीप गवने दोउ भाई।। + +राम कहा सबु कौसिक पाहीं। सरल सुभाउ छुअत छल नाहीं।। + +सुमन पाइ मुनि पूजा कीन्ही। पुनि असीस दुहु भाइन्ह दीन्ही।। + +सुफल मनोरथ होहुँ तुम्हारे। रामु लखनु सुनि भए सुखारे।। + +करि भोजनु मुनिबर बिग्यानी। लगे कहन कछु कथा पुरानी।। + +बिगत दिवसु गुरु आयसु पाई। संध्या करन चले दोउ भाई।। + +प्राची दिसि ससि उयउ सुहावा। सिय मुख सरिस देखि सुखु पावा।। + +बहुरि बिचारु कीन्ह मन माहीं। सीय बदन सम हिमकर नाहीं।।जनमु सिंधु पुनि बंधु बिषु दिन मलीन सकलंक। + +सिय मुख समता पाव किमि चंदु बापुरो रंक।।237।।घटइ बढ़इ बिरहनि दुखदाई। ग्रसइ राहु निज संधिहिं पाई।। + +कोक सिकप्रद पंकज द्रोही। अवगुन बहुत चंद्रमा तोही।। + +बैदेही मुख पटतर दीन्हे। होइ दोष बड़ अनुचित कीन्हे।। + +सिय मुख छबि बिधु ब्याज बखानी। गुरु पहिं चले निसा बड़ि जानी।। + +करि मुनि चरन सरोज प्रनामा। आयसु पाइ कीन्ह बिश्रामा।। + +बिगत निसा रघुनायक जागे। बंधु बिलोकि कहन अस लागे।। + +उदउ अरुन अवलोकहु ताता। पंकज कोक लोक सुखदाता।। + +बोले लखनु जोरि जुग पानी। प्रभु प्रभाउ सूचक मृदु बानी।।अरुनोदयँ सकुचे कुमुद उडगन जोति मलीन। + +जिमि तुम्हार आगमन सुनि भए नृपति बलहीन।।238।।नृप सब नखत करहिं उजिआरी। टारि न सकहिं चाप तम भारी।। + +कमल कोक मधुकर खग नाना। हरषे सकल निसा अवसाना।। + +ऐ��ेहिं प्रभु सब भगत तुम्हारे। होइहहिं टूटें धनुष सुखारे।। + +उयउ भानु बिनु श्रम तम नासा। दुरे नखत जग तेजु प्रकासा।। + +रबि निज उदय ब्याज रघुराया। प्रभु प्रतापु सब नृपन्ह दिखाया।। + +तव भुज बल महिमा उदघाटी। प्रगटी धनु बिघटन परिपाटी।। + +बंधु बचन सुनि प्रभु मुसुकाने। होइ सुचि सहज पुनीत नहाने।। + +नित्यक्रिया करि गुरु पहिं आए। चरन सरोज सुभग सिर नाए।। + +सतानंदु तब जनक बोलाए। कौसिक मुनि पहिं तुरत पठाए।। + +जनक बिनय तिन्ह आइ सुनाई। हरषे बोलि लिए दोउ भाई।।सतानंदपद बंदि प्रभु बैठे गुर पहिं जाइ। + +चलहु तात मुनि कहेउ तब पठवा जनक बोलाइ।।239।।सीय स्वयंबरु देखिअ जाई। ईसु काहि धौं देइ बड़ाई।। + +लखन कहा जस भाजनु सोई। नाथ कृपा तव जापर होई।। + +हरषे मुनि सब सुनि बर बानी। दीन्हि असीस सबहिं सुखु मानी।। + +पुनि मुनिबृंद समेत कृपाला। देखन चले धनुषमख साला।। + +रंगभूमि आए दोउ भाई। असि सुधि सब पुरबासिन्ह पाई।। + +चले सकल गृह काज बिसारी। बाल जुबान जरठ नर नारी।। + +देखी जनक भीर भै भारी। सुचि सेवक सब लिए हँकारी।। + +तुरत सकल लोगन्ह पहिं जाहू। आसन उचित देहू सब काहू।।कहि मृदु बचन बिनीत तिन्ह बैठारे नर नारि। + +उत्तम मध्यम नीच लघु निज निज थल अनुहारि।।240।।राजकुअँर तेहि अवसर आए। मनहुँ मनोहरता तन छाए।। + +गुन सागर नागर बर बीरा। सुंदर स्यामल गौर सरीरा।। + +राज समाज बिराजत रूरे। उडगन महुँ जनु जुग बिधु पूरे।। + +जिन्ह कें रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी।। + +देखहिं रूप महा रनधीरा। मनहुँ बीर रसु धरें सरीरा।। + +डरे कुटिल नृप प्रभुहि निहारी। मनहुँ भयानक मूरति भारी।। + +रहे असुर छल छोनिप बेषा। तिन्ह प्रभु प्रगट कालसम देखा।। + +पुरबासिन्ह देखे दोउ भाई। नरभूषन लोचन सुखदाई।।नारि बिलोकहिं हरषि हियँ निज निज रुचि अनुरूप। + +जनु सोहत सिंगार धरि मूरति परम अनूप।।241।।बिदुषन्ह प्रभु बिराटमय दीसा। बहु मुख कर पग लोचन सीसा।। + +जनक जाति अवलोकहिं कैसैं। सजन सगे प्रिय लागहिं जैसें।। + +सहित बिदेह बिलोकहिं रानी। सिसु सम प्रीति न जाति बखानी।। + +जोगिन्ह परम तत्वमय भासा। सांत सुद्ध सम सहज प्रकासा।। + +हरिभगतन्ह देखे दोउ भ्राता। इष्टदेव इव सब सुख दाता।। + +रामहि चितव भायँ जेहि सीया। सो सनेहु सुखु नहिं कथनीया।। + +उर अनुभवति न कहि सक सोऊ। कवन प्रकार कहै कबि कोऊ।। + +एहि बिधि रहा जाहि जस भाऊ��� तेहिं तस देखेउ कोसलराऊ।।राजत राज समाज महुँ कोसलराज किसोर। + +सुंदर स्यामल गौर तन बिस्व बिलोचन चोर।।242।।सहज मनोहर मूरति दोऊ। कोटि काम उपमा लघु सोऊ।। + +सरद चंद निंदक मुख नीके। नीरज नयन भावते जी के।। + +चितवत चारु मार मनु हरनी। भावति हृदय जाति नहीं बरनी।। + +कल कपोल श्रुति कुंडल लोला। चिबुक अधर सुंदर मृदु बोला।। + +कुमुदबंधु कर निंदक हाँसा। भृकुटी बिकट मनोहर नासा।। + +भाल बिसाल तिलक झलकाहीं। कच बिलोकि अलि अवलि लजाहीं।। + +पीत चौतनीं सिरन्हि सुहाई। कुसुम कलीं बिच बीच बनाईं।। + +रेखें रुचिर कंबु कल गीवाँ। जनु त्रिभुवन सुषमा की सीवाँ।।कुंजर मनि कंठा कलित उरन्हि तुलसिका माल। + +बृषभ कंध केहरि ठवनि बल निधि बाहु बिसाल।।243।।कटि तूनीर पीत पट बाँधे। कर सर धनुष बाम बर काँधे।। + +पीत जग्य उपबीत सुहाए। नख सिख मंजु महाछबि छाए।। + +देखि लोग सब भए सुखारे। एकटक लोचन चलत न तारे।। + +हरषे जनकु देखि दोउ भाई। मुनि पद कमल गहे तब जाई।। + +करि बिनती निज कथा सुनाई। रंग अवनि सब मुनिहि देखाई।। + +जहँ जहँ जाहि कुअँर बर दोऊ। तहँ तहँ चकित चितव सबु कोऊ।। + +निज निज रुख रामहि सबु देखा। कोउ न जान कछु मरमु बिसेषा।। + +भलि रचना मुनि नृप सन कहेऊ। राजाँ मुदित महासुख लहेऊ।।सब मंचन्ह ते मंचु एक सुंदर बिसद बिसाल। + +मुनि समेत दोउ बंधु तहँ बैठारे महिपाल।।244।।प्रभुहि देखि सब नृप हिंयँ हारे। जनु राकेस उदय भएँ तारे।। + +असि प्रतीति सब के मन माहीं। राम चाप तोरब सक नाहीं।। + +बिनु भंजेहुँ भव धनुषु बिसाला। मेलिहि सीय राम उर माला।। + +अस बिचारि गवनहु घर भाई। जसु प्रतापु बलु तेजु गवाँई।। + +बिहसे अपर भूप सुनि बानी। जे अबिबेक अंध अभिमानी।। + +तोरेहुँ धनुषु ब्याहु अवगाहा। बिनु तोरें को कुअँरि बिआहा।। + +एक बार कालउ किन होऊ। सिय हित समर जितब हम सोऊ।। + +यह सुनि अवर महिप मुसकाने। धरमसील हरिभगत सयाने।।सीय बिआहबि राम गरब दूरि करि नृपन्ह के।। + +जीति को सक संग्राम दसरथ के रन बाँकुरे।।245।।ब्यर्थ मरहु जनि गाल बजाई। मन मोदकन्हि कि भूख बुताई।। + +सिख हमारि सुनि परम पुनीता। जगदंबा जानहु जियँ सीता।। + +जगत पिता रघुपतिहि बिचारी। भरि लोचन छबि लेहु निहारी।। + +सुंदर सुखद सकल गुन रासी। ए दोउ बंधु संभु उर बासी।। + +सुधा समुद्र समीप बिहाई। मृगजलु निरखि मरहु कत धाई।। + +करहु जाइ जा कहुँ जोई भावा। हम तौ आजु जनम फलु पावा।। + +अस कहि भले भूप अनुरागे। रूप अनूप बिलोकन लागे।। + +देखहिं सुर नभ चढ़े बिमाना। बरषहिं सुमन करहिं कल गाना।।जानि सुअवसरु सीय तब पठई जनक बोलाई। + +चतुर सखीं सुंदर सकल सादर चलीं लवाईं।।246।।सिय सोभा नहिं जाइ बखानी। जगदंबिका रूप गुन खानी।। + +उपमा सकल मोहि लघु लागीं। प्राकृत नारि अंग अनुरागीं।। + +सिय बरनिअ तेइ उपमा देई। कुकबि कहाइ अजसु को लेई।। + +जौ पटतरिअ तीय सम सीया। जग असि जुबति कहाँ कमनीया।। + +गिरा मुखर तन अरध भवानी। रति अति दुखित अतनु पति जानी।। + +बिष बारुनी बंधु प्रिय जेही। कहिअ रमासम किमि बैदेही।। + +जौ छबि सुधा पयोनिधि होई। परम रूपमय कच्छप सोई।। + +सोभा रजु मंदरु सिंगारू। मथै पानि पंकज निज मारू।।एहि बिधि उपजै लच्छि जब सुंदरता सुख मूल। + +तदपि सकोच समेत कबि कहहिं सीय समतूल।।247।।चलिं संग लै सखीं सयानी। गावत गीत मनोहर बानी।। + +सोह नवल तनु सुंदर सारी। जगत जननि अतुलित छबि भारी।। + +भूषन सकल सुदेस सुहाए। अंग अंग रचि सखिन्ह बनाए।। + +रंगभूमि जब सिय पगु धारी। देखि रूप मोहे नर नारी।। + +हरषि सुरन्ह दुंदुभीं बजाई। बरषि प्रसून अपछरा गाई।। + +पानि सरोज सोह जयमाला। अवचट चितए सकल भुआला।। + +सीय चकित चित रामहि चाहा। भए मोहबस सब नरनाहा।। + +मुनि समीप देखे दोउ भाई। लगे ललकि लोचन निधि पाई।।गुरजन लाज समाजु बड़ देखि सीय सकुचानि।। + +लागि बिलोकन सखिन्ह तन रघुबीरहि उर आनि।।248।।राम रूपु अरु सिय छबि देखें। नर नारिन्ह परिहरीं निमेषें।। + +सोचहिं सकल कहत सकुचाहीं। बिधि सन बिनय करहिं मन माहीं।। + +हरु बिधि बेगि जनक जड़ताई। मति हमारि असि देहि सुहाई।। + +बिनु बिचार पनु तजि नरनाहु। सीय राम कर करै बिबाहू।। + +जग भल कहहि भाव सब काहू। हठ कीन्हे अंतहुँ उर दाहू।। + +एहिं लालसाँ मगन सब लोगू। बरु साँवरो जानकी जोगू।। + +तब बंदीजन जनक बौलाए। बिरिदावली कहत चलि आए।। + +कह नृप जाइ कहहु पन मोरा। चले भाट हियँ हरषु न थोरा।।बोले बंदी बचन बर सुनहु सकल महिपाल। + +पन बिदेह कर कहहिं हम भुजा उठाइ बिसाल।।249।।नृप भुजबल बिधु सिवधनु राहू। गरुअ कठोर बिदित सब काहू।। + +रावनु बानु महाभट भारे। देखि सरासन गवँहिं सिधारे।। + +सोइ पुरारि कोदंडु कठोरा। राज समाज आजु जोइ तोरा।। + +त्रिभुवन जय समेत बैदेही।।बिनहिं बिचार बरइ हठि तेही।। + +सुनि पन सकल भूप अभिलाषे। भटमानी अतिसय मन माखे।। + +परिकर बाँधि उठे अकुलाई। चले इष्टदेवन्ह सिर नाई।। + +तमकि ताकि तकि सिवधनु धरहीं। उठइ न कोटि भाँति बलु करहीं।। + +जिन्ह के कछु बिचारु मन माहीं। चाप समीप महीप न जाहीं।।तमकि धरहिं धनु मूढ़ नृप उठइ न चलहिं लजाइ। + +मनहुँ पाइ भट बाहुबलु अधिकु अधिकु गरुआइ।।250।।भूप सहस दस एकहि बारा। लगे उठावन टरइ न टारा।। + +डगइ न संभु सरासन कैसें। कामी बचन सती मनु जैसें।। + +सब नृप भए जोगु उपहासी। जैसें बिनु बिराग संन्यासी।। + +कीरति बिजय बीरता भारी। चले चाप कर बरबस हारी।। + +श्रीहत भए हारि हियँ राजा। बैठे निज निज जाइ समाजा।। + +नृपन्ह बिलोकि जनकु अकुलाने। बोले बचन रोष जनु साने।। + +दीप दीप के भूपति नाना। आए सुनि हम जो पनु ठाना।। + +देव दनुज धरि मनुज सरीरा। बिपुल बीर आए रनधीरा।।कुअँरि मनोहर बिजय बड़ि कीरति अति कमनीय। + +पावनिहार बिरंचि जनु रचेउ न धनु दमनीय।।251।।कहहु काहि यहु लाभु न भावा। काहुँ न संकर चाप चढ़ावा।। + +रहउ चढ़ाउब तोरब भाई। तिलु भरि भूमि न सके छड़ाई।। + +अब जनि कोउ माखै भट मानी। बीर बिहीन मही मैं जानी।। + +तजहु आस निज निज गृह जाहू। लिखा न बिधि बैदेहि बिबाहू।। + +सुकृत जाइ जौं पनु परिहरऊँ। कुअँरि कुआरि रहउ का करऊँ।। + +जो जनतेउँ बिनु भट भुबि भाई। तौ पनु करि होतेउँ न हँसाई।। + +जनक बचन सुनि सब नर नारी। देखि जानकिहि भए दुखारी।। + +माखे लखनु कुटिल भइँ भौंहें। रदपट फरकत नयन रिसौंहें।।कहि न सकत रघुबीर डर लगे बचन जनु बान। + +नाइ राम पद कमल सिरु बोले गिरा प्रमान।।252।।रघुबंसिन्ह महुँ जहँ कोउ होई। तेहिं समाज अस कहइ न कोई।। + +कही जनक जसि अनुचित बानी। बिद्यमान रघुकुल मनि जानी।। + +सुनहु भानुकुल पंकज भानू। कहउँ सुभाउ न कछु अभिमानू।। + +जौ तुम्हारि अनुसासन पावौं। कंदुक इव ब्रह्मांड उठावौं।। + +काचे घट जिमि डारौं फोरी। सकउँ मेरु मूलक जिमि तोरी।। + +तव प्रताप महिमा भगवाना। को बापुरो पिनाक पुराना।। + +नाथ जानि अस आयसु होऊ। कौतुकु करौं बिलोकिअ सोऊ।। + +कमल नाल जिमि चाफ चढ़ावौं। जोजन सत प्रमान लै धावौं।।तोरौं छत्रक दंड जिमि तव प्रताप बल नाथ। + +जौं न करौं प्रभु पद सपथ कर न धरौं धनु भाथ।।253।।लखन सकोप बचन जे बोले। डगमगानि महि दिग्गज डोले।। + +सकल लोक सब भूप डेराने। सिय हियँ हरषु जनकु सकुचाने।। + +गुर रघुपति सब मुनि मन माहीं। मुदित भए पुनि पुनि पुलकाहीं।। + +सयनहिं रघुपति लखनु नेवारे। प्रेम समेत निकट बैठ��रे।। + +बिस्वामित्र समय सुभ जानी। बोले अति सनेहमय बानी।। + +उठहु राम भंजहु भवचापा। मेटहु तात जनक परितापा।। + +सुनि गुरु बचन चरन सिरु नावा। हरषु बिषादु न कछु उर आवा।। + +ठाढ़े भए उठि सहज सुभाएँ। ठवनि जुबा मृगराजु लजाएँ।।उदित उदयगिरि मंच पर रघुबर बालपतंग। + +बिकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग।।254।।नृपन्ह केरि आसा निसि नासी। बचन नखत अवली न प्रकासी।। + +मानी महिप कुमुद सकुचाने। कपटी भूप उलूक लुकाने।। + +भए बिसोक कोक मुनि देवा। बरिसहिं सुमन जनावहिं सेवा।। + +गुर पद बंदि सहित अनुरागा। राम मुनिन्ह सन आयसु मागा।। + +सहजहिं चले सकल जग स्वामी। मत्त मंजु बर कुंजर गामी।। + +चलत राम सब पुर नर नारी। पुलक पूरि तन भए सुखारी।। + +बंदि पितर सुर सुकृत सँभारे। जौं कछु पुन्य प्रभाउ हमारे।। + +तौ सिवधनु मृनाल की नाईं। तोरहुँ राम गनेस गोसाईं।।रामहि प्रेम समेत लखि सखिन्ह समीप बोलाइ। + +सीता मातु सनेह बस बचन कहइ बिलखाइ।।255।।सखि सब कौतुक देखनिहारे। जेठ कहावत हितू हमारे।। + +कोउ न बुझाइ कहइ गुर पाहीं। ए बालक असि हठ भलि नाहीं।। + +रावन बान छुआ नहिं चापा। हारे सकल भूप करि दापा।। + +सो धनु राजकुअँर कर देहीं। बाल मराल कि मंदर लेहीं।। + +भूप सयानप सकल सिरानी। सखि बिधि गति कछु जाति न जानी।। + +बोली चतुर सखी मृदु बानी। तेजवंत लघु गनिअ न रानी।। + +कहँ कुंभज कहँ सिंधु अपारा। सोषेउ सुजसु सकल संसारा।। + +रबि मंडल देखत लघु लागा। उदयँ तासु तिभुवन तम भागा।।मंत्र परम लघु जासु बस बिधि हरि हर सुर सर्ब। + +महामत्त गजराज कहुँ बस कर अंकुस खर्ब।।256।।काम कुसुम धनु सायक लीन्हे। सकल भुवन अपने बस कीन्हे।। + +देबि तजिअ संसउ अस जानी। भंजब धनुष रामु सुनु रानी।। + +सखी बचन सुनि भै परतीती। मिटा बिषादु बढ़ी अति प्रीती।। + +तब रामहि बिलोकि बैदेही। सभय हृदयँ बिनवति जेहि तेही।। + +मनहीं मन मनाव अकुलानी। होहु प्रसन्न महेस भवानी।। + +करहु सफल आपनि सेवकाई। करि हितु हरहु चाप गरुआई।। + +गननायक बरदायक देवा। आजु लगें कीन्हिउँ तुअ सेवा।। + +बार बार बिनती सुनि मोरी। करहु चाप गुरुता अति थोरी।।देखि देखि रघुबीर तन सुर मनाव धरि धीर।। + +भरे बिलोचन प्रेम जल पुलकावली सरीर।।257।।नीकें निरखि नयन भरि सोभा। पितु पनु सुमिरि बहुरि मनु छोभा।। + +अहह तात दारुनि हठ ठानी। समुझत नहिं कछु लाभु न हानी।। + +सचिव सभय सिख देइ न कोई। बुध समाज ब���़ अनुचित होई।। + +कहँ धनु कुलिसहु चाहि कठोरा। कहँ स्यामल मृदुगात किसोरा।। + +बिधि केहि भाँति धरौं उर धीरा। सिरस सुमन कन बेधिअ हीरा।। + +सकल सभा कै मति भै भोरी। अब मोहि संभुचाप गति तोरी।। + +निज जड़ता लोगन्ह पर डारी। होहि हरुअ रघुपतिहि निहारी।। + +अति परिताप सीय मन माही। लव निमेष जुग सब सय जाहीं।।प्रभुहि चितइ पुनि चितव महि राजत लोचन लोल। + +खेलत मनसिज मीन जुग जनु बिधु मंडल डोल।।258।।गिरा अलिनि मुख पंकज रोकी। प्रगट न लाज निसा अवलोकी।। + +लोचन जलु रह लोचन कोना। जैसे परम कृपन कर सोना।। + +सकुची ब्याकुलता बड़ि जानी। धरि धीरजु प्रतीति उर आनी।। + +तन मन बचन मोर पनु साचा। रघुपति पद सरोज चितु राचा।। + +तौ भगवानु सकल उर बासी। करिहिं मोहि रघुबर कै दासी।। + +जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संहेहू।। + +प्रभु तन चितइ प्रेम तन ठाना। कृपानिधान राम सबु जाना।। + +सियहि बिलोकि तकेउ धनु कैसे। चितव गरुरु लघु ब्यालहि जैसे।।लखन लखेउ रघुबंसमनि ताकेउ हर कोदंडु। + +पुलकि गात बोले बचन चरन चापि ब्रह्मांडु।।259।।दिसकुंजरहु कमठ अहि कोला। धरहु धरनि धरि धीर न डोला।। + +रामु चहहिं संकर धनु तोरा। होहु सजग सुनि आयसु मोरा।। + +चाप सपीप रामु जब आए। नर नारिन्ह सुर सुकृत मनाए।। + +सब कर संसउ अरु अग्यानू। मंद महीपन्ह कर अभिमानू।। + +भृगुपति केरि गरब गरुआई। सुर मुनिबरन्ह केरि कदराई।। + +सिय कर सोचु जनक पछितावा। रानिन्ह कर दारुन दुख दावा।। + +संभुचाप बड बोहितु पाई। चढे जाइ सब संगु बनाई।। + +राम बाहुबल सिंधु अपारू। चहत पारु नहि कोउ कड़हारू।।राम बिलोके लोग सब चित्र लिखे से देखि। + +चितई सीय कृपायतन जानी बिकल बिसेषि।।260।।देखी बिपुल बिकल बैदेही। निमिष बिहात कलप सम तेही।। + +तृषित बारि बिनु जो तनु त्यागा। मुएँ करइ का सुधा तड़ागा।। + +का बरषा सब कृषी सुखानें। समय चुकें पुनि का पछितानें।। + +अस जियँ जानि जानकी देखी। प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेषी।। + +गुरहि प्रनामु मनहि मन कीन्हा। अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा।। + +दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ। पुनि नभ धनु मंडल सम भयऊ।। + +लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें।। + +तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर कठोरा।।भरे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले। + +चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरुम कलमले।। + +सुर असुर मुनि कर ���ान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं। + +कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारही।।संकर चापु जहाजु सागरु रघुबर बाहुबलु। + +बूड़ सो सकल समाजु चढ़ा जो प्रथमहिं मोह बस।।261।।प्रभु दोउ चापखंड महि डारे। देखि लोग सब भए सुखारे।। + +कोसिकरुप पयोनिधि पावन। प्रेम बारि अवगाहु सुहावन।। + +रामरूप राकेसु निहारी। बढ़त बीचि पुलकावलि भारी।। + +बाजे नभ गहगहे निसाना। देवबधू नाचहिं करि गाना।। + +ब्रह्मादिक सुर सिद्ध मुनीसा। प्रभुहि प्रसंसहि देहिं असीसा।। + +बरिसहिं सुमन रंग बहु माला। गावहिं किंनर गीत रसाला।। + +रही भुवन भरि जय जय बानी। धनुषभंग धुनि जात न जानी।। + +मुदित कहहिं जहँ तहँ नर नारी। भंजेउ राम संभुधनु भारी।।बंदी मागध सूतगन बिरुद बदहिं मतिधीर। + +करहिं निछावरि लोग सब हय गय धन मनि चीर।।262।।झाँझि मृदंग संख सहनाई। भेरि ढोल दुंदुभी सुहाई।। + +बाजहिं बहु बाजने सुहाए। जहँ तहँ जुबतिन्ह मंगल गाए।। + +सखिन्ह सहित हरषी अति रानी। सूखत धान परा जनु पानी।। + +जनक लहेउ सुखु सोचु बिहाई। पैरत थकें थाह जनु पाई।। + +श्रीहत भए भूप धनु टूटे। जैसें दिवस दीप छबि छूटे।। + +सीय सुखहि बरनिअ केहि भाँती। जनु चातकी पाइ जलु स्वाती।। + +रामहि लखनु बिलोकत कैसें। ससिहि चकोर किसोरकु जैसें।। + +सतानंद तब आयसु दीन्हा। सीताँ गमनु राम पहिं कीन्हा।।संग सखीं सुदंर चतुर गावहिं मंगलचार। + +गवनी बाल मराल गति सुषमा अंग अपार।।263।।सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसे। छबिगन मध्य महाछबि जैसें।। + +कर सरोज जयमाल सुहाई। बिस्व बिजय सोभा जेहिं छाई।। + +तन सकोचु मन परम उछाहू। गूढ़ प्रेमु लखि परइ न काहू।। + +जाइ समीप राम छबि देखी। रहि जनु कुँअरि चित्र अवरेखी।। + +चतुर सखीं लखि कहा बुझाई। पहिरावहु जयमाल सुहाई।। + +सुनत जुगल कर माल उठाई। प्रेम बिबस पहिराइ न जाई।। + +सोहत जनु जुग जलज सनाला। ससिहि सभीत देत जयमाला।। + +गावहिं छबि अवलोकि सहेली। सियँ जयमाल राम उर मेली।।रघुबर उर जयमाल देखि देव बरिसहिं सुमन। + +सकुचे सकल भुआल जनु बिलोकि रबि कुमुदगन।।264।।पुर अरु ब्योम बाजने बाजे। खल भए मलिन साधु सब राजे।। + +सुर किंनर नर नाग मुनीसा। जय जय जय कहि देहिं असीसा।। + +नाचहिं गावहिं बिबुध बधूटीं। बार बार कुसुमांजलि छूटीं।। + +जहँ तहँ बिप्र बेदधुनि करहीं। बंदी बिरदावलि उच्चरहीं।। + +महि पाताल नाक जसु ब्यापा। राम बरी सिय भंजेउ चापा।। + +करहिं आरती पुर नर नारी। देहिं निछावरि बित्त बिसारी।। + +सोहति सीय राम कै जौरी। छबि सिंगारु मनहुँ एक ठोरी।। + +सखीं कहहिं प्रभुपद गहु सीता। करति न चरन परस अति भीता।।गौतम तिय गति सुरति करि नहिं परसति पग पानि। + +मन बिहसे रघुबंसमनि प्रीति अलौकिक जानि।।265।।तब सिय देखि भूप अभिलाषे। कूर कपूत मूढ़ मन माखे।। + +उठि उठि पहिरि सनाह अभागे। जहँ तहँ गाल बजावन लागे।। + +लेहु छड़ाइ सीय कह कोऊ। धरि बाँधहु नृप बालक दोऊ।। + +तोरें धनुषु चाड़ नहिं सरई। जीवत हमहि कुअँरि को बरई।। + +जौं बिदेहु कछु करै सहाई। जीतहु समर सहित दोउ भाई।। + +साधु भूप बोले सुनि बानी। राजसमाजहि लाज लजानी।। + +बलु प्रतापु बीरता बड़ाई। नाक पिनाकहि संग सिधाई।। + +सोइ सूरता कि अब कहुँ पाई। असि बुधि तौ बिधि मुहँ मसि लाई।।देखहु रामहि नयन भरि तजि इरिषा मदु कोहु। + +लखन रोषु पावकु प्रबल जानि सलभ जनि होहु।।266।।बैनतेय बलि जिमि चह कागू। जिमि ससु चहै नाग अरि भागू।। + +जिमि चह कुसल अकारन कोही। सब संपदा चहै सिवद्रोही।। + +लोभी लोलुप कल कीरति चहई। अकलंकता कि कामी लहई।। + +हरि पद बिमुख परम गति चाहा। तस तुम्हार लालचु नरनाहा।। + +कोलाहलु सुनि सीय सकानी। सखीं लवाइ गईं जहँ रानी।। + +रामु सुभायँ चले गुरु पाहीं। सिय सनेहु बरनत मन माहीं।। + +रानिन्ह सहित सोचबस सीया। अब धौं बिधिहि काह करनीया।। + +भूप बचन सुनि इत उत तकहीं। लखनु राम डर बोलि न सकहीं।।अरुन नयन भृकुटी कुटिल चितवत नृपन्ह सकोप। + +मनहुँ मत्त गजगन निरखि सिंघकिसोरहि चोप।।267।।खरभरु देखि बिकल पुर नारीं। सब मिलि देहिं महीपन्ह गारीं।। + +तेहिं अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयसु भृगुकुल कमल पतंगा।। + +देखि महीप सकल सकुचाने। बाज झपट जनु लवा लुकाने।। + +गौरि सरीर भूति भल भ्राजा। भाल बिसाल त्रिपुंड बिराजा।। + +सीस जटा ससिबदनु सुहावा। रिसबस कछुक अरुन होइ आवा।। + +भृकुटी कुटिल नयन रिस राते। सहजहुँ चितवत मनहुँ रिसाते।। + +बृषभ कंध उर बाहु बिसाला। चारु जनेउ माल मृगछाला।। + +कटि मुनि बसन तून दुइ बाँधें। धनु सर कर कुठारु कल काँधें।।सांत बेषु करनी कठिन बरनि न जाइ सरुप। + +धरि मुनितनु जनु बीर रसु आयउ जहँ सब भूप।।268।।देखत भृगुपति बेषु कराला। उठे सकल भय बिकल भुआला।। + +पितु समेत कहि कहि निज नामा। लगे करन सब दंड प्रनामा।। + +जेहि सुभायँ चितवहिं हितु जानी। सो जानइ जनु आइ खुटानी।। + +जनक बह���रि आइ सिरु नावा। सीय बोलाइ प्रनामु करावा।। + +आसिष दीन्हि सखीं हरषानीं। निज समाज लै गई सयानीं।। + +बिस्वामित्रु मिले पुनि आई। पद सरोज मेले दोउ भाई।। + +रामु लखनु दसरथ के ढोटा। दीन्हि असीस देखि भल जोटा।। + +रामहि चितइ रहे थकि लोचन। रूप अपार मार मद मोचन।।बहुरि बिलोकि बिदेह सन कहहु काह अति भीर।। + +पूछत जानि अजान जिमि ब्यापेउ कोपु सरीर।।269।।समाचार कहि जनक सुनाए। जेहि कारन महीप सब आए।। + +सुनत बचन फिरि अनत निहारे। देखे चापखंड महि डारे।। + +अति रिस बोले बचन कठोरा। कहु जड़ जनक धनुष कै तोरा।। + +बेगि देखाउ मूढ़ न त आजू। उलटउँ महि जहँ लहि तव राजू।। + +अति डरु उतरु देत नृपु नाहीं। कुटिल भूप हरषे मन माहीं।। + +सुर मुनि नाग नगर नर नारी।।सोचहिं सकल त्रास उर भारी।। + +मन पछिताति सीय महतारी। बिधि अब सँवरी बात बिगारी।। + +भृगुपति कर सुभाउ सुनि सीता। अरध निमेष कलप सम बीता।।सभय बिलोके लोग सब जानि जानकी भीरु। + +हृदयँ न हरषु बिषादु कछु बोले श्रीरघुबीरु।।270।।नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।। + +आयसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।। + +सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरि करनी करि करिअ लराई।। + +सुनहु राम जेहिं सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।। + +सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।। + +सुनि मुनि बचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अपमाने।। + +बहु धनुहीं तोरीं लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।। + +एहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।रे नृप बालक कालबस बोलत तोहि न सँमार।। + +धनुही सम तिपुरारि धनु बिदित सकल संसार।।271।।लखन कहा हँसि हमरें जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।। + +का छति लाभु जून धनु तौरें। देखा राम नयन के भोरें।। + +छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू । + +बोले चितइ परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।। + +बालकु बोलि बधउँ नहिं तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।। + +बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्व बिदित छत्रियकुल द्रोही।। + +भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।। + +सहसबाहु भुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। + +गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।272।।बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महा भटमानी।। + +पुनि पुनि मोहि देखाव क��ठारू। चहत उड़ावन फूँकि पहारू।। + +इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।। + +देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।। + +भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहउँ रिस रोकी।। + +सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरें कुल इन्ह पर न सुराई।। + +बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहूँ पा परिअ तुम्हारें।। + +कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। + +सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गभीर।।273।।कौसिक सुनहु मंद यहु बालकु। कुटिल कालबस निज कुल घालकु।। + +भानु बंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुस अबुध असंकू।। + +काल कवलु होइहि छन माहीं। कहउँ पुकारि खोरि मोहि नाहीं।। + +तुम्ह हटकउ जौं चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।। + +लखन कहेउ मुनि सुजस तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।। + +अपने मुँह तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।। + +नहिं संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।। + +बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।।सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु। + +बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।274।।तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।। + +सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।। + +अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोगू।। + +बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब यहु मरनिहार भा साँचा।। + +कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।। + +खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगें अपराधी गुरुद्रोही।। + +उतर देत छोड़उँ बिनु मारें। केवल कौसिक सील तुम्हारें।। + +न त एहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।गाधिसूनु कह हृदयँ हँसि मुनिहि हरिअरइ सूझ। + +अयमय खाँड न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।275।।कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।। + +माता पितहि उरिन भए नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जीकें।। + +सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गए ब्याज बड़ बाढ़ा।। + +अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली।। + +सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।। + +भृगुबर परसु देखावहु मोही। बिप्र बिचारि बचउँ नृपद्रोही।। + +मिले न कबहुँ सुभट रन गाढ़े। द्विज देवता घरहि के बाढ़े।। + +अनुचित कहि सब लोग पुकारे। रघुपति सयनहिं लखनु नेवारे।।लखन उतर आहुति सरिस भृगुबर कोपु कृसानु। + +बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।276।।नाथ करहु बालक पर छोहू। सूध दूधमुख करिअ न कोहू।। + +जौं पै प्रभु प्रभाउ कछु जाना। तौ कि बराबरि करत अयाना।। + +जौं लरिका कछु अचगरि करहीं। गुर पितु मातु मोद मन भरहीं।। + +करिअ कृपा सिसु सेवक जानी। तुम्ह सम सील धीर मुनि ग्यानी।। + +राम बचन सुनि कछुक जुड़ाने। कहि कछु लखनु बहुरि मुसकाने।। + +हँसत देखि नख सिख रिस ब्यापी। राम तोर भ्राता बड़ पापी।। + +गौर सरीर स्याम मन माहीं। कालकूटमुख पयमुख नाहीं।। + +सहज टेढ़ अनुहरइ न तोही। नीचु मीचु सम देख न मौहीं।।लखन कहेउ हँसि सुनहु मुनि क्रोधु पाप कर मूल। + +जेहि बस जन अनुचित करहिं चरहिं बिस्व प्रतिकूल।।277।।मैं तुम्हार अनुचर मुनिराया। परिहरि कोपु करिअ अब दाया।। + +टूट चाप नहिं जुरहि रिसाने। बैठिअ होइहिं पाय पिराने।। + +जौ अति प्रिय तौ करिअ उपाई। जोरिअ कोउ बड़ गुनी बोलाई।। + +बोलत लखनहिं जनकु डेराहीं। मष्ट करहु अनुचित भल नाहीं।। + +थर थर कापहिं पुर नर नारी। छोट कुमार खोट बड़ भारी।। + +भृगुपति सुनि सुनि निरभय बानी। रिस तन जरइ होइ बल हानी।। + +बोले रामहि देइ निहोरा। बचउँ बिचारि बंधु लघु तोरा।। + +मनु मलीन तनु सुंदर कैसें। बिष रस भरा कनक घटु जैसैं।।सुनि लछिमन बिहसे बहुरि नयन तरेरे राम। + +गुर समीप गवने सकुचि परिहरि बानी बाम।।278।।अति बिनीत मृदु सीतल बानी। बोले रामु जोरि जुग पानी।। + +सुनहु नाथ तुम्ह सहज सुजाना। बालक बचनु करिअ नहिं काना।। + +बररै बालक एकु सुभाऊ। इन्हहि न संत बिदूषहिं काऊ।। + +तेहिं नाहीं कछु काज बिगारा। अपराधी में नाथ तुम्हारा।। + +कृपा कोपु बधु बँधब गोसाईं। मो पर करिअ दास की नाई।। + +कहिअ बेगि जेहि बिधि रिस जाई। मुनिनायक सोइ करौं उपाई।। + +कह मुनि राम जाइ रिस कैसें। अजहुँ अनुज तव चितव अनैसें।। + +एहि के कंठ कुठारु न दीन्हा। तौ मैं काह कोपु करि कीन्हा।।गर्भ स्त्रवहिं अवनिप रवनि सुनि कुठार गति घोर। + +परसु अछत देखउँ जिअत बैरी भूपकिसोर।।279।।बहइ न हाथु दहइ रिस छाती। भा कुठारु कुंठित नृपघाती।। + +भयउ बाम बिधि फिरेउ सुभाऊ। मोरे हृदयँ कृपा कसि काऊ।। + +आजु दया दुखु दुसह सहावा। सुनि सौमित्र बिहसि सिरु नावा।। + +बाउ कृपा मूरति अनुकूला। बोलत बचन झरत जनु फूला।। + +जौं पै कृपाँ जरिहिं मुनि गाता। क्रोध भएँ तनु राख बिधाता।। + +देखु जनक हठ��� बालक एहू। कीन्ह चहत जड़ जमपुर गेहू।। + +बेगि करहु किन आँखिन्ह ओटा। देखत छोट खोट नृप ढोटा।। + +बिहसे लखनु कहा मन माहीं। मूदें आँखि कतहुँ कोउ नाहीं।।परसुरामु तब राम प्रति बोले उर अति क्रोधु। + +संभु सरासनु तोरि सठ करसि हमार प्रबोधु।।280।।बंधु कहइ कटु संमत तोरें। तू छल बिनय करसि कर जोरें।। + +करु परितोषु मोर संग्रामा। नाहिं त छाड़ कहाउब रामा।। + +छलु तजि करहि समरु सिवद्रोही। बंधु सहित न त मारउँ तोही।। + +भृगुपति बकहिं कुठार उठाएँ। मन मुसकाहिं रामु सिर नाएँ।। + +गुनह लखन कर हम पर रोषू। कतहुँ सुधाइहु ते बड़ दोषू।। + +टेढ़ जानि सब बंदइ काहू। बक्र चंद्रमहि ग्रसइ न राहू।। + +राम कहेउ रिस तजिअ मुनीसा। कर कुठारु आगें यह सीसा।। + +जेंहिं रिस जाइ करिअ सोइ स्वामी। मोहि जानि आपन अनुगामी।।प्रभुहि सेवकहि समरु कस तजहु बिप्रबर रोसु। + +बेषु बिलोकें कहेसि कछु बालकहू नहिं दोसु।।281।।देखि कुठार बान धनु धारी। भै लरिकहि रिस बीरु बिचारी।। + +नामु जान पै तुम्हहि न चीन्हा। बंस सुभायँ उतरु तेंहिं दीन्हा।। + +जौं तुम्ह औतेहु मुनि की नाईं। पद रज सिर सिसु धरत गोसाईं।। + +छमहु चूक अनजानत केरी। चहिअ बिप्र उर कृपा घनेरी।। + +हमहि तुम्हहि सरिबरि कसि नाथा।।कहहु न कहाँ चरन कहँ माथा।। + +राम मात्र लघु नाम हमारा। परसु सहित बड़ नाम तोहारा।। + +देव एकु गुनु धनुष हमारें। नव गुन परम पुनीत तुम्हारें।। + +सब प्रकार हम तुम्ह सन हारे। छमहु बिप्र अपराध हमारे।।बार बार मुनि बिप्रबर कहा राम सन राम। + +बोले भृगुपति सरुष हसि तहूँ बंधु सम बाम।।282।।निपटहिं द्विज करि जानहि मोही। मैं जस बिप्र सुनावउँ तोही।। + +चाप स्त्रुवा सर आहुति जानू। कोप मोर अति घोर कृसानु।। + +समिधि सेन चतुरंग सुहाई। महा महीप भए पसु आई।। + +मै एहि परसु काटि बलि दीन्हे। समर जग्य जप कोटिन्ह कीन्हे।। + +मोर प्रभाउ बिदित नहिं तोरें। बोलसि निदरि बिप्र के भोरें।। + +भंजेउ चापु दापु बड़ बाढ़ा। अहमिति मनहुँ जीति जगु ठाढ़ा।। + +राम कहा मुनि कहहु बिचारी। रिस अति बड़ि लघु चूक हमारी।। + +छुअतहिं टूट पिनाक पुराना। मैं कहि हेतु करौं अभिमाना।।जौं हम निदरहिं बिप्र बदि सत्य सुनहु भृगुनाथ। + +तौ अस को जग सुभटु जेहि भय बस नावहिं माथ।।283।।देव दनुज भूपति भट नाना। समबल अधिक होउ बलवाना।। + +जौं रन हमहि पचारै कोऊ। लरहिं सुखेन कालु किन होऊ।। + +छत्रिय तन��� धरि समर सकाना। कुल कलंकु तेहिं पावँर आना।। + +कहउँ सुभाउ न कुलहि प्रसंसी। कालहु डरहिं न रन रघुबंसी।। + +बिप्रबंस कै असि प्रभुताई। अभय होइ जो तुम्हहि डेराई।। + +सुनु मृदु गूढ़ बचन रघुपति के। उघरे पटल परसुधर मति के।। + +राम रमापति कर धनु लेहू। खैंचहु मिटै मोर संदेहू।। + +देत चापु आपुहिं चलि गयऊ। परसुराम मन बिसमय भयऊ।।जाना राम प्रभाउ तब पुलक प्रफुल्लित गात। + +जोरि पानि बोले बचन ह्दयँ न प्रेमु अमात।।284।।जय रघुबंस बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृसानु।। + +जय सुर बिप्र धेनु हितकारी। जय मद मोह कोह भ्रम हारी।। + +बिनय सील करुना गुन सागर। जयति बचन रचना अति नागर।। + +सेवक सुखद सुभग सब अंगा। जय सरीर छबि कोटि अनंगा।। + +करौं काह मुख एक प्रसंसा। जय महेस मन मानस हंसा।। + +अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमामंदिर दोउ भ्राता।। + +कहि जय जय जय रघुकुलकेतू। भृगुपति गए बनहि तप हेतू।। + +अपभयँ कुटिल महीप डेराने। जहँ तहँ कायर गवँहिं पराने।।देवन्ह दीन्हीं दुंदुभीं प्रभु पर बरषहिं फूल। + +हरषे पुर नर नारि सब मिटी मोहमय सूल।।285।।अति गहगहे बाजने बाजे। सबहिं मनोहर मंगल साजे।। + +जूथ जूथ मिलि सुमुख सुनयनीं। करहिं गान कल कोकिलबयनी।। + +सुखु बिदेह कर बरनि न जाई। जन्मदरिद्र मनहुँ निधि पाई।। + +गत त्रास भइ सीय सुखारी। जनु बिधु उदयँ चकोरकुमारी।। + +जनक कीन्ह कौसिकहि प्रनामा। प्रभु प्रसाद धनु भंजेउ रामा।। + +मोहि कृतकृत्य कीन्ह दुहुँ भाईं। अब जो उचित सो कहिअ गोसाई।। + +कह मुनि सुनु नरनाथ प्रबीना। रहा बिबाहु चाप आधीना।। + +टूटतहीं धनु भयउ बिबाहू। सुर नर नाग बिदित सब काहु।।तदपि जाइ तुम्ह करहु अब जथा बंस ब्यवहारु। + +बूझि बिप्र कुलबृद्ध गुर बेद बिदित आचारु।।286।।दूत अवधपुर पठवहु जाई। आनहिं नृप दसरथहि बोलाई।। + +मुदित राउ कहि भलेहिं कृपाला। पठए दूत बोलि तेहि काला।। + +बहुरि महाजन सकल बोलाए। आइ सबन्हि सादर सिर नाए।। + +हाट बाट मंदिर सुरबासा। नगरु सँवारहु चारिहुँ पासा।। + +हरषि चले निज निज गृह आए। पुनि परिचारक बोलि पठाए।। + +रचहु बिचित्र बितान बनाई। सिर धरि बचन चले सचु पाई।। + +पठए बोलि गुनी तिन्ह नाना। जे बितान बिधि कुसल सुजाना।। + +बिधिहि बंदि तिन्ह कीन्ह अरंभा। बिरचे कनक कदलि के खंभा।।हरित मनिन्ह के पत्र फल पदुमराग के फूल। + +रचना देखि बिचित्र अति मनु बिरंचि कर भूल।।287।।बेनि हरित मनिमय सब कीन्हे। सरल सपरब परहिं नहिं चीन्हे।। + +कनक कलित अहिबेल बनाई। लखि नहि परइ सपरन सुहाई।। + +तेहि के रचि पचि बंध बनाए। बिच बिच मुकता दाम सुहाए।। + +मानिक मरकत कुलिस पिरोजा। चीरि कोरि पचि रचे सरोजा।। + +किए भृंग बहुरंग बिहंगा। गुंजहिं कूजहिं पवन प्रसंगा।। + +सुर प्रतिमा खंभन गढ़ी काढ़ी। मंगल द्रब्य लिएँ सब ठाढ़ी।। + +चौंकें भाँति अनेक पुराईं। सिंधुर मनिमय सहज सुहाई।।सौरभ पल्लव सुभग सुठि किए नीलमनि कोरि।। + +हेम बौर मरकत घवरि लसत पाटमय डोरि।।288।।रचे रुचिर बर बंदनिबारे। मनहुँ मनोभवँ फंद सँवारे।। + +मंगल कलस अनेक बनाए। ध्वज पताक पट चमर सुहाए।। + +दीप मनोहर मनिमय नाना। जाइ न बरनि बिचित्र बिताना।। + +जेहिं मंडप दुलहिनि बैदेही। सो बरनै असि मति कबि केही।। + +दूलहु रामु रूप गुन सागर। सो बितानु तिहुँ लोक उजागर।। + +जनक भवन कै सौभा जैसी। गृह गृह प्रति पुर देखिअ तैसी।। + +जेहिं तेरहुति तेहि समय निहारी। तेहि लघु लगहिं भुवन दस चारी।। + +जो संपदा नीच गृह सोहा। सो बिलोकि सुरनायक मोहा।।बसइ नगर जेहि लच्छ करि कपट नारि बर बेषु।। + +तेहि पुर कै सोभा कहत सकुचहिं सारद सेषु।।289।।पहुँचे दूत राम पुर पावन। हरषे नगर बिलोकि सुहावन।। + +भूप द्वार तिन्ह खबरि जनाई। दसरथ नृप सुनि लिए बोलाई।। + +करि प्रनामु तिन्ह पाती दीन्ही। मुदित महीप आपु उठि लीन्ही।। + +बारि बिलोचन बाचत पाँती। पुलक गात आई भरि छाती।। + +रामु लखनु उर कर बर चीठी। रहि गए कहत न खाटी मीठी।। + +पुनि धरि धीर पत्रिका बाँची। हरषी सभा बात सुनि साँची।। + +खेलत रहे तहाँ सुधि पाई। आए भरतु सहित हित भाई।। + +पूछत अति सनेहँ सकुचाई। तात कहाँ तें पाती आई।।कुसल प्रानप्रिय बंधु दोउ अहहिं कहहु केहिं देस। + +सुनि सनेह साने बचन बाची बहुरि नरेस।।290।।सुनि पाती पुलके दोउ भ्राता। अधिक सनेहु समात न गाता।। + +प्रीति पुनीत भरत कै देखी। सकल सभाँ सुखु लहेउ बिसेषी।। + +तब नृप दूत निकट बैठारे। मधुर मनोहर बचन उचारे।। + +भैया कहहु कुसल दोउ बारे। तुम्ह नीकें निज नयन निहारे।। + +स्यामल गौर धरें धनु भाथा। बय किसोर कौसिक मुनि साथा।। + +पहिचानहु तुम्ह कहहु सुभाऊ। प्रेम बिबस पुनि पुनि कह राऊ।। + +जा दिन तें मुनि गए लवाई। तब तें आजु साँचि सुधि पाई।। + +कहहु बिदेह कवन बिधि जाने। सुनि प्रिय बचन दूत मुसकाने।।सुनहु महीपति मुकुट मनि तुम्ह सम धन्य न क��उ। + +रामु लखनु जिन्ह के तनय बिस्व बिभूषन दोउ।।291।।पूछन जोगु न तनय तुम्हारे। पुरुषसिंघ तिहु पुर उजिआरे।। + +जिन्ह के जस प्रताप कें आगे। ससि मलीन रबि सीतल लागे।। + +तिन्ह कहँ कहिअ नाथ किमि चीन्हे। देखिअ रबि कि दीप कर लीन्हे।। + +सीय स्वयंबर भूप अनेका। समिटे सुभट एक तें एका।। + +संभु सरासनु काहुँ न टारा। हारे सकल बीर बरिआरा।। + +तीनि लोक महँ जे भटमानी। सभ कै सकति संभु धनु भानी।। + +सकइ उठाइ सरासुर मेरू। सोउ हियँ हारि गयउ करि फेरू।। + +जेहि कौतुक सिवसैलु उठावा। सोउ तेहि सभाँ पराभउ पावा।।तहाँ राम रघुबंस मनि सुनिअ महा महिपाल। + +भंजेउ चाप प्रयास बिनु जिमि गज पंकज नाल।।292।।सुनि सरोष भृगुनायकु आए। बहुत भाँति तिन्ह आँखि देखाए।। + +देखि राम बलु निज धनु दीन्हा। करि बहु बिनय गवनु बन कीन्हा।। + +राजन रामु अतुलबल जैसें। तेज निधान लखनु पुनि तैसें।। + +कंपहि भूप बिलोकत जाकें। जिमि गज हरि किसोर के ताकें।। + +देव देखि तव बालक दोऊ। अब न आँखि तर आवत कोऊ।। + +दूत बचन रचना प्रिय लागी। प्रेम प्रताप बीर रस पागी।। + +सभा समेत राउ अनुरागे। दूतन्ह देन निछावरि लागे।। + +कहि अनीति ते मूदहिं काना। धरमु बिचारि सबहिं सुख माना।।तब उठि भूप बसिष्ठ कहुँ दीन्हि पत्रिका जाइ। + +कथा सुनाई गुरहि सब सादर दूत बोलाइ।।293।।सुनि बोले गुर अति सुखु पाई। पुन्य पुरुष कहुँ महि सुख छाई।। + +जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।। + +तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।। + +तुम्ह गुर बिप्र धेनु सुर सेबी। तसि पुनीत कौसल्या देबी।। + +सुकृती तुम्ह समान जग माहीं। भयउ न है कोउ होनेउ नाहीं।। + +तुम्ह ते अधिक पुन्य बड़ काकें। राजन राम सरिस सुत जाकें।। + +बीर बिनीत धरम ब्रत धारी। गुन सागर बर बालक चारी।। + +तुम्ह कहुँ सर्ब काल कल्याना। सजहु बरात बजाइ निसाना।।चलहु बेगि सुनि गुर बचन भलेहिं नाथ सिरु नाइ। + +भूपति गवने भवन तब दूतन्ह बासु देवाइ।।294।।राजा सबु रनिवास बोलाई। जनक पत्रिका बाचि सुनाई।। + +सुनि संदेसु सकल हरषानीं। अपर कथा सब भूप बखानीं।। + +प्रेम प्रफुल्लित राजहिं रानी। मनहुँ सिखिनि सुनि बारिद बनी।। + +मुदित असीस देहिं गुरु नारीं। अति आनंद मगन महतारीं।। + +लेहिं परस्पर अति प्रिय पाती। हृदयँ लगाइ जुड़ावहिं छाती।। + +राम लखन कै कीरति करनी। बारहिं बार भूपबर बरनी।। + +मुनि प्रसादु कहि द्वार सिधाए। रानिन्ह तब महिदेव बोलाए।। + +दिए दान आनंद समेता। चले बिप्रबर आसिष देता।।जाचक लिए हँकारि दीन्हि निछावरि कोटि बिधि। + +चिरु जीवहुँ सुत चारि चक्रबर्ति दसरत्थ के।।295।।कहत चले पहिरें पट नाना। हरषि हने गहगहे निसाना।। + +समाचार सब लोगन्ह पाए। लागे घर घर होने बधाए।। + +भुवन चारि दस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।। + +सुनि सुभ कथा लोग अनुरागे। मग गृह गलीं सँवारन लागे।। + +जद्यपि अवध सदैव सुहावनि। राम पुरी मंगलमय पावनि।। + +तदपि प्रीति कै प्रीति सुहाई। मंगल रचना रची बनाई।। + +ध्वज पताक पट चामर चारु। छावा परम बिचित्र बजारू।। + +कनक कलस तोरन मनि जाला। हरद दूब दधि अच्छत माला।।मंगलमय निज निज भवन लोगन्ह रचे बनाइ। + +बीथीं सीचीं चतुरसम चौकें चारु पुराइ।।296।।जहँ तहँ जूथ जूथ मिलि भामिनि। सजि नव सप्त सकल दुति दामिनि।। + +बिधुबदनीं मृग सावक लोचनि। निज सरुप रति मानु बिमोचनि।। + +गावहिं मंगल मंजुल बानीं। सुनिकल रव कलकंठि लजानीं।। + +भूप भवन किमि जाइ बखाना। बिस्व बिमोहन रचेउ बिताना।। + +मंगल द्रब्य मनोहर नाना। राजत बाजत बिपुल निसाना।। + +कतहुँ बिरिद बंदी उच्चरहीं। कतहुँ बेद धुनि भूसुर करहीं।। + +गावहिं सुंदरि मंगल गीता। लै लै नामु रामु अरु सीता।। + +बहुत उछाहु भवनु अति थोरा। मानहुँ उमगि चला चहु ओरा।।सोभा दसरथ भवन कइ को कबि बरनै पार। + +जहाँ सकल सुर सीस मनि राम लीन्ह अवतार।।297।।भूप भरत पुनि लिए बोलाई। हय गय स्यंदन साजहु जाई।। + +चलहु बेगि रघुबीर बराता। सुनत पुलक पूरे दोउ भ्राता।। + +भरत सकल साहनी बोलाए। आयसु दीन्ह मुदित उठि धाए।। + +रचि रुचि जीन तुरग तिन्ह साजे। बरन बरन बर बाजि बिराजे।। + +सुभग सकल सुठि चंचल करनी। अय इव जरत धरत पग धरनी।। + +नाना जाति न जाहिं बखाने। निदरि पवनु जनु चहत उड़ाने।। + +तिन्ह सब छयल भए असवारा। भरत सरिस बय राजकुमारा।। + +सब सुंदर सब भूषनधारी। कर सर चाप तून कटि भारी।।छरे छबीले छयल सब सूर सुजान नबीन। + +जुग पदचर असवार प्रति जे असिकला प्रबीन।।298।।बाँधे बिरद बीर रन गाढ़े। निकसि भए पुर बाहेर ठाढ़े।। + +फेरहिं चतुर तुरग गति नाना। हरषहिं सुनि सुनि पवन निसाना।। + +रथ सारथिन्ह बिचित्र बनाए। ध्वज पताक मनि भूषन लाए।। + +चवँर चारु किंकिन धुनि करही। भानु जान सोभा अपहरहीं।। + +सावँकरन अगनित हय होते। ते तिन्ह रथन्ह सारथिन्ह जोते।। + +सुंदर सकल अलंकृत सोहे। जिन्हहि बिलोकत मुनि मन मोहे।। + +जे जल चलहिं थलहि की नाई। टाप न बूड़ बेग अधिकाई।। + +अस्त्र सस्त्र सबु साजु बनाई। रथी सारथिन्ह लिए बोलाई।।चढ़ि चढ़ि रथ बाहेर नगर लागी जुरन बरात। + +होत सगुन सुन्दर सबहि जो जेहि कारज जात।।299।।कलित करिबरन्हि परीं अँबारीं। कहि न जाहिं जेहि भाँति सँवारीं।। + +चले मत्तगज घंट बिराजी। मनहुँ सुभग सावन घन राजी।। + +बाहन अपर अनेक बिधाना। सिबिका सुभग सुखासन जाना।। + +तिन्ह चढ़ि चले बिप्रबर बृन्दा। जनु तनु धरें सकल श्रुति छंदा।। + +मागध सूत बंदि गुनगायक। चले जान चढ़ि जो जेहि लायक।। + +बेसर ऊँट बृषभ बहु जाती। चले बस्तु भरि अगनित भाँती।। + +कोटिन्ह काँवरि चले कहारा। बिबिध बस्तु को बरनै पारा।। + +चले सकल सेवक समुदाई। निज निज साजु समाजु बनाई।।सब कें उर निर्भर हरषु पूरित पुलक सरीर। + +कबहिं देखिबे नयन भरि रामु लखनू दोउ बीर।।300।।गरजहिं गज घंटा धुनि घोरा। रथ रव बाजि हिंस चहु ओरा।। + +निदरि घनहि घुर्म्मरहिं निसाना। निज पराइ कछु सुनिअ न काना।। + +महा भीर भूपति के द्वारें। रज होइ जाइ पषान पबारें।। + +चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नारीं। लिंएँ आरती मंगल थारी।। + +गावहिं गीत मनोहर नाना। अति आनंदु न जाइ बखाना।। + +तब सुमंत्र दुइ स्पंदन साजी। जोते रबि हय निंदक बाजी।। + +दोउ रथ रुचिर भूप पहिं आने। नहिं सारद पहिं जाहिं बखाने।। + +राज समाजु एक रथ साजा। दूसर तेज पुंज अति भ्राजा।।तेहिं रथ रुचिर बसिष्ठ कहुँ हरषि चढ़ाइ नरेसु। + +आपु चढ़ेउ स्पंदन सुमिरि हर गुर गौरि गनेसु।।301।।सहित बसिष्ठ सोह नृप कैसें। सुर गुर संग पुरंदर जैसें।। + +करि कुल रीति बेद बिधि राऊ। देखि सबहि सब भाँति बनाऊ।। + +सुमिरि रामु गुर आयसु पाई। चले महीपति संख बजाई।। + +हरषे बिबुध बिलोकि बराता। बरषहिं सुमन सुमंगल दाता।। + +भयउ कोलाहल हय गय गाजे। ब्योम बरात बाजने बाजे।। + +सुर नर नारि सुमंगल गाई। सरस राग बाजहिं सहनाई।। + +घंट घंटि धुनि बरनि न जाहीं। सरव करहिं पाइक फहराहीं।। + +करहिं बिदूषक कौतुक नाना। हास कुसल कल गान सुजाना ।तुरग नचावहिं कुँअर बर अकनि मृदंग निसान।। + +नागर नट चितवहिं चकित डगहिं न ताल बँधान।।302।।बनइ न बरनत बनी बराता। होहिं सगुन सुंदर सुभदाता।। + +चारा चाषु बाम दिसि लेई। मनहुँ सकल मंगल कहि देई।। + +दाहिन काग सुखेत सुहावा। नकुल दरसु सब काहूँ पावा।। + +सानुकूल बह त्रिबिध बयारी। सघट सवाल आव बर नारी।। + +लोवा फिरि फिरि दरसु देखावा। सुरभी सनमुख सिसुहि पिआवा।। + +मृगमाला फिरि दाहिनि आई। मंगल गन जनु दीन्हि देखाई।। + +छेमकरी कह छेम बिसेषी। स्यामा बाम सुतरु पर देखी।। + +सनमुख आयउ दधि अरु मीना। कर पुस्तक दुइ बिप्र प्रबीना।।मंगलमय कल्यानमय अभिमत फल दातार। + +जनु सब साचे होन हित भए सगुन एक बार।।303।।मंगल सगुन सुगम सब ताकें। सगुन ब्रह्म सुंदर सुत जाकें।। + +राम सरिस बरु दुलहिनि सीता। समधी दसरथु जनकु पुनीता।। + +सुनि अस ब्याहु सगुन सब नाचे। अब कीन्हे बिरंचि हम साँचे।। + +एहि बिधि कीन्ह बरात पयाना। हय गय गाजहिं हने निसाना।। + +आवत जानि भानुकुल केतू। सरितन्हि जनक बँधाए सेतू।। + +बीच बीच बर बास बनाए। सुरपुर सरिस संपदा छाए।। + +असन सयन बर बसन सुहाए। पावहिं सब निज निज मन भाए।। + +नित नूतन सुख लखि अनुकूले। सकल बरातिन्ह मंदिर भूले।।आवत जानि बरात बर सुनि गहगहे निसान। + +सजि गज रथ पदचर तुरग लेन चले अगवान।।304।।कनक कलस भरि कोपर थारा। भाजन ललित अनेक प्रकारा।। + +भरे सुधासम सब पकवाने। नाना भाँति न जाहिं बखाने।। + +फल अनेक बर बस्तु सुहाईं। हरषि भेंट हित भूप पठाईं।। + +भूषन बसन महामनि नाना। खग मृग हय गय बहुबिधि जाना।। + +मंगल सगुन सुगंध सुहाए। बहुत भाँति महिपाल पठाए।। + +दधि चिउरा उपहार अपारा। भरि भरि काँवरि चले कहारा।। + +अगवानन्ह जब दीखि बराता।उर आनंदु पुलक भर गाता।। + +देखि बनाव सहित अगवाना। मुदित बरातिन्ह हने निसाना।।हरषि परसपर मिलन हित कछुक चले बगमेल। + +जनु आनंद समुद्र दुइ मिलत बिहाइ सुबेल।।305।।बरषि सुमन सुर सुंदरि गावहिं। मुदित देव दुंदुभीं बजावहिं।। + +बस्तु सकल राखीं नृप आगें। बिनय कीन्ह तिन्ह अति अनुरागें।। + +प्रेम समेत रायँ सबु लीन्हा। भै बकसीस जाचकन्हि दीन्हा।। + +करि पूजा मान्यता बड़ाई। जनवासे कहुँ चले लवाई।। + +बसन बिचित्र पाँवड़े परहीं। देखि धनहु धन मदु परिहरहीं।। + +अति सुंदर दीन्हेउ जनवासा। जहँ सब कहुँ सब भाँति सुपासा।। + +जानी सियँ बरात पुर आई। कछु निज महिमा प्रगटि जनाई।। + +हृदयँ सुमिरि सब सिद्धि बोलाई। भूप पहुनई करन पठाई।।सिधि सब सिय आयसु अकनि गईं जहाँ जनवास। + +लिएँ संपदा सकल सुख सुरपुर भोग बिलास।।306।।निज निज बास बिलोकि बराती। सुर सुख सकल सुलभ सब भाँती।। + +बिभव भेद कछु कोउ न जाना। सकल जनक कर क���हिं बखाना।। + +सिय महिमा रघुनायक जानी। हरषे हृदयँ हेतु पहिचानी।। + +पितु आगमनु सुनत दोउ भाई। हृदयँ न अति आनंदु अमाई।। + +सकुचन्ह कहि न सकत गुरु पाहीं। पितु दरसन लालचु मन माहीं।। + +बिस्वामित्र बिनय बड़ि देखी। उपजा उर संतोषु बिसेषी।। + +हरषि बंधु दोउ हृदयँ लगाए। पुलक अंग अंबक जल छाए।। + +चले जहाँ दसरथु जनवासे। मनहुँ सरोबर तकेउ पिआसे।।भूप बिलोके जबहिं मुनि आवत सुतन्ह समेत। + +उठे हरषि सुखसिंधु महुँ चले थाह सी लेत।।307।।मुनिहि दंडवत कीन्ह महीसा। बार बार पद रज धरि सीसा।। + +कौसिक राउ लिये उर लाई। कहि असीस पूछी कुसलाई।। + +पुनि दंडवत करत दोउ भाई। देखि नृपति उर सुखु न समाई।। + +सुत हियँ लाइ दुसह दुख मेटे। मृतक सरीर प्रान जनु भेंटे।। + +पुनि बसिष्ठ पद सिर तिन्ह नाए। प्रेम मुदित मुनिबर उर लाए।। + +बिप्र बृंद बंदे दुहुँ भाईं। मन भावती असीसें पाईं।। + +भरत सहानुज कीन्ह प्रनामा। लिए उठाइ लाइ उर रामा।। + +हरषे लखन देखि दोउ भ्राता। मिले प्रेम परिपूरित गाता।।पुरजन परिजन जातिजन जाचक मंत्री मीत। + +मिले जथाबिधि सबहि प्रभु परम कृपाल बिनीत।।308।।रामहि देखि बरात जुड़ानी। प्रीति कि रीति न जाति बखानी।। + +नृप समीप सोहहिं सुत चारी। जनु धन धरमादिक तनुधारी।। + +सुतन्ह समेत दसरथहि देखी। मुदित नगर नर नारि बिसेषी।। + +सुमन बरिसि सुर हनहिं निसाना। नाकनटीं नाचहिं करि गाना।। + +सतानंद अरु बिप्र सचिव गन। मागध सूत बिदुष बंदीजन।। + +सहित बरात राउ सनमाना। आयसु मागि फिरे अगवाना।। + +प्रथम बरात लगन तें आई। तातें पुर प्रमोदु अधिकाई।। + +ब्रह्मानंदु लोग सब लहहीं। बढ़हुँ दिवस निसि बिधि सन कहहीं।।रामु सीय सोभा अवधि सुकृत अवधि दोउ राज। + +जहँ जहँ पुरजन कहहिं अस मिलि नर नारि समाज।।।309।।जनक सुकृत मूरति बैदेही। दसरथ सुकृत रामु धरें देही।। + +इन्ह सम काँहु न सिव अवराधे। काहिं न इन्ह समान फल लाधे।। + +इन्ह सम कोउ न भयउ जग माहीं। है नहिं कतहूँ होनेउ नाहीं।। + +हम सब सकल सुकृत कै रासी। भए जग जनमि जनकपुर बासी।। + +जिन्ह जानकी राम छबि देखी। को सुकृती हम सरिस बिसेषी।। + +पुनि देखब रघुबीर बिआहू। लेब भली बिधि लोचन लाहू।। + +कहहिं परसपर कोकिलबयनीं। एहि बिआहँ बड़ लाभु सुनयनीं।। + +बड़ें भाग बिधि बात बनाई। नयन अतिथि होइहहिं दोउ भाई।।बारहिं बार सनेह बस जनक बोलाउब सीय। + +लेन आइहहिं बंधु दोउ कोटि काम क��नीय।।310।।बिबिध भाँति होइहि पहुनाई। प्रिय न काहि अस सासुर माई।। + +तब तब राम लखनहि निहारी। होइहहिं सब पुर लोग सुखारी।। + +सखि जस राम लखनकर जोटा। तैसेइ भूप संग दुइ ढोटा।। + +स्याम गौर सब अंग सुहाए। ते सब कहहिं देखि जे आए।। + +कहा एक मैं आजु निहारे। जनु बिरंचि निज हाथ सँवारे।। + +भरतु रामही की अनुहारी। सहसा लखि न सकहिं नर नारी।। + +लखनु सत्रुसूदनु एकरूपा। नख सिख ते सब अंग अनूपा।। + +मन भावहिं मुख बरनि न जाहीं। उपमा कहुँ त्रिभुवन कोउ नाहीं।।उपमा न कोउ कह दास तुलसी कतहुँ कबि कोबिद कहैं। + +बल बिनय बिद्या सील सोभा सिंधु इन्ह से एइ अहैं।। + +पुर नारि सकल पसारि अंचल बिधिहि बचन सुनावहीं।। + +ब्याहिअहुँ चारिउ भाइ एहिं पुर हम सुमंगल गावहीं।।कहहिं परस्पर नारि बारि बिलोचन पुलक तन। + +सखि सबु करब पुरारि पुन्य पयोनिधि भूप दोउ।।311।।एहि बिधि सकल मनोरथ करहीं। आनँद उमगि उमगि उर भरहीं।। + +जे नृप सीय स्वयंबर आए। देखि बंधु सब तिन्ह सुख पाए।। + +कहत राम जसु बिसद बिसाला। निज निज भवन गए महिपाला।। + +गए बीति कुछ दिन एहि भाँती। प्रमुदित पुरजन सकल बराती।। + +मंगल मूल लगन दिनु आवा। हिम रितु अगहनु मासु सुहावा।। + +ग्रह तिथि नखतु जोगु बर बारू। लगन सोधि बिधि कीन्ह बिचारू।। + +पठै दीन्हि नारद सन सोई। गनी जनक के गनकन्ह जोई।। + +सुनी सकल लोगन्ह यह बाता। कहहिं जोतिषी आहिं बिधाता।।धेनुधूरि बेला बिमल सकल सुमंगल मूल। + +बिप्रन्ह कहेउ बिदेह सन जानि सगुन अनुकुल।।312।।उपरोहितहि कहेउ नरनाहा। अब बिलंब कर कारनु काहा।। + +सतानंद तब सचिव बोलाए। मंगल सकल साजि सब ल्याए।। + +संख निसान पनव बहु बाजे। मंगल कलस सगुन सुभ साजे।। + +सुभग सुआसिनि गावहिं गीता। करहिं बेद धुनि बिप्र पुनीता।। + +लेन चले सादर एहि भाँती। गए जहाँ जनवास बराती।। + +कोसलपति कर देखि समाजू। अति लघु लाग तिन्हहि सुरराजू।। + +भयउ समउ अब धारिअ पाऊ। यह सुनि परा निसानहिं घाऊ।। + +गुरहि पूछि करि कुल बिधि राजा। चले संग मुनि साधु समाजा।।भाग्य बिभव अवधेस कर देखि देव ब्रह्मादि। + +लगे सराहन सहस मुख जानि जनम निज बादि।।313।।सुरन्ह सुमंगल अवसरु जाना। बरषहिं सुमन बजाइ निसाना।। + +सिव ब्रह्मादिक बिबुध बरूथा। चढ़े बिमानन्हि नाना जूथा।। + +प्रेम पुलक तन हृदयँ उछाहू। चले बिलोकन राम बिआहू।। + +देखि जनकपुरु सुर अनुरागे। निज निज लोक सबहिं लघु लागे।। + +चितवहिं चकित बिचित्र बिताना। रचना सकल अलौकिक नाना।। + +नगर नारि नर रूप निधाना। सुघर सुधरम सुसील सुजाना।। + +तिन्हहि देखि सब सुर सुरनारीं। भए नखत जनु बिधु उजिआरीं।। + +बिधिहि भयह आचरजु बिसेषी। निज करनी कछु कतहुँ न देखी।।सिवँ समुझाए देव सब जनि आचरज भुलाहु। + +हृदयँ बिचारहु धीर धरि सिय रघुबीर बिआहु।।314।।जिन्ह कर नामु लेत जग माहीं। सकल अमंगल मूल नसाहीं।। + +करतल होहिं पदारथ चारी। तेइ सिय रामु कहेउ कामारी।। + +एहि बिधि संभु सुरन्ह समुझावा। पुनि आगें बर बसह चलावा।। + +देवन्ह देखे दसरथु जाता। महामोद मन पुलकित गाता।। + +साधु समाज संग महिदेवा। जनु तनु धरें करहिं सुख सेवा।। + +सोहत साथ सुभग सुत चारी। जनु अपबरग सकल तनुधारी।। + +मरकत कनक बरन बर जोरी। देखि सुरन्ह भै प्रीति न थोरी।। + +पुनि रामहि बिलोकि हियँ हरषे। नृपहि सराहि सुमन तिन्ह बरषे।।राम रूपु नख सिख सुभग बारहिं बार निहारि। + +पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरारि।।315।।केकि कंठ दुति स्यामल अंगा। तड़ित बिनिंदक बसन सुरंगा।। + +ब्याह बिभूषन बिबिध बनाए। मंगल सब सब भाँति सुहाए।। + +सरद बिमल बिधु बदनु सुहावन। नयन नवल राजीव लजावन।। + +सकल अलौकिक सुंदरताई। कहि न जाइ मनहीं मन भाई।। + +बंधु मनोहर सोहहिं संगा। जात नचावत चपल तुरंगा।। + +राजकुअँर बर बाजि देखावहिं। बंस प्रसंसक बिरिद सुनावहिं।। + +जेहि तुरंग पर रामु बिराजे। गति बिलोकि खगनायकु लाजे।। + +कहि न जाइ सब भाँति सुहावा। बाजि बेषु जनु काम बनावा।।जनु बाजि बेषु बनाइ मनसिजु राम हित अति सोहई। + +आपनें बय बल रूप गुन गति सकल भुवन बिमोहई।। + +जगमगत जीनु जराव जोति सुमोति मनि मानिक लगे। + +किंकिनि ललाम लगामु ललित बिलोकि सुर नर मुनि ठगे।।प्रभु मनसहिं लयलीन मनु चलत बाजि छबि पाव। + +भूषित उड़गन तड़ित घनु जनु बर बरहि नचाव।।316।।जेहिं बर बाजि रामु असवारा। तेहि सारदउ न बरनै पारा।। + +संकरु राम रूप अनुरागे। नयन पंचदस अति प्रिय लागे।। + +हरि हित सहित रामु जब जोहे। रमा समेत रमापति मोहे।। + +निरखि राम छबि बिधि हरषाने। आठइ नयन जानि पछिताने।। + +सुर सेनप उर बहुत उछाहू। बिधि ते डेवढ़ लोचन लाहू।। + +रामहि चितव सुरेस सुजाना। गौतम श्रापु परम हित माना।। + +देव सकल सुरपतिहि सिहाहीं। आजु पुरंदर सम कोउ नाहीं।। + +मुदित देवगन रामहि देखी। नृपसमाज दुहुँ हरषु बिसेषी।।अति हरषु राजसमाज दुहु दि��ि दुंदुभीं बाजहिं घनी। + +बरषहिं सुमन सुर हरषि कहि जय जयति जय रघुकुलमनी।। + +एहि भाँति जानि बरात आवत बाजने बहु बाजहीं। + +रानि सुआसिनि बोलि परिछनि हेतु मंगल साजहीं।।सजि आरती अनेक बिधि मंगल सकल सँवारि। + +चलीं मुदित परिछनि करन गजगामिनि बर नारि।।317।।बिधुबदनीं सब सब मृगलोचनि। सब निज तन छबि रति मदु मोचनि।। + +पहिरें बरन बरन बर चीरा। सकल बिभूषन सजें सरीरा।। + +सकल सुमंगल अंग बनाएँ। करहिं गान कलकंठि लजाएँ।। + +कंकन किंकिनि नूपुर बाजहिं। चालि बिलोकि काम गज लाजहिं।। + +बाजहिं बाजने बिबिध प्रकारा। नभ अरु नगर सुमंगलचारा।। + +सची सारदा रमा भवानी। जे सुरतिय सुचि सहज सयानी।। + +कपट नारि बर बेष बनाई। मिलीं सकल रनिवासहिं जाई।। + +करहिं गान कल मंगल बानीं। हरष बिबस सब काहुँ न जानी।।को जान केहि आनंद बस सब ब्रह्मु बर परिछन चली। + +कल गान मधुर निसान बरषहिं सुमन सुर सोभा भली।। + +आनंदकंदु बिलोकि दूलहु सकल हियँ हरषित भई।। + +अंभोज अंबक अंबु उमगि सुअंग पुलकावलि छई।।जो सुख भा सिय मातु मन देखि राम बर बेषु। + +सो न सकहिं कहि कलप सत सहस सारदा सेषु।।318।।नयन नीरु हटि मंगल जानी। परिछनि करहिं मुदित मन रानी।। + +बेद बिहित अरु कुल आचारू। कीन्ह भली बिधि सब ब्यवहारू।। + +पंच सबद धुनि मंगल गाना। पट पाँवड़े परहिं बिधि नाना।। + +करि आरती अरघु तिन्ह दीन्हा। राम गमनु मंडप तब कीन्हा।। + +दसरथु सहित समाज बिराजे। बिभव बिलोकि लोकपति लाजे।। + +समयँ समयँ सुर बरषहिं फूला। सांति पढ़हिं महिसुर अनुकूला।। + +नभ अरु नगर कोलाहल होई। आपनि पर कछु सुनइ न कोई।। + +एहि बिधि रामु मंडपहिं आए। अरघु देइ आसन बैठाए।।बैठारि आसन आरती करि निरखि बरु सुखु पावहीं।। + +मनि बसन भूषन भूरि वारहिं नारि मंगल गावहीं।। + +ब्रह्मादि सुरबर बिप्र बेष बनाइ कौतुक देखहीं। + +अवलोकि रघुकुल कमल रबि छबि सुफल जीवन लेखहीं।।नाऊ बारी भाट नट राम निछावरि पाइ। + +मुदित असीसहिं नाइ सिर हरषु न हृदयँ समाइ।।319।।मिले जनकु दसरथु अति प्रीतीं। करि बैदिक लौकिक सब रीतीं।। + +मिलत महा दोउ राज बिराजे। उपमा खोजि खोजि कबि लाजे।। + +लही न कतहुँ हारि हियँ मानी। इन्ह सम एइ उपमा उर आनी।। + +सामध देखि देव अनुरागे। सुमन बरषि जसु गावन लागे।। + +जगु बिरंचि उपजावा जब तें। देखे सुने ब्याह बहु तब तें।। + +सकल भाँति सम साजु समाजू। सम समधी देखे हम आजू।। + +देव गिरा सु���ि सुंदर साँची। प्रीति अलौकिक दुहु दिसि माची।। + +देत पाँवड़े अरघु सुहाए। सादर जनकु मंडपहिं ल्याए।।मंडपु बिलोकि बिचीत्र रचनाँ रुचिरताँ मुनि मन हरे।। + +निज पानि जनक सुजान सब कहुँ आनि सिंघासन धरे।। + +कुल इष्ट सरिस बसिष्ट पूजे बिनय करि आसिष लही। + +कौसिकहि पूजत परम प्रीति कि रीति तौ न परै कही।।बामदेव आदिक रिषय पूजे मुदित महीस। + +दिए दिब्य आसन सबहि सब सन लही असीस।।320।।बहुरि कीन्ह कोसलपति पूजा। जानि ईस सम भाउ न दूजा।। + +कीन्ह जोरि कर बिनय बड़ाई। कहि निज भाग्य बिभव बहुताई।। + +पूजे भूपति सकल बराती। समधि सम सादर सब भाँती।। + +आसन उचित दिए सब काहू। कहौं काह मूख एक उछाहू।। + +सकल बरात जनक सनमानी। दान मान बिनती बर बानी।। + +बिधि हरि हरु दिसिपति दिनराऊ। जे जानहिं रघुबीर प्रभाऊ।। + +कपट बिप्र बर बेष बनाएँ। कौतुक देखहिं अति सचु पाएँ।। + +पूजे जनक देव सम जानें। दिए सुआसन बिनु पहिचानें।।पहिचान को केहि जान सबहिं अपान सुधि भोरी भई। + +आनंद कंदु बिलोकि दूलहु उभय दिसि आनँद मई।। + +सुर लखे राम सुजान पूजे मानसिक आसन दए। + +अवलोकि सीलु सुभाउ प्रभु को बिबुध मन प्रमुदित भए।।रामचंद्र मुख चंद्र छबि लोचन चारु चकोर। + +करत पान सादर सकल प्रेमु प्रमोदु न थोर।।321।।समउ बिलोकि बसिष्ठ बोलाए। सादर सतानंदु सुनि आए।। + +बेगि कुअँरि अब आनहु जाई। चले मुदित मुनि आयसु पाई।। + +रानी सुनि उपरोहित बानी। प्रमुदित सखिन्ह समेत सयानी।। + +बिप्र बधू कुलबृद्ध बोलाईं। करि कुल रीति सुमंगल गाईं।। + +नारि बेष जे सुर बर बामा। सकल सुभायँ सुंदरी स्यामा।। + +तिन्हहि देखि सुखु पावहिं नारीं। बिनु पहिचानि प्रानहु ते प्यारीं।। + +बार बार सनमानहिं रानी। उमा रमा सारद सम जानी।। + +सीय सँवारि समाजु बनाई। मुदित मंडपहिं चलीं लवाई।।चलि ल्याइ सीतहि सखीं सादर सजि सुमंगल भामिनीं। + +नवसप्त साजें सुंदरी सब मत्त कुंजर गामिनीं।। + +कल गान सुनि मुनि ध्यान त्यागहिं काम कोकिल लाजहीं। + +मंजीर नूपुर कलित कंकन ताल गती बर बाजहीं।।सोहति बनिता बृंद महुँ सहज सुहावनि सीय। + +छबि ललना गन मध्य जनु सुषमा तिय कमनीय।।322।।सिय सुंदरता बरनि न जाई। लघु मति बहुत मनोहरताई।। + +आवत दीखि बरातिन्ह सीता।।रूप रासि सब भाँति पुनीता।। + +सबहि मनहिं मन किए प्रनामा। देखि राम भए पूरनकामा।। + +हरषे दसरथ सुतन्ह समेता। कहि न जाइ उर आनँदु जेता।। + +सुर प्रनामु करि बरसहिं फूला। मुनि असीस धुनि मंगल मूला।। + +गान निसान कोलाहलु भारी। प्रेम प्रमोद मगन नर नारी।। + +एहि बिधि सीय मंडपहिं आई। प्रमुदित सांति पढ़हिं मुनिराई।। + +तेहि अवसर कर बिधि ब्यवहारू। दुहुँ कुलगुर सब कीन्ह अचारू।।आचारु करि गुर गौरि गनपति मुदित बिप्र पुजावहीं। + +सुर प्रगटि पूजा लेहिं देहिं असीस अति सुखु पावहीं।। + +मधुपर्क मंगल द्रब्य जो जेहि समय मुनि मन महुँ चहैं। + +भरे कनक कोपर कलस सो सब लिएहिं परिचारक रहैं।।1।। + +कुल रीति प्रीति समेत रबि कहि देत सबु सादर कियो। + +एहि भाँति देव पुजाइ सीतहि सुभग सिंघासनु दियो।। + +सिय राम अवलोकनि परसपर प्रेम काहु न लखि परै।। + +मन बुद्धि बर बानी अगोचर प्रगट कबि कैसें करै।।2।।होम समय तनु धरि अनलु अति सुख आहुति लेहिं। + +बिप्र बेष धरि बेद सब कहि बिबाह बिधि देहिं।।323।।जनक पाटमहिषी जग जानी। सीय मातु किमि जाइ बखानी।। + +सुजसु सुकृत सुख सुदंरताई। सब समेटि बिधि रची बनाई।। + +समउ जानि मुनिबरन्ह बोलाई। सुनत सुआसिनि सादर ल्याई।। + +जनक बाम दिसि सोह सुनयना। हिमगिरि संग बनि जनु मयना।। + +कनक कलस मनि कोपर रूरे। सुचि सुंगध मंगल जल पूरे।। + +निज कर मुदित रायँ अरु रानी। धरे राम के आगें आनी।। + +पढ़हिं बेद मुनि मंगल बानी। गगन सुमन झरि अवसरु जानी।। + +बरु बिलोकि दंपति अनुरागे। पाय पुनीत पखारन लागे।।लागे पखारन पाय पंकज प्रेम तन पुलकावली। + +नभ नगर गान निसान जय धुनि उमगि जनु चहुँ दिसि चली।। + +जे पद सरोज मनोज अरि उर सर सदैव बिराजहीं। + +जे सकृत सुमिरत बिमलता मन सकल कलि मल भाजहीं।।1।। + +जे परसि मुनिबनिता लही गति रही जो पातकमई। + +मकरंदु जिन्ह को संभु सिर सुचिता अवधि सुर बरनई।। + +करि मधुप मन मुनि जोगिजन जे सेइ अभिमत गति लहैं। + +ते पद पखारत भाग्यभाजनु जनकु जय जय सब कहै।।2।। + +बर कुअँरि करतल जोरि साखोचारु दोउ कुलगुर करैं। + +भयो पानिगहनु बिलोकि बिधि सुर मनुज मुनि आँनद भरैं।। + +सुखमूल दूलहु देखि दंपति पुलक तन हुलस्यो हियो। + +करि लोक बेद बिधानु कन्यादानु नृपभूषन कियो।।3।। + +हिमवंत जिमि गिरिजा महेसहि हरिहि श्री सागर दई। + +तिमि जनक रामहि सिय समरपी बिस्व कल कीरति नई।। + +क्यों करै बिनय बिदेहु कियो बिदेहु मूरति सावँरी। + +करि होम बिधिवत गाँठि जोरी होन लागी भावँरी।।4।।जय धुनि बंदी बेद धुनि मंगल गान निसान। + +सुनि हरषहिं बरषहिं बिबुध सुरतरु सुमन सुजान।।324।।कुअँरु कुअँरि कल भावँरि देहीं।।नयन लाभु सब सादर लेहीं।। + +जाइ न बरनि मनोहर जोरी। जो उपमा कछु कहौं सो थोरी।। + +राम सीय सुंदर प्रतिछाहीं। जगमगात मनि खंभन माहीं । + +मनहुँ मदन रति धरि बहु रूपा। देखत राम बिआहु अनूपा।। + +दरस लालसा सकुच न थोरी। प्रगटत दुरत बहोरि बहोरी।। + +भए मगन सब देखनिहारे। जनक समान अपान बिसारे।। + +प्रमुदित मुनिन्ह भावँरी फेरी। नेगसहित सब रीति निबेरीं।। + +राम सीय सिर सेंदुर देहीं। सोभा कहि न जाति बिधि केहीं।। + +अरुन पराग जलजु भरि नीकें। ससिहि भूष अहि लोभ अमी कें।। + +बहुरि बसिष्ठ दीन्ह अनुसासन। बरु दुलहिनि बैठे एक आसन।।बैठे बरासन रामु जानकि मुदित मन दसरथु भए। + +तनु पुलक पुनि पुनि देखि अपनें सुकृत सुरतरु फल नए।। + +भरि भुवन रहा उछाहु राम बिबाहु भा सबहीं कहा। + +केहि भाँति बरनि सिरात रसना एक यहु मंगलु महा।।1।। + +तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै। + +माँडवी श्रुतिकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि के।। + +कुसकेतु कन्या प्रथम जो गुन सील सुख सोभामई। + +सब रीति प्रीति समेत करि सो ब्याहि नृप भरतहि दई।।2।। + +जानकी लघु भगिनी सकल सुंदरि सिरोमनि जानि कै। + +सो तनय दीन्ही ब्याहि लखनहि सकल बिधि सनमानि कै।। + +जेहि नामु श्रुतकीरति सुलोचनि सुमुखि सब गुन आगरी। + +सो दई रिपुसूदनहि भूपति रूप सील उजागरी।।3।। + +अनुरुप बर दुलहिनि परस्पर लखि सकुच हियँ हरषहीं। + +सब मुदित सुंदरता सराहहिं सुमन सुर गन बरषहीं।। + +सुंदरी सुंदर बरन्ह सह सब एक मंडप राजहीं। + +जनु जीव उर चारिउ अवस्था बिमुन सहित बिराजहीं।।4।।मुदित अवधपति सकल सुत बधुन्ह समेत निहारि। + +जनु पार महिपाल मनि क्रियन्ह सहित फल चारि।।325।।जसि रघुबीर ब्याह बिधि बरनी। सकल कुअँर ब्याहे तेहिं करनी।। + +कहि न जाइ कछु दाइज भूरी। रहा कनक मनि मंडपु पूरी।। + +कंबल बसन बिचित्र पटोरे। भाँति भाँति बहु मोल न थोरे।। + +गज रथ तुरग दास अरु दासी। धेनु अलंकृत कामदुहा सी।। + +बस्तु अनेक करिअ किमि लेखा। कहि न जाइ जानहिं जिन्ह देखा।। + +लोकपाल अवलोकि सिहाने। लीन्ह अवधपति सबु सुखु माने।। + +दीन्ह जाचकन्हि जो जेहि भावा। उबरा सो जनवासेहिं आवा।। + +तब कर जोरि जनकु मृदु बानी। बोले सब बरात सनमानी।।सनमानि सकल बरात आदर दान बिनय बड़ाइ कै। + +प्रमुदित महा मुनि बृंद बंदे पूजि प्रेम लड़��इ कै।। + +सिरु नाइ देव मनाइ सब सन कहत कर संपुट किएँ। + +सुर साधु चाहत भाउ सिंधु कि तोष जल अंजलि दिएँ।।1।। + +कर जोरि जनकु बहोरि बंधु समेत कोसलराय सों। + +बोले मनोहर बयन सानि सनेह सील सुभाय सों।। + +संबंध राजन रावरें हम बड़े अब सब बिधि भए। + +एहि राज साज समेत सेवक जानिबे बिनु गथ लए।।2।। + +ए दारिका परिचारिका करि पालिबीं करुना नई। + +अपराधु छमिबो बोलि पठए बहुत हौं ढीट्यो कई।। + +पुनि भानुकुलभूषन सकल सनमान निधि समधी किए। + +कहि जाति नहिं बिनती परस्पर प्रेम परिपूरन हिए।।3।। + +बृंदारका गन सुमन बरिसहिं राउ जनवासेहि चले। + +दुंदुभी जय धुनि बेद धुनि नभ नगर कौतूहल भले।। + +तब सखीं मंगल गान करत मुनीस आयसु पाइ कै। + +दूलह दुलहिनिन्ह सहित सुंदरि चलीं कोहबर ल्याइ कै।।4।।पुनि पुनि रामहि चितव सिय सकुचति मनु सकुचै न। + +हरत मनोहर मीन छबि प्रेम पिआसे नैन।।326।।स्याम सरीरु सुभायँ सुहावन। सोभा कोटि मनोज लजावन।। + +जावक जुत पद कमल सुहाए। मुनि मन मधुप रहत जिन्ह छाए।। + +पीत पुनीत मनोहर धोती। हरति बाल रबि दामिनि जोती।। + +कल किंकिनि कटि सूत्र मनोहर। बाहु बिसाल बिभूषन सुंदर।। + +पीत जनेउ महाछबि देई। कर मुद्रिका चोरि चितु लेई।। + +सोहत ब्याह साज सब साजे। उर आयत उरभूषन राजे।। + +पिअर उपरना काखासोती। दुहुँ आँचरन्हि लगे मनि मोती।। + +नयन कमल कल कुंडल काना। बदनु सकल सौंदर्ज निधाना।। + +सुंदर भृकुटि मनोहर नासा। भाल तिलकु रुचिरता निवासा।। + +सोहत मौरु मनोहर माथे। मंगलमय मुकुता मनि गाथे।।गाथे महामनि मौर मंजुल अंग सब चित चोरहीं। + +पुर नारि सुर सुंदरीं बरहि बिलोकि सब तिन तोरहीं।। + +मनि बसन भूषन वारि आरति करहिं मंगल गावहिं। + +सुर सुमन बरिसहिं सूत मागध बंदि सुजसु सुनावहीं।।1।। + +कोहबरहिं आने कुँअर कुँअरि सुआसिनिन्ह सुख पाइ कै। + +अति प्रीति लौकिक रीति लागीं करन मंगल गाइ कै।। + +लहकौरि गौरि सिखाव रामहि सीय सन सारद कहैं। + +रनिवासु हास बिलास रस बस जन्म को फलु सब लहैं।।2।। + +निज पानि मनि महुँ देखिअति मूरति सुरूपनिधान की। + +चालति न भुजबल्ली बिलोकनि बिरह भय बस जानकी।। + +कौतुक बिनोद प्रमोदु प्रेमु न जाइ कहि जानहिं अलीं। + +बर कुअँरि सुंदर सकल सखीं लवाइ जनवासेहि चलीं।।3।। + +तेहि समय सुनिअ असीस जहँ तहँ नगर नभ आनँदु महा। + +चिरु जिअहुँ जोरीं चारु चारयो मुदित मन सबहीं कहा।। + +जोगीन्द्र सिद्ध मुनीस देव बिलोकि प्रभु दुंदुभि हनी। + +चले हरषि बरषि प्रसून निज निज लोक जय जय जय भनी।।4।।सहित बधूटिन्ह कुअँर सब तब आए पितु पास। + +सोभा मंगल मोद भरि उमगेउ जनु जनवास।।327।।पुनि जेवनार भई बहु भाँती। पठए जनक बोलाइ बराती।। + +परत पाँवड़े बसन अनूपा। सुतन्ह समेत गवन कियो भूपा।। + +सादर सबके पाय पखारे। जथाजोगु पीढ़न्ह बैठारे।। + +धोए जनक अवधपति चरना। सीलु सनेहु जाइ नहिं बरना।। + +बहुरि राम पद पंकज धोए। जे हर हृदय कमल महुँ गोए।। + +तीनिउ भाई राम सम जानी। धोए चरन जनक निज पानी।। + +आसन उचित सबहि नृप दीन्हे। बोलि सूपकारी सब लीन्हे।। + +सादर लगे परन पनवारे। कनक कील मनि पान सँवारे।।सूपोदन सुरभी सरपि सुंदर स्वादु पुनीत। + +छन महुँ सब कें परुसि गे चतुर सुआर बिनीत।।328।।पंच कवल करि जेवन लअगे। गारि गान सुनि अति अनुरागे।। + +भाँति अनेक परे पकवाने। सुधा सरिस नहिं जाहिं बखाने।। + +परुसन लगे सुआर सुजाना। बिंजन बिबिध नाम को जाना।। + +चारि भाँति भोजन बिधि गाई। एक एक बिधि बरनि न जाई।। + +छरस रुचिर बिंजन बहु जाती। एक एक रस अगनित भाँती।। + +जेवँत देहिं मधुर धुनि गारी। लै लै नाम पुरुष अरु नारी।। + +समय सुहावनि गारि बिराजा। हँसत राउ सुनि सहित समाजा।। + +एहि बिधि सबहीं भौजनु कीन्हा। आदर सहित आचमनु दीन्हा।।देइ पान पूजे जनक दसरथु सहित समाज। + +जनवासेहि गवने मुदित सकल भूप सिरताज।।329।।नित नूतन मंगल पुर माहीं। निमिष सरिस दिन जामिनि जाहीं।। + +बड़े भोर भूपतिमनि जागे। जाचक गुन गन गावन लागे।। + +देखि कुअँर बर बधुन्ह समेता। किमि कहि जात मोदु मन जेता।। + +प्रातक्रिया करि गे गुरु पाहीं। महाप्रमोदु प्रेमु मन माहीं।। + +करि प्रनाम पूजा कर जोरी। बोले गिरा अमिअँ जनु बोरी।। + +तुम्हरी कृपाँ सुनहु मुनिराजा। भयउँ आजु मैं पूरनकाजा।। + +अब सब बिप्र बोलाइ गोसाईं। देहु धेनु सब भाँति बनाई।। + +सुनि गुर करि महिपाल बड़ाई। पुनि पठए मुनि बृंद बोलाई।।बामदेउ अरु देवरिषि बालमीकि जाबालि। + +आए मुनिबर निकर तब कौसिकादि तपसालि।।330।।दंड प्रनाम सबहि नृप कीन्हे। पूजि सप्रेम बरासन दीन्हे।। + +चारि लच्छ बर धेनु मगाई। कामसुरभि सम सील सुहाई।। + +सब बिधि सकल अलंकृत कीन्हीं। मुदित महिप महिदेवन्ह दीन्हीं।। + +करत बिनय बहु बिधि नरनाहू। लहेउँ आजु जग जीवन लाहू।। + +पाइ असीस महीसु अनंदा। लिए बोलि पुनि जाचक बृंदा।। + +कनक बसन मनि हय गय स्यंदन। दिए बूझि रुचि रबिकुलनंदन।। + +चले पढ़त गावत गुन गाथा। जय जय जय दिनकर कुल नाथा।। + +एहि बिधि राम बिआह उछाहू। सकइ न बरनि सहस मुख जाहू।।बार बार कौसिक चरन सीसु नाइ कह राउ। + +यह सबु सुखु मुनिराज तव कृपा कटाच्छ पसाउ।।331।।जनक सनेहु सीलु करतूती। नृपु सब भाँति सराह बिभूती।। + +दिन उठि बिदा अवधपति मागा। राखहिं जनकु सहित अनुरागा।। + +नित नूतन आदरु अधिकाई। दिन प्रति सहस भाँति पहुनाई।। + +नित नव नगर अनंद उछाहू। दसरथ गवनु सोहाइ न काहू।। + +बहुत दिवस बीते एहि भाँती। जनु सनेह रजु बँधे बराती।। + +कौसिक सतानंद तब जाई। कहा बिदेह नृपहि समुझाई।। + +अब दसरथ कहँ आयसु देहू। जद्यपि छाड़ि न सकहु सनेहू।। + +भलेहिं नाथ कहि सचिव बोलाए। कहि जय जीव सीस तिन्ह नाए।।अवधनाथु चाहत चलन भीतर करहु जनाउ। + +भए प्रेमबस सचिव सुनि बिप्र सभासद राउ।।332।।पुरबासी सुनि चलिहि बराता। बूझत बिकल परस्पर बाता।। + +सत्य गवनु सुनि सब बिलखाने। मनहुँ साँझ सरसिज सकुचाने।। + +जहँ जहँ आवत बसे बराती। तहँ तहँ सिद्ध चला बहु भाँती।। + +बिबिध भाँति मेवा पकवाना। भोजन साजु न जाइ बखाना।। + +भरि भरि बसहँ अपार कहारा। पठई जनक अनेक सुसारा।। + +तुरग लाख रथ सहस पचीसा। सकल सँवारे नख अरु सीसा।। + +मत्त सहस दस सिंधुर साजे। जिन्हहि देखि दिसिकुंजर लाजे।। + +कनक बसन मनि भरि भरि जाना। महिषीं धेनु बस्तु बिधि नाना।।दाइज अमित न सकिअ कहि दीन्ह बिदेहँ बहोरि। + +जो अवलोकत लोकपति लोक संपदा थोरि।।333।।सबु समाजु एहि भाँति बनाई। जनक अवधपुर दीन्ह पठाई।। + +चलिहि बरात सुनत सब रानीं। बिकल मीनगन जनु लघु पानीं।। + +पुनि पुनि सीय गोद करि लेहीं। देइ असीस सिखावनु देहीं।। + +होएहु संतत पियहि पिआरी। चिरु अहिबात असीस हमारी।। + +सासु ससुर गुर सेवा करेहू। पति रुख लखि आयसु अनुसरेहू।। + +अति सनेह बस सखीं सयानी। नारि धरम सिखवहिं मृदु बानी।। + +सादर सकल कुअँरि समुझाई। रानिन्ह बार बार उर लाई।। + +बहुरि बहुरि भेटहिं महतारीं। कहहिं बिरंचि रचीं कत नारीं।।तेहि अवसर भाइन्ह सहित रामु भानु कुल केतु। + +चले जनक मंदिर मुदित बिदा करावन हेतु।।334।।चारिअ भाइ सुभायँ सुहाए। नगर नारि नर देखन धाए।। + +कोउ कह चलन चहत हहिं आजू। कीन्ह बिदेह बिदा कर साजू।। + +लेहु नयन भरि रूप निहारी। प्रिय पाहुने भूप सुत चारी।। + +को जानै केहि सुकृत सयानी। नयन अतिथि कीन���हे बिधि आनी।। + +मरनसीलु जिमि पाव पिऊषा। सुरतरु लहै जनम कर भूखा।। + +पाव नारकी हरिपदु जैसें। इन्ह कर दरसनु हम कहँ तैसे।। + +निरखि राम सोभा उर धरहू। निज मन फनि मूरति मनि करहू।। + +एहि बिधि सबहि नयन फलु देता। गए कुअँर सब राज निकेता।।रूप सिंधु सब बंधु लखि हरषि उठा रनिवासु। + +करहि निछावरि आरती महा मुदित मन सासु।।335।।देखि राम छबि अति अनुरागीं। प्रेमबिबस पुनि पुनि पद लागीं।। + +रही न लाज प्रीति उर छाई। सहज सनेहु बरनि किमि जाई।। + +भाइन्ह सहित उबटि अन्हवाए। छरस असन अति हेतु जेवाँए।। + +बोले रामु सुअवसरु जानी। सील सनेह सकुचमय बानी।। + +राउ अवधपुर चहत सिधाए। बिदा होन हम इहाँ पठाए।। + +मातु मुदित मन आयसु देहू। बालक जानि करब नित नेहू।। + +सुनत बचन बिलखेउ रनिवासू। बोलि न सकहिं प्रेमबस सासू।। + +हृदयँ लगाइ कुअँरि सब लीन्ही। पतिन्ह सौंपि बिनती अति कीन्ही।।करि बिनय सिय रामहि समरपी जोरि कर पुनि पुनि कहै। + +बलि जाँउ तात सुजान तुम्ह कहुँ बिदित गति सब की अहै।। + +परिवार पुरजन मोहि राजहि प्रानप्रिय सिय जानिबी। + +तुलसीस सीलु सनेहु लखि निज किंकरी करि मानिबी।।तुम्ह परिपूरन काम जान सिरोमनि भावप्रिय। + +जन गुन गाहक राम दोष दलन करुनायतन।।336।।अस कहि रही चरन गहि रानी। प्रेम पंक जनु गिरा समानी।। + +सुनि सनेहसानी बर बानी। बहुबिधि राम सासु सनमानी।। + +राम बिदा मागत कर जोरी। कीन्ह प्रनामु बहोरि बहोरी।। + +पाइ असीस बहुरि सिरु नाई। भाइन्ह सहित चले रघुराई।। + +मंजु मधुर मूरति उर आनी। भई सनेह सिथिल सब रानी।। + +पुनि धीरजु धरि कुअँरि हँकारी। बार बार भेटहिं महतारीं।। + +पहुँचावहिं फिरि मिलहिं बहोरी। बढ़ी परस्पर प्रीति न थोरी।। + +पुनि पुनि मिलत सखिन्ह बिलगाई। बाल बच्छ जिमि धेनु लवाई।।प्रेमबिबस नर नारि सब सखिन्ह सहित रनिवासु। + +मानहुँ कीन्ह बिदेहपुर करुनाँ बिरहँ निवासु।।337।।सुक सारिका जानकी ज्याए। कनक पिंजरन्हि राखि पढ़ाए।। + +ब्याकुल कहहिं कहाँ बैदेही। सुनि धीरजु परिहरइ न केही।। + +भए बिकल खग मृग एहि भाँति। मनुज दसा कैसें कहि जाती।। + +बंधु समेत जनकु तब आए। प्रेम उमगि लोचन जल छाए।। + +सीय बिलोकि धीरता भागी। रहे कहावत परम बिरागी।। + +लीन्हि राँय उर लाइ जानकी। मिटी महामरजाद ग्यान की।। + +समुझावत सब सचिव सयाने। कीन्ह बिचारु न अवसर जाने।। + +बारहिं बार सुता उर लाई। सजि सुंदर पा���कीं मगाई।।प्रेमबिबस परिवारु सबु जानि सुलगन नरेस। + +कुँअरि चढ़ाई पालकिन्ह सुमिरे सिद्धि गनेस।।338।।बहुबिधि भूप सुता समुझाई। नारिधरमु कुलरीति सिखाई।। + +दासीं दास दिए बहुतेरे। सुचि सेवक जे प्रिय सिय केरे।। + +सीय चलत ब्याकुल पुरबासी। होहिं सगुन सुभ मंगल रासी।। + +भूसुर सचिव समेत समाजा। संग चले पहुँचावन राजा।। + +समय बिलोकि बाजने बाजे। रथ गज बाजि बरातिन्ह साजे।। + +दसरथ बिप्र बोलि सब लीन्हे। दान मान परिपूरन कीन्हे।। + +चरन सरोज धूरि धरि सीसा। मुदित महीपति पाइ असीसा।। + +सुमिरि गजाननु कीन्ह पयाना। मंगलमूल सगुन भए नाना।।सुर प्रसून बरषहि हरषि करहिं अपछरा गान। + +चले अवधपति अवधपुर मुदित बजाइ निसान।।339।।नृप करि बिनय महाजन फेरे। सादर सकल मागने टेरे।। + +भूषन बसन बाजि गज दीन्हे। प्रेम पोषि ठाढ़े सब कीन्हे।। + +बार बार बिरिदावलि भाषी। फिरे सकल रामहि उर राखी।। + +बहुरि बहुरि कोसलपति कहहीं। जनकु प्रेमबस फिरै न चहहीं।। + +पुनि कह भूपति बचन सुहाए। फिरिअ महीस दूरि बड़ि आए।। + +राउ बहोरि उतरि भए ठाढ़े। प्रेम प्रबाह बिलोचन बाढ़े।। + +तब बिदेह बोले कर जोरी। बचन सनेह सुधाँ जनु बोरी।। + +करौ कवन बिधि बिनय बनाई। महाराज मोहि दीन्हि बड़ाई।।कोसलपति समधी सजन सनमाने सब भाँति। + +मिलनि परसपर बिनय अति प्रीति न हृदयँ समाति।।340।।मुनि मंडलिहि जनक सिरु नावा। आसिरबादु सबहि सन पावा।। + +सादर पुनि भेंटे जामाता। रूप सील गुन निधि सब भ्राता।। + +जोरि पंकरुह पानि सुहाए। बोले बचन प्रेम जनु जाए।। + +राम करौ केहि भाँति प्रसंसा। मुनि महेस मन मानस हंसा।। + +करहिं जोग जोगी जेहि लागी। कोहु मोहु ममता मदु त्यागी।। + +ब्यापकु ब्रह्मु अलखु अबिनासी। चिदानंदु निरगुन गुनरासी।। + +मन समेत जेहि जान न बानी। तरकि न सकहिं सकल अनुमानी।। + +महिमा निगमु नेति कहि कहई। जो तिहुँ काल एकरस रहई।।नयन बिषय मो कहुँ भयउ सो समस्त सुख मूल। + +सबइ लाभु जग जीव कहँ भएँ ईसु अनुकुल।।341।।सबहि भाँति मोहि दीन्हि बड़ाई। निज जन जानि लीन्ह अपनाई।। + +होहिं सहस दस सारद सेषा। करहिं कलप कोटिक भरि लेखा।। + +मोर भाग्य राउर गुन गाथा। कहि न सिराहिं सुनहु रघुनाथा।। + +मै कछु कहउँ एक बल मोरें। तुम्ह रीझहु सनेह सुठि थोरें।। + +बार बार मागउँ कर जोरें। मनु परिहरै चरन जनि भोरें।। + +सुनि बर बचन प्रेम जनु पोषे। पूरनकाम रामु परितोषे।��� + +करि बर बिनय ससुर सनमाने। पितु कौसिक बसिष्ठ सम जाने।। + +बिनती बहुरि भरत सन कीन्ही। मिलि सप्रेमु पुनि आसिष दीन्ही।।मिले लखन रिपुसूदनहि दीन्हि असीस महीस। + +भए परस्पर प्रेमबस फिरि फिरि नावहिं सीस।।342।।बार बार करि बिनय बड़ाई। रघुपति चले संग सब भाई।। + +जनक गहे कौसिक पद जाई। चरन रेनु सिर नयनन्ह लाई।। + +सुनु मुनीस बर दरसन तोरें। अगमु न कछु प्रतीति मन मोरें।। + +जो सुखु सुजसु लोकपति चहहीं। करत मनोरथ सकुचत अहहीं।। + +सो सुखु सुजसु सुलभ मोहि स्वामी। सब सिधि तव दरसन अनुगामी।। + +कीन्हि बिनय पुनि पुनि सिरु नाई। फिरे महीसु आसिषा पाई।। + +चली बरात निसान बजाई। मुदित छोट बड़ सब समुदाई।। + +रामहि निरखि ग्राम नर नारी। पाइ नयन फलु होहिं सुखारी।।बीच बीच बर बास करि मग लोगन्ह सुख देत। + +अवध समीप पुनीत दिन पहुँची आइ जनेत।।343।।हने निसान पनव बर बाजे। भेरि संख धुनि हय गय गाजे।। + +झाँझि बिरव डिंडमीं सुहाई। सरस राग बाजहिं सहनाई।। + +पुर जन आवत अकनि बराता। मुदित सकल पुलकावलि गाता।। + +निज निज सुंदर सदन सँवारे। हाट बाट चौहट पुर द्वारे।। + +गलीं सकल अरगजाँ सिंचाई। जहँ तहँ चौकें चारु पुराई।। + +बना बजारु न जाइ बखाना। तोरन केतु पताक बिताना।। + +सफल पूगफल कदलि रसाला। रोपे बकुल कदंब तमाला।। + +लगे सुभग तरु परसत धरनी। मनिमय आलबाल कल करनी।।बिबिध भाँति मंगल कलस गृह गृह रचे सँवारि। + +सुर ब्रह्मादि सिहाहिं सब रघुबर पुरी निहारि।।344।।भूप भवन तेहि अवसर सोहा। रचना देखि मदन मनु मोहा।। + +मंगल सगुन मनोहरताई। रिधि सिधि सुख संपदा सुहाई।। + +जनु उछाह सब सहज सुहाए। तनु धरि धरि दसरथ दसरथ गृहँ छाए।। + +देखन हेतु राम बैदेही। कहहु लालसा होहि न केही।। + +जुथ जूथ मिलि चलीं सुआसिनि। निज छबि निदरहिं मदन बिलासनि।। + +सकल सुमंगल सजें आरती। गावहिं जनु बहु बेष भारती।। + +भूपति भवन कोलाहलु होई। जाइ न बरनि समउ सुखु सोई।। + +कौसल्यादि राम महतारीं। प्रेम बिबस तन दसा बिसारीं।।दिए दान बिप्रन्ह बिपुल पूजि गनेस पुरारी। + +प्रमुदित परम दरिद्र जनु पाइ पदारथ चारि।।345।।मोद प्रमोद बिबस सब माता। चलहिं न चरन सिथिल भए गाता।। + +राम दरस हित अति अनुरागीं। परिछनि साजु सजन सब लागीं।। + +बिबिध बिधान बाजने बाजे। मंगल मुदित सुमित्राँ साजे।। + +हरद दूब दधि पल्लव फूला। पान पूगफल मंगल मूला।। + +अच्छत अंकुर लोचन लाजा। मंजु��� मंजरि तुलसि बिराजा।। + +छुहे पुरट घट सहज सुहाए। मदन सकुन जनु नीड़ बनाए।। + +सगुन सुंगध न जाहिं बखानी। मंगल सकल सजहिं सब रानी।। + +रचीं आरतीं बहुत बिधाना। मुदित करहिं कल मंगल गाना।।कनक थार भरि मंगलन्हि कमल करन्हि लिएँ मात। + +चलीं मुदित परिछनि करन पुलक पल्लवित गात।।346।।धूप धूम नभु मेचक भयऊ। सावन घन घमंडु जनु ठयऊ।। + +सुरतरु सुमन माल सुर बरषहिं। मनहुँ बलाक अवलि मनु करषहिं।। + +मंजुल मनिमय बंदनिवारे। मनहुँ पाकरिपु चाप सँवारे।। + +प्रगटहिं दुरहिं अटन्ह पर भामिनि। चारु चपल जनु दमकहिं दामिनि।। + +दुंदुभि धुनि घन गरजनि घोरा। जाचक चातक दादुर मोरा।। + +सुर सुगन्ध सुचि बरषहिं बारी। सुखी सकल ससि पुर नर नारी।। + +समउ जानी गुर आयसु दीन्हा। पुर प्रबेसु रघुकुलमनि कीन्हा।। + +सुमिरि संभु गिरजा गनराजा। मुदित महीपति सहित समाजा।।होहिं सगुन बरषहिं सुमन सुर दुंदुभीं बजाइ। + +बिबुध बधू नाचहिं मुदित मंजुल मंगल गाइ।।347।।मागध सूत बंदि नट नागर। गावहिं जसु तिहु लोक उजागर।। + +जय धुनि बिमल बेद बर बानी। दस दिसि सुनिअ सुमंगल सानी।। + +बिपुल बाजने बाजन लागे। नभ सुर नगर लोग अनुरागे।। + +बने बराती बरनि न जाहीं। महा मुदित मन सुख न समाहीं।। + +पुरबासिन्ह तब राय जोहारे। देखत रामहि भए सुखारे।। + +करहिं निछावरि मनिगन चीरा। बारि बिलोचन पुलक सरीरा।। + +आरति करहिं मुदित पुर नारी। हरषहिं निरखि कुँअर बर चारी।। + +सिबिका सुभग ओहार उघारी। देखि दुलहिनिन्ह होहिं सुखारी।।एहि बिधि सबही देत सुखु आए राजदुआर। + +मुदित मातु परुछनि करहिं बधुन्ह समेत कुमार।।348।।करहिं आरती बारहिं बारा। प्रेमु प्रमोदु कहै को पारा।। + +भूषन मनि पट नाना जाती।।करही निछावरि अगनित भाँती।। + +बधुन्ह समेत देखि सुत चारी। परमानंद मगन महतारी।। + +पुनि पुनि सीय राम छबि देखी।।मुदित सफल जग जीवन लेखी।। + +सखीं सीय मुख पुनि पुनि चाही। गान करहिं निज सुकृत सराही।। + +बरषहिं सुमन छनहिं छन देवा। नाचहिं गावहिं लावहिं सेवा।। + +देखि मनोहर चारिउ जोरीं। सारद उपमा सकल ढँढोरीं।। + +देत न बनहिं निपट लघु लागी। एकटक रहीं रूप अनुरागीं।।निगम नीति कुल रीति करि अरघ पाँवड़े देत। + +बधुन्ह सहित सुत परिछि सब चलीं लवाइ निकेत।।349।।चारि सिंघासन सहज सुहाए। जनु मनोज निज हाथ बनाए।। + +तिन्ह पर कुअँरि कुअँर बैठारे। सादर पाय पुनित पखारे।। + +धूप ��ीप नैबेद बेद बिधि। पूजे बर दुलहिनि मंगलनिधि।। + +बारहिं बार आरती करहीं। ब्यजन चारु चामर सिर ढरहीं।। + +बस्तु अनेक निछावर होहीं। भरीं प्रमोद मातु सब सोहीं।। + +पावा परम तत्व जनु जोगीं। अमृत लहेउ जनु संतत रोगीं।। + +जनम रंक जनु पारस पावा। अंधहि लोचन लाभु सुहावा।। + +मूक बदन जनु सारद छाई। मानहुँ समर सूर जय पाई।।एहि सुख ते सत कोटि गुन पावहिं मातु अनंदु।। + +भाइन्ह सहित बिआहि घर आए रघुकुलचंदु।।350(क)।। + +लोक रीत जननी करहिं बर दुलहिनि सकुचाहिं। + +मोदु बिनोदु बिलोकि बड़ रामु मनहिं मुसकाहिं।।350(ख)।।देव पितर पूजे बिधि नीकी। पूजीं सकल बासना जी की।। + +सबहिं बंदि मागहिं बरदाना। भाइन्ह सहित राम कल्याना।। + +अंतरहित सुर आसिष देहीं। मुदित मातु अंचल भरि लेंहीं।। + +भूपति बोलि बराती लीन्हे। जान बसन मनि भूषन दीन्हे।। + +आयसु पाइ राखि उर रामहि। मुदित गए सब निज निज धामहि।। + +पुर नर नारि सकल पहिराए। घर घर बाजन लगे बधाए।। + +जाचक जन जाचहि जोइ जोई। प्रमुदित राउ देहिं सोइ सोई।। + +सेवक सकल बजनिआ नाना। पूरन किए दान सनमाना।।देंहिं असीस जोहारि सब गावहिं गुन गन गाथ। + +तब गुर भूसुर सहित गृहँ गवनु कीन्ह नरनाथ।।351।।जो बसिष्ठ अनुसासन दीन्ही। लोक बेद बिधि सादर कीन्ही।। + +भूसुर भीर देखि सब रानी। सादर उठीं भाग्य बड़ जानी।। + +पाय पखारि सकल अन्हवाए। पूजि भली बिधि भूप जेवाँए।। + +आदर दान प्रेम परिपोषे। देत असीस चले मन तोषे।। + +बहु बिधि कीन्हि गाधिसुत पूजा। नाथ मोहि सम धन्य न दूजा।। + +कीन्हि प्रसंसा भूपति भूरी। रानिन्ह सहित लीन्हि पग धूरी।। + +भीतर भवन दीन्ह बर बासु। मन जोगवत रह नृप रनिवासू।। + +पूजे गुर पद कमल बहोरी। कीन्हि बिनय उर प्रीति न थोरी।।बधुन्ह समेत कुमार सब रानिन्ह सहित महीसु। + +पुनि पुनि बंदत गुर चरन देत असीस मुनीसु।।352।।बिनय कीन्हि उर अति अनुरागें। सुत संपदा राखि सब आगें।। + +नेगु मागि मुनिनायक लीन्हा। आसिरबादु बहुत बिधि दीन्हा।। + +उर धरि रामहि सीय समेता। हरषि कीन्ह गुर गवनु निकेता।। + +बिप्रबधू सब भूप बोलाई। चैल चारु भूषन पहिराई।। + +बहुरि बोलाइ सुआसिनि लीन्हीं। रुचि बिचारि पहिरावनि दीन्हीं।। + +नेगी नेग जोग सब लेहीं। रुचि अनुरुप भूपमनि देहीं।। + +प्रिय पाहुने पूज्य जे जाने। भूपति भली भाँति सनमाने।। + +देव देखि रघुबीर बिबाहू। बरषि प्रसून प्रसंसि उछाहू।।चले निसान बजाइ सुर निज निज पुर सुख पाइ। + +कहत परसपर राम जसु प्रेम न हृदयँ समाइ।।353।।सब बिधि सबहि समदि नरनाहू। रहा हृदयँ भरि पूरि उछाहू।। + +जहँ रनिवासु तहाँ पगु धारे। सहित बहूटिन्ह कुअँर निहारे।। + +लिए गोद करि मोद समेता। को कहि सकइ भयउ सुखु जेता।। + +बधू सप्रेम गोद बैठारीं। बार बार हियँ हरषि दुलारीं।। + +देखि समाजु मुदित रनिवासू। सब कें उर अनंद कियो बासू।। + +कहेउ भूप जिमि भयउ बिबाहू। सुनि हरषु होत सब काहू।। + +जनक राज गुन सीलु बड़ाई। प्रीति रीति संपदा सुहाई।। + +बहुबिधि भूप भाट जिमि बरनी। रानीं सब प्रमुदित सुनि करनी।।सुतन्ह समेत नहाइ नृप बोलि बिप्र गुर ग्याति। + +भोजन कीन्ह अनेक बिधि घरी पंच गइ राति।।354।।मंगलगान करहिं बर भामिनि। भै सुखमूल मनोहर जामिनि।। + +अँचइ पान सब काहूँ पाए। स्त्रग सुगंध भूषित छबि छाए।। + +रामहि देखि रजायसु पाई। निज निज भवन चले सिर नाई।। + +प्रेम प्रमोद बिनोदु बढ़ाई। समउ समाजु मनोहरताई।। + +कहि न सकहि सत सारद सेसू। बेद बिरंचि महेस गनेसू।। + +सो मै कहौं कवन बिधि बरनी। भूमिनागु सिर धरइ कि धरनी।। + +नृप सब भाँति सबहि सनमानी। कहि मृदु बचन बोलाई रानी।। + +बधू लरिकनीं पर घर आईं। राखेहु नयन पलक की नाई।।लरिका श्रमित उनीद बस सयन करावहु जाइ। + +अस कहि गे बिश्रामगृहँ राम चरन चितु लाइ।।355।।भूप बचन सुनि सहज सुहाए। जरित कनक मनि पलँग डसाए।। + +सुभग सुरभि पय फेन समाना। कोमल कलित सुपेतीं नाना।। + +उपबरहन बर बरनि न जाहीं। स्त्रग सुगंध मनिमंदिर माहीं।। + +रतनदीप सुठि चारु चँदोवा। कहत न बनइ जान जेहिं जोवा।। + +सेज रुचिर रचि रामु उठाए। प्रेम समेत पलँग पौढ़ाए।। + +अग्या पुनि पुनि भाइन्ह दीन्ही। निज निज सेज सयन तिन्ह कीन्ही।। + +देखि स्याम मृदु मंजुल गाता। कहहिं सप्रेम बचन सब माता।। + +मारग जात भयावनि भारी। केहि बिधि तात ताड़का मारी।।घोर निसाचर बिकट भट समर गनहिं नहिं काहु।। + +मारे सहित सहाय किमि खल मारीच सुबाहु।।356।।मुनि प्रसाद बलि तात तुम्हारी। ईस अनेक करवरें टारी।। + +मख रखवारी करि दुहुँ भाई। गुरु प्रसाद सब बिद्या पाई।। + +मुनितय तरी लगत पग धूरी। कीरति रही भुवन भरि पूरी।। + +कमठ पीठि पबि कूट कठोरा। नृप समाज महुँ सिव धनु तोरा।। + +बिस्व बिजय जसु जानकि पाई। आए भवन ब्याहि सब भाई।। + +सकल अमानुष करम तुम्हारे। केवल कौसिक कृपाँ सुधारे।। + +आजु सुफल जग जनमु हमारा। देखि तात बिधुबदन तुम्हारा।। + +जे दिन गए तुम्हहि बिनु देखें। ते बिरंचि जनि पारहिं लेखें।।राम प्रतोषीं मातु सब कहि बिनीत बर बैन। + +सुमिरि संभु गुर बिप्र पद किए नीदबस नैन।।357।।नीदउँ बदन सोह सुठि लोना। मनहुँ साँझ सरसीरुह सोना।। + +घर घर करहिं जागरन नारीं। देहिं परसपर मंगल गारीं।। + +पुरी बिराजति राजति रजनी। रानीं कहहिं बिलोकहु सजनी।। + +सुंदर बधुन्ह सासु लै सोई। फनिकन्ह जनु सिरमनि उर गोई।। + +प्रात पुनीत काल प्रभु जागे। अरुनचूड़ बर बोलन लागे।। + +बंदि मागधन्हि गुनगन गाए। पुरजन द्वार जोहारन आए।। + +बंदि बिप्र सुर गुर पितु माता। पाइ असीस मुदित सब भ्राता।। + +जननिन्ह सादर बदन निहारे। भूपति संग द्वार पगु धारे।।कीन्ह सौच सब सहज सुचि सरित पुनीत नहाइ। + +प्रातक्रिया करि तात पहिं आए चारिउ भाइ।।358।।भूप बिलोकि लिए उर लाई। बैठै हरषि रजायसु पाई।। + +देखि रामु सब सभा जुड़ानी। लोचन लाभ अवधि अनुमानी।। + +पुनि बसिष्टु मुनि कौसिक आए। सुभग आसनन्हि मुनि बैठाए।। + +सुतन्ह समेत पूजि पद लागे। निरखि रामु दोउ गुर अनुरागे।। + +कहहिं बसिष्टु धरम इतिहासा। सुनहिं महीसु सहित रनिवासा।। + +मुनि मन अगम गाधिसुत करनी। मुदित बसिष्ट बिपुल बिधि बरनी।। + +बोले बामदेउ सब साँची। कीरति कलित लोक तिहुँ माची।। + +सुनि आनंदु भयउ सब काहू। राम लखन उर अधिक उछाहू।।मंगल मोद उछाह नित जाहिं दिवस एहि भाँति। + +उमगी अवध अनंद भरि अधिक अधिक अधिकाति।।359।।सुदिन सोधि कल कंकन छौरे। मंगल मोद बिनोद न थोरे।। + +नित नव सुखु सुर देखि सिहाहीं। अवध जन्म जाचहिं बिधि पाहीं।। + +बिस्वामित्रु चलन नित चहहीं। राम सप्रेम बिनय बस रहहीं।। + +दिन दिन सयगुन भूपति भाऊ। देखि सराह महामुनिराऊ।। + +मागत बिदा राउ अनुरागे। सुतन्ह समेत ठाढ़ भे आगे।। + +नाथ सकल संपदा तुम्हारी। मैं सेवकु समेत सुत नारी।। + +करब सदा लरिकनः पर छोहू। दरसन देत रहब मुनि मोहू।। + +अस कहि राउ सहित सुत रानी। परेउ चरन मुख आव न बानी।। + +दीन्ह असीस बिप्र बहु भाँती। चले न प्रीति रीति कहि जाती।। + +रामु सप्रेम संग सब भाई। आयसु पाइ फिरे पहुँचाई।।राम रूपु भूपति भगति ब्याहु उछाहु अनंदु। + +जात सराहत मनहिं मन मुदित गाधिकुलचंदु।।360।।बामदेव रघुकुल गुर ग्यानी। बहुरि गाधिसुत कथा बखानी।। + +सुनि मुनि सुजसु मनहिं मन राऊ। बरनत आपन पुन्य प्रभाऊ।। + +बहुरे लोग रजायसु भयऊ। सुतन्ह समेत नृपति गृहँ गयऊ।। + +जहँ तहँ राम ब्याहु सबु गावा। सुजसु पुनीत लोक तिहुँ छावा।। + +आए ब्याहि रामु घर जब तें। बसइ अनंद अवध सब तब तें।। + +प्रभु बिबाहँ जस भयउ उछाहू। सकहिं न बरनि गिरा अहिनाहू।। + +कबिकुल जीवनु पावन जानी।।राम सीय जसु मंगल खानी।। + +तेहि ते मैं कछु कहा बखानी। करन पुनीत हेतु निज बानी।।निज गिरा पावनि करन कारन राम जसु तुलसी कह्यो। + +रघुबीर चरित अपार बारिधि पारु कबि कौनें लह्यो।। + +उपबीत ब्याह उछाह मंगल सुनि जे सादर गावहीं। + +बैदेहि राम प्रसाद ते जन सर्बदा सुखु पावहीं।।सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं। + +तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।361।।यस्याङ्के च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके + +भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट्। + +सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा + +शर्वः सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशङ्करः पातु माम्।।1।। + +प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः। + +मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मञ्जुलमंगलप्रदा।।2।। + +नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्। + +पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्।।3।।श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि। + +बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए।। + +भुवन चारिदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषहि सुख बारी।। + +रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई। उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई।। + +मनिगन पुर नर नारि सुजाती। सुचि अमोल सुंदर सब भाँती।। + +कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। जनु एतनिअ बिरंचि करतूती।। + +सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी।। + +मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली।। + +राम रूपु गुनसीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ।।सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु। + +आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु।।1।।एक समय सब सहित समाजा। राजसभाँ रघुराजु बिराजा।। + +सकल सुकृत मूरति नरनाहू। राम सुजसु सुनि अतिहि उछाहू।। + +नृप सब रहहिं कृपा अभिलाषें। लोकप करहिं प्रीति रुख राखें।। + +तिभुवन तीनि काल जग माहीं। भूरि भाग दसरथ सम नाहीं।। + +मंगलमूल रामु सुत जासू। जो कछु कहिज थोर सबु तासू।। + +रायँ सुभायँ मुकुरु कर लीन्हा। बदनु बिलोकि मुकुट सम कीन्हा।। + +श्रवन समीप भए ���ित केसा। मनहुँ जरठपनु अस उपदेसा।। + +नृप जुबराज राम कहुँ देहू। जीवन जनम लाहु किन लेहू।।यह बिचारु उर आनि नृप सुदिनु सुअवसरु पाइ। + +प्रेम पुलकि तन मुदित मन गुरहि सुनायउ जाइ।।2।।कहइ भुआलु सुनिअ मुनिनायक। भए राम सब बिधि सब लायक।। + +सेवक सचिव सकल पुरबासी। जे हमारे अरि मित्र उदासी।। + +सबहि रामु प्रिय जेहि बिधि मोही। प्रभु असीस जनु तनु धरि सोही।। + +बिप्र सहित परिवार गोसाईं। करहिं छोहु सब रौरिहि नाई।। + +जे गुर चरन रेनु सिर धरहीं। ते जनु सकल बिभव बस करहीं।। + +मोहि सम यहु अनुभयउ न दूजें। सबु पायउँ रज पावनि पूजें।। + +अब अभिलाषु एकु मन मोरें। पूजहि नाथ अनुग्रह तोरें।। + +मुनि प्रसन्न लखि सहज सनेहू। कहेउ नरेस रजायसु देहू।।राजन राउर नामु जसु सब अभिमत दातार। + +फल अनुगामी महिप मनि मन अभिलाषु तुम्हार।।3।।सब बिधि गुरु प्रसन्न जियँ जानी। बोलेउ राउ रहँसि मृदु बानी।। + +नाथ रामु करिअहिं जुबराजू। कहिअ कृपा करि करिअ समाजू।। + +मोहि अछत यहु होइ उछाहू। लहहिं लोग सब लोचन लाहू।। + +प्रभु प्रसाद सिव सबइ निबाहीं। यह लालसा एक मन माहीं।। + +पुनि न सोच तनु रहउ कि जाऊ। जेहिं न होइ पाछें पछिताऊ।। + +सुनि मुनि दसरथ बचन सुहाए। मंगल मोद मूल मन भाए।। + +सुनु नृप जासु बिमुख पछिताहीं। जासु भजन बिनु जरनि न जाहीं।। + +भयउ तुम्हार तनय सोइ स्वामी। रामु पुनीत प्रेम अनुगामी।।बेगि बिलंबु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु। + +सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु।।4।।मुदित महिपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत्रु बोलाए।। + +कहि जयजीव सीस तिन्ह नाए। भूप सुमंगल बचन सुनाए।। + +जौं पाँचहि मत लागै नीका। करहु हरषि हियँ रामहि टीका।। + +मंत्री मुदित सुनत प्रिय बानी। अभिमत बिरवँ परेउ जनु पानी।। + +बिनती सचिव करहि कर जोरी। जिअहु जगतपति बरिस करोरी।। + +जग मंगल भल काजु बिचारा। बेगिअ नाथ न लाइअ बारा।। + +नृपहि मोदु सुनि सचिव सुभाषा। बढ़त बौंड़ जनु लही सुसाखा।।कहेउ भूप मुनिराज कर जोइ जोइ आयसु होइ। + +राम राज अभिषेक हित बेगि करहु सोइ सोइ।।5।।हरषि मुनीस कहेउ मृदु बानी। आनहु सकल सुतीरथ पानी।। + +औषध मूल फूल फल पाना। कहे नाम गनि मंगल नाना।। + +चामर चरम बसन बहु भाँती। रोम पाट पट अगनित जाती।। + +मनिगन मंगल बस्तु अनेका। जो जग जोगु भूप अभिषेका।। + +बेद बिदित कहि सकल बिधाना। कहेउ रचहु पुर बिबिध बिताना।। + +सफल रसाल पूगफल केरा। रोपहु बीथिन्ह पुर चहुँ फेरा।। + +रचहु मंजु मनि चौकें चारू। कहहु बनावन बेगि बजारू।। + +पूजहु गनपति गुर कुलदेवा। सब बिधि करहु भूमिसुर सेवा।।ध्वज पताक तोरन कलस सजहु तुरग रथ नाग। + +सिर धरि मुनिबर बचन सबु निज निज काजहिं लाग।।6।।जो मुनीस जेहि आयसु दीन्हा। सो तेहिं काजु प्रथम जनु कीन्हा।। + +बिप्र साधु सुर पूजत राजा। करत राम हित मंगल काजा।। + +सुनत राम अभिषेक सुहावा। बाज गहागह अवध बधावा।। + +राम सीय तन सगुन जनाए। फरकहिं मंगल अंग सुहाए।। + +पुलकि सप्रेम परसपर कहहीं। भरत आगमनु सूचक अहहीं।। + +भए बहुत दिन अति अवसेरी। सगुन प्रतीति भेंट प्रिय केरी।। + +भरत सरिस प्रिय को जग माहीं। इहइ सगुन फलु दूसर नाहीं।। + +रामहि बंधु सोच दिन राती। अंडन्हि कमठ ह्रदउ जेहि भाँती।।एहि अवसर मंगलु परम सुनि रहँसेउ रनिवासु। + +सोभत लखि बिधु बढ़त जनु बारिधि बीचि बिलासु।।7।।प्रथम जाइ जिन्ह बचन सुनाए। भूषन बसन भूरि तिन्ह पाए।। + +प्रेम पुलकि तन मन अनुरागीं। मंगल कलस सजन सब लागीं।। + +चौकें चारु सुमित्राँ पुरी। मनिमय बिबिध भाँति अति रुरी।। + +आनँद मगन राम महतारी। दिए दान बहु बिप्र हँकारी।। + +पूजीं ग्रामदेबि सुर नागा। कहेउ बहोरि देन बलिभागा।। + +जेहि बिधि होइ राम कल्यानू। देहु दया करि सो बरदानू।। + +गावहिं मंगल कोकिलबयनीं। बिधुबदनीं मृगसावकनयनीं।।राम राज अभिषेकु सुनि हियँ हरषे नर नारि। + +लगे सुमंगल सजन सब बिधि अनुकूल बिचारि।।8।।तब नरनाहँ बसिष्ठु बोलाए। रामधाम सिख देन पठाए।। + +गुर आगमनु सुनत रघुनाथा। द्वार आइ पद नायउ माथा।। + +सादर अरघ देइ घर आने। सोरह भाँति पूजि सनमाने।। + +गहे चरन सिय सहित बहोरी। बोले रामु कमल कर जोरी।। + +सेवक सदन स्वामि आगमनू। मंगल मूल अमंगल दमनू।। + +तदपि उचित जनु बोलि सप्रीती। पठइअ काज नाथ असि नीती।। + +प्रभुता तजि प्रभु कीन्ह सनेहू। भयउ पुनीत आजु यहु गेहू।। + +आयसु होइ सो करौं गोसाई। सेवक लहइ स्वामि सेवकाई।।सुनि सनेह साने बचन मुनि रघुबरहि प्रसंस। + +राम कस न तुम्ह कहहु अस हंस बंस अवतंस।।9।।बरनि राम गुन सीलु सुभाऊ। बोले प्रेम पुलकि मुनिराऊ।। + +भूप सजेउ अभिषेक समाजू। चाहत देन तुम्हहि जुबराजू।। + +राम करहु सब संजम आजू। जौं बिधि कुसल निबाहै काजू।। + +गुरु सिख देइ राय पहिं गयउ। राम हृदयँ अस बिसमउ भयऊ।। + +जनमे एक संग सब भाई। भोजन सयन केलि लरिका��।। + +करनबेध उपबीत बिआहा। संग संग सब भए उछाहा।। + +बिमल बंस यहु अनुचित एकू। बंधु बिहाइ बड़ेहि अभिषेकू।। + +प्रभु सप्रेम पछितानि सुहाई। हरउ भगत मन कै कुटिलाई।।तेहि अवसर आए लखन मगन प्रेम आनंद। + +सनमाने प्रिय बचन कहि रघुकुल कैरव चंद।।10।।बाजहिं बाजने बिबिध बिधाना। पुर प्रमोदु नहिं जाइ बखाना।। + +भरत आगमनु सकल मनावहिं। आवहुँ बेगि नयन फलु पावहिं।। + +हाट बाट घर गलीं अथाई। कहहिं परसपर लोग लोगाई।। + +कालि लगन भलि केतिक बारा। पूजिहि बिधि अभिलाषु हमारा।। + +कनक सिंघासन सीय समेता। बैठहिं रामु होइ चित चेता।। + +सकल कहहिं कब होइहि काली। बिघन मनावहिं देव कुचाली।। + +तिन्हहि सोहाइ न अवध बधावा। चोरहि चंदिनि राति न भावा।। + +सारद बोलि बिनय सुर करहीं। बारहिं बार पाय लै परहीं।।बिपति हमारि बिलोकि बड़ि मातु करिअ सोइ आजु। + +रामु जाहिं बन राजु तजि होइ सकल सुरकाजु।।11।।सुनि सुर बिनय ठाढ़ि पछिताती। भइउँ सरोज बिपिन हिमराती।। + +देखि देव पुनि कहहिं निहोरी। मातु तोहि नहिं थोरिउ खोरी।। + +बिसमय हरष रहित रघुराऊ। तुम्ह जानहु सब राम प्रभाऊ।। + +जीव करम बस सुख दुख भागी। जाइअ अवध देव हित लागी।। + +बार बार गहि चरन सँकोचौ। चली बिचारि बिबुध मति पोची।। + +ऊँच निवासु नीचि करतूती। देखि न सकहिं पराइ बिभूती।। + +आगिल काजु बिचारि बहोरी। करहहिं चाह कुसल कबि मोरी।। + +हरषि हृदयँ दसरथ पुर आई। जनु ग्रह दसा दुसह दुखदाई।।नामु मंथरा मंदमति चेरी कैकेइ केरि। + +अजस पेटारी ताहि करि गई गिरा मति फेरि।।12।।दीख मंथरा नगरु बनावा। मंजुल मंगल बाज बधावा।। + +पूछेसि लोगन्ह काह उछाहू। राम तिलकु सुनि भा उर दाहू।। + +करइ बिचारु कुबुद्धि कुजाती। होइ अकाजु कवनि बिधि राती।। + +देखि लागि मधु कुटिल किराती। जिमि गवँ तकइ लेउँ केहि भाँती।। + +भरत मातु पहिं गइ बिलखानी। का अनमनि हसि कह हँसि रानी।। + +ऊतरु देइ न लेइ उसासू। नारि चरित करि ढारइ आँसू।। + +हँसि कह रानि गालु बड़ तोरें। दीन्ह लखन सिख अस मन मोरें।। + +तबहुँ न बोल चेरि बड़ि पापिनि। छाड़इ स्वास कारि जनु साँपिनि।।सभय रानि कह कहसि किन कुसल रामु महिपालु। + +लखनु भरतु रिपुदमनु सुनि भा कुबरी उर सालु।।13।।कत सिख देइ हमहि कोउ माई। गालु करब केहि कर बलु पाई।। + +रामहि छाड़ि कुसल केहि आजू। जेहि जनेसु देइ जुबराजू।। + +भयउ कौसिलहि बिधि अति दाहिन। देखत गरब रहत उर नाहिन।। + +��ेखेहु कस न जाइ सब सोभा। जो अवलोकि मोर मनु छोभा।। + +पूतु बिदेस न सोचु तुम्हारें। जानति हहु बस नाहु हमारें।। + +नीद बहुत प्रिय सेज तुराई। लखहु न भूप कपट चतुराई।। + +सुनि प्रिय बचन मलिन मनु जानी। झुकी रानि अब रहु अरगानी।। + +पुनि अस कबहुँ कहसि घरफोरी। तब धरि जीभ कढ़ावउँ तोरी।।काने खोरे कूबरे कुटिल कुचाली जानि। + +तिय बिसेषि पुनि चेरि कहि भरतमातु मुसुकानि।।14।।प्रियबादिनि सिख दीन्हिउँ तोही। सपनेहुँ तो पर कोपु न मोही।। + +सुदिनु सुमंगल दायकु सोई। तोर कहा फुर जेहि दिन होई।। + +जेठ स्वामि सेवक लघु भाई। यह दिनकर कुल रीति सुहाई।। + +राम तिलकु जौं साँचेहुँ काली। देउँ मागु मन भावत आली।। + +कौसल्या सम सब महतारी। रामहि सहज सुभायँ पिआरी।। + +मो पर करहिं सनेहु बिसेषी। मैं करि प्रीति परीछा देखी।। + +जौं बिधि जनमु देइ करि छोहू। होहुँ राम सिय पूत पुतोहू।। + +प्रान तें अधिक रामु प्रिय मोरें। तिन्ह कें तिलक छोभु कस तोरें।।भरत सपथ तोहि सत्य कहु परिहरि कपट दुराउ। + +हरष समय बिसमउ करसि कारन मोहि सुनाउ।।15।।एकहिं बार आस सब पूजी। अब कछु कहब जीभ करि दूजी।। + +फोरै जोगु कपारु अभागा। भलेउ कहत दुख रउरेहि लागा।। + +कहहिं झूठि फुरि बात बनाई। ते प्रिय तुम्हहि करुइ मैं माई।। + +हमहुँ कहबि अब ठकुरसोहाती। नाहिं त मौन रहब दिनु राती।। + +करि कुरूप बिधि परबस कीन्हा। बवा सो लुनिअ लहिअ जो दीन्हा।। + +कोउ नृप होउ हमहि का हानी। चेरि छाड़ि अब होब कि रानी।। + +जारै जोगु सुभाउ हमारा। अनभल देखि न जाइ तुम्हारा।। + +तातें कछुक बात अनुसारी। छमिअ देबि बड़ि चूक हमारी।।गूढ़ कपट प्रिय बचन सुनि तीय अधरबुधि रानि। + +सुरमाया बस बैरिनिहि सुह्द जानि पतिआनि।।16।।सादर पुनि पुनि पूँछति ओही। सबरी गान मृगी जनु मोही।। + +तसि मति फिरी अहइ जसि भाबी। रहसी चेरि घात जनु फाबी।। + +तुम्ह पूँछहु मैं कहत डेराऊँ। धरेउ मोर घरफोरी नाऊँ।। + +सजि प्रतीति बहुबिधि गढ़ि छोली। अवध साढ़साती तब बोली।। + +प्रिय सिय रामु कहा तुम्ह रानी। रामहि तुम्ह प्रिय सो फुरि बानी।। + +रहा प्रथम अब ते दिन बीते। समउ फिरें रिपु होहिं पिंरीते।। + +भानु कमल कुल पोषनिहारा। बिनु जल जारि करइ सोइ छारा।। + +जरि तुम्हारि चह सवति उखारी। रूँधहु करि उपाउ बर बारी।।तुम्हहि न सोचु सोहाग बल निज बस जानहु राउ। + +मन मलीन मुह मीठ नृप राउर सरल सुभाउ।।17।।चतुर गँभीर र��म महतारी। बीचु पाइ निज बात सँवारी।। + +पठए भरतु भूप ननिअउरें। राम मातु मत जानव रउरें।। + +सेवहिं सकल सवति मोहि नीकें। गरबित भरत मातु बल पी कें।। + +सालु तुम्हार कौसिलहि माई। कपट चतुर नहिं होइ जनाई।। + +राजहि तुम्ह पर प्रेमु बिसेषी। सवति सुभाउ सकइ नहिं देखी।। + +रची प्रंपचु भूपहि अपनाई। राम तिलक हित लगन धराई।। + +यह कुल उचित राम कहुँ टीका। सबहि सोहाइ मोहि सुठि नीका।। + +आगिलि बात समुझि डरु मोही। देउ दैउ फिरि सो फलु ओही।।रचि पचि कोटिक कुटिलपन कीन्हेसि कपट प्रबोधु।। + +कहिसि कथा सत सवति कै जेहि बिधि बाढ़ बिरोधु।।18।।भावी बस प्रतीति उर आई। पूँछ रानि पुनि सपथ देवाई।। + +का पूछहुँ तुम्ह अबहुँ न जाना। निज हित अनहित पसु पहिचाना।। + +भयउ पाखु दिन सजत समाजू। तुम्ह पाई सुधि मोहि सन आजू।। + +खाइअ पहिरिअ राज तुम्हारें। सत्य कहें नहिं दोषु हमारें।। + +जौं असत्य कछु कहब बनाई। तौ बिधि देइहि हमहि सजाई।। + +रामहि तिलक कालि जौं भयऊ। तुम्ह कहुँ बिपति बीजु बिधि बयऊ।। + +रेख खँचाइ कहउँ बलु भाषी। भामिनि भइहु दूध कइ माखी।। + +जौं सुत सहित करहु सेवकाई। तौ घर रहहु न आन उपाई।।कद्रूँ बिनतहि दीन्ह दुखु तुम्हहि कौसिलाँ देब। + +भरतु बंदिगृह सेइहहिं लखनु राम के नेब।।19।।कैकयसुता सुनत कटु बानी। कहि न सकइ कछु सहमि सुखानी।। + +तन पसेउ कदली जिमि काँपी। कुबरीं दसन जीभ तब चाँपी।। + +कहि कहि कोटिक कपट कहानी। धीरजु धरहु प्रबोधिसि रानी।। + +फिरा करमु प्रिय लागि कुचाली। बकिहि सराहइ मानि मराली।। + +सुनु मंथरा बात फुरि तोरी। दहिनि आँखि नित फरकइ मोरी।। + +दिन प्रति देखउँ राति कुसपने। कहउँ न तोहि मोह बस अपने।। + +काह करौ सखि सूध सुभाऊ। दाहिन बाम न जानउँ काऊ।।अपने चलत न आजु लगि अनभल काहुक कीन्ह। + +केहिं अघ एकहि बार मोहि दैअँ दुसह दुखु दीन्ह।।20।।नैहर जनमु भरब बरु जाइ। जिअत न करबि सवति सेवकाई।। + +अरि बस दैउ जिआवत जाही। मरनु नीक तेहि जीवन चाही।। + +दीन बचन कह बहुबिधि रानी। सुनि कुबरीं तियमाया ठानी।। + +अस कस कहहु मानि मन ऊना। सुखु सोहागु तुम्ह कहुँ दिन दूना।। + +जेहिं राउर अति अनभल ताका। सोइ पाइहि यहु फलु परिपाका।। + +जब तें कुमत सुना मैं स्वामिनि। भूख न बासर नींद न जामिनि।। + +पूँछेउ गुनिन्ह रेख तिन्ह खाँची। भरत भुआल होहिं यह साँची।। + +भामिनि करहु त कहौं उपाऊ। है तुम्हरीं सेवा बस राऊ।।परउँ कूप तु��� बचन पर सकउँ पूत पति त्यागि। + +कहसि मोर दुखु देखि बड़ कस न करब हित लागि।।21।।कुबरीं करि कबुली कैकेई। कपट छुरी उर पाहन टेई।। + +लखइ न रानि निकट दुखु कैंसे। चरइ हरित तिन बलिपसु जैसें।। + +सुनत बात मृदु अंत कठोरी। देति मनहुँ मधु माहुर घोरी।। + +कहइ चेरि सुधि अहइ कि नाही। स्वामिनि कहिहु कथा मोहि पाहीं।। + +दुइ बरदान भूप सन थाती। मागहु आजु जुड़ावहु छाती।। + +सुतहि राजु रामहि बनवासू। देहु लेहु सब सवति हुलासु।। + +भूपति राम सपथ जब करई। तब मागेहु जेहिं बचनु न टरई।। + +होइ अकाजु आजु निसि बीतें। बचनु मोर प्रिय मानेहु जी तें।।बड़ कुघातु करि पातकिनि कहेसि कोपगृहँ जाहु। + +काजु सँवारेहु सजग सबु सहसा जनि पतिआहु।।22।।कुबरिहि रानि प्रानप्रिय जानी। बार बार बड़ि बुद्धि बखानी।। + +तोहि सम हित न मोर संसारा। बहे जात कइ भइसि अधारा।। + +जौं बिधि पुरब मनोरथु काली। करौं तोहि चख पूतरि आली।। + +बहुबिधि चेरिहि आदरु देई। कोपभवन गवनि कैकेई।। + +बिपति बीजु बरषा रितु चेरी। भुइँ भइ कुमति कैकेई केरी।। + +पाइ कपट जलु अंकुर जामा। बर दोउ दल दुख फल परिनामा।। + +कोप समाजु साजि सबु सोई। राजु करत निज कुमति बिगोई।। + +राउर नगर कोलाहलु होई। यह कुचालि कछु जान न कोई।।प्रमुदित पुर नर नारि। सब सजहिं सुमंगलचार। + +एक प्रबिसहिं एक निर्गमहिं भीर भूप दरबार।।23।।बाल सखा सुन हियँ हरषाहीं। मिलि दस पाँच राम पहिं जाहीं।। + +प्रभु आदरहिं प्रेमु पहिचानी। पूँछहिं कुसल खेम मृदु बानी।। + +फिरहिं भवन प्रिय आयसु पाई। करत परसपर राम बड़ाई।। + +को रघुबीर सरिस संसारा। सीलु सनेह निबाहनिहारा। + +जेंहि जेंहि जोनि करम बस भ्रमहीं। तहँ तहँ ईसु देउ यह हमहीं।। + +सेवक हम स्वामी सियनाहू। होउ नात यह ओर निबाहू।। + +अस अभिलाषु नगर सब काहू। कैकयसुता ह्दयँ अति दाहू।। + +को न कुसंगति पाइ नसाई। रहइ न नीच मतें चतुराई।।साँस समय सानंद नृपु गयउ कैकेई गेहँ। + +गवनु निठुरता निकट किय जनु धरि देह सनेहँ।।24।।कोपभवन सुनि सकुचेउ राउ। भय बस अगहुड़ परइ न पाऊ।। + +सुरपति बसइ बाहँबल जाके। नरपति सकल रहहिं रुख ताकें।। + +सो सुनि तिय रिस गयउ सुखाई। देखहु काम प्रताप बड़ाई।। + +सूल कुलिस असि अँगवनिहारे। ते रतिनाथ सुमन सर मारे।। + +सभय नरेसु प्रिया पहिं गयऊ। देखि दसा दुखु दारुन भयऊ।। + +भूमि सयन पटु मोट पुराना। दिए डारि तन भूषण नाना।। + +कुमतिहि कसि क��बेषता फाबी। अन अहिवातु सूच जनु भाबी।। + +जाइ निकट नृपु कह मृदु बानी। प्रानप्रिया केहि हेतु रिसानी।।केहि हेतु रानि रिसानि परसत पानि पतिहि नेवारई। + +मानहुँ सरोष भुअंग भामिनि बिषम भाँति निहारई।। + +दोउ बासना रसना दसन बर मरम ठाहरु देखई। + +तुलसी नृपति भवतब्यता बस काम कौतुक लेखई।।बार बार कह राउ सुमुखि सुलोचिनि पिकबचनि। + +कारन मोहि सुनाउ गजगामिनि निज कोप कर।।25।।अनहित तोर प्रिया केइँ कीन्हा। केहि दुइ सिर केहि जमु चह लीन्हा।। + +कहु केहि रंकहि करौ नरेसू। कहु केहि नृपहि निकासौं देसू।। + +सकउँ तोर अरि अमरउ मारी। काह कीट बपुरे नर नारी।। + +जानसि मोर सुभाउ बरोरू। मनु तव आनन चंद चकोरू।। + +प्रिया प्रान सुत सरबसु मोरें। परिजन प्रजा सकल बस तोरें।। + +जौं कछु कहौ कपटु करि तोही। भामिनि राम सपथ सत मोही।। + +बिहसि मागु मनभावति बाता। भूषन सजहि मनोहर गाता।। + +घरी कुघरी समुझि जियँ देखू। बेगि प्रिया परिहरहि कुबेषू।।यह सुनि मन गुनि सपथ बड़ि बिहसि उठी मतिमंद। + +भूषन सजति बिलोकि मृगु मनहुँ किरातिनि फंद।।26।।पुनि कह राउ सुह्रद जियँ जानी। प्रेम पुलकि मृदु मंजुल बानी।। + +भामिनि भयउ तोर मनभावा। घर घर नगर अनंद बधावा।। + +रामहि देउँ कालि जुबराजू। सजहि सुलोचनि मंगल साजू।। + +दलकि उठेउ सुनि ह्रदउ कठोरू। जनु छुइ गयउ पाक बरतोरू।। + +ऐसिउ पीर बिहसि तेहि गोई। चोर नारि जिमि प्रगटि न रोई।। + +लखहिं न भूप कपट चतुराई। कोटि कुटिल मनि गुरू पढ़ाई।। + +जद्यपि नीति निपुन नरनाहू। नारिचरित जलनिधि अवगाहू।। + +कपट सनेहु बढ़ाइ बहोरी। बोली बिहसि नयन मुहु मोरी।।मागु मागु पै कहहु पिय कबहुँ न देहु न लेहु। + +देन कहेहु बरदान दुइ तेउ पावत संदेहु।।27।।जानेउँ मरमु राउ हँसि कहई। तुम्हहि कोहाब परम प्रिय अहई।। + +थाति राखि न मागिहु काऊ। बिसरि गयउ मोहि भोर सुभाऊ।। + +झूठेहुँ हमहि दोषु जनि देहू। दुइ कै चारि मागि मकु लेहू।। + +रघुकुल रीति सदा चलि आई। प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई।। + +नहिं असत्य सम पातक पुंजा। गिरि सम होहिं कि कोटिक गुंजा।। + +सत्यमूल सब सुकृत सुहाए। बेद पुरान बिदित मनु गाए।। + +तेहि पर राम सपथ करि आई। सुकृत सनेह अवधि रघुराई।। + +बात दृढ़ाइ कुमति हँसि बोली। कुमत कुबिहग कुलह जनु खोली।।भूप मनोरथ सुभग बनु सुख सुबिहंग समाजु। + +भिल्लनि जिमि छाड़न चहति बचनु भयंकरु बाजु।।28।।सुनहु प्रानप्रिय भावत जी का। देहु एक बर भरतहि टीका।। + +मागउँ दूसर बर कर जोरी। पुरवहु नाथ मनोरथ मोरी।। + +तापस बेष बिसेषि उदासी। चौदह बरिस रामु बनबासी।। + +सुनि मृदु बचन भूप हियँ सोकू। ससि कर छुअत बिकल जिमि कोकू।। + +गयउ सहमि नहिं कछु कहि आवा। जनु सचान बन झपटेउ लावा।। + +बिबरन भयउ निपट नरपालू। दामिनि हनेउ मनहुँ तरु तालू।। + +माथे हाथ मूदि दोउ लोचन। तनु धरि सोचु लाग जनु सोचन।। + +मोर मनोरथु सुरतरु फूला। फरत करिनि जिमि हतेउ समूला।। + +अवध उजारि कीन्हि कैकेईं। दीन्हसि अचल बिपति कै नेईं।।कवनें अवसर का भयउ गयउँ नारि बिस्वास। + +जोग सिद्धि फल समय जिमि जतिहि अबिद्या नास।।29।।एहि बिधि राउ मनहिं मन झाँखा। देखि कुभाँति कुमति मन माखा।। + +भरतु कि राउर पूत न होहीं। आनेहु मोल बेसाहि कि मोही।। + +जो सुनि सरु अस लाग तुम्हारें। काहे न बोलहु बचनु सँभारे।। + +देहु उतरु अनु करहु कि नाहीं। सत्यसंध तुम्ह रघुकुल माहीं।। + +देन कहेहु अब जनि बरु देहू। तजहुँ सत्य जग अपजसु लेहू।। + +सत्य सराहि कहेहु बरु देना। जानेहु लेइहि मागि चबेना।। + +सिबि दधीचि बलि जो कछु भाषा। तनु धनु तजेउ बचन पनु राखा।। + +अति कटु बचन कहति कैकेई। मानहुँ लोन जरे पर देई।।धरम धुरंधर धीर धरि नयन उघारे रायँ। + +सिरु धुनि लीन्हि उसास असि मारेसि मोहि कुठायँ।।30।।आगें दीखि जरत रिस भारी। मनहुँ रोष तरवारि उघारी।। + +मूठि कुबुद्धि धार निठुराई। धरी कूबरीं सान बनाई।। + +लखी महीप कराल कठोरा। सत्य कि जीवनु लेइहि मोरा।। + +बोले राउ कठिन करि छाती। बानी सबिनय तासु सोहाती।। + +प्रिया बचन कस कहसि कुभाँती। भीर प्रतीति प्रीति करि हाँती।। + +मोरें भरतु रामु दुइ आँखी। सत्य कहउँ करि संकरू साखी।। + +अवसि दूतु मैं पठइब प्राता। ऐहहिं बेगि सुनत दोउ भ्राता।। + +सुदिन सोधि सबु साजु सजाई। देउँ भरत कहुँ राजु बजाई।।लोभु न रामहि राजु कर बहुत भरत पर प्रीति। + +मैं बड़ छोट बिचारि जियँ करत रहेउँ नृपनीति।।31।।राम सपथ सत कहुउँ सुभाऊ। राममातु कछु कहेउ न काऊ।। + +मैं सबु कीन्ह तोहि बिनु पूँछें। तेहि तें परेउ मनोरथु छूछें।। + +रिस परिहरू अब मंगल साजू। कछु दिन गएँ भरत जुबराजू।। + +एकहि बात मोहि दुखु लागा। बर दूसर असमंजस मागा।। + +अजहुँ हृदय जरत तेहि आँचा। रिस परिहास कि साँचेहुँ साँचा।। + +कहु तजि रोषु राम अपराधू। सबु कोउ कहइ रामु सुठि साधू।। + +तुहूँ सराहसि करसि सनेहू। अब सुनि मोहि भयउ संदेहू।। + +जासु सुभाउ अरिहि अनुकूला। सो किमि करिहि मातु प्रतिकूला।।प्रिया हास रिस परिहरहि मागु बिचारि बिबेकु। + +जेहिं देखाँ अब नयन भरि भरत राज अभिषेकु।।32।।जिऐ मीन बरू बारि बिहीना। मनि बिनु फनिकु जिऐ दुख दीना।। + +कहउँ सुभाउ न छलु मन माहीं। जीवनु मोर राम बिनु नाहीं।। + +समुझि देखु जियँ प्रिया प्रबीना। जीवनु राम दरस आधीना।। + +सुनि म्रदु बचन कुमति अति जरई। मनहुँ अनल आहुति घृत परई।। + +कहइ करहु किन कोटि उपाया। इहाँ न लागिहि राउरि माया।। + +देहु कि लेहु अजसु करि नाहीं। मोहि न बहुत प्रपंच सोहाहीं। + +रामु साधु तुम्ह साधु सयाने। राममातु भलि सब पहिचाने।। + +जस कौसिलाँ मोर भल ताका। तस फलु उन्हहि देउँ करि साका।।होत प्रात मुनिबेष धरि जौं न रामु बन जाहिं। + +मोर मरनु राउर अजस नृप समुझिअ मन माहिं।।33।।अस कहि कुटिल भई उठि ठाढ़ी। मानहुँ रोष तरंगिनि बाढ़ी।। + +पाप पहार प्रगट भइ सोई। भरी क्रोध जल जाइ न जोई।। + +दोउ बर कूल कठिन हठ धारा। भवँर कूबरी बचन प्रचारा।। + +ढाहत भूपरूप तरु मूला। चली बिपति बारिधि अनुकूला।। + +लखी नरेस बात फुरि साँची। तिय मिस मीचु सीस पर नाची।। + +गहि पद बिनय कीन्ह बैठारी। जनि दिनकर कुल होसि कुठारी।। + +मागु माथ अबहीं देउँ तोही। राम बिरहँ जनि मारसि मोही।। + +राखु राम कहुँ जेहि तेहि भाँती। नाहिं त जरिहि जनम भरि छाती।।देखी ब्याधि असाध नृपु परेउ धरनि धुनि माथ। + +कहत परम आरत बचन राम राम रघुनाथ।।34।।ब्याकुल राउ सिथिल सब गाता। करिनि कलपतरु मनहुँ निपाता।। + +कंठु सूख मुख आव न बानी। जनु पाठीनु दीन बिनु पानी।। + +पुनि कह कटु कठोर कैकेई। मनहुँ घाय महुँ माहुर देई।। + +जौं अंतहुँ अस करतबु रहेऊ। मागु मागु तुम्ह केहिं बल कहेऊ।। + +दुइ कि होइ एक समय भुआला। हँसब ठठाइ फुलाउब गाला।। + +दानि कहाउब अरु कृपनाई। होइ कि खेम कुसल रौताई।। + +छाड़हु बचनु कि धीरजु धरहू। जनि अबला जिमि करुना करहू।। + +तनु तिय तनय धामु धनु धरनी। सत्यसंध कहुँ तृन सम बरनी।।मरम बचन सुनि राउ कह कहु कछु दोषु न तोर। + +लागेउ तोहि पिसाच जिमि कालु कहावत मोर।।35।।चहत न भरत भूपतहि भोरें। बिधि बस कुमति बसी जिय तोरें।। + +सो सबु मोर पाप परिनामू। भयउ कुठाहर जेहिं बिधि बामू।। + +सुबस बसिहि फिरि अवध सुहाई। सब गुन धाम राम प्रभुताई।। + +करिहहिं भाइ सकल सेवकाई। होइहि तिहुँ पुर राम बड़ाई।। + +तोर कलंकु मोर पछिताऊ। मुएहुँ न मिटहि न जाइहि काऊ।। + +अब तोहि नीक लाग करु सोई। लोचन ओट बैठु मुहु गोई।। + +जब लगि जिऔं कहउँ कर जोरी। तब लगि जनि कछु कहसि बहोरी।। + +फिरि पछितैहसि अंत अभागी। मारसि गाइ नहारु लागी।।परेउ राउ कहि कोटि बिधि काहे करसि निदानु। + +कपट सयानि न कहति कछु जागति मनहुँ मसानु।।36।।राम राम रट बिकल भुआलू। जनु बिनु पंख बिहंग बेहालू।। + +हृदयँ मनाव भोरु जनि होई। रामहि जाइ कहै जनि कोई।। + +उदउ करहु जनि रबि रघुकुल गुर। अवध बिलोकि सूल होइहि उर।। + +भूप प्रीति कैकइ कठिनाई। उभय अवधि बिधि रची बनाई।। + +बिलपत नृपहि भयउ भिनुसारा। बीना बेनु संख धुनि द्वारा।। + +पढ़हिं भाट गुन गावहिं गायक। सुनत नृपहि जनु लागहिं सायक।। + +मंगल सकल सोहाहिं न कैसें। सहगामिनिहि बिभूषन जैसें।। + +तेहिं निसि नीद परी नहि काहू। राम दरस लालसा उछाहू।।द्वार भीर सेवक सचिव कहहिं उदित रबि देखि। + +जागेउ अजहुँ न अवधपति कारनु कवनु बिसेषि।।37।।पछिले पहर भूपु नित जागा। आजु हमहि बड़ अचरजु लागा।। + +जाहु सुमंत्र जगावहु जाई। कीजिअ काजु रजायसु पाई।। + +गए सुमंत्रु तब राउर माही। देखि भयावन जात डेराहीं।। + +धाइ खाइ जनु जाइ न हेरा। मानहुँ बिपति बिषाद बसेरा।। + +पूछें कोउ न ऊतरु देई। गए जेंहिं भवन भूप कैकैई।। + +कहि जयजीव बैठ सिरु नाई। दैखि भूप गति गयउ सुखाई।। + +सोच बिकल बिबरन महि परेऊ। मानहुँ कमल मूलु परिहरेऊ।। + +सचिउ सभीत सकइ नहिं पूँछी। बोली असुभ भरी सुभ छूछी।।परी न राजहि नीद निसि हेतु जान जगदीसु। + +रामु रामु रटि भोरु किय कहइ न मरमु महीसु।।38।।आनहु रामहि बेगि बोलाई। समाचार तब पूँछेहु आई।। + +चलेउ सुमंत्र राय रूख जानी। लखी कुचालि कीन्हि कछु रानी।। + +सोच बिकल मग परइ न पाऊ। रामहि बोलि कहिहि का राऊ।। + +उर धरि धीरजु गयउ दुआरें। पूछँहिं सकल देखि मनु मारें।। + +समाधानु करि सो सबही का। गयउ जहाँ दिनकर कुल टीका।। + +रामु सुमंत्रहि आवत देखा। आदरु कीन्ह पिता सम लेखा।। + +निरखि बदनु कहि भूप रजाई। रघुकुलदीपहि चलेउ लेवाई।। + +रामु कुभाँति सचिव सँग जाहीं। देखि लोग जहँ तहँ बिलखाहीं।।जाइ दीख रघुबंसमनि नरपति निपट कुसाजु।। + +सहमि परेउ लखि सिंघिनिहि मनहुँ बृद्ध गजराजु।।39।।सूखहिं अधर जरइ सबु अंगू। मनहुँ दीन मनिहीन भुअंगू।। + +सरुष समीप दीखि कैकेई। मानहुँ मीचु घरी गनि लेई।। + +करुनामय मृदु राम सुभ���ऊ। प्रथम दीख दुखु सुना न काऊ।। + +तदपि धीर धरि समउ बिचारी। पूँछी मधुर बचन महतारी।। + +मोहि कहु मातु तात दुख कारन। करिअ जतन जेहिं होइ निवारन।। + +सुनहु राम सबु कारन एहू। राजहि तुम पर बहुत सनेहू।। + +देन कहेन्हि मोहि दुइ बरदाना। मागेउँ जो कछु मोहि सोहाना। + +सो सुनि भयउ भूप उर सोचू। छाड़ि न सकहिं तुम्हार सँकोचू।।सुत सनेह इत बचनु उत संकट परेउ नरेसु। + +सकहु न आयसु धरहु सिर मेटहु कठिन कलेसु।।40।।निधरक बैठि कहइ कटु बानी। सुनत कठिनता अति अकुलानी।। + +जीभ कमान बचन सर नाना। मनहुँ महिप मृदु लच्छ समाना।। + +जनु कठोरपनु धरें सरीरू। सिखइ धनुषबिद्या बर बीरू।। + +सब प्रसंगु रघुपतिहि सुनाई। बैठि मनहुँ तनु धरि निठुराई।। + +मन मुसकाइ भानुकुल भानु। रामु सहज आनंद निधानू।। + +बोले बचन बिगत सब दूषन। मृदु मंजुल जनु बाग बिभूषन।। + +सुनु जननी सोइ सुतु बड़भागी। जो पितु मातु बचन अनुरागी।। + +तनय मातु पितु तोषनिहारा। दुर्लभ जननि सकल संसारा।।मुनिगन मिलनु बिसेषि बन सबहि भाँति हित मोर। + +तेहि महँ पितु आयसु बहुरि संमत जननी तोर।।41।।भरत प्रानप्रिय पावहिं राजू। बिधि सब बिधि मोहि सनमुख आजु। + +जों न जाउँ बन ऐसेहु काजा। प्रथम गनिअ मोहि मूढ़ समाजा।। + +सेवहिं अरँडु कलपतरु त्यागी। परिहरि अमृत लेहिं बिषु मागी।। + +तेउ न पाइ अस समउ चुकाहीं। देखु बिचारि मातु मन माहीं।। + +अंब एक दुखु मोहि बिसेषी। निपट बिकल नरनायकु देखी।। + +थोरिहिं बात पितहि दुख भारी। होति प्रतीति न मोहि महतारी।। + +राउ धीर गुन उदधि अगाधू। भा मोहि ते कछु बड़ अपराधू।। + +जातें मोहि न कहत कछु राऊ। मोरि सपथ तोहि कहु सतिभाऊ।।सहज सरल रघुबर बचन कुमति कुटिल करि जान। + +चलइ जोंक जल बक्रगति जद्यपि सलिलु समान।।42।।रहसी रानि राम रुख पाई। बोली कपट सनेहु जनाई।। + +सपथ तुम्हार भरत कै आना। हेतु न दूसर मै कछु जाना।। + +तुम्ह अपराध जोगु नहिं ताता। जननी जनक बंधु सुखदाता।। + +राम सत्य सबु जो कछु कहहू। तुम्ह पितु मातु बचन रत अहहू।। + +पितहि बुझाइ कहहु बलि सोई। चौथेंपन जेहिं अजसु न होई।। + +तुम्ह सम सुअन सुकृत जेहिं दीन्हे। उचित न तासु निरादरु कीन्हे।। + +लागहिं कुमुख बचन सुभ कैसे। मगहँ गयादिक तीरथ जैसे।। + +रामहि मातु बचन सब भाए। जिमि सुरसरि गत सलिल सुहाए।।गइ मुरुछा रामहि सुमिरि नृप फिरि करवट लीन्ह। + +सचिव राम आगमन कहि बिनय समय सम कीन्ह।।43।।अवनिप अकनि रामु पगु धारे। धरि धीरजु तब नयन उघारे।। + +सचिवँ सँभारि राउ बैठारे। चरन परत नृप रामु निहारे।। + +लिए सनेह बिकल उर लाई। गै मनि मनहुँ फनिक फिरि पाई।। + +रामहि चितइ रहेउ नरनाहू। चला बिलोचन बारि प्रबाहू।। + +सोक बिबस कछु कहै न पारा। हृदयँ लगावत बारहिं बारा।। + +बिधिहि मनाव राउ मन माहीं। जेहिं रघुनाथ न कानन जाहीं।। + +सुमिरि महेसहि कहइ निहोरी। बिनती सुनहु सदासिव मोरी।। + +आसुतोष तुम्ह अवढर दानी। आरति हरहु दीन जनु जानी।।तुम्ह प्रेरक सब के हृदयँ सो मति रामहि देहु। + +बचनु मोर तजि रहहि घर परिहरि सीलु सनेहु।।44।।अजसु होउ जग सुजसु नसाऊ। नरक परौ बरु सुरपुरु जाऊ।। + +सब दुख दुसह सहावहु मोही। लोचन ओट रामु जनि होंही।। + +अस मन गुनइ राउ नहिं बोला। पीपर पात सरिस मनु डोला।। + +रघुपति पितहि प्रेमबस जानी। पुनि कछु कहिहि मातु अनुमानी।। + +देस काल अवसर अनुसारी। बोले बचन बिनीत बिचारी।। + +तात कहउँ कछु करउँ ढिठाई। अनुचितु छमब जानि लरिकाई।। + +अति लघु बात लागि दुखु पावा। काहुँ न मोहि कहि प्रथम जनावा।। + +देखि गोसाइँहि पूँछिउँ माता। सुनि प्रसंगु भए सीतल गाता।।मंगल समय सनेह बस सोच परिहरिअ तात। + +आयसु देइअ हरषि हियँ कहि पुलके प्रभु गात।।45।।धन्य जनमु जगतीतल तासू। पितहि प्रमोदु चरित सुनि जासू।। + +चारि पदारथ करतल ताकें। प्रिय पितु मातु प्रान सम जाकें।। + +आयसु पालि जनम फलु पाई। ऐहउँ बेगिहिं होउ रजाई।। + +बिदा मातु सन आवउँ मागी। चलिहउँ बनहि बहुरि पग लागी।। + +अस कहि राम गवनु तब कीन्हा। भूप सोक बसु उतरु न दीन्हा।। + +नगर ब्यापि गइ बात सुतीछी। छुअत चढ़ी जनु सब तन बीछी।। + +सुनि भए बिकल सकल नर नारी। बेलि बिटप जिमि देखि दवारी।। + +जो जहँ सुनइ धुनइ सिरु सोई। बड़ बिषादु नहिं धीरजु होई।।मुख सुखाहिं लोचन स्त्रवहि सोकु न हृदयँ समाइ। + +मनहुँ करुन रस कटकई उतरी अवध बजाइ।।46।।मिलेहि माझ बिधि बात बेगारी। जहँ तहँ देहिं कैकेइहि गारी।। + +एहि पापिनिहि बूझि का परेऊ। छाइ भवन पर पावकु धरेऊ।। + +निज कर नयन काढ़ि चह दीखा। डारि सुधा बिषु चाहत चीखा।। + +कुटिल कठोर कुबुद्धि अभागी। भइ रघुबंस बेनु बन आगी।। + +पालव बैठि पेड़ु एहिं काटा। सुख महुँ सोक ठाटु धरि ठाटा।। + +सदा रामु एहि प्रान समाना। कारन कवन कुटिलपनु ठाना।। + +सत्य कहहिं कबि नारि सुभाऊ। सब बिधि अगहु अगाध दुराऊ।। + +निज प्रतिबिंबु बरुकु गहि जाई। जानि न जाइ नारि गति भाई।।काह न पावकु जारि सक का न समुद्र समाइ। + +का न करै अबला प्रबल केहि जग कालु न खाइ।।47।।का सुनाइ बिधि काह सुनावा। का देखाइ चह काह देखावा।। + +एक कहहिं भल भूप न कीन्हा। बरु बिचारि नहिं कुमतिहि दीन्हा।। + +जो हठि भयउ सकल दुख भाजनु। अबला बिबस ग्यानु गुनु गा जनु।। + +एक धरम परमिति पहिचाने। नृपहि दोसु नहिं देहिं सयाने।। + +सिबि दधीचि हरिचंद कहानी। एक एक सन कहहिं बखानी।। + +एक भरत कर संमत कहहीं। एक उदास भायँ सुनि रहहीं।। + +कान मूदि कर रद गहि जीहा। एक कहहिं यह बात अलीहा।। + +सुकृत जाहिं अस कहत तुम्हारे। रामु भरत कहुँ प्रानपिआरे।।चंदु चवै बरु अनल कन सुधा होइ बिषतूल। + +सपनेहुँ कबहुँ न करहिं किछु भरतु राम प्रतिकूल।।48।।एक बिधातहिं दूषनु देंहीं। सुधा देखाइ दीन्ह बिषु जेहीं।। + +खरभरु नगर सोचु सब काहू। दुसह दाहु उर मिटा उछाहू।। + +बिप्रबधू कुलमान्य जठेरी। जे प्रिय परम कैकेई केरी।। + +लगीं देन सिख सीलु सराही। बचन बानसम लागहिं ताही।। + +भरतु न मोहि प्रिय राम समाना। सदा कहहु यहु सबु जगु जाना।। + +करहु राम पर सहज सनेहू। केहिं अपराध आजु बनु देहू।। + +कबहुँ न कियहु सवति आरेसू। प्रीति प्रतीति जान सबु देसू।। + +कौसल्याँ अब काह बिगारा। तुम्ह जेहि लागि बज्र पुर पारा।।सीय कि पिय सँगु परिहरिहि लखनु कि रहिहहिं धाम। + +राजु कि भूँजब भरत पुर नृपु कि जिइहि बिनु राम।।49।।अस बिचारि उर छाड़हु कोहू। सोक कलंक कोठि जनि होहू।। + +भरतहि अवसि देहु जुबराजू। कानन काह राम कर काजू।। + +नाहिन रामु राज के भूखे। धरम धुरीन बिषय रस रूखे।। + +गुर गृह बसहुँ रामु तजि गेहू। नृप सन अस बरु दूसर लेहू।। + +जौं नहिं लगिहहु कहें हमारे। नहिं लागिहि कछु हाथ तुम्हारे।। + +जौं परिहास कीन्हि कछु होई। तौ कहि प्रगट जनावहु सोई।। + +राम सरिस सुत कानन जोगू। काह कहिहि सुनि तुम्ह कहुँ लोगू।। + +उठहु बेगि सोइ करहु उपाई। जेहि बिधि सोकु कलंकु नसाई।।जेहि भाँति सोकु कलंकु जाइ उपाय करि कुल पालही। + +हठि फेरु रामहि जात बन जनि बात दूसरि चालही।। + +जिमि भानु बिनु दिनु प्रान बिनु तनु चंद बिनु जिमि जामिनी। + +तिमि अवध तुलसीदास प्रभु बिनु समुझि धौं जियँ भामिनी।।सखिन्ह सिखावनु दीन्ह सुनत मधुर परिनाम हित। + +तेइँ कछु कान न कीन्ह कुटिल प्रबोधी कूबरी।।50।।उतरु न देइ दुसह रिस रूखी। मृगिन्ह चितव जन�� बाघिनि भूखी।। + +ब्याधि असाधि जानि तिन्ह त्यागी। चलीं कहत मतिमंद अभागी।। + +राजु करत यह दैअँ बिगोई। कीन्हेसि अस जस करइ न कोई।। + +एहि बिधि बिलपहिं पुर नर नारीं। देहिं कुचालिहि कोटिक गारीं।। + +जरहिं बिषम जर लेहिं उसासा। कवनि राम बिनु जीवन आसा।। + +बिपुल बियोग प्रजा अकुलानी। जनु जलचर गन सूखत पानी।। + +अति बिषाद बस लोग लोगाई। गए मातु पहिं रामु गोसाई।। + +मुख प्रसन्न चित चौगुन चाऊ। मिटा सोचु जनि राखै राऊ।।नव गयंदु रघुबीर मनु राजु अलान समान। + +छूट जानि बन गवनु सुनि उर अनंदु अधिकान।।51।।रघुकुलतिलक जोरि दोउ हाथा। मुदित मातु पद नायउ माथा।। + +दीन्हि असीस लाइ उर लीन्हे। भूषन बसन निछावरि कीन्हे।। + +बार बार मुख चुंबति माता। नयन नेह जलु पुलकित गाता।। + +गोद राखि पुनि हृदयँ लगाए। स्त्रवत प्रेनरस पयद सुहाए।। + +प्रेमु प्रमोदु न कछु कहि जाई। रंक धनद पदबी जनु पाई।। + +सादर सुंदर बदनु निहारी। बोली मधुर बचन महतारी।। + +कहहु तात जननी बलिहारी। कबहिं लगन मुद मंगलकारी।। + +सुकृत सील सुख सीवँ सुहाई। जनम लाभ कइ अवधि अघाई।।जेहि चाहत नर नारि सब अति आरत एहि भाँति। + +जिमि चातक चातकि तृषित बृष्टि सरद रितु स्वाति।।52।।तात जाउँ बलि बेगि नहाहू। जो मन भाव मधुर कछु खाहू।। + +पितु समीप तब जाएहु भैआ। भइ बड़ि बार जाइ बलि मैआ।। + +मातु बचन सुनि अति अनुकूला। जनु सनेह सुरतरु के फूला।। + +सुख मकरंद भरे श्रियमूला। निरखि राम मनु भवरुँ न भूला।। + +धरम धुरीन धरम गति जानी। कहेउ मातु सन अति मृदु बानी।। + +पिताँ दीन्ह मोहि कानन राजू। जहँ सब भाँति मोर बड़ काजू।। + +आयसु देहि मुदित मन माता। जेहिं मुद मंगल कानन जाता।। + +जनि सनेह बस डरपसि भोरें। आनँदु अंब अनुग्रह तोरें।।बरष चारिदस बिपिन बसि करि पितु बचन प्रमान। + +आइ पाय पुनि देखिहउँ मनु जनि करसि मलान।।53।।बचन बिनीत मधुर रघुबर के। सर सम लगे मातु उर करके।। + +सहमि सूखि सुनि सीतलि बानी। जिमि जवास परें पावस पानी।। + +कहि न जाइ कछु हृदय बिषादू। मनहुँ मृगी सुनि केहरि नादू।। + +नयन सजल तन थर थर काँपी। माजहि खाइ मीन जनु मापी।। + +धरि धीरजु सुत बदनु निहारी। गदगद बचन कहति महतारी।। + +तात पितहि तुम्ह प्रानपिआरे। देखि मुदित नित चरित तुम्हारे।। + +राजु देन कहुँ सुभ दिन साधा। कहेउ जान बन केहिं अपराधा।। + +तात सुनावहु मोहि निदानू। को दिनकर कुल भयउ कृसानू।।निरख�� राम रुख सचिवसुत कारनु कहेउ बुझाइ। + +सुनि प्रसंगु रहि मूक जिमि दसा बरनि नहिं जाइ।।54।।राखि न सकइ न कहि सक जाहू। दुहूँ भाँति उर दारुन दाहू।। + +लिखत सुधाकर गा लिखि राहू। बिधि गति बाम सदा सब काहू।। + +धरम सनेह उभयँ मति घेरी। भइ गति साँप छुछुंदरि केरी।। + +राखउँ सुतहि करउँ अनुरोधू। धरमु जाइ अरु बंधु बिरोधू।। + +कहउँ जान बन तौ बड़ि हानी। संकट सोच बिबस भइ रानी।। + +बहुरि समुझि तिय धरमु सयानी। रामु भरतु दोउ सुत सम जानी।। + +सरल सुभाउ राम महतारी। बोली बचन धीर धरि भारी।। + +तात जाउँ बलि कीन्हेहु नीका। पितु आयसु सब धरमक टीका।।राजु देन कहि दीन्ह बनु मोहि न सो दुख लेसु। + +तुम्ह बिनु भरतहि भूपतिहि प्रजहि प्रचंड कलेसु।।55।।जौं केवल पितु आयसु ताता। तौ जनि जाहु जानि बड़ि माता।। + +जौं पितु मातु कहेउ बन जाना। तौं कानन सत अवध समाना।। + +पितु बनदेव मातु बनदेवी। खग मृग चरन सरोरुह सेवी।। + +अंतहुँ उचित नृपहि बनबासू। बय बिलोकि हियँ होइ हराँसू।। + +बड़भागी बनु अवध अभागी। जो रघुबंसतिलक तुम्ह त्यागी।। + +जौं सुत कहौ संग मोहि लेहू। तुम्हरे हृदयँ होइ संदेहू।। + +पूत परम प्रिय तुम्ह सबही के। प्रान प्रान के जीवन जी के।। + +ते तुम्ह कहहु मातु बन जाऊँ। मैं सुनि बचन बैठि पछिताऊँ।।यह बिचारि नहिं करउँ हठ झूठ सनेहु बढ़ाइ। + +मानि मातु कर नात बलि सुरति बिसरि जनि जाइ।।56।।देव पितर सब तुन्हहि गोसाई। राखहुँ पलक नयन की नाई।। + +अवधि अंबु प्रिय परिजन मीना। तुम्ह करुनाकर धरम धुरीना।। + +अस बिचारि सोइ करहु उपाई। सबहि जिअत जेहिं भेंटेहु आई।। + +जाहु सुखेन बनहि बलि जाऊँ। करि अनाथ जन परिजन गाऊँ।। + +सब कर आजु सुकृत फल बीता। भयउ कराल कालु बिपरीता।। + +बहुबिधि बिलपि चरन लपटानी। परम अभागिनि आपुहि जानी।। + +दारुन दुसह दाहु उर ब्यापा। बरनि न जाहिं बिलाप कलापा।। + +राम उठाइ मातु उर लाई। कहि मृदु बचन बहुरि समुझाई।।समाचार तेहि समय सुनि सीय उठी अकुलाइ। + +जाइ सासु पद कमल जुग बंदि बैठि सिरु नाइ।।57।।दीन्हि असीस सासु मृदु बानी। अति सुकुमारि देखि अकुलानी।। + +बैठि नमितमुख सोचति सीता। रूप रासि पति प्रेम पुनीता।। + +चलन चहत बन जीवननाथू। केहि सुकृती सन होइहि साथू।। + +की तनु प्रान कि केवल प्राना। बिधि करतबु कछु जाइ न जाना।। + +चारु चरन नख लेखति धरनी। नूपुर मुखर मधुर कबि बरनी।। + +मनहुँ प्रेम बस बिनती करहीं। हम��ि सीय पद जनि परिहरहीं।। + +मंजु बिलोचन मोचति बारी। बोली देखि राम महतारी।। + +तात सुनहु सिय अति सुकुमारी। सासु ससुर परिजनहि पिआरी।।पिता जनक भूपाल मनि ससुर भानुकुल भानु। + +पति रबिकुल कैरव बिपिन बिधु गुन रूप निधानु।।58।।मैं पुनि पुत्रबधू प्रिय पाई। रूप रासि गुन सील सुहाई।। + +नयन पुतरि करि प्रीति बढ़ाई। राखेउँ प्रान जानिकिहिं लाई।। + +कलपबेलि जिमि बहुबिधि लाली। सींचि सनेह सलिल प्रतिपाली।। + +फूलत फलत भयउ बिधि बामा। जानि न जाइ काह परिनामा।। + +पलँग पीठ तजि गोद हिंड़ोरा। सियँ न दीन्ह पगु अवनि कठोरा।। + +जिअनमूरि जिमि जोगवत रहऊँ। दीप बाति नहिं टारन कहऊँ।। + +सोइ सिय चलन चहति बन साथा। आयसु काह होइ रघुनाथा। + +चंद किरन रस रसिक चकोरी। रबि रुख नयन सकइ किमि जोरी।।करि केहरि निसिचर चरहिं दुष्ट जंतु बन भूरि। + +बिष बाटिकाँ कि सोह सुत सुभग सजीवनि मूरि।।59।।बन हित कोल किरात किसोरी। रचीं बिरंचि बिषय सुख भोरी।। + +पाइन कृमि जिमि कठिन सुभाऊ। तिन्हहि कलेसु न कानन काऊ।। + +कै तापस तिय कानन जोगू। जिन्ह तप हेतु तजा सब भोगू।। + +सिय बन बसिहि तात केहि भाँती। चित्रलिखित कपि देखि डेराती।। + +सुरसर सुभग बनज बन चारी। डाबर जोगु कि हंसकुमारी।। + +अस बिचारि जस आयसु होई। मैं सिख देउँ जानकिहि सोई।। + +जौं सिय भवन रहै कह अंबा। मोहि कहँ होइ बहुत अवलंबा।। + +सुनि रघुबीर मातु प्रिय बानी। सील सनेह सुधाँ जनु सानी।।कहि प्रिय बचन बिबेकमय कीन्हि मातु परितोष। + +लगे प्रबोधन जानकिहि प्रगटि बिपिन गुन दोष।।60।।मातु समीप कहत सकुचाहीं। बोले समउ समुझि मन माहीं।। + +राजकुमारि सिखावन सुनहू। आन भाँति जियँ जनि कछु गुनहू।। + +आपन मोर नीक जौं चहहू। बचनु हमार मानि गृह रहहू।। + +आयसु मोर सासु सेवकाई। सब बिधि भामिनि भवन भलाई।। + +एहि ते अधिक धरमु नहिं दूजा। सादर सासु ससुर पद पूजा।। + +जब जब मातु करिहि सुधि मोरी। होइहि प्रेम बिकल मति भोरी।। + +तब तब तुम्ह कहि कथा पुरानी। सुंदरि समुझाएहु मृदु बानी।। + +कहउँ सुभायँ सपथ सत मोही। सुमुखि मातु हित राखउँ तोही।।गुर श्रुति संमत धरम फलु पाइअ बिनहिं कलेस। + +हठ बस सब संकट सहे गालव नहुष नरेस।।61।।मैं पुनि करि प्रवान पितु बानी। बेगि फिरब सुनु सुमुखि सयानी।। + +दिवस जात नहिं लागिहि बारा। सुंदरि सिखवनु सुनहु हमारा।। + +जौ हठ करहु प्रेम बस बामा। तौ तुम्ह दुखु पाउब परिनामा।। + +काननु कठिन भयंकरु भारी। घोर घामु हिम बारि बयारी।। + +कुस कंटक मग काँकर नाना। चलब पयादेहिं बिनु पदत्राना।। + +चरन कमल मुदु मंजु तुम्हारे। मारग अगम भूमिधर भारे।। + +कंदर खोह नदीं नद नारे। अगम अगाध न जाहिं निहारे।। + +भालु बाघ बृक केहरि नागा। करहिं नाद सुनि धीरजु भागा।।भूमि सयन बलकल बसन असनु कंद फल मूल। + +ते कि सदा सब दिन मिलिहिं सबुइ समय अनुकूल।।62।।नर अहार रजनीचर चरहीं। कपट बेष बिधि कोटिक करहीं।। + +लागइ अति पहार कर पानी। बिपिन बिपति नहिं जाइ बखानी।। + +ब्याल कराल बिहग बन घोरा। निसिचर निकर नारि नर चोरा।। + +डरपहिं धीर गहन सुधि आएँ। मृगलोचनि तुम्ह भीरु सुभाएँ।। + +हंसगवनि तुम्ह नहिं बन जोगू। सुनि अपजसु मोहि देइहि लोगू।। + +मानस सलिल सुधाँ प्रतिपाली। जिअइ कि लवन पयोधि मराली।। + +नव रसाल बन बिहरनसीला। सोह कि कोकिल बिपिन करीला।। + +रहहु भवन अस हृदयँ बिचारी। चंदबदनि दुखु कानन भारी।।सहज सुह्द गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि।। + +सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि।।63।।सुनि मृदु बचन मनोहर पिय के। लोचन ललित भरे जल सिय के।। + +सीतल सिख दाहक भइ कैंसें। चकइहि सरद चंद निसि जैंसें।। + +उतरु न आव बिकल बैदेही। तजन चहत सुचि स्वामि सनेही।। + +बरबस रोकि बिलोचन बारी। धरि धीरजु उर अवनिकुमारी।। + +लागि सासु पग कह कर जोरी। छमबि देबि बड़ि अबिनय मोरी।। + +दीन्हि प्रानपति मोहि सिख सोई। जेहि बिधि मोर परम हित होई।। + +मैं पुनि समुझि दीखि मन माहीं। पिय बियोग सम दुखु जग नाहीं।।प्राननाथ करुनायतन सुंदर सुखद सुजान। + +तुम्ह बिनु रघुकुल कुमुद बिधु सुरपुर नरक समान।।64।।मातु पिता भगिनी प्रिय भाई। प्रिय परिवारु सुह्रद समुदाई।। + +सासु ससुर गुर सजन सहाई। सुत सुंदर सुसील सुखदाई।। + +जहँ लगि नाथ नेह अरु नाते। पिय बिनु तियहि तरनिहु ते ताते।। + +तनु धनु धामु धरनि पुर राजू। पति बिहीन सबु सोक समाजू।। + +भोग रोगसम भूषन भारू। जम जातना सरिस संसारू।। + +प्राननाथ तुम्ह बिनु जग माहीं। मो कहुँ सुखद कतहुँ कछु नाहीं।। + +जिय बिनु देह नदी बिनु बारी। तैसिअ नाथ पुरुष बिनु नारी।। + +नाथ सकल सुख साथ तुम्हारें। सरद बिमल बिधु बदनु निहारें।।खग मृग परिजन नगरु बनु बलकल बिमल दुकूल। + +नाथ साथ सुरसदन सम परनसाल सुख मूल।।65।।बनदेवीं बनदेव उदारा। करिहहिं सासु ससुर सम सारा।। + +कुस किसलय साथरी सुहाई। प्रभु सँग मंजु मनोज तुराई।। + +कंद मूल फल अमिअ अहारू। अवध सौध सत सरिस पहारू।। + +छिनु छिनु प्रभु पद कमल बिलोकि। रहिहउँ मुदित दिवस जिमि कोकी।। + +बन दुख नाथ कहे बहुतेरे। भय बिषाद परिताप घनेरे।। + +प्रभु बियोग लवलेस समाना। सब मिलि होहिं न कृपानिधाना।। + +अस जियँ जानि सुजान सिरोमनि। लेइअ संग मोहि छाड़िअ जनि।। + +बिनती बहुत करौं का स्वामी। करुनामय उर अंतरजामी।।राखिअ अवध जो अवधि लगि रहत न जनिअहिं प्रान। + +दीनबंधु संदर सुखद सील सनेह निधान।।66।।मोहि मग चलत न होइहि हारी। छिनु छिनु चरन सरोज निहारी।। + +सबहि भाँति पिय सेवा करिहौं। मारग जनित सकल श्रम हरिहौं।। + +पाय पखारी बैठि तरु छाहीं। करिहउँ बाउ मुदित मन माहीं।। + +श्रम कन सहित स्याम तनु देखें। कहँ दुख समउ प्रानपति पेखें।। + +सम महि तृन तरुपल्लव डासी। पाग पलोटिहि सब निसि दासी।। + +बारबार मृदु मूरति जोही। लागहि तात बयारि न मोही। + +को प्रभु सँग मोहि चितवनिहारा। सिंघबधुहि जिमि ससक सिआरा।। + +मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू। तुम्हहि उचित तप मो कहुँ भोगू।।ऐसेउ बचन कठोर सुनि जौं न ह्रदउ बिलगान। + +तौ प्रभु बिषम बियोग दुख सहिहहिं पावँर प्रान।।67।।अस कहि सीय बिकल भइ भारी। बचन बियोगु न सकी सँभारी।। + +देखि दसा रघुपति जियँ जाना। हठि राखें नहिं राखिहि प्राना।। + +कहेउ कृपाल भानुकुलनाथा। परिहरि सोचु चलहु बन साथा।। + +नहिं बिषाद कर अवसरु आजू। बेगि करहु बन गवन समाजू।। + +कहि प्रिय बचन प्रिया समुझाई। लगे मातु पद आसिष पाई।। + +बेगि प्रजा दुख मेटब आई। जननी निठुर बिसरि जनि जाई।। + +फिरहि दसा बिधि बहुरि कि मोरी। देखिहउँ नयन मनोहर जोरी।। + +सुदिन सुघरी तात कब होइहि। जननी जिअत बदन बिधु जोइहि।।बहुरि बच्छ कहि लालु कहि रघुपति रघुबर तात। + +कबहिं बोलाइ लगाइ हियँ हरषि निरखिहउँ गात।।68।।लखि सनेह कातरि महतारी। बचनु न आव बिकल भइ भारी।। + +राम प्रबोधु कीन्ह बिधि नाना। समउ सनेहु न जाइ बखाना।। + +तब जानकी सासु पग लागी। सुनिअ माय मैं परम अभागी।। + +सेवा समय दैअँ बनु दीन्हा। मोर मनोरथु सफल न कीन्हा।। + +तजब छोभु जनि छाड़िअ छोहू। करमु कठिन कछु दोसु न मोहू।। + +सुनि सिय बचन सासु अकुलानी। दसा कवनि बिधि कहौं बखानी।। + +बारहि बार लाइ उर लीन्ही। धरि धीरजु सिख आसिष दीन्ही।। + +अचल होउ अहिवातु तुम्हारा। जब लगि गंग जमुन जल धारा।।सीतहि सासु असीस सिख दीन्हि अनेक प्रकार। + +चली नाइ पद पदुम सिरु अति हित बारहिं बार।।69।।समाचार जब लछिमन पाए। ब्याकुल बिलख बदन उठि धाए।। + +कंप पुलक तन नयन सनीरा। गहे चरन अति प्रेम अधीरा।। + +कहि न सकत कछु चितवत ठाढ़े। मीनु दीन जनु जल तें काढ़े।। + +सोचु हृदयँ बिधि का होनिहारा। सबु सुखु सुकृत सिरान हमारा।। + +मो कहुँ काह कहब रघुनाथा। रखिहहिं भवन कि लेहहिं साथा।। + +राम बिलोकि बंधु कर जोरें। देह गेह सब सन तृनु तोरें।। + +बोले बचनु राम नय नागर। सील सनेह सरल सुख सागर।। + +तात प्रेम बस जनि कदराहू। समुझि हृदयँ परिनाम उछाहू।।मातु पिता गुरु स्वामि सिख सिर धरि करहि सुभायँ। + +लहेउ लाभु तिन्ह जनम कर नतरु जनमु जग जायँ।।70।।अस जियँ जानि सुनहु सिख भाई। करहु मातु पितु पद सेवकाई।। + +भवन भरतु रिपुसूदन नाहीं। राउ बृद्ध मम दुखु मन माहीं।। + +मैं बन जाउँ तुम्हहि लेइ साथा। होइ सबहि बिधि अवध अनाथा।। + +गुरु पितु मातु प्रजा परिवारू। सब कहुँ परइ दुसह दुख भारू।। + +रहहु करहु सब कर परितोषू। नतरु तात होइहि बड़ दोषू।। + +जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृपु अवसि नरक अधिकारी।। + +रहहु तात असि नीति बिचारी। सुनत लखनु भए ब्याकुल भारी।। + +सिअरें बचन सूखि गए कैंसें। परसत तुहिन तामरसु जैसें।।उतरु न आवत प्रेम बस गहे चरन अकुलाइ। + +नाथ दासु मैं स्वामि तुम्ह तजहु त काह बसाइ।।71।।दीन्हि मोहि सिख नीकि गोसाईं। लागि अगम अपनी कदराईं।। + +नरबर धीर धरम धुर धारी। निगम नीति कहुँ ते अधिकारी।। + +मैं सिसु प्रभु सनेहँ प्रतिपाला। मंदरु मेरु कि लेहिं मराला।। + +गुर पितु मातु न जानउँ काहू। कहउँ सुभाउ नाथ पतिआहू।। + +जहँ लगि जगत सनेह सगाई। प्रीति प्रतीति निगम निजु गाई।। + +मोरें सबइ एक तुम्ह स्वामी। दीनबंधु उर अंतरजामी।। + +धरम नीति उपदेसिअ ताही। कीरति भूति सुगति प्रिय जाही।। + +मन क्रम बचन चरन रत होई। कृपासिंधु परिहरिअ कि सोई।।करुनासिंधु सुबंध के सुनि मृदु बचन बिनीत। + +समुझाए उर लाइ प्रभु जानि सनेहँ सभीत।।72।।मागहु बिदा मातु सन जाई। आवहु बेगि चलहु बन भाई।। + +मुदित भए सुनि रघुबर बानी। भयउ लाभ बड़ गइ बड़ि हानी।। + +हरषित ह्दयँ मातु पहिं आए। मनहुँ अंध फिरि लोचन पाए। + +जाइ जननि पग नायउ माथा। मनु रघुनंदन जानकि साथा।। + +पूँछे मातु मलिन मन देखी। लखन कही सब कथा बिसेषी।। + +गई सहमि सुनि बचन कठोरा। मृगी देखि दव जनु चहु ओरा।। + +लखन लखेउ भा अनरथ आजू। एहिं सनेह बस करब अकाजू।। + +मागत बिदा सभय सकुचाहीं। जाइ संग बिधि कहिहि कि नाही।।समुझि सुमित्राँ राम सिय रूप सुसीलु सुभाउ। + +नृप सनेहु लखि धुनेउ सिरु पापिनि दीन्ह कुदाउ।।73।।धीरजु धरेउ कुअवसर जानी। सहज सुह्द बोली मृदु बानी।। + +तात तुम्हारि मातु बैदेही। पिता रामु सब भाँति सनेही।। + +अवध तहाँ जहँ राम निवासू। तहँइँ दिवसु जहँ भानु प्रकासू।। + +जौ पै सीय रामु बन जाहीं। अवध तुम्हार काजु कछु नाहिं।। + +गुर पितु मातु बंधु सुर साई। सेइअहिं सकल प्रान की नाईं।। + +रामु प्रानप्रिय जीवन जी के। स्वारथ रहित सखा सबही कै।। + +पूजनीय प्रिय परम जहाँ तें। सब मानिअहिं राम के नातें।। + +अस जियँ जानि संग बन जाहू। लेहु तात जग जीवन लाहू।।भूरि भाग भाजनु भयहु मोहि समेत बलि जाउँ। + +जौम तुम्हरें मन छाड़ि छलु कीन्ह राम पद ठाउँ।।74।।पुत्रवती जुबती जग सोई। रघुपति भगतु जासु सुतु होई।। + +नतरु बाँझ भलि बादि बिआनी। राम बिमुख सुत तें हित जानी।। + +तुम्हरेहिं भाग रामु बन जाहीं। दूसर हेतु तात कछु नाहीं।। + +सकल सुकृत कर बड़ फलु एहू। राम सीय पद सहज सनेहू।। + +राग रोषु इरिषा मदु मोहू। जनि सपनेहुँ इन्ह के बस होहू।। + +सकल प्रकार बिकार बिहाई। मन क्रम बचन करेहु सेवकाई।। + +तुम्ह कहुँ बन सब भाँति सुपासू। सँग पितु मातु रामु सिय जासू।। + +जेहिं न रामु बन लहहिं कलेसू। सुत सोइ करेहु इहइ उपदेसू।।उपदेसु यहु जेहिं तात तुम्हरे राम सिय सुख पावहीं। + +पितु मातु प्रिय परिवार पुर सुख सुरति बन बिसरावहीं।। + +तुलसी प्रभुहि सिख देइ आयसु दीन्ह पुनि आसिष दई। + +रति होउ अबिरल अमल सिय रघुबीर पद नित नित नई।।मातु चरन सिरु नाइ चले तुरत संकित हृदयँ। + +बागुर बिषम तोराइ मनहुँ भाग मृगु भाग बस।।75।।गए लखनु जहँ जानकिनाथू। भे मन मुदित पाइ प्रिय साथू।। + +बंदि राम सिय चरन सुहाए। चले संग नृपमंदिर आए।। + +कहहिं परसपर पुर नर नारी। भलि बनाइ बिधि बात बिगारी।। + +तन कृस दुखु बदन मलीने। बिकल मनहुँ माखी मधु छीने।। + +कर मीजहिं सिरु धुनि पछिताहीं। जनु बिन पंख बिहग अकुलाहीं।। + +भइ बड़ि भीर भूप दरबारा। बरनि न जाइ बिषादु अपारा।। + +सचिवँ उठाइ राउ बैठारे। कहि प्रिय बचन रामु पगु धारे।। + +सिय समेत दोउ तनय निहारी। ब्याकुल भयउ भूमिपति भारी।।सीय सहित सुत सुभग दोउ देखि देखि अकुलाइ। + +बारहिं बार सनेह बस राउ लेइ उर लाइ।।76।।सकइ न बोलि बिकल नरनाहू। सोक जनित उर दारुन दाहू।। + +नाइ सीसु पद अति अनुरागा। उठि रघुबीर बिदा तब मागा।। + +पितु असीस आयसु मोहि दीजै। हरष समय बिसमउ कत कीजै।। + +तात किएँ प्रिय प्रेम प्रमादू। जसु जग जाइ होइ अपबादू।। + +सुनि सनेह बस उठि नरनाहाँ। बैठारे रघुपति गहि बाहाँ।। + +सुनहु तात तुम्ह कहुँ मुनि कहहीं। रामु चराचर नायक अहहीं।। + +सुभ अरु असुभ करम अनुहारी। ईस देइ फलु ह्दयँ बिचारी।। + +करइ जो करम पाव फल सोई। निगम नीति असि कह सबु कोई।।औरु करै अपराधु कोउ और पाव फल भोगु। + +अति बिचित्र भगवंत गति को जग जानै जोगु।।77।।रायँ राम राखन हित लागी। बहुत उपाय किए छलु त्यागी।। + +लखी राम रुख रहत न जाने। धरम धुरंधर धीर सयाने।। + +तब नृप सीय लाइ उर लीन्ही। अति हित बहुत भाँति सिख दीन्ही।। + +कहि बन के दुख दुसह सुनाए। सासु ससुर पितु सुख समुझाए।। + +सिय मनु राम चरन अनुरागा। घरु न सुगमु बनु बिषमु न लागा।। + +औरउ सबहिं सीय समुझाई। कहि कहि बिपिन बिपति अधिकाई।। + +सचिव नारि गुर नारि सयानी। सहित सनेह कहहिं मृदु बानी।। + +तुम्ह कहुँ तौ न दीन्ह बनबासू। करहु जो कहहिं ससुर गुर सासू।।-सिख सीतलि हित मधुर मृदु सुनि सीतहि न सोहानि। + +सरद चंद चंदनि लगत जनु चकई अकुलानि।।78।।सीय सकुच बस उतरु न देई। सो सुनि तमकि उठी कैकेई।। + +मुनि पट भूषन भाजन आनी। आगें धरि बोली मृदु बानी।। + +नृपहि प्रान प्रिय तुम्ह रघुबीरा। सील सनेह न छाड़िहि भीरा।। + +सुकृत सुजसु परलोकु नसाऊ। तुम्हहि जान बन कहिहि न काऊ।। + +अस बिचारि सोइ करहु जो भावा। राम जननि सिख सुनि सुखु पावा।। + +भूपहि बचन बानसम लागे। करहिं न प्रान पयान अभागे।। + +लोग बिकल मुरुछित नरनाहू। काह करिअ कछु सूझ न काहू।। + +रामु तुरत मुनि बेषु बनाई। चले जनक जननिहि सिरु नाई।।सजि बन साजु समाजु सबु बनिता बंधु समेत। + +बंदि बिप्र गुर चरन प्रभु चले करि सबहि अचेत।।79।।निकसि बसिष्ठ द्वार भए ठाढ़े। देखे लोग बिरह दव दाढ़े।। + +कहि प्रिय बचन सकल समुझाए। बिप्र बृंद रघुबीर बोलाए।। + +गुर सन कहि बरषासन दीन्हे। आदर दान बिनय बस कीन्हे।। + +जाचक दान मान संतोषे। मीत पुनीत प्रेम परितोषे।। + +दासीं दास बोलाइ बहोरी। गुरहि सौंपि बोले कर जोरी।। + +सब कै सार सँभार गोसाईं। करबि जनक जननी की नाई।। + +बारहिं बार जोरि जुग पानी। कहत रामु सब सन मृदु बानी।। + +सोइ सब भाँति मोर हितकारी। जेहि तें रह�� भुआल सुखारी।।मातु सकल मोरे बिरहँ जेहिं न होहिं दुख दीन। + +सोइ उपाउ तुम्ह करेहु सब पुर जन परम प्रबीन।।80।।एहि बिधि राम सबहि समुझावा। गुर पद पदुम हरषि सिरु नावा। + +गनपती गौरि गिरीसु मनाई। चले असीस पाइ रघुराई।। + +राम चलत अति भयउ बिषादू। सुनि न जाइ पुर आरत नादू।। + +कुसगुन लंक अवध अति सोकू। हहरष बिषाद बिबस सुरलोकू।। + +गइ मुरुछा तब भूपति जागे। बोलि सुमंत्रु कहन अस लागे।। + +रामु चले बन प्रान न जाहीं। केहि सुख लागि रहत तन माहीं। + +एहि तें कवन ब्यथा बलवाना। जो दुखु पाइ तजहिं तनु प्राना।। + +पुनि धरि धीर कहइ नरनाहू। लै रथु संग सखा तुम्ह जाहू।।-सुठि सुकुमार कुमार दोउ जनकसुता सुकुमारि। + +रथ चढ़ाइ देखराइ बनु फिरेहु गएँ दिन चारि।।81।।जौ नहिं फिरहिं धीर दोउ भाई। सत्यसंध दृढ़ब्रत रघुराई।। + +तौ तुम्ह बिनय करेहु कर जोरी। फेरिअ प्रभु मिथिलेसकिसोरी।। + +जब सिय कानन देखि डेराई। कहेहु मोरि सिख अवसरु पाई।। + +सासु ससुर अस कहेउ सँदेसू। पुत्रि फिरिअ बन बहुत कलेसू।। + +पितृगृह कबहुँ कबहुँ ससुरारी। रहेहु जहाँ रुचि होइ तुम्हारी।। + +एहि बिधि करेहु उपाय कदंबा। फिरइ त होइ प्रान अवलंबा।। + +नाहिं त मोर मरनु परिनामा। कछु न बसाइ भएँ बिधि बामा।। + +अस कहि मुरुछि परा महि राऊ। रामु लखनु सिय आनि देखाऊ।।-पाइ रजायसु नाइ सिरु रथु अति बेग बनाइ। + +गयउ जहाँ बाहेर नगर सीय सहित दोउ भाइ।।82।।तब सुमंत्र नृप बचन सुनाए। करि बिनती रथ रामु चढ़ाए।। + +चढ़ि रथ सीय सहित दोउ भाई। चले हृदयँ अवधहि सिरु नाई।। + +चलत रामु लखि अवध अनाथा। बिकल लोग सब लागे साथा।। + +कृपासिंधु बहुबिधि समुझावहिं। फिरहिं प्रेम बस पुनि फिरि आवहिं।। + +लागति अवध भयावनि भारी। मानहुँ कालराति अँधिआरी।। + +घोर जंतु सम पुर नर नारी। डरपहिं एकहि एक निहारी।। + +घर मसान परिजन जनु भूता। सुत हित मीत मनहुँ जमदूता।। + +बागन्ह बिटप बेलि कुम्हिलाहीं। सरित सरोवर देखि न जाहीं।।हय गय कोटिन्ह केलिमृग पुरपसु चातक मोर। + +पिक रथांग सुक सारिका सारस हंस चकोर।।83।।राम बियोग बिकल सब ठाढ़े। जहँ तहँ मनहुँ चित्र लिखि काढ़े।। + +नगरु सफल बनु गहबर भारी। खग मृग बिपुल सकल नर नारी।। + +बिधि कैकेई किरातिनि कीन्ही। जेंहि दव दुसह दसहुँ दिसि दीन्ही।। + +सहि न सके रघुबर बिरहागी। चले लोग सब ब्याकुल भागी।। + +सबहिं बिचार कीन्ह मन माहीं। राम लखन सिय बिनु सुखु नाहीं।। + +जहाँ रामु तहँ सबुइ समाजू। बिनु रघुबीर अवध नहिं काजू।। + +चले साथ अस मंत्रु दृढ़ाई। सुर दुर्लभ सुख सदन बिहाई।। + +राम चरन पंकज प्रिय जिन्हही। बिषय भोग बस करहिं कि तिन्हही।।बालक बृद्ध बिहाइ गृँह लगे लोग सब साथ। + +तमसा तीर निवासु किय प्रथम दिवस रघुनाथ।।84।।रघुपति प्रजा प्रेमबस देखी। सदय हृदयँ दुखु भयउ बिसेषी।। + +करुनामय रघुनाथ गोसाँई। बेगि पाइअहिं पीर पराई।। + +कहि सप्रेम मृदु बचन सुहाए। बहुबिधि राम लोग समुझाए।। + +किए धरम उपदेस घनेरे। लोग प्रेम बस फिरहिं न फेरे।। + +सीलु सनेहु छाड़ि नहिं जाई। असमंजस बस भे रघुराई।। + +लोग सोग श्रम बस गए सोई। कछुक देवमायाँ मति मोई।। + +जबहिं जाम जुग जामिनि बीती। राम सचिव सन कहेउ सप्रीती।। + +खोज मारि रथु हाँकहु ताता। आन उपायँ बनिहि नहिं बाता।।राम लखन सुय जान चढ़ि संभु चरन सिरु नाइ।। + +सचिवँ चलायउ तुरत रथु इत उत खोज दुराइ।।85।।जागे सकल लोग भएँ भोरू। गे रघुनाथ भयउ अति सोरू।। + +रथ कर खोज कतहहुँ नहिं पावहिं। राम राम कहि चहु दिसि धावहिं।। + +मनहुँ बारिनिधि बूड़ जहाजू। भयउ बिकल बड़ बनिक समाजू।। + +एकहि एक देंहिं उपदेसू। तजे राम हम जानि कलेसू।। + +निंदहिं आपु सराहहिं मीना। धिग जीवनु रघुबीर बिहीना।। + +जौं पै प्रिय बियोगु बिधि कीन्हा। तौ कस मरनु न मागें दीन्हा।। + +एहि बिधि करत प्रलाप कलापा। आए अवध भरे परितापा।। + +बिषम बियोगु न जाइ बखाना। अवधि आस सब राखहिं प्राना।।राम दरस हित नेम ब्रत लगे करन नर नारि। + +मनहुँ कोक कोकी कमल दीन बिहीन तमारि।।86।।सीता सचिव सहित दोउ भाई। सृंगबेरपुर पहुँचे जाई।। + +उतरे राम देवसरि देखी। कीन्ह दंडवत हरषु बिसेषी।। + +लखन सचिवँ सियँ किए प्रनामा। सबहि सहित सुखु पायउ रामा।। + +गंग सकल मुद मंगल मूला। सब सुख करनि हरनि सब सूला।। + +कहि कहि कोटिक कथा प्रसंगा। रामु बिलोकहिं गंग तरंगा।। + +सचिवहि अनुजहि प्रियहि सुनाई। बिबुध नदी महिमा अधिकाई।। + +मज्जनु कीन्ह पंथ श्रम गयऊ। सुचि जलु पिअत मुदित मन भयऊ।। + +सुमिरत जाहि मिटइ श्रम भारू। तेहि श्रम यह लौकिक ब्यवहारू।।सुध्द सचिदानंदमय कंद भानुकुल केतु। + +चरित करत नर अनुहरत संसृति सागर सेतु।।87।।यह सुधि गुहँ निषाद जब पाई। मुदित लिए प्रिय बंधु बोलाई।। + +लिए फल मूल भेंट भरि भारा। मिलन चलेउ हिंयँ हरषु अपारा।। + +करि दंडवत भेंट धरि आगें। प्रभुहि बिलोकत ���ति अनुरागें।। + +सहज सनेह बिबस रघुराई। पूँछी कुसल निकट बैठाई।। + +नाथ कुसल पद पंकज देखें। भयउँ भागभाजन जन लेखें।। + +देव धरनि धनु धामु तुम्हारा। मैं जनु नीचु सहित परिवारा।। + +कृपा करिअ पुर धारिअ पाऊ। थापिय जनु सबु लोगु सिहाऊ।। + +कहेहु सत्य सबु सखा सुजाना। मोहि दीन्ह पितु आयसु आना।।बरष चारिदस बासु बन मुनि ब्रत बेषु अहारु। + +ग्राम बासु नहिं उचित सुनि गुहहि भयउ दुखु भारु।।88।।राम लखन सिय रूप निहारी। कहहिं सप्रेम ग्राम नर नारी।। + +ते पितु मातु कहहु सखि कैसे। जिन्ह पठए बन बालक ऐसे।। + +एक कहहिं भल भूपति कीन्हा। लोयन लाहु हमहि बिधि दीन्हा।। + +तब निषादपति उर अनुमाना। तरु सिंसुपा मनोहर जाना।। + +लै रघुनाथहि ठाउँ देखावा। कहेउ राम सब भाँति सुहावा।। + +पुरजन करि जोहारु घर आए। रघुबर संध्या करन सिधाए।। + +गुहँ सँवारि साँथरी डसाई। कुस किसलयमय मृदुल सुहाई।। + +सुचि फल मूल मधुर मृदु जानी। दोना भरि भरि राखेसि पानी।।सिय सुमंत्र भ्राता सहित कंद मूल फल खाइ। + +सयन कीन्ह रघुबंसमनि पाय पलोटत भाइ।।89।।उठे लखनु प्रभु सोवत जानी। कहि सचिवहि सोवन मृदु बानी।। + +कछुक दूर सजि बान सरासन। जागन लगे बैठि बीरासन।। + +गुँह बोलाइ पाहरू प्रतीती। ठावँ ठाँव राखे अति प्रीती।। + +आपु लखन पहिं बैठेउ जाई। कटि भाथी सर चाप चढ़ाई।। + +सोवत प्रभुहि निहारि निषादू। भयउ प्रेम बस ह्दयँ बिषादू।। + +तनु पुलकित जलु लोचन बहई। बचन सप्रेम लखन सन कहई।। + +भूपति भवन सुभायँ सुहावा। सुरपति सदनु न पटतर पावा।। + +मनिमय रचित चारु चौबारे। जनु रतिपति निज हाथ सँवारे।।सुचि सुबिचित्र सुभोगमय सुमन सुगंध सुबास। + +पलँग मंजु मनिदीप जहँ सब बिधि सकल सुपास।।90।।बिबिध बसन उपधान तुराई। छीर फेन मृदु बिसद सुहाई।। + +तहँ सिय रामु सयन निसि करहीं। निज छबि रति मनोज मदु हरहीं।। + +ते सिय रामु साथरीं सोए। श्रमित बसन बिनु जाहिं न जोए।। + +मातु पिता परिजन पुरबासी। सखा सुसील दास अरु दासी।। + +जोगवहिं जिन्हहि प्रान की नाई। महि सोवत तेइ राम गोसाईं।। + +पिता जनक जग बिदित प्रभाऊ। ससुर सुरेस सखा रघुराऊ।। + +रामचंदु पति सो बैदेही। सोवत महि बिधि बाम न केही।। + +सिय रघुबीर कि कानन जोगू। करम प्रधान सत्य कह लोगू।।कैकयनंदिनि मंदमति कठिन कुटिलपनु कीन्ह। + +जेहीं रघुनंदन जानकिहि सुख अवसर दुखु दीन्ह।।91।।भइ दिनकर कुल बिटप कुठारी। कुमति कीन्ह सब बिस्व दुखारी।। + +भयउ बिषादु निषादहि भारी। राम सीय महि सयन निहारी।। + +बोले लखन मधुर मृदु बानी। ग्यान बिराग भगति रस सानी।। + +काहु न कोउ सुख दुख कर दाता। निज कृत करम भोग सबु भ्राता।। + +जोग बियोग भोग भल मंदा। हित अनहित मध्यम भ्रम फंदा।। + +जनमु मरनु जहँ लगि जग जालू। संपती बिपति करमु अरु कालू।। + +धरनि धामु धनु पुर परिवारू। सरगु नरकु जहँ लगि ब्यवहारू।। + +देखिअ सुनिअ गुनिअ मन माहीं। मोह मूल परमारथु नाहीं।।सपनें होइ भिखारि नृप रंकु नाकपति होइ। + +जागें लाभु न हानि कछु तिमि प्रपंच जियँ जोइ।।92।।अस बिचारि नहिं कीजअ रोसू। काहुहि बादि न देइअ दोसू।। + +मोह निसाँ सबु सोवनिहारा। देखिअ सपन अनेक प्रकारा।। + +एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी। परमारथी प्रपंच बियोगी।। + +जानिअ तबहिं जीव जग जागा। जब जब बिषय बिलास बिरागा।। + +होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा। तब रघुनाथ चरन अनुरागा।। + +सखा परम परमारथु एहू। मन क्रम बचन राम पद नेहू।। + +राम ब्रह्म परमारथ रूपा। अबिगत अलख अनादि अनूपा।। + +सकल बिकार रहित गतभेदा। कहि नित नेति निरूपहिं बेदा।भगत भूमि भूसुर सुरभि सुर हित लागि कृपाल। + +करत चरित धरि मनुज तनु सुनत मिटहि जग जाल।।93।।सखा समुझि अस परिहरि मोहु। सिय रघुबीर चरन रत होहू।। + +कहत राम गुन भा भिनुसारा। जागे जग मंगल सुखदारा।। + +सकल सोच करि राम नहावा। सुचि सुजान बट छीर मगावा।। + +अनुज सहित सिर जटा बनाए। देखि सुमंत्र नयन जल छाए।। + +हृदयँ दाहु अति बदन मलीना। कह कर जोरि बचन अति दीना।। + +नाथ कहेउ अस कोसलनाथा। लै रथु जाहु राम कें साथा।। + +बनु देखाइ सुरसरि अन्हवाई। आनेहु फेरि बेगि दोउ भाई।। + +लखनु रामु सिय आनेहु फेरी। संसय सकल सँकोच निबेरी।।नृप अस कहेउ गोसाईं जस कहइ करौं बलि सोइ। + +करि बिनती पायन्ह परेउ दीन्ह बाल जिमि रोइ।।94।।तात कृपा करि कीजिअ सोई। जातें अवध अनाथ न होई।। + +मंत्रहि राम उठाइ प्रबोधा। तात धरम मतु तुम्ह सबु सोधा।। + +सिबि दधीचि हरिचंद नरेसा। सहे धरम हित कोटि कलेसा।। + +रंतिदेव बलि भूप सुजाना। धरमु धरेउ सहि संकट नाना।। + +धरमु न दूसर सत्य समाना। आगम निगम पुरान बखाना।। + +मैं सोइ धरमु सुलभ करि पावा। तजें तिहूँ पुर अपजसु छावा।। + +संभावित कहुँ अपजस लाहू। मरन कोटि सम दारुन दाहू।। + +तुम्ह सन तात बहुत का कहऊँ। दिएँ उतरु फिरि पातकु लहऊँ।।पितु पद गहि कहि कोटि नति बिनय कर�� कर जोरि। + +चिंता कवनिहु बात कै तात करिअ जनि मोरि।।95।।तुम्ह पुनि पितु सम अति हित मोरें। बिनती करउँ तात कर जोरें।। + +सब बिधि सोइ करतब्य तुम्हारें। दुख न पाव पितु सोच हमारें।। + +सुनि रघुनाथ सचिव संबादू। भयउ सपरिजन बिकल निषादू।। + +पुनि कछु लखन कही कटु बानी। प्रभु बरजे बड़ अनुचित जानी।। + +सकुचि राम निज सपथ देवाई। लखन सँदेसु कहिअ जनि जाई।। + +कह सुमंत्रु पुनि भूप सँदेसू। सहि न सकिहि सिय बिपिन कलेसू।। + +जेहि बिधि अवध आव फिरि सीया। सोइ रघुबरहि तुम्हहि करनीया।। + +नतरु निपट अवलंब बिहीना। मैं न जिअब जिमि जल बिनु मीना।।मइकें ससरें सकल सुख जबहिं जहाँ मनु मान।। + +तँह तब रहिहि सुखेन सिय जब लगि बिपति बिहान।।96।।बिनती भूप कीन्ह जेहि भाँती। आरति प्रीति न सो कहि जाती।। + +पितु सँदेसु सुनि कृपानिधाना। सियहि दीन्ह सिख कोटि बिधाना।। + +सासु ससुर गुर प्रिय परिवारू। फिरतु त सब कर मिटै खभारू।। + +सुनि पति बचन कहति बैदेही। सुनहु प्रानपति परम सनेही।। + +प्रभु करुनामय परम बिबेकी। तनु तजि रहति छाँह किमि छेंकी।। + +प्रभा जाइ कहँ भानु बिहाई। कहँ चंद्रिका चंदु तजि जाई।। + +पतिहि प्रेममय बिनय सुनाई। कहति सचिव सन गिरा सुहाई।। + +तुम्ह पितु ससुर सरिस हितकारी। उतरु देउँ फिरि अनुचित भारी।।आरति बस सनमुख भइउँ बिलगु न मानब तात। + +आरजसुत पद कमल बिनु बादि जहाँ लगि नात।।97।।पितु बैभव बिलास मैं डीठा। नृप मनि मुकुट मिलित पद पीठा।। + +सुखनिधान अस पितु गृह मोरें। पिय बिहीन मन भाव न भोरें।। + +ससुर चक्कवइ कोसलराऊ। भुवन चारिदस प्रगट प्रभाऊ।। + +आगें होइ जेहि सुरपति लेई। अरध सिंघासन आसनु देई।। + +ससुरु एतादृस अवध निवासू। प्रिय परिवारु मातु सम सासू।। + +बिनु रघुपति पद पदुम परागा। मोहि केउ सपनेहुँ सुखद न लागा।। + +अगम पंथ बनभूमि पहारा। करि केहरि सर सरित अपारा।। + +कोल किरात कुरंग बिहंगा। मोहि सब सुखद प्रानपति संगा।।सासु ससुर सन मोरि हुँति बिनय करबि परि पायँ।। + +मोर सोचु जनि करिअ कछु मैं बन सुखी सुभायँ।।98।।प्राननाथ प्रिय देवर साथा। बीर धुरीन धरें धनु भाथा।। + +नहिं मग श्रमु भ्रमु दुख मन मोरें। मोहि लगि सोचु करिअ जनि भोरें।। + +सुनि सुमंत्रु सिय सीतलि बानी। भयउ बिकल जनु फनि मनि हानी।। + +नयन सूझ नहिं सुनइ न काना। कहि न सकइ कछु अति अकुलाना।। + +राम प्रबोधु कीन्ह बहु भाँति। तदपि होति नहिं ��ीतलि छाती।। + +जतन अनेक साथ हित कीन्हे। उचित उतर रघुनंदन दीन्हे।। + +मेटि जाइ नहिं राम रजाई। कठिन करम गति कछु न बसाई।। + +राम लखन सिय पद सिरु नाई। फिरेउ बनिक जिमि मूर गवाँई।।-रथ हाँकेउ हय राम तन हेरि हेरि हिहिनाहिं। + +देखि निषाद बिषादबस धुनहिं सीस पछिताहिं।।99।।जासु बियोग बिकल पसु ऐसे। प्रजा मातु पितु जिइहहिं कैसें।। + +बरबस राम सुमंत्रु पठाए। सुरसरि तीर आपु तब आए।। + +मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना।। + +चरन कमल रज कहुँ सबु कहई। मानुष करनि मूरि कछु अहई।। + +छुअत सिला भइ नारि सुहाई। पाहन तें न काठ कठिनाई।। + +तरनिउ मुनि घरिनि होइ जाई। बाट परइ मोरि नाव उड़ाई।। + +एहिं प्रतिपालउँ सबु परिवारू। नहिं जानउँ कछु अउर कबारू।। + +जौ प्रभु पार अवसि गा चहहू। मोहि पद पदुम पखारन कहहू।।पद कमल धोइ चढ़ाइ नाव न नाथ उतराई चहौं। + +मोहि राम राउरि आन दसरथ सपथ सब साची कहौं।। + +बरु तीर मारहुँ लखनु पै जब लगि न पाय पखारिहौं। + +तब लगि न तुलसीदास नाथ कृपाल पारु उतारिहौं।।सुनि केबट के बैन प्रेम लपेटे अटपटे। + +बिहसे करुनाऐन चितइ जानकी लखन तन।।100।।कृपासिंधु बोले मुसुकाई। सोइ करु जेंहि तव नाव न जाई।। + +वेगि आनु जल पाय पखारू। होत बिलंबु उतारहि पारू।। + +जासु नाम सुमरत एक बारा। उतरहिं नर भवसिंधु अपारा।। + +सोइ कृपालु केवटहि निहोरा। जेहिं जगु किय तिहु पगहु ते थोरा।। + +पद नख निरखि देवसरि हरषी। सुनि प्रभु बचन मोहँ मति करषी।। + +केवट राम रजायसु पावा। पानि कठवता भरि लेइ आवा।। + +अति आनंद उमगि अनुरागा। चरन सरोज पखारन लागा।। + +बरषि सुमन सुर सकल सिहाहीं। एहि सम पुन्यपुंज कोउ नाहीं।।पद पखारि जलु पान करि आपु सहित परिवार। + +पितर पारु करि प्रभुहि पुनि मुदित गयउ लेइ पार।।101।।उतरि ठाड़ भए सुरसरि रेता। सीयराम गुह लखन समेता।। + +केवट उतरि दंडवत कीन्हा। प्रभुहि सकुच एहि नहिं कछु दीन्हा।। + +पिय हिय की सिय जाननिहारी। मनि मुदरी मन मुदित उतारी।। + +कहेउ कृपाल लेहि उतराई। केवट चरन गहे अकुलाई।। + +नाथ आजु मैं काह न पावा। मिटे दोष दुख दारिद दावा।। + +बहुत काल मैं कीन्हि मजूरी। आजु दीन्ह बिधि बनि भलि भूरी।। + +अब कछु नाथ न चाहिअ मोरें। दीनदयाल अनुग्रह तोरें।। + +फिरती बार मोहि जे देबा। सो प्रसादु मैं सिर धरि लेबा।।बहुत कीन्ह प्रभु लखन सियँ नहिं कछु केवटु लेइ। + +बिदा कीन्ह करुनायतन भगति बिमल बरु देइ।।102।।तब मज्जनु करि रघुकुलनाथा। पूजि पारथिव नायउ माथा।। + +सियँ सुरसरिहि कहेउ कर जोरी। मातु मनोरथ पुरउबि मोरी।। + +पति देवर संग कुसल बहोरी। आइ करौं जेहिं पूजा तोरी।। + +सुनि सिय बिनय प्रेम रस सानी। भइ तब बिमल बारि बर बानी।। + +सुनु रघुबीर प्रिया बैदेही। तव प्रभाउ जग बिदित न केही।। + +लोकप होहिं बिलोकत तोरें। तोहि सेवहिं सब सिधि कर जोरें।। + +तुम्ह जो हमहि बड़ि बिनय सुनाई। कृपा कीन्हि मोहि दीन्हि बड़ाई।। + +तदपि देबि मैं देबि असीसा। सफल होपन हित निज बागीसा।।प्राननाथ देवर सहित कुसल कोसला आइ। + +पूजहि सब मनकामना सुजसु रहिहि जग छाइ।।103।।गंग बचन सुनि मंगल मूला। मुदित सीय सुरसरि अनुकुला।। + +तब प्रभु गुहहि कहेउ घर जाहू। सुनत सूख मुखु भा उर दाहू।। + +दीन बचन गुह कह कर जोरी। बिनय सुनहु रघुकुलमनि मोरी।। + +नाथ साथ रहि पंथु देखाई। करि दिन चारि चरन सेवकाई।। + +जेहिं बन जाइ रहब रघुराई। परनकुटी मैं करबि सुहाई।। + +तब मोहि कहँ जसि देब रजाई। सोइ करिहउँ रघुबीर दोहाई।। + +सहज सनेह राम लखि तासु। संग लीन्ह गुह हृदय हुलासू।। + +पुनि गुहँ ग्याति बोलि सब लीन्हे। करि परितोषु बिदा तब कीन्हे।।तब गनपति सिव सुमिरि प्रभु नाइ सुरसरिहि माथ। + +सखा अनुज सिया सहित बन गवनु कीन्ह रधुनाथ।।104।।तेहि दिन भयउ बिटप तर बासू। लखन सखाँ सब कीन्ह सुपासू।। + +प्रात प्रातकृत करि रधुसाई। तीरथराजु दीख प्रभु जाई।। + +सचिव सत्य श्रध्दा प्रिय नारी। माधव सरिस मीतु हितकारी।। + +चारि पदारथ भरा भँडारु। पुन्य प्रदेस देस अति चारु।। + +छेत्र अगम गढ़ु गाढ़ सुहावा। सपनेहुँ नहिं प्रतिपच्छिन्ह पावा।। + +सेन सकल तीरथ बर बीरा। कलुष अनीक दलन रनधीरा।। + +संगमु सिंहासनु सुठि सोहा। छत्रु अखयबटु मुनि मनु मोहा।। + +चवँर जमुन अरु गंग तरंगा। देखि होहिं दुख दारिद भंगा।।सेवहिं सुकृति साधु सुचि पावहिं सब मनकाम। + +बंदी बेद पुरान गन कहहिं बिमल गुन ग्राम।।105।।को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ। कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ।। + +अस तीरथपति देखि सुहावा। सुख सागर रघुबर सुखु पावा।। + +कहि सिय लखनहि सखहि सुनाई। श्रीमुख तीरथराज बड़ाई।। + +करि प्रनामु देखत बन बागा। कहत महातम अति अनुरागा।। + +एहि बिधि आइ बिलोकी बेनी। सुमिरत सकल सुमंगल देनी।। + +मुदित नहाइ कीन्हि सिव सेवा। पुजि जथाबिधि तीरथ देवा।। + +तब प्रभु भरद्वाज पहिं आए। ���रत दंडवत मुनि उर लाए।। + +मुनि मन मोद न कछु कहि जाइ। ब्रह्मानंद रासि जनु पाई।।दीन्हि असीस मुनीस उर अति अनंदु अस जानि। + +लोचन गोचर सुकृत फल मनहुँ किए बिधि आनि।।106।।कुसल प्रस्न करि आसन दीन्हे। पूजि प्रेम परिपूरन कीन्हे।। + +कंद मूल फल अंकुर नीके। दिए आनि मुनि मनहुँ अमी के।। + +सीय लखन जन सहित सुहाए। अति रुचि राम मूल फल खाए।। + +भए बिगतश्रम रामु सुखारे। भरव्दाज मृदु बचन उचारे।। + +आजु सुफल तपु तीरथ त्यागू। आजु सुफल जप जोग बिरागू।। + +सफल सकल सुभ साधन साजू। राम तुम्हहि अवलोकत आजू।। + +लाभ अवधि सुख अवधि न दूजी। तुम्हारें दरस आस सब पूजी।। + +अब करि कृपा देहु बर एहू। निज पद सरसिज सहज सनेहू।।करम बचन मन छाड़ि छलु जब लगि जनु न तुम्हार। + +तब लगि सुखु सपनेहुँ नहीं किएँ कोटि उपचार।।सुनि मुनि बचन रामु सकुचाने। भाव भगति आनंद अघाने।। + +तब रघुबर मुनि सुजसु सुहावा। कोटि भाँति कहि सबहि सुनावा।। + +सो बड सो सब गुन गन गेहू। जेहि मुनीस तुम्ह आदर देहू।। + +मुनि रघुबीर परसपर नवहीं। बचन अगोचर सुखु अनुभवहीं।। + +यह सुधि पाइ प्रयाग निवासी। बटु तापस मुनि सिद्ध उदासी।। + +भरद्वाज आश्रम सब आए। देखन दसरथ सुअन सुहाए।। + +राम प्रनाम कीन्ह सब काहू। मुदित भए लहि लोयन लाहू।। + +देहिं असीस परम सुखु पाई। फिरे सराहत सुंदरताई।।राम कीन्ह बिश्राम निसि प्रात प्रयाग नहाइ। + +चले सहित सिय लखन जन मुददित मुनिहि सिरु नाइ।।108।।राम सप्रेम कहेउ मुनि पाहीं। नाथ कहिअ हम केहि मग जाहीं।। + +मुनि मन बिहसि राम सन कहहीं। सुगम सकल मग तुम्ह कहुँ अहहीं।। + +साथ लागि मुनि सिष्य बोलाए। सुनि मन मुदित पचासक आए।। + +सबन्हि राम पर प्रेम अपारा। सकल कहहि मगु दीख हमारा।। + +मुनि बटु चारि संग तब दीन्हे। जिन्ह बहु जनम सुकृत सब कीन्हे।। + +करि प्रनामु रिषि आयसु पाई। प्रमुदित हृदयँ चले रघुराई।। + +ग्राम निकट जब निकसहि जाई। देखहि दरसु नारि नर धाई।। + +होहि सनाथ जनम फलु पाई। फिरहि दुखित मनु संग पठाई।।बिदा किए बटु बिनय करि फिरे पाइ मन काम। + +उतरि नहाए जमुन जल जो सरीर सम स्याम।।109।।सुनत तीरवासी नर नारी। धाए निज निज काज बिसारी।। + +लखन राम सिय सुन्दरताई। देखि करहिं निज भाग्य बड़ाई।। + +अति लालसा बसहिं मन माहीं। नाउँ गाउँ बूझत सकुचाहीं।। + +जे तिन्ह महुँ बयबिरिध सयाने। तिन्ह करि जुगुति रामु पहिचाने।। + +सकल कथा तिन्ह सबहि सुन��ई। बनहि चले पितु आयसु पाई।। + +सुनि सबिषाद सकल पछिताहीं। रानी रायँ कीन्ह भल नाहीं।। + +तेहि अवसर एक तापसु आवा। तेजपुंज लघुबयस सुहावा।। + +कवि अलखित गति बेषु बिरागी। मन क्रम बचन राम अनुरागी।।सजल नयन तन पुलकि निज इष्टदेउ पहिचानि। + +परेउ दंड जिमि धरनितल दसा न जाइ बखानि।।110।।राम सप्रेम पुलकि उर लावा। परम रंक जनु पारसु पावा।। + +मनहुँ प्रेमु परमारथु दोऊ। मिलत धरे तन कह सबु कोऊ।। + +बहुरि लखन पायन्ह सोइ लागा। लीन्ह उठाइ उमगि अनुरागा।। + +पुनि सिय चरन धूरि धरि सीसा। जननि जानि सिसु दीन्हि असीसा।। + +कीन्ह निषाद दंडवत तेही। मिलेउ मुदित लखि राम सनेही।। + +पिअत नयन पुट रूपु पियूषा। मुदित सुअसनु पाइ जिमि भूखा।। + +ते पितु मातु कहहु सखि कैसे। जिन्ह पठए बन बालक ऐसे।। + +राम लखन सिय रूपु निहारी। होहिं सनेह बिकल नर नारी।।तब रघुबीर अनेक बिधि सखहि सिखावनु दीन्ह। + +राम रजायसु सीस धरि भवन गवनु तेंइँ कीन्ह।।111।।पुनि सियँ राम लखन कर जोरी। जमुनहि कीन्ह प्रनामु बहोरी।। + +चले ससीय मुदित दोउ भाई। रबितनुजा कइ करत बड़ाई।। + +पथिक अनेक मिलहिं मग जाता। कहहिं सप्रेम देखि दोउ भ्राता।। + +राज लखन सब अंग तुम्हारें। देखि सोचु अति हृदय हमारें।। + +मारग चलहु पयादेहि पाएँ। ज्योतिषु झूठ हमारें भाएँ।। + +अगमु पंथ गिरि कानन भारी। तेहि महँ साथ नारि सुकुमारी।। + +करि केहरि बन जाइ न जोई। हम सँग चलहि जो आयसु होई।। + +जाब जहाँ लगि तहँ पहुँचाई। फिरब बहोरि तुम्हहि सिरु नाई।।एहि बिधि पूँछहिं प्रेम बस पुलक गात जलु नैन। + +कृपासिंधु फेरहि तिन्हहि कहि बिनीत मृदु बैन।।112।।जे पुर गाँव बसहिं मग माहीं। तिन्हहि नाग सुर नगर सिहाहीं।। + +केहि सुकृतीं केहि घरीं बसाए। धन्य पुन्यमय परम सुहाए।। + +जहँ जहँ राम चरन चलि जाहीं। तिन्ह समान अमरावति नाहीं।। + +पुन्यपुंज मग निकट निवासी। तिन्हहि सराहहिं सुरपुरबासी।। + +जे भरि नयन बिलोकहिं रामहि। सीता लखन सहित घनस्यामहि।। + +जे सर सरित राम अवगाहहिं। तिन्हहि देव सर सरित सराहहिं।। + +जेहि तरु तर प्रभु बैठहिं जाई। करहिं कलपतरु तासु बड़ाई।। + +परसि राम पद पदुम परागा। मानति भूमि भूरि निज भागा।।छाँह करहि घन बिबुधगन बरषहि सुमन सिहाहिं। + +देखत गिरि बन बिहग मृग रामु चले मग जाहिं।।113।।सीता लखन सहित रघुराई। गाँव निकट जब निकसहिं जाई।। + +सुनि सब बाल बृद्ध नर नारी। चलहि�� तुरत गृहकाजु बिसारी।। + +राम लखन सिय रूप निहारी। पाइ नयनफलु होहिं सुखारी।। + +सजल बिलोचन पुलक सरीरा। सब भए मगन देखि दोउ बीरा।। + +बरनि न जाइ दसा तिन्ह केरी। लहि जनु रंकन्ह सुरमनि ढेरी।। + +एकन्ह एक बोलि सिख देहीं। लोचन लाहु लेहु छन एहीं।। + +रामहि देखि एक अनुरागे। चितवत चले जाहिं सँग लागे।। + +एक नयन मग छबि उर आनी। होहिं सिथिल तन मन बर बानी।।एक देखिं बट छाँह भलि डासि मृदुल तृन पात। + +कहहिं गवाँइअ छिनुकु श्रमु गवनब अबहिं कि प्रात।।114।।एक कलस भरि आनहिं पानी। अँचइअ नाथ कहहिं मृदु बानी।। + +सुनि प्रिय बचन प्रीति अति देखी। राम कृपाल सुसील बिसेषी।। + +जानी श्रमित सीय मन माहीं। घरिक बिलंबु कीन्ह बट छाहीं।। + +मुदित नारि नर देखहिं सोभा। रूप अनूप नयन मनु लोभा।। + +एकटक सब सोहहिं चहुँ ओरा। रामचंद्र मुख चंद चकोरा।। + +तरुन तमाल बरन तनु सोहा। देखत कोटि मदन मनु मोहा।। + +दामिनि बरन लखन सुठि नीके। नख सिख सुभग भावते जी के।। + +मुनिपट कटिन्ह कसें तूनीरा। सोहहिं कर कमलिनि धनु तीरा।।जटा मुकुट सीसनि सुभग उर भुज नयन बिसाल। + +सरद परब बिधु बदन बर लसत स्वेद कन जाल।।115।।बरनि न जाइ मनोहर जोरी। सोभा बहुत थोरि मति मोरी।। + +राम लखन सिय सुंदरताई। सब चितवहिं चित मन मति लाई।। + +थके नारि नर प्रेम पिआसे। मनहुँ मृगी मृग देखि दिआ से।। + +सीय समीप ग्रामतिय जाहीं। पूँछत अति सनेहँ सकुचाहीं।। + +बार बार सब लागहिं पाएँ। कहहिं बचन मृदु सरल सुभाएँ।। + +राजकुमारि बिनय हम करहीं। तिय सुभायँ कछु पूँछत डरहीं। + +स्वामिनि अबिनय छमबि हमारी। बिलगु न मानब जानि गवाँरी।। + +राजकुअँर दोउ सहज सलोने। इन्ह तें लही दुति मरकत सोने।।स्यामल गौर किसोर बर सुंदर सुषमा ऐन। + +सरद सर्बरीनाथ मुखु सरद सरोरुह नैन।।116।।कोटि मनोज लजावनिहारे। सुमुखि कहहु को आहिं तुम्हारे।। + +सुनि सनेहमय मंजुल बानी। सकुची सिय मन महुँ मुसुकानी।। + +तिन्हहि बिलोकि बिलोकति धरनी। दुहुँ सकोच सकुचित बरबरनी।। + +सकुचि सप्रेम बाल मृग नयनी। बोली मधुर बचन पिकबयनी।। + +सहज सुभाय सुभग तन गोरे। नामु लखनु लघु देवर मोरे।। + +बहुरि बदनु बिधु अंचल ढाँकी। पिय तन चितइ भौंह करि बाँकी।। + +खंजन मंजु तिरीछे नयननि। निज पति कहेउ तिन्हहि सियँ सयननि।। + +भइ मुदित सब ग्रामबधूटीं। रंकन्ह राय रासि जनु लूटीं।।अति सप्रेम सिय पायँ परि बहुबिधि देहिं असीस। + +स���ा सोहागिनि होहु तुम्ह जब लगि महि अहि सीस।।117।।पारबती सम पतिप्रिय होहू। देबि न हम पर छाड़ब छोहू।। + +पुनि पुनि बिनय करिअ कर जोरी। जौं एहि मारग फिरिअ बहोरी।। + +दरसनु देब जानि निज दासी। लखीं सीयँ सब प्रेम पिआसी।। + +मधुर बचन कहि कहि परितोषीं। जनु कुमुदिनीं कौमुदीं पोषीं।। + +तबहिं लखन रघुबर रुख जानी। पूँछेउ मगु लोगन्हि मृदु बानी।। + +सुनत नारि नर भए दुखारी। पुलकित गात बिलोचन बारी।। + +मिटा मोदु मन भए मलीने। बिधि निधि दीन्ह लेत जनु छीने।। + +समुझि करम गति धीरजु कीन्हा। सोधि सुगम मगु तिन्ह कहि दीन्हा।।लखन जानकी सहित तब गवनु कीन्ह रघुनाथ। + +फेरे सब प्रिय बचन कहि लिए लाइ मन साथ।।118।।फिरत नारि नर अति पछिताहीं। देअहि दोषु देहिं मन माहीं।। + +सहित बिषाद परसपर कहहीं। बिधि करतब उलटे सब अहहीं।। + +निपट निरंकुस निठुर निसंकू। जेहिं ससि कीन्ह सरुज सकलंकू।। + +रूख कलपतरु सागरु खारा। तेहिं पठए बन राजकुमारा।। + +जौं पे इन्हहि दीन्ह बनबासू। कीन्ह बादि बिधि भोग बिलासू।। + +ए बिचरहिं मग बिनु पदत्राना। रचे बादि बिधि बाहन नाना।। + +ए महि परहिं डासि कुस पाता। सुभग सेज कत सृजत बिधाता।। + +तरुबर बास इन्हहि बिधि दीन्हा। धवल धाम रचि रचि श्रमु कीन्हा।।जौं ए मुनि पट धर जटिल सुंदर सुठि सुकुमार। + +बिबिध भाँति भूषन बसन बादि किए करतार।।119।।जौं ए कंद मूल फल खाहीं। बादि सुधादि असन जग माहीं।। + +एक कहहिं ए सहज सुहाए। आपु प्रगट भए बिधि न बनाए।। + +जहँ लगि बेद कही बिधि करनी। श्रवन नयन मन गोचर बरनी।। + +देखहु खोजि भुअन दस चारी। कहँ अस पुरुष कहाँ असि नारी।। + +इन्हहि देखि बिधि मनु अनुरागा। पटतर जोग बनावै लागा।। + +कीन्ह बहुत श्रम ऐक न आए। तेहिं इरिषा बन आनि दुराए।। + +एक कहहिं हम बहुत न जानहिं। आपुहि परम धन्य करि मानहिं।। + +ते पुनि पुन्यपुंज हम लेखे। जे देखहिं देखिहहिं जिन्ह देखे।।एहि बिधि कहि कहि बचन प्रिय लेहिं नयन भरि नीर। + +किमि चलिहहि मारग अगम सुठि सुकुमार सरीर।।120।।नारि सनेह बिकल बस होहीं। चकई साँझ समय जनु सोहीं।। + +मृदु पद कमल कठिन मगु जानी। गहबरि हृदयँ कहहिं बर बानी।। + +परसत मृदुल चरन अरुनारे। सकुचति महि जिमि हृदय हमारे।। + +जौं जगदीस इन्हहि बनु दीन्हा। कस न सुमनमय मारगु कीन्हा।। + +जौं मागा पाइअ बिधि पाहीं। ए रखिअहिं सखि आँखिन्ह माहीं।। + +जे नर नारि न अवसर आए। तिन्ह सिय रामु न देखन पाए।। + +सुनि सुरुप बूझहिं अकुलाई। अब लगि गए कहाँ लगि भाई।। + +समरथ धाइ बिलोकहिं जाई। प्रमुदित फिरहिं जनमफलु पाई।।अबला बालक बृद्ध जन कर मीजहिं पछिताहिं।। + +होहिं प्रेमबस लोग इमि रामु जहाँ जहँ जाहिं।।121।।गाँव गाँव अस होइ अनंदू। देखि भानुकुल कैरव चंदू।। + +जे कछु समाचार सुनि पावहिं। ते नृप रानिहि दोसु लगावहिं।। + +कहहिं एक अति भल नरनाहू। दीन्ह हमहि जोइ लोचन लाहू।। + +कहहिं परस्पर लोग लोगाईं। बातें सरल सनेह सुहाईं।। + +ते पितु मातु धन्य जिन्ह जाए। धन्य सो नगरु जहाँ तें आए।। + +धन्य सो देसु सैलु बन गाऊँ। जहँ जहँ जाहिं धन्य सोइ ठाऊँ।। + +सुख पायउ बिरंचि रचि तेही। ए जेहि के सब भाँति सनेही।। + +राम लखन पथि कथा सुहाई। रही सकल मग कानन छाई।।एहि बिधि रघुकुल कमल रबि मग लोगन्ह सुख देत। + +जाहिं चले देखत बिपिन सिय सौमित्रि समेत।।122।।आगे रामु लखनु बने पाछें। तापस बेष बिराजत काछें।। + +उभय बीच सिय सोहति कैसे। ब्रह्म जीव बिच माया जैसे।। + +बहुरि कहउँ छबि जसि मन बसई। जनु मधु मदन मध्य रति लसई।। + +उपमा बहुरि कहउँ जियँ जोही। जनु बुध बिधु बिच रोहिनि सोही।। + +प्रभु पद रेख बीच बिच सीता। धरति चरन मग चलति सभीता।। + +सीय राम पद अंक बराएँ। लखन चलहिं मगु दाहिन लाएँ।। + +राम लखन सिय प्रीति सुहाई। बचन अगोचर किमि कहि जाई।। + +खग मृग मगन देखि छबि होहीं। लिए चोरि चित राम बटोहीं।।जिन्ह जिन्ह देखे पथिक प्रिय सिय समेत दोउ भाइ। + +भव मगु अगमु अनंदु तेइ बिनु श्रम रहे सिराइ।।123।।अजहुँ जासु उर सपनेहुँ काऊ। बसहुँ लखनु सिय रामु बटाऊ।। + +राम धाम पथ पाइहि सोई। जो पथ पाव कबहुँ मुनि कोई।। + +तब रघुबीर श्रमित सिय जानी। देखि निकट बटु सीतल पानी।। + +तहँ बसि कंद मूल फल खाई। प्रात नहाइ चले रघुराई।। + +देखत बन सर सैल सुहाए। बालमीकि आश्रम प्रभु आए।। + +राम दीख मुनि बासु सुहावन। सुंदर गिरि काननु जलु पावन।। + +सरनि सरोज बिटप बन फूले। गुंजत मंजु मधुप रस भूले।। + +खग मृग बिपुल कोलाहल करहीं। बिरहित बैर मुदित मन चरहीं।।सुचि सुंदर आश्रमु निरखि हरषे राजिवनेन। + +सुनि रघुबर आगमनु मुनि आगें आयउ लेन।।124।।मुनि कहुँ राम दंडवत कीन्हा। आसिरबादु बिप्रबर दीन्हा।। + +देखि राम छबि नयन जुड़ाने। करि सनमानु आश्रमहिं आने।। + +मुनिबर अतिथि प्रानप्रिय पाए। कंद मूल फल मधुर मगाए।। + +सिय सौमित्रि राम फल खाए। तब मुनि आश्र��� दिए सुहाए।। + +बालमीकि मन आनँदु भारी। मंगल मूरति नयन निहारी।। + +तब कर कमल जोरि रघुराई। बोले बचन श्रवन सुखदाई।। + +तुम्ह त्रिकाल दरसी मुनिनाथा। बिस्व बदर जिमि तुम्हरें हाथा।। + +अस कहि प्रभु सब कथा बखानी। जेहि जेहि भाँति दीन्ह बनु रानी।।तात बचन पुनि मातु हित भाइ भरत अस राउ। + +मो कहुँ दरस तुम्हार प्रभु सबु मम पुन्य प्रभाउ।।125।।देखि पाय मुनिराय तुम्हारे। भए सुकृत सब सुफल हमारे।। + +अब जहँ राउर आयसु होई। मुनि उदबेगु न पावै कोई।। + +मुनि तापस जिन्ह तें दुखु लहहीं। ते नरेस बिनु पावक दहहीं।। + +मंगल मूल बिप्र परितोषू। दहइ कोटि कुल भूसुर रोषू।। + +अस जियँ जानि कहिअ सोइ ठाऊँ। सिय सौमित्रि सहित जहँ जाऊँ।। + +तहँ रचि रुचिर परन तृन साला। बासु करौ कछु काल कृपाला।। + +सहज सरल सुनि रघुबर बानी। साधु साधु बोले मुनि ग्यानी।। + +कस न कहहु अस रघुकुलकेतू। तुम्ह पालक संतत श्रुति सेतू।।श्रुति सेतु पालक राम तुम्ह जगदीस माया जानकी। + +जो सृजति जगु पालति हरति रूख पाइ कृपानिधान की।। + +जो सहससीसु अहीसु महिधरु लखनु सचराचर धनी। + +सुर काज धरि नरराज तनु चले दलन खल निसिचर अनी।।राम सरुप तुम्हार बचन अगोचर बुद्धिपर। + +अबिगत अकथ अपार नेति नित निगम कह।।126।।जगु पेखन तुम्ह देखनिहारे। बिधि हरि संभु नचावनिहारे।। + +तेउ न जानहिं मरमु तुम्हारा। औरु तुम्हहि को जाननिहारा।। + +सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई।। + +तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन। जानहिं भगत भगत उर चंदन।। + +चिदानंदमय देह तुम्हारी। बिगत बिकार जान अधिकारी।। + +नर तनु धरेहु संत सुर काजा। कहहु करहु जस प्राकृत राजा।। + +राम देखि सुनि चरित तुम्हारे। जड़ मोहहिं बुध होहिं सुखारे।। + +तुम्ह जो कहहु करहु सबु साँचा। जस काछिअ तस चाहिअ नाचा।।पूँछेहु मोहि कि रहौं कहँ मैं पूँछत सकुचाउँ। + +जहँ न होहु तहँ देहु कहि तुम्हहि देखावौं ठाउँ।।127।।सुनि मुनि बचन प्रेम रस साने। सकुचि राम मन महुँ मुसुकाने।। + +बालमीकि हँसि कहहिं बहोरी। बानी मधुर अमिअ रस बोरी।। + +सुनहु राम अब कहउँ निकेता। जहाँ बसहु सिय लखन समेता।। + +जिन्ह के श्रवन समुद्र समाना। कथा तुम्हारि सुभग सरि नाना।। + +भरहिं निरंतर होहिं न पूरे। तिन्ह के हिय तुम्ह कहुँ गृह रूरे।। + +लोचन चातक जिन्ह करि राखे। रहहिं दरस जलधर अभिलाषे।। + +निदरहिं सरित सिंधु सर भारी�� रूप बिंदु जल होहिं सुखारी।। + +तिन्ह के हृदय सदन सुखदायक। बसहु बंधु सिय सह रघुनायक।।जसु तुम्हार मानस बिमल हंसिनि जीहा जासु। + +मुकुताहल गुन गन चुनइ राम बसहु हियँ तासु।।128।।प्रभु प्रसाद सुचि सुभग सुबासा। सादर जासु लहइ नित नासा।। + +तुम्हहि निबेदित भोजन करहीं। प्रभु प्रसाद पट भूषन धरहीं।। + +सीस नवहिं सुर गुरु द्विज देखी। प्रीति सहित करि बिनय बिसेषी।। + +कर नित करहिं राम पद पूजा। राम भरोस हृदयँ नहि दूजा।। + +चरन राम तीरथ चलि जाहीं। राम बसहु तिन्ह के मन माहीं।। + +मंत्रराजु नित जपहिं तुम्हारा। पूजहिं तुम्हहि सहित परिवारा।। + +तरपन होम करहिं बिधि नाना। बिप्र जेवाँइ देहिं बहु दाना।। + +तुम्ह तें अधिक गुरहि जियँ जानी। सकल भायँ सेवहिं सनमानी।।सबु करि मागहिं एक फलु राम चरन रति होउ। + +तिन्ह कें मन मंदिर बसहु सिय रघुनंदन दोउ।।129।।काम कोह मद मान न मोहा। लोभ न छोभ न राग न द्रोहा।। + +जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया। तिन्ह कें हृदय बसहु रघुराया।। + +सब के प्रिय सब के हितकारी। दुख सुख सरिस प्रसंसा गारी।। + +कहहिं सत्य प्रिय बचन बिचारी। जागत सोवत सरन तुम्हारी।। + +तुम्हहि छाड़ि गति दूसरि नाहीं। राम बसहु तिन्ह के मन माहीं।। + +जननी सम जानहिं परनारी। धनु पराव बिष तें बिष भारी।। + +जे हरषहिं पर संपति देखी। दुखित होहिं पर बिपति बिसेषी।। + +जिन्हहि राम तुम्ह प्रानपिआरे। तिन्ह के मन सुभ सदन तुम्हारे।।स्वामि सखा पितु मातु गुर जिन्ह के सब तुम्ह तात। + +मन मंदिर तिन्ह कें बसहु सीय सहित दोउ भ्रात।।130।।अवगुन तजि सब के गुन गहहीं। बिप्र धेनु हित संकट सहहीं।। + +नीति निपुन जिन्ह कइ जग लीका। घर तुम्हार तिन्ह कर मनु नीका।। + +गुन तुम्हार समुझइ निज दोसा। जेहि सब भाँति तुम्हार भरोसा।। + +राम भगत प्रिय लागहिं जेही। तेहि उर बसहु सहित बैदेही।। + +जाति पाँति धनु धरम बड़ाई। प्रिय परिवार सदन सुखदाई।। + +सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई। तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई।। + +सरगु नरकु अपबरगु समाना। जहँ तहँ देख धरें धनु बाना।। + +करम बचन मन राउर चेरा। राम करहु तेहि कें उर डेरा।।जाहि न चाहिअ कबहुँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु। + +बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेहु।।131।।एहि बिधि मुनिबर भवन देखाए। बचन सप्रेम राम मन भाए।। + +कह मुनि सुनहु भानुकुलनायक। आश्रम कहउँ समय सुखदायक।। + +चित्रकूट गिरि करहु निवासू। तहँ तुम्हार सब भाँति सुपासू।। + +सैलु सुहावन कानन चारू। करि केहरि मृग बिहग बिहारू।। + +नदी पुनीत पुरान बखानी। अत्रिप्रिया निज तपबल आनी।। + +सुरसरि धार नाउँ मंदाकिनि। जो सब पातक पोतक डाकिनि।। + +अत्रि आदि मुनिबर बहु बसहीं। करहिं जोग जप तप तन कसहीं।। + +चलहु सफल श्रम सब कर करहू। राम देहु गौरव गिरिबरहू।।चित्रकूट महिमा अमित कहीं महामुनि गाइ। + +आए नहाए सरित बर सिय समेत दोउ भाइ।।132।।रघुबर कहेउ लखन भल घाटू। करहु कतहुँ अब ठाहर ठाटू।। + +लखन दीख पय उतर करारा। चहुँ दिसि फिरेउ धनुष जिमि नारा।। + +नदी पनच सर सम दम दाना। सकल कलुष कलि साउज नाना।। + +चित्रकूट जनु अचल अहेरी। चुकइ न घात मार मुठभेरी।। + +अस कहि लखन ठाउँ देखरावा। थलु बिलोकि रघुबर सुखु पावा।। + +रमेउ राम मनु देवन्ह जाना। चले सहित सुर थपति प्रधाना।। + +कोल किरात बेष सब आए। रचे परन तृन सदन सुहाए।। + +बरनि न जाहि मंजु दुइ साला। एक ललित लघु एक बिसाला।।लखन जानकी सहित प्रभु राजत रुचिर निकेत। + +सोह मदनु मुनि बेष जनु रति रितुराज समेत।।133।।अमर नाग किंनर दिसिपाला। चित्रकूट आए तेहि काला।। + +राम प्रनामु कीन्ह सब काहू। मुदित देव लहि लोचन लाहू।। + +बरषि सुमन कह देव समाजू। नाथ सनाथ भए हम आजू।। + +करि बिनती दुख दुसह सुनाए। हरषित निज निज सदन सिधाए।। + +चित्रकूट रघुनंदनु छाए। समाचार सुनि सुनि मुनि आए।। + +आवत देखि मुदित मुनिबृंदा। कीन्ह दंडवत रघुकुल चंदा।। + +मुनि रघुबरहि लाइ उर लेहीं। सुफल होन हित आसिष देहीं।। + +सिय सौमित्र राम छबि देखहिं। साधन सकल सफल करि लेखहिं।।जथाजोग सनमानि प्रभु बिदा किए मुनिबृंद। + +करहि जोग जप जाग तप निज आश्रमन्हि सुछंद।।134।।यह सुधि कोल किरातन्ह पाई। हरषे जनु नव निधि घर आई।। + +कंद मूल फल भरि भरि दोना। चले रंक जनु लूटन सोना।। + +तिन्ह महँ जिन्ह देखे दोउ भ्राता। अपर तिन्हहि पूँछहि मगु जाता।। + +कहत सुनत रघुबीर निकाई। आइ सबन्हि देखे रघुराई।। + +करहिं जोहारु भेंट धरि आगे। प्रभुहि बिलोकहिं अति अनुरागे।। + +चित्र लिखे जनु जहँ तहँ ठाढ़े। पुलक सरीर नयन जल बाढ़े।। + +राम सनेह मगन सब जाने। कहि प्रिय बचन सकल सनमाने।। + +प्रभुहि जोहारि बहोरि बहोरी। बचन बिनीत कहहिं कर जोरी।।अब हम नाथ सनाथ सब भए देखि प्रभु पाय। + +भाग हमारे आगमनु राउर कोसलराय।।135।।धन्य भूमि बन पंथ पहारा। जहँ जहँ नाथ पाउ तुम्ह धारा।। + +धन्य ��िहग मृग काननचारी। सफल जनम भए तुम्हहि निहारी।। + +हम सब धन्य सहित परिवारा। दीख दरसु भरि नयन तुम्हारा।। + +कीन्ह बासु भल ठाउँ बिचारी। इहाँ सकल रितु रहब सुखारी।। + +हम सब भाँति करब सेवकाई। करि केहरि अहि बाघ बराई।। + +बन बेहड़ गिरि कंदर खोहा। सब हमार प्रभु पग पग जोहा।। + +तहँ तहँ तुम्हहि अहेर खेलाउब। सर निरझर जलठाउँ देखाउब।। + +हम सेवक परिवार समेता। नाथ न सकुचब आयसु देता।।बेद बचन मुनि मन अगम ते प्रभु करुना ऐन। + +बचन किरातन्ह के सुनत जिमि पितु बालक बैन।।136।।रामहि केवल प्रेमु पिआरा। जानि लेउ जो जाननिहारा।। + +राम सकल बनचर तब तोषे। कहि मृदु बचन प्रेम परिपोषे।। + +बिदा किए सिर नाइ सिधाए। प्रभु गुन कहत सुनत घर आए।। + +एहि बिधि सिय समेत दोउ भाई। बसहिं बिपिन सुर मुनि सुखदाई।। + +जब ते आइ रहे रघुनायकु। तब तें भयउ बनु मंगलदायकु।। + +फूलहिं फलहिं बिटप बिधि नाना।।मंजु बलित बर बेलि बिताना।। + +सुरतरु सरिस सुभायँ सुहाए। मनहुँ बिबुध बन परिहरि आए।। + +गंज मंजुतर मधुकर श्रेनी। त्रिबिध बयारि बहइ सुख देनी।।नीलकंठ कलकंठ सुक चातक चक्क चकोर। + +भाँति भाँति बोलहिं बिहग श्रवन सुखद चित चोर।।137।।केरि केहरि कपि कोल कुरंगा। बिगतबैर बिचरहिं सब संगा।। + +फिरत अहेर राम छबि देखी। होहिं मुदित मृगबंद बिसेषी।। + +बिबुध बिपिन जहँ लगि जग माहीं। देखि राम बनु सकल सिहाहीं।। + +सुरसरि सरसइ दिनकर कन्या। मेकलसुता गोदावरि धन्या।। + +सब सर सिंधु नदी नद नाना। मंदाकिनि कर करहिं बखाना।। + +उदय अस्त गिरि अरु कैलासू। मंदर मेरु सकल सुरबासू।। + +सैल हिमाचल आदिक जेते। चित्रकूट जसु गावहिं तेते।। + +बिंधि मुदित मन सुखु न समाई। श्रम बिनु बिपुल बड़ाई पाई।।चित्रकूट के बिहग मृग बेलि बिटप तृन जाति। + +पुन्य पुंज सब धन्य अस कहहिं देव दिन राति।।138।।नयनवंत रघुबरहि बिलोकी। पाइ जनम फल होहिं बिसोकी।। + +परसि चरन रज अचर सुखारी। भए परम पद के अधिकारी।। + +सो बनु सैलु सुभायँ सुहावन। मंगलमय अति पावन पावन।। + +महिमा कहिअ कवनि बिधि तासू। सुखसागर जहँ कीन्ह निवासू।। + +पय पयोधि तजि अवध बिहाई। जहँ सिय लखनु रामु रहे आई।। + +कहि न सकहिं सुषमा जसि कानन। जौं सत सहस होंहिं सहसानन।। + +सो मैं बरनि कहौं बिधि केहीं। डाबर कमठ कि मंदर लेहीं।। + +सेवहिं लखनु करम मन बानी। जाइ न सीलु सनेहु बखानी।।-छिनु छिनु लखि सिय राम पद जानि आपु पर ने���ु। + +करत न सपनेहुँ लखनु चितु बंधु मातु पितु गेहु।।139।।राम संग सिय रहति सुखारी। पुर परिजन गृह सुरति बिसारी।। + +छिनु छिनु पिय बिधु बदनु निहारी। प्रमुदित मनहुँ चकोरकुमारी।। + +नाह नेहु नित बढ़त बिलोकी। हरषित रहति दिवस जिमि कोकी।। + +सिय मनु राम चरन अनुरागा। अवध सहस सम बनु प्रिय लागा।। + +परनकुटी प्रिय प्रियतम संगा। प्रिय परिवारु कुरंग बिहंगा।। + +सासु ससुर सम मुनितिय मुनिबर। असनु अमिअ सम कंद मूल फर।। + +नाथ साथ साँथरी सुहाई। मयन सयन सय सम सुखदाई।। + +लोकप होहिं बिलोकत जासू। तेहि कि मोहि सक बिषय बिलासू।।-सुमिरत रामहि तजहिं जन तृन सम बिषय बिलासु। + +रामप्रिया जग जननि सिय कछु न आचरजु तासु।।140।।सीय लखन जेहि बिधि सुखु लहहीं। सोइ रघुनाथ करहि सोइ कहहीं।। + +कहहिं पुरातन कथा कहानी। सुनहिं लखनु सिय अति सुखु मानी। + +जब जब रामु अवध सुधि करहीं। तब तब बारि बिलोचन भरहीं।। + +सुमिरि मातु पितु परिजन भाई। भरत सनेहु सीलु सेवकाई।। + +कृपासिंधु प्रभु होहिं दुखारी। धीरजु धरहिं कुसमउ बिचारी।। + +लखि सिय लखनु बिकल होइ जाहीं। जिमि पुरुषहि अनुसर परिछाहीं।। + +प्रिया बंधु गति लखि रघुनंदनु। धीर कृपाल भगत उर चंदनु।। + +लगे कहन कछु कथा पुनीता। सुनि सुखु लहहिं लखनु अरु सीता।।रामु लखन सीता सहित सोहत परन निकेत। + +जिमि बासव बस अमरपुर सची जयंत समेत।।141।।जोगवहिं प्रभु सिय लखनहिं कैसें। पलक बिलोचन गोलक जैसें।। + +सेवहिं लखनु सीय रघुबीरहि। जिमि अबिबेकी पुरुष सरीरहि।। + +एहि बिधि प्रभु बन बसहिं सुखारी। खग मृग सुर तापस हितकारी।। + +कहेउँ राम बन गवनु सुहावा। सुनहु सुमंत्र अवध जिमि आवा।। + +फिरेउ निषादु प्रभुहि पहुँचाई। सचिव सहित रथ देखेसि आई।। + +मंत्री बिकल बिलोकि निषादू। कहि न जाइ जस भयउ बिषादू।। + +राम राम सिय लखन पुकारी। परेउ धरनितल ब्याकुल भारी।। + +देखि दखिन दिसि हय हिहिनाहीं। जनु बिनु पंख बिहग अकुलाहीं।।नहिं तृन चरहिं पिअहिं जलु मोचहिं लोचन बारि। + +ब्याकुल भए निषाद सब रघुबर बाजि निहारि।।142।।धरि धीरज तब कहइ निषादू। अब सुमंत्र परिहरहु बिषादू।। + +तुम्ह पंडित परमारथ ग्याता। धरहु धीर लखि बिमुख बिधाता + +बिबिध कथा कहि कहि मृदु बानी। रथ बैठारेउ बरबस आनी।। + +सोक सिथिल रथ सकइ न हाँकी। रघुबर बिरह पीर उर बाँकी।। + +चरफराहिं मग चलहिं न घोरे। बन मृग मनहुँ आनि रथ जोरे।। + +अढ़ुकि ��रहिं फिरि हेरहिं पीछें। राम बियोगि बिकल दुख तीछें।। + +जो कह रामु लखनु बैदेही। हिंकरि हिंकरि हित हेरहिं तेही।। + +बाजि बिरह गति कहि किमि जाती। बिनु मनि फनिक बिकल जेहि भाँती।।भयउ निषाद बिषादबस देखत सचिव तुरंग। + +बोलि सुसेवक चारि तब दिए सारथी संग।।143।।गुह सारथिहि फिरेउ पहुँचाई। बिरहु बिषादु बरनि नहिं जाई।। + +चले अवध लेइ रथहि निषादा। होहि छनहिं छन मगन बिषादा।। + +सोच सुमंत्र बिकल दुख दीना। धिग जीवन रघुबीर बिहीना।। + +रहिहि न अंतहुँ अधम सरीरू। जसु न लहेउ बिछुरत रघुबीरू।। + +भए अजस अघ भाजन प्राना। कवन हेतु नहिं करत पयाना।। + +अहह मंद मनु अवसर चूका। अजहुँ न हृदय होत दुइ टूका।। + +मीजि हाथ सिरु धुनि पछिताई। मनहँ कृपन धन रासि गवाँई।। + +बिरिद बाँधि बर बीरु कहाई। चलेउ समर जनु सुभट पराई।।बिप्र बिबेकी बेदबिद संमत साधु सुजाति। + +जिमि धोखें मदपान कर सचिव सोच तेहि भाँति।।144।।जिमि कुलीन तिय साधु सयानी। पतिदेवता करम मन बानी।। + +रहै करम बस परिहरि नाहू। सचिव हृदयँ तिमि दारुन दाहु।। + +लोचन सजल डीठि भइ थोरी। सुनइ न श्रवन बिकल मति भोरी।। + +सूखहिं अधर लागि मुहँ लाटी। जिउ न जाइ उर अवधि कपाटी।। + +बिबरन भयउ न जाइ निहारी। मारेसि मनहुँ पिता महतारी।। + +हानि गलानि बिपुल मन ब्यापी। जमपुर पंथ सोच जिमि पापी।। + +बचनु न आव हृदयँ पछिताई। अवध काह मैं देखब जाई।। + +राम रहित रथ देखिहि जोई। सकुचिहि मोहि बिलोकत सोई।।-धाइ पूँछिहहिं मोहि जब बिकल नगर नर नारि। + +उतरु देब मैं सबहि तब हृदयँ बज्रु बैठारि।।145।।पुछिहहिं दीन दुखित सब माता। कहब काह मैं तिन्हहि बिधाता।। + +पूछिहि जबहिं लखन महतारी। कहिहउँ कवन सँदेस सुखारी।। + +राम जननि जब आइहि धाई। सुमिरि बच्छु जिमि धेनु लवाई।। + +पूँछत उतरु देब मैं तेही। गे बनु राम लखनु बैदेही।। + +जोइ पूँछिहि तेहि ऊतरु देबा।जाइ अवध अब यहु सुखु लेबा।। + +पूँछिहि जबहिं राउ दुख दीना। जिवनु जासु रघुनाथ अधीना।। + +देहउँ उतरु कौनु मुहु लाई। आयउँ कुसल कुअँर पहुँचाई।। + +सुनत लखन सिय राम सँदेसू। तृन जिमि तनु परिहरिहि नरेसू।।-ह्रदउ न बिदरेउ पंक जिमि बिछुरत प्रीतमु नीरु।। + +जानत हौं मोहि दीन्ह बिधि यहु जातना सरीरु।।146।।एहि बिधि करत पंथ पछितावा। तमसा तीर तुरत रथु आवा।। + +बिदा किए करि बिनय निषादा। फिरे पायँ परि बिकल बिषादा।। + +पैठत नगर सचिव सकुचाई। जनु मारेसि ���ुर बाँभन गाई।। + +बैठि बिटप तर दिवसु गवाँवा। साँझ समय तब अवसरु पावा।। + +अवध प्रबेसु कीन्ह अँधिआरें। पैठ भवन रथु राखि दुआरें।। + +जिन्ह जिन्ह समाचार सुनि पाए। भूप द्वार रथु देखन आए।। + +रथु पहिचानि बिकल लखि घोरे। गरहिं गात जिमि आतप ओरे।। + +नगर नारि नर ब्याकुल कैंसें। निघटत नीर मीनगन जैंसें।।-सचिव आगमनु सुनत सबु बिकल भयउ रनिवासु। + +भवन भयंकरु लाग तेहि मानहुँ प्रेत निवासु।।147।।अति आरति सब पूँछहिं रानी। उतरु न आव बिकल भइ बानी।। + +सुनइ न श्रवन नयन नहिं सूझा। कहहु कहाँ नृप तेहि तेहि बूझा।। + +दासिन्ह दीख सचिव बिकलाई। कौसल्या गृहँ गईं लवाई।। + +जाइ सुमंत्र दीख कस राजा। अमिअ रहित जनु चंदु बिराजा।। + +आसन सयन बिभूषन हीना। परेउ भूमितल निपट मलीना।। + +लेइ उसासु सोच एहि भाँती। सुरपुर तें जनु खँसेउ जजाती।। + +लेत सोच भरि छिनु छिनु छाती। जनु जरि पंख परेउ संपाती।। + +राम राम कह राम सनेही। पुनि कह राम लखन बैदेही।।देखि सचिवँ जय जीव कहि कीन्हेउ दंड प्रनामु। + +सुनत उठेउ ब्याकुल नृपति कहु सुमंत्र कहँ रामु।।148।।भूप सुमंत्रु लीन्ह उर लाई। बूड़त कछु अधार जनु पाई।। + +सहित सनेह निकट बैठारी। पूँछत राउ नयन भरि बारी।। + +राम कुसल कहु सखा सनेही। कहँ रघुनाथु लखनु बैदेही।। + +आने फेरि कि बनहि सिधाए। सुनत सचिव लोचन जल छाए।। + +सोक बिकल पुनि पूँछ नरेसू। कहु सिय राम लखन संदेसू।। + +राम रूप गुन सील सुभाऊ। सुमिरि सुमिरि उर सोचत राऊ।। + +राउ सुनाइ दीन्ह बनबासू। सुनि मन भयउ न हरषु हराँसू।। + +सो सुत बिछुरत गए न प्राना। को पापी बड़ मोहि समाना।।सखा रामु सिय लखनु जहँ तहाँ मोहि पहुँचाउ। + +नाहिं त चाहत चलन अब प्रान कहउँ सतिभाउ।।149।।पुनि पुनि पूँछत मंत्रहि राऊ। प्रियतम सुअन सँदेस सुनाऊ।। + +करहि सखा सोइ बेगि उपाऊ। रामु लखनु सिय नयन देखाऊ।। + +सचिव धीर धरि कह मुदु बानी। महाराज तुम्ह पंडित ग्यानी।। + +बीर सुधीर धुरंधर देवा। साधु समाजु सदा तुम्ह सेवा।। + +जनम मरन सब दुख भोगा। हानि लाभ प्रिय मिलन बियोगा।। + +काल करम बस हौहिं गोसाईं। बरबस राति दिवस की नाईं।। + +सुख हरषहिं जड़ दुख बिलखाहीं। दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं।। + +धीरज धरहु बिबेकु बिचारी। छाड़िअ सोच सकल हितकारी।।प्रथम बासु तमसा भयउ दूसर सुरसरि तीर। + +न्हाई रहे जलपानु करि सिय समेत दोउ बीर।।150।।केवट कीन्हि बहुत सेवकाई। सो जामिनि सिंग���ौर गवाँई।। + +होत प्रात बट छीरु मगावा। जटा मुकुट निज सीस बनावा।। + +राम सखाँ तब नाव मगाई। प्रिया चढ़ाइ चढ़े रघुराई।। + +लखन बान धनु धरे बनाई। आपु चढ़े प्रभु आयसु पाई।। + +बिकल बिलोकि मोहि रघुबीरा। बोले मधुर बचन धरि धीरा।। + +तात प्रनामु तात सन कहेहु। बार बार पद पंकज गहेहू।। + +करबि पायँ परि बिनय बहोरी। तात करिअ जनि चिंता मोरी।। + +बन मग मंगल कुसल हमारें। कृपा अनुग्रह पुन्य तुम्हारें।।तुम्हरे अनुग्रह तात कानन जात सब सुखु पाइहौं। + +प्रतिपालि आयसु कुसल देखन पाय पुनि फिरि आइहौं।। + +जननीं सकल परितोषि परि परि पायँ करि बिनती घनी। + +तुलसी करेहु सोइ जतनु जेहिं कुसली रहहिं कोसल धनी।।गुर सन कहब सँदेसु बार बार पद पदुम गहि। + +करब सोइ उपदेसु जेहिं न सोच मोहि अवधपति।।151।।पुरजन परिजन सकल निहोरी। तात सुनाएहु बिनती मोरी।। + +सोइ सब भाँति मोर हितकारी। जातें रह नरनाहु सुखारी।। + +कहब सँदेसु भरत के आएँ। नीति न तजिअ राजपदु पाएँ।। + +पालेहु प्रजहि करम मन बानी। सेएहु मातु सकल सम जानी।। + +ओर निबाहेहु भायप भाई। करि पितु मातु सुजन सेवकाई।। + +तात भाँति तेहि राखब राऊ। सोच मोर जेहिं करै न काऊ।। + +लखन कहे कछु बचन कठोरा। बरजि राम पुनि मोहि निहोरा।। + +बार बार निज सपथ देवाई। कहबि न तात लखन लरिकाई।।कहि प्रनाम कछु कहन लिय सिय भइ सिथिल सनेह। + +थकित बचन लोचन सजल पुलक पल्लवित देह।।152।।तेहि अवसर रघुबर रूख पाई। केवट पारहि नाव चलाई।। + +रघुकुलतिलक चले एहि भाँती। देखउँ ठाढ़ कुलिस धरि छाती।। + +मैं आपन किमि कहौं कलेसू। जिअत फिरेउँ लेइ राम सँदेसू।। + +अस कहि सचिव बचन रहि गयऊ। हानि गलानि सोच बस भयऊ।। + +सुत बचन सुनतहिं नरनाहू। परेउ धरनि उर दारुन दाहू।। + +तलफत बिषम मोह मन मापा। माजा मनहुँ मीन कहुँ ब्यापा।। + +करि बिलाप सब रोवहिं रानी। महा बिपति किमि जाइ बखानी।। + +सुनि बिलाप दुखहू दुखु लागा। धीरजहू कर धीरजु भागा।।भयउ कोलाहलु अवध अति सुनि नृप राउर सोरु। + +बिपुल बिहग बन परेउ निसि मानहुँ कुलिस कठोरु।।153।।प्रान कंठगत भयउ भुआलू। मनि बिहीन जनु ब्याकुल ब्यालू।। + +इद्रीं सकल बिकल भइँ भारी। जनु सर सरसिज बनु बिनु बारी।। + +कौसल्याँ नृपु दीख मलाना। रबिकुल रबि अँथयउ जियँ जाना। + +उर धरि धीर राम महतारी। बोली बचन समय अनुसारी।। + +नाथ समुझि मन करिअ बिचारू। राम बियोग पयोधि अपारू।। + +करनधार तुम्ह अव�� जहाजू। चढ़ेउ सकल प्रिय पथिक समाजू।। + +धीरजु धरिअ त पाइअ पारू। नाहिं त बूड़िहि सबु परिवारू।। + +जौं जियँ धरिअ बिनय पिय मोरी। रामु लखनु सिय मिलहिं बहोरी।।प्रिया बचन मृदु सुनत नृपु चितयउ आँखि उघारि। + +तलफत मीन मलीन जनु सींचत सीतल बारि।।154।।धरि धीरजु उठी बैठ भुआलू। कहु सुमंत्र कहँ राम कृपालू।। + +कहाँ लखनु कहँ रामु सनेही। कहँ प्रिय पुत्रबधू बैदेही।। + +बिलपत राउ बिकल बहु भाँती। भइ जुग सरिस सिराति न राती।। + +तापस अंध साप सुधि आई। कौसल्यहि सब कथा सुनाई।। + +भयउ बिकल बरनत इतिहासा। राम रहित धिग जीवन आसा।। + +सो तनु राखि करब मैं काहा। जेंहि न प्रेम पनु मोर निबाहा।। + +हा रघुनंदन प्रान पिरीते। तुम्ह बिनु जिअत बहुत दिन बीते।। + +हा जानकी लखन हा रघुबर। हा पितु हित चित चातक जलधर।राम राम कहि राम कहि राम राम कहि राम। + +तनु परिहरि रघुबर बिरहँ राउ गयउ सुरधाम।।155।।जिअन मरन फलु दसरथ पावा। अंड अनेक अमल जसु छावा।। + +जिअत राम बिधु बदनु निहारा। राम बिरह करि मरनु सँवारा।। + +सोक बिकल सब रोवहिं रानी। रूपु सील बलु तेजु बखानी।। + +करहिं बिलाप अनेक प्रकारा। परहीं भूमितल बारहिं बारा।। + +बिलपहिं बिकल दास अरु दासी। घर घर रुदनु करहिं पुरबासी।। + +अँथयउ आजु भानुकुल भानू। धरम अवधि गुन रूप निधानू।। + +गारीं सकल कैकइहि देहीं। नयन बिहीन कीन्ह जग जेहीं।। + +एहि बिधि बिलपत रैनि बिहानी। आए सकल महामुनि ग्यानी।।तब बसिष्ठ मुनि समय सम कहि अनेक इतिहास। + +सोक नेवारेउ सबहि कर निज बिग्यान प्रकास।।156।।तेल नाँव भरि नृप तनु राखा। दूत बोलाइ बहुरि अस भाषा।। + +धावहु बेगि भरत पहिं जाहू। नृप सुधि कतहुँ कहहु जनि काहू।। + +एतनेइ कहेहु भरत सन जाई। गुर बोलाई पठयउ दोउ भाई।। + +सुनि मुनि आयसु धावन धाए। चले बेग बर बाजि लजाए।। + +अनरथु अवध अरंभेउ जब तें। कुसगुन होहिं भरत कहुँ तब तें।। + +देखहिं राति भयानक सपना। जागि करहिं कटु कोटि कलपना।। + +बिप्र जेवाँइ देहिं दिन दाना। सिव अभिषेक करहिं बिधि नाना।। + +मागहिं हृदयँ महेस मनाई। कुसल मातु पितु परिजन भाई।।एहि बिधि सोचत भरत मन धावन पहुँचे आइ। + +गुर अनुसासन श्रवन सुनि चले गनेसु मनाइ।।157।।चले समीर बेग हय हाँके। नाघत सरित सैल बन बाँके।। + +हृदयँ सोचु बड़ कछु न सोहाई। अस जानहिं जियँ जाउँ उड़ाई।। + +एक निमेष बरस सम जाई। एहि बिधि भरत नगर निअराई।। + +असगुन होहिं नगर पैठारा। रटहिं कुभाँति कुखेत करारा।। + +खर सिआर बोलहिं प्रतिकूला। सुनि सुनि होइ भरत मन सूला।। + +श्रीहत सर सरिता बन बागा। नगरु बिसेषि भयावनु लागा।। + +खग मृग हय गय जाहिं न जोए। राम बियोग कुरोग बिगोए।। + +नगर नारि नर निपट दुखारी। मनहुँ सबन्हि सब संपति हारी।।पुरजन मिलिहिं न कहहिं कछु गवँहिं जोहारहिं जाहिं। + +भरत कुसल पूँछि न सकहिं भय बिषाद मन माहिं।।158।।हाट बाट नहिं जाइ निहारी। जनु पुर दहँ दिसि लागि दवारी।। + +आवत सुत सुनि कैकयनंदिनि। हरषी रबिकुल जलरुह चंदिनि।। + +सजि आरती मुदित उठि धाई। द्वारेहिं भेंटि भवन लेइ आई।। + +भरत दुखित परिवारु निहारा। मानहुँ तुहिन बनज बनु मारा।। + +कैकेई हरषित एहि भाँति। मनहुँ मुदित दव लाइ किराती।। + +सुतहि ससोच देखि मनु मारें। पूँछति नैहर कुसल हमारें।। + +सकल कुसल कहि भरत सुनाई। पूँछी निज कुल कुसल भलाई।। + +कहु कहँ तात कहाँ सब माता। कहँ सिय राम लखन प्रिय भ्राता।।सुनि सुत बचन सनेहमय कपट नीर भरि नैन। + +भरत श्रवन मन सूल सम पापिनि बोली बैन।।159।।तात बात मैं सकल सँवारी। भै मंथरा सहाय बिचारी।। + +कछुक काज बिधि बीच बिगारेउ। भूपति सुरपति पुर पगु धारेउ।। + +सुनत भरतु भए बिबस बिषादा। जनु सहमेउ करि केहरि नादा।। + +तात तात हा तात पुकारी। परे भूमितल ब्याकुल भारी।। + +चलत न देखन पायउँ तोही। तात न रामहि सौंपेहु मोही।। + +बहुरि धीर धरि उठे सँभारी। कहु पितु मरन हेतु महतारी।। + +सुनि सुत बचन कहति कैकेई। मरमु पाँछि जनु माहुर देई।। + +आदिहु तें सब आपनि करनी। कुटिल कठोर मुदित मन बरनी।।भरतहि बिसरेउ पितु मरन सुनत राम बन गौनु। + +हेतु अपनपउ जानि जियँ थकित रहे धरि मौनु।।160।।बिकल बिलोकि सुतहि समुझावति। मनहुँ जरे पर लोनु लगावति।। + +तात राउ नहिं सोचे जोगू। बिढ़इ सुकृत जसु कीन्हेउ भोगू।। + +जीवत सकल जनम फल पाए। अंत अमरपति सदन सिधाए।। + +अस अनुमानि सोच परिहरहू। सहित समाज राज पुर करहू।। + +सुनि सुठि सहमेउ राजकुमारू। पाकें छत जनु लाग अँगारू।। + +धीरज धरि भरि लेहिं उसासा। पापनि सबहि भाँति कुल नासा।। + +जौं पै कुरुचि रही अति तोही। जनमत काहे न मारे मोही।। + +पेड़ काटि तैं पालउ सींचा। मीन जिअन निति बारि उलीचा।।हंसबंसु दसरथु जनकु राम लखन से भाइ। + +जननी तूँ जननी भई बिधि सन कछु न बसाइ।।161।।जब तैं कुमति कुमत जियँ ठयऊ। खंड खंड होइ ह्रदउ न गयऊ।। + +बर मागत मन भइ न��िं पीरा। गरि न जीह मुहँ परेउ न कीरा।। + +भूपँ प्रतीत तोरि किमि कीन्ही। मरन काल बिधि मति हरि लीन्ही।। + +बिधिहुँ न नारि हृदय गति जानी। सकल कपट अघ अवगुन खानी।। + +सरल सुसील धरम रत राऊ। सो किमि जानै तीय सुभाऊ।। + +अस को जीव जंतु जग माहीं। जेहि रघुनाथ प्रानप्रिय नाहीं।। + +भे अति अहित रामु तेउ तोही। को तू अहसि सत्य कहु मोही।। + +जो हसि सो हसि मुहँ मसि लाई। आँखि ओट उठि बैठहिं जाई।।राम बिरोधी हृदय तें प्रगट कीन्ह बिधि मोहि। + +मो समान को पातकी बादि कहउँ कछु तोहि।।162।।सुनि सत्रुघुन मातु कुटिलाई। जरहिं गात रिस कछु न बसाई।। + +तेहि अवसर कुबरी तहँ आई। बसन बिभूषन बिबिध बनाई।। + +लखि रिस भरेउ लखन लघु भाई। बरत अनल घृत आहुति पाई।। + +हुमगि लात तकि कूबर मारा। परि मुह भर महि करत पुकारा।। + +कूबर टूटेउ फूट कपारू। दलित दसन मुख रुधिर प्रचारू।। + +आह दइअ मैं काह नसावा। करत नीक फलु अनइस पावा।। + +सुनि रिपुहन लखि नख सिख खोटी। लगे घसीटन धरि धरि झोंटी।। + +भरत दयानिधि दीन्हि छड़ाई। कौसल्या पहिं गे दोउ भाई।।मलिन बसन बिबरन बिकल कृस सरीर दुख भार। + +कनक कलप बर बेलि बन मानहुँ हनी तुसार।।163।।भरतहि देखि मातु उठि धाई। मुरुछित अवनि परी झइँ आई।। + +देखत भरतु बिकल भए भारी। परे चरन तन दसा बिसारी।। + +मातु तात कहँ देहि देखाई। कहँ सिय रामु लखनु दोउ भाई।। + +कैकइ कत जनमी जग माझा। जौं जनमि त भइ काहे न बाँझा।। + +कुल कलंकु जेहिं जनमेउ मोही। अपजस भाजन प्रियजन द्रोही।। + +को तिभुवन मोहि सरिस अभागी। गति असि तोरि मातु जेहि लागी।। + +पितु सुरपुर बन रघुबर केतू। मैं केवल सब अनरथ हेतु।। + +धिग मोहि भयउँ बेनु बन आगी। दुसह दाह दुख दूषन भागी।।मातु भरत के बचन मृदु सुनि सुनि उठी सँभारि।। + +लिए उठाइ लगाइ उर लोचन मोचति बारि।।164।।सरल सुभाय मायँ हियँ लाए। अति हित मनहुँ राम फिरि आए।। + +भेंटेउ बहुरि लखन लघु भाई। सोकु सनेहु न हृदयँ समाई।। + +देखि सुभाउ कहत सबु कोई। राम मातु अस काहे न होई।। + +माताँ भरतु गोद बैठारे। आँसु पौंछि मृदु बचन उचारे।। + +अजहुँ बच्छ बलि धीरज धरहू। कुसमउ समुझि सोक परिहरहू।। + +जनि मानहु हियँ हानि गलानी। काल करम गति अघटित जानि।। + +काहुहि दोसु देहु जनि ताता। भा मोहि सब बिधि बाम बिधाता।। + +जो एतेहुँ दुख मोहि जिआवा। अजहुँ को जानइ का तेहि भावा।।पितु आयस भूषन बसन तात तजे रघुबीर। + +बिसमउ हरषु न हृदयँ कछ��� पहिरे बलकल चीर। 165।।मुख प्रसन्न मन रंग न रोषू। सब कर सब बिधि करि परितोषू।। + +चले बिपिन सुनि सिय सँग लागी। रहइ न राम चरन अनुरागी।। + +सुनतहिं लखनु चले उठि साथा। रहहिं न जतन किए रघुनाथा।। + +तब रघुपति सबही सिरु नाई। चले संग सिय अरु लघु भाई।। + +रामु लखनु सिय बनहि सिधाए। गइउँ न संग न प्रान पठाए।। + +यहु सबु भा इन्ह आँखिन्ह आगें। तउ न तजा तनु जीव अभागें।। + +मोहि न लाज निज नेहु निहारी। राम सरिस सुत मैं महतारी।। + +जिऐ मरै भल भूपति जाना। मोर हृदय सत कुलिस समाना।।कौसल्या के बचन सुनि भरत सहित रनिवास। + +ब्याकुल बिलपत राजगृह मानहुँ सोक नेवासु।।166।।बिलपहिं बिकल भरत दोउ भाई। कौसल्याँ लिए हृदयँ लगाई।। + +भाँति अनेक भरतु समुझाए। कहि बिबेकमय बचन सुनाए।। + +भरतहुँ मातु सकल समुझाईं। कहि पुरान श्रुति कथा सुहाईं।। + +छल बिहीन सुचि सरल सुबानी। बोले भरत जोरि जुग पानी।। + +जे अघ मातु पिता सुत मारें। गाइ गोठ महिसुर पुर जारें।। + +जे अघ तिय बालक बध कीन्हें। मीत महीपति माहुर दीन्हें।। + +जे पातक उपपातक अहहीं। करम बचन मन भव कबि कहहीं।। + +ते पातक मोहि होहुँ बिधाता। जौं यहु होइ मोर मत माता।।जे परिहरि हरि हर चरन भजहिं भूतगन घोर। + +तेहि कइ गति मोहि देउ बिधि जौं जननी मत मोर।।167।।बेचहिं बेदु धरमु दुहि लेहीं। पिसुन पराय पाप कहि देहीं।। + +कपटी कुटिल कलहप्रिय क्रोधी। बेद बिदूषक बिस्व बिरोधी।। + +लोभी लंपट लोलुपचारा। जे ताकहिं परधनु परदारा।। + +पावौं मैं तिन्ह के गति घोरा। जौं जननी यहु संमत मोरा।। + +जे नहिं साधुसंग अनुरागे। परमारथ पथ बिमुख अभागे।। + +जे न भजहिं हरि नरतनु पाई। जिन्हहि न हरि हर सुजसु सोहाई।। + +तजि श्रुतिपंथु बाम पथ चलहीं। बंचक बिरचि बेष जगु छलहीं।। + +तिन्ह कै गति मोहि संकर देऊ। जननी जौं यहु जानौं भेऊ।।मातु भरत के बचन सुनि साँचे सरल सुभायँ। + +कहति राम प्रिय तात तुम्ह सदा बचन मन कायँ।।168।।राम प्रानहु तें प्रान तुम्हारे। तुम्ह रघुपतिहि प्रानहु तें प्यारे।। + +बिधु बिष चवै स्त्रवै हिमु आगी। होइ बारिचर बारि बिरागी।। + +भएँ ग्यानु बरु मिटै न मोहू। तुम्ह रामहि प्रतिकूल न होहू।। + +मत तुम्हार यहु जो जग कहहीं। सो सपनेहुँ सुख सुगति न लहहीं।। + +अस कहि मातु भरतु हियँ लाए। थन पय स्त्रवहिं नयन जल छाए।। + +करत बिलाप बहुत यहि भाँती। बैठेहिं बीति गइ सब राती।। + +बामदेउ बसिष्ठ तब आए। सचिव महाजन सकल बोलाए।। + +मुनि बहु भाँति भरत उपदेसे। कहि परमारथ बचन सुदेसे।।तात हृदयँ धीरजु धरहु करहु जो अवसर आजु। + +उठे भरत गुर बचन सुनि करन कहेउ सबु साजु।।169।।नृपतनु बेद बिदित अन्हवावा। परम बिचित्र बिमानु बनावा।। + +गहि पद भरत मातु सब राखी। रहीं रानि दरसन अभिलाषी।। + +चंदन अगर भार बहु आए। अमित अनेक सुगंध सुहाए।। + +सरजु तीर रचि चिता बनाई। जनु सुरपुर सोपान सुहाई।। + +एहि बिधि दाह क्रिया सब कीन्ही। बिधिवत न्हाइ तिलांजुलि दीन्ही।। + +सोधि सुमृति सब बेद पुराना। कीन्ह भरत दसगात बिधाना।। + +जहँ जस मुनिबर आयसु दीन्हा। तहँ तस सहस भाँति सबु कीन्हा।। + +भए बिसुद्ध दिए सब दाना। धेनु बाजि गज बाहन नाना।।सिंघासन भूषन बसन अन्न धरनि धन धाम। + +दिए भरत लहि भूमिसुर भे परिपूरन काम।।170।।पितु हित भरत कीन्हि जसि करनी। सो मुख लाख जाइ नहिं बरनी।। + +सुदिनु सोधि मुनिबर तब आए। सचिव महाजन सकल बोलाए।। + +बैठे राजसभाँ सब जाई। पठए बोलि भरत दोउ भाई।। + +भरतु बसिष्ठ निकट बैठारे। नीति धरममय बचन उचारे।। + +प्रथम कथा सब मुनिबर बरनी। कैकइ कुटिल कीन्हि जसि करनी।। + +भूप धरमब्रतु सत्य सराहा। जेहिं तनु परिहरि प्रेमु निबाहा।। + +कहत राम गुन सील सुभाऊ। सजल नयन पुलकेउ मुनिराऊ।। + +बहुरि लखन सिय प्रीति बखानी। सोक सनेह मगन मुनि ग्यानी।।सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ। + +हानि लाभु जीवन मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ।।171।।अस बिचारि केहि देइअ दोसू। ब्यरथ काहि पर कीजिअ रोसू।। + +तात बिचारु केहि करहु मन माहीं। सोच जोगु दसरथु नृपु नाहीं।। + +सोचिअ बिप्र जो बेद बिहीना। तजि निज धरमु बिषय लयलीना।। + +सोचिअ नृपति जो नीति न जाना। जेहि न प्रजा प्रिय प्रान समाना।। + +सोचिअ बयसु कृपन धनवानू। जो न अतिथि सिव भगति सुजानू।। + +सोचिअ सूद्रु बिप्र अवमानी। मुखर मानप्रिय ग्यान गुमानी।। + +सोचिअ पुनि पति बंचक नारी। कुटिल कलहप्रिय इच्छाचारी।। + +सोचिअ बटु निज ब्रतु परिहरई। जो नहिं गुर आयसु अनुसरई।।सोचिअ गृही जो मोह बस करइ करम पथ त्याग। + +सोचिअ जति प्रंपच रत बिगत बिबेक बिराग।।172।।बैखानस सोइ सोचै जोगु। तपु बिहाइ जेहि भावइ भोगू।। + +सोचिअ पिसुन अकारन क्रोधी। जननि जनक गुर बंधु बिरोधी।। + +सब बिधि सोचिअ पर अपकारी। निज तनु पोषक निरदय भारी।। + +सोचनीय सबहि बिधि सोई। जो न छाड़ि छलु हरि जन होई।। + +सोचनीय नह��ं कोसलराऊ। भुवन चारिदस प्रगट प्रभाऊ।। + +भयउ न अहइ न अब होनिहारा। भूप भरत जस पिता तुम्हारा।। + +बिधि हरि हरु सुरपति दिसिनाथा। बरनहिं सब दसरथ गुन गाथा।।कहहु तात केहि भाँति कोउ करिहि बड़ाई तासु। + +राम लखन तुम्ह सत्रुहन सरिस सुअन सुचि जासु।।173।।सब प्रकार भूपति बड़भागी। बादि बिषादु करिअ तेहि लागी।। + +यहु सुनि समुझि सोचु परिहरहू। सिर धरि राज रजायसु करहू।। + +राँय राजपदु तुम्ह कहुँ दीन्हा। पिता बचनु फुर चाहिअ कीन्हा।। + +तजे रामु जेहिं बचनहि लागी। तनु परिहरेउ राम बिरहागी।। + +नृपहि बचन प्रिय नहिं प्रिय प्राना। करहु तात पितु बचन प्रवाना।। + +करहु सीस धरि भूप रजाई। हइ तुम्ह कहँ सब भाँति भलाई।। + +परसुराम पितु अग्या राखी। मारी मातु लोक सब साखी।। + +तनय जजातिहि जौबनु दयऊ। पितु अग्याँ अघ अजसु न भयऊ।।अनुचित उचित बिचारु तजि जे पालहिं पितु बैन। + +ते भाजन सुख सुजस के बसहिं अमरपति ऐन।।174।।अवसि नरेस बचन फुर करहू। पालहु प्रजा सोकु परिहरहू।। + +सुरपुर नृप पाइहि परितोषू। तुम्ह कहुँ सुकृत सुजसु नहिं दोषू।। + +बेद बिदित संमत सबही का। जेहि पितु देइ सो पावइ टीका।। + +करहु राजु परिहरहु गलानी। मानहु मोर बचन हित जानी।। + +सुनि सुखु लहब राम बैदेहीं। अनुचित कहब न पंडित केहीं।। + +कौसल्यादि सकल महतारीं। तेउ प्रजा सुख होहिं सुखारीं।। + +परम तुम्हार राम कर जानिहि। सो सब बिधि तुम्ह सन भल मानिहि।। + +सौंपेहु राजु राम कै आएँ। सेवा करेहु सनेह सुहाएँ।।कीजिअ गुर आयसु अवसि कहहिं सचिव कर जोरि। + +रघुपति आएँ उचित जस तस तब करब बहोरि।।175।।कौसल्या धरि धीरजु कहई। पूत पथ्य गुर आयसु अहई।। + +सो आदरिअ करिअ हित मानी। तजिअ बिषादु काल गति जानी।। + +बन रघुपति सुरपति नरनाहू। तुम्ह एहि भाँति तात कदराहू।। + +परिजन प्रजा सचिव सब अंबा। तुम्हही सुत सब कहँ अवलंबा।। + +लखि बिधि बाम कालु कठिनाई। धीरजु धरहु मातु बलि जाई।। + +सिर धरि गुर आयसु अनुसरहू। प्रजा पालि परिजन दुखु हरहू।। + +गुर के बचन सचिव अभिनंदनु। सुने भरत हिय हित जनु चंदनु।। + +सुनी बहोरि मातु मृदु बानी। सील सनेह सरल रस सानी।।सानी सरल रस मातु बानी सुनि भरत ब्याकुल भए। + +लोचन सरोरुह स्त्रवत सींचत बिरह उर अंकुर नए।। + +सो दसा देखत समय तेहि बिसरी सबहि सुधि देह की। + +तुलसी सराहत सकल सादर सीवँ सहज सनेह की।।भरतु कमल कर जोरि धीर धुरंधर धीर धरि। + +बचन अमिअँ जनु बोरि देत उचित उत्तर सबहि।।176।।मोहि उपदेसु दीन्ह गुर नीका। प्रजा सचिव संमत सबही का।। + +मातु उचित धरि आयसु दीन्हा। अवसि सीस धरि चाहउँ कीन्हा।। + +गुर पितु मातु स्वामि हित बानी। सुनि मन मुदित करिअ भलि जानी।। + +उचित कि अनुचित किएँ बिचारू। धरमु जाइ सिर पातक भारू।। + +तुम्ह तौ देहु सरल सिख सोई। जो आचरत मोर भल होई।। + +जद्यपि यह समुझत हउँ नीकें। तदपि होत परितोषु न जी कें।। + +अब तुम्ह बिनय मोरि सुनि लेहू। मोहि अनुहरत सिखावनु देहू।। + +ऊतरु देउँ छमब अपराधू। दुखित दोष गुन गनहिं न साधू।।पितु सुरपुर सिय रामु बन करन कहहु मोहि राजु। + +एहि तें जानहु मोर हित कै आपन बड़ काजु।।177।।हित हमार सियपति सेवकाई। सो हरि लीन्ह मातु कुटिलाई।। + +मैं अनुमानि दीख मन माहीं। आन उपायँ मोर हित नाहीं।। + +सोक समाजु राजु केहि लेखें। लखन राम सिय बिनु पद देखें।। + +बादि बसन बिनु भूषन भारू। बादि बिरति बिनु ब्रह्म बिचारू।। + +सरुज सरीर बादि बहु भोगा। बिनु हरिभगति जायँ जप जोगा।। + +जायँ जीव बिनु देह सुहाई। बादि मोर सबु बिनु रघुराई।। + +जाउँ राम पहिं आयसु देहू। एकहिं आँक मोर हित एहू।। + +मोहि नृप करि भल आपन चहहू। सोउ सनेह जड़ता बस कहहू।।कैकेई सुअ कुटिलमति राम बिमुख गतलाज। + +तुम्ह चाहत सुखु मोहबस मोहि से अधम कें राज।।178।।कहउँ साँचु सब सुनि पतिआहू। चाहिअ धरमसील नरनाहू।। + +मोहि राजु हठि देइहहु जबहीं। रसा रसातल जाइहि तबहीं।। + +मोहि समान को पाप निवासू। जेहि लगि सीय राम बनबासू।। + +रायँ राम कहुँ काननु दीन्हा। बिछुरत गमनु अमरपुर कीन्हा।। + +मैं सठु सब अनरथ कर हेतू। बैठ बात सब सुनउँ सचेतू।। + +बिनु रघुबीर बिलोकि अबासू। रहे प्रान सहि जग उपहासू।। + +राम पुनीत बिषय रस रूखे। लोलुप भूमि भोग के भूखे।। + +कहँ लगि कहौं हृदय कठिनाई। निदरि कुलिसु जेहिं लही बड़ाई।।कारन तें कारजु कठिन होइ दोसु नहि मोर। + +कुलिस अस्थि तें उपल तें लोह कराल कठोर।।179।।कैकेई भव तनु अनुरागे। पाँवर प्रान अघाइ अभागे।। + +जौं प्रिय बिरहँ प्रान प्रिय लागे। देखब सुनब बहुत अब आगे।। + +लखन राम सिय कहुँ बनु दीन्हा। पठइ अमरपुर पति हित कीन्हा।। + +लीन्ह बिधवपन अपजसु आपू। दीन्हेउ प्रजहि सोकु संतापू।। + +मोहि दीन्ह सुखु सुजसु सुराजू। कीन्ह कैकेईं सब कर काजू।। + +एहि तें मोर काह अब नीका। तेहि पर देन कहहु तुम्ह टीका।। + +कैकई जठ��� जनमि जग माहीं। यह मोहि कहँ कछु अनुचित नाहीं।। + +मोरि बात सब बिधिहिं बनाई। प्रजा पाँच कत करहु सहाई।।ग्रह ग्रहीत पुनि बात बस तेहि पुनि बीछी मार। + +तेहि पिआइअ बारुनी कहहु काह उपचार।।180।।कैकइ सुअन जोगु जग जोई। चतुर बिरंचि दीन्ह मोहि सोई।। + +दसरथ तनय राम लघु भाई। दीन्हि मोहि बिधि बादि बड़ाई।। + +तुम्ह सब कहहु कढ़ावन टीका। राय रजायसु सब कहँ नीका।। + +उतरु देउँ केहि बिधि केहि केही। कहहु सुखेन जथा रुचि जेही।। + +मोहि कुमातु समेत बिहाई। कहहु कहिहि के कीन्ह भलाई।। + +मो बिनु को सचराचर माहीं। जेहि सिय रामु प्रानप्रिय नाहीं।। + +परम हानि सब कहँ बड़ लाहू। अदिनु मोर नहि दूषन काहू।। + +संसय सील प्रेम बस अहहू। सबुइ उचित सब जो कछु कहहू।।राम मातु सुठि सरलचित मो पर प्रेमु बिसेषि। + +कहइ सुभाय सनेह बस मोरि दीनता देखि।।181।गुर बिबेक सागर जगु जाना। जिन्हहि बिस्व कर बदर समाना।। + +मो कहँ तिलक साज सज सोऊ। भएँ बिधि बिमुख बिमुख सबु कोऊ।। + +परिहरि रामु सीय जग माहीं। कोउ न कहिहि मोर मत नाहीं।। + +सो मैं सुनब सहब सुखु मानी। अंतहुँ कीच तहाँ जहँ पानी।। + +डरु न मोहि जग कहिहि कि पोचू। परलोकहु कर नाहिन सोचू।। + +एकइ उर बस दुसह दवारी। मोहि लगि भे सिय रामु दुखारी।। + +जीवन लाहु लखन भल पावा। सबु तजि राम चरन मनु लावा।। + +मोर जनम रघुबर बन लागी। झूठ काह पछिताउँ अभागी।।आपनि दारुन दीनता कहउँ सबहि सिरु नाइ। + +देखें बिनु रघुनाथ पद जिय कै जरनि न जाइ।।182।।आन उपाउ मोहि नहि सूझा। को जिय कै रघुबर बिनु बूझा।। + +एकहिं आँक इहइ मन माहीं। प्रातकाल चलिहउँ प्रभु पाहीं।। + +जद्यपि मैं अनभल अपराधी। भै मोहि कारन सकल उपाधी।। + +तदपि सरन सनमुख मोहि देखी। छमि सब करिहहिं कृपा बिसेषी।। + +सील सकुच सुठि सरल सुभाऊ। कृपा सनेह सदन रघुराऊ।। + +अरिहुक अनभल कीन्ह न रामा। मैं सिसु सेवक जद्यपि बामा।। + +तुम्ह पै पाँच मोर भल मानी। आयसु आसिष देहु सुबानी।। + +जेहिं सुनि बिनय मोहि जनु जानी। आवहिं बहुरि रामु रजधानी।।जद्यपि जनमु कुमातु तें मैं सठु सदा सदोस। + +आपन जानि न त्यागिहहिं मोहि रघुबीर भरोस।।183।।भरत बचन सब कहँ प्रिय लागे। राम सनेह सुधाँ जनु पागे।। + +लोग बियोग बिषम बिष दागे। मंत्र सबीज सुनत जनु जागे।। + +मातु सचिव गुर पुर नर नारी। सकल सनेहँ बिकल भए भारी।। + +भरतहि कहहि सराहि सराही। राम प्रेम मूरति तनु आही।। + +तात भरत ���स काहे न कहहू। प्रान समान राम प्रिय अहहू।। + +जो पावँरु अपनी जड़ताई। तुम्हहि सुगाइ मातु कुटिलाई।। + +सो सठु कोटिक पुरुष समेता। बसिहि कलप सत नरक निकेता।। + +अहि अघ अवगुन नहि मनि गहई। हरइ गरल दुख दारिद दहई।।अवसि चलिअ बन रामु जहँ भरत मंत्रु भल कीन्ह। + +सोक सिंधु बूड़त सबहि तुम्ह अवलंबनु दीन्ह।।184।।भा सब कें मन मोदु न थोरा। जनु घन धुनि सुनि चातक मोरा।। + +चलत प्रात लखि निरनउ नीके। भरतु प्रानप्रिय भे सबही के।। + +मुनिहि बंदि भरतहि सिरु नाई। चले सकल घर बिदा कराई।। + +धन्य भरत जीवनु जग माहीं। सीलु सनेहु सराहत जाहीं।। + +कहहि परसपर भा बड़ काजू। सकल चलै कर साजहिं साजू।। + +जेहि राखहिं रहु घर रखवारी। सो जानइ जनु गरदनि मारी।। + +कोउ कह रहन कहिअ नहिं काहू। को न चहइ जग जीवन लाहू।।जरउ सो संपति सदन सुखु सुहद मातु पितु भाइ। + +सनमुख होत जो राम पद करै न सहस सहाइ।।185।।घर घर साजहिं बाहन नाना। हरषु हृदयँ परभात पयाना।। + +भरत जाइ घर कीन्ह बिचारू। नगरु बाजि गज भवन भँडारू।। + +संपति सब रघुपति कै आही। जौ बिनु जतन चलौं तजि ताही।। + +तौ परिनाम न मोरि भलाई। पाप सिरोमनि साइँ दोहाई।। + +करइ स्वामि हित सेवकु सोई। दूषन कोटि देइ किन कोई।। + +अस बिचारि सुचि सेवक बोले। जे सपनेहुँ निज धरम न डोले।। + +कहि सबु मरमु धरमु भल भाषा। जो जेहि लायक सो तेहिं राखा।। + +करि सबु जतनु राखि रखवारे। राम मातु पहिं भरतु सिधारे।।आरत जननी जानि सब भरत सनेह सुजान। + +कहेउ बनावन पालकीं सजन सुखासन जान।।186।।चक्क चक्कि जिमि पुर नर नारी। चहत प्रात उर आरत भारी।। + +जागत सब निसि भयउ बिहाना। भरत बोलाए सचिव सुजाना।। + +कहेउ लेहु सबु तिलक समाजू। बनहिं देब मुनि रामहिं राजू।। + +बेगि चलहु सुनि सचिव जोहारे। तुरत तुरग रथ नाग सँवारे।। + +अरुंधती अरु अगिनि समाऊ। रथ चढ़ि चले प्रथम मुनिराऊ।। + +बिप्र बृंद चढ़ि बाहन नाना। चले सकल तप तेज निधाना।। + +नगर लोग सब सजि सजि जाना। चित्रकूट कहँ कीन्ह पयाना।। + +सिबिका सुभग न जाहिं बखानी। चढ़ि चढ़ि चलत भई सब रानी।।सौंपि नगर सुचि सेवकनि सादर सकल चलाइ। + +सुमिरि राम सिय चरन तब चले भरत दोउ भाइ।।187।।राम दरस बस सब नर नारी। जनु करि करिनि चले तकि बारी।। + +बन सिय रामु समुझि मन माहीं। सानुज भरत पयादेहिं जाहीं।। + +देखि सनेहु लोग अनुरागे। उतरि चले हय गय रथ त्यागे।। + +जाइ समीप राखि निज डोली। राम मातु मृ���ु बानी बोली।। + +तात चढ़हु रथ बलि महतारी। होइहि प्रिय परिवारु दुखारी।। + +तुम्हरें चलत चलिहि सबु लोगू। सकल सोक कृस नहिं मग जोगू।। + +सिर धरि बचन चरन सिरु नाई। रथ चढ़ि चलत भए दोउ भाई।। + +तमसा प्रथम दिवस करि बासू। दूसर गोमति तीर निवासू।।पय अहार फल असन एक निसि भोजन एक लोग। + +करत राम हित नेम ब्रत परिहरि भूषन भोग।।188।।सई तीर बसि चले बिहाने। सृंगबेरपुर सब निअराने।। + +समाचार सब सुने निषादा। हृदयँ बिचार करइ सबिषादा।। + +कारन कवन भरतु बन जाहीं। है कछु कपट भाउ मन माहीं।। + +जौं पै जियँ न होति कुटिलाई। तौ कत लीन्ह संग कटकाई।। + +जानहिं सानुज रामहि मारी। करउँ अकंटक राजु सुखारी।। + +भरत न राजनीति उर आनी। तब कलंकु अब जीवन हानी।। + +सकल सुरासुर जुरहिं जुझारा। रामहि समर न जीतनिहारा।। + +का आचरजु भरतु अस करहीं। नहिं बिष बेलि अमिअ फल फरहीं।।अस बिचारि गुहँ ग्याति सन कहेउ सजग सब होहु। + +हथवाँसहु बोरहु तरनि कीजिअ घाटारोहु।।189।।होहु सँजोइल रोकहु घाटा। ठाटहु सकल मरै के ठाटा।। + +सनमुख लोह भरत सन लेऊँ। जिअत न सुरसरि उतरन देऊँ।। + +समर मरनु पुनि सुरसरि तीरा। राम काजु छनभंगु सरीरा।। + +भरत भाइ नृपु मै जन नीचू। बड़ें भाग असि पाइअ मीचू।। + +स्वामि काज करिहउँ रन रारी। जस धवलिहउँ भुवन दस चारी।। + +तजउँ प्रान रघुनाथ निहोरें। दुहूँ हाथ मुद मोदक मोरें।। + +साधु समाज न जाकर लेखा। राम भगत महुँ जासु न रेखा।। + +जायँ जिअत जग सो महि भारू। जननी जौबन बिटप कुठारू।।बिगत बिषाद निषादपति सबहि बढ़ाइ उछाहु। + +सुमिरि राम मागेउ तुरत तरकस धनुष सनाहु।।190।।बेगहु भाइहु सजहु सँजोऊ। सुनि रजाइ कदराइ न कोऊ।। + +भलेहिं नाथ सब कहहिं सहरषा। एकहिं एक बढ़ावइ करषा।। + +चले निषाद जोहारि जोहारी। सूर सकल रन रूचइ रारी।। + +सुमिरि राम पद पंकज पनहीं। भाथीं बाँधि चढ़ाइन्हि धनहीं।। + +अँगरी पहिरि कूँड़ि सिर धरहीं। फरसा बाँस सेल सम करहीं।। + +एक कुसल अति ओड़न खाँड़े। कूदहि गगन मनहुँ छिति छाँड़े।। + +निज निज साजु समाजु बनाई। गुह राउतहि जोहारे जाई।। + +देखि सुभट सब लायक जाने। लै लै नाम सकल सनमाने।।भाइहु लावहु धोख जनि आजु काज बड़ मोहि। + +सुनि सरोष बोले सुभट बीर अधीर न होहि।।191।।राम प्रताप नाथ बल तोरे। करहिं कटकु बिनु भट बिनु घोरे।। + +जीवत पाउ न पाछें धरहीं। रुंड मुंडमय मेदिनि करहीं।। + +दीख निषादनाथ भल टोलू। कहेउ बजा�� जुझाऊ ढोलू।। + +एतना कहत छींक भइ बाँए। कहेउ सगुनिअन्ह खेत सुहाए।। + +बूढ़ु एकु कह सगुन बिचारी। भरतहि मिलिअ न होइहि रारी।। + +रामहि भरतु मनावन जाहीं। सगुन कहइ अस बिग्रहु नाहीं।। + +सुनि गुह कहइ नीक कह बूढ़ा। सहसा करि पछिताहिं बिमूढ़ा।। + +भरत सुभाउ सीलु बिनु बूझें। बड़ि हित हानि जानि बिनु जूझें।।गहहु घाट भट समिटि सब लेउँ मरम मिलि जाइ। + +बूझि मित्र अरि मध्य गति तस तब करिहउँ आइ।।192।।लखन सनेहु सुभायँ सुहाएँ। बैरु प्रीति नहिं दुरइँ दुराएँ।। + +अस कहि भेंट सँजोवन लागे। कंद मूल फल खग मृग मागे।। + +मीन पीन पाठीन पुराने। भरि भरि भार कहारन्ह आने।। + +मिलन साजु सजि मिलन सिधाए। मंगल मूल सगुन सुभ पाए।। + +देखि दूरि तें कहि निज नामू। कीन्ह मुनीसहि दंड प्रनामू।। + +जानि रामप्रिय दीन्हि असीसा। भरतहि कहेउ बुझाइ मुनीसा।। + +राम सखा सुनि संदनु त्यागा। चले उतरि उमगत अनुरागा।। + +गाउँ जाति गुहँ नाउँ सुनाई। कीन्ह जोहारु माथ महि लाई।।करत दंडवत देखि तेहि भरत लीन्ह उर लाइ। + +मनहुँ लखन सन भेंट भइ प्रेम न हृदयँ समाइ।।193।।भेंटत भरतु ताहि अति प्रीती। लोग सिहाहिं प्रेम कै रीती।। + +धन्य धन्य धुनि मंगल मूला। सुर सराहि तेहि बरिसहिं फूला।। + +लोक बेद सब भाँतिहिं नीचा। जासु छाँह छुइ लेइअ सींचा।। + +तेहि भरि अंक राम लघु भ्राता। मिलत पुलक परिपूरित गाता।। + +राम राम कहि जे जमुहाहीं। तिन्हहि न पाप पुंज समुहाहीं।। + +यह तौ राम लाइ उर लीन्हा। कुल समेत जगु पावन कीन्हा।। + +करमनास जलु सुरसरि परई। तेहि को कहहु सीस नहिं धरई।। + +उलटा नामु जपत जगु जाना। बालमीकि भए ब्रह्म समाना।।स्वपच सबर खस जमन जड़ पावँर कोल किरात। + +रामु कहत पावन परम होत भुवन बिख्यात।।194।।नहिं अचिरजु जुग जुग चलि आई। केहि न दीन्हि रघुबीर बड़ाई।। + +राम नाम महिमा सुर कहहीं। सुनि सुनि अवधलोग सुखु लहहीं।। + +रामसखहि मिलि भरत सप्रेमा। पूँछी कुसल सुमंगल खेमा।। + +देखि भरत कर सील सनेहू। भा निषाद तेहि समय बिदेहू।। + +सकुच सनेहु मोदु मन बाढ़ा। भरतहि चितवत एकटक ठाढ़ा।। + +धरि धीरजु पद बंदि बहोरी। बिनय सप्रेम करत कर जोरी।। + +कुसल मूल पद पंकज पेखी। मैं तिहुँ काल कुसल निज लेखी।। + +अब प्रभु परम अनुग्रह तोरें। सहित कोटि कुल मंगल मोरें।।समुझि मोरि करतूति कुलु प्रभु महिमा जियँ जोइ। + +जो न भजइ रघुबीर पद जग बिधि बंचित सोइ।।195।।कपटी काय�� कुमति कुजाती। लोक बेद बाहेर सब भाँती।। + +राम कीन्ह आपन जबही तें। भयउँ भुवन भूषन तबही तें।। + +देखि प्रीति सुनि बिनय सुहाई। मिलेउ बहोरि भरत लघु भाई।। + +कहि निषाद निज नाम सुबानीं। सादर सकल जोहारीं रानीं।। + +जानि लखन सम देहिं असीसा। जिअहु सुखी सय लाख बरीसा।। + +निरखि निषादु नगर नर नारी। भए सुखी जनु लखनु निहारी।। + +कहहिं लहेउ एहिं जीवन लाहू। भेंटेउ रामभद्र भरि बाहू।। + +सुनि निषादु निज भाग बड़ाई। प्रमुदित मन लइ चलेउ लेवाई।।सनकारे सेवक सकल चले स्वामि रुख पाइ। + +घर तरु तर सर बाग बन बास बनाएन्हि जाइ।।196।।सृंगबेरपुर भरत दीख जब। भे सनेहँ सब अंग सिथिल तब।। + +सोहत दिएँ निषादहि लागू। जनु तनु धरें बिनय अनुरागू।। + +एहि बिधि भरत सेनु सबु संगा। दीखि जाइ जग पावनि गंगा।। + +रामघाट कहँ कीन्ह प्रनामू। भा मनु मगनु मिले जनु रामू।। + +करहिं प्रनाम नगर नर नारी। मुदित ब्रह्ममय बारि निहारी।। + +करि मज्जनु मागहिं कर जोरी। रामचंद्र पद प्रीति न थोरी।। + +भरत कहेउ सुरसरि तव रेनू। सकल सुखद सेवक सुरधेनू।। + +जोरि पानि बर मागउँ एहू। सीय राम पद सहज सनेहू।।एहि बिधि मज्जनु भरतु करि गुर अनुसासन पाइ। + +मातु नहानीं जानि सब डेरा चले लवाइ।।197।।जहँ तहँ लोगन्ह डेरा कीन्हा। भरत सोधु सबही कर लीन्हा।। + +सुर सेवा करि आयसु पाई। राम मातु पहिं गे दोउ भाई।। + +चरन चाँपि कहि कहि मृदु बानी। जननीं सकल भरत सनमानी।। + +भाइहि सौंपि मातु सेवकाई। आपु निषादहि लीन्ह बोलाई।। + +चले सखा कर सों कर जोरें। सिथिल सरीर सनेह न थोरें।। + +पूँछत सखहि सो ठाउँ देखाऊ। नेकु नयन मन जरनि जुड़ाऊ।। + +जहँ सिय रामु लखनु निसि सोए। कहत भरे जल लोचन कोए।। + +भरत बचन सुनि भयउ बिषादू। तुरत तहाँ लइ गयउ निषादू।।जहँ सिंसुपा पुनीत तर रघुबर किय बिश्रामु। + +अति सनेहँ सादर भरत कीन्हेउ दंड प्रनामु।।198।।कुस साँथरीनिहारि सुहाई। कीन्ह प्रनामु प्रदच्छिन जाई।। + +चरन रेख रज आँखिन्ह लाई। बनइ न कहत प्रीति अधिकाई।। + +कनक बिंदु दुइ चारिक देखे। राखे सीस सीय सम लेखे।। + +सजल बिलोचन हृदयँ गलानी। कहत सखा सन बचन सुबानी।। + +श्रीहत सीय बिरहँ दुतिहीना। जथा अवध नर नारि बिलीना।। + +पिता जनक देउँ पटतर केही। करतल भोगु जोगु जग जेही।। + +ससुर भानुकुल भानु भुआलू। जेहि सिहात अमरावतिपालू।। + +प्राननाथु रघुनाथ गोसाई। जो बड़ होत सो राम बड़ाई।।पति देवता स���तीय मनि सीय साँथरी देखि। + +बिहरत ह्रदउ न हहरि हर पबि तें कठिन बिसेषि।।199।।लालन जोगु लखन लघु लोने। भे न भाइ अस अहहिं न होने।। + +पुरजन प्रिय पितु मातु दुलारे। सिय रघुबरहि प्रानपिआरे।। + +मृदु मूरति सुकुमार सुभाऊ। तात बाउ तन लाग न काऊ।। + +ते बन सहहिं बिपति सब भाँती। निदरे कोटि कुलिस एहिं छाती।। + +राम जनमि जगु कीन्ह उजागर। रूप सील सुख सब गुन सागर।। + +पुरजन परिजन गुर पितु माता। राम सुभाउ सबहि सुखदाता।। + +बैरिउ राम बड़ाई करहीं। बोलनि मिलनि बिनय मन हरहीं।। + +सारद कोटि कोटि सत सेषा। करि न सकहिं प्रभु गुन गन लेखा।।सुखस्वरुप रघुबंसमनि मंगल मोद निधान। + +ते सोवत कुस डासि महि बिधि गति अति बलवान।।200।।राम सुना दुखु कान न काऊ। जीवनतरु जिमि जोगवइ राऊ।। + +पलक नयन फनि मनि जेहि भाँती। जोगवहिं जननि सकल दिन राती।। + +ते अब फिरत बिपिन पदचारी। कंद मूल फल फूल अहारी।। + +धिग कैकेई अमंगल मूला। भइसि प्रान प्रियतम प्रतिकूला।। + +मैं धिग धिग अघ उदधि अभागी। सबु उतपातु भयउ जेहि लागी।। + +कुल कलंकु करि सृजेउ बिधाताँ। साइँदोह मोहि कीन्ह कुमाताँ।। + +सुनि सप्रेम समुझाव निषादू। नाथ करिअ कत बादि बिषादू।। + +राम तुम्हहि प्रिय तुम्ह प्रिय रामहि। यह निरजोसु दोसु बिधि बामहि।।बिधि बाम की करनी कठिन जेंहिं मातु कीन्ही बावरी। + +तेहि राति पुनि पुनि करहिं प्रभु सादर सरहना रावरी।। + +तुलसी न तुम्ह सो राम प्रीतमु कहतु हौं सौहें किएँ। + +परिनाम मंगल जानि अपने आनिए धीरजु हिएँ।।अंतरजामी रामु सकुच सप्रेम कृपायतन। + +चलिअ करिअ बिश्रामु यह बिचारि दृढ़ आनि मन।।201।।सखा बचन सुनि उर धरि धीरा। बास चले सुमिरत रघुबीरा।। + +यह सुधि पाइ नगर नर नारी। चले बिलोकन आरत भारी।। + +परदखिना करि करहिं प्रनामा। देहिं कैकइहि खोरि निकामा।। + +भरी भरि बारि बिलोचन लेंहीं। बाम बिधाताहि दूषन देहीं।। + +एक सराहहिं भरत सनेहू। कोउ कह नृपति निबाहेउ नेहू।। + +निंदहिं आपु सराहि निषादहि। को कहि सकइ बिमोह बिषादहि।। + +एहि बिधि राति लोगु सबु जागा। भा भिनुसार गुदारा लागा।। + +गुरहि सुनावँ चढ़ाइ सुहाईं। नईं नाव सब मातु चढ़ाईं।। + +दंड चारि महँ भा सबु पारा। उतरि भरत तब सबहि सँभारा।।प्रातक्रिया करि मातु पद बंदि गुरहि सिरु नाइ। + +आगें किए निषाद गन दीन्हेउ कटकु चलाइ।।202।।कियउ निषादनाथु अगुआईं। मातु पालकीं सकल चलाईं।। + +साथ बोलाइ भाइ लघु दीन्हा। बिप्रन्ह सहित गवनु गुर कीन्हा।। + +आपु सुरसरिहि कीन्ह प्रनामू। सुमिरे लखन सहित सिय रामू।। + +गवने भरत पयोदेहिं पाए। कोतल संग जाहिं डोरिआए।। + +कहहिं सुसेवक बारहिं बारा। होइअ नाथ अस्व असवारा।। + +रामु पयोदेहि पायँ सिधाए। हम कहँ रथ गज बाजि बनाए।। + +सिर भर जाउँ उचित अस मोरा। सब तें सेवक धरमु कठोरा।। + +देखि भरत गति सुनि मृदु बानी। सब सेवक गन गरहिं गलानी।।भरत तीसरे पहर कहँ कीन्ह प्रबेसु प्रयाग। + +कहत राम सिय राम सिय उमगि उमगि अनुराग।।203।।झलका झलकत पायन्ह कैंसें। पंकज कोस ओस कन जैसें।। + +भरत पयादेहिं आए आजू। भयउ दुखित सुनि सकल समाजू।। + +खबरि लीन्ह सब लोग नहाए। कीन्ह प्रनामु त्रिबेनिहिं आए।। + +सबिधि सितासित नीर नहाने। दिए दान महिसुर सनमाने।। + +देखत स्यामल धवल हलोरे। पुलकि सरीर भरत कर जोरे।। + +सकल काम प्रद तीरथराऊ। बेद बिदित जग प्रगट प्रभाऊ।। + +मागउँ भीख त्यागि निज धरमू। आरत काह न करइ कुकरमू।। + +अस जियँ जानि सुजान सुदानी। सफल करहिं जग जाचक बानी।।अरथ न धरम न काम रुचि गति न चहउँ निरबान। + +जनम जनम रति राम पद यह बरदानु न आन।।204।।जानहुँ रामु कुटिल करि मोही। लोग कहउ गुर साहिब द्रोही।। + +सीता राम चरन रति मोरें। अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें।। + +जलदु जनम भरि सुरति बिसारउ। जाचत जलु पबि पाहन डारउ।। + +चातकु रटनि घटें घटि जाई। बढ़े प्रेमु सब भाँति भलाई।। + +कनकहिं बान चढ़इ जिमि दाहें। तिमि प्रियतम पद नेम निबाहें।। + +भरत बचन सुनि माझ त्रिबेनी। भइ मृदु बानि सुमंगल देनी।। + +तात भरत तुम्ह सब बिधि साधू। राम चरन अनुराग अगाधू।। + +बाद गलानि करहु मन माहीं। तुम्ह सम रामहि कोउ प्रिय नाहीं।।तनु पुलकेउ हियँ हरषु सुनि बेनि बचन अनुकूल। + +भरत धन्य कहि धन्य सुर हरषित बरषहिं फूल।।205।।प्रमुदित तीरथराज निवासी। बैखानस बटु गृही उदासी।। + +कहहिं परसपर मिलि दस पाँचा। भरत सनेह सीलु सुचि साँचा।। + +सुनत राम गुन ग्राम सुहाए। भरद्वाज मुनिबर पहिं आए।। + +दंड प्रनामु करत मुनि देखे। मूरतिमंत भाग्य निज लेखे।। + +धाइ उठाइ लाइ उर लीन्हे। दीन्हि असीस कृतारथ कीन्हे।। + +आसनु दीन्ह नाइ सिरु बैठे। चहत सकुच गृहँ जनु भजि पैठे।। + +मुनि पूँछब कछु यह बड़ सोचू। बोले रिषि लखि सीलु सँकोचू।। + +सुनहु भरत हम सब सुधि पाई। बिधि करतब पर किछु न बसाई।।तुम्ह गलानि जियँ जनि करहु समु���ी मातु करतूति। + +तात कैकइहि दोसु नहिं गई गिरा मति धूति।।206।।यहउ कहत भल कहिहि न कोऊ। लोकु बेद बुध संमत दोऊ।। + +तात तुम्हार बिमल जसु गाई। पाइहि लोकउ बेदु बड़ाई।। + +लोक बेद संमत सबु कहई। जेहि पितु देइ राजु सो लहई।। + +राउ सत्यब्रत तुम्हहि बोलाई। देत राजु सुखु धरमु बड़ाई।। + +राम गवनु बन अनरथ मूला। जो सुनि सकल बिस्व भइ सूला।। + +सो भावी बस रानि अयानी। करि कुचालि अंतहुँ पछितानी।। + +तहँउँ तुम्हार अलप अपराधू। कहै सो अधम अयान असाधू।। + +करतेहु राजु त तुम्हहि न दोषू। रामहि होत सुनत संतोषू।।अब अति कीन्हेहु भरत भल तुम्हहि उचित मत एहु। + +सकल सुमंगल मूल जग रघुबर चरन सनेहु।।207।।सो तुम्हार धनु जीवनु प्राना। भूरिभाग को तुम्हहि समाना।। + +यह तम्हार आचरजु न ताता। दसरथ सुअन राम प्रिय भ्राता।। + +सुनहु भरत रघुबर मन माहीं। पेम पात्रु तुम्ह सम कोउ नाहीं।। + +लखन राम सीतहि अति प्रीती। निसि सब तुम्हहि सराहत बीती।। + +जाना मरमु नहात प्रयागा। मगन होहिं तुम्हरें अनुरागा।। + +तुम्ह पर अस सनेहु रघुबर कें। सुख जीवन जग जस जड़ नर कें।। + +यह न अधिक रघुबीर बड़ाई। प्रनत कुटुंब पाल रघुराई।। + +तुम्ह तौ भरत मोर मत एहू। धरें देह जनु राम सनेहू।।तुम्ह कहँ भरत कलंक यह हम सब कहँ उपदेसु। + +राम भगति रस सिद्धि हित भा यह समउ गनेसु।।208।।नव बिधु बिमल तात जसु तोरा। रघुबर किंकर कुमुद चकोरा।। + +उदित सदा अँथइहि कबहूँ ना। घटिहि न जग नभ दिन दिन दूना।। + +कोक तिलोक प्रीति अति करिही। प्रभु प्रताप रबि छबिहि न हरिही।। + +निसि दिन सुखद सदा सब काहू। ग्रसिहि न कैकइ करतबु राहू।। + +पूरन राम सुपेम पियूषा। गुर अवमान दोष नहिं दूषा।। + +राम भगत अब अमिअँ अघाहूँ। कीन्हेहु सुलभ सुधा बसुधाहूँ।। + +भूप भगीरथ सुरसरि आनी। सुमिरत सकल सुंमगल खानी।। + +दसरथ गुन गन बरनि न जाहीं। अधिकु कहा जेहि सम जग नाहीं।।जासु सनेह सकोच बस राम प्रगट भए आइ।। + +जे हर हिय नयननि कबहुँ निरखे नहीं अघाइ।।209।।कीरति बिधु तुम्ह कीन्ह अनूपा। जहँ बस राम पेम मृगरूपा।। + +तात गलानि करहु जियँ जाएँ। डरहु दरिद्रहि पारसु पाएँ।।।। + +सुनहु भरत हम झूठ न कहहीं। उदासीन तापस बन रहहीं।। + +सब साधन कर सुफल सुहावा। लखन राम सिय दरसनु पावा।। + +तेहि फल कर फलु दरस तुम्हारा। सहित पयाग सुभाग हमारा।। + +भरत धन्य तुम्ह जसु जगु जयऊ। कहि अस पेम मगन पुनि भयऊ।। + +सुनि मुनि ��चन सभासद हरषे। साधु सराहि सुमन सुर बरषे।। + +धन्य धन्य धुनि गगन पयागा। सुनि सुनि भरतु मगन अनुरागा।।पुलक गात हियँ रामु सिय सजल सरोरुह नैन। + +करि प्रनामु मुनि मंडलिहि बोले गदगद बैन।।210।।मुनि समाजु अरु तीरथराजू। साँचिहुँ सपथ अघाइ अकाजू।। + +एहिं थल जौं किछु कहिअ बनाई। एहि सम अधिक न अघ अधमाई।। + +तुम्ह सर्बग्य कहउँ सतिभाऊ। उर अंतरजामी रघुराऊ।। + +मोहि न मातु करतब कर सोचू। नहिं दुखु जियँ जगु जानिहि पोचू।। + +नाहिन डरु बिगरिहि परलोकू। पितहु मरन कर मोहि न सोकू।। + +सुकृत सुजस भरि भुअन सुहाए। लछिमन राम सरिस सुत पाए।। + +राम बिरहँ तजि तनु छनभंगू। भूप सोच कर कवन प्रसंगू।। + +राम लखन सिय बिनु पग पनहीं। करि मुनि बेष फिरहिं बन बनही।।अजिन बसन फल असन महि सयन डासि कुस पात। + +बसि तरु तर नित सहत हिम आतप बरषा बात।।211।।एहि दुख दाहँ दहइ दिन छाती। भूख न बासर नीद न राती।। + +एहि कुरोग कर औषधु नाहीं। सोधेउँ सकल बिस्व मन माहीं।। + +मातु कुमत बढ़ई अघ मूला। तेहिं हमार हित कीन्ह बँसूला।। + +कलि कुकाठ कर कीन्ह कुजंत्रू। गाड़ि अवधि पढ़ि कठिन कुमंत्रु।। + +मोहि लगि यहु कुठाटु तेहिं ठाटा। घालेसि सब जगु बारहबाटा।। + +मिटइ कुजोगु राम फिरि आएँ। बसइ अवध नहिं आन उपाएँ।। + +भरत बचन सुनि मुनि सुखु पाई। सबहिं कीन्ह बहु भाँति बड़ाई।। + +तात करहु जनि सोचु बिसेषी। सब दुखु मिटहि राम पग देखी।।करि प्रबोध मुनिबर कहेउ अतिथि पेमप्रिय होहु। + +कंद मूल फल फूल हम देहिं लेहु करि छोहु।।212।।सुनि मुनि बचन भरत हिंय सोचू। भयउ कुअवसर कठिन सँकोचू।। + +जानि गरुइ गुर गिरा बहोरी। चरन बंदि बोले कर जोरी।। + +सिर धरि आयसु करिअ तुम्हारा। परम धरम यहु नाथ हमारा।। + +भरत बचन मुनिबर मन भाए। सुचि सेवक सिष निकट बोलाए।। + +चाहिए कीन्ह भरत पहुनाई। कंद मूल फल आनहु जाई।। + +भलेहीं नाथ कहि तिन्ह सिर नाए। प्रमुदित निज निज काज सिधाए।। + +मुनिहि सोच पाहुन बड़ नेवता। तसि पूजा चाहिअ जस देवता।। + +सुनि रिधि सिधि अनिमादिक आई। आयसु होइ सो करहिं गोसाई।।राम बिरह ब्याकुल भरतु सानुज सहित समाज। + +पहुनाई करि हरहु श्रम कहा मुदित मुनिराज।।213।।रिधि सिधि सिर धरि मुनिबर बानी। बड़भागिनि आपुहि अनुमानी।। + +कहहिं परसपर सिधि समुदाई। अतुलित अतिथि राम लघु भाई।। + +मुनि पद बंदि करिअ सोइ आजू। होइ सुखी सब राज समाजू।। + +अस कहि रचेउ रुचिर गृह नाना। जेह��� बिलोकि बिलखाहिं बिमाना।। + +भोग बिभूति भूरि भरि राखे। देखत जिन्हहि अमर अभिलाषे।। + +दासीं दास साजु सब लीन्हें। जोगवत रहहिं मनहि मनु दीन्हें।। + +सब समाजु सजि सिधि पल माहीं। जे सुख सुरपुर सपनेहुँ नाहीं।। + +प्रथमहिं बास दिए सब केही। सुंदर सुखद जथा रुचि जेही।।बहुरि सपरिजन भरत कहुँ रिषि अस आयसु दीन्ह। + +बिधि बिसमय दायकु बिभव मुनिबर तपबल कीन्ह।।214।।मुनि प्रभाउ जब भरत बिलोका। सब लघु लगे लोकपति लोका।। + +सुख समाजु नहिं जाइ बखानी। देखत बिरति बिसारहीं ग्यानी।। + +आसन सयन सुबसन बिताना। बन बाटिका बिहग मृग नाना।। + +सुरभि फूल फल अमिअ समाना। बिमल जलासय बिबिध बिधाना। + +असन पान सुच अमिअ अमी से। देखि लोग सकुचात जमी से।। + +सुर सुरभी सुरतरु सबही कें। लखि अभिलाषु सुरेस सची कें।। + +रितु बसंत बह त्रिबिध बयारी। सब कहँ सुलभ पदारथ चारी।। + +स्त्रक चंदन बनितादिक भोगा। देखि हरष बिसमय बस लोगा।।संपत चकई भरतु चक मुनि आयस खेलवार।। + +तेहि निसि आश्रम पिंजराँ राखे भा भिनुसार।।215।।कीन्ह निमज्जनु तीरथराजा। नाइ मुनिहि सिरु सहित समाजा।। + +रिषि आयसु असीस सिर राखी। करि दंडवत बिनय बहु भाषी।। + +पथ गति कुसल साथ सब लीन्हे। चले चित्रकूटहिं चितु दीन्हें।। + +रामसखा कर दीन्हें लागू। चलत देह धरि जनु अनुरागू।। + +नहिं पद त्रान सीस नहिं छाया। पेमु नेमु ब्रतु धरमु अमाया।। + +लखन राम सिय पंथ कहानी। पूँछत सखहि कहत मृदु बानी।। + +राम बास थल बिटप बिलोकें। उर अनुराग रहत नहिं रोकैं।। + +दैखि दसा सुर बरिसहिं फूला। भइ मृदु महि मगु मंगल मूला।।किएँ जाहिं छाया जलद सुखद बहइ बर बात। + +तस मगु भयउ न राम कहँ जस भा भरतहि जात।।216।।जड़ चेतन मग जीव घनेरे। जे चितए प्रभु जिन्ह प्रभु हेरे।। + +ते सब भए परम पद जोगू। भरत दरस मेटा भव रोगू।। + +यह बड़ि बात भरत कइ नाहीं। सुमिरत जिनहि रामु मन माहीं।। + +बारक राम कहत जग जेऊ। होत तरन तारन नर तेऊ।। + +भरतु राम प्रिय पुनि लघु भ्राता। कस न होइ मगु मंगलदाता।। + +सिद्ध साधु मुनिबर अस कहहीं। भरतहि निरखि हरषु हियँ लहहीं।। + +देखि प्रभाउ सुरेसहि सोचू। जगु भल भलेहि पोच कहुँ पोचू।। + +गुर सन कहेउ करिअ प्रभु सोई। रामहि भरतहि भेंट न होई।।रामु सँकोची प्रेम बस भरत सपेम पयोधि। + +बनी बात बेगरन चहति करिअ जतनु छलु सोधि।।217।।बचन सुनत सुरगुरु मुसकाने। सहसनयन बिनु लोचन जाने।। + +मायापति सेवक सन माया। करइ त उलटि परइ सुरराया।। + +तब किछु कीन्ह राम रुख जानी। अब कुचालि करि होइहि हानी।। + +सुनु सुरेस रघुनाथ सुभाऊ। निज अपराध रिसाहिं न काऊ।। + +जो अपराधु भगत कर करई। राम रोष पावक सो जरई।। + +लोकहुँ बेद बिदित इतिहासा। यह महिमा जानहिं दुरबासा।। + +भरत सरिस को राम सनेही। जगु जप राम रामु जप जेही।।मनहुँ न आनिअ अमरपति रघुबर भगत अकाजु। + +अजसु लोक परलोक दुख दिन दिन सोक समाजु।।218।।सुनु सुरेस उपदेसु हमारा। रामहि सेवकु परम पिआरा।। + +मानत सुखु सेवक सेवकाई। सेवक बैर बैरु अधिकाई।। + +जद्यपि सम नहिं राग न रोषू। गहहिं न पाप पूनु गुन दोषू।। + +करम प्रधान बिस्व करि राखा। जो जस करइ सो तस फलु चाखा।। + +तदपि करहिं सम बिषम बिहारा। भगत अभगत हृदय अनुसारा।। + +अगुन अलेप अमान एकरस। रामु सगुन भए भगत पेम बस।। + +राम सदा सेवक रुचि राखी। बेद पुरान साधु सुर साखी।। + +अस जियँ जानि तजहु कुटिलाई। करहु भरत पद प्रीति सुहाई।।राम भगत परहित निरत पर दुख दुखी दयाल। + +भगत सिरोमनि भरत तें जनि डरपहु सुरपाल।।219।।सत्यसंध प्रभु सुर हितकारी। भरत राम आयस अनुसारी।। + +स्वारथ बिबस बिकल तुम्ह होहू। भरत दोसु नहिं राउर मोहू।। + +सुनि सुरबर सुरगुर बर बानी। भा प्रमोदु मन मिटी गलानी।। + +बरषि प्रसून हरषि सुरराऊ। लगे सराहन भरत सुभाऊ।। + +एहि बिधि भरत चले मग जाहीं। दसा देखि मुनि सिद्ध सिहाहीं।। + +जबहिं रामु कहि लेहिं उसासा। उमगत पेमु मनहँ चहु पासा।। + +द्रवहिं बचन सुनि कुलिस पषाना। पुरजन पेमु न जाइ बखाना।। + +बीच बास करि जमुनहिं आए। निरखि नीरु लोचन जल छाए।।रघुबर बरन बिलोकि बर बारि समेत समाज। + +होत मगन बारिधि बिरह चढ़े बिबेक जहाज।।220।।जमुन तीर तेहि दिन करि बासू। भयउ समय सम सबहि सुपासू।। + +रातहिं घाट घाट की तरनी। आईं अगनित जाहिं न बरनी।। + +प्रात पार भए एकहि खेंवाँ। तोषे रामसखा की सेवाँ।। + +चले नहाइ नदिहि सिर नाई। साथ निषादनाथ दोउ भाई।। + +आगें मुनिबर बाहन आछें। राजसमाज जाइ सबु पाछें।। + +तेहिं पाछें दोउ बंधु पयादें। भूषन बसन बेष सुठि सादें।। + +सेवक सुह्रद सचिवसुत साथा। सुमिरत लखनु सीय रघुनाथा।। + +जहँ जहँ राम बास बिश्रामा। तहँ तहँ करहिं सप्रेम प्रनामा।।मगबासी नर नारि सुनि धाम काम तजि धाइ। + +देखि सरूप सनेह सब मुदित जनम फलु पाइ।।221।।कहहिं सपेम एक एक पाहीं। रामु लखनु सखि होहिं कि नाहीं।। + +बय ब��ु बरन रूप सोइ आली। सीलु सनेहु सरिस सम चाली।। + +बेषु न सो सखि सीय न संगा। आगें अनी चली चतुरंगा।। + +नहिं प्रसन्न मुख मानस खेदा। सखि संदेहु होइ एहिं भेदा।। + +तासु तरक तियगन मन मानी। कहहिं सकल तेहि सम न सयानी।। + +तेहि सराहि बानी फुरि पूजी। बोली मधुर बचन तिय दूजी।। + +कहि सपेम सब कथाप्रसंगू। जेहि बिधि राम राज रस भंगू।। + +भरतहि बहुरि सराहन लागी। सील सनेह सुभाय सुभागी।।चलत पयादें खात फल पिता दीन्ह तजि राजु। + +जात मनावन रघुबरहि भरत सरिस को आजु।।222।।भायप भगति भरत आचरनू। कहत सुनत दुख दूषन हरनू।। + +जो कछु कहब थोर सखि सोई। राम बंधु अस काहे न होई।। + +हम सब सानुज भरतहि देखें। भइन्ह धन्य जुबती जन लेखें।। + +सुनि गुन देखि दसा पछिताहीं। कैकइ जननि जोगु सुतु नाहीं।। + +कोउ कह दूषनु रानिहि नाहिन। बिधि सबु कीन्ह हमहि जो दाहिन।। + +कहँ हम लोक बेद बिधि हीनी। लघु तिय कुल करतूति मलीनी।। + +बसहिं कुदेस कुगाँव कुबामा। कहँ यह दरसु पुन्य परिनामा।। + +अस अनंदु अचिरिजु प्रति ग्रामा। जनु मरुभूमि कलपतरु जामा।।भरत दरसु देखत खुलेउ मग लोगन्ह कर भागु। + +जनु सिंघलबासिन्ह भयउ बिधि बस सुलभ प्रयागु।।223।।निज गुन सहित राम गुन गाथा। सुनत जाहिं सुमिरत रघुनाथा।। + +तीरथ मुनि आश्रम सुरधामा। निरखि निमज्जहिं करहिं प्रनामा।। + +मनहीं मन मागहिं बरु एहू। सीय राम पद पदुम सनेहू।। + +मिलहिं किरात कोल बनबासी। बैखानस बटु जती उदासी।। + +करि प्रनामु पूँछहिं जेहिं तेही। केहि बन लखनु रामु बैदेही।। + +ते प्रभु समाचार सब कहहीं। भरतहि देखि जनम फलु लहहीं।। + +जे जन कहहिं कुसल हम देखे। ते प्रिय राम लखन सम लेखे।। + +एहि बिधि बूझत सबहि सुबानी। सुनत राम बनबास कहानी।।तेहि बासर बसि प्रातहीं चले सुमिरि रघुनाथ। + +राम दरस की लालसा भरत सरिस सब साथ।।224।।मंगल सगुन होहिं सब काहू। फरकहिं सुखद बिलोचन बाहू।। + +भरतहि सहित समाज उछाहू। मिलिहहिं रामु मिटहि दुख दाहू।। + +करत मनोरथ जस जियँ जाके। जाहिं सनेह सुराँ सब छाके।। + +सिथिल अंग पग मग डगि डोलहिं। बिहबल बचन पेम बस बोलहिं।। + +रामसखाँ तेहि समय देखावा। सैल सिरोमनि सहज सुहावा।। + +जासु समीप सरित पय तीरा। सीय समेत बसहिं दोउ बीरा।। + +देखि करहिं सब दंड प्रनामा। कहि जय जानकि जीवन रामा।। + +प्रेम मगन अस राज समाजू। जनु फिरि अवध चले रघुराजू।।भरत प्रेमु तेहि समय जस तस कहि सकइ न सेषु। + +कबिहिं अगम जिमि ब्रह्मसुखु अह मम मलिन जनेषु।।225।सकल सनेह सिथिल रघुबर कें। गए कोस दुइ दिनकर ढरकें।। + +जलु थलु देखि बसे निसि बीतें। कीन्ह गवन रघुनाथ पिरीतें।। + +उहाँ रामु रजनी अवसेषा। जागे सीयँ सपन अस देखा।। + +सहित समाज भरत जनु आए। नाथ बियोग ताप तन ताए।। + +सकल मलिन मन दीन दुखारी। देखीं सासु आन अनुहारी।। + +सुनि सिय सपन भरे जल लोचन। भए सोचबस सोच बिमोचन।। + +लखन सपन यह नीक न होई। कठिन कुचाह सुनाइहि कोई।। + +अस कहि बंधु समेत नहाने। पूजि पुरारि साधु सनमाने।।सनमानि सुर मुनि बंदि बैठे उत्तर दिसि देखत भए। + +नभ धूरि खग मृग भूरि भागे बिकल प्रभु आश्रम गए।। + +तुलसी उठे अवलोकि कारनु काह चित सचकित रहे। + +सब समाचार किरात कोलन्हि आइ तेहि अवसर कहे।।सुनत सुमंगल बैन मन प्रमोद तन पुलक भर। + +सरद सरोरुह नैन तुलसी भरे सनेह जल।।226।।बहुरि सोचबस भे सियरवनू। कारन कवन भरत आगवनू।। + +एक आइ अस कहा बहोरी। सेन संग चतुरंग न थोरी।। + +सो सुनि रामहि भा अति सोचू। इत पितु बच इत बंधु सकोचू।। + +भरत सुभाउ समुझि मन माहीं। प्रभु चित हित थिति पावत नाही।। + +समाधान तब भा यह जाने। भरतु कहे महुँ साधु सयाने।। + +लखन लखेउ प्रभु हृदयँ खभारू। कहत समय सम नीति बिचारू।। + +बिनु पूँछ कछु कहउँ गोसाईं। सेवकु समयँ न ढीठ ढिठाई।। + +तुम्ह सर्बग्य सिरोमनि स्वामी। आपनि समुझि कहउँ अनुगामी।।नाथ सुह्रद सुठि सरल चित सील सनेह निधान।। + +सब पर प्रीति प्रतीति जियँ जानिअ आपु समान।।227।।बिषई जीव पाइ प्रभुताई। मूढ़ मोह बस होहिं जनाई।। + +भरतु नीति रत साधु सुजाना। प्रभु पद प्रेम सकल जगु जाना।। + +तेऊ आजु राम पदु पाई। चले धरम मरजाद मेटाई।। + +कुटिल कुबंध कुअवसरु ताकी। जानि राम बनवास एकाकी।। + +करि कुमंत्रु मन साजि समाजू। आए करै अकंटक राजू।। + +कोटि प्रकार कलपि कुटलाई। आए दल बटोरि दोउ भाई।। + +जौं जियँ होति न कपट कुचाली। केहि सोहाति रथ बाजि गजाली।। + +भरतहि दोसु देइ को जाएँ। जग बौराइ राज पदु पाएँ।।ससि गुर तिय गामी नघुषु चढ़ेउ भूमिसुर जान। + +लोक बेद तें बिमुख भा अधम न बेन समान।।228।।सहसबाहु सुरनाथु त्रिसंकू। केहि न राजमद दीन्ह कलंकू।। + +भरत कीन्ह यह उचित उपाऊ। रिपु रिन रंच न राखब काऊ।। + +एक कीन्हि नहिं भरत भलाई। निदरे रामु जानि असहाई।। + +समुझि परिहि सोउ आजु बिसेषी। समर सरोष राम मुखु पेखी।। + +एतना कहत नीति रस भूला। रन रस बिटपु पुलक मिस फूला।। + +प्रभु पद बंदि सीस रज राखी। बोले सत्य सहज बलु भाषी।। + +अनुचित नाथ न मानब मोरा। भरत हमहि उपचार न थोरा।। + +कहँ लगि सहिअ रहिअ मनु मारें। नाथ साथ धनु हाथ हमारें।।छत्रि जाति रघुकुल जनमु राम अनुग जगु जान। + +लातहुँ मारें चढ़ति सिर नीच को धूरि समान।।229।।उठि कर जोरि रजायसु मागा। मनहुँ बीर रस सोवत जागा।। + +बाँधि जटा सिर कसि कटि भाथा। साजि सरासनु सायकु हाथा।। + +आजु राम सेवक जसु लेऊँ। भरतहि समर सिखावन देऊँ।। + +राम निरादर कर फलु पाई। सोवहुँ समर सेज दोउ भाई।। + +आइ बना भल सकल समाजू। प्रगट करउँ रिस पाछिल आजू।। + +जिमि करि निकर दलइ मृगराजू। लेइ लपेटि लवा जिमि बाजू।। + +तैसेहिं भरतहि सेन समेता। सानुज निदरि निपातउँ खेता।। + +जौं सहाय कर संकरु आई। तौ मारउँ रन राम दोहाई।।अति सरोष माखे लखनु लखि सुनि सपथ प्रवान। + +सभय लोक सब लोकपति चाहत भभरि भगान।।230।।जगु भय मगन गगन भइ बानी। लखन बाहुबलु बिपुल बखानी।। + +तात प्रताप प्रभाउ तुम्हारा। को कहि सकइ को जाननिहारा।। + +अनुचित उचित काजु किछु होऊ। समुझि करिअ भल कह सबु कोऊ।। + +सहसा करि पाछैं पछिताहीं। कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं।। + +सुनि सुर बचन लखन सकुचाने। राम सीयँ सादर सनमाने।। + +कही तात तुम्ह नीति सुहाई। सब तें कठिन राजमदु भाई।। + +जो अचवँत नृप मातहिं तेई। नाहिन साधुसभा जेहिं सेई।। + +सुनहु लखन भल भरत सरीसा। बिधि प्रपंच महँ सुना न दीसा।।भरतहि होइ न राजमदु बिधि हरि हर पद पाइ।। + +कबहुँ कि काँजी सीकरनि छीरसिंधु बिनसाइ।।231।।तिमिरु तरुन तरनिहि मकु गिलई। गगनु मगन मकु मेघहिं मिलई।। + +गोपद जल बूड़हिं घटजोनी। सहज छमा बरु छाड़ै छोनी।। + +मसक फूँक मकु मेरु उड़ाई। होइ न नृपमदु भरतहि भाई।। + +लखन तुम्हार सपथ पितु आना। सुचि सुबंधु नहिं भरत समाना।। + +सगुन खीरु अवगुन जलु ताता। मिलइ रचइ परपंचु बिधाता।। + +भरतु हंस रबिबंस तड़ागा। जनमि कीन्ह गुन दोष बिभागा।। + +गहि गुन पय तजि अवगुन बारी। निज जस जगत कीन्हि उजिआरी।। + +कहत भरत गुन सीलु सुभाऊ। पेम पयोधि मगन रघुराऊ।।सुनि रघुबर बानी बिबुध देखि भरत पर हेतु। + +सकल सराहत राम सो प्रभु को कृपानिकेतु।।232।।जौं न होत जग जनम भरत को। सकल धरम धुर धरनि धरत को।। + +कबि कुल अगम भरत गुन गाथा। को जानइ तुम्ह बिनु रघुनाथा।। + +लखन राम सियँ सुनि सुर बानी। अति सुखु लहेउ न जाइ बखानी।। + +��हाँ भरतु सब सहित सहाए। मंदाकिनीं पुनीत नहाए।। + +सरित समीप राखि सब लोगा। मागि मातु गुर सचिव नियोगा।। + +चले भरतु जहँ सिय रघुराई। साथ निषादनाथु लघु भाई।। + +समुझि मातु करतब सकुचाहीं। करत कुतरक कोटि मन माहीं।। + +रामु लखनु सिय सुनि मम नाऊँ। उठि जनि अनत जाहिं तजि ठाऊँ।।मातु मते महुँ मानि मोहि जो कछु करहिं सो थोर। + +अघ अवगुन छमि आदरहिं समुझि आपनी ओर।।233।।जौं परिहरहिं मलिन मनु जानी। जौ सनमानहिं सेवकु मानी।। + +मोरें सरन रामहि की पनही। राम सुस्वामि दोसु सब जनही।। + +जग जस भाजन चातक मीना। नेम पेम निज निपुन नबीना।। + +अस मन गुनत चले मग जाता। सकुच सनेहँ सिथिल सब गाता।। + +फेरत मनहुँ मातु कृत खोरी। चलत भगति बल धीरज धोरी।। + +जब समुझत रघुनाथ सुभाऊ। तब पथ परत उताइल पाऊ।। + +भरत दसा तेहि अवसर कैसी। जल प्रबाहँ जल अलि गति जैसी।। + +देखि भरत कर सोचु सनेहू। भा निषाद तेहि समयँ बिदेहू।।लगे होन मंगल सगुन सुनि गुनि कहत निषादु। + +मिटिहि सोचु होइहि हरषु पुनि परिनाम बिषादु।।234।।सेवक बचन सत्य सब जाने। आश्रम निकट जाइ निअराने।। + +भरत दीख बन सैल समाजू। मुदित छुधित जनु पाइ सुनाजू।। + +ईति भीति जनु प्रजा दुखारी। त्रिबिध ताप पीड़ित ग्रह मारी।। + +जाइ सुराज सुदेस सुखारी। होहिं भरत गति तेहि अनुहारी।। + +राम बास बन संपति भ्राजा। सुखी प्रजा जनु पाइ सुराजा।। + +सचिव बिरागु बिबेकु नरेसू। बिपिन सुहावन पावन देसू।। + +भट जम नियम सैल रजधानी। सांति सुमति सुचि सुंदर रानी।। + +सकल अंग संपन्न सुराऊ। राम चरन आश्रित चित चाऊ।।जीति मोह महिपालु दल सहित बिबेक भुआलु। + +करत अकंटक राजु पुरँ सुख संपदा सुकालु।।235।।बन प्रदेस मुनि बास घनेरे। जनु पुर नगर गाउँ गन खेरे।। + +बिपुल बिचित्र बिहग मृग नाना। प्रजा समाजु न जाइ बखाना।। + +खगहा करि हरि बाघ बराहा। देखि महिष बृष साजु सराहा।। + +बयरु बिहाइ चरहिं एक संगा। जहँ तहँ मनहुँ सेन चतुरंगा।। + +झरना झरहिं मत्त गज गाजहिं। मनहुँ निसान बिबिधि बिधि बाजहिं।। + +चक चकोर चातक सुक पिक गन। कूजत मंजु मराल मुदित मन।। + +अलिगन गावत नाचत मोरा। जनु सुराज मंगल चहु ओरा।। + +बेलि बिटप तृन सफल सफूला। सब समाजु मुद मंगल मूला।।राम सैल सोभा निरखि भरत हृदयँ अति पेमु। + +तापस तप फलु पाइ जिमि सुखी सिरानें नेमु।।236।।तब केवट ऊँचें चढ़ि धाई। कहेउ भरत सन भुजा उठाई।। + +नाथ देखिअहिं बिटप बि���ाला। पाकरि जंबु रसाल तमाला।। + +जिन्ह तरुबरन्ह मध्य बटु सोहा। मंजु बिसाल देखि मनु मोहा।। + +नील सघन पल्ल्व फल लाला। अबिरल छाहँ सुखद सब काला।। + +मानहुँ तिमिर अरुनमय रासी। बिरची बिधि सँकेलि सुषमा सी।। + +ए तरु सरित समीप गोसाँई। रघुबर परनकुटी जहँ छाई।। + +तुलसी तरुबर बिबिध सुहाए। कहुँ कहुँ सियँ कहुँ लखन लगाए।। + +बट छायाँ बेदिका बनाई। सियँ निज पानि सरोज सुहाई।।जहाँ बैठि मुनिगन सहित नित सिय रामु सुजान। + +सुनहिं कथा इतिहास सब आगम निगम पुरान।।237।।सखा बचन सुनि बिटप निहारी। उमगे भरत बिलोचन बारी।। + +करत प्रनाम चले दोउ भाई। कहत प्रीति सारद सकुचाई।। + +हरषहिं निरखि राम पद अंका। मानहुँ पारसु पायउ रंका।। + +रज सिर धरि हियँ नयनन्हि लावहिं। रघुबर मिलन सरिस सुख पावहिं।। + +देखि भरत गति अकथ अतीवा। प्रेम मगन मृग खग जड़ जीवा।। + +सखहि सनेह बिबस मग भूला। कहि सुपंथ सुर बरषहिं फूला।। + +निरखि सिद्ध साधक अनुरागे। सहज सनेहु सराहन लागे।। + +होत न भूतल भाउ भरत को। अचर सचर चर अचर करत को।।पेम अमिअ मंदरु बिरहु भरतु पयोधि गँभीर। + +मथि प्रगटेउ सुर साधु हित कृपासिंधु रघुबीर।।238।।सखा समेत मनोहर जोटा। लखेउ न लखन सघन बन ओटा।। + +भरत दीख प्रभु आश्रमु पावन। सकल सुमंगल सदनु सुहावन।। + +करत प्रबेस मिटे दुख दावा। जनु जोगीं परमारथु पावा।। + +देखे भरत लखन प्रभु आगे। पूँछे बचन कहत अनुरागे।। + +सीस जटा कटि मुनि पट बाँधें। तून कसें कर सरु धनु काँधें।। + +बेदी पर मुनि साधु समाजू। सीय सहित राजत रघुराजू।। + +बलकल बसन जटिल तनु स्यामा। जनु मुनि बेष कीन्ह रति कामा।। + +कर कमलनि धनु सायकु फेरत। जिय की जरनि हरत हँसि हेरत।।लसत मंजु मुनि मंडली मध्य सीय रघुचंदु। + +ग्यान सभाँ जनु तनु धरे भगति सच्चिदानंदु।।239।।सानुज सखा समेत मगन मन। बिसरे हरष सोक सुख दुख गन।। + +पाहि नाथ कहि पाहि गोसाई। भूतल परे लकुट की नाई।। + +बचन सपेम लखन पहिचाने। करत प्रनामु भरत जियँ जाने।। + +बंधु सनेह सरस एहि ओरा। उत साहिब सेवा बस जोरा।। + +मिलि न जाइ नहिं गुदरत बनई। सुकबि लखन मन की गति भनई।। + +रहे राखि सेवा पर भारू। चढ़ी चंग जनु खैंच खेलारू।। + +कहत सप्रेम नाइ महि माथा। भरत प्रनाम करत रघुनाथा।। + +उठे रामु सुनि पेम अधीरा। कहुँ पट कहुँ निषंग धनु तीरा।।बरबस लिए उठाइ उर लाए कृपानिधान। + +भरत राम की मिलनि लखि बिसरे सबहि अपान।।240।।मिलनि प्रीति किमि जाइ बखानी। कबिकुल अगम करम मन बानी।। + +परम पेम पूरन दोउ भाई। मन बुधि चित अहमिति बिसराई।। + +कहहु सुपेम प्रगट को करई। केहि छाया कबि मति अनुसरई।। + +कबिहि अरथ आखर बलु साँचा। अनुहरि ताल गतिहि नटु नाचा।। + +अगम सनेह भरत रघुबर को। जहँ न जाइ मनु बिधि हरि हर को।। + +सो मैं कुमति कहौं केहि भाँती। बाज सुराग कि गाँडर ताँती।। + +मिलनि बिलोकि भरत रघुबर की। सुरगन सभय धकधकी धरकी।। + +समुझाए सुरगुरु जड़ जागे। बरषि प्रसून प्रसंसन लागे।।मिलि सपेम रिपुसूदनहि केवटु भेंटेउ राम। + +भूरि भायँ भेंटे भरत लछिमन करत प्रनाम।।241।।भेंटेउ लखन ललकि लघु भाई। बहुरि निषादु लीन्ह उर लाई।। + +पुनि मुनिगन दुहुँ भाइन्ह बंदे। अभिमत आसिष पाइ अनंदे।। + +सानुज भरत उमगि अनुरागा। धरि सिर सिय पद पदुम परागा।। + +पुनि पुनि करत प्रनाम उठाए। सिर कर कमल परसि बैठाए।। + +सीयँ असीस दीन्हि मन माहीं। मगन सनेहँ देह सुधि नाहीं।। + +सब बिधि सानुकूल लखि सीता। भे निसोच उर अपडर बीता।। + +कोउ किछु कहइ न कोउ किछु पूँछा। प्रेम भरा मन निज गति छूँछा।। + +तेहि अवसर केवटु धीरजु धरि। जोरि पानि बिनवत प्रनामु करि।।नाथ साथ मुनिनाथ के मातु सकल पुर लोग। + +सेवक सेनप सचिव सब आए बिकल बियोग।।242।।सीलसिंधु सुनि गुर आगवनू। सिय समीप राखे रिपुदवनू।। + +चले सबेग रामु तेहि काला। धीर धरम धुर दीनदयाला।। + +गुरहि देखि सानुज अनुरागे। दंड प्रनाम करन प्रभु लागे।। + +मुनिबर धाइ लिए उर लाई। प्रेम उमगि भेंटे दोउ भाई।। + +प्रेम पुलकि केवट कहि नामू। कीन्ह दूरि तें दंड प्रनामू।। + +रामसखा रिषि बरबस भेंटा। जनु महि लुठत सनेह समेटा।। + +रघुपति भगति सुमंगल मूला। नभ सराहि सुर बरिसहिं फूला।। + +एहि सम निपट नीच कोउ नाहीं। बड़ बसिष्ठ सम को जग माहीं।।जेहि लखि लखनहु तें अधिक मिले मुदित मुनिराउ। + +सो सीतापति भजन को प्रगट प्रताप प्रभाउ।।243।।आरत लोग राम सबु जाना। करुनाकर सुजान भगवाना।। + +जो जेहि भायँ रहा अभिलाषी। तेहि तेहि कै तसि तसि रुख राखी।। + +सानुज मिलि पल महु सब काहू। कीन्ह दूरि दुखु दारुन दाहू।। + +यह बड़ि बातँ राम कै नाहीं। जिमि घट कोटि एक रबि छाहीं।। + +मिलि केवटिहि उमगि अनुरागा। पुरजन सकल सराहहिं भागा।। + +देखीं राम दुखित महतारीं। जनु सुबेलि अवलीं हिम मारीं।। + +प्रथम राम भेंटी कैकेई। सरल सुभायँ भगति मति भेई।। + +पग परि कीन्ह प्रबोधु बहोरी। काल करम बिधि सिर धरि खोरी।।भेटीं रघुबर मातु सब करि प्रबोधु परितोषु।। + +अंब ईस आधीन जगु काहु न देइअ दोषु।।244।।गुरतिय पद बंदे दुहु भाई। सहित बिप्रतिय जे सँग आई।। + +गंग गौरि सम सब सनमानीं।।देहिं असीस मुदित मृदु बानी।। + +गहि पद लगे सुमित्रा अंका। जनु भेटीं संपति अति रंका।। + +पुनि जननि चरननि दोउ भ्राता। परे पेम ब्याकुल सब गाता।। + +अति अनुराग अंब उर लाए। नयन सनेह सलिल अन्हवाए।। + +तेहि अवसर कर हरष बिषादू। किमि कबि कहै मूक जिमि स्वादू।। + +मिलि जननहि सानुज रघुराऊ। गुर सन कहेउ कि धारिअ पाऊ।। + +पुरजन पाइ मुनीस नियोगू। जल थल तकि तकि उतरेउ लोगू।।महिसुर मंत्री मातु गुर गने लोग लिए साथ।। + +पावन आश्रम गवनु किय भरत लखन रघुनाथ।।245।।सीय आइ मुनिबर पग लागी। उचित असीस लही मन मागी।। + +गुरपतिनिहि मुनितियन्ह समेता। मिली पेमु कहि जाइ न जेता।। + +बंदि बंदि पग सिय सबही के। आसिरबचन लहे प्रिय जी के।। + +सासु सकल जब सीयँ निहारीं। मूदे नयन सहमि सुकुमारीं।। + +परीं बधिक बस मनहुँ मरालीं। काह कीन्ह करतार कुचालीं।। + +तिन्ह सिय निरखि निपट दुखु पावा। सो सबु सहिअ जो दैउ सहावा।। + +जनकसुता तब उर धरि धीरा। नील नलिन लोयन भरि नीरा।। + +मिली सकल सासुन्ह सिय जाई। तेहि अवसर करुना महि छाई।।लागि लागि पग सबनि सिय भेंटति अति अनुराग।। + +हृदयँ असीसहिं पेम बस रहिअहु भरी सोहाग।।246।।बिकल सनेहँ सीय सब रानीं। बैठन सबहि कहेउ गुर ग्यानीं।। + +कहि जग गति मायिक मुनिनाथा। कहे कछुक परमारथ गाथा।। + +नृप कर सुरपुर गवनु सुनावा। सुनि रघुनाथ दुसह दुखु पावा।। + +मरन हेतु निज नेहु बिचारी। भे अति बिकल धीर धुर धारी।। + +कुलिस कठोर सुनत कटु बानी। बिलपत लखन सीय सब रानी।। + +सोक बिकल अति सकल समाजू। मानहुँ राजु अकाजेउ आजू।। + +मुनिबर बहुरि राम समुझाए। सहित समाज सुसरित नहाए।। + +ब्रतु निरंबु तेहि दिन प्रभु कीन्हा। मुनिहु कहें जलु काहुँ न लीन्हा।।भोरु भएँ रघुनंदनहि जो मुनि आयसु दीन्ह।। + +श्रद्धा भगति समेत प्रभु सो सबु सादरु कीन्ह।।247।।करि पितु क्रिया बेद जसि बरनी। भे पुनीत पातक तम तरनी।। + +जासु नाम पावक अघ तूला। सुमिरत सकल सुमंगल मूला।। + +सुद्ध सो भयउ साधु संमत अस। तीरथ आवाहन सुरसरि जस।। + +सुद्ध भएँ दुइ बासर बीते। बोले गुर सन राम पिरीते।। + +नाथ लोग सब निपट दुखारी। कंद मूल फल अंबु अहारी।। + +सानुज ���रतु सचिव सब माता। देखि मोहि पल जिमि जुग जाता।। + +सब समेत पुर धारिअ पाऊ। आपु इहाँ अमरावति राऊ।। + +बहुत कहेउँ सब कियउँ ढिठाई। उचित होइ तस करिअ गोसाँई।।धर्म सेतु करुनायतन कस न कहहु अस राम। + +लोग दुखित दिन दुइ दरस देखि लहहुँ बिश्राम।।248।।राम बचन सुनि सभय समाजू। जनु जलनिधि महुँ बिकल जहाजू।। + +सुनि गुर गिरा सुमंगल मूला। भयउ मनहुँ मारुत अनुकुला।। + +पावन पयँ तिहुँ काल नहाहीं। जो बिलोकि अंघ ओघ नसाहीं।। + +मंगलमूरति लोचन भरि भरि। निरखहिं हरषि दंडवत करि करि।। + +राम सैल बन देखन जाहीं। जहँ सुख सकल सकल दुख नाहीं।। + +झरना झरिहिं सुधासम बारी। त्रिबिध तापहर त्रिबिध बयारी।। + +बिटप बेलि तृन अगनित जाती। फल प्रसून पल्लव बहु भाँती।। + +सुंदर सिला सुखद तरु छाहीं। जाइ बरनि बन छबि केहि पाहीं।।सरनि सरोरुह जल बिहग कूजत गुंजत भृंग। + +बैर बिगत बिहरत बिपिन मृग बिहंग बहुरंग।।249।।कोल किरात भिल्ल बनबासी। मधु सुचि सुंदर स्वादु सुधा सी।। + +भरि भरि परन पुटीं रचि रुरी। कंद मूल फल अंकुर जूरी।। + +सबहि देहिं करि बिनय प्रनामा। कहि कहि स्वाद भेद गुन नामा।। + +देहिं लोग बहु मोल न लेहीं। फेरत राम दोहाई देहीं।। + +कहहिं सनेह मगन मृदु बानी। मानत साधु पेम पहिचानी।। + +तुम्ह सुकृती हम नीच निषादा। पावा दरसनु राम प्रसादा।। + +हमहि अगम अति दरसु तुम्हारा। जस मरु धरनि देवधुनि धारा।। + +राम कृपाल निषाद नेवाजा। परिजन प्रजउ चहिअ जस राजा।।यह जिंयँ जानि सँकोचु तजि करिअ छोहु लखि नेहु। + +हमहि कृतारथ करन लगि फल तृन अंकुर लेहु।।250।।तुम्ह प्रिय पाहुने बन पगु धारे। सेवा जोगु न भाग हमारे।। + +देब काह हम तुम्हहि गोसाँई। ईधनु पात किरात मिताई।। + +यह हमारि अति बड़ि सेवकाई। लेहि न बासन बसन चोराई।। + +हम जड़ जीव जीव गन घाती। कुटिल कुचाली कुमति कुजाती।। + +पाप करत निसि बासर जाहीं। नहिं पट कटि नहि पेट अघाहीं।। + +सपोनेहुँ धरम बुद्धि कस काऊ। यह रघुनंदन दरस प्रभाऊ।। + +जब तें प्रभु पद पदुम निहारे। मिटे दुसह दुख दोष हमारे।। + +बचन सुनत पुरजन अनुरागे। तिन्ह के भाग सराहन लागे।।लागे सराहन भाग सब अनुराग बचन सुनावहीं। + +बोलनि मिलनि सिय राम चरन सनेहु लखि सुखु पावहीं।। + +नर नारि निदरहिं नेहु निज सुनि कोल भिल्लनि की गिरा। + +तुलसी कृपा रघुबंसमनि की लोह लै लौका तिरा।।बिहरहिं बन चहु ओर प्रतिदिन प्रमुदित लोग सब। + +ज��� ज्यों दादुर मोर भए पीन पावस प्रथम।।251।।पुर जन नारि मगन अति प्रीती। बासर जाहिं पलक सम बीती।। + +सीय सासु प्रति बेष बनाई। सादर करइ सरिस सेवकाई।। + +लखा न मरमु राम बिनु काहूँ। माया सब सिय माया माहूँ।। + +सीयँ सासु सेवा बस कीन्हीं। तिन्ह लहि सुख सिख आसिष दीन्हीं।। + +लखि सिय सहित सरल दोउ भाई। कुटिल रानि पछितानि अघाई।। + +अवनि जमहि जाचति कैकेई। महि न बीचु बिधि मीचु न देई।। + +लोकहुँ बेद बिदित कबि कहहीं। राम बिमुख थलु नरक न लहहीं।। + +यहु संसउ सब के मन माहीं। राम गवनु बिधि अवध कि नाहीं।।निसि न नीद नहिं भूख दिन भरतु बिकल सुचि सोच। + +नीच कीच बिच मगन जस मीनहि सलिल सँकोच।।252।।कीन्ही मातु मिस काल कुचाली। ईति भीति जस पाकत साली।। + +केहि बिधि होइ राम अभिषेकू। मोहि अवकलत उपाउ न एकू।। + +अवसि फिरहिं गुर आयसु मानी। मुनि पुनि कहब राम रुचि जानी।। + +मातु कहेहुँ बहुरहिं रघुराऊ। राम जननि हठ करबि कि काऊ।। + +मोहि अनुचर कर केतिक बाता। तेहि महँ कुसमउ बाम बिधाता।। + +जौं हठ करउँ त निपट कुकरमू। हरगिरि तें गुरु सेवक धरमू।। + +एकउ जुगुति न मन ठहरानी। सोचत भरतहि रैनि बिहानी।। + +प्रात नहाइ प्रभुहि सिर नाई। बैठत पठए रिषयँ बोलाई।।गुर पद कमल प्रनामु करि बैठे आयसु पाइ। + +बिप्र महाजन सचिव सब जुरे सभासद आइ।।253।।बोले मुनिबरु समय समाना। सुनहु सभासद भरत सुजाना।। + +धरम धुरीन भानुकुल भानू। राजा रामु स्वबस भगवानू।। + +सत्यसंध पालक श्रुति सेतू। राम जनमु जग मंगल हेतू।। + +गुर पितु मातु बचन अनुसारी। खल दलु दलन देव हितकारी।। + +नीति प्रीति परमारथ स्वारथु। कोउ न राम सम जान जथारथु।। + +बिधि हरि हरु ससि रबि दिसिपाला। माया जीव करम कुलि काला।। + +अहिप महिप जहँ लगि प्रभुताई। जोग सिद्धि निगमागम गाई।। + +करि बिचार जिंयँ देखहु नीकें। राम रजाइ सीस सबही कें।।राखें राम रजाइ रुख हम सब कर हित होइ। + +समुझि सयाने करहु अब सब मिलि संमत सोइ।।254।।सब कहुँ सुखद राम अभिषेकू। मंगल मोद मूल मग एकू।। + +केहि बिधि अवध चलहिं रघुराऊ। कहहु समुझि सोइ करिअ उपाऊ।। + +सब सादर सुनि मुनिबर बानी। नय परमारथ स्वारथ सानी।। + +उतरु न आव लोग भए भोरे। तब सिरु नाइ भरत कर जोरे।। + +भानुबंस भए भूप घनेरे। अधिक एक तें एक बड़ेरे।। + +जनमु हेतु सब कहँ पितु माता। करम सुभासुभ देइ बिधाता।। + +दलि दुख सजइ सकल कल्याना। अस असीस राउरि जगु जाना।। + +सो गो���ाइँ बिधि गति जेहिं छेंकी। सकइ को टारि टेक जो टेकी।।बूझिअ मोहि उपाउ अब सो सब मोर अभागु। + +सुनि सनेहमय बचन गुर उर उमगा अनुरागु।।255।।तात बात फुरि राम कृपाहीं। राम बिमुख सिधि सपनेहुँ नाहीं।। + +सकुचउँ तात कहत एक बाता। अरध तजहिं बुध सरबस जाता।। + +तुम्ह कानन गवनहु दोउ भाई। फेरिअहिं लखन सीय रघुराई।। + +सुनि सुबचन हरषे दोउ भ्राता। भे प्रमोद परिपूरन गाता।। + +मन प्रसन्न तन तेजु बिराजा। जनु जिय राउ रामु भए राजा।। + +बहुत लाभ लोगन्ह लघु हानी। सम दुख सुख सब रोवहिं रानी।। + +कहहिं भरतु मुनि कहा सो कीन्हे। फलु जग जीवन्ह अभिमत दीन्हे।। + +कानन करउँ जनम भरि बासू। एहिं तें अधिक न मोर सुपासू।।अँतरजामी रामु सिय तुम्ह सरबग्य सुजान। + +जो फुर कहहु त नाथ निज कीजिअ बचनु प्रवान।।256।।भरत बचन सुनि देखि सनेहू। सभा सहित मुनि भए बिदेहू।। + +भरत महा महिमा जलरासी। मुनि मति ठाढ़ि तीर अबला सी।। + +गा चह पार जतनु हियँ हेरा। पावति नाव न बोहितु बेरा।। + +औरु करिहि को भरत बड़ाई। सरसी सीपि कि सिंधु समाई।। + +भरतु मुनिहि मन भीतर भाए। सहित समाज राम पहिं आए।। + +प्रभु प्रनामु करि दीन्ह सुआसनु। बैठे सब सुनि मुनि अनुसासनु।। + +बोले मुनिबरु बचन बिचारी। देस काल अवसर अनुहारी।। + +सुनहु राम सरबग्य सुजाना। धरम नीति गुन ग्यान निधाना।।सब के उर अंतर बसहु जानहु भाउ कुभाउ। + +पुरजन जननी भरत हित होइ सो कहिअ उपाउ।।257।।आरत कहहिं बिचारि न काऊ। सूझ जूआरिहि आपन दाऊ।। + +सुनि मुनि बचन कहत रघुराऊ। नाथ तुम्हारेहि हाथ उपाऊ।। + +सब कर हित रुख राउरि राखें। आयसु किएँ मुदित फुर भाषें।। + +प्रथम जो आयसु मो कहुँ होई। माथें मानि करौ सिख सोई।। + +पुनि जेहि कहँ जस कहब गोसाईं। सो सब भाँति घटिहि सेवकाईं।। + +कह मुनि राम सत्य तुम्ह भाषा। भरत सनेहँ बिचारु न राखा।। + +तेहि तें कहउँ बहोरि बहोरी। भरत भगति बस भइ मति मोरी।। + +मोरें जान भरत रुचि राखि। जो कीजिअ सो सुभ सिव साखी।।भरत बिनय सादर सुनिअ करिअ बिचारु बहोरि। + +करब साधुमत लोकमत नृपनय निगम निचोरि।।258।।गुरु अनुराग भरत पर देखी। राम ह्दयँ आनंदु बिसेषी।। + +भरतहि धरम धुरंधर जानी। निज सेवक तन मानस बानी।। + +बोले गुर आयस अनुकूला। बचन मंजु मृदु मंगलमूला।। + +नाथ सपथ पितु चरन दोहाई। भयउ न भुअन भरत सम भाई।। + +जे गुर पद अंबुज अनुरागी। ते लोकहुँ बेदहुँ बड़भागी।। + +राउर जा पर अस अनुरा���ू। को कहि सकइ भरत कर भागू।। + +लखि लघु बंधु बुद्धि सकुचाई। करत बदन पर भरत बड़ाई।। + +भरतु कहहीं सोइ किएँ भलाई। अस कहि राम रहे अरगाई।।तब मुनि बोले भरत सन सब सँकोचु तजि तात। + +कृपासिंधु प्रिय बंधु सन कहहु हृदय कै बात।।259।।सुनि मुनि बचन राम रुख पाई। गुरु साहिब अनुकूल अघाई।। + +लखि अपने सिर सबु छरु भारू। कहि न सकहिं कछु करहिं बिचारू।। + +पुलकि सरीर सभाँ भए ठाढें। नीरज नयन नेह जल बाढ़ें।। + +कहब मोर मुनिनाथ निबाहा। एहि तें अधिक कहौं मैं काहा। + +मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ। अपराधिहु पर कोह न काऊ।। + +मो पर कृपा सनेह बिसेषी। खेलत खुनिस न कबहूँ देखी।। + +सिसुपन तेम परिहरेउँ न संगू। कबहुँ न कीन्ह मोर मन भंगू।। + +मैं प्रभु कृपा रीति जियँ जोही। हारेहुँ खेल जितावहिं मोही।।महूँ सनेह सकोच बस सनमुख कही न बैन। + +दरसन तृपित न आजु लगि पेम पिआसे नैन।।260।।बिधि न सकेउ सहि मोर दुलारा। नीच बीचु जननी मिस पारा। + +यहउ कहत मोहि आजु न सोभा। अपनीं समुझि साधु सुचि को भा।। + +मातु मंदि मैं साधु सुचाली। उर अस आनत कोटि कुचाली।। + +फरइ कि कोदव बालि सुसाली। मुकुता प्रसव कि संबुक काली।। + +सपनेहुँ दोसक लेसु न काहू। मोर अभाग उदधि अवगाहू।। + +बिनु समुझें निज अघ परिपाकू। जारिउँ जायँ जननि कहि काकू।। + +हृदयँ हेरि हारेउँ सब ओरा। एकहि भाँति भलेहिं भल मोरा।। + +गुर गोसाइँ साहिब सिय रामू। लागत मोहि नीक परिनामू।।साधु सभा गुर प्रभु निकट कहउँ सुथल सति भाउ। + +प्रेम प्रपंचु कि झूठ फुर जानहिं मुनि रघुराउ।।261।।भूपति मरन पेम पनु राखी। जननी कुमति जगतु सबु साखी।। + +देखि न जाहि बिकल महतारी। जरहिं दुसह जर पुर नर नारी।। + +महीं सकल अनरथ कर मूला। सो सुनि समुझि सहिउँ सब सूला।। + +सुनि बन गवनु कीन्ह रघुनाथा। करि मुनि बेष लखन सिय साथा।। + +बिनु पानहिन्ह पयादेहि पाएँ। संकरु साखि रहेउँ एहि घाएँ।। + +बहुरि निहार निषाद सनेहू। कुलिस कठिन उर भयउ न बेहू।। + +अब सबु आँखिन्ह देखेउँ आई। जिअत जीव जड़ सबइ सहाई।। + +जिन्हहि निरखि मग साँपिनि बीछी। तजहिं बिषम बिषु तामस तीछी।।तेइ रघुनंदनु लखनु सिय अनहित लागे जाहि। + +तासु तनय तजि दुसह दुख दैउ सहावइ काहि।।262।।सुनि अति बिकल भरत बर बानी। आरति प्रीति बिनय नय सानी।। + +सोक मगन सब सभाँ खभारू। मनहुँ कमल बन परेउ तुसारू।। + +कहि अनेक बिधि कथा पुरानी। भरत प्रबोधु कीन्ह मुनि ग्यानी।। + +बो��े उचित बचन रघुनंदू। दिनकर कुल कैरव बन चंदू।। + +तात जाँय जियँ करहु गलानी। ईस अधीन जीव गति जानी।। + +तीनि काल तिभुअन मत मोरें। पुन्यसिलोक तात तर तोरे।। + +उर आनत तुम्ह पर कुटिलाई। जाइ लोकु परलोकु नसाई।। + +दोसु देहिं जननिहि जड़ तेई। जिन्ह गुर साधु सभा नहिं सेई।।मिटिहहिं पाप प्रपंच सब अखिल अमंगल भार। + +लोक सुजसु परलोक सुखु सुमिरत नामु तुम्हार।।263।।कहउँ सुभाउ सत्य सिव साखी। भरत भूमि रह राउरि राखी।। + +तात कुतरक करहु जनि जाएँ। बैर पेम नहि दुरइ दुराएँ।। + +मुनि गन निकट बिहग मृग जाहीं। बाधक बधिक बिलोकि पराहीं।। + +हित अनहित पसु पच्छिउ जाना। मानुष तनु गुन ग्यान निधाना।। + +तात तुम्हहि मैं जानउँ नीकें। करौं काह असमंजस जीकें।। + +राखेउ रायँ सत्य मोहि त्यागी। तनु परिहरेउ पेम पन लागी।। + +तासु बचन मेटत मन सोचू। तेहि तें अधिक तुम्हार सँकोचू।। + +ता पर गुर मोहि आयसु दीन्हा। अवसि जो कहहु चहउँ सोइ कीन्हा।।मनु प्रसन्न करि सकुच तजि कहहु करौं सोइ आजु। + +सत्यसंध रघुबर बचन सुनि भा सुखी समाजु।।264।।सुर गन सहित सभय सुरराजू। सोचहिं चाहत होन अकाजू।। + +बनत उपाउ करत कछु नाहीं। राम सरन सब गे मन माहीं।। + +बहुरि बिचारि परस्पर कहहीं। रघुपति भगत भगति बस अहहीं। + +सुधि करि अंबरीष दुरबासा। भे सुर सुरपति निपट निरासा।। + +सहे सुरन्ह बहु काल बिषादा। नरहरि किए प्रगट प्रहलादा।। + +लगि लगि कान कहहिं धुनि माथा। अब सुर काज भरत के हाथा।। + +आन उपाउ न देखिअ देवा। मानत रामु सुसेवक सेवा।। + +हियँ सपेम सुमिरहु सब भरतहि। निज गुन सील राम बस करतहि।।सुनि सुर मत सुरगुर कहेउ भल तुम्हार बड़ भागु। + +सकल सुमंगल मूल जग भरत चरन अनुरागु।।265।।सीतापति सेवक सेवकाई। कामधेनु सय सरिस सुहाई।। + +भरत भगति तुम्हरें मन आई। तजहु सोचु बिधि बात बनाई।। + +देखु देवपति भरत प्रभाऊ। सहज सुभायँ बिबस रघुराऊ।। + +मन थिर करहु देव डरु नाहीं। भरतहि जानि राम परिछाहीं।। + +सुनो सुरगुर सुर संमत सोचू। अंतरजामी प्रभुहि सकोचू।। + +निज सिर भारु भरत जियँ जाना। करत कोटि बिधि उर अनुमाना।। + +करि बिचारु मन दीन्ही ठीका। राम रजायस आपन नीका।। + +निज पन तजि राखेउ पनु मोरा। छोहु सनेहु कीन्ह नहिं थोरा।।कीन्ह अनुग्रह अमित अति सब बिधि सीतानाथ। + +करि प्रनामु बोले भरतु जोरि जलज जुग हाथ।।266।।कहौं कहावौं का अब स्वामी। कृपा अंबुनिधि अंतरजामी।। + +गुर प्रसन्न साहिब अनुकूला। मिटी मलिन मन कलपित सूला।। + +अपडर डरेउँ न सोच समूलें। रबिहि न दोसु देव दिसि भूलें।। + +मोर अभागु मातु कुटिलाई। बिधि गति बिषम काल कठिनाई।। + +पाउ रोपि सब मिलि मोहि घाला। प्रनतपाल पन आपन पाला।। + +यह नइ रीति न राउरि होई। लोकहुँ बेद बिदित नहिं गोई।। + +जगु अनभल भल एकु गोसाईं। कहिअ होइ भल कासु भलाईं।। + +देउ देवतरु सरिस सुभाऊ। सनमुख बिमुख न काहुहि काऊ।।जाइ निकट पहिचानि तरु छाहँ समनि सब सोच। + +मागत अभिमत पाव जग राउ रंकु भल पोच।।267।।लखि सब बिधि गुर स्वामि सनेहू। मिटेउ छोभु नहिं मन संदेहू।। + +अब करुनाकर कीजिअ सोई। जन हित प्रभु चित छोभु न होई।। + +जो सेवकु साहिबहि सँकोची। निज हित चहइ तासु मति पोची।। + +सेवक हित साहिब सेवकाई। करै सकल सुख लोभ बिहाई।। + +स्वारथु नाथ फिरें सबही का। किएँ रजाइ कोटि बिधि नीका।। + +यह स्वारथ परमारथ सारु। सकल सुकृत फल सुगति सिंगारु।। + +देव एक बिनती सुनि मोरी। उचित होइ तस करब बहोरी।। + +तिलक समाजु साजि सबु आना। करिअ सुफल प्रभु जौं मनु माना।।सानुज पठइअ मोहि बन कीजिअ सबहि सनाथ। + +नतरु फेरिअहिं बंधु दोउ नाथ चलौं मैं साथ।।268।।नतरु जाहिं बन तीनिउ भाई। बहुरिअ सीय सहित रघुराई।। + +जेहि बिधि प्रभु प्रसन्न मन होई। करुना सागर कीजिअ सोई।। + +देवँ दीन्ह सबु मोहि अभारु। मोरें नीति न धरम बिचारु।। + +कहउँ बचन सब स्वारथ हेतू। रहत न आरत कें चित चेतू।। + +उतरु देइ सुनि स्वामि रजाई। सो सेवकु लखि लाज लजाई।। + +अस मैं अवगुन उदधि अगाधू। स्वामि सनेहँ सराहत साधू।। + +अब कृपाल मोहि सो मत भावा। सकुच स्वामि मन जाइँ न पावा।। + +प्रभु पद सपथ कहउँ सति भाऊ। जग मंगल हित एक उपाऊ।।प्रभु प्रसन्न मन सकुच तजि जो जेहि आयसु देब। + +सो सिर धरि धरि करिहि सबु मिटिहि अनट अवरेब।।269।।भरत बचन सुचि सुनि सुर हरषे। साधु सराहि सुमन सुर बरषे।। + +असमंजस बस अवध नेवासी। प्रमुदित मन तापस बनबासी।। + +चुपहिं रहे रघुनाथ सँकोची। प्रभु गति देखि सभा सब सोची।। + +जनक दूत तेहि अवसर आए। मुनि बसिष्ठँ सुनि बेगि बोलाए।। + +करि प्रनाम तिन्ह रामु निहारे। बेषु देखि भए निपट दुखारे।। + +दूतन्ह मुनिबर बूझी बाता। कहहु बिदेह भूप कुसलाता।। + +सुनि सकुचाइ नाइ महि माथा। बोले चर बर जोरें हाथा।। + +बूझब राउर सादर साईं। कुसल हेतु सो भयउ गोसाईं।।नाहि त कोसल नाथ कें साथ कुसल गइ नाथ। + +म���थिला अवध बिसेष तें जगु सब भयउ अनाथ।।270।।कोसलपति गति सुनि जनकौरा। भे सब लोक सोक बस बौरा।। + +जेहिं देखे तेहि समय बिदेहू। नामु सत्य अस लाग न केहू।। + +रानि कुचालि सुनत नरपालहि। सूझ न कछु जस मनि बिनु ब्यालहि।। + +भरत राज रघुबर बनबासू। भा मिथिलेसहि हृदयँ हराँसू।। + +नृप बूझे बुध सचिव समाजू। कहहु बिचारि उचित का आजू।। + +समुझि अवध असमंजस दोऊ। चलिअ कि रहिअ न कह कछु कोऊ।। + +नृपहि धीर धरि हृदयँ बिचारी। पठए अवध चतुर चर चारी।। + +बूझि भरत सति भाउ कुभाऊ। आएहु बेगि न होइ लखाऊ।।गए अवध चर भरत गति बूझि देखि करतूति। + +चले चित्रकूटहि भरतु चार चले तेरहूति।।271।।दूतन्ह आइ भरत कइ करनी। जनक समाज जथामति बरनी।। + +सुनि गुर परिजन सचिव महीपति। भे सब सोच सनेहँ बिकल अति।। + +धरि धीरजु करि भरत बड़ाई। लिए सुभट साहनी बोलाई।। + +घर पुर देस राखि रखवारे। हय गय रथ बहु जान सँवारे।। + +दुघरी साधि चले ततकाला। किए बिश्रामु न मग महीपाला।। + +भोरहिं आजु नहाइ प्रयागा। चले जमुन उतरन सबु लागा।। + +खबरि लेन हम पठए नाथा। तिन्ह कहि अस महि नायउ माथा।। + +साथ किरात छ सातक दीन्हे। मुनिबर तुरत बिदा चर कीन्हे।।सुनत जनक आगवनु सबु हरषेउ अवध समाजु। + +रघुनंदनहि सकोचु बड़ सोच बिबस सुरराजु।।272।।गरइ गलानि कुटिल कैकेई। काहि कहै केहि दूषनु देई।। + +अस मन आनि मुदित नर नारी। भयउ बहोरि रहब दिन चारी।। + +एहि प्रकार गत बासर सोऊ। प्रात नहान लाग सबु कोऊ।। + +करि मज्जनु पूजहिं नर नारी। गनप गौरि तिपुरारि तमारी।। + +रमा रमन पद बंदि बहोरी। बिनवहिं अंजुलि अंचल जोरी।। + +राजा रामु जानकी रानी। आनँद अवधि अवध रजधानी।। + +सुबस बसउ फिरि सहित समाजा। भरतहि रामु करहुँ जुबराजा।। + +एहि सुख सुधाँ सींची सब काहू। देव देहु जग जीवन लाहू।।गुर समाज भाइन्ह सहित राम राजु पुर होउ। + +अछत राम राजा अवध मरिअ माग सबु कोउ।।273।।सुनि सनेहमय पुरजन बानी। निंदहिं जोग बिरति मुनि ग्यानी।। + +एहि बिधि नित्यकरम करि पुरजन। रामहि करहिं प्रनाम पुलकि तन।। + +ऊँच नीच मध्यम नर नारी। लहहिं दरसु निज निज अनुहारी।। + +सावधान सबही सनमानहिं। सकल सराहत कृपानिधानहिं।। + +लरिकाइहि ते रघुबर बानी। पालत नीति प्रीति पहिचानी।। + +सील सकोच सिंधु रघुराऊ। सुमुख सुलोचन सरल सुभाऊ।। + +कहत राम गुन गन अनुरागे। सब निज भाग सराहन लागे।। + +हम सम पुन्य पुंज जग थोरे। जिन्हहि रामु जानत करि मोरे।।प्रेम मगन तेहि समय सब सुनि आवत मिथिलेसु। + +सहित सभा संभ्रम उठेउ रबिकुल कमल दिनेसु।।274।।भाइ सचिव गुर पुरजन साथा। आगें गवनु कीन्ह रघुनाथा।। + +गिरिबरु दीख जनकपति जबहीं। करि प्रनाम रथ त्यागेउ तबहीं।। + +राम दरस लालसा उछाहू। पथ श्रम लेसु कलेसु न काहू।। + +मन तहँ जहँ रघुबर बैदेही। बिनु मन तन दुख सुख सुधि केही।। + +आवत जनकु चले एहि भाँती। सहित समाज प्रेम मति माती।। + +आए निकट देखि अनुरागे। सादर मिलन परसपर लागे।। + +लगे जनक मुनिजन पद बंदन। रिषिन्ह प्रनामु कीन्ह रघुनंदन।। + +भाइन्ह सहित रामु मिलि राजहि। चले लवाइ समेत समाजहि।।आश्रम सागर सांत रस पूरन पावन पाथु। + +सेन मनहुँ करुना सरित लिएँ जाहिं रघुनाथु।।275।।बोरति ग्यान बिराग करारे। बचन ससोक मिलत नद नारे।। + +सोच उसास समीर तंरगा। धीरज तट तरुबर कर भंगा।। + +बिषम बिषाद तोरावति धारा। भय भ्रम भवँर अबर्त अपारा।। + +केवट बुध बिद्या बड़ि नावा। सकहिं न खेइ ऐक नहिं आवा।। + +बनचर कोल किरात बिचारे। थके बिलोकि पथिक हियँ हारे।। + +आश्रम उदधि मिली जब जाई। मनहुँ उठेउ अंबुधि अकुलाई।। + +सोक बिकल दोउ राज समाजा। रहा न ग्यानु न धीरजु लाजा।। + +भूप रूप गुन सील सराही। रोवहिं सोक सिंधु अवगाही।।अवगाहि सोक समुद्र सोचहिं नारि नर ब्याकुल महा। + +दै दोष सकल सरोष बोलहिं बाम बिधि कीन्हो कहा।। + +सुर सिद्ध तापस जोगिजन मुनि देखि दसा बिदेह की। + +तुलसी न समरथु कोउ जो तरि सकै सरित सनेह की।।किए अमित उपदेस जहँ तहँ लोगन्ह मुनिबरन्ह। + +धीरजु धरिअ नरेस कहेउ बसिष्ठ बिदेह सन।।276।।जासु ग्यानु रबि भव निसि नासा। बचन किरन मुनि कमल बिकासा।। + +तेहि कि मोह ममता निअराई। यह सिय राम सनेह बड़ाई।। + +बिषई साधक सिद्ध सयाने। त्रिबिध जीव जग बेद बखाने।। + +राम सनेह सरस मन जासू। साधु सभाँ बड़ आदर तासू।। + +सोह न राम पेम बिनु ग्यानू। करनधार बिनु जिमि जलजानू।। + +मुनि बहुबिधि बिदेहु समुझाए। रामघाट सब लोग नहाए।। + +सकल सोक संकुल नर नारी। सो बासरु बीतेउ बिनु बारी।। + +पसु खग मृगन्ह न कीन्ह अहारू। प्रिय परिजन कर कौन बिचारू।।दोउ समाज निमिराजु रघुराजु नहाने प्रात। + +बैठे सब बट बिटप तर मन मलीन कृस गात।।277।।जे महिसुर दसरथ पुर बासी। जे मिथिलापति नगर निवासी।। + +हंस बंस गुर जनक पुरोधा। जिन्ह जग मगु परमारथु सोधा।। + +लगे कहन उपदेस अनेका। सहित धरम नय बिरति बिबे���ा।। + +कौसिक कहि कहि कथा पुरानीं। समुझाई सब सभा सुबानीं।। + +तब रघुनाथ कोसिकहि कहेऊ। नाथ कालि जल बिनु सबु रहेऊ।। + +मुनि कह उचित कहत रघुराई। गयउ बीति दिन पहर अढ़ाई।। + +रिषि रुख लखि कह तेरहुतिराजू। इहाँ उचित नहिं असन अनाजू।। + +कहा भूप भल सबहि सोहाना। पाइ रजायसु चले नहाना।।तेहि अवसर फल फूल दल मूल अनेक प्रकार। + +लइ आए बनचर बिपुल भरि भरि काँवरि भार।।278।।कामद मे गिरि राम प्रसादा। अवलोकत अपहरत बिषादा।। + +सर सरिता बन भूमि बिभागा। जनु उमगत आनँद अनुरागा।। + +बेलि बिटप सब सफल सफूला। बोलत खग मृग अलि अनुकूला।। + +तेहि अवसर बन अधिक उछाहू। त्रिबिध समीर सुखद सब काहू।। + +जाइ न बरनि मनोहरताई। जनु महि करति जनक पहुनाई।। + +तब सब लोग नहाइ नहाई। राम जनक मुनि आयसु पाई।। + +देखि देखि तरुबर अनुरागे। जहँ तहँ पुरजन उतरन लागे।। + +दल फल मूल कंद बिधि नाना। पावन सुंदर सुधा समाना।।सादर सब कहँ रामगुर पठए भरि भरि भार। + +पूजि पितर सुर अतिथि गुर लगे करन फरहार।।279।।एहि बिधि बासर बीते चारी। रामु निरखि नर नारि सुखारी।। + +दुहु समाज असि रुचि मन माहीं। बिनु सिय राम फिरब भल नाहीं।। + +सीता राम संग बनबासू। कोटि अमरपुर सरिस सुपासू।। + +परिहरि लखन रामु बैदेही। जेहि घरु भाव बाम बिधि तेही।। + +दाहिन दइउ होइ जब सबही। राम समीप बसिअ बन तबही।। + +मंदाकिनि मज्जनु तिहु काला। राम दरसु मुद मंगल माला।। + +अटनु राम गिरि बन तापस थल। असनु अमिअ सम कंद मूल फल।। + +सुख समेत संबत दुइ साता। पल सम होहिं न जनिअहिं जाता।।एहि सुख जोग न लोग सब कहहिं कहाँ अस भागु।। + +सहज सुभायँ समाज दुहु राम चरन अनुरागु।।280।।एहि बिधि सकल मनोरथ करहीं। बचन सप्रेम सुनत मन हरहीं।। + +सीय मातु तेहि समय पठाईं। दासीं देखि सुअवसरु आईं।। + +सावकास सुनि सब सिय सासू। आयउ जनकराज रनिवासू।। + +कौसल्याँ सादर सनमानी। आसन दिए समय सम आनी।। + +सीलु सनेह सकल दुहु ओरा। द्रवहिं देखि सुनि कुलिस कठोरा।। + +पुलक सिथिल तन बारि बिलोचन। महि नख लिखन लगीं सब सोचन।। + +सब सिय राम प्रीति कि सि मूरती। जनु करुना बहु बेष बिसूरति।। + +सीय मातु कह बिधि बुधि बाँकी। जो पय फेनु फोर पबि टाँकी।।सुनिअ सुधा देखिअहिं गरल सब करतूति कराल। + +जहँ तहँ काक उलूक बक मानस सकृत मराल।।281।।सुनि ससोच कह देबि सुमित्रा। बिधि गति बड़ि बिपरीत बिचित्रा।। + +जो सृजि पालइ हरइ बहोरी। बाल केलि सम ब���धि मति भोरी।। + +कौसल्या कह दोसु न काहू। करम बिबस दुख सुख छति लाहू।। + +कठिन करम गति जान बिधाता। जो सुभ असुभ सकल फल दाता।। + +ईस रजाइ सीस सबही कें। उतपति थिति लय बिषहु अमी कें।। + +देबि मोह बस सोचिअ बादी। बिधि प्रपंचु अस अचल अनादी।। + +भूपति जिअब मरब उर आनी। सोचिअ सखि लखि निज हित हानी।। + +सीय मातु कह सत्य सुबानी। सुकृती अवधि अवधपति रानी।।लखनु राम सिय जाहुँ बन भल परिनाम न पोचु। + +गहबरि हियँ कह कौसिला मोहि भरत कर सोचु।।282।।ईस प्रसाद असीस तुम्हारी। सुत सुतबधू देवसरि बारी।। + +राम सपथ मैं कीन्ह न काऊ। सो करि कहउँ सखी सति भाऊ।। + +भरत सील गुन बिनय बड़ाई। भायप भगति भरोस भलाई।। + +कहत सारदहु कर मति हीचे। सागर सीप कि जाहिं उलीचे।। + +जानउँ सदा भरत कुलदीपा। बार बार मोहि कहेउ महीपा।। + +कसें कनकु मनि पारिखि पाएँ। पुरुष परिखिअहिं समयँ सुभाएँ। + +अनुचित आजु कहब अस मोरा। सोक सनेहँ सयानप थोरा।। + +सुनि सुरसरि सम पावनि बानी। भईं सनेह बिकल सब रानी।।कौसल्या कह धीर धरि सुनहु देबि मिथिलेसि। + +को बिबेकनिधि बल्लभहि तुम्हहि सकइ उपदेसि।।283।।रानि राय सन अवसरु पाई। अपनी भाँति कहब समुझाई।। + +रखिअहिं लखनु भरतु गबनहिं बन। जौं यह मत मानै महीप मन।। + +तौ भल जतनु करब सुबिचारी। मोरें सौचु भरत कर भारी।। + +गूढ़ सनेह भरत मन माही। रहें नीक मोहि लागत नाहीं।। + +लखि सुभाउ सुनि सरल सुबानी। सब भइ मगन करुन रस रानी।। + +नभ प्रसून झरि धन्य धन्य धुनि। सिथिल सनेहँ सिद्ध जोगी मुनि।। + +सबु रनिवासु बिथकि लखि रहेऊ। तब धरि धीर सुमित्राँ कहेऊ।। + +देबि दंड जुग जामिनि बीती। राम मातु सुनी उठी सप्रीती।।बेगि पाउ धारिअ थलहि कह सनेहँ सतिभाय। + +हमरें तौ अब ईस गति के मिथिलेस सहाय।।284।।लखि सनेह सुनि बचन बिनीता। जनकप्रिया गह पाय पुनीता।। + +देबि उचित असि बिनय तुम्हारी। दसरथ घरिनि राम महतारी।। + +प्रभु अपने नीचहु आदरहीं। अगिनि धूम गिरि सिर तिनु धरहीं।। + +सेवकु राउ करम मन बानी। सदा सहाय महेसु भवानी।। + +रउरे अंग जोगु जग को है। दीप सहाय कि दिनकर सोहै।। + +रामु जाइ बनु करि सुर काजू। अचल अवधपुर करिहहिं राजू।। + +अमर नाग नर राम बाहुबल। सुख बसिहहिं अपनें अपने थल।। + +यह सब जागबलिक कहि राखा। देबि न होइ मुधा मुनि भाषा।।अस कहि पग परि पेम अति सिय हित बिनय सुनाइ।। + +सिय समेत सियमातु तब चली सुआयसु पाइ।।285।।प्रिय परिजनहि मिली बैदेही। जो जेहि जोगु भाँति तेहि तेही।। + +तापस बेष जानकी देखी। भा सबु बिकल बिषाद बिसेषी।। + +जनक राम गुर आयसु पाई। चले थलहि सिय देखी आई।। + +लीन्हि लाइ उर जनक जानकी। पाहुन पावन पेम प्रान की।। + +उर उमगेउ अंबुधि अनुरागू। भयउ भूप मनु मनहुँ पयागू।। + +सिय सनेह बटु बाढ़त जोहा। ता पर राम पेम सिसु सोहा।। + +चिरजीवी मुनि ग्यान बिकल जनु। बूड़त लहेउ बाल अवलंबनु।। + +मोह मगन मति नहिं बिदेह की। महिमा सिय रघुबर सनेह की।।सिय पितु मातु सनेह बस बिकल न सकी सँभारि। + +धरनिसुताँ धीरजु धरेउ समउ सुधरमु बिचारि।।286।।तापस बेष जनक सिय देखी। भयउ पेमु परितोषु बिसेषी।। + +पुत्रि पवित्र किए कुल दोऊ। सुजस धवल जगु कह सबु कोऊ।। + +जिति सुरसरि कीरति सरि तोरी। गवनु कीन्ह बिधि अंड करोरी।। + +गंग अवनि थल तीनि बड़ेरे। एहिं किए साधु समाज घनेरे।। + +पितु कह सत्य सनेहँ सुबानी। सीय सकुच महुँ मनहुँ समानी।। + +पुनि पितु मातु लीन्ह उर लाई। सिख आसिष हित दीन्हि सुहाई।। + +कहति न सीय सकुचि मन माहीं। इहाँ बसब रजनीं भल नाहीं।। + +लखि रुख रानि जनायउ राऊ। हृदयँ सराहत सीलु सुभाऊ।।बार बार मिलि भेंट सिय बिदा कीन्ह सनमानि। + +कही समय सिर भरत गति रानि सुबानि सयानि।।287।।सुनि भूपाल भरत ब्यवहारू। सोन सुगंध सुधा ससि सारू।। + +मूदे सजल नयन पुलके तन। सुजसु सराहन लगे मुदित मन।। + +सावधान सुनु सुमुखि सुलोचनि। भरत कथा भव बंध बिमोचनि।। + +धरम राजनय ब्रह्मबिचारू। इहाँ जथामति मोर प्रचारू।। + +सो मति मोरि भरत महिमाही। कहै काह छलि छुअति न छाँही।। + +बिधि गनपति अहिपति सिव सारद। कबि कोबिद बुध बुद्धि बिसारद।। + +भरत चरित कीरति करतूती। धरम सील गुन बिमल बिभूती।। + +समुझत सुनत सुखद सब काहू। सुचि सुरसरि रुचि निदर सुधाहू।।निरवधि गुन निरुपम पुरुषु भरतु भरत सम जानि। + +कहिअ सुमेरु कि सेर सम कबिकुल मति सकुचानि।।288।।अगम सबहि बरनत बरबरनी। जिमि जलहीन मीन गमु धरनी।। + +भरत अमित महिमा सुनु रानी। जानहिं रामु न सकहिं बखानी।। + +बरनि सप्रेम भरत अनुभाऊ। तिय जिय की रुचि लखि कह राऊ।। + +बहुरहिं लखनु भरतु बन जाहीं। सब कर भल सब के मन माहीं।। + +देबि परंतु भरत रघुबर की। प्रीति प्रतीति जाइ नहिं तरकी।। + +भरतु अवधि सनेह ममता की। जद्यपि रामु सीम समता की।। + +परमारथ स्वारथ सुख सारे। भरत न सपनेहुँ मनहुँ निहारे।। + +साधन सिद्ध राम पग नेहू।।मो���ि लखि परत भरत मत एहू।।भोरेहुँ भरत न पेलिहहिं मनसहुँ राम रजाइ। + +करिअ न सोचु सनेह बस कहेउ भूप बिलखाइ।।289।।राम भरत गुन गनत सप्रीती। निसि दंपतिहि पलक सम बीती।। + +राज समाज प्रात जुग जागे। न्हाइ न्हाइ सुर पूजन लागे।। + +गे नहाइ गुर पहीं रघुराई। बंदि चरन बोले रुख पाई।। + +नाथ भरतु पुरजन महतारी। सोक बिकल बनबास दुखारी।। + +सहित समाज राउ मिथिलेसू। बहुत दिवस भए सहत कलेसू।। + +उचित होइ सोइ कीजिअ नाथा। हित सबही कर रौरें हाथा।। + +अस कहि अति सकुचे रघुराऊ। मुनि पुलके लखि सीलु सुभाऊ।। + +तुम्ह बिनु राम सकल सुख साजा। नरक सरिस दुहु राज समाजा।।प्रान प्रान के जीव के जिव सुख के सुख राम। + +तुम्ह तजि तात सोहात गृह जिन्हहि तिन्हहिं बिधि बाम।।290।।सो सुखु करमु धरमु जरि जाऊ। जहँ न राम पद पंकज भाऊ।। + +जोगु कुजोगु ग्यानु अग्यानू। जहँ नहिं राम पेम परधानू।। + +तुम्ह बिनु दुखी सुखी तुम्ह तेहीं। तुम्ह जानहु जिय जो जेहि केहीं।। + +राउर आयसु सिर सबही कें। बिदित कृपालहि गति सब नीकें।। + +आपु आश्रमहि धारिअ पाऊ। भयउ सनेह सिथिल मुनिराऊ।। + +करि प्रनाम तब रामु सिधाए। रिषि धरि धीर जनक पहिं आए।। + +राम बचन गुरु नृपहि सुनाए। सील सनेह सुभायँ सुहाए।। + +महाराज अब कीजिअ सोई। सब कर धरम सहित हित होई।।ग्यान निधान सुजान सुचि धरम धीर नरपाल। + +तुम्ह बिनु असमंजस समन को समरथ एहि काल।।291।।सुनि मुनि बचन जनक अनुरागे। लखि गति ग्यानु बिरागु बिरागे।। + +सिथिल सनेहँ गुनत मन माहीं। आए इहाँ कीन्ह भल नाही।। + +रामहि रायँ कहेउ बन जाना। कीन्ह आपु प्रिय प्रेम प्रवाना।। + +हम अब बन तें बनहि पठाई। प्रमुदित फिरब बिबेक बड़ाई।। + +तापस मुनि महिसुर सुनि देखी। भए प्रेम बस बिकल बिसेषी।। + +समउ समुझि धरि धीरजु राजा। चले भरत पहिं सहित समाजा।। + +भरत आइ आगें भइ लीन्हे। अवसर सरिस सुआसन दीन्हे।। + +तात भरत कह तेरहुति राऊ। तुम्हहि बिदित रघुबीर सुभाऊ।।राम सत्यब्रत धरम रत सब कर सीलु सनेहु।। + +संकट सहत सकोच बस कहिअ जो आयसु देहु।।292।।सुनि तन पुलकि नयन भरि बारी। बोले भरतु धीर धरि भारी।। + +प्रभु प्रिय पूज्य पिता सम आपू। कुलगुरु सम हित माय न बापू।। + +कौसिकादि मुनि सचिव समाजू। ग्यान अंबुनिधि आपुनु आजू।। + +सिसु सेवक आयसु अनुगामी। जानि मोहि सिख देइअ स्वामी।। + +एहिं समाज थल बूझब राउर। मौन मलिन मैं बोलब बाउर।। + +छोटे बदन कहउँ बड़ि बाता। छमब तात लखि बाम बिधाता।। + +आगम निगम प्रसिद्ध पुराना। सेवाधरमु कठिन जगु जाना।। + +स्वामि धरम स्वारथहि बिरोधू। बैरु अंध प्रेमहि न प्रबोधू।।राखि राम रुख धरमु ब्रतु पराधीन मोहि जानि। + +सब कें संमत सर्ब हित करिअ पेमु पहिचानि।।293।।भरत बचन सुनि देखि सुभाऊ। सहित समाज सराहत राऊ।। + +सुगम अगम मृदु मंजु कठोरे। अरथु अमित अति आखर थोरे।। + +ज्यौ मुख मुकुर मुकुरु निज पानी। गहि न जाइ अस अदभुत बानी।। + +भूप भरत मुनि सहित समाजू। गे जहँ बिबुध कुमुद द्विजराजू।। + +सुनि सुधि सोच बिकल सब लोगा। मनहुँ मीनगन नव जल जोगा।। + +देवँ प्रथम कुलगुर गति देखी। निरखि बिदेह सनेह बिसेषी।। + +राम भगतिमय भरतु निहारे। सुर स्वारथी हहरि हियँ हारे।। + +सब कोउ राम पेममय पेखा। भउ अलेख सोच बस लेखा।।रामु सनेह सकोच बस कह ससोच सुरराज। + +रचहु प्रपंचहि पंच मिलि नाहिं त भयउ अकाजु।।294।।सुरन्ह सुमिरि सारदा सराही। देबि देव सरनागत पाही।। + +फेरि भरत मति करि निज माया। पालु बिबुध कुल करि छल छाया।। + +बिबुध बिनय सुनि देबि सयानी। बोली सुर स्वारथ जड़ जानी।। + +मो सन कहहु भरत मति फेरू। लोचन सहस न सूझ सुमेरू।। + +बिधि हरि हर माया बड़ि भारी। सोउ न भरत मति सकइ निहारी।। + +सो मति मोहि कहत करु भोरी। चंदिनि कर कि चंडकर चोरी।। + +भरत हृदयँ सिय राम निवासू। तहँ कि तिमिर जहँ तरनि प्रकासू।। + +अस कहि सारद गइ बिधि लोका। बिबुध बिकल निसि मानहुँ कोका।।सुर स्वारथी मलीन मन कीन्ह कुमंत्र कुठाटु।। + +रचि प्रपंच माया प्रबल भय भ्रम अरति उचाटु।।295।।करि कुचालि सोचत सुरराजू। भरत हाथ सबु काजु अकाजू।। + +गए जनकु रघुनाथ समीपा। सनमाने सब रबिकुल दीपा।। + +समय समाज धरम अबिरोधा। बोले तब रघुबंस पुरोधा।। + +जनक भरत संबादु सुनाई। भरत कहाउति कही सुहाई।। + +तात राम जस आयसु देहू। सो सबु करै मोर मत एहू।। + +सुनि रघुनाथ जोरि जुग पानी। बोले सत्य सरल मृदु बानी।। + +बिद्यमान आपुनि मिथिलेसू। मोर कहब सब भाँति भदेसू।। + +राउर राय रजायसु होई। राउरि सपथ सही सिर सोई।।राम सपथ सुनि मुनि जनकु सकुचे सभा समेत। + +सकल बिलोकत भरत मुखु बनइ न उतरु देत।।296।।सभा सकुच बस भरत निहारी। रामबंधु धरि धीरजु भारी।। + +कुसमउ देखि सनेहु सँभारा। बढ़त बिंधि जिमि घटज निवारा।। + +सोक कनकलोचन मति छोनी। हरी बिमल गुन गन जगजोनी।। + +भरत बिबेक बराहँ बिसाला। अनायास उधरी तेहि काल��।। + +करि प्रनामु सब कहँ कर जोरे। रामु राउ गुर साधु निहोरे।। + +छमब आजु अति अनुचित मोरा। कहउँ बदन मृदु बचन कठोरा।। + +हियँ सुमिरी सारदा सुहाई। मानस तें मुख पंकज आई।। + +बिमल बिबेक धरम नय साली। भरत भारती मंजु मराली।।निरखि बिबेक बिलोचनन्हि सिथिल सनेहँ समाजु। + +करि प्रनामु बोले भरतु सुमिरि सीय रघुराजु।।297।।प्रभु पितु मातु सुह्रद गुर स्वामी। पूज्य परम हित अतंरजामी।। + +सरल सुसाहिबु सील निधानू। प्रनतपाल सर्बग्य सुजानू।। + +समरथ सरनागत हितकारी। गुनगाहकु अवगुन अघ हारी।। + +स्वामि गोसाँइहि सरिस गोसाई। मोहि समान मैं साइँ दोहाई।। + +प्रभु पितु बचन मोह बस पेली। आयउँ इहाँ समाजु सकेली।। + +जग भल पोच ऊँच अरु नीचू। अमिअ अमरपद माहुरु मीचू।। + +राम रजाइ मेट मन माहीं। देखा सुना कतहुँ कोउ नाहीं।। + +सो मैं सब बिधि कीन्हि ढिठाई। प्रभु मानी सनेह सेवकाई।।कृपाँ भलाई आपनी नाथ कीन्ह भल मोर। + +दूषन भे भूषन सरिस सुजसु चारु चहु ओर।।298।।राउरि रीति सुबानि बड़ाई। जगत बिदित निगमागम गाई।। + +कूर कुटिल खल कुमति कलंकी। नीच निसील निरीस निसंकी।। + +तेउ सुनि सरन सामुहें आए। सकृत प्रनामु किहें अपनाए।। + +देखि दोष कबहुँ न उर आने। सुनि गुन साधु समाज बखाने।। + +को साहिब सेवकहि नेवाजी। आपु समाज साज सब साजी।। + +निज करतूति न समुझिअ सपनें। सेवक सकुच सोचु उर अपनें।। + +सो गोसाइँ नहि दूसर कोपी। भुजा उठाइ कहउँ पन रोपी।। + +पसु नाचत सुक पाठ प्रबीना। गुन गति नट पाठक आधीना।।यों सुधारि सनमानि जन किए साधु सिरमोर। + +को कृपाल बिनु पालिहै बिरिदावलि बरजोर।।299।।सोक सनेहँ कि बाल सुभाएँ। आयउँ लाइ रजायसु बाएँ।। + +तबहुँ कृपाल हेरि निज ओरा। सबहि भाँति भल मानेउ मोरा।। + +देखेउँ पाय सुमंगल मूला। जानेउँ स्वामि सहज अनुकूला।। + +बड़ें समाज बिलोकेउँ भागू। बड़ीं चूक साहिब अनुरागू।। + +कृपा अनुग्रह अंगु अघाई। कीन्हि कृपानिधि सब अधिकाई।। + +राखा मोर दुलार गोसाईं। अपनें सील सुभायँ भलाईं।। + +नाथ निपट मैं कीन्हि ढिठाई। स्वामि समाज सकोच बिहाई।। + +अबिनय बिनय जथारुचि बानी। छमिहि देउ अति आरति जानी।।सुह्रद सुजान सुसाहिबहि बहुत कहब बड़ि खोरि। + +आयसु देइअ देव अब सबइ सुधारी मोरि।।300।।प्रभु पद पदुम पराग दोहाई। सत्य सुकृत सुख सीवँ सुहाई।। + +सो करि कहउँ हिए अपने की। रुचि जागत सोवत सपने की।। + +सहज सनेहँ स्वामि सेवकाई। स्वारथ छल फल चारि बिहाई।। + +अग्या सम न सुसाहिब सेवा। सो प्रसादु जन पावै देवा।। + +अस कहि प्रेम बिबस भए भारी। पुलक सरीर बिलोचन बारी।। + +प्रभु पद कमल गहे अकुलाई। समउ सनेहु न सो कहि जाई।। + +कृपासिंधु सनमानि सुबानी। बैठाए समीप गहि पानी।। + +भरत बिनय सुनि देखि सुभाऊ। सिथिल सनेहँ सभा रघुराऊ।।रघुराउ सिथिल सनेहँ साधु समाज मुनि मिथिला धनी। + +मन महुँ सराहत भरत भायप भगति की महिमा घनी।। + +भरतहि प्रसंसत बिबुध बरषत सुमन मानस मलिन से। + +तुलसी बिकल सब लोग सुनि सकुचे निसागम नलिन से।।देखि दुखारी दीन दुहु समाज नर नारि सब। + +मघवा महा मलीन मुए मारि मंगल चहत।।301।।कपट कुचालि सीवँ सुरराजू। पर अकाज प्रिय आपन काजू।। + +काक समान पाकरिपु रीती। छली मलीन कतहुँ न प्रतीती।। + +प्रथम कुमत करि कपटु सँकेला। सो उचाटु सब कें सिर मेला।। + +सुरमायाँ सब लोग बिमोहे। राम प्रेम अतिसय न बिछोहे।। + +भय उचाट बस मन थिर नाहीं। छन बन रुचि छन सदन सोहाहीं।। + +दुबिध मनोगति प्रजा दुखारी। सरित सिंधु संगम जनु बारी।। + +दुचित कतहुँ परितोषु न लहहीं। एक एक सन मरमु न कहहीं।। + +लखि हियँ हँसि कह कृपानिधानू। सरिस स्वान मघवान जुबानू।।भरतु जनकु मुनिजन सचिव साधु सचेत बिहाइ। + +लागि देवमाया सबहि जथाजोगु जनु पाइ।।302।।कृपासिंधु लखि लोग दुखारे। निज सनेहँ सुरपति छल भारे।। + +सभा राउ गुर महिसुर मंत्री। भरत भगति सब कै मति जंत्री।। + +रामहि चितवत चित्र लिखे से। सकुचत बोलत बचन सिखे से।। + +भरत प्रीति नति बिनय बड़ाई। सुनत सुखद बरनत कठिनाई।। + +जासु बिलोकि भगति लवलेसू। प्रेम मगन मुनिगन मिथिलेसू।। + +महिमा तासु कहै किमि तुलसी। भगति सुभायँ सुमति हियँ हुलसी।। + +आपु छोटि महिमा बड़ि जानी। कबिकुल कानि मानि सकुचानी।। + +कहि न सकति गुन रुचि अधिकाई। मति गति बाल बचन की नाई।।भरत बिमल जसु बिमल बिधु सुमति चकोरकुमारि। + +उदित बिमल जन हृदय नभ एकटक रही निहारि।।303।।भरत सुभाउ न सुगम निगमहूँ। लघु मति चापलता कबि छमहूँ।। + +कहत सुनत सति भाउ भरत को। सीय राम पद होइ न रत को।। + +सुमिरत भरतहि प्रेमु राम को। जेहि न सुलभ तेहि सरिस बाम को।। + +देखि दयाल दसा सबही की। राम सुजान जानि जन जी की।। + +धरम धुरीन धीर नय नागर। सत्य सनेह सील सुख सागर।। + +देसु काल लखि समउ समाजू। नीति प्रीति पालक रघुराजू।। + +बोले बचन बानि सरबसु से। हित परिनाम सुनत सस��� रसु से।। + +तात भरत तुम्ह धरम धुरीना। लोक बेद बिद प्रेम प्रबीना।।करम बचन मानस बिमल तुम्ह समान तुम्ह तात। + +गुर समाज लघु बंधु गुन कुसमयँ किमि कहि जात।।304।।जानहु तात तरनि कुल रीती। सत्यसंध पितु कीरति प्रीती।। + +समउ समाजु लाज गुरुजन की। उदासीन हित अनहित मन की।। + +तुम्हहि बिदित सबही कर करमू। आपन मोर परम हित धरमू।। + +मोहि सब भाँति भरोस तुम्हारा। तदपि कहउँ अवसर अनुसारा।। + +तात तात बिनु बात हमारी। केवल गुरुकुल कृपाँ सँभारी।। + +नतरु प्रजा परिजन परिवारू। हमहि सहित सबु होत खुआरू।। + +जौं बिनु अवसर अथवँ दिनेसू। जग केहि कहहु न होइ कलेसू।। + +तस उतपातु तात बिधि कीन्हा। मुनि मिथिलेस राखि सबु लीन्हा।।राज काज सब लाज पति धरम धरनि धन धाम। + +गुर प्रभाउ पालिहि सबहि भल होइहि परिनाम।।305।।सहित समाज तुम्हार हमारा। घर बन गुर प्रसाद रखवारा।। + +मातु पिता गुर स्वामि निदेसू। सकल धरम धरनीधर सेसू।। + +सो तुम्ह करहु करावहु मोहू। तात तरनिकुल पालक होहू।। + +साधक एक सकल सिधि देनी। कीरति सुगति भूतिमय बेनी।। + +सो बिचारि सहि संकटु भारी। करहु प्रजा परिवारु सुखारी।। + +बाँटी बिपति सबहिं मोहि भाई। तुम्हहि अवधि भरि बड़ि कठिनाई।। + +जानि तुम्हहि मृदु कहउँ कठोरा। कुसमयँ तात न अनुचित मोरा।। + +होहिं कुठायँ सुबंधु सुहाए। ओड़िअहिं हाथ असनिहु के घाए।।सेवक कर पद नयन से मुख सो साहिबु होइ। + +तुलसी प्रीति कि रीति सुनि सुकबि सराहहिं सोइ।।306।।सभा सकल सुनि रघुबर बानी। प्रेम पयोधि अमिअ जनु सानी।। + +सिथिल समाज सनेह समाधी। देखि दसा चुप सारद साधी।। + +भरतहि भयउ परम संतोषू। सनमुख स्वामि बिमुख दुख दोषू।। + +मुख प्रसन्न मन मिटा बिषादू। भा जनु गूँगेहि गिरा प्रसादू।। + +कीन्ह सप्रेम प्रनामु बहोरी। बोले पानि पंकरुह जोरी।। + +नाथ भयउ सुखु साथ गए को। लहेउँ लाहु जग जनमु भए को।। + +अब कृपाल जस आयसु होई। करौं सीस धरि सादर सोई।। + +सो अवलंब देव मोहि देई। अवधि पारु पावौं जेहि सेई।।देव देव अभिषेक हित गुर अनुसासनु पाइ। + +आनेउँ सब तीरथ सलिलु तेहि कहँ काह रजाइ।।307।।एकु मनोरथु बड़ मन माहीं। सभयँ सकोच जात कहि नाहीं।। + +कहहु तात प्रभु आयसु पाई। बोले बानि सनेह सुहाई।। + +चित्रकूट सुचि थल तीरथ बन। खग मृग सर सरि निर्झर गिरिगन।। + +प्रभु पद अंकित अवनि बिसेषी। आयसु होइ त आवौं देखी।। + +अवसि अत्रि आयसु सिर धरहू। ता��� बिगतभय कानन चरहू।। + +मुनि प्रसाद बनु मंगल दाता। पावन परम सुहावन भ्राता।। + +रिषिनायकु जहँ आयसु देहीं। राखेहु तीरथ जलु थल तेहीं।। + +सुनि प्रभु बचन भरत सुख पावा। मुनि पद कमल मुदित सिरु नावा।।भरत राम संबादु सुनि सकल सुमंगल मूल। + +सुर स्वारथी सराहि कुल बरषत सुरतरु फूल।।308।।धन्य भरत जय राम गोसाईं। कहत देव हरषत बरिआई। + +मुनि मिथिलेस सभाँ सब काहू। भरत बचन सुनि भयउ उछाहू।। + +भरत राम गुन ग्राम सनेहू। पुलकि प्रसंसत राउ बिदेहू।। + +सेवक स्वामि सुभाउ सुहावन। नेमु पेमु अति पावन पावन।। + +मति अनुसार सराहन लागे। सचिव सभासद सब अनुरागे।। + +सुनि सुनि राम भरत संबादू। दुहु समाज हियँ हरषु बिषादू।। + +राम मातु दुखु सुखु सम जानी। कहि गुन राम प्रबोधीं रानी।। + +एक कहहिं रघुबीर बड़ाई। एक सराहत भरत भलाई।।अत्रि कहेउ तब भरत सन सैल समीप सुकूप। + +राखिअ तीरथ तोय तहँ पावन अमिअ अनूप।।309।।भरत अत्रि अनुसासन पाई। जल भाजन सब दिए चलाई।। + +सानुज आपु अत्रि मुनि साधू। सहित गए जहँ कूप अगाधू।। + +पावन पाथ पुन्यथल राखा। प्रमुदित प्रेम अत्रि अस भाषा।। + +तात अनादि सिद्ध थल एहू। लोपेउ काल बिदित नहिं केहू।। + +तब सेवकन्ह सरस थलु देखा। किन्ह सुजल हित कूप बिसेषा।। + +बिधि बस भयउ बिस्व उपकारू। सुगम अगम अति धरम बिचारू।। + +भरतकूप अब कहिहहिं लोगा। अति पावन तीरथ जल जोगा।। + +प्रेम सनेम निमज्जत प्रानी। होइहहिं बिमल करम मन बानी।।कहत कूप महिमा सकल गए जहाँ रघुराउ। + +अत्रि सुनायउ रघुबरहि तीरथ पुन्य प्रभाउ।।310।।कहत धरम इतिहास सप्रीती। भयउ भोरु निसि सो सुख बीती।। + +नित्य निबाहि भरत दोउ भाई। राम अत्रि गुर आयसु पाई।। + +सहित समाज साज सब सादें। चले राम बन अटन पयादें।। + +कोमल चरन चलत बिनु पनहीं। भइ मृदु भूमि सकुचि मन मनहीं।। + +कुस कंटक काँकरीं कुराईं। कटुक कठोर कुबस्तु दुराईं।। + +महि मंजुल मृदु मारग कीन्हे। बहत समीर त्रिबिध सुख लीन्हे।। + +सुमन बरषि सुर घन करि छाहीं। बिटप फूलि फलि तृन मृदुताहीं।। + +मृग बिलोकि खग बोलि सुबानी। सेवहिं सकल राम प्रिय जानी।।सुलभ सिद्धि सब प्राकृतहु राम कहत जमुहात। + +राम प्रान प्रिय भरत कहुँ यह न होइ बड़ि बात।।311।।एहि बिधि भरतु फिरत बन माहीं। नेमु प्रेमु लखि मुनि सकुचाहीं।। + +पुन्य जलाश्रय भूमि बिभागा। खग मृग तरु तृन गिरि बन बागा।। + +चारु बिचित्र पबित्र बिसेषी। ���ूझत भरतु दिब्य सब देखी।। + +सुनि मन मुदित कहत रिषिराऊ। हेतु नाम गुन पुन्य प्रभाऊ।। + +कतहुँ निमज्जन कतहुँ प्रनामा। कतहुँ बिलोकत मन अभिरामा।। + +कतहुँ बैठि मुनि आयसु पाई। सुमिरत सीय सहित दोउ भाई।। + +देखि सुभाउ सनेहु सुसेवा। देहिं असीस मुदित बनदेवा।। + +फिरहिं गएँ दिनु पहर अढ़ाई। प्रभु पद कमल बिलोकहिं आई।।देखे थल तीरथ सकल भरत पाँच दिन माझ। + +कहत सुनत हरि हर सुजसु गयउ दिवसु भइ साँझ।।312।।भोर न्हाइ सबु जुरा समाजू। भरत भूमिसुर तेरहुति राजू।। + +भल दिन आजु जानि मन माहीं। रामु कृपाल कहत सकुचाहीं।। + +गुर नृप भरत सभा अवलोकी। सकुचि राम फिरि अवनि बिलोकी।। + +सील सराहि सभा सब सोची। कहुँ न राम सम स्वामि सँकोची।। + +भरत सुजान राम रुख देखी। उठि सप्रेम धरि धीर बिसेषी।। + +करि दंडवत कहत कर जोरी। राखीं नाथ सकल रुचि मोरी।। + +मोहि लगि सहेउ सबहिं संतापू। बहुत भाँति दुखु पावा आपू।। + +अब गोसाइँ मोहि देउ रजाई। सेवौं अवध अवधि भरि जाई।।जेहिं उपाय पुनि पाय जनु देखै दीनदयाल। + +सो सिख देइअ अवधि लगि कोसलपाल कृपाल।।313।।पुरजन परिजन प्रजा गोसाई। सब सुचि सरस सनेहँ सगाई।। + +राउर बदि भल भव दुख दाहू। प्रभु बिनु बादि परम पद लाहू।। + +स्वामि सुजानु जानि सब ही की। रुचि लालसा रहनि जन जी की।। + +प्रनतपालु पालिहि सब काहू। देउ दुहू दिसि ओर निबाहू।। + +अस मोहि सब बिधि भूरि भरोसो। किएँ बिचारु न सोचु खरो सो।। + +आरति मोर नाथ कर छोहू। दुहुँ मिलि कीन्ह ढीठु हठि मोहू।। + +यह बड़ दोषु दूरि करि स्वामी। तजि सकोच सिखइअ अनुगामी।। + +भरत बिनय सुनि सबहिं प्रसंसी। खीर नीर बिबरन गति हंसी।।दीनबंधु सुनि बंधु के बचन दीन छलहीन। + +देस काल अवसर सरिस बोले रामु प्रबीन।।314।।तात तुम्हारि मोरि परिजन की। चिंता गुरहि नृपहि घर बन की।। + +माथे पर गुर मुनि मिथिलेसू। हमहि तुम्हहि सपनेहुँ न कलेसू।। + +मोर तुम्हार परम पुरुषारथु। स्वारथु सुजसु धरमु परमारथु।। + +पितु आयसु पालिहिं दुहु भाई। लोक बेद भल भूप भलाई।। + +गुर पितु मातु स्वामि सिख पालें। चलेहुँ कुमग पग परहिं न खालें।। + +अस बिचारि सब सोच बिहाई। पालहु अवध अवधि भरि जाई।। + +देसु कोसु परिजन परिवारू। गुर पद रजहिं लाग छरुभारू।। + +तुम्ह मुनि मातु सचिव सिख मानी। पालेहु पुहुमि प्रजा रजधानी।।मुखिआ मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक। + +पालइ पोषइ सकल अँग तुलसी सहित बिबेक।।315।।राजधरम सरबसु एतनोई। जिमि मन माहँ मनोरथ गोई।। + +बंधु प्रबोधु कीन्ह बहु भाँती। बिनु अधार मन तोषु न साँती।। + +भरत सील गुर सचिव समाजू। सकुच सनेह बिबस रघुराजू।। + +प्रभु करि कृपा पाँवरीं दीन्हीं। सादर भरत सीस धरि लीन्हीं।। + +चरनपीठ करुनानिधान के। जनु जुग जामिक प्रजा प्रान के।। + +संपुट भरत सनेह रतन के। आखर जुग जुन जीव जतन के।। + +कुल कपाट कर कुसल करम के। बिमल नयन सेवा सुधरम के।। + +भरत मुदित अवलंब लहे तें। अस सुख जस सिय रामु रहे तें।।मागेउ बिदा प्रनामु करि राम लिए उर लाइ। + +लोग उचाटे अमरपति कुटिल कुअवसरु पाइ।।316।।सो कुचालि सब कहँ भइ नीकी। अवधि आस सम जीवनि जी की।। + +नतरु लखन सिय सम बियोगा। हहरि मरत सब लोग कुरोगा।। + +रामकृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।। + +भेंटत भुज भरि भाइ भरत सो। राम प्रेम रसु कहि न परत सो।। + +तन मन बचन उमग अनुरागा। धीर धुरंधर धीरजु त्यागा।। + +बारिज लोचन मोचत बारी। देखि दसा सुर सभा दुखारी।। + +मुनिगन गुर धुर धीर जनक से। ग्यान अनल मन कसें कनक से।। + +जे बिरंचि निरलेप उपाए। पदुम पत्र जिमि जग जल जाए।।तेउ बिलोकि रघुबर भरत प्रीति अनूप अपार। + +भए मगन मन तन बचन सहित बिराग बिचार।।317।।जहाँ जनक गुर मति भोरी। प्राकृत प्रीति कहत बड़ि खोरी।। + +बरनत रघुबर भरत बियोगू। सुनि कठोर कबि जानिहि लोगू।। + +सो सकोच रसु अकथ सुबानी। समउ सनेहु सुमिरि सकुचानी।। + +भेंटि भरत रघुबर समुझाए। पुनि रिपुदवनु हरषि हियँ लाए।। + +सेवक सचिव भरत रुख पाई। निज निज काज लगे सब जाई।। + +सुनि दारुन दुखु दुहूँ समाजा। लगे चलन के साजन साजा।। + +प्रभु पद पदुम बंदि दोउ भाई। चले सीस धरि राम रजाई।। + +मुनि तापस बनदेव निहोरी। सब सनमानि बहोरि बहोरी।।लखनहि भेंटि प्रनामु करि सिर धरि सिय पद धूरि। + +चले सप्रेम असीस सुनि सकल सुमंगल मूरि।।318।।सानुज राम नृपहि सिर नाई। कीन्हि बहुत बिधि बिनय बड़ाई।। + +देव दया बस बड़ दुखु पायउ। सहित समाज काननहिं आयउ।। + +पुर पगु धारिअ देइ असीसा। कीन्ह धीर धरि गवनु महीसा।। + +मुनि महिदेव साधु सनमाने। बिदा किए हरि हर सम जाने।। + +सासु समीप गए दोउ भाई। फिरे बंदि पग आसिष पाई।। + +कौसिक बामदेव जाबाली। पुरजन परिजन सचिव सुचाली।। + +जथा जोगु करि बिनय प्रनामा। बिदा किए सब सानुज रामा।। + +नारि पुरुष लघु मध्य बड़ेरे। सब सनमानि कृपानिधि फेरे।।भरत मातु पद बंदि ���्रभु सुचि सनेहँ मिलि भेंटि। + +बिदा कीन्ह सजि पालकी सकुच सोच सब मेटि।।319।।परिजन मातु पितहि मिलि सीता। फिरी प्रानप्रिय प्रेम पुनीता।। + +करि प्रनामु भेंटी सब सासू। प्रीति कहत कबि हियँ न हुलासू।। + +सुनि सिख अभिमत आसिष पाई। रही सीय दुहु प्रीति समाई।। + +रघुपति पटु पालकीं मगाईं। करि प्रबोधु सब मातु चढ़ाई।। + +बार बार हिलि मिलि दुहु भाई। सम सनेहँ जननी पहुँचाई।। + +साजि बाजि गज बाहन नाना। भरत भूप दल कीन्ह पयाना।। + +हृदयँ रामु सिय लखन समेता। चले जाहिं सब लोग अचेता।। + +बसह बाजि गज पसु हियँ हारें। चले जाहिं परबस मन मारें।।गुर गुरतिय पद बंदि प्रभु सीता लखन समेत। + +फिरे हरष बिसमय सहित आए परन निकेत।।320।।बिदा कीन्ह सनमानि निषादू। चलेउ हृदयँ बड़ बिरह बिषादू।। + +कोल किरात भिल्ल बनचारी। फेरे फिरे जोहारि जोहारी।। + +प्रभु सिय लखन बैठि बट छाहीं। प्रिय परिजन बियोग बिलखाहीं।। + +भरत सनेह सुभाउ सुबानी। प्रिया अनुज सन कहत बखानी।। + +प्रीति प्रतीति बचन मन करनी। श्रीमुख राम प्रेम बस बरनी।। + +तेहि अवसर खग मृग जल मीना। चित्रकूट चर अचर मलीना।। + +बिबुध बिलोकि दसा रघुबर की। बरषि सुमन कहि गति घर घर की।। + +प्रभु प्रनामु करि दीन्ह भरोसो। चले मुदित मन डर न खरो सो।।सानुज सीय समेत प्रभु राजत परन कुटीर। + +भगति ग्यानु बैराग्य जनु सोहत धरें सरीर।।321।।मुनि महिसुर गुर भरत भुआलू। राम बिरहँ सबु साजु बिहालू।। + +प्रभु गुन ग्राम गनत मन माहीं। सब चुपचाप चले मग जाहीं।। + +जमुना उतरि पार सबु भयऊ। सो बासरु बिनु भोजन गयऊ।। + +उतरि देवसरि दूसर बासू। रामसखाँ सब कीन्ह सुपासू।। + +सई उतरि गोमतीं नहाए। चौथें दिवस अवधपुर आए। + +जनकु रहे पुर बासर चारी। राज काज सब साज सँभारी।। + +सौंपि सचिव गुर भरतहि राजू। तेरहुति चले साजि सबु साजू।। + +नगर नारि नर गुर सिख मानी। बसे सुखेन राम रजधानी।।राम दरस लगि लोग सब करत नेम उपबास। + +तजि तजि भूषन भोग सुख जिअत अवधि कीं आस।।322।।सचिव सुसेवक भरत प्रबोधे। निज निज काज पाइ पाइ सिख ओधे।। + +पुनि सिख दीन्ह बोलि लघु भाई। सौंपी सकल मातु सेवकाई।। + +भूसुर बोलि भरत कर जोरे। करि प्रनाम बय बिनय निहोरे।। + +ऊँच नीच कारजु भल पोचू। आयसु देब न करब सँकोचू।। + +परिजन पुरजन प्रजा बोलाए। समाधानु करि सुबस बसाए।। + +सानुज गे गुर गेहँ बहोरी। करि दंडवत कहत कर जोरी।। + +आयसु होइ त रहौं सनेमा। बोले मुनि तन पुलकि सपेमा।। + +समुझव कहब करब तुम्ह जोई। धरम सारु जग होइहि सोई।।सुनि सिख पाइ असीस बड़ि गनक बोलि दिनु साधि। + +सिंघासन प्रभु पादुका बैठारे निरुपाधि।।323।।राम मातु गुर पद सिरु नाई। प्रभु पद पीठ रजायसु पाई।। + +नंदिगावँ करि परन कुटीरा। कीन्ह निवासु धरम धुर धीरा।। + +जटाजूट सिर मुनिपट धारी। महि खनि कुस साँथरी सँवारी।। + +असन बसन बासन ब्रत नेमा। करत कठिन रिषिधरम सप्रेमा।। + +भूषन बसन भोग सुख भूरी। मन तन बचन तजे तिन तूरी।। + +अवध राजु सुर राजु सिहाई। दसरथ धनु सुनि धनदु लजाई।। + +तेहिं पुर बसत भरत बिनु रागा। चंचरीक जिमि चंपक बागा।। + +रमा बिलासु राम अनुरागी। तजत बमन जिमि जन बड़भागी।।राम पेम भाजन भरतु बड़े न एहिं करतूति। + +चातक हंस सराहिअत टेंक बिबेक बिभूति।।324।।देह दिनहुँ दिन दूबरि होई। घटइ तेजु बलु मुखछबि सोई।। + +नित नव राम प्रेम पनु पीना। बढ़त धरम दलु मनु न मलीना।। + +जिमि जलु निघटत सरद प्रकासे। बिलसत बेतस बनज बिकासे।। + +सम दम संजम नियम उपासा। नखत भरत हिय बिमल अकासा।। + +ध्रुव बिस्वास अवधि राका सी। स्वामि सुरति सुरबीथि बिकासी।। + +राम पेम बिधु अचल अदोषा। सहित समाज सोह नित चोखा।। + +भरत रहनि समुझनि करतूती। भगति बिरति गुन बिमल बिभूती।। + +बरनत सकल सुकचि सकुचाहीं। सेस गनेस गिरा गमु नाहीं।।नित पूजत प्रभु पाँवरी प्रीति न हृदयँ समाति।। + +मागि मागि आयसु करत राज काज बहु भाँति।।325।।मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन्दुमानन्ददं + +वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्। + +मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शङ्करं + +वन्दे ब्रह्मकुलं कलंकशमनं श्रीरामभूपप्रियम्।।1।। + +सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरं सुन्दरं + +पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम् + +राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितं + +सीतालक्ष्मणसंयुतं पथिगतं रामाभिरामं भजे।।2।।उमा राम गुन गूढ़ पंडित मुनि पावहिं बिरति। + +पावहिं मोह बिमूढ़ जे हरि बिमुख न धर्म रति।।पुर नर भरत प्रीति मैं गाई। मति अनुरूप अनूप सुहाई।। + +अब प्रभु चरित सुनहु अति पावन। करत जे बन सुर नर मुनि भावन।। + +एक बार चुनि कुसुम सुहाए। निज कर भूषन राम बनाए।। + +सीतहि पहिराए प्रभु सादर। बैठे फटिक सिला पर सुंदर।। + +सुरपति सुत धरि बायस बेषा। सठ चाहत रघुपति बल देखा।। + +जिमि पिपीलिका सागर थाहा। मह�� मंदमति पावन चाहा।। + +सीता चरन चौंच हति भागा। मूढ़ मंदमति कारन कागा।। + +चला रुधिर रघुनायक जाना। सींक धनुष सायक संधाना।।अति कृपाल रघुनायक सदा दीन पर नेह। + +ता सन आइ कीन्ह छलु मूरख अवगुन गेह।।1।।प्रेरित मंत्र ब्रह्मसर धावा। चला भाजि बायस भय पावा।। + +धरि निज रुप गयउ पितु पाहीं। राम बिमुख राखा तेहि नाहीं।। + +भा निरास उपजी मन त्रासा। जथा चक्र भय रिषि दुर्बासा।। + +ब्रह्मधाम सिवपुर सब लोका। फिरा श्रमित ब्याकुल भय सोका।। + +काहूँ बैठन कहा न ओही। राखि को सकइ राम कर द्रोही।। + +मातु मृत्यु पितु समन समाना। सुधा होइ बिष सुनु हरिजाना।। + +मित्र करइ सत रिपु कै करनी। ता कहँ बिबुधनदी बैतरनी।। + +सब जगु ताहि अनलहु ते ताता। जो रघुबीर बिमुख सुनु भ्राता।। + +नारद देखा बिकल जयंता। लागि दया कोमल चित संता।। + +पठवा तुरत राम पहिं ताही। कहेसि पुकारि प्रनत हित पाही।। + +आतुर सभय गहेसि पद जाई। त्राहि त्राहि दयाल रघुराई।। + +अतुलित बल अतुलित प्रभुताई। मैं मतिमंद जानि नहिं पाई।। + +निज कृत कर्म जनित फल पायउँ। अब प्रभु पाहि सरन तकि आयउँ।। + +सुनि कृपाल अति आरत बानी। एकनयन करि तजा भवानी।।कीन्ह मोह बस द्रोह जद्यपि तेहि कर बध उचित। + +प्रभु छाड़ेउ करि छोह को कृपाल रघुबीर सम।।2।।रघुपति चित्रकूट बसि नाना। चरित किए श्रुति सुधा समाना।। + +बहुरि राम अस मन अनुमाना। होइहि भीर सबहिं मोहि जाना।। + +सकल मुनिन्ह सन बिदा कराई। सीता सहित चले द्वौ भाई।। + +अत्रि के आश्रम जब प्रभु गयऊ। सुनत महामुनि हरषित भयऊ।। + +पुलकित गात अत्रि उठि धाए। देखि रामु आतुर चलि आए।। + +करत दंडवत मुनि उर लाए। प्रेम बारि द्वौ जन अन्हवाए।। + +देखि राम छबि नयन जुड़ाने। सादर निज आश्रम तब आने।। + +करि पूजा कहि बचन सुहाए। दिए मूल फल प्रभु मन भाए।।प्रभु आसन आसीन भरि लोचन सोभा निरखि। + +मुनिबर परम प्रबीन जोरि पानि अस्तुति करत।।3।।नमामि भक्त वत्सलं। कृपालु शील कोमलं।। + +भजामि ते पदांबुजं। अकामिनां स्वधामदं।। + +निकाम श्याम सुंदरं। भवाम्बुनाथ मंदरं।। + +प्रफुल्ल कंज लोचनं। मदादि दोष मोचनं।। + +प्रलंब बाहु विक्रमं। प्रभोऽप्रमेय वैभवं।। + +निषंग चाप सायकं। धरं त्रिलोक नायकं।। + +दिनेश वंश मंडनं। महेश चाप खंडनं।। + +मुनींद्र संत रंजनं। सुरारि वृंद भंजनं।। + +मनोज वैरि वंदितं। अजादि देव सेवितं।। + +विशुद्ध बोध विग्रह���। समस्त दूषणापहं।। + +नमामि इंदिरा पतिं। सुखाकरं सतां गतिं।। + +भजे सशक्ति सानुजं। शची पतिं प्रियानुजं।। + +त्वदंघ्रि मूल ये नराः। भजंति हीन मत्सरा।। + +पतंति नो भवार्णवे। वितर्क वीचि संकुले।। + +विविक्त वासिनः सदा। भजंति मुक्तये मुदा।। + +निरस्य इंद्रियादिकं। प्रयांति ते गतिं स्वकं।। + +तमेकमभ्दुतं प्रभुं। निरीहमीश्वरं विभुं।। + +जगद्गुरुं च शाश्वतं। तुरीयमेव केवलं।। + +भजामि भाव वल्लभं। कुयोगिनां सुदुर्लभं।। + +स्वभक्त कल्प पादपं। समं सुसेव्यमन्वहं।। + +अनूप रूप भूपतिं। नतोऽहमुर्विजा पतिं।। + +प्रसीद मे नमामि ते। पदाब्ज भक्ति देहि मे।। + +पठंति ये स्तवं इदं। नरादरेण ते पदं।। + +व्रजंति नात्र संशयं। त्वदीय भक्ति संयुता।।बिनती करि मुनि नाइ सिरु कह कर जोरि बहोरि। + +चरन सरोरुह नाथ जनि कबहुँ तजै मति मोरि।।4।।अनुसुइया के पद गहि सीता। मिली बहोरि सुसील बिनीता।। + +रिषिपतिनी मन सुख अधिकाई। आसिष देइ निकट बैठाई।। + +दिब्य बसन भूषन पहिराए। जे नित नूतन अमल सुहाए।। + +कह रिषिबधू सरस मृदु बानी। नारिधर्म कछु ब्याज बखानी।। + +मातु पिता भ्राता हितकारी। मितप्रद सब सुनु राजकुमारी।। + +अमित दानि भर्ता बयदेही। अधम सो नारि जो सेव न तेही।। + +धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी।। + +बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना। अधं बधिर क्रोधी अति दीना।। + +ऐसेहु पति कर किएँ अपमाना। नारि पाव जमपुर दुख नाना।। + +एकइ धर्म एक ब्रत नेमा। कायँ बचन मन पति पद प्रेमा।। + +जग पति ब्रता चारि बिधि अहहिं। बेद पुरान संत सब कहहिं।। + +उत्तम के अस बस मन माहीं। सपनेहुँ आन पुरुष जग नाहीं।। + +मध्यम परपति देखइ कैसें। भ्राता पिता पुत्र निज जैंसें।। + +धर्म बिचारि समुझि कुल रहई। सो निकिष्ट त्रिय श्रुति अस कहई।। + +बिनु अवसर भय तें रह जोई। जानेहु अधम नारि जग सोई।। + +पति बंचक परपति रति करई। रौरव नरक कल्प सत परई।। + +छन सुख लागि जनम सत कोटि। दुख न समुझ तेहि सम को खोटी।। + +बिनु श्रम नारि परम गति लहई। पतिब्रत धर्म छाड़ि छल गहई।। + +पति प्रतिकुल जनम जहँ जाई। बिधवा होई पाई तरुनाई।।सहज अपावनि नारि पति सेवत सुभ गति लहइ। + +जसु गावत श्रुति चारि अजहु तुलसिका हरिहि प्रिय।।5(क)।। + +सुनु सीता तव नाम सुमिर नारि पतिब्रत करहि। + +तोहि प्रानप्रिय राम कहिउँ कथा संसार हित।।5(ख)।।सुनि जानकीं परम सुखु पावा। सादर तासु चरन सिरु नावा।। + +तब मुनि सन कह कृपानिधाना। आयसु होइ जाउँ बन आना।। + +संतत मो पर कृपा करेहू। सेवक जानि तजेहु जनि नेहू।। + +धर्म धुरंधर प्रभु कै बानी। सुनि सप्रेम बोले मुनि ग्यानी।। + +जासु कृपा अज सिव सनकादी। चहत सकल परमारथ बादी।। + +ते तुम्ह राम अकाम पिआरे। दीन बंधु मृदु बचन उचारे।। + +अब जानी मैं श्री चतुराई। भजी तुम्हहि सब देव बिहाई।। + +जेहि समान अतिसय नहिं कोई। ता कर सील कस न अस होई।। + +केहि बिधि कहौं जाहु अब स्वामी। कहहु नाथ तुम्ह अंतरजामी।। + +अस कहि प्रभु बिलोकि मुनि धीरा। लोचन जल बह पुलक सरीरा।।तन पुलक निर्भर प्रेम पुरन नयन मुख पंकज दिए। + +मन ग्यान गुन गोतीत प्रभु मैं दीख जप तप का किए।। + +जप जोग धर्म समूह तें नर भगति अनुपम पावई। + +रधुबीर चरित पुनीत निसि दिन दास तुलसी गावई।।कलिमल समन दमन मन राम सुजस सुखमूल। + +सादर सुनहि जे तिन्ह पर राम रहहिं अनुकूल।।6(क)।। + +कठिन काल मल कोस धर्म न ग्यान न जोग जप। + +परिहरि सकल भरोस रामहि भजहिं ते चतुर नर।।6(ख)।।मुनि पद कमल नाइ करि सीसा। चले बनहि सुर नर मुनि ईसा।। + +आगे राम अनुज पुनि पाछें। मुनि बर बेष बने अति काछें।। + +उमय बीच श्री सोहइ कैसी। ब्रह्म जीव बिच माया जैसी।। + +सरिता बन गिरि अवघट घाटा। पति पहिचानी देहिं बर बाटा।। + +जहँ जहँ जाहि देव रघुराया। करहिं मेध तहँ तहँ नभ छाया।। + +मिला असुर बिराध मग जाता। आवतहीं रघुवीर निपाता।। + +तुरतहिं रुचिर रूप तेहिं पावा। देखि दुखी निज धाम पठावा।। + +पुनि आए जहँ मुनि सरभंगा। सुंदर अनुज जानकी संगा।।देखी राम मुख पंकज मुनिबर लोचन भृंग। + +सादर पान करत अति धन्य जन्म सरभंग।।7।।कह मुनि सुनु रघुबीर कृपाला। संकर मानस राजमराला।। + +जात रहेउँ बिरंचि के धामा। सुनेउँ श्रवन बन ऐहहिं रामा।। + +चितवत पंथ रहेउँ दिन राती। अब प्रभु देखि जुड़ानी छाती।। + +नाथ सकल साधन मैं हीना। कीन्ही कृपा जानि जन दीना।। + +सो कछु देव न मोहि निहोरा। निज पन राखेउ जन मन चोरा।। + +तब लगि रहहु दीन हित लागी। जब लगि मिलौं तुम्हहि तनु त्यागी।। + +जोग जग्य जप तप ब्रत कीन्हा। प्रभु कहँ देइ भगति बर लीन्हा।। + +एहि बिधि सर रचि मुनि सरभंगा। बैठे हृदयँ छाड़ि सब संगा।।सीता अनुज समेत प्रभु नील जलद तनु स्याम। + +मम हियँ बसहु निरंतर सगुनरुप श्रीराम।।8।।अस कहि जोग अगिनि तनु जारा। राम कृपाँ बैकुंठ सिधारा।। + +ताते मुनि हरि लीन न भयऊ। प्रथमहिं भेद भगति बर लयऊ।। + +रिषि निकाय मुनिबर गति देखि। सुखी भए निज हृदयँ बिसेषी।। + +अस्तुति करहिं सकल मुनि बृंदा। जयति प्रनत हित करुना कंदा।। + +पुनि रघुनाथ चले बन आगे। मुनिबर बृंद बिपुल सँग लागे।। + +अस्थि समूह देखि रघुराया। पूछी मुनिन्ह लागि अति दाया।। + +जानतहुँ पूछिअ कस स्वामी। सबदरसी तुम्ह अंतरजामी।। + +निसिचर निकर सकल मुनि खाए। सुनि रघुबीर नयन जल छाए।।निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह। + +सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह।।9।।मुनि अगस्ति कर सिष्य सुजाना। नाम सुतीछन रति भगवाना।। + +मन क्रम बचन राम पद सेवक। सपनेहुँ आन भरोस न देवक।। + +प्रभु आगवनु श्रवन सुनि पावा। करत मनोरथ आतुर धावा।। + +हे बिधि दीनबंधु रघुराया। मो से सठ पर करिहहिं दाया।। + +सहित अनुज मोहि राम गोसाई। मिलिहहिं निज सेवक की नाई।। + +मोरे जियँ भरोस दृढ़ नाहीं। भगति बिरति न ग्यान मन माहीं।। + +नहिं सतसंग जोग जप जागा। नहिं दृढ़ चरन कमल अनुरागा।। + +एक बानि करुनानिधान की। सो प्रिय जाकें गति न आन की।। + +होइहैं सुफल आजु मम लोचन। देखि बदन पंकज भव मोचन।। + +निर्भर प्रेम मगन मुनि ग्यानी। कहि न जाइ सो दसा भवानी।। + +दिसि अरु बिदिसि पंथ नहिं सूझा। को मैं चलेउँ कहाँ नहिं बूझा।। + +कबहुँक फिरि पाछें पुनि जाई। कबहुँक नृत्य करइ गुन गाई।। + +अबिरल प्रेम भगति मुनि पाई। प्रभु देखैं तरु ओट लुकाई।। + +अतिसय प्रीति देखि रघुबीरा। प्रगटे हृदयँ हरन भव भीरा।। + +मुनि मग माझ अचल होइ बैसा। पुलक सरीर पनस फल जैसा।। + +तब रघुनाथ निकट चलि आए। देखि दसा निज जन मन भाए।। + +मुनिहि राम बहु भाँति जगावा। जाग न ध्यानजनित सुख पावा।। + +भूप रूप तब राम दुरावा। हृदयँ चतुर्भुज रूप देखावा।। + +मुनि अकुलाइ उठा तब कैसें। बिकल हीन मनि फनि बर जैसें।। + +आगें देखि राम तन स्यामा। सीता अनुज सहित सुख धामा।। + +परेउ लकुट इव चरनन्हि लागी। प्रेम मगन मुनिबर बड़भागी।। + +भुज बिसाल गहि लिए उठाई। परम प्रीति राखे उर लाई।। + +मुनिहि मिलत अस सोह कृपाला। कनक तरुहि जनु भेंट तमाला।। + +राम बदनु बिलोक मुनि ठाढ़ा। मानहुँ चित्र माझ लिखि काढ़ा।।तब मुनि हृदयँ धीर धीर गहि पद बारहिं बार। + +निज आश्रम प्रभु आनि करि पूजा बिबिध प्रकार।।10।।कह मुनि प्रभु सुनु बिनती मोरी। अस्तुति करौं कवन बिधि तोरी।। + +महिमा अमित मोरि मति थोरी��� रबि सन्मुख खद्योत अँजोरी।। + +श्याम तामरस दाम शरीरं। जटा मुकुट परिधन मुनिचीरं।। + +पाणि चाप शर कटि तूणीरं। नौमि निरंतर श्रीरघुवीरं।। + +मोह विपिन घन दहन कृशानुः। संत सरोरुह कानन भानुः।। + +निशिचर करि वरूथ मृगराजः। त्रातु सदा नो भव खग बाजः।। + +अरुण नयन राजीव सुवेशं। सीता नयन चकोर निशेशं।। + +हर ह्रदि मानस बाल मरालं। नौमि राम उर बाहु विशालं।। + +संशय सर्प ग्रसन उरगादः। शमन सुकर्कश तर्क विषादः।। + +भव भंजन रंजन सुर यूथः। त्रातु सदा नो कृपा वरूथः।। + +निर्गुण सगुण विषम सम रूपं। ज्ञान गिरा गोतीतमनूपं।। + +अमलमखिलमनवद्यमपारं। नौमि राम भंजन महि भारं।। + +भक्त कल्पपादप आरामः। तर्जन क्रोध लोभ मद कामः।। + +अति नागर भव सागर सेतुः। त्रातु सदा दिनकर कुल केतुः।। + +अतुलित भुज प्रताप बल धामः। कलि मल विपुल विभंजन नामः।। + +धर्म वर्म नर्मद गुण ग्रामः। संतत शं तनोतु मम रामः।। + +जदपि बिरज ब्यापक अबिनासी। सब के हृदयँ निरंतर बासी।। + +तदपि अनुज श्री सहित खरारी। बसतु मनसि मम काननचारी।। + +जे जानहिं ते जानहुँ स्वामी। सगुन अगुन उर अंतरजामी।। + +जो कोसल पति राजिव नयना। करउ सो राम हृदय मम अयना। + +अस अभिमान जाइ जनि भोरे। मैं सेवक रघुपति पति मोरे।। + +सुनि मुनि बचन राम मन भाए। बहुरि हरषि मुनिबर उर लाए।। + +परम प्रसन्न जानु मुनि मोही। जो बर मागहु देउ सो तोही।। + +मुनि कह मै बर कबहुँ न जाचा। समुझि न परइ झूठ का साचा।। + +तुम्हहि नीक लागै रघुराई। सो मोहि देहु दास सुखदाई।। + +अबिरल भगति बिरति बिग्याना। होहु सकल गुन ग्यान निधाना।। + +प्रभु जो दीन्ह सो बरु मैं पावा। अब सो देहु मोहि जो भावा।।अनुज जानकी सहित प्रभु चाप बान धर राम। + +मम हिय गगन इंदु इव बसहु सदा निहकाम।।11।।एवमस्तु करि रमानिवासा। हरषि चले कुभंज रिषि पासा।। + +बहुत दिवस गुर दरसन पाएँ। भए मोहि एहिं आश्रम आएँ।। + +अब प्रभु संग जाउँ गुर पाहीं। तुम्ह कहँ नाथ निहोरा नाहीं।। + +देखि कृपानिधि मुनि चतुराई। लिए संग बिहसै द्वौ भाई।। + +पंथ कहत निज भगति अनूपा। मुनि आश्रम पहुँचे सुरभूपा।। + +तुरत सुतीछन गुर पहिं गयऊ। करि दंडवत कहत अस भयऊ।। + +नाथ कौसलाधीस कुमारा। आए मिलन जगत आधारा।। + +राम अनुज समेत बैदेही। निसि दिनु देव जपत हहु जेही।। + +सुनत अगस्ति तुरत उठि धाए। हरि बिलोकि लोचन जल छाए।। + +मुनि पद कमल परे द्वौ भाई। रिषि अति प्रीति लिए उर लाई।। + +सादर कुसल पूछि मुनि ग्यानी। आसन बर बैठारे आनी।। + +पुनि करि बहु प्रकार प्रभु पूजा। मोहि सम भाग्यवंत नहिं दूजा।। + +जहँ लगि रहे अपर मुनि बृंदा। हरषे सब बिलोकि सुखकंदा।।मुनि समूह महँ बैठे सन्मुख सब की ओर। + +सरद इंदु तन चितवत मानहुँ निकर चकोर।।12।।तब रघुबीर कहा मुनि पाहीं। तुम्ह सन प्रभु दुराव कछु नाही।। + +तुम्ह जानहु जेहि कारन आयउँ। ताते तात न कहि समुझायउँ।। + +अब सो मंत्र देहु प्रभु मोही। जेहि प्रकार मारौं मुनिद्रोही।। + +मुनि मुसकाने सुनि प्रभु बानी। पूछेहु नाथ मोहि का जानी।। + +तुम्हरेइँ भजन प्रभाव अघारी। जानउँ महिमा कछुक तुम्हारी।। + +ऊमरि तरु बिसाल तव माया। फल ब्रह्मांड अनेक निकाया।। + +जीव चराचर जंतु समाना। भीतर बसहि न जानहिं आना।। + +ते फल भच्छक कठिन कराला। तव भयँ डरत सदा सोउ काला।। + +ते तुम्ह सकल लोकपति साईं। पूँछेहु मोहि मनुज की नाईं।। + +यह बर मागउँ कृपानिकेता। बसहु हृदयँ श्री अनुज समेता।। + +अबिरल भगति बिरति सतसंगा। चरन सरोरुह प्रीति अभंगा।। + +जद्यपि ब्रह्म अखंड अनंता। अनुभव गम्य भजहिं जेहि संता।। + +अस तव रूप बखानउँ जानउँ। फिरि फिरि सगुन ब्रह्म रति मानउँ।। + +संतत दासन्ह देहु बड़ाई। तातें मोहि पूँछेहु रघुराई।। + +है प्रभु परम मनोहर ठाऊँ। पावन पंचबटी तेहि नाऊँ।। + +दंडक बन पुनीत प्रभु करहू। उग्र साप मुनिबर कर हरहू।। + +बास करहु तहँ रघुकुल राया। कीजे सकल मुनिन्ह पर दाया।। + +चले राम मुनि आयसु पाई। तुरतहिं पंचबटी निअराई।।गीधराज सैं भैंट भइ बहु बिधि प्रीति बढ़ाइ।। + +गोदावरी निकट प्रभु रहे परन गृह छाइ।।13।।जब ते राम कीन्ह तहँ बासा। सुखी भए मुनि बीती त्रासा।। + +गिरि बन नदीं ताल छबि छाए। दिन दिन प्रति अति हौहिं सुहाए।। + +खग मृग बृंद अनंदित रहहीं। मधुप मधुर गंजत छबि लहहीं।। + +सो बन बरनि न सक अहिराजा। जहाँ प्रगट रघुबीर बिराजा।। + +एक बार प्रभु सुख आसीना। लछिमन बचन कहे छलहीना।। + +सुर नर मुनि सचराचर साईं। मैं पूछउँ निज प्रभु की नाई।। + +मोहि समुझाइ कहहु सोइ देवा। सब तजि करौं चरन रज सेवा।। + +कहहु ग्यान बिराग अरु माया। कहहु सो भगति करहु जेहिं दाया।।ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ।। + +जातें होइ चरन रति सोक मोह भ्रम जाइ।।14।।थोरेहि महँ सब कहउँ बुझाई। सुनहु तात मति मन चित लाई।। + +मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया।। + +गो गोचर जहँ लगि मन जाई। सो सब माया जानेहु भाई।। + +तेहि कर भेद सुनहु तुम्ह सोऊ। बिद्या अपर अबिद्या दोऊ।। + +एक दुष्ट अतिसय दुखरूपा। जा बस जीव परा भवकूपा।। + +एक रचइ जग गुन बस जाकें। प्रभु प्रेरित नहिं निज बल ताकें।। + +ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं। देख ब्रह्म समान सब माही।। + +कहिअ तात सो परम बिरागी। तृन सम सिद्धि तीनि गुन त्यागी।।माया ईस न आपु कहुँ जान कहिअ सो जीव। + +बंध मोच्छ प्रद सर्बपर माया प्रेरक सीव।।15।।धर्म तें बिरति जोग तें ग्याना। ग्यान मोच्छप्रद बेद बखाना।। + +जातें बेगि द्रवउँ मैं भाई। सो मम भगति भगत सुखदाई।। + +सो सुतंत्र अवलंब न आना। तेहि आधीन ग्यान बिग्याना।। + +भगति तात अनुपम सुखमूला। मिलइ जो संत होइँ अनुकूला।। + +भगति कि साधन कहउँ बखानी। सुगम पंथ मोहि पावहिं प्रानी।। + +प्रथमहिं बिप्र चरन अति प्रीती। निज निज कर्म निरत श्रुति रीती।। + +एहि कर फल पुनि बिषय बिरागा। तब मम धर्म उपज अनुरागा।। + +श्रवनादिक नव भक्ति दृढ़ाहीं। मम लीला रति अति मन माहीं।। + +संत चरन पंकज अति प्रेमा। मन क्रम बचन भजन दृढ़ नेमा।। + +गुरु पितु मातु बंधु पति देवा। सब मोहि कहँ जाने दृढ़ सेवा।। + +मम गुन गावत पुलक सरीरा। गदगद गिरा नयन बह नीरा।। + +काम आदि मद दंभ न जाकें। तात निरंतर बस मैं ताकें।।बचन कर्म मन मोरि गति भजनु करहिं निःकाम।। + +तिन्ह के हृदय कमल महुँ करउँ सदा बिश्राम।।16।।भगति जोग सुनि अति सुख पावा। लछिमन प्रभु चरनन्हि सिरु नावा।। + +एहि बिधि गए कछुक दिन बीती। कहत बिराग ग्यान गुन नीती।। + +सूपनखा रावन कै बहिनी। दुष्ट हृदय दारुन जस अहिनी।। + +पंचबटी सो गइ एक बारा। देखि बिकल भइ जुगल कुमारा।। + +भ्राता पिता पुत्र उरगारी। पुरुष मनोहर निरखत नारी।। + +होइ बिकल सक मनहि न रोकी। जिमि रबिमनि द्रव रबिहि बिलोकी।। + +रुचिर रुप धरि प्रभु पहिं जाई। बोली बचन बहुत मुसुकाई।। + +तुम्ह सम पुरुष न मो सम नारी। यह सँजोग बिधि रचा बिचारी।। + +मम अनुरूप पुरुष जग माहीं। देखेउँ खोजि लोक तिहु नाहीं।। + +ताते अब लगि रहिउँ कुमारी। मनु माना कछु तुम्हहि निहारी।। + +सीतहि चितइ कही प्रभु बाता। अहइ कुआर मोर लघु भ्राता।। + +गइ लछिमन रिपु भगिनी जानी। प्रभु बिलोकि बोले मृदु बानी।। + +सुंदरि सुनु मैं उन्ह कर दासा। पराधीन नहिं तोर सुपासा।। + +प्रभु समर्थ कोसलपुर राजा। जो कछु करहिं उनहि सब छाजा।�� + +सेवक सुख चह मान भिखारी। ब्यसनी धन सुभ गति बिभिचारी।। + +लोभी जसु चह चार गुमानी। नभ दुहि दूध चहत ए प्रानी।। + +पुनि फिरि राम निकट सो आई। प्रभु लछिमन पहिं बहुरि पठाई।। + +लछिमन कहा तोहि सो बरई। जो तृन तोरि लाज परिहरई।। + +तब खिसिआनि राम पहिं गई। रूप भयंकर प्रगटत भई।। + +सीतहि सभय देखि रघुराई। कहा अनुज सन सयन बुझाई।।लछिमन अति लाघवँ सो नाक कान बिनु कीन्हि। + +ताके कर रावन कहँ मनौ चुनौती दीन्हि।।17।।नाक कान बिनु भइ बिकरारा। जनु स्त्रव सैल गैरु कै धारा।। + +खर दूषन पहिं गइ बिलपाता। धिग धिग तव पौरुष बल भ्राता।। + +तेहि पूछा सब कहेसि बुझाई। जातुधान सुनि सेन बनाई।। + +धाए निसिचर निकर बरूथा। जनु सपच्छ कज्जल गिरि जूथा।। + +नाना बाहन नानाकारा। नानायुध धर घोर अपारा।। + +सुपनखा आगें करि लीनी। असुभ रूप श्रुति नासा हीनी।। + +असगुन अमित होहिं भयकारी। गनहिं न मृत्यु बिबस सब झारी।। + +गर्जहि तर्जहिं गगन उड़ाहीं। देखि कटकु भट अति हरषाहीं।। + +कोउ कह जिअत धरहु द्वौ भाई। धरि मारहु तिय लेहु छड़ाई।। + +धूरि पूरि नभ मंडल रहा। राम बोलाइ अनुज सन कहा।। + +लै जानकिहि जाहु गिरि कंदर। आवा निसिचर कटकु भयंकर।। + +रहेहु सजग सुनि प्रभु कै बानी। चले सहित श्री सर धनु पानी।। + +देखि राम रिपुदल चलि आवा। बिहसि कठिन कोदंड चढ़ावा।।कोदंड कठिन चढ़ाइ सिर जट जूट बाँधत सोह क्यों। + +मरकत सयल पर लरत दामिनि कोटि सों जुग भुजग ज्यों।। + +कटि कसि निषंग बिसाल भुज गहि चाप बिसिख सुधारि कै।। + +चितवत मनहुँ मृगराज प्रभु गजराज घटा निहारि कै।।आइ गए बगमेल धरहु धरहु धावत सुभट। + +जथा बिलोकि अकेल बाल रबिहि घेरत दनुज।।18।।प्रभु बिलोकि सर सकहिं न डारी। थकित भई रजनीचर धारी।। + +सचिव बोलि बोले खर दूषन। यह कोउ नृपबालक नर भूषन।। + +नाग असुर सुर नर मुनि जेते। देखे जिते हते हम केते।। + +हम भरि जन्म सुनहु सब भाई। देखी नहिं असि सुंदरताई।। + +जद्यपि भगिनी कीन्ह कुरूपा। बध लायक नहिं पुरुष अनूपा।। + +देहु तुरत निज नारि दुराई। जीअत भवन जाहु द्वौ भाई।। + +मोर कहा तुम्ह ताहि सुनावहु। तासु बचन सुनि आतुर आवहु।। + +दूतन्ह कहा राम सन जाई। सुनत राम बोले मुसकाई।। + +हम छत्री मृगया बन करहीं। तुम्ह से खल मृग खौजत फिरहीं।। + +रिपु बलवंत देखि नहिं डरहीं। एक बार कालहु सन लरहीं।। + +जद्यपि मनुज दनुज कुल घालक। मुनि पालक खल सालक बालक।। + +जौं न ह���इ बल घर फिरि जाहू। समर बिमुख मैं हतउँ न काहू।। + +रन चढ़ि करिअ कपट चतुराई। रिपु पर कृपा परम कदराई।। + +दूतन्ह जाइ तुरत सब कहेऊ। सुनि खर दूषन उर अति दहेऊ।।उर दहेउ कहेउ कि धरहु धाए बिकट भट रजनीचरा। + +सर चाप तोमर सक्ति सूल कृपान परिघ परसु धरा।। + +प्रभु कीन्ह धनुष टकोर प्रथम कठोर घोर भयावहा। + +भए बधिर ब्याकुल जातुधान न ग्यान तेहि अवसर रहा।।सावधान होइ धाए जानि सबल आराति। + +लागे बरषन राम पर अस्त्र सस्त्र बहु भाँति।।19(क)।। + +तिन्ह के आयुध तिल सम करि काटे रघुबीर। + +तानि सरासन श्रवन लगि पुनि छाँड़े निज तीर।।19(ख)।।तब चले जान बबान कराल। फुंकरत जनु बहु ब्याल।। + +कोपेउ समर श्रीराम। चले बिसिख निसित निकाम।। + +अवलोकि खरतर तीर। मुरि चले निसिचर बीर।। + +भए क्रुद्ध तीनिउ भाइ। जो भागि रन ते जाइ।। + +तेहि बधब हम निज पानि। फिरे मरन मन महुँ ठानि।। + +आयुध अनेक प्रकार। सनमुख ते करहिं प्रहार।। + +रिपु परम कोपे जानि। प्रभु धनुष सर संधानि।। + +छाँड़े बिपुल नाराच। लगे कटन बिकट पिसाच।। + +उर सीस भुज कर चरन। जहँ तहँ लगे महि परन।। + +चिक्करत लागत बान। धर परत कुधर समान।। + +भट कटत तन सत खंड। पुनि उठत करि पाषंड।। + +नभ उड़त बहु भुज मुंड। बिनु मौलि धावत रुंड।। + +खग कंक काक सृगाल। कटकटहिं कठिन कराल।। + +कटकटहिं ज़ंबुक भूत प्रेत पिसाच खर्पर संचहीं। + +बेताल बीर कपाल ताल बजाइ जोगिनि नंचहीं।। + +रघुबीर बान प्रचंड खंडहिं भटन्ह के उर भुज सिरा। + +जहँ तहँ परहिं उठि लरहिं धर धरु धरु करहिं भयकर गिरा।। + +अंतावरीं गहि उड़त गीध पिसाच कर गहि धावहीं।। + +संग्राम पुर बासी मनहुँ बहु बाल गुड़ी उड़ावहीं।। + +मारे पछारे उर बिदारे बिपुल भट कहँरत परे। + +अवलोकि निज दल बिकल भट तिसिरादि खर दूषन फिरे।। + +सर सक्ति तोमर परसु सूल कृपान एकहि बारहीं। + +करि कोप श्रीरघुबीर पर अगनित निसाचर डारहीं।। + +प्रभु निमिष महुँ रिपु सर निवारि पचारि डारे सायका। + +दस दस बिसिख उर माझ मारे सकल निसिचर नायका।। + +महि परत उठि भट भिरत मरत न करत माया अति घनी। + +सुर डरत चौदह सहस प्रेत बिलोकि एक अवध धनी।। + +सुर मुनि सभय प्रभु देखि मायानाथ अति कौतुक कर् यो। + +देखहि परसपर राम करि संग्राम रिपुदल लरि मर् यो।।राम राम कहि तनु तजहिं पावहिं पद निर्बान। + +करि उपाय रिपु मारे छन महुँ कृपानिधान।।20(क)।। + +हरषित बरषहिं सुमन सुर बाजहिं गगन निसान। + +अस्तुति करि करि सब चले सोभित बिबिध बिमान।।20(ख)।।जब रघुनाथ समर रिपु जीते। सुर नर मुनि सब के भय बीते।। + +तब लछिमन सीतहि लै आए। प्रभु पद परत हरषि उर लाए। + +सीता चितव स्याम मृदु गाता। परम प्रेम लोचन न अघाता।। + +पंचवटीं बसि श्रीरघुनायक। करत चरित सुर मुनि सुखदायक।। + +धुआँ देखि खरदूषन केरा। जाइ सुपनखाँ रावन प्रेरा।। + +बोलि बचन क्रोध करि भारी। देस कोस कै सुरति बिसारी।। + +करसि पान सोवसि दिनु राती। सुधि नहिं तव सिर पर आराती।। + +राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा। हरिहि समर्पे बिनु सतकर्मा।। + +बिद्या बिनु बिबेक उपजाएँ। श्रम फल पढ़े किएँ अरु पाएँ।। + +संग ते जती कुमंत्र ते राजा। मान ते ग्यान पान तें लाजा।। + +प्रीति प्रनय बिनु मद ते गुनी। नासहि बेगि नीति अस सुनी।।रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनिअ न छोट करि। + +अस कहि बिबिध बिलाप करि लागी रोदन करन।।21(क)।। + +सभा माझ परि ब्याकुल बहु प्रकार कह रोइ। + +तोहि जिअत दसकंधर मोरि कि असि गति होइ।।21(ख)।।सुनत सभासद उठे अकुलाई। समुझाई गहि बाहँ उठाई।। + +कह लंकेस कहसि निज बाता। केंइँ तव नासा कान निपाता।। + +अवध नृपति दसरथ के जाए। पुरुष सिंघ बन खेलन आए।। + +समुझि परी मोहि उन्ह कै करनी। रहित निसाचर करिहहिं धरनी।। + +जिन्ह कर भुजबल पाइ दसानन। अभय भए बिचरत मुनि कानन।। + +देखत बालक काल समाना। परम धीर धन्वी गुन नाना।। + +अतुलित बल प्रताप द्वौ भ्राता। खल बध रत सुर मुनि सुखदाता।। + +सोभाधाम राम अस नामा। तिन्ह के संग नारि एक स्यामा।। + +रुप रासि बिधि नारि सँवारी। रति सत कोटि तासु बलिहारी।। + +तासु अनुज काटे श्रुति नासा। सुनि तव भगिनि करहिं परिहासा।। + +खर दूषन सुनि लगे पुकारा। छन महुँ सकल कटक उन्ह मारा।। + +खर दूषन तिसिरा कर घाता। सुनि दससीस जरे सब गाता।।सुपनखहि समुझाइ करि बल बोलेसि बहु भाँति। + +गयउ भवन अति सोचबस नीद परइ नहिं राति।।22।।सुर नर असुर नाग खग माहीं। मोरे अनुचर कहँ कोउ नाहीं।। + +खर दूषन मोहि सम बलवंता। तिन्हहि को मारइ बिनु भगवंता।। + +सुर रंजन भंजन महि भारा। जौं भगवंत लीन्ह अवतारा।। + +तौ मै जाइ बैरु हठि करऊँ। प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ।। + +होइहि भजनु न तामस देहा। मन क्रम बचन मंत्र दृढ़ एहा।। + +जौं नररुप भूपसुत कोऊ। हरिहउँ नारि जीति रन दोऊ।। + +चला अकेल जान चढि तहवाँ। बस मारीच सिंधु तट जहवाँ।। + +इहाँ राम जसि जुगुति बनाई। सुनहु उमा स�� कथा सुहाई।।लछिमन गए बनहिं जब लेन मूल फल कंद। + +जनकसुता सन बोले बिहसि कृपा सुख बृंद।। 23।।सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला। मैं कछु करबि ललित नरलीला।। + +तुम्ह पावक महुँ करहु निवासा। जौ लगि करौं निसाचर नासा।। + +जबहिं राम सब कहा बखानी। प्रभु पद धरि हियँ अनल समानी।। + +निज प्रतिबिंब राखि तहँ सीता। तैसइ सील रुप सुबिनीता।। + +लछिमनहूँ यह मरमु न जाना। जो कछु चरित रचा भगवाना।। + +दसमुख गयउ जहाँ मारीचा। नाइ माथ स्वारथ रत नीचा।। + +नवनि नीच कै अति दुखदाई। जिमि अंकुस धनु उरग बिलाई।। + +भयदायक खल कै प्रिय बानी। जिमि अकाल के कुसुम भवानी।।करि पूजा मारीच तब सादर पूछी बात। + +कवन हेतु मन ब्यग्र अति अकसर आयहु तात।।24।।दसमुख सकल कथा तेहि आगें। कही सहित अभिमान अभागें।। + +होहु कपट मृग तुम्ह छलकारी। जेहि बिधि हरि आनौ नृपनारी।। + +तेहिं पुनि कहा सुनहु दससीसा। ते नररुप चराचर ईसा।। + +तासों तात बयरु नहिं कीजे। मारें मरिअ जिआएँ जीजै।। + +मुनि मख राखन गयउ कुमारा। बिनु फर सर रघुपति मोहि मारा।। + +सत जोजन आयउँ छन माहीं। तिन्ह सन बयरु किएँ भल नाहीं।। + +भइ मम कीट भृंग की नाई। जहँ तहँ मैं देखउँ दोउ भाई।। + +जौं नर तात तदपि अति सूरा। तिन्हहि बिरोधि न आइहि पूरा।।जेहिं ताड़का सुबाहु हति खंडेउ हर कोदंड।। + +खर दूषन तिसिरा बधेउ मनुज कि अस बरिबंड।।25।।जाहु भवन कुल कुसल बिचारी। सुनत जरा दीन्हिसि बहु गारी।। + +गुरु जिमि मूढ़ करसि मम बोधा। कहु जग मोहि समान को जोधा।। + +तब मारीच हृदयँ अनुमाना। नवहि बिरोधें नहिं कल्याना।। + +सस्त्री मर्मी प्रभु सठ धनी। बैद बंदि कबि भानस गुनी।। + +उभय भाँति देखा निज मरना। तब ताकिसि रघुनायक सरना।। + +उतरु देत मोहि बधब अभागें। कस न मरौं रघुपति सर लागें।। + +अस जियँ जानि दसानन संगा। चला राम पद प्रेम अभंगा।। + +मन अति हरष जनाव न तेही। आजु देखिहउँ परम सनेही।।निज परम प्रीतम देखि लोचन सुफल करि सुख पाइहौं। + +श्री सहित अनुज समेत कृपानिकेत पद मन लाइहौं।। + +निर्बान दायक क्रोध जा कर भगति अबसहि बसकरी। + +निज पानि सर संधानि सो मोहि बधिहि सुखसागर हरी।।मम पाछें धर धावत धरें सरासन बान। + +फिरि फिरि प्रभुहि बिलोकिहउँ धन्य न मो सम आन।।26।।तेहि बन निकट दसानन गयऊ। तब मारीच कपटमृग भयऊ।। + +अति बिचित्र कछु बरनि न जाई। कनक देह मनि रचित बनाई।। + +सीता परम रुचिर मृग देखा। अंग अंग सुमन���हर बेषा।। + +सुनहु देव रघुबीर कृपाला। एहि मृग कर अति सुंदर छाला।। + +सत्यसंध प्रभु बधि करि एही। आनहु चर्म कहति बैदेही।। + +तब रघुपति जानत सब कारन। उठे हरषि सुर काजु सँवारन।। + +मृग बिलोकि कटि परिकर बाँधा। करतल चाप रुचिर सर साँधा।। + +प्रभु लछिमनिहि कहा समुझाई। फिरत बिपिन निसिचर बहु भाई।। + +सीता केरि करेहु रखवारी। बुधि बिबेक बल समय बिचारी।। + +प्रभुहि बिलोकि चला मृग भाजी। धाए रामु सरासन साजी।। + +निगम नेति सिव ध्यान न पावा। मायामृग पाछें सो धावा।। + +कबहुँ निकट पुनि दूरि पराई। कबहुँक प्रगटइ कबहुँ छपाई।। + +प्रगटत दुरत करत छल भूरी। एहि बिधि प्रभुहि गयउ लै दूरी।। + +तब तकि राम कठिन सर मारा। धरनि परेउ करि घोर पुकारा।। + +लछिमन कर प्रथमहिं लै नामा। पाछें सुमिरेसि मन महुँ रामा।। + +प्रान तजत प्रगटेसि निज देहा। सुमिरेसि रामु समेत सनेहा।। + +अंतर प्रेम तासु पहिचाना। मुनि दुर्लभ गति दीन्हि सुजाना।।बिपुल सुमन सुर बरषहिं गावहिं प्रभु गुन गाथ। + +निज पद दीन्ह असुर कहुँ दीनबंधु रघुनाथ।।27।।खल बधि तुरत फिरे रघुबीरा। सोह चाप कर कटि तूनीरा।। + +आरत गिरा सुनी जब सीता। कह लछिमन सन परम सभीता।। + +जाहु बेगि संकट अति भ्राता। लछिमन बिहसि कहा सुनु माता।। + +भृकुटि बिलास सृष्टि लय होई। सपनेहुँ संकट परइ कि सोई।। + +मरम बचन जब सीता बोला। हरि प्रेरित लछिमन मन डोला।। + +बन दिसि देव सौंपि सब काहू। चले जहाँ रावन ससि राहू।। + +सून बीच दसकंधर देखा। आवा निकट जती कें बेषा।। + +जाकें डर सुर असुर डेराहीं। निसि न नीद दिन अन्न न खाहीं।। + +सो दससीस स्वान की नाई। इत उत चितइ चला भड़िहाई।। + +इमि कुपंथ पग देत खगेसा। रह न तेज बुधि बल लेसा।। + +नाना बिधि करि कथा सुहाई। राजनीति भय प्रीति देखाई।। + +कह सीता सुनु जती गोसाईं। बोलेहु बचन दुष्ट की नाईं।। + +तब रावन निज रूप देखावा। भई सभय जब नाम सुनावा।। + +कह सीता धरि धीरजु गाढ़ा। आइ गयउ प्रभु रहु खल ठाढ़ा।। + +जिमि हरिबधुहि छुद्र सस चाहा। भएसि कालबस निसिचर नाहा।। + +सुनत बचन दससीस रिसाना। मन महुँ चरन बंदि सुख माना।।क्रोधवंत तब रावन लीन्हिसि रथ बैठाइ। + +चला गगनपथ आतुर भयँ रथ हाँकि न जाइ।।28।।हा जग एक बीर रघुराया। केहिं अपराध बिसारेहु दाया।। + +आरति हरन सरन सुखदायक। हा रघुकुल सरोज दिननायक।। + +हा लछिमन तुम्हार नहिं दोसा। सो फलु पायउँ कीन्हेउँ रोसा।। + +बिबिध बिलाप करति बैदेही। भूरि कृपा प्रभु दूरि सनेही।। + +बिपति मोरि को प्रभुहि सुनावा। पुरोडास चह रासभ खावा।। + +सीता कै बिलाप सुनि भारी। भए चराचर जीव दुखारी।। + +गीधराज सुनि आरत बानी। रघुकुलतिलक नारि पहिचानी।। + +अधम निसाचर लीन्हे जाई। जिमि मलेछ बस कपिला गाई।। + +सीते पुत्रि करसि जनि त्रासा। करिहउँ जातुधान कर नासा।। + +धावा क्रोधवंत खग कैसें। छूटइ पबि परबत कहुँ जैसे।। + +रे रे दुष्ट ठाढ़ किन होही। निर्भय चलेसि न जानेहि मोही।। + +आवत देखि कृतांत समाना। फिरि दसकंधर कर अनुमाना।। + +की मैनाक कि खगपति होई। मम बल जान सहित पति सोई।। + +जाना जरठ जटायू एहा। मम कर तीरथ छाँड़िहि देहा।। + +सुनत गीध क्रोधातुर धावा। कह सुनु रावन मोर सिखावा।। + +तजि जानकिहि कुसल गृह जाहू। नाहिं त अस होइहि बहुबाहू।। + +राम रोष पावक अति घोरा। होइहि सकल सलभ कुल तोरा।। + +उतरु न देत दसानन जोधा। तबहिं गीध धावा करि क्रोधा।। + +धरि कच बिरथ कीन्ह महि गिरा। सीतहि राखि गीध पुनि फिरा।। + +चौचन्ह मारि बिदारेसि देही। दंड एक भइ मुरुछा तेही।। + +तब सक्रोध निसिचर खिसिआना। काढ़ेसि परम कराल कृपाना।। + +काटेसि पंख परा खग धरनी। सुमिरि राम करि अदभुत करनी।। + +सीतहि जानि चढ़ाइ बहोरी। चला उताइल त्रास न थोरी।। + +करति बिलाप जाति नभ सीता। ब्याध बिबस जनु मृगी सभीता।। + +गिरि पर बैठे कपिन्ह निहारी। कहि हरि नाम दीन्ह पट डारी।। + +एहि बिधि सीतहि सो लै गयऊ। बन असोक महँ राखत भयऊ।।हारि परा खल बहु बिधि भय अरु प्रीति देखाइ। + +तब असोक पादप तर राखिसि जतन कराइ।।29(क)।। + +जेहि बिधि कपट कुरंग सँग धाइ चले श्रीराम। + +सो छबि सीता राखि उर रटति रहति हरिनाम।।29(ख)।।रघुपति अनुजहि आवत देखी। बाहिज चिंता कीन्हि बिसेषी।। + +जनकसुता परिहरिहु अकेली। आयहु तात बचन मम पेली।। + +निसिचर निकर फिरहिं बन माहीं। मम मन सीता आश्रम नाहीं।। + +गहि पद कमल अनुज कर जोरी। कहेउ नाथ कछु मोहि न खोरी।। + +अनुज समेत गए प्रभु तहवाँ। गोदावरि तट आश्रम जहवाँ।। + +आश्रम देखि जानकी हीना। भए बिकल जस प्राकृत दीना।। + +हा गुन खानि जानकी सीता। रूप सील ब्रत नेम पुनीता।। + +लछिमन समुझाए बहु भाँती। पूछत चले लता तरु पाँती।। + +हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी। तुम्ह देखी सीता मृगनैनी।। + +खंजन सुक कपोत मृग मीना। मधुप निकर कोकिला प्रबीना।। + +कुंद कली दाड़िम दामिनी। कमल सरद स��ि अहिभामिनी।। + +बरुन पास मनोज धनु हंसा। गज केहरि निज सुनत प्रसंसा।। + +श्रीफल कनक कदलि हरषाहीं। नेकु न संक सकुच मन माहीं।। + +सुनु जानकी तोहि बिनु आजू। हरषे सकल पाइ जनु राजू।। + +किमि सहि जात अनख तोहि पाहीं । प्रिया बेगि प्रगटसि कस नाहीं।। + +एहि बिधि खौजत बिलपत स्वामी। मनहुँ महा बिरही अति कामी।। + +पूरनकाम राम सुख रासी। मनुज चरित कर अज अबिनासी।। + +आगे परा गीधपति देखा। सुमिरत राम चरन जिन्ह रेखा।।कर सरोज सिर परसेउ कृपासिंधु रधुबीर।। + +निरखि राम छबि धाम मुख बिगत भई सब पीर।।30।।तब कह गीध बचन धरि धीरा । सुनहु राम भंजन भव भीरा।। + +नाथ दसानन यह गति कीन्ही। तेहि खल जनकसुता हरि लीन्ही।। + +लै दच्छिन दिसि गयउ गोसाई। बिलपति अति कुररी की नाई।। + +दरस लागी प्रभु राखेंउँ प्राना। चलन चहत अब कृपानिधाना।। + +राम कहा तनु राखहु ताता। मुख मुसकाइ कही तेहिं बाता।। + +जा कर नाम मरत मुख आवा। अधमउ मुकुत होई श्रुति गावा।। + +सो मम लोचन गोचर आगें। राखौं देह नाथ केहि खाँगें।। + +जल भरि नयन कहहिं रघुराई। तात कर्म निज ते गतिं पाई।। + +परहित बस जिन्ह के मन माहीं। तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं।। + +तनु तजि तात जाहु मम धामा। देउँ काह तुम्ह पूरनकामा।।सीता हरन तात जनि कहहु पिता सन जाइ।। + +जौं मैं राम त कुल सहित कहिहि दसानन आइ।।31।।गीध देह तजि धरि हरि रुपा। भूषन बहु पट पीत अनूपा।। + +स्याम गात बिसाल भुज चारी। अस्तुति करत नयन भरि बारी।।जय राम रूप अनूप निर्गुन सगुन गुन प्रेरक सही। + +दससीस बाहु प्रचंड खंडन चंड सर मंडन मही।। + +पाथोद गात सरोज मुख राजीव आयत लोचनं। + +नित नौमि रामु कृपाल बाहु बिसाल भव भय मोचनं।।1।। + +बलमप्रमेयमनादिमजमब्यक्तमेकमगोचरं। + +गोबिंद गोपर द्वंद्वहर बिग्यानघन धरनीधरं।। + +जे राम मंत्र जपंत संत अनंत जन मन रंजनं। + +नित नौमि राम अकाम प्रिय कामादि खल दल गंजनं।।2। + +जेहि श्रुति निरंजन ब्रह्म ब्यापक बिरज अज कहि गावहीं।। + +करि ध्यान ग्यान बिराग जोग अनेक मुनि जेहि पावहीं।। + +सो प्रगट करुना कंद सोभा बृंद अग जग मोहई। + +मम हृदय पंकज भृंग अंग अनंग बहु छबि सोहई।।3।। + +जो अगम सुगम सुभाव निर्मल असम सम सीतल सदा। + +पस्यंति जं जोगी जतन करि करत मन गो बस सदा।। + +सो राम रमा निवास संतत दास बस त्रिभुवन धनी। + +मम उर बसउ सो समन संसृति जासु कीरति पावनी।।4।।अबिरल भगति मागि बर गीध गयउ हरिधाम। + +तेहि की क्रिया जथोचित निज कर कीन्ही राम।।32।।कोमल चित अति दीनदयाला। कारन बिनु रघुनाथ कृपाला।। + +गीध अधम खग आमिष भोगी। गति दीन्हि जो जाचत जोगी।। + +सुनहु उमा ते लोग अभागी। हरि तजि होहिं बिषय अनुरागी।। + +पुनि सीतहि खोजत द्वौ भाई। चले बिलोकत बन बहुताई।। + +संकुल लता बिटप घन कानन। बहु खग मृग तहँ गज पंचानन।। + +आवत पंथ कबंध निपाता। तेहिं सब कही साप कै बाता।। + +दुरबासा मोहि दीन्ही सापा। प्रभु पद पेखि मिटा सो पापा।। + +सुनु गंधर्ब कहउँ मै तोही। मोहि न सोहाइ ब्रह्मकुल द्रोही।।मन क्रम बचन कपट तजि जो कर भूसुर सेव। + +मोहि समेत बिरंचि सिव बस ताकें सब देव।।33।।सापत ताड़त परुष कहंता। बिप्र पूज्य अस गावहिं संता।। + +पूजिअ बिप्र सील गुन हीना। सूद्र न गुन गन ग्यान प्रबीना।। + +कहि निज धर्म ताहि समुझावा। निज पद प्रीति देखि मन भावा।। + +रघुपति चरन कमल सिरु नाई। गयउ गगन आपनि गति पाई।। + +ताहि देइ गति राम उदारा। सबरी कें आश्रम पगु धारा।। + +सबरी देखि राम गृहँ आए। मुनि के बचन समुझि जियँ भाए।। + +सरसिज लोचन बाहु बिसाला। जटा मुकुट सिर उर बनमाला।। + +स्याम गौर सुंदर दोउ भाई। सबरी परी चरन लपटाई।। + +प्रेम मगन मुख बचन न आवा। पुनि पुनि पद सरोज सिर नावा।। + +सादर जल लै चरन पखारे। पुनि सुंदर आसन बैठारे।।कंद मूल फल सुरस अति दिए राम कहुँ आनि। + +प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि।।34।।पानि जोरि आगें भइ ठाढ़ी। प्रभुहि बिलोकि प्रीति अति बाढ़ी।। + +केहि बिधि अस्तुति करौ तुम्हारी। अधम जाति मैं जड़मति भारी।। + +अधम ते अधम अधम अति नारी। तिन्ह महँ मैं मतिमंद अघारी।। + +कह रघुपति सुनु भामिनि बाता। मानउँ एक भगति कर नाता।। + +जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई। धन बल परिजन गुन चतुराई।। + +भगति हीन नर सोहइ कैसा। बिनु जल बारिद देखिअ जैसा।। + +नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं।। + +प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा।।गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान। + +चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान।।35।।मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा।। + +छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा।। + +सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा।। + +आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा।। + +नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना।। + +नव महुँ एकउ जिन्ह के होई। नारि पुरुष सचराचर कोई।। + +सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरे। सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें।। + +जोगि बृंद दुरलभ गति जोई। तो कहुँ आजु सुलभ भइ सोई।। + +मम दरसन फल परम अनूपा। जीव पाव निज सहज सरूपा।। + +जनकसुता कइ सुधि भामिनी। जानहि कहु करिबरगामिनी।। + +पंपा सरहि जाहु रघुराई। तहँ होइहि सुग्रीव मिताई।। + +सो सब कहिहि देव रघुबीरा। जानतहूँ पूछहु मतिधीरा।। + +बार बार प्रभु पद सिरु नाई। प्रेम सहित सब कथा सुनाई।।कहि कथा सकल बिलोकि हरि मुख हृदयँ पद पंकज धरे। + +तजि जोग पावक देह हरि पद लीन भइ जहँ नहिं फिरे।। + +नर बिबिध कर्म अधर्म बहु मत सोकप्रद सब त्यागहू। + +बिस्वास करि कह दास तुलसी राम पद अनुरागहू।।जाति हीन अघ जन्म महि मुक्त कीन्हि असि नारि। + +महामंद मन सुख चहसि ऐसे प्रभुहि बिसारि।।36।।चले राम त्यागा बन सोऊ। अतुलित बल नर केहरि दोऊ।। + +बिरही इव प्रभु करत बिषादा। कहत कथा अनेक संबादा।। + +लछिमन देखु बिपिन कइ सोभा। देखत केहि कर मन नहिं छोभा।। + +नारि सहित सब खग मृग बृंदा। मानहुँ मोरि करत हहिं निंदा।। + +हमहि देखि मृग निकर पराहीं। मृगीं कहहिं तुम्ह कहँ भय नाहीं।। + +तुम्ह आनंद करहु मृग जाए। कंचन मृग खोजन ए आए।। + +संग लाइ करिनीं करि लेहीं। मानहुँ मोहि सिखावनु देहीं।। + +सास्त्र सुचिंतित पुनि पुनि देखिअ। भूप सुसेवित बस नहिं लेखिअ।। + +राखिअ नारि जदपि उर माहीं। जुबती सास्त्र नृपति बस नाहीं।। + +देखहु तात बसंत सुहावा। प्रिया हीन मोहि भय उपजावा।।बिरह बिकल बलहीन मोहि जानेसि निपट अकेल। + +सहित बिपिन मधुकर खग मदन कीन्ह बगमेल।।37(क)।। + +देखि गयउ भ्राता सहित तासु दूत सुनि बात। + +डेरा कीन्हेउ मनहुँ तब कटकु हटकि मनजात।।37(ख)।।बिटप बिसाल लता अरुझानी। बिबिध बितान दिए जनु तानी।। + +कदलि ताल बर धुजा पताका। दैखि न मोह धीर मन जाका।। + +बिबिध भाँति फूले तरु नाना। जनु बानैत बने बहु बाना।। + +कहुँ कहुँ सुन्दर बिटप सुहाए। जनु भट बिलग बिलग होइ छाए।। + +कूजत पिक मानहुँ गज माते। ढेक महोख ऊँट बिसराते।। + +मोर चकोर कीर बर बाजी। पारावत मराल सब ताजी।। + +तीतिर लावक पदचर जूथा। बरनि न जाइ मनोज बरुथा।। + +रथ गिरि सिला दुंदुभी झरना। चातक बंदी गुन गन बरना।। + +मधुकर मुखर भेरि सहनाई। त्रिबिध बयारि बसीठीं आई।। + +चतुरंगिनी सेन सँग लीन्हें। बिचरत सबहि चुनौती दीन्हें।। + +लछिमन देखत काम अनीका। रह���िं धीर तिन्ह कै जग लीका।। + +एहि कें एक परम बल नारी। तेहि तें उबर सुभट सोइ भारी।।तात तीनि अति प्रबल खल काम क्रोध अरु लोभ। + +मुनि बिग्यान धाम मन करहिं निमिष महुँ छोभ।।38(क)।। + +लोभ कें इच्छा दंभ बल काम कें केवल नारि। + +क्रोध के परुष बचन बल मुनिबर कहहिं बिचारि।।38(ख)।।गुनातीत सचराचर स्वामी। राम उमा सब अंतरजामी।। + +कामिन्ह कै दीनता देखाई। धीरन्ह कें मन बिरति दृढ़ाई।। + +क्रोध मनोज लोभ मद माया। छूटहिं सकल राम कीं दाया।। + +सो नर इंद्रजाल नहिं भूला। जा पर होइ सो नट अनुकूला।। + +उमा कहउँ मैं अनुभव अपना। सत हरि भजनु जगत सब सपना।। + +पुनि प्रभु गए सरोबर तीरा। पंपा नाम सुभग गंभीरा।। + +संत हृदय जस निर्मल बारी। बाँधे घाट मनोहर चारी।। + +जहँ तहँ पिअहिं बिबिध मृग नीरा। जनु उदार गृह जाचक भीरा।।पुरइनि सबन ओट जल बेगि न पाइअ मर्म। + +मायाछन्न न देखिऐ जैसे निर्गुन ब्रह्म।।39(क)।। + +सुखि मीन सब एकरस अति अगाध जल माहिं। + +जथा धर्मसीलन्ह के दिन सुख संजुत जाहिं।।39(ख)।।बिकसे सरसिज नाना रंगा। मधुर मुखर गुंजत बहु भृंगा।। + +बोलत जलकुक्कुट कलहंसा। प्रभु बिलोकि जनु करत प्रसंसा।। + +चक्रवाक बक खग समुदाई। देखत बनइ बरनि नहिं जाई।। + +सुन्दर खग गन गिरा सुहाई। जात पथिक जनु लेत बोलाई।। + +ताल समीप मुनिन्ह गृह छाए। चहु दिसि कानन बिटप सुहाए।। + +चंपक बकुल कदंब तमाला। पाटल पनस परास रसाला।। + +नव पल्लव कुसुमित तरु नाना। चंचरीक पटली कर गाना।। + +सीतल मंद सुगंध सुभाऊ। संतत बहइ मनोहर बाऊ।। + +कुहू कुहू कोकिल धुनि करहीं। सुनि रव सरस ध्यान मुनि टरहीं।।फल भारन नमि बिटप सब रहे भूमि निअराइ। + +पर उपकारी पुरुष जिमि नवहिं सुसंपति पाइ।।40।।देखि राम अति रुचिर तलावा। मज्जनु कीन्ह परम सुख पावा।। + +देखी सुंदर तरुबर छाया। बैठे अनुज सहित रघुराया।। + +तहँ पुनि सकल देव मुनि आए। अस्तुति करि निज धाम सिधाए।। + +बैठे परम प्रसन्न कृपाला। कहत अनुज सन कथा रसाला।। + +बिरहवंत भगवंतहि देखी। नारद मन भा सोच बिसेषी।। + +मोर साप करि अंगीकारा। सहत राम नाना दुख भारा।। + +ऐसे प्रभुहि बिलोकउँ जाई। पुनि न बनिहि अस अवसरु आई।। + +यह बिचारि नारद कर बीना। गए जहाँ प्रभु सुख आसीना।। + +गावत राम चरित मृदु बानी। प्रेम सहित बहु भाँति बखानी।। + +करत दंडवत लिए उठाई। राखे बहुत बार उर लाई।। + +स्वागत पूँछि निकट बैठारे। लछिमन सादर चरन पखारे���।नाना बिधि बिनती करि प्रभु प्रसन्न जियँ जानि। + +नारद बोले बचन तब जोरि सरोरुह पानि।।41।।सुनहु उदार सहज रघुनायक। सुंदर अगम सुगम बर दायक।। + +देहु एक बर मागउँ स्वामी। जद्यपि जानत अंतरजामी।। + +जानहु मुनि तुम्ह मोर सुभाऊ। जन सन कबहुँ कि करउँ दुराऊ।। + +कवन बस्तु असि प्रिय मोहि लागी। जो मुनिबर न सकहु तुम्ह मागी।। + +जन कहुँ कछु अदेय नहिं मोरें। अस बिस्वास तजहु जनि भोरें।। + +तब नारद बोले हरषाई । अस बर मागउँ करउँ ढिठाई।। + +जद्यपि प्रभु के नाम अनेका। श्रुति कह अधिक एक तें एका।। + +राम सकल नामन्ह ते अधिका। होउ नाथ अघ खग गन बधिका।।राका रजनी भगति तव राम नाम सोइ सोम। + +अपर नाम उडगन बिमल बसुहुँ भगत उर ब्योम।।42(क)।। + +एवमस्तु मुनि सन कहेउ कृपासिंधु रघुनाथ। + +तब नारद मन हरष अति प्रभु पद नायउ माथ।।42(ख)।।अति प्रसन्न रघुनाथहि जानी। पुनि नारद बोले मृदु बानी।। + +राम जबहिं प्रेरेउ निज माया। मोहेहु मोहि सुनहु रघुराया।। + +तब बिबाह मैं चाहउँ कीन्हा। प्रभु केहि कारन करै न दीन्हा।। + +सुनु मुनि तोहि कहउँ सहरोसा। भजहिं जे मोहि तजि सकल भरोसा।। + +करउँ सदा तिन्ह कै रखवारी। जिमि बालक राखइ महतारी।। + +गह सिसु बच्छ अनल अहि धाई। तहँ राखइ जननी अरगाई।। + +प्रौढ़ भएँ तेहि सुत पर माता। प्रीति करइ नहिं पाछिलि बाता।। + +मोरे प्रौढ़ तनय सम ग्यानी। बालक सुत सम दास अमानी।। + +जनहि मोर बल निज बल ताही। दुहु कहँ काम क्रोध रिपु आही।। + +यह बिचारि पंडित मोहि भजहीं। पाएहुँ ग्यान भगति नहिं तजहीं।।काम क्रोध लोभादि मद प्रबल मोह कै धारि। + +तिन्ह महँ अति दारुन दुखद मायारूपी नारि।।43।।सुनि मुनि कह पुरान श्रुति संता। मोह बिपिन कहुँ नारि बसंता।। + +जप तप नेम जलाश्रय झारी। होइ ग्रीषम सोषइ सब नारी।। + +काम क्रोध मद मत्सर भेका। इन्हहि हरषप्रद बरषा एका।। + +दुर्बासना कुमुद समुदाई। तिन्ह कहँ सरद सदा सुखदाई।। + +धर्म सकल सरसीरुह बृंदा। होइ हिम तिन्हहि दहइ सुख मंदा।। + +पुनि ममता जवास बहुताई। पलुहइ नारि सिसिर रितु पाई।। + +पाप उलूक निकर सुखकारी। नारि निबिड़ रजनी अँधिआरी।। + +बुधि बल सील सत्य सब मीना। बनसी सम त्रिय कहहिं प्रबीना।।अवगुन मूल सूलप्रद प्रमदा सब दुख खानि। + +ताते कीन्ह निवारन मुनि मैं यह जियँ जानि।।44।।सुनि रघुपति के बचन सुहाए। मुनि तन पुलक नयन भरि आए।। + +कहहु कवन प्रभु कै असि रीती। सेवक पर ममता अरु प्रीती।। + +जे न भजहिं अस प्रभु भ्रम त्यागी। ग्यान रंक नर मंद अभागी।। + +पुनि सादर बोले मुनि नारद। सुनहु राम बिग्यान बिसारद।। + +संतन्ह के लच्छन रघुबीरा। कहहु नाथ भव भंजन भीरा।। + +सुनु मुनि संतन्ह के गुन कहऊँ। जिन्ह ते मैं उन्ह कें बस रहऊँ।। + +षट बिकार जित अनघ अकामा। अचल अकिंचन सुचि सुखधामा।। + +अमितबोध अनीह मितभोगी। सत्यसार कबि कोबिद जोगी।। + +सावधान मानद मदहीना। धीर धर्म गति परम प्रबीना।।गुनागार संसार दुख रहित बिगत संदेह।। + +तजि मम चरन सरोज प्रिय तिन्ह कहुँ देह न गेह।।45।।कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ + +शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ। + +मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवर्मौं हितौ + +सीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि नः।।1।। + +ब्रह्माम्भोधिसमुद्भवं कलिमलप्रध्वंसनं चाव्ययं + +श्रीमच्छम्भुमुखेन्दुसुन्दरवरे संशोभितं सर्वदा। + +संसारामयभेषजं सुखकरं श्रीजानकीजीवनं + +धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम्।।2।।मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खानि अघ हानि कर + +जहँ बस संभु भवानि सो कासी सेइअ कस न।। + +जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय। + +तेहि न भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस।।आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक परवत निअराया।। + +तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा।। + +अति सभीत कह सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल बल रूप निधाना।। + +धरि बटु रूप देखु तैं जाई। कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई।। + +पठए बालि होहिं मन मैला। भागौं तुरत तजौं यह सैला।। + +बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ। माथ नाइ पूछत अस भयऊ।। + +को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा। छत्री रूप फिरहु बन बीरा।। + +कठिन भूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी।। + +मृदुल मनोहर सुंदर गाता। सहत दुसह बन आतप बाता।। + +की तुम्ह तीनि देव महँ कोऊ। नर नारायन की तुम्ह दोऊ।।जग कारन तारन भव भंजन धरनी भार। + +की तुम्ह अकिल भुवन पति लीन्ह मनुज अवतार।।1।।कोसलेस दसरथ के जाए । हम पितु बचन मानि बन आए।। + +नाम राम लछिमन दौउ भाई। संग नारि सुकुमारि सुहाई।। + +इहाँ हरि निसिचर बैदेही। बिप्र फिरहिं हम खोजत तेही।। + +आपन चरित कहा हम गाई। कहहु बिप्र निज कथा बुझाई।। + +प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा नहिं बरना।। + +पुलकित तन मुख आव न बचना। देखत रुचिर बेष कै रचना��। + +पुनि धीरजु धरि अस्तुति कीन्ही। हरष हृदयँ निज नाथहि चीन्ही।। + +मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहु कस नर की नाईं।। + +तव माया बस फिरउँ भुलाना। ता ते मैं नहिं प्रभु पहिचाना।।एकु मैं मंद मोहबस कुटिल हृदय अग्यान। + +पुनि प्रभु मोहि बिसारेउ दीनबंधु भगवान।।2।।जदपि नाथ बहु अवगुन मोरें। सेवक प्रभुहि परै जनि भोरें।। + +नाथ जीव तव मायाँ मोहा। सो निस्तरइ तुम्हारेहिं छोहा।। + +ता पर मैं रघुबीर दोहाई। जानउँ नहिं कछु भजन उपाई।। + +सेवक सुत पति मातु भरोसें। रहइ असोच बनइ प्रभु पोसें।। + +अस कहि परेउ चरन अकुलाई। निज तनु प्रगटि प्रीति उर छाई।। + +तब रघुपति उठाइ उर लावा। निज लोचन जल सींचि जुड़ावा।। + +सुनु कपि जियँ मानसि जनि ऊना। तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना।। + +समदरसी मोहि कह सब कोऊ। सेवक प्रिय अनन्यगति सोऊ।।सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमंत। + +मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत।।3।।देखि पवन सुत पति अनुकूला। हृदयँ हरष बीती सब सूला।। + +नाथ सैल पर कपिपति रहई। सो सुग्रीव दास तव अहई।। + +तेहि सन नाथ मयत्री कीजे। दीन जानि तेहि अभय करीजे।। + +सो सीता कर खोज कराइहि। जहँ तहँ मरकट कोटि पठाइहि।। + +एहि बिधि सकल कथा समुझाई। लिए दुऔ जन पीठि चढ़ाई।। + +जब सुग्रीवँ राम कहुँ देखा। अतिसय जन्म धन्य करि लेखा।। + +सादर मिलेउ नाइ पद माथा। भैंटेउ अनुज सहित रघुनाथा।। + +कपि कर मन बिचार एहि रीती। करिहहिं बिधि मो सन ए प्रीती।।तब हनुमंत उभय दिसि की सब कथा सुनाइ।। + +पावक साखी देइ करि जोरी प्रीती दृढ़ाइ।।4।।कीन्ही प्रीति कछु बीच न राखा। लछमिन राम चरित सब भाषा।। + +कह सुग्रीव नयन भरि बारी। मिलिहि नाथ मिथिलेसकुमारी।। + +मंत्रिन्ह सहित इहाँ एक बारा। बैठ रहेउँ मैं करत बिचारा।। + +गगन पंथ देखी मैं जाता। परबस परी बहुत बिलपाता।। + +राम राम हा राम पुकारी। हमहि देखि दीन्हेउ पट डारी।। + +मागा राम तुरत तेहिं दीन्हा। पट उर लाइ सोच अति कीन्हा।। + +कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। तजहु सोच मन आनहु धीरा।। + +सब प्रकार करिहउँ सेवकाई। जेहि बिधि मिलिहि जानकी आई।।सखा बचन सुनि हरषे कृपासिधु बलसींव। + +कारन कवन बसहु बन मोहि कहहु सुग्रीव ।।5।।नात बालि अरु मैं द्वौ भाई। प्रीति रही कछु बरनि न जाई।। + +मय सुत मायावी तेहि नाऊँ। आवा सो प्रभु हमरें गाऊँ।। + +अर्ध राति पुर द्वार पुकारा। बाली रिपु बल सहै न पारा।। + +धावा बा���ि देखि सो भागा। मैं पुनि गयउँ बंधु सँग लागा।। + +गिरिबर गुहाँ पैठ सो जाई। तब बालीं मोहि कहा बुझाई।। + +परिखेसु मोहि एक पखवारा। नहिं आवौं तब जानेसु मारा।। + +मास दिवस तहँ रहेउँ खरारी। निसरी रुधिर धार तहँ भारी।। + +बालि हतेसि मोहि मारिहि आई। सिला देइ तहँ चलेउँ पराई।। + +मंत्रिन्ह पुर देखा बिनु साईं। दीन्हेउ मोहि राज बरिआई।। + +बालि ताहि मारि गृह आवा। देखि मोहि जियँ भेद बढ़ावा।। + +रिपु सम मोहि मारेसि अति भारी। हरि लीन्हेसि सर्बसु अरु नारी।। + +ताकें भय रघुबीर कृपाला। सकल भुवन मैं फिरेउँ बिहाला।। + +इहाँ साप बस आवत नाहीं। तदपि सभीत रहउँ मन माहीं।। + +सुनि सेवक दुख दीनदयाला। फरकि उठीं द्वै भुजा बिसाला।।सुनु सुग्रीव मारिहउँ बालिहि एकहिं बान। + +ब्रम्ह रुद्र सरनागत गएँ न उबरिहिं प्रान।।6।।जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी।। + +निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समाना।। + +जिन्ह कें असि मति सहज न आई। ते सठ कत हठि करत मिताई।। + +कुपथ निवारि सुपंथ चलावा। गुन प्रगटे अवगुनन्हि दुरावा।। + +देत लेत मन संक न धरई। बल अनुमान सदा हित करई।। + +बिपति काल कर सतगुन नेहा। श्रुति कह संत मित्र गुन एहा।। + +आगें कह मृदु बचन बनाई। पाछें अनहित मन कुटिलाई।। + +जा कर चित अहि गति सम भाई। अस कुमित्र परिहरेहि भलाई।। + +सेवक सठ नृप कृपन कुनारी। कपटी मित्र सूल सम चारी।। + +सखा सोच त्यागहु बल मोरें। सब बिधि घटब काज मैं तोरें।। + +कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। बालि महाबल अति रनधीरा।। + +दुंदुभी अस्थि ताल देखराए। बिनु प्रयास रघुनाथ ढहाए।। + +देखि अमित बल बाढ़ी प्रीती। बालि बधब इन्ह भइ परतीती।। + +बार बार नावइ पद सीसा। प्रभुहि जानि मन हरष कपीसा।। + +उपजा ग्यान बचन तब बोला। नाथ कृपाँ मन भयउ अलोला।। + +सुख संपति परिवार बड़ाई। सब परिहरि करिहउँ सेवकाई।। + +ए सब रामभगति के बाधक। कहहिं संत तब पद अवराधक।। + +सत्रु मित्र सुख दुख जग माहीं। माया कृत परमारथ नाहीं।। + +बालि परम हित जासु प्रसादा। मिलेहु राम तुम्ह समन बिषादा।। + +सपनें जेहि सन होइ लराई। जागें समुझत मन सकुचाई।। + +अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँती। सब तजि भजनु करौं दिन राती।। + +सुनि बिराग संजुत कपि बानी। बोले बिहँसि रामु धनुपानी।। + +जो कछु कहेहु सत्य सब सोई। सखा बचन मम मृषा न होई।। + +नट मरकट इव सबहि नचावत। रामु खग���स बेद अस गावत।। + +लै सुग्रीव संग रघुनाथा। चले चाप सायक गहि हाथा।। + +तब रघुपति सुग्रीव पठावा। गर्जेसि जाइ निकट बल पावा।। + +सुनत बालि क्रोधातुर धावा। गहि कर चरन नारि समुझावा।। + +सुनु पति जिन्हहि मिलेउ सुग्रीवा। ते द्वौ बंधु तेज बल सींवा।। + +कोसलेस सुत लछिमन रामा। कालहु जीति सकहिं संग्रामा।।कह बालि सुनु भीरु प्रिय समदरसी रघुनाथ। + +जौं कदाचि मोहि मारहिं तौ पुनि होउँ सनाथ।।7।।अस कहि चला महा अभिमानी। तृन समान सुग्रीवहि जानी।। + +भिरे उभौ बाली अति तर्जा । मुठिका मारि महाधुनि गर्जा।। + +तब सुग्रीव बिकल होइ भागा। मुष्टि प्रहार बज्र सम लागा।। + +मैं जो कहा रघुबीर कृपाला। बंधु न होइ मोर यह काला।। + +एकरूप तुम्ह भ्राता दोऊ। तेहि भ्रम तें नहिं मारेउँ सोऊ।। + +कर परसा सुग्रीव सरीरा। तनु भा कुलिस गई सब पीरा।। + +मेली कंठ सुमन कै माला। पठवा पुनि बल देइ बिसाला।। + +पुनि नाना बिधि भई लराई। बिटप ओट देखहिं रघुराई।।बहु छल बल सुग्रीव कर हियँ हारा भय मानि। + +मारा बालि राम तब हृदय माझ सर तानि।।8।।परा बिकल महि सर के लागें। पुनि उठि बैठ देखि प्रभु आगें।। + +स्याम गात सिर जटा बनाएँ। अरुन नयन सर चाप चढ़ाएँ।। + +पुनि पुनि चितइ चरन चित दीन्हा। सुफल जन्म माना प्रभु चीन्हा।। + +हृदयँ प्रीति मुख बचन कठोरा। बोला चितइ राम की ओरा।। + +धर्म हेतु अवतरेहु गोसाई। मारेहु मोहि ब्याध की नाई।। + +मैं बैरी सुग्रीव पिआरा। अवगुन कबन नाथ मोहि मारा।। + +अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी।। + +इन्हहि कुद्दष्टि बिलोकइ जोई। ताहि बधें कछु पाप न होई।। + +मुढ़ तोहि अतिसय अभिमाना। नारि सिखावन करसि न काना।। + +मम भुज बल आश्रित तेहि जानी। मारा चहसि अधम अभिमानी।।सुनहु राम स्वामी सन चल न चातुरी मोरि। + +प्रभु अजहूँ मैं पापी अंतकाल गति तोरि।।9।।सुनत राम अति कोमल बानी। बालि सीस परसेउ निज पानी।। + +अचल करौं तनु राखहु प्राना। बालि कहा सुनु कृपानिधाना।। + +जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं। अंत राम कहि आवत नाहीं।। + +जासु नाम बल संकर कासी। देत सबहि सम गति अविनासी।। + +मम लोचन गोचर सोइ आवा। बहुरि कि प्रभु अस बनिहि बनावा।।सो नयन गोचर जासु गुन नित नेति कहि श्रुति गावहीं। + +जिति पवन मन गो निरस करि मुनि ध्यान कबहुँक पावहीं।। + +मोहि जानि अति अभिमान बस प्रभु कहेउ राखु सरीरही। + +अस कवन सठ हठि काटि सुरतरु बारि करिहि बबूरही।।1।। + +अब नाथ करि करुना बिलोकहु देहु जो बर मागऊँ। + +जेहिं जोनि जन्मौं कर्म बस तहँ राम पद अनुरागऊँ।। + +यह तनय मम सम बिनय बल कल्यानप्रद प्रभु लीजिऐ। + +गहि बाहँ सुर नर नाह आपन दास अंगद कीजिऐ।।2।।राम चरन दृढ़ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग। + +सुमन माल जिमि कंठ ते गिरत न जानइ नाग।।10।।राम बालि निज धाम पठावा। नगर लोग सब ब्याकुल धावा।। + +नाना बिधि बिलाप कर तारा। छूटे केस न देह सँभारा।। + +तारा बिकल देखि रघुराया । दीन्ह ग्यान हरि लीन्ही माया।। + +छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।। + +प्रगट सो तनु तव आगें सोवा। जीव नित्य केहि लगि तुम्ह रोवा।। + +उपजा ग्यान चरन तब लागी। लीन्हेसि परम भगति बर मागी।। + +उमा दारु जोषित की नाई। सबहि नचावत रामु गोसाई।। + +तब सुग्रीवहि आयसु दीन्हा। मृतक कर्म बिधिबत सब कीन्हा।। + +राम कहा अनुजहि समुझाई। राज देहु सुग्रीवहि जाई।। + +रघुपति चरन नाइ करि माथा। चले सकल प्रेरित रघुनाथा।।लछिमन तुरत बोलाए पुरजन बिप्र समाज। + +राजु दीन्ह सुग्रीव कहँ अंगद कहँ जुबराज।।11।।उमा राम सम हित जग माहीं। गुरु पितु मातु बंधु प्रभु नाहीं।। + +सुर नर मुनि सब कै यह रीती। स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती।। + +बालि त्रास ब्याकुल दिन राती। तन बहु ब्रन चिंताँ जर छाती।। + +सोइ सुग्रीव कीन्ह कपिराऊ। अति कृपाल रघुबीर सुभाऊ।। + +जानतहुँ अस प्रभु परिहरहीं। काहे न बिपति जाल नर परहीं।। + +पुनि सुग्रीवहि लीन्ह बोलाई। बहु प्रकार नृपनीति सिखाई।। + +कह प्रभु सुनु सुग्रीव हरीसा। पुर न जाउँ दस चारि बरीसा।। + +गत ग्रीषम बरषा रितु आई। रहिहउँ निकट सैल पर छाई।। + +अंगद सहित करहु तुम्ह राजू। संतत हृदय धरेहु मम काजू।। + +जब सुग्रीव भवन फिरि आए। रामु प्रबरषन गिरि पर छाए।।प्रथमहिं देवन्ह गिरि गुहा राखेउ रुचिर बनाइ। + +राम कृपानिधि कछु दिन बास करहिंगे आइ।।12।।सुंदर बन कुसुमित अति सोभा। गुंजत मधुप निकर मधु लोभा।। + +कंद मूल फल पत्र सुहाए। भए बहुत जब ते प्रभु आए ।। + +देखि मनोहर सैल अनूपा। रहे तहँ अनुज सहित सुरभूपा।। + +मधुकर खग मृग तनु धरि देवा। करहिं सिद्ध मुनि प्रभु कै सेवा।। + +मंगलरुप भयउ बन तब ते । कीन्ह निवास रमापति जब ते।। + +फटिक सिला अति सुभ्र सुहाई। सुख आसीन तहाँ द्वौ भाई।। + +कहत अनुज सन कथा अनेका। भगति बिरति नृपनीति बिबेका।। + +बरषा काल मेघ नभ छाए�� गरजत लागत परम सुहाए।।लछिमन देखु मोर गन नाचत बारिद पैखि। + +गृही बिरति रत हरष जस बिष्नु भगत कहुँ देखि।।13।।घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा।। + +दामिनि दमक रह न घन माहीं। खल कै प्रीति जथा थिर नाहीं।। + +बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध बिद्या पाएँ।। + +बूँद अघात सहहिं गिरि कैंसें । खल के बचन संत सह जैसें।। + +छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई।। + +भूमि परत भा ढाबर पानी। जनु जीवहि माया लपटानी।। + +समिटि समिटि जल भरहिं तलावा। जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा।। + +सरिता जल जलनिधि महुँ जाई। होई अचल जिमि जिव हरि पाई।।हरित भूमि तृन संकुल समुझि परहिं नहिं पंथ। + +जिमि पाखंड बाद तें गुप्त होहिं सदग्रंथ।।14।।दादुर धुनि चहु दिसा सुहाई। बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई।। + +नव पल्लव भए बिटप अनेका। साधक मन जस मिलें बिबेका।। + +अर्क जबास पात बिनु भयऊ। जस सुराज खल उद्यम गयऊ।। + +खोजत कतहुँ मिलइ नहिं धूरी। करइ क्रोध जिमि धरमहि दूरी।। + +ससि संपन्न सोह महि कैसी। उपकारी कै संपति जैसी।। + +निसि तम घन खद्योत बिराजा। जनु दंभिन्ह कर मिला समाजा।। + +महाबृष्टि चलि फूटि किआरीं । जिमि सुतंत्र भएँ बिगरहिं नारीं।। + +कृषी निरावहिं चतुर किसाना। जिमि बुध तजहिं मोह मद माना।। + +देखिअत चक्रबाक खग नाहीं। कलिहि पाइ जिमि धर्म पराहीं।। + +ऊषर बरषइ तृन नहिं जामा। जिमि हरिजन हियँ उपज न कामा।। + +बिबिध जंतु संकुल महि भ्राजा। प्रजा बाढ़ जिमि पाइ सुराजा।। + +जहँ तहँ रहे पथिक थकि नाना। जिमि इंद्रिय गन उपजें ग्याना।।कबहुँ प्रबल बह मारुत जहँ तहँ मेघ बिलाहिं। + +जिमि कपूत के उपजें कुल सद्धर्म नसाहिं।।15(क)।। + +कबहुँ दिवस महँ निबिड़ तम कबहुँक प्रगट पतंग। + +बिनसइ उपजइ ग्यान जिमि पाइ कुसंग सुसंग।।15(ख)।।बरषा बिगत सरद रितु आई। लछिमन देखहु परम सुहाई।। + +फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई।। + +उदित अगस्ति पंथ जल सोषा। जिमि लोभहि सोषइ संतोषा।। + +सरिता सर निर्मल जल सोहा। संत हृदय जस गत मद मोहा।। + +रस रस सूख सरित सर पानी। ममता त्याग करहिं जिमि ग्यानी।। + +जानि सरद रितु खंजन आए। पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए।। + +पंक न रेनु सोह असि धरनी। नीति निपुन नृप कै जसि करनी।। + +जल संकोच बिकल भइँ मीना। अबुध कुटुंबी जिमि धनहीना।। + +बिनु धन निर्मल सोह अकासा। हरिजन इव परिहरि सब आसा।। + +कहुँ कहुँ बृष्टि सारदी थोरी। कोउ एक पाव भगति जिमि मोरी।।चले हरषि तजि नगर नृप तापस बनिक भिखारि। + +जिमि हरिभगत पाइ श्रम तजहि आश्रमी चारि।।16।।सुखी मीन जे नीर अगाधा। जिमि हरि सरन न एकउ बाधा।। + +फूलें कमल सोह सर कैसा। निर्गुन ब्रम्ह सगुन भएँ जैसा।। + +गुंजत मधुकर मुखर अनूपा। सुंदर खग रव नाना रूपा।। + +चक्रबाक मन दुख निसि पैखी। जिमि दुर्जन पर संपति देखी।। + +चातक रटत तृषा अति ओही। जिमि सुख लहइ न संकरद्रोही।। + +सरदातप निसि ससि अपहरई। संत दरस जिमि पातक टरई।। + +देखि इंदु चकोर समुदाई। चितवतहिं जिमि हरिजन हरि पाई।। + +मसक दंस बीते हिम त्रासा। जिमि द्विज द्रोह किएँ कुल नासा।।भूमि जीव संकुल रहे गए सरद रितु पाइ। + +सदगुर मिले जाहिं जिमि संसय भ्रम समुदाइ।।17।।बरषा गत निर्मल रितु आई। सुधि न तात सीता कै पाई।। + +एक बार कैसेहुँ सुधि जानौं। कालहु जीत निमिष महुँ आनौं।। + +कतहुँ रहउ जौं जीवति होई। तात जतन करि आनेउँ सोई।। + +सुग्रीवहुँ सुधि मोरि बिसारी। पावा राज कोस पुर नारी।। + +जेहिं सायक मारा मैं बाली। तेहिं सर हतौं मूढ़ कहँ काली।। + +जासु कृपाँ छूटहीं मद मोहा। ता कहुँ उमा कि सपनेहुँ कोहा।। + +जानहिं यह चरित्र मुनि ग्यानी। जिन्ह रघुबीर चरन रति मानी।। + +लछिमन क्रोधवंत प्रभु जाना। धनुष चढ़ाइ गहे कर बाना।।तब अनुजहि समुझावा रघुपति करुना सींव।। + +भय देखाइ लै आवहु तात सखा सुग्रीव।।18।।इहाँ पवनसुत हृदयँ बिचारा। राम काजु सुग्रीवँ बिसारा।। + +निकट जाइ चरनन्हि सिरु नावा। चारिहु बिधि तेहि कहि समुझावा।। + +सुनि सुग्रीवँ परम भय माना। बिषयँ मोर हरि लीन्हेउ ग्याना।। + +अब मारुतसुत दूत समूहा। पठवहु जहँ तहँ बानर जूहा।। + +कहहु पाख महुँ आव न जोई। मोरें कर ता कर बध होई।। + +तब हनुमंत बोलाए दूता। सब कर करि सनमान बहूता।। + +भय अरु प्रीति नीति देखाई। चले सकल चरनन्हि सिर नाई।। + +एहि अवसर लछिमन पुर आए। क्रोध देखि जहँ तहँ कपि धाए।।धनुष चढ़ाइ कहा तब जारि करउँ पुर छार। + +ब्याकुल नगर देखि तब आयउ बालिकुमार।।19।।चरन नाइ सिरु बिनती कीन्ही। लछिमन अभय बाँह तेहि दीन्ही।। + +क्रोधवंत लछिमन सुनि काना। कह कपीस अति भयँ अकुलाना।। + +सुनु हनुमंत संग लै तारा। करि बिनती समुझाउ कुमारा।। + +तारा सहित जाइ हनुमाना। चरन बंदि प्रभु सुजस बखाना।। + +करि बिनती मंदिर लै आए। चरन पखारि पलँग बैठाए।। + +तब कपीस चरन���्हि सिरु नावा। गहि भुज लछिमन कंठ लगावा।। + +नाथ बिषय सम मद कछु नाहीं। मुनि मन मोह करइ छन माहीं।। + +सुनत बिनीत बचन सुख पावा। लछिमन तेहि बहु बिधि समुझावा।। + +पवन तनय सब कथा सुनाई। जेहि बिधि गए दूत समुदाई।।हरषि चले सुग्रीव तब अंगदादि कपि साथ। + +रामानुज आगें करि आए जहँ रघुनाथ।।20।।नाइ चरन सिरु कह कर जोरी। नाथ मोहि कछु नाहिन खोरी।। + +अतिसय प्रबल देव तब माया। छूटइ राम करहु जौं दाया।। + +बिषय बस्य सुर नर मुनि स्वामी। मैं पावँर पसु कपि अति कामी।। + +नारि नयन सर जाहि न लागा। घोर क्रोध तम निसि जो जागा।। + +लोभ पाँस जेहिं गर न बँधाया। सो नर तुम्ह समान रघुराया।। + +यह गुन साधन तें नहिं होई। तुम्हरी कृपाँ पाव कोइ कोई।। + +तब रघुपति बोले मुसकाई। तुम्ह प्रिय मोहि भरत जिमि भाई।। + +अब सोइ जतनु करहु मन लाई। जेहि बिधि सीता कै सुधि पाई।।एहि बिधि होत बतकही आए बानर जूथ। + +नाना बरन सकल दिसि देखिअ कीस बरुथ।।21।।बानर कटक उमा में देखा। सो मूरुख जो करन चह लेखा।। + +आइ राम पद नावहिं माथा। निरखि बदनु सब होहिं सनाथा।। + +अस कपि एक न सेना माहीं। राम कुसल जेहि पूछी नाहीं।। + +यह कछु नहिं प्रभु कइ अधिकाई। बिस्वरूप ब्यापक रघुराई।। + +ठाढ़े जहँ तहँ आयसु पाई। कह सुग्रीव सबहि समुझाई।। + +राम काजु अरु मोर निहोरा। बानर जूथ जाहु चहुँ ओरा।। + +जनकसुता कहुँ खोजहु जाई। मास दिवस महँ आएहु भाई।। + +अवधि मेटि जो बिनु सुधि पाएँ। आवइ बनिहि सो मोहि मराएँ।।बचन सुनत सब बानर जहँ तहँ चले तुरंत । + +तब सुग्रीवँ बोलाए अंगद नल हनुमंत।।22।।सुनहु नील अंगद हनुमाना। जामवंत मतिधीर सुजाना।। + +सकल सुभट मिलि दच्छिन जाहू। सीता सुधि पूँछेउ सब काहू।। + +मन क्रम बचन सो जतन बिचारेहु। रामचंद्र कर काजु सँवारेहु।। + +भानु पीठि सेइअ उर आगी। स्वामिहि सर्ब भाव छल त्यागी।। + +तजि माया सेइअ परलोका। मिटहिं सकल भव संभव सोका।। + +देह धरे कर यह फलु भाई। भजिअ राम सब काम बिहाई।। + +सोइ गुनग्य सोई बड़भागी । जो रघुबीर चरन अनुरागी।। + +आयसु मागि चरन सिरु नाई। चले हरषि सुमिरत रघुराई।। + +पाछें पवन तनय सिरु नावा। जानि काज प्रभु निकट बोलावा।। + +परसा सीस सरोरुह पानी। करमुद्रिका दीन्हि जन जानी।। + +बहु प्रकार सीतहि समुझाएहु। कहि बल बिरह बेगि तुम्ह आएहु।। + +हनुमत जन्म सुफल करि माना। चलेउ हृदयँ धरि कृपानिधाना।। + +जद्यपि प्रभु जानत सब बाता। राजनीति राखत सुरत्राता।।चले सकल बन खोजत सरिता सर गिरि खोह। + +राम काज लयलीन मन बिसरा तन कर छोह।।23।।कतहुँ होइ निसिचर सैं भेटा। प्रान लेहिं एक एक चपेटा।। + +बहु प्रकार गिरि कानन हेरहिं। कोउ मुनि मिलत ताहि सब घेरहिं।। + +लागि तृषा अतिसय अकुलाने। मिलइ न जल घन गहन भुलाने।। + +मन हनुमान कीन्ह अनुमाना। मरन चहत सब बिनु जल पाना।। + +चढ़ि गिरि सिखर चहूँ दिसि देखा। भूमि बिबिर एक कौतुक पेखा।। + +चक्रबाक बक हंस उड़ाहीं। बहुतक खग प्रबिसहिं तेहि माहीं।। + +गिरि ते उतरि पवनसुत आवा। सब कहुँ लै सोइ बिबर देखावा।। + +आगें कै हनुमंतहि लीन्हा। पैठे बिबर बिलंबु न कीन्हा।।दीख जाइ उपवन बर सर बिगसित बहु कंज। + +मंदिर एक रुचिर तहँ बैठि नारि तप पुंज।।24।।दूरि ते ताहि सबन्हि सिर नावा। पूछें निज बृत्तांत सुनावा।। + +तेहिं तब कहा करहु जल पाना। खाहु सुरस सुंदर फल नाना।। + +मज्जनु कीन्ह मधुर फल खाए। तासु निकट पुनि सब चलि आए।। + +तेहिं सब आपनि कथा सुनाई। मैं अब जाब जहाँ रघुराई।। + +मूदहु नयन बिबर तजि जाहू। पैहहु सीतहि जनि पछिताहू।। + +नयन मूदि पुनि देखहिं बीरा। ठाढ़े सकल सिंधु कें तीरा।। + +सो पुनि गई जहाँ रघुनाथा। जाइ कमल पद नाएसि माथा।। + +नाना भाँति बिनय तेहिं कीन्ही। अनपायनी भगति प्रभु दीन्ही।।बदरीबन कहुँ सो गई प्रभु अग्या धरि सीस । + +उर धरि राम चरन जुग जे बंदत अज ईस।।25।।इहाँ बिचारहिं कपि मन माहीं। बीती अवधि काज कछु नाहीं।। + +सब मिलि कहहिं परस्पर बाता। बिनु सुधि लएँ करब का भ्राता।। + +कह अंगद लोचन भरि बारी। दुहुँ प्रकार भइ मृत्यु हमारी।। + +इहाँ न सुधि सीता कै पाई। उहाँ गएँ मारिहि कपिराई।। + +पिता बधे पर मारत मोही। राखा राम निहोर न ओही।। + +पुनि पुनि अंगद कह सब पाहीं। मरन भयउ कछु संसय नाहीं।। + +अंगद बचन सुनत कपि बीरा। बोलि न सकहिं नयन बह नीरा।। + +छन एक सोच मगन होइ रहे। पुनि अस वचन कहत सब भए।। + +हम सीता कै सुधि लिन्हें बिना। नहिं जैंहैं जुबराज प्रबीना।। + +अस कहि लवन सिंधु तट जाई। बैठे कपि सब दर्भ डसाई।। + +जामवंत अंगद दुख देखी। कहिं कथा उपदेस बिसेषी।। + +तात राम कहुँ नर जनि मानहु। निर्गुन ब्रम्ह अजित अज जानहु।। + +हम सब सेवक अति बड़भागी। संतत सगुन ब्रह्म अनुरागी।।निज इच्छा प्रभु अवतरइ सुर महि गो द्विज लागि। + +सगुन उपासक संग तहँ रहहिं मोच्छ सब त्यागि।।26।।एहि बिधि कथा कहहि बहु भाँती ���िरि कंदराँ सुनी संपाती।। + +बाहेर होइ देखि बहु कीसा। मोहि अहार दीन्ह जगदीसा।। + +आजु सबहि कहँ भच्छन करऊँ। दिन बहु चले अहार बिनु मरऊँ।। + +कबहुँ न मिल भरि उदर अहारा। आजु दीन्ह बिधि एकहिं बारा।। + +डरपे गीध बचन सुनि काना। अब भा मरन सत्य हम जाना।। + +कपि सब उठे गीध कहँ देखी। जामवंत मन सोच बिसेषी।। + +कह अंगद बिचारि मन माहीं। धन्य जटायू सम कोउ नाहीं।। + +राम काज कारन तनु त्यागी । हरि पुर गयउ परम बड़ भागी।। + +सुनि खग हरष सोक जुत बानी । आवा निकट कपिन्ह भय मानी।। + +तिन्हहि अभय करि पूछेसि जाई। कथा सकल तिन्ह ताहि सुनाई।। + +सुनि संपाति बंधु कै करनी। रघुपति महिमा बधुबिधि बरनी।।मोहि लै जाहु सिंधुतट देउँ तिलांजलि ताहि । + +बचन सहाइ करवि मैं पैहहु खोजहु जाहि ।।27।।अनुज क्रिया करि सागर तीरा। कहि निज कथा सुनहु कपि बीरा।। + +हम द्वौ बंधु प्रथम तरुनाई । गगन गए रबि निकट उडाई।। + +तेज न सहि सक सो फिरि आवा । मै अभिमानी रबि निअरावा ।। + +जरे पंख अति तेज अपारा । परेउँ भूमि करि घोर चिकारा ।। + +मुनि एक नाम चंद्रमा ओही। लागी दया देखी करि मोही।। + +बहु प्रकार तेंहि ग्यान सुनावा । देहि जनित अभिमानी छड़ावा ।। + +त्रेताँ ब्रह्म मनुज तनु धरिही। तासु नारि निसिचर पति हरिही।। + +तासु खोज पठइहि प्रभू दूता। तिन्हहि मिलें तैं होब पुनीता।। + +जमिहहिं पंख करसि जनि चिंता । तिन्हहि देखाइ देहेसु तैं सीता।। + +मुनि कइ गिरा सत्य भइ आजू । सुनि मम बचन करहु प्रभु काजू।। + +गिरि त्रिकूट ऊपर बस लंका । तहँ रह रावन सहज असंका ।। + +तहँ असोक उपबन जहँ रहई ।। सीता बैठि सोच रत अहई।।मैं देखउँ तुम्ह नाहि गीघहि दष्टि अपार।। + +बूढ भयउँ न त करतेउँ कछुक सहाय तुम्हार।।28।।जो नाघइ सत जोजन सागर । करइ सो राम काज मति आगर ।। + +मोहि बिलोकि धरहु मन धीरा । राम कृपाँ कस भयउ सरीरा।। + +पापिउ जा कर नाम सुमिरहीं। अति अपार भवसागर तरहीं।। + +तासु दूत तुम्ह तजि कदराई। राम हृदयँ धरि करहु उपाई।। + +अस कहि गरुड़ गीध जब गयऊ। तिन्ह कें मन अति बिसमय भयऊ।। + +निज निज बल सब काहूँ भाषा। पार जाइ कर संसय राखा।। + +जरठ भयउँ अब कहइ रिछेसा। नहिं तन रहा प्रथम बल लेसा।। + +जबहिं त्रिबिक्रम भए खरारी। तब मैं तरुन रहेउँ बल भारी।।बलि बाँधत प्रभु बाढेउ सो तनु बरनि न जाई। + +उभय धरी महँ दीन्ही सात प्रदच्छिन धाइ।।29।।शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रद�� + +ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् । + +रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं + +वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम्।।1।। + +नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये + +सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा। + +भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे + +कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च।।2।। + +अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं + +दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्। + +सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं + +रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।3।।जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए।। + +तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई।। + +जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी।। + +यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा। चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा।। + +सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर।। + +बार बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी।। + +जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता।। + +जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना।। + +जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रमहारी।।हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम। + +राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम।।1।।जात पवनसुत देवन्ह देखा। जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा।। + +सुरसा नाम अहिन्ह कै माता। पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता।। + +आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा। सुनत बचन कह पवनकुमारा।। + +राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं।। + +तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई।। + +कबनेहुँ जतन देइ नहिं जाना। ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना।। + +जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा।। + +सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ।। + +जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा।। + +सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा।। + +बदन पइठि पुनि बाहेर आवा। मागा बिदा ताहि सिरु नावा।। + +मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा। बुधि बल मरमु तोर मै पावा।।राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान। + +आसिष देह गई सो हरषि चलेउ हनुमान।।2।।निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई। करि माया नभु के खग गहई।। + +जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं।। + +गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई। एहि बिधि सदा गगनचर खाई।। + +सोइ छल हनूमान ���हँ कीन्हा। तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा।। + +ताहि मारि मारुतसुत बीरा। बारिधि पार गयउ मतिधीरा।। + +तहाँ जाइ देखी बन सोभा। गुंजत चंचरीक मधु लोभा।। + +नाना तरु फल फूल सुहाए। खग मृग बृंद देखि मन भाए।। + +सैल बिसाल देखि एक आगें। ता पर धाइ चढेउ भय त्यागें।। + +उमा न कछु कपि कै अधिकाई। प्रभु प्रताप जो कालहि खाई।। + +गिरि पर चढि लंका तेहिं देखी। कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी।। + +अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा।।कनक कोट बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना। + +चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना।। + +गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथिन्ह को गनै।। + +बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै।। + +बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं। + +नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं।। + +कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं। + +नाना अखारेन्ह भिरहिं बहु बिधि एक एकन्ह तर्जहीं।। + +करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं। + +कहुँ महिष मानषु धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं।। + +एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही। + +रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही।।पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार। + +अति लघु रूप धरौं निसि नगर करौं पइसार।।3।।मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी।। + +नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी।। + +जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा।। + +मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी।। + +पुनि संभारि उठि सो लंका। जोरि पानि कर बिनय संसका।। + +जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा। चलत बिरंचि कहा मोहि चीन्हा।। + +बिकल होसि तैं कपि कें मारे। तब जानेसु निसिचर संघारे।। + +तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता।।तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग। + +तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग।।4।।प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कौसलपुर राजा।। + +गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।। + +गरुड़ सुमेरु रेनू सम ताही। राम कृपा करि चितवा जाही।। + +अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना।। + +मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा। देखे जहँ तहँ अगनित जोधा।। + +गयउ दसानन मंदिर माहीं। अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं।। + +सयन किए देखा कपि तेही। मंदिर महुँ न दीखि बैदेही।। + +भवन एक पुनि दीख सुहावा। हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा।।रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ। + +नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरषि कपिराइ।।5।।लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा।। + +मन महुँ तरक करै कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा।। + +राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा।। + +एहि सन हठि करिहउँ पहिचानी। साधु ते होइ न कारज हानी।। + +बिप्र रुप धरि बचन सुनाए। सुनत बिभीषण उठि तहँ आए।। + +करि प्रनाम पूँछी कुसलाई। बिप्र कहहु निज कथा बुझाई।। + +की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई। मोरें हृदय प्रीति अति होई।। + +की तुम्ह रामु दीन अनुरागी। आयहु मोहि करन बड़भागी।।तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम। + +सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम।।6।।सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी।। + +तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा।। + +तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीति न पद सरोज मन माहीं।। + +अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता।। + +जौ रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा।। + +सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीती।। + +कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना।। + +प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा।।अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर। + +कीन्ही कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर।।7।।जानतहूँ अस स्वामि बिसारी। फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी।। + +एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा। पावा अनिर्बाच्य बिश्रामा।। + +पुनि सब कथा बिभीषन कही। जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही।। + +तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता। देखी चहउँ जानकी माता।। + +जुगुति बिभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवनसुत बिदा कराई।। + +करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ।। + +देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा।। + +कृस तन सीस जटा एक बेनी। जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी।।निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन। + +परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन।।8।।तरु पल्लव महुँ रहा लुकाई। करइ बिचार करौं का भाई।। + +तेहि अवसर रावनु तहँ आवा। संग नारि बहु किएँ बनावा।। + +बहु बिधि खल सीतहि समुझावा। साम दान भय भेद देखावा।। + +कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी। मंदोदरी आदि सब रानी।। + +तव अनुचरीं करउँ पन मोरा। एक बार बिलोकु मम ओरा।। + +तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही।। + +सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा।। + +अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहिं रघुबीर बान की।। + +सठ सूने हरि आनेहि मोहि। अधम निलज्ज लाज नहिं तोही।।आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान। + +परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन।।9।।सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना।। + +नाहिं त सपदि मानु मम बानी। सुमुखि होति न त जीवन हानी।। + +स्याम सरोज दाम सम सुंदर। प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर।। + +सो भुज कंठ कि तव असि घोरा। सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा।। + +चंद्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल संजातं।। + +सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरु मम दुख भारा।। + +सुनत बचन पुनि मारन धावा। मयतनयाँ कहि नीति बुझावा।। + +कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई। सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई।। + +मास दिवस महुँ कहा न माना। तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना।।भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद। + +सीतहि त्रास देखावहि धरहिं रूप बहु मंद।।10।।त्रिजटा नाम राच्छसी एका। राम चरन रति निपुन बिबेका।। + +सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना। सीतहि सेइ करहु हित अपना।। + +सपनें बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी।। + +खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा।। + +एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई। लंका मनहुँ बिभीषन पाई।। + +नगर फिरी रघुबीर दोहाई। तब प्रभु सीता बोलि पठाई।। + +यह सपना में कहउँ पुकारी। होइहि सत्य गएँ दिन चारी।। + +तासु बचन सुनि ते सब डरीं। जनकसुता के चरनन्हि परीं।।जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच। + +मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच।।11।।त्रिजटा सन बोली कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी।। + +तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसहु बिरहु अब नहिं सहि जाई।। + +आनि काठ रचु चिता बनाई। मातु अनल पुनि देहि लगाई।। + +सत्य करहि मम प्रीति सयानी। सुनै को श्रवन सूल सम बानी।। + +सुनत बचन पद गहि समुझाएसि। प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि।। + +निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी। अस कहि सो निज भवन सिधारी।। + +कह सीता बिधि भा प्रतिकूला। मिलहि न पावक मिटिहि न सूला।। + +देखिअत प्रगट गगन अंगारा। अवनि न आवत एकउ तारा।। + +पावकमय ससि स्त्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी।। + +सुनहि बिनय मम बिटप असोका। सत्य नाम करु हरु मम सोका।। + +नूतन किसलय अनल समाना। देहि अगिनि जनि करहि निदाना।। + +देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता।।कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारी तब। + +जनु असोक अंगार दीन्हि हरषि उठि कर गहेउ।।12।।तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुंदर।। + +चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी।। + +जीति को सकइ अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई।। + +सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना।। + +रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा।। + +लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई।। + +श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई। कहि सो प्रगट होति किन भाई।। + +तब हनुमंत निकट चलि गयऊ। फिरि बैंठीं मन बिसमय भयऊ।। + +राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की।। + +यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी।। + +नर बानरहि संग कहु कैसें। कहि कथा भइ संगति जैसें।।कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास।। + +जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास।।13।।हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी।। + +बूड़त बिरह जलधि हनुमाना। भयउ तात मों कहुँ जलजाना।। + +अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी। अनुज सहित सुख भवन खरारी।। + +कोमलचित कृपाल रघुराई। कपि केहि हेतु धरी निठुराई।। + +सहज बानि सेवक सुख दायक। कबहुँक सुरति करत रघुनायक।। + +कबहुँ नयन मम सीतल ताता। होइहहि निरखि स्याम मृदु गाता।। + +बचनु न आव नयन भरे बारी। अहह नाथ हौं निपट बिसारी।। + +देखि परम बिरहाकुल सीता। बोला कपि मृदु बचन बिनीता।। + +मातु कुसल प्रभु अनुज समेता। तव दुख दुखी सुकृपा निकेता।। + +जनि जननी मानहु जियँ ऊना। तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना।।रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर। + +अस कहि कपि गद गद भयउ भरे बिलोचन नीर।।14।।कहेउ राम बियोग तव सीता। मो कहुँ सकल भए बिपरीता।। + +नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू। कालनिसा सम निसि ससि भानू।। + +कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा। बारिद तपत तेल जनु बरिसा।। + +जे हित रहे करत तेइ पीरा। उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा।। + +कहेहू तें कछु दुख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई।। + +तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनु मोरा।। + +सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं। जानु प्रीति रसु एतेनहि माहीं।। + +प्रभु संदेसु सुनत बैदेही। मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही।। + +कह कपि हृदयँ धीर धरु माता। सुमिरु राम सेवक सुखदाता।। + +उर आनहु रघुपति प्रभुताई। सुनि मम बचन तजहु कदराई।।निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु। + +जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु।।15।।जौं रघुबीर होति सुधि पाई। करते नहिं बिलंबु रघुराई।। + +रामबान रबि उएँ जानकी। तम बरूथ कहँ जातुधान की।। + +अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई। प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई।। + +कछुक दिवस जननी धरु धीरा। कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।। + +निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं। तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं।। + +हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना। जातुधान अति भट बलवाना।। + +मोरें हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्ह निज देहा।। + +कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा।। + +सीता मन भरोस तब भयऊ। पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ।।सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल। + +प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल।।16।।मन संतोष सुनत कपि बानी। भगति प्रताप तेज बल सानी।। + +आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना।। + +अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू।। + +करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना।। + +बार बार नाएसि पद सीसा। बोला बचन जोरि कर कीसा।। + +अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता। आसिष तव अमोघ बिख्याता।। + +सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा। लागि देखि सुंदर फल रूखा।। + +सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी। परम सुभट रजनीचर भारी।। + +तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं। जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं।।देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु। + +रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु।।17।।चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा। फल खाएसि तरु तोरैं लागा।। + +रहे तहाँ बहु भट रखवारे। कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे।। + +नाथ एक आवा कपि भारी। तेहिं असोक बाटिका उजारी।। + +खाएसि फल अरु बिटप उपारे। रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे।। + +सुनि रावन पठए भट नाना। तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना।। + +सब रजनीचर कपि संघारे। गए पुकारत कछु अधमारे।। + +पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा। चला संग लै सुभट अपारा।। + +आवत देखि बिटप गहि तर्जा। ताहि निपाति महाधुनि गर्जा।।कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि। + +कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि।।18।।सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना।। + +मारसि जनि सुत बांधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही।। + +चला इंद्रजित अतुलित जोधा। बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा��। + +कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा।। + +अति बिसाल तरु एक उपारा। बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा।। + +रहे महाभट ताके संगा। गहि गहि कपि मर्दइ निज अंगा।। + +तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा। भिरे जुगल मानहुँ गजराजा। + +मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई। ताहि एक छन मुरुछा आई।। + +उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया। जीति न जाइ प्रभंजन जाया।।ब्रह्म अस्त्र तेहिं साँधा कपि मन कीन्ह बिचार। + +जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार।।19।।ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहि मारा। परतिहुँ बार कटकु संघारा।। + +तेहि देखा कपि मुरुछित भयऊ। नागपास बाँधेसि लै गयऊ।। + +जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी।। + +तासु दूत कि बंध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा।। + +कपि बंधन सुनि निसिचर धाए। कौतुक लागि सभाँ सब आए।। + +दसमुख सभा दीखि कपि जाई। कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई।। + +कर जोरें सुर दिसिप बिनीता। भृकुटि बिलोकत सकल सभीता।। + +देखि प्रताप न कपि मन संका। जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका।।कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद। + +सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिषाद।।20।।कह लंकेस कवन तैं कीसा। केहिं के बल घालेहि बन खीसा।। + +की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही। देखउँ अति असंक सठ तोही।। + +मारे निसिचर केहिं अपराधा। कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा।। + +सुन रावन ब्रह्मांड निकाया। पाइ जासु बल बिरचित माया।। + +जाकें बल बिरंचि हरि ईसा। पालत सृजत हरत दससीसा। + +जा बल सीस धरत सहसानन। अंडकोस समेत गिरि कानन।। + +धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह ते सठन्ह सिखावनु दाता। + +हर कोदंड कठिन जेहि भंजा। तेहि समेत नृप दल मद गंजा।। + +खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली। बधे सकल अतुलित बलसाली।।जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि। + +तासु दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि।।21।।जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई।। + +समर बालि सन करि जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा।। + +खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा। कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा।। + +सब कें देह परम प्रिय स्वामी। मारहिं मोहि कुमारग गामी।। + +जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे। तेहि पर बाँधेउ तनयँ तुम्हारे।। + +मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा। कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा।। + +बिनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन।। + +देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी। भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी।। + +जाकें डर अति काल डेराई। जो सुर असुर चराचर खाई।। + +तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै। मोरे कहें जानकी दीजै।।प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि। + +गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि।।22।।राम चरन पंकज उर धरहू। लंका अचल राज तुम्ह करहू।। + +रिषि पुलिस्त जसु बिमल मंयका। तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका।। + +राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा।। + +बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषण भूषित बर नारी।। + +राम बिमुख संपति प्रभुताई। जाइ रही पाई बिनु पाई।। + +सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं। बरषि गए पुनि तबहिं सुखाहीं।। + +सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी। बिमुख राम त्राता नहिं कोपी।। + +संकर सहस बिष्नु अज तोही। सकहिं न राखि राम कर द्रोही।।मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान। + +भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान।।23।।जदपि कहि कपि अति हित बानी। भगति बिबेक बिरति नय सानी।। + +बोला बिहसि महा अभिमानी। मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी।। + +मृत्यु निकट आई खल तोही। लागेसि अधम सिखावन मोही।। + +उलटा होइहि कह हनुमाना। मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना।। + +सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना। बेगि न हरहुँ मूढ़ कर प्राना।। + +सुनत निसाचर मारन धाए। सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए। + +नाइ सीस करि बिनय बहूता। नीति बिरोध न मारिअ दूता।। + +आन दंड कछु करिअ गोसाँई। सबहीं कहा मंत्र भल भाई।। + +सुनत बिहसि बोला दसकंधर। अंग भंग करि पठइअ बंदर।।कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाइ। + +तेल बोरि पट बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ।।24।।पूँछहीन बानर तहँ जाइहि। तब सठ निज नाथहि लइ आइहि।। + +जिन्ह कै कीन्हसि बहुत बड़ाई। देखेउँमैं तिन्ह कै प्रभुताई।। + +बचन सुनत कपि मन मुसुकाना। भइ सहाय सारद मैं जाना।। + +जातुधान सुनि रावन बचना। लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना।। + +रहा न नगर बसन घृत तेला। बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला।। + +कौतुक कहँ आए पुरबासी। मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी।। + +बाजहिं ढोल देहिं सब तारी। नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी।। + +पावक जरत देखि हनुमंता। भयउ परम लघु रुप तुरंता।। + +निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारीं। भई सभीत निसाचर नारीं।।हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास। + +अट्टहास करि गर्ज़ा कपि बढ़ि लाग अकास।।25।।देह बिसाल परम हरुआई। मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई।। + +जरइ नगर भा लोग बिहाला। झपट लपट बहु कोटि कराला।। + +तात मातु हा सुनिअ पुकारा। एहि अवसर को हमहि उबारा।। + +हम जो कहा यह कपि नहिं होई। बानर रूप धरें सुर कोई।। + +साधु अवग्या कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा।। + +जारा नगरु निमिष एक माहीं। एक बिभीषन कर गृह नाहीं।। + +ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा। जरा न सो तेहि कारन गिरिजा।। + +उलटि पलटि लंका सब जारी। कूदि परा पुनि सिंधु मझारी।।पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि। + +जनकसुता के आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि।।26।।मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा।। + +चूड़ामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ।। + +कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा।। + +दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।। + +तात सक्रसुत कथा सुनाएहु। बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु।। + +मास दिवस महुँ नाथु न आवा। तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा।। + +कहु कपि केहि बिधि राखौं प्राना। तुम्हहू तात कहत अब जाना।। + +तोहि देखि सीतलि भइ छाती। पुनि मो कहुँ सोइ दिनु सो राती।।जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह। + +चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह।।27।।चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्त्रवहिं सुनि निसिचर नारी।। + +नाघि सिंधु एहि पारहि आवा। सबद किलकिला कपिन्ह सुनावा।। + +हरषे सब बिलोकि हनुमाना। नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना।। + +मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा। कीन्हेसि रामचन्द्र कर काजा।। + +मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी।। + +चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा।। + +तब मधुबन भीतर सब आए। अंगद संमत मधु फल खाए।। + +रखवारे जब बरजन लागे। मुष्टि प्रहार हनत सब भागे।।जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज। + +सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज।।28।।जौं न होति सीता सुधि पाई। मधुबन के फल सकहिं कि खाई।। + +एहि बिधि मन बिचार कर राजा। आइ गए कपि सहित समाजा।। + +आइ सबन्हि नावा पद सीसा। मिलेउ सबन्हि अति प्रेम कपीसा।। + +पूँछी कुसल कुसल पद देखी। राम कृपाँ भा काजु बिसेषी।। + +नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना। राखे सकल कपिन्ह के प्राना।। + +सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ। कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेऊ। + +राम कपिन्ह जब आवत देखा। किएँ काजु मन हरष बिसेषा।। + +फटिक सिला बैठे द्वौ भाई। परे सकल कपि चरनन्हि जाई।।प्रीति सहित सब भेटे रघुपति करुना पुंज। + +पूँछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज।।29।।जामवंत कह सुनु रघुराया। जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया।। + +ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर। सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर।। + +सोइ बिजई बिनई गुन सागर। तासु सुजसु त्रेलोक उजागर।। + +प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू। जन्म हमार सुफल भा आजू।। + +नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी। सहसहुँ मुख न जाइ सो बरनी।। + +पवनतनय के चरित सुहाए। जामवंत रघुपतिहि सुनाए।। + +सुनत कृपानिधि मन अति भाए। पुनि हनुमान हरषि हियँ लाए।। + +कहहु तात केहि भाँति जानकी। रहति करति रच्छा स्वप्रान की।।नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट। + +लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट।।30।।चलत मोहि चूड़ामनि दीन्ही। रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही।। + +नाथ जुगल लोचन भरि बारी। बचन कहे कछु जनककुमारी।। + +अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना। दीन बंधु प्रनतारति हरना।। + +मन क्रम बचन चरन अनुरागी। केहि अपराध नाथ हौं त्यागी।। + +अवगुन एक मोर मैं माना। बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना।। + +नाथ सो नयनन्हि को अपराधा। निसरत प्रान करिहिं हठि बाधा।। + +बिरह अगिनि तनु तूल समीरा। स्वास जरइ छन माहिं सरीरा।। + +नयन स्त्रवहि जलु निज हित लागी। जरैं न पाव देह बिरहागी। + +सीता के अति बिपति बिसाला। बिनहिं कहें भलि दीनदयाला।।निमिष निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति। + +बेगि चलिय प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति।।31।।सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना। भरि आए जल राजिव नयना।। + +बचन काँय मन मम गति जाही। सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही।। + +कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई। जब तव सुमिरन भजन न होई।। + +केतिक बात प्रभु जातुधान की। रिपुहि जीति आनिबी जानकी।। + +सुनु कपि तोहि समान उपकारी। नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी।। + +प्रति उपकार करौं का तोरा। सनमुख होइ न सकत मन मोरा।। + +सुनु सुत उरिन मैं नाहीं। देखेउँ करि बिचार मन माहीं।। + +पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता। लोचन नीर पुलक अति गाता।।सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत। + +चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत।।32।।बार बार प्रभु चहइ उठावा। प्रेम मगन तेहि उठब न भावा।। + +प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा।। + +सावधान मन करि पुनि संकर। लागे कहन कथा अति सुंदर।। + +कपि उठाइ प्रभु हृदयँ लगावा। कर गहि परम निकट बैठावा।। + +कहु कपि रावन पालित लंका। केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका।। + +प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना। बोला बचन बिगत अभिमाना।। + +स��खामृग के बड़ि मनुसाई। साखा तें साखा पर जाई।। + +नाघि सिंधु हाटकपुर जारा। निसिचर गन बिधि बिपिन उजारा। + +सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई।।ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकुल। + +तब प्रभावँ बड़वानलहिं जारि सकइ खलु तूल।।33।।नाथ भगति अति सुखदायनी। देहु कृपा करि अनपायनी।। + +सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी। एवमस्तु तब कहेउ भवानी।। + +उमा राम सुभाउ जेहिं जाना। ताहि भजनु तजि भाव न आना।। + +यह संवाद जासु उर आवा। रघुपति चरन भगति सोइ पावा।। + +सुनि प्रभु बचन कहहिं कपिबृंदा। जय जय जय कृपाल सुखकंदा।। + +तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा। कहा चलैं कर करहु बनावा।। + +अब बिलंबु केहि कारन कीजे। तुरत कपिन्ह कहुँ आयसु दीजे।। + +कौतुक देखि सुमन बहु बरषी। नभ तें भवन चले सुर हरषी।।कपिपति बेगि बोलाए आए जूथप जूथ। + +नाना बरन अतुल बल बानर भालु बरूथ।।34।।प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा। गरजहिं भालु महाबल कीसा।। + +देखी राम सकल कपि सेना। चितइ कृपा करि राजिव नैना।। + +राम कृपा बल पाइ कपिंदा। भए पच्छजुत मनहुँ गिरिंदा।। + +हरषि राम तब कीन्ह पयाना। सगुन भए सुंदर सुभ नाना।। + +जासु सकल मंगलमय कीती। तासु पयान सगुन यह नीती।। + +प्रभु पयान जाना बैदेहीं। फरकि बाम अँग जनु कहि देहीं।। + +जोइ जोइ सगुन जानकिहि होई। असगुन भयउ रावनहि सोई।। + +चला कटकु को बरनैं पारा। गर्जहि बानर भालु अपारा।। + +नख आयुध गिरि पादपधारी। चले गगन महि इच्छाचारी।। + +केहरिनाद भालु कपि करहीं। डगमगाहिं दिग्गज चिक्करहीं।।चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खरभरे। + +मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किन्नर दुख टरे।। + +कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं। + +जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं।।1।। + +सहि सक न भार उदार अहिपति बार बारहिं मोहई। + +गह दसन पुनि पुनि कमठ पृष्ट कठोर सो किमि सोहई।। + +रघुबीर रुचिर प्रयान प्रस्थिति जानि परम सुहावनी। + +जनु कमठ खर्पर सर्पराज सो लिखत अबिचल पावनी।।2।।एहि बिधि जाइ कृपानिधि उतरे सागर तीर। + +जहँ तहँ लागे खान फल भालु बिपुल कपि बीर।।35।।उहाँ निसाचर रहहिं ससंका। जब ते जारि गयउ कपि लंका।। + +निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा। नहिं निसिचर कुल केर उबारा।। + +जासु दूत बल बरनि न जाई। तेहि आएँ पुर कवन भलाई।। + +दूतन्हि सन सुनि पुरजन बानी। मंदोदरी अधिक अकुलानी।। + +रहसि जो���ि कर पति पग लागी। बोली बचन नीति रस पागी।। + +कंत करष हरि सन परिहरहू। मोर कहा अति हित हियँ धरहु।। + +समुझत जासु दूत कइ करनी। स्त्रवहीं गर्भ रजनीचर धरनी।। + +तासु नारि निज सचिव बोलाई। पठवहु कंत जो चहहु भलाई।। + +तब कुल कमल बिपिन दुखदाई। सीता सीत निसा सम आई।। + +सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें। हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें।।-राम बान अहि गन सरिस निकर निसाचर भेक। + +जब लगि ग्रसत न तब लगि जतनु करहु तजि टेक।।36।।श्रवन सुनी सठ ता करि बानी। बिहसा जगत बिदित अभिमानी।। + +सभय सुभाउ नारि कर साचा। मंगल महुँ भय मन अति काचा।। + +जौं आवइ मर्कट कटकाई। जिअहिं बिचारे निसिचर खाई।। + +कंपहिं लोकप जाकी त्रासा। तासु नारि सभीत बड़ि हासा।। + +अस कहि बिहसि ताहि उर लाई। चलेउ सभाँ ममता अधिकाई।। + +मंदोदरी हृदयँ कर चिंता। भयउ कंत पर बिधि बिपरीता।। + +बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई। सिंधु पार सेना सब आई।। + +बूझेसि सचिव उचित मत कहहू। ते सब हँसे मष्ट करि रहहू।। + +जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं। नर बानर केहि लेखे माही।।सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस। + +राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास।।37।।सोइ रावन कहुँ बनि सहाई। अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई।। + +अवसर जानि बिभीषनु आवा। भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा।। + +पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन। बोला बचन पाइ अनुसासन।। + +जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता। मति अनुरुप कहउँ हित ताता।। + +जो आपन चाहै कल्याना। सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना।। + +सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चंद कि नाई।। + +चौदह भुवन एक पति होई। भूतद्रोह तिष्टइ नहिं सोई।। + +गुन सागर नागर नर जोऊ। अलप लोभ भल कहइ न कोऊ।।काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ। + +सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत।।38।।तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहु कर काला।। + +ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक अजित अनादि अनंता।। + +गो द्विज धेनु देव हितकारी। कृपासिंधु मानुष तनुधारी।। + +जन रंजन भंजन खल ब्राता। बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता।। + +ताहि बयरु तजि नाइअ माथा। प्रनतारति भंजन रघुनाथा।। + +देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही। भजहु राम बिनु हेतु सनेही।। + +सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा। बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा।। + +जासु नाम त्रय ताप नसावन। सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन।।बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस। + +परिहरि मान मोह मद भजह�� कोसलाधीस।।39(क)।। + +मुनि पुलस्ति निज सिष्य सन कहि पठई यह बात। + +तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरु तात।।39(ख)।।माल्यवंत अति सचिव सयाना। तासु बचन सुनि अति सुख माना।। + +तात अनुज तव नीति बिभूषन। सो उर धरहु जो कहत बिभीषन।। + +रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ। दूरि न करहु इहाँ हइ कोऊ।। + +माल्यवंत गृह गयउ बहोरी। कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी।। + +सुमति कुमति सब कें उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं।। + +जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना।। + +तव उर कुमति बसी बिपरीता। हित अनहित मानहु रिपु प्रीता।। + +कालराति निसिचर कुल केरी। तेहि सीता पर प्रीति घनेरी।।तात चरन गहि मागउँ राखहु मोर दुलार। + +सीत देहु राम कहुँ अहित न होइ तुम्हार।।40।।बुध पुरान श्रुति संमत बानी। कही बिभीषन नीति बखानी।। + +सुनत दसानन उठा रिसाई। खल तोहि निकट मुत्यु अब आई।। + +जिअसि सदा सठ मोर जिआवा। रिपु कर पच्छ मूढ़ तोहि भावा।। + +कहसि न खल अस को जग माहीं। भुज बल जाहि जिता मैं नाही।। + +मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती। सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीती।। + +अस कहि कीन्हेसि चरन प्रहारा। अनुज गहे पद बारहिं बारा।। + +उमा संत कइ इहइ बड़ाई। मंद करत जो करइ भलाई।। + +तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा। रामु भजें हित नाथ तुम्हारा।। + +सचिव संग लै नभ पथ गयऊ। सबहि सुनाइ कहत अस भयऊ।।रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि। + +मै रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि।।41।।अस कहि चला बिभीषनु जबहीं। आयूहीन भए सब तबहीं।। + +साधु अवग्या तुरत भवानी। कर कल्यान अखिल कै हानी।। + +रावन जबहिं बिभीषन त्यागा। भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा।। + +चलेउ हरषि रघुनायक पाहीं। करत मनोरथ बहु मन माहीं।। + +देखिहउँ जाइ चरन जलजाता। अरुन मृदुल सेवक सुखदाता।। + +जे पद परसि तरी रिषिनारी। दंडक कानन पावनकारी।। + +जे पद जनकसुताँ उर लाए। कपट कुरंग संग धर धाए।। + +हर उर सर सरोज पद जेई। अहोभाग्य मै देखिहउँ तेई।।जिन्ह पायन्ह के पादुकन्हि भरतु रहे मन लाइ। + +ते पद आजु बिलोकिहउँ इन्ह नयनन्हि अब जाइ।।42।।एहि बिधि करत सप्रेम बिचारा। आयउ सपदि सिंधु एहिं पारा।। + +कपिन्ह बिभीषनु आवत देखा। जाना कोउ रिपु दूत बिसेषा।। + +ताहि राखि कपीस पहिं आए। समाचार सब ताहि सुनाए।। + +कह सुग्रीव सुनहु रघुराई। आवा मिलन दसानन भाई।। + +कह प्रभु सखा बूझिऐ काहा। कहइ कपीस सुनहु नरनाहा।। + +ज��नि न जाइ निसाचर माया। कामरूप केहि कारन आया।। + +भेद हमार लेन सठ आवा। राखिअ बाँधि मोहि अस भावा।। + +सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी। मम पन सरनागत भयहारी।। + +सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना। सरनागत बच्छल भगवाना।।सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि। + +ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि।।43।।कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू। आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू।। + +सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं।। + +पापवंत कर सहज सुभाऊ। भजनु मोर तेहि भाव न काऊ।। + +जौं पै दुष्टहदय सोइ होई। मोरें सनमुख आव कि सोई।। + +निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा।। + +भेद लेन पठवा दससीसा। तबहुँ न कछु भय हानि कपीसा।। + +जग महुँ सखा निसाचर जेते। लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते।। + +जौं सभीत आवा सरनाई। रखिहउँ ताहि प्रान की नाई।।उभय भाँति तेहि आनहु हँसि कह कृपानिकेत। + +जय कृपाल कहि चले अंगद हनू समेत।।44।।सादर तेहि आगें करि बानर। चले जहाँ रघुपति करुनाकर।। + +दूरिहि ते देखे द्वौ भ्राता। नयनानंद दान के दाता।। + +बहुरि राम छबिधाम बिलोकी। रहेउ ठटुकि एकटक पल रोकी।। + +भुज प्रलंब कंजारुन लोचन। स्यामल गात प्रनत भय मोचन।। + +सिंघ कंध आयत उर सोहा। आनन अमित मदन मन मोहा।। + +नयन नीर पुलकित अति गाता। मन धरि धीर कही मृदु बाता।। + +नाथ दसानन कर मैं भ्राता। निसिचर बंस जनम सुरत्राता।। + +सहज पापप्रिय तामस देहा। जथा उलूकहि तम पर नेहा।।श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर। + +त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर।।45।।अस कहि करत दंडवत देखा। तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा।। + +दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा। भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा।। + +अनुज सहित मिलि ढिग बैठारी। बोले बचन भगत भयहारी।। + +कहु लंकेस सहित परिवारा। कुसल कुठाहर बास तुम्हारा।। + +खल मंडलीं बसहु दिनु राती। सखा धरम निबहइ केहि भाँती।। + +मैं जानउँ तुम्हारि सब रीती। अति नय निपुन न भाव अनीती।। + +बरु भल बास नरक कर ताता। दुष्ट संग जनि देइ बिधाता।। + +अब पद देखि कुसल रघुराया। जौं तुम्ह कीन्ह जानि जन दाया।।तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम। + +जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम।।46।।तब लगि हृदयँ बसत खल नाना। लोभ मोह मच्छर मद माना।। + +जब लगि उर न बसत रघुनाथा। धरें चाप सायक कटि भाथा।। + +ममता तरुन तमी अँधिआरी। राग द्वेष उलूक सुखकारी।। + +तब ��गि बसति जीव मन माहीं। जब लगि प्रभु प्रताप रबि नाहीं।। + +अब मैं कुसल मिटे भय भारे। देखि राम पद कमल तुम्हारे।। + +तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला। ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला।। + +मैं निसिचर अति अधम सुभाऊ। सुभ आचरनु कीन्ह नहिं काऊ।। + +जासु रूप मुनि ध्यान न आवा। तेहिं प्रभु हरषि हृदयँ मोहि लावा।।-अहोभाग्य मम अमित अति राम कृपा सुख पुंज। + +देखेउँ नयन बिरंचि सिब सेब्य जुगल पद कंज।।47।।सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ। जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ।। + +जौं नर होइ चराचर द्रोही। आवे सभय सरन तकि मोही।। + +तजि मद मोह कपट छल नाना। करउँ सद्य तेहि साधु समाना।। + +जननी जनक बंधु सुत दारा। तनु धनु भवन सुह्रद परिवारा।। + +सब कै ममता ताग बटोरी। मम पद मनहि बाँध बरि डोरी।। + +समदरसी इच्छा कछु नाहीं। हरष सोक भय नहिं मन माहीं।। + +अस सज्जन मम उर बस कैसें। लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसें।। + +तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें। धरउँ देह नहिं आन निहोरें।।सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम। + +ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम।।48।।सुनु लंकेस सकल गुन तोरें। तातें तुम्ह अतिसय प्रिय मोरें।। + +राम बचन सुनि बानर जूथा। सकल कहहिं जय कृपा बरूथा।। + +सुनत बिभीषनु प्रभु कै बानी। नहिं अघात श्रवनामृत जानी।। + +पद अंबुज गहि बारहिं बारा। हृदयँ समात न प्रेमु अपारा।। + +सुनहु देव सचराचर स्वामी। प्रनतपाल उर अंतरजामी।। + +उर कछु प्रथम बासना रही। प्रभु पद प्रीति सरित सो बही।। + +अब कृपाल निज भगति पावनी। देहु सदा सिव मन भावनी।। + +एवमस्तु कहि प्रभु रनधीरा। मागा तुरत सिंधु कर नीरा।। + +जदपि सखा तव इच्छा नाहीं। मोर दरसु अमोघ जग माहीं।। + +अस कहि राम तिलक तेहि सारा। सुमन बृष्टि नभ भई अपारा।।रावन क्रोध अनल निज स्वास समीर प्रचंड। + +जरत बिभीषनु राखेउ दीन्हेहु राजु अखंड।।49(क)।। + +जो संपति सिव रावनहि दीन्हि दिएँ दस माथ। + +सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्ह रघुनाथ।।49(ख)।।अस प्रभु छाड़ि भजहिं जे आना। ते नर पसु बिनु पूँछ बिषाना।। + +निज जन जानि ताहि अपनावा। प्रभु सुभाव कपि कुल मन भावा।। + +पुनि सर्बग्य सर्ब उर बासी। सर्बरूप सब रहित उदासी।। + +बोले बचन नीति प्रतिपालक। कारन मनुज दनुज कुल घालक।। + +सुनु कपीस लंकापति बीरा। केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा।। + +संकुल मकर उरग झष जाती। अति अगाध दुस्तर सब भाँती।। + +कह लंकेस सुनहु रघुनाय���। कोटि सिंधु सोषक तव सायक।। + +जद्यपि तदपि नीति असि गाई। बिनय करिअ सागर सन जाई।।प्रभु तुम्हार कुलगुर जलधि कहिहि उपाय बिचारि। + +बिनु प्रयास सागर तरिहि सकल भालु कपि धारि।।50।।सखा कही तुम्ह नीकि उपाई। करिअ दैव जौं होइ सहाई।। + +मंत्र न यह लछिमन मन भावा। राम बचन सुनि अति दुख पावा।। + +नाथ दैव कर कवन भरोसा। सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा।। + +कादर मन कहुँ एक अधारा। दैव दैव आलसी पुकारा।। + +सुनत बिहसि बोले रघुबीरा। ऐसेहिं करब धरहु मन धीरा।। + +अस कहि प्रभु अनुजहि समुझाई। सिंधु समीप गए रघुराई।। + +प्रथम प्रनाम कीन्ह सिरु नाई। बैठे पुनि तट दर्भ डसाई।। + +जबहिं बिभीषन प्रभु पहिं आए। पाछें रावन दूत पठाए।।सकल चरित तिन्ह देखे धरें कपट कपि देह। + +प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह।।51।।प्रगट बखानहिं राम सुभाऊ। अति सप्रेम गा बिसरि दुराऊ।। + +रिपु के दूत कपिन्ह तब जाने। सकल बाँधि कपीस पहिं आने।। + +कह सुग्रीव सुनहु सब बानर। अंग भंग करि पठवहु निसिचर।। + +सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए। बाँधि कटक चहु पास फिराए।। + +बहु प्रकार मारन कपि लागे। दीन पुकारत तदपि न त्यागे।। + +जो हमार हर नासा काना। तेहि कोसलाधीस कै आना।। + +सुनि लछिमन सब निकट बोलाए। दया लागि हँसि तुरत छोडाए।। + +रावन कर दीजहु यह पाती। लछिमन बचन बाचु कुलघाती।।कहेहु मुखागर मूढ़ सन मम संदेसु उदार। + +सीता देइ मिलेहु न त आवा काल तुम्हार।।52।।तुरत नाइ लछिमन पद माथा। चले दूत बरनत गुन गाथा।। + +कहत राम जसु लंकाँ आए। रावन चरन सीस तिन्ह नाए।। + +बिहसि दसानन पूँछी बाता। कहसि न सुक आपनि कुसलाता।। + +पुनि कहु खबरि बिभीषन केरी। जाहि मृत्यु आई अति नेरी।। + +करत राज लंका सठ त्यागी। होइहि जब कर कीट अभागी।। + +पुनि कहु भालु कीस कटकाई। कठिन काल प्रेरित चलि आई।। + +जिन्ह के जीवन कर रखवारा। भयउ मृदुल चित सिंधु बिचारा।। + +कहु तपसिन्ह कै बात बहोरी। जिन्ह के हृदयँ त्रास अति मोरी।।-की भइ भेंट कि फिरि गए श्रवन सुजसु सुनि मोर। + +कहसि न रिपु दल तेज बल बहुत चकित चित तोर।।53।।नाथ कृपा करि पूँछेहु जैसें। मानहु कहा क्रोध तजि तैसें।। + +मिला जाइ जब अनुज तुम्हारा। जातहिं राम तिलक तेहि सारा।। + +रावन दूत हमहि सुनि काना। कपिन्ह बाँधि दीन्हे दुख नाना।। + +श्रवन नासिका काटै लागे। राम सपथ दीन्हे हम त्यागे।। + +पूँछिहु नाथ राम कटकाई। बदन कोटि सत बरनि न जाई।। + +नाना बरन भालु कपि धारी। बिकटानन बिसाल भयकारी।। + +जेहिं पुर दहेउ हतेउ सुत तोरा। सकल कपिन्ह महँ तेहि बलु थोरा।। + +अमित नाम भट कठिन कराला। अमित नाग बल बिपुल बिसाला।।द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि। + +दधिमुख केहरि निसठ सठ जामवंत बलरासि।।54।।ए कपि सब सुग्रीव समाना। इन्ह सम कोटिन्ह गनइ को नाना।। + +राम कृपाँ अतुलित बल तिन्हहीं। तृन समान त्रेलोकहि गनहीं।। + +अस मैं सुना श्रवन दसकंधर। पदुम अठारह जूथप बंदर।। + +नाथ कटक महँ सो कपि नाहीं। जो न तुम्हहि जीतै रन माहीं।। + +परम क्रोध मीजहिं सब हाथा। आयसु पै न देहिं रघुनाथा।। + +सोषहिं सिंधु सहित झष ब्याला। पूरहीं न त भरि कुधर बिसाला।। + +मर्दि गर्द मिलवहिं दससीसा। ऐसेइ बचन कहहिं सब कीसा।। + +गर्जहिं तर्जहिं सहज असंका। मानहु ग्रसन चहत हहिं लंका।।-सहज सूर कपि भालु सब पुनि सिर पर प्रभु राम। + +रावन काल कोटि कहु जीति सकहिं संग्राम।।55।।राम तेज बल बुधि बिपुलाई। सेष सहस सत सकहिं न गाई।। + +सक सर एक सोषि सत सागर। तब भ्रातहि पूँछेउ नय नागर।। + +तासु बचन सुनि सागर पाहीं। मागत पंथ कृपा मन माहीं।। + +सुनत बचन बिहसा दससीसा। जौं असि मति सहाय कृत कीसा।। + +सहज भीरु कर बचन दृढ़ाई। सागर सन ठानी मचलाई।। + +मूढ़ मृषा का करसि बड़ाई। रिपु बल बुद्धि थाह मैं पाई।। + +सचिव सभीत बिभीषन जाकें। बिजय बिभूति कहाँ जग ताकें।। + +सुनि खल बचन दूत रिस बाढ़ी। समय बिचारि पत्रिका काढ़ी।। + +रामानुज दीन्ही यह पाती। नाथ बचाइ जुड़ावहु छाती।। + +बिहसि बाम कर लीन्ही रावन। सचिव बोलि सठ लाग बचावन।।बातन्ह मनहि रिझाइ सठ जनि घालसि कुल खीस। + +राम बिरोध न उबरसि सरन बिष्नु अज ईस।।56(क)।। + +की तजि मान अनुज इव प्रभु पद पंकज भृंग। + +होहि कि राम सरानल खल कुल सहित पतंग।।56(ख)।।सुनत सभय मन मुख मुसुकाई। कहत दसानन सबहि सुनाई।। + +भूमि परा कर गहत अकासा। लघु तापस कर बाग बिलासा।। + +कह सुक नाथ सत्य सब बानी। समुझहु छाड़ि प्रकृति अभिमानी।। + +सुनहु बचन मम परिहरि क्रोधा। नाथ राम सन तजहु बिरोधा।। + +अति कोमल रघुबीर सुभाऊ। जद्यपि अखिल लोक कर राऊ।। + +मिलत कृपा तुम्ह पर प्रभु करिही। उर अपराध न एकउ धरिही।। + +जनकसुता रघुनाथहि दीजे। एतना कहा मोर प्रभु कीजे। + +जब तेहिं कहा देन बैदेही। चरन प्रहार कीन्ह सठ तेही।। + +नाइ चरन सिरु चला सो तहाँ। कृपासिंधु रघुनायक जहाँ।। + +करि प्रन��मु निज कथा सुनाई। राम कृपाँ आपनि गति पाई।। + +रिषि अगस्ति कीं साप भवानी। राछस भयउ रहा मुनि ग्यानी।। + +बंदि राम पद बारहिं बारा। मुनि निज आश्रम कहुँ पगु धारा।।बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीति। + +बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति।।57।।लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू।। + +सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती। सहज कृपन सन सुंदर नीती।। + +ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी।। + +क्रोधिहि सम कामिहि हरि कथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा।। + +अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा। यह मत लछिमन के मन भावा।। + +संघानेउ प्रभु बिसिख कराला। उठी उदधि उर अंतर ज्वाला।। + +मकर उरग झष गन अकुलाने। जरत जंतु जलनिधि जब जाने।। + +कनक थार भरि मनि गन नाना। बिप्र रूप आयउ तजि माना।।काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच। + +बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच।।58।।सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे। छमहु नाथ सब अवगुन मेरे।। + +गगन समीर अनल जल धरनी। इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी।। + +तव प्रेरित मायाँ उपजाए। सृष्टि हेतु सब ग्रंथनि गाए।। + +प्रभु आयसु जेहि कहँ जस अहई। सो तेहि भाँति रहे सुख लहई।। + +प्रभु भल कीन्ही मोहि सिख दीन्ही। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही।। + +ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।। + +प्रभु प्रताप मैं जाब सुखाई। उतरिहि कटकु न मोरि बड़ाई।। + +प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई। करौं सो बेगि जौ तुम्हहि सोहाई।।सुनत बिनीत बचन अति कह कृपाल मुसुकाइ। + +जेहि बिधि उतरै कपि कटकु तात सो कहहु उपाइ।।59।।रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं + +योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्। + +मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवं + +वन्दे कन्दावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम्।।1।। + +शंखेन्द्वाभमतीवसुन्दरतनुं शार्दूलचर्माम्बरं + +कालव्यालकरालभूषणधरं गंगाशशांकप्रियम्। + +काशीशं कलिकल्मषौघशमनं कल्याणकल्पद्रुमं + +नौमीड्यं गिरिजापतिं गुणनिधिं कन्दर्पहं शङ्करम्।।2।। + +यो ददाति सतां शम्भुः कैवल्यमपि दुर्लभम्। + +खलानां दण्डकृद्योऽसौ शङ्करः शं तनोतु मे।।3।।लव निमेष परमानु जुग बरष कलप सर चंड। + +भजसि न मन तेहि राम को कालु जासु कोदंड।। + +सिंधु बचन सुनि राम सचिव बोलि प्रभु अस कहेउ। + +अब बिलंबु केहि काम करहु सेतु उतरै कटकु।। + +सुनहु भानुकुल केत��� जामवंत कर जोरि कह। + +नाथ नाम तव सेतु नर चढ़ि भव सागर तरिहिं।।यह लघु जलधि तरत कति बारा। अस सुनि पुनि कह पवनकुमारा।। + +प्रभु प्रताप बड़वानल भारी। सोषेउ प्रथम पयोनिधि बारी।। + +तब रिपु नारी रुदन जल धारा। भरेउ बहोरि भयउ तेहिं खारा।। + +सुनि अति उकुति पवनसुत केरी। हरषे कपि रघुपति तन हेरी।। + +जामवंत बोले दोउ भाई। नल नीलहि सब कथा सुनाई।। + +राम प्रताप सुमिरि मन माहीं। करहु सेतु प्रयास कछु नाहीं।। + +बोलि लिए कपि निकर बहोरी। सकल सुनहु बिनती कछु मोरी।। + +राम चरन पंकज उर धरहू। कौतुक एक भालु कपि करहू।। + +धावहु मर्कट बिकट बरूथा। आनहु बिटप गिरिन्ह के जूथा।। + +सुनि कपि भालु चले करि हूहा। जय रघुबीर प्रताप समूहा।।अति उतंग गिरि पादप लीलहिं लेहिं उठाइ। + +आनि देहिं नल नीलहि रचहिं ते सेतु बनाइ।।1।।सैल बिसाल आनि कपि देहीं। कंदुक इव नल नील ते लेहीं।। + +देखि सेतु अति सुंदर रचना। बिहसि कृपानिधि बोले बचना।। + +परम रम्य उत्तम यह धरनी। महिमा अमित जाइ नहिं बरनी।। + +करिहउँ इहाँ संभु थापना। मोरे हृदयँ परम कलपना।। + +सुनि कपीस बहु दूत पठाए। मुनिबर सकल बोलि लै आए।। + +लिंग थापि बिधिवत करि पूजा। सिव समान प्रिय मोहि न दूजा।। + +सिव द्रोही मम भगत कहावा। सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा।। + +संकर बिमुख भगति चह मोरी। सो नारकी मूढ़ मति थोरी।।संकर प्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास। + +ते नर करहि कलप भरि धोर नरक महुँ बास।।2।।जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं। ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं।। + +जो गंगाजलु आनि चढ़ाइहि। सो साजुज्य मुक्ति नर पाइहि।। + +होइ अकाम जो छल तजि सेइहि। भगति मोरि तेहि संकर देइहि।। + +मम कृत सेतु जो दरसनु करिही। सो बिनु श्रम भवसागर तरिही।। + +राम बचन सब के जिय भाए। मुनिबर निज निज आश्रम आए।। + +गिरिजा रघुपति कै यह रीती। संतत करहिं प्रनत पर प्रीती।। + +बाँधा सेतु नील नल नागर। राम कृपाँ जसु भयउ उजागर।। + +बूड़हिं आनहि बोरहिं जेई। भए उपल बोहित सम तेई।। + +महिमा यह न जलधि कइ बरनी। पाहन गुन न कपिन्ह कइ करनी।।श्री रघुबीर प्रताप ते सिंधु तरे पाषान। + +ते मतिमंद जे राम तजि भजहिं जाइ प्रभु आन।।3।।बाँधि सेतु अति सुदृढ़ बनावा। देखि कृपानिधि के मन भावा।। + +चली सेन कछु बरनि न जाई। गर्जहिं मर्कट भट समुदाई।। + +सेतुबंध ढिग चढ़ि रघुराई। चितव कृपाल सिंधु बहुताई।। + +देखन कहुँ प्रभु करुना कंदा। प्र��ट भए सब जलचर बृंदा।। + +मकर नक्र नाना झष ब्याला। सत जोजन तन परम बिसाला।। + +अइसेउ एक तिन्हहि जे खाहीं। एकन्ह कें डर तेपि डेराहीं।। + +प्रभुहि बिलोकहिं टरहिं न टारे। मन हरषित सब भए सुखारे।। + +तिन्ह की ओट न देखिअ बारी। मगन भए हरि रूप निहारी।। + +चला कटकु प्रभु आयसु पाई। को कहि सक कपि दल बिपुलाई।।सेतुबंध भइ भीर अति कपि नभ पंथ उड़ाहिं। + +अपर जलचरन्हि ऊपर चढ़ि चढ़ि पारहि जाहिं।।4।।अस कौतुक बिलोकि द्वौ भाई। बिहँसि चले कृपाल रघुराई।। + +सेन सहित उतरे रघुबीरा। कहि न जाइ कपि जूथप भीरा।। + +सिंधु पार प्रभु डेरा कीन्हा। सकल कपिन्ह कहुँ आयसु दीन्हा।। + +खाहु जाइ फल मूल सुहाए। सुनत भालु कपि जहँ तहँ धाए।। + +सब तरु फरे राम हित लागी। रितु अरु कुरितु काल गति त्यागी।। + +खाहिं मधुर फल बटप हलावहिं। लंका सन्मुख सिखर चलावहिं।। + +जहँ कहुँ फिरत निसाचर पावहिं। घेरि सकल बहु नाच नचावहिं।। + +दसनन्हि काटि नासिका काना। कहि प्रभु सुजसु देहिं तब जाना।। + +जिन्ह कर नासा कान निपाता। तिन्ह रावनहि कही सब बाता।। + +सुनत श्रवन बारिधि बंधाना। दस मुख बोलि उठा अकुलाना।।बांध्यो बननिधि नीरनिधि जलधि सिंधु बारीस। + +सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि नदीस।।5।।निज बिकलता बिचारि बहोरी। बिहँसि गयउ ग्रह करि भय भोरी।। + +मंदोदरीं सुन्यो प्रभु आयो। कौतुकहीं पाथोधि बँधायो।। + +कर गहि पतिहि भवन निज आनी। बोली परम मनोहर बानी।। + +चरन नाइ सिरु अंचलु रोपा। सुनहु बचन पिय परिहरि कोपा।। + +नाथ बयरु कीजे ताही सों। बुधि बल सकिअ जीति जाही सों।। + +तुम्हहि रघुपतिहि अंतर कैसा। खलु खद्योत दिनकरहि जैसा।। + +अतिबल मधु कैटभ जेहिं मारे। महाबीर दितिसुत संघारे।। + +जेहिं बलि बाँधि सहजभुज मारा। सोइ अवतरेउ हरन महि भारा।। + +तासु बिरोध न कीजिअ नाथा। काल करम जिव जाकें हाथा।।रामहि सौपि जानकी नाइ कमल पद माथ। + +सुत कहुँ राज समर्पि बन जाइ भजिअ रघुनाथ।।6।।नाथ दीनदयाल रघुराई। बाघउ सनमुख गएँ न खाई।। + +चाहिअ करन सो सब करि बीते। तुम्ह सुर असुर चराचर जीते।। + +संत कहहिं असि नीति दसानन। चौथेंपन जाइहि नृप कानन।। + +तासु भजन कीजिअ तहँ भर्ता। जो कर्ता पालक संहर्ता।। + +सोइ रघुवीर प्रनत अनुरागी। भजहु नाथ ममता सब त्यागी।। + +मुनिबर जतनु करहिं जेहि लागी। भूप राजु तजि होहिं बिरागी।। + +सोइ कोसलधीस रघुराया। आयउ करन तोहि पर दाया।। + +ज���ं पिय मानहु मोर सिखावन। सुजसु होइ तिहुँ पुर अति पावन।।अस कहि नयन नीर भरि गहि पद कंपित गात। + +नाथ भजहु रघुनाथहि अचल होइ अहिवात।।7।।तब रावन मयसुता उठाई। कहै लाग खल निज प्रभुताई।। + +सुनु तै प्रिया बृथा भय माना। जग जोधा को मोहि समाना।। + +बरुन कुबेर पवन जम काला। भुज बल जितेउँ सकल दिगपाला।। + +देव दनुज नर सब बस मोरें। कवन हेतु उपजा भय तोरें।। + +नाना बिधि तेहि कहेसि बुझाई। सभाँ बहोरि बैठ सो जाई।। + +मंदोदरीं हदयँ अस जाना। काल बस्य उपजा अभिमाना।। + +सभाँ आइ मंत्रिन्ह तेंहि बूझा। करब कवन बिधि रिपु सैं जूझा।। + +कहहिं सचिव सुनु निसिचर नाहा। बार बार प्रभु पूछहु काहा।। + +कहहु कवन भय करिअ बिचारा। नर कपि भालु अहार हमारा।।सब के बचन श्रवन सुनि कह प्रहस्त कर जोरि। + +निति बिरोध न करिअ प्रभु मत्रिंन्ह मति अति थोरि।।8।।कहहिं सचिव सठ ठकुरसोहाती। नाथ न पूर आव एहि भाँती।। + +बारिधि नाघि एक कपि आवा। तासु चरित मन महुँ सबु गावा।। + +छुधा न रही तुम्हहि तब काहू। जारत नगरु कस न धरि खाहू।। + +सुनत नीक आगें दुख पावा। सचिवन अस मत प्रभुहि सुनावा।। + +जेहिं बारीस बँधायउ हेला। उतरेउ सेन समेत सुबेला।। + +सो भनु मनुज खाब हम भाई। बचन कहहिं सब गाल फुलाई।। + +तात बचन मम सुनु अति आदर। जनि मन गुनहु मोहि करि कादर।। + +प्रिय बानी जे सुनहिं जे कहहीं। ऐसे नर निकाय जग अहहीं।। + +बचन परम हित सुनत कठोरे। सुनहिं जे कहहिं ते नर प्रभु थोरे।। + +प्रथम बसीठ पठउ सुनु नीती। सीता देइ करहु पुनि प्रीती।।नारि पाइ फिरि जाहिं जौं तौ न बढ़ाइअ रारि। + +नाहिं त सन्मुख समर महि तात करिअ हठि मारि।।9।।यह मत जौं मानहु प्रभु मोरा। उभय प्रकार सुजसु जग तोरा।। + +सुत सन कह दसकंठ रिसाई। असि मति सठ केहिं तोहि सिखाई।। + +अबहीं ते उर संसय होई। बेनुमूल सुत भयहु घमोई।। + +सुनि पितु गिरा परुष अति घोरा। चला भवन कहि बचन कठोरा।। + +हित मत तोहि न लागत कैसें। काल बिबस कहुँ भेषज जैसें।। + +संध्या समय जानि दससीसा। भवन चलेउ निरखत भुज बीसा।। + +लंका सिखर उपर आगारा। अति बिचित्र तहँ होइ अखारा।। + +बैठ जाइ तेही मंदिर रावन। लागे किंनर गुन गन गावन।। + +बाजहिं ताल पखाउज बीना। नृत्य करहिं अपछरा प्रबीना।।सुनासीर सत सरिस सो संतत करइ बिलास। + +परम प्रबल रिपु सीस पर तद्यपि सोच न त्रास।।10।।इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा। उतरे सेन सहित अति भीरा।। + +सिखर एक उतंग अति देखी। परम रम्य सम सुभ्र बिसेषी।। + +तहँ तरु किसलय सुमन सुहाए। लछिमन रचि निज हाथ डसाए।। + +ता पर रूचिर मृदुल मृगछाला। तेहीं आसान आसीन कृपाला।। + +प्रभु कृत सीस कपीस उछंगा। बाम दहिन दिसि चाप निषंगा।। + +दुहुँ कर कमल सुधारत बाना। कह लंकेस मंत्र लगि काना।। + +बड़भागी अंगद हनुमाना। चरन कमल चापत बिधि नाना।। + +प्रभु पाछें लछिमन बीरासन। कटि निषंग कर बान सरासन।।एहि बिधि कृपा रूप गुन धाम रामु आसीन। + +धन्य ते नर एहिं ध्यान जे रहत सदा लयलीन।।11(क)।। + +पूरब दिसा बिलोकि प्रभु देखा उदित मंयक। + +कहत सबहि देखहु ससिहि मृगपति सरिस असंक।।11(ख)।।पूरब दिसि गिरिगुहा निवासी। परम प्रताप तेज बल रासी।। + +मत्त नाग तम कुंभ बिदारी। ससि केसरी गगन बन चारी।। + +बिथुरे नभ मुकुताहल तारा। निसि सुंदरी केर सिंगारा।। + +कह प्रभु ससि महुँ मेचकताई। कहहु काह निज निज मति भाई।। + +कह सुग़ीव सुनहु रघुराई। ससि महुँ प्रगट भूमि कै झाँई।। + +मारेउ राहु ससिहि कह कोई। उर महँ परी स्यामता सोई।। + +कोउ कह जब बिधि रति मुख कीन्हा। सार भाग ससि कर हरि लीन्हा।। + +छिद्र सो प्रगट इंदु उर माहीं। तेहि मग देखिअ नभ परिछाहीं।। + +प्रभु कह गरल बंधु ससि केरा। अति प्रिय निज उर दीन्ह बसेरा।। + +बिष संजुत कर निकर पसारी। जारत बिरहवंत नर नारी।।कह हनुमंत सुनहु प्रभु ससि तुम्हारा प्रिय दास। + +तव मूरति बिधु उर बसति सोइ स्यामता अभास।।12(क)।। + +पवन तनय के बचन सुनि बिहँसे रामु सुजान। + +दच्छिन दिसि अवलोकि प्रभु बोले कृपा निधान।।12(ख)।।देखु बिभीषन दच्छिन आसा। घन घंमड दामिनि बिलासा।। + +मधुर मधुर गरजइ घन घोरा। होइ बृष्टि जनि उपल कठोरा।। + +कहत बिभीषन सुनहु कृपाला। होइ न तड़ित न बारिद माला।। + +लंका सिखर उपर आगारा। तहँ दसकंघर देख अखारा।। + +छत्र मेघडंबर सिर धारी। सोइ जनु जलद घटा अति कारी।। + +मंदोदरी श्रवन ताटंका। सोइ प्रभु जनु दामिनी दमंका।। + +बाजहिं ताल मृदंग अनूपा। सोइ रव मधुर सुनहु सुरभूपा।। + +प्रभु मुसुकान समुझि अभिमाना। चाप चढ़ाइ बान संधाना।।छत्र मुकुट ताटंक तब हते एकहीं बान। + +सबकें देखत महि परे मरमु न कोऊ जान।।13(क)।। + +अस कौतुक करि राम सर प्रबिसेउ आइ निषंग। + +रावन सभा ससंक सब देखि महा रसभंग।।13(ख)।।कंप न भूमि न मरुत बिसेषा। अस्त्र सस्त्र कछु नयन न देखा।। + +सोचहिं सब निज हृदय मझारी। असगुन भयउ भयंकर भारी।। + +दसमुख दे���ि सभा भय पाई। बिहसि बचन कह जुगुति बनाई।। + +सिरउ गिरे संतत सुभ जाही। मुकुट परे कस असगुन ताही।। + +सयन करहु निज निज गृह जाई। गवने भवन सकल सिर नाई।। + +मंदोदरी सोच उर बसेऊ। जब ते श्रवनपूर महि खसेऊ।। + +सजल नयन कह जुग कर जोरी। सुनहु प्रानपति बिनती मोरी।। + +कंत राम बिरोध परिहरहू। जानि मनुज जनि हठ मन धरहू।।बिस्वरुप रघुबंस मनि करहु बचन बिस्वासु। + +लोक कल्पना बेद कर अंग अंग प्रति जासु।।14।।पद पाताल सीस अज धामा। अपर लोक अँग अँग बिश्रामा।। + +भृकुटि बिलास भयंकर काला। नयन दिवाकर कच घन माला।। + +जासु घ्रान अस्विनीकुमारा। निसि अरु दिवस निमेष अपारा।। + +श्रवन दिसा दस बेद बखानी। मारुत स्वास निगम निज बानी।। + +अधर लोभ जम दसन कराला। माया हास बाहु दिगपाला।। + +आनन अनल अंबुपति जीहा। उतपति पालन प्रलय समीहा।। + +रोम राजि अष्टादस भारा। अस्थि सैल सरिता नस जारा।। + +उदर उदधि अधगो जातना। जगमय प्रभु का बहु कलपना।।अहंकार सिव बुद्धि अज मन ससि चित्त महान। + +मनुज बास सचराचर रुप राम भगवान।।15(क)।। + +अस बिचारि सुनु प्रानपति प्रभु सन बयरु बिहाइ। + +प्रीति करहु रघुबीर पद मम अहिवात न जाइ।।15(ख)।।बिहँसा नारि बचन सुनि काना। अहो मोह महिमा बलवाना।। + +नारि सुभाउ सत्य सब कहहीं। अवगुन आठ सदा उर रहहीं।। + +साहस अनृत चपलता माया। भय अबिबेक असौच अदाया।। + +रिपु कर रुप सकल तैं गावा। अति बिसाल भय मोहि सुनावा।। + +सो सब प्रिया सहज बस मोरें। समुझि परा प्रसाद अब तोरें।। + +जानिउँ प्रिया तोरि चतुराई। एहि बिधि कहहु मोरि प्रभुताई।। + +तव बतकही गूढ़ मृगलोचनि। समुझत सुखद सुनत भय मोचनि।। + +मंदोदरि मन महुँ अस ठयऊ। पियहि काल बस मतिभ्रम भयऊ।।एहि बिधि करत बिनोद बहु प्रात प्रगट दसकंध। + +सहज असंक लंकपति सभाँ गयउ मद अंध।।16(क)।। + +फूलह फरइ न बेत जदपि सुधा बरषहिं जलद। + +मूरुख हृदयँ न चेत जौं गुर मिलहिं बिरंचि सम।।16(ख)।।इहाँ प्रात जागे रघुराई। पूछा मत सब सचिव बोलाई।। + +कहहु बेगि का करिअ उपाई। जामवंत कह पद सिरु नाई।। + +सुनु सर्बग्य सकल उर बासी। बुधि बल तेज धर्म गुन रासी।। + +मंत्र कहउँ निज मति अनुसारा। दूत पठाइअ बालिकुमारा।। + +नीक मंत्र सब के मन माना। अंगद सन कह कृपानिधाना।। + +बालितनय बुधि बल गुन धामा। लंका जाहु तात मम कामा।। + +बहुत बुझाइ तुम्हहि का कहऊँ। परम चतुर मैं जानत अहऊँ।। + +काजु हमार तासु हित होई। रिपु ��न करेहु बतकही सोई।।प्रभु अग्या धरि सीस चरन बंदि अंगद उठेउ। + +सोइ गुन सागर ईस राम कृपा जा पर करहु।।17(क)।। + +स्वयं सिद्ध सब काज नाथ मोहि आदरु दियउ। + +अस बिचारि जुबराज तन पुलकित हरषित हियउ।।17(ख)।।बंदि चरन उर धरि प्रभुताई। अंगद चलेउ सबहि सिरु नाई।। + +प्रभु प्रताप उर सहज असंका। रन बाँकुरा बालिसुत बंका।। + +पुर पैठत रावन कर बेटा। खेलत रहा सो होइ गै भैंटा।। + +बातहिं बात करष बढ़ि आई। जुगल अतुल बल पुनि तरुनाई।। + +तेहि अंगद कहुँ लात उठाई। गहि पद पटकेउ भूमि भवाँई।। + +निसिचर निकर देखि भट भारी। जहँ तहँ चले न सकहिं पुकारी।। + +एक एक सन मरमु न कहहीं। समुझि तासु बध चुप करि रहहीं।। + +भयउ कोलाहल नगर मझारी। आवा कपि लंका जेहीं जारी।। + +अब धौं कहा करिहि करतारा। अति सभीत सब करहिं बिचारा।। + +बिनु पूछें मगु देहिं दिखाई। जेहि बिलोक सोइ जाइ सुखाई।।गयउ सभा दरबार तब सुमिरि राम पद कंज। + +सिंह ठवनि इत उत चितव धीर बीर बल पुंज।।18।।तुरत निसाचर एक पठावा। समाचार रावनहि जनावा।। + +सुनत बिहँसि बोला दससीसा। आनहु बोलि कहाँ कर कीसा।। + +आयसु पाइ दूत बहु धाए। कपिकुंजरहि बोलि लै आए।। + +अंगद दीख दसानन बैंसें। सहित प्रान कज्जलगिरि जैसें।। + +भुजा बिटप सिर सृंग समाना। रोमावली लता जनु नाना।। + +मुख नासिका नयन अरु काना। गिरि कंदरा खोह अनुमाना।। + +गयउ सभाँ मन नेकु न मुरा। बालितनय अतिबल बाँकुरा।। + +उठे सभासद कपि कहुँ देखी। रावन उर भा क्रौध बिसेषी।।जथा मत्त गज जूथ महुँ पंचानन चलि जाइ। + +राम प्रताप सुमिरि मन बैठ सभाँ सिरु नाइ।।19।।कह दसकंठ कवन तैं बंदर। मैं रघुबीर दूत दसकंधर।। + +मम जनकहि तोहि रही मिताई। तव हित कारन आयउँ भाई।। + +उत्तम कुल पुलस्ति कर नाती। सिव बिरंचि पूजेहु बहु भाँती।। + +बर पायहु कीन्हेहु सब काजा। जीतेहु लोकपाल सब राजा।। + +नृप अभिमान मोह बस किंबा। हरि आनिहु सीता जगदंबा।। + +अब सुभ कहा सुनहु तुम्ह मोरा। सब अपराध छमिहि प्रभु तोरा।। + +दसन गहहु तृन कंठ कुठारी। परिजन सहित संग निज नारी।। + +सादर जनकसुता करि आगें। एहि बिधि चलहु सकल भय त्यागें।।प्रनतपाल रघुबंसमनि त्राहि त्राहि अब मोहि। + +आरत गिरा सुनत प्रभु अभय करैगो तोहि।।20।।रे कपिपोत बोलु संभारी। मूढ़ न जानेहि मोहि सुरारी।। + +कहु निज नाम जनक कर भाई। केहि नातें मानिऐ मिताई।। + +अंगद नाम बालि कर बेटा। तासों कबहुँ भई ही भेटा।�� + +अंगद बचन सुनत सकुचाना। रहा बालि बानर मैं जाना।। + +अंगद तहीं बालि कर बालक। उपजेहु बंस अनल कुल घालक।। + +गर्भ न गयहु ब्यर्थ तुम्ह जायहु। निज मुख तापस दूत कहायहु।। + +अब कहु कुसल बालि कहँ अहई। बिहँसि बचन तब अंगद कहई।। + +दिन दस गएँ बालि पहिं जाई। बूझेहु कुसल सखा उर लाई।। + +राम बिरोध कुसल जसि होई। सो सब तोहि सुनाइहि सोई।। + +सुनु सठ भेद होइ मन ताकें। श्रीरघुबीर हृदय नहिं जाकें।।हम कुल घालक सत्य तुम्ह कुल पालक दससीस। + +अंधउ बधिर न अस कहहिं नयन कान तव बीस।।21।सिव बिरंचि सुर मुनि समुदाई। चाहत जासु चरन सेवकाई।। + +तासु दूत होइ हम कुल बोरा। अइसिहुँ मति उर बिहर न तोरा।। + +सुनि कठोर बानी कपि केरी। कहत दसानन नयन तरेरी।। + +खल तव कठिन बचन सब सहऊँ। नीति धर्म मैं जानत अहऊँ।। + +कह कपि धर्मसीलता तोरी। हमहुँ सुनी कृत पर त्रिय चोरी।। + +देखी नयन दूत रखवारी। बूड़ि न मरहु धर्म ब्रतधारी।। + +कान नाक बिनु भगिनि निहारी। छमा कीन्हि तुम्ह धर्म बिचारी।। + +धर्मसीलता तव जग जागी। पावा दरसु हमहुँ बड़भागी।।जनि जल्पसि जड़ जंतु कपि सठ बिलोकु मम बाहु। + +लोकपाल बल बिपुल ससि ग्रसन हेतु सब राहु।।22(क)।। + +पुनि नभ सर मम कर निकर कमलन्हि पर करि बास। + +सोभत भयउ मराल इव संभु सहित कैलास।।22(ख)।।तुम्हरे कटक माझ सुनु अंगद। मो सन भिरिहि कवन जोधा बद।। + +तव प्रभु नारि बिरहँ बलहीना। अनुज तासु दुख दुखी मलीना।। + +तुम्ह सुग्रीव कूलद्रुम दोऊ। अनुज हमार भीरु अति सोऊ।। + +जामवंत मंत्री अति बूढ़ा। सो कि होइ अब समरारूढ़ा।। + +सिल्पि कर्म जानहिं नल नीला। है कपि एक महा बलसीला।। + +आवा प्रथम नगरु जेंहिं जारा। सुनत बचन कह बालिकुमारा।। + +सत्य बचन कहु निसिचर नाहा। साँचेहुँ कीस कीन्ह पुर दाहा।। + +रावन नगर अल्प कपि दहई। सुनि अस बचन सत्य को कहई।। + +जो अति सुभट सराहेहु रावन। सो सुग्रीव केर लघु धावन।। + +चलइ बहुत सो बीर न होई। पठवा खबरि लेन हम सोई।।सत्य नगरु कपि जारेउ बिनु प्रभु आयसु पाइ। + +फिरि न गयउ सुग्रीव पहिं तेहिं भय रहा लुकाइ।।23(क)।। + +सत्य कहहि दसकंठ सब मोहि न सुनि कछु कोह। + +कोउ न हमारें कटक अस तो सन लरत जो सोह।।23(ख)।। + +प्रीति बिरोध समान सन करिअ नीति असि आहि। + +जौं मृगपति बध मेड़ुकन्हि भल कि कहइ कोउ ताहि।।23(ग)।। + +जद्यपि लघुता राम कहुँ तोहि बधें बड़ दोष। + +तदपि कठिन दसकंठ सुनु छत्र जाति कर रोष।।23(घ)।। + +बक्र उक्ति धनु बचन सर हृदय दहेउ रिपु कीस। + +प्रतिउत्तर सड़सिन्ह मनहुँ काढ़त भट दससीस।।23(ङ)।। + +हँसि बोलेउ दसमौलि तब कपि कर बड़ गुन एक। + +जो प्रतिपालइ तासु हित करइ उपाय अनेक।।23(छ)।।धन्य कीस जो निज प्रभु काजा। जहँ तहँ नाचइ परिहरि लाजा।। + +नाचि कूदि करि लोग रिझाई। पति हित करइ धर्म निपुनाई।। + +अंगद स्वामिभक्त तव जाती। प्रभु गुन कस न कहसि एहि भाँती।। + +मैं गुन गाहक परम सुजाना। तव कटु रटनि करउँ नहिं काना।। + +कह कपि तव गुन गाहकताई। सत्य पवनसुत मोहि सुनाई।। + +बन बिधंसि सुत बधि पुर जारा। तदपि न तेहिं कछु कृत अपकारा।। + +सोइ बिचारि तव प्रकृति सुहाई। दसकंधर मैं कीन्हि ढिठाई।। + +देखेउँ आइ जो कछु कपि भाषा। तुम्हरें लाज न रोष न माखा।। + +जौं असि मति पितु खाए कीसा। कहि अस बचन हँसा दससीसा।। + +पितहि खाइ खातेउँ पुनि तोही। अबहीं समुझि परा कछु मोही।। + +बालि बिमल जस भाजन जानी। हतउँ न तोहि अधम अभिमानी।। + +कहु रावन रावन जग केते। मैं निज श्रवन सुने सुनु जेते।। + +बलिहि जितन एक गयउ पताला। राखेउ बाँधि सिसुन्ह हयसाला।। + +खेलहिं बालक मारहिं जाई। दया लागि बलि दीन्ह छोड़ाई।। + +एक बहोरि सहसभुज देखा। धाइ धरा जिमि जंतु बिसेषा।। + +कौतुक लागि भवन लै आवा। सो पुलस्ति मुनि जाइ छोड़ावा।।एक कहत मोहि सकुच अति रहा बालि की काँख। + +इन्ह महुँ रावन तैं कवन सत्य बदहि तजि माख।।24।।सुनु सठ सोइ रावन बलसीला। हरगिरि जान जासु भुज लीला।। + +जान उमापति जासु सुराई। पूजेउँ जेहि सिर सुमन चढ़ाई।। + +सिर सरोज निज करन्हि उतारी। पूजेउँ अमित बार त्रिपुरारी।। + +भुज बिक्रम जानहिं दिगपाला। सठ अजहूँ जिन्ह कें उर साला।। + +जानहिं दिग्गज उर कठिनाई। जब जब भिरउँ जाइ बरिआई।। + +जिन्ह के दसन कराल न फूटे। उर लागत मूलक इव टूटे।। + +जासु चलत डोलति इमि धरनी। चढ़त मत्त गज जिमि लघु तरनी।। + +सोइ रावन जग बिदित प्रतापी। सुनेहि न श्रवन अलीक प्रलापी।।तेहि रावन कहँ लघु कहसि नर कर करसि बखान। + +रे कपि बर्बर खर्ब खल अब जाना तव ग्यान।।25।।सुनि अंगद सकोप कह बानी। बोलु सँभारि अधम अभिमानी।। + +सहसबाहु भुज गहन अपारा। दहन अनल सम जासु कुठारा।। + +जासु परसु सागर खर धारा। बूड़े नृप अगनित बहु बारा।। + +तासु गर्ब जेहि देखत भागा। सो नर क्यों दससीस अभागा।। + +राम मनुज कस रे सठ बंगा। धन्वी कामु नदी पुनि गंगा।। + +पसु सुरधेनु कल्पतरु रूखा। अन्न दान अरु रस पीयूषा।। + +बैनतेय खग अहि सहसानन। चिंतामनि पुनि उपल दसानन।। + +सुनु मतिमंद लोक बैकुंठा। लाभ कि रघुपति भगति अकुंठा।।सेन सहित तब मान मथि बन उजारि पुर जारि।। + +कस रे सठ हनुमान कपि गयउ जो तव सुत मारि।।26।।सुनु रावन परिहरि चतुराई। भजसि न कृपासिंधु रघुराई।। + +जौ खल भएसि राम कर द्रोही। ब्रह्म रुद्र सक राखि न तोही।। + +मूढ़ बृथा जनि मारसि गाला। राम बयर अस होइहि हाला।। + +तव सिर निकर कपिन्ह के आगें। परिहहिं धरनि राम सर लागें।। + +ते तव सिर कंदुक सम नाना। खेलहहिं भालु कीस चौगाना।। + +जबहिं समर कोपहि रघुनायक। छुटिहहिं अति कराल बहु सायक।। + +तब कि चलिहि अस गाल तुम्हारा। अस बिचारि भजु राम उदारा।। + +सुनत बचन रावन परजरा। जरत महानल जनु घृत परा।।कुंभकरन अस बंधु मम सुत प्रसिद्ध सक्रारि। + +मोर पराक्रम नहिं सुनेहि जितेउँ चराचर झारि।।27।।सठ साखामृग जोरि सहाई। बाँधा सिंधु इहइ प्रभुताई।। + +नाघहिं खग अनेक बारीसा। सूर न होहिं ते सुनु सब कीसा।। + +मम भुज सागर बल जल पूरा। जहँ बूड़े बहु सुर नर सूरा।। + +बीस पयोधि अगाध अपारा। को अस बीर जो पाइहि पारा।। + +दिगपालन्ह मैं नीर भरावा। भूप सुजस खल मोहि सुनावा।। + +जौं पै समर सुभट तव नाथा। पुनि पुनि कहसि जासु गुन गाथा।। + +तौ बसीठ पठवत केहि काजा। रिपु सन प्रीति करत नहिं लाजा।। + +हरगिरि मथन निरखु मम बाहू। पुनि सठ कपि निज प्रभुहि सराहू।।सूर कवन रावन सरिस स्वकर काटि जेहिं सीस। + +हुने अनल अति हरष बहु बार साखि गौरीस।।28।।जरत बिलोकेउँ जबहिं कपाला। बिधि के लिखे अंक निज भाला।। + +नर कें कर आपन बध बाँची। हसेउँ जानि बिधि गिरा असाँची।। + +सोउ मन समुझि त्रास नहिं मोरें। लिखा बिरंचि जरठ मति भोरें।। + +आन बीर बल सठ मम आगें। पुनि पुनि कहसि लाज पति त्यागे।। + +कह अंगद सलज्ज जग माहीं। रावन तोहि समान कोउ नाहीं।। + +लाजवंत तव सहज सुभाऊ। निज मुख निज गुन कहसि न काऊ।। + +सिर अरु सैल कथा चित रही। ताते बार बीस तैं कही।। + +सो भुजबल राखेउ उर घाली। जीतेहु सहसबाहु बलि बाली।। + +सुनु मतिमंद देहि अब पूरा। काटें सीस कि होइअ सूरा।। + +इंद्रजालि कहु कहिअ न बीरा। काटइ निज कर सकल सरीरा।।जरहिं पतंग मोह बस भार बहहिं खर बृंद। + +ते नहिं सूर कहावहिं समुझि देखु मतिमंद।।29।।अब जनि बतबढ़ाव खल करही। सुनु मम बचन मान परिहरही।। + +दसमुख मैं न बसीठीं आयउँ। अस बिचारि रघुबीर पठ���यउँ।। + +बार बार अस कहइ कृपाला। नहिं गजारि जसु बधें सृकाला।। + +मन महुँ समुझि बचन प्रभु केरे। सहेउँ कठोर बचन सठ तेरे।। + +नाहिं त करि मुख भंजन तोरा। लै जातेउँ सीतहि बरजोरा।। + +जानेउँ तव बल अधम सुरारी। सूनें हरि आनिहि परनारी।। + +तैं निसिचर पति गर्ब बहूता। मैं रघुपति सेवक कर दूता।। + +जौं न राम अपमानहि डरउँ। तोहि देखत अस कौतुक करऊँ।।तोहि पटकि महि सेन हति चौपट करि तव गाउँ। + +तव जुबतिन्ह समेत सठ जनकसुतहि लै जाउँ।।30।।जौ अस करौं तदपि न बड़ाई। मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई।। + +कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा।। + +सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमूख श्रुति संत बिरोधी।। + +तनु पोषक निंदक अघ खानी। जीवन सव सम चौदह प्रानी।। + +अस बिचारि खल बधउँ न तोही। अब जनि रिस उपजावसि मोही।। + +सुनि सकोप कह निसिचर नाथा। अधर दसन दसि मीजत हाथा।। + +रे कपि अधम मरन अब चहसी। छोटे बदन बात बड़ि कहसी।। + +कटु जल्पसि जड़ कपि बल जाकें। बल प्रताप बुधि तेज न ताकें।।अगुन अमान जानि तेहि दीन्ह पिता बनबास। + +सो दुख अरु जुबती बिरह पुनि निसि दिन मम त्रास।।31(क)।। + +जिन्ह के बल कर गर्ब तोहि अइसे मनुज अनेक। + +खाहीं निसाचर दिवस निसि मूढ़ समुझु तजि टेक।।31(ख)।।जब तेहिं कीन्ह राम कै निंदा। क्रोधवंत अति भयउ कपिंदा।। + +हरि हर निंदा सुनइ जो काना। होइ पाप गोघात समाना।। + +कटकटान कपिकुंजर भारी। दुहु भुजदंड तमकि महि मारी।। + +डोलत धरनि सभासद खसे। चले भाजि भय मारुत ग्रसे।। + +गिरत सँभारि उठा दसकंधर। भूतल परे मुकुट अति सुंदर।। + +कछु तेहिं लै निज सिरन्हि सँवारे। कछु अंगद प्रभु पास पबारे।। + +आवत मुकुट देखि कपि भागे। दिनहीं लूक परन बिधि लागे।। + +की रावन करि कोप चलाए। कुलिस चारि आवत अति धाए।। + +कह प्रभु हँसि जनि हृदयँ डेराहू। लूक न असनि केतु नहिं राहू।। + +ए किरीट दसकंधर केरे। आवत बालितनय के प्रेरे।।तरकि पवनसुत कर गहे आनि धरे प्रभु पास। + +कौतुक देखहिं भालु कपि दिनकर सरिस प्रकास।।32(क)।। + +उहाँ सकोपि दसानन सब सन कहत रिसाइ। + +धरहु कपिहि धरि मारहु सुनि अंगद मुसुकाइ।।32(ख)।।एहि बिधि बेगि सूभट सब धावहु। खाहु भालु कपि जहँ जहँ पावहु।। + +मर्कटहीन करहु महि जाई। जिअत धरहु तापस द्वौ भाई।। + +पुनि सकोप बोलेउ जुबराजा। गाल बजावत तोहि न लाजा।। + +मरु गर काटि निलज कुलघाती। बल बिलोकि बिहरति नहिं छाती।। + +रे त्रिय चोर कुमारग गामी। खल मल रासि मंदमति कामी।। + +सन्यपात जल्पसि दुर्बादा। भएसि कालबस खल मनुजादा।। + +याको फलु पावहिगो आगें। बानर भालु चपेटन्हि लागें।। + +रामु मनुज बोलत असि बानी। गिरहिं न तव रसना अभिमानी।। + +गिरिहहिं रसना संसय नाहीं। सिरन्हि समेत समर महि माहीं।।सो नर क्यों दसकंध बालि बध्यो जेहिं एक सर। + +बीसहुँ लोचन अंध धिग तव जन्म कुजाति जड़।।33(क)।। + +तब सोनित की प्यास तृषित राम सायक निकर। + +तजउँ तोहि तेहि त्रास कटु जल्पक निसिचर अधम।।33(ख)।।मै तव दसन तोरिबे लायक। आयसु मोहि न दीन्ह रघुनायक।। + +असि रिस होति दसउ मुख तोरौं। लंका गहि समुद्र महँ बोरौं।। + +गूलरि फल समान तव लंका। बसहु मध्य तुम्ह जंतु असंका।। + +मैं बानर फल खात न बारा। आयसु दीन्ह न राम उदारा।। + +जुगति सुनत रावन मुसुकाई। मूढ़ सिखिहि कहँ बहुत झुठाई।। + +बालि न कबहुँ गाल अस मारा। मिलि तपसिन्ह तैं भएसि लबारा।। + +साँचेहुँ मैं लबार भुज बीहा। जौं न उपारिउँ तव दस जीहा।। + +समुझि राम प्रताप कपि कोपा। सभा माझ पन करि पद रोपा।। + +जौं मम चरन सकसि सठ टारी। फिरहिं रामु सीता मैं हारी।। + +सुनहु सुभट सब कह दससीसा। पद गहि धरनि पछारहु कीसा।। + +इंद्रजीत आदिक बलवाना। हरषि उठे जहँ तहँ भट नाना।। + +झपटहिं करि बल बिपुल उपाई। पद न टरइ बैठहिं सिरु नाई।। + +पुनि उठि झपटहीं सुर आराती। टरइ न कीस चरन एहि भाँती।। + +पुरुष कुजोगी जिमि उरगारी। मोह बिटप नहिं सकहिं उपारी।।कोटिन्ह मेघनाद सम सुभट उठे हरषाइ। + +झपटहिं टरै न कपि चरन पुनि बैठहिं सिर नाइ।।34(क)।। + +भूमि न छाँडत कपि चरन देखत रिपु मद भाग।। + +कोटि बिघ्न ते संत कर मन जिमि नीति न त्याग।।34(ख)।।कपि बल देखि सकल हियँ हारे। उठा आपु कपि कें परचारे।। + +गहत चरन कह बालिकुमारा। मम पद गहें न तोर उबारा।। + +गहसि न राम चरन सठ जाई। सुनत फिरा मन अति सकुचाई।। + +भयउ तेजहत श्री सब गई। मध्य दिवस जिमि ससि सोहई।। + +सिंघासन बैठेउ सिर नाई। मानहुँ संपति सकल गँवाई।। + +जगदातमा प्रानपति रामा। तासु बिमुख किमि लह बिश्रामा।। + +उमा राम की भृकुटि बिलासा। होइ बिस्व पुनि पावइ नासा।। + +तृन ते कुलिस कुलिस तृन करई। तासु दूत पन कहु किमि टरई।। + +पुनि कपि कही नीति बिधि नाना। मान न ताहि कालु निअराना।। + +रिपु मद मथि प्रभु सुजसु सुनायो। यह कहि चल्यो बालि नृप जायो।। + +हतौं न खेत खेलाइ खेलाई। तोहि अबहिं का ���रौं बड़ाई।। + +प्रथमहिं तासु तनय कपि मारा। सो सुनि रावन भयउ दुखारा।। + +जातुधान अंगद पन देखी। भय ब्याकुल सब भए बिसेषी।।रिपु बल धरषि हरषि कपि बालितनय बल पुंज। + +पुलक सरीर नयन जल गहे राम पद कंज।।35(क)।। + +साँझ जानि दसकंधर भवन गयउ बिलखाइ। + +मंदोदरी रावनहि बहुरि कहा समुझाइ।।(ख)।।कंत समुझि मन तजहु कुमतिही। सोह न समर तुम्हहि रघुपतिही।। + +रामानुज लघु रेख खचाई। सोउ नहिं नाघेहु असि मनुसाई।। + +पिय तुम्ह ताहि जितब संग्रामा। जाके दूत केर यह कामा।। + +कौतुक सिंधु नाघी तव लंका। आयउ कपि केहरी असंका।। + +रखवारे हति बिपिन उजारा। देखत तोहि अच्छ तेहिं मारा।। + +जारि सकल पुर कीन्हेसि छारा। कहाँ रहा बल गर्ब तुम्हारा।। + +अब पति मृषा गाल जनि मारहु। मोर कहा कछु हृदयँ बिचारहु।। + +पति रघुपतिहि नृपति जनि मानहु। अग जग नाथ अतुल बल जानहु।। + +बान प्रताप जान मारीचा। तासु कहा नहिं मानेहि नीचा।। + +जनक सभाँ अगनित भूपाला। रहे तुम्हउ बल अतुल बिसाला।। + +भंजि धनुष जानकी बिआही। तब संग्राम जितेहु किन ताही।। + +सुरपति सुत जानइ बल थोरा। राखा जिअत आँखि गहि फोरा।। + +सूपनखा कै गति तुम्ह देखी। तदपि हृदयँ नहिं लाज बिषेषी।।बधि बिराध खर दूषनहि लींलाँ हत्यो कबंध। + +बालि एक सर मारयो तेहि जानहु दसकंध।।36।।जेहिं जलनाथ बँधायउ हेला। उतरे प्रभु दल सहित सुबेला।। + +कारुनीक दिनकर कुल केतू। दूत पठायउ तव हित हेतू।। + +सभा माझ जेहिं तव बल मथा। करि बरूथ महुँ मृगपति जथा।। + +अंगद हनुमत अनुचर जाके। रन बाँकुरे बीर अति बाँके।। + +तेहि कहँ पिय पुनि पुनि नर कहहू। मुधा मान ममता मद बहहू।। + +अहह कंत कृत राम बिरोधा। काल बिबस मन उपज न बोधा।। + +काल दंड गहि काहु न मारा। हरइ धर्म बल बुद्धि बिचारा।। + +निकट काल जेहि आवत साईं। तेहि भ्रम होइ तुम्हारिहि नाईं।।दुइ सुत मरे दहेउ पुर अजहुँ पूर पिय देहु। + +कृपासिंधु रघुनाथ भजि नाथ बिमल जसु लेहु।।37।।नारि बचन सुनि बिसिख समाना। सभाँ गयउ उठि होत बिहाना।। + +बैठ जाइ सिंघासन फूली। अति अभिमान त्रास सब भूली।। + +इहाँ राम अंगदहि बोलावा। आइ चरन पंकज सिरु नावा।। + +अति आदर सपीप बैठारी। बोले बिहँसि कृपाल खरारी।। + +बालितनय कौतुक अति मोही। तात सत्य कहु पूछउँ तोही।।। + +रावनु जातुधान कुल टीका। भुज बल अतुल जासु जग लीका।। + +तासु मुकुट तुम्ह चारि चलाए। कहहु तात कवनी बिधि पाए।। + +सुनु सर���बग्य प्रनत सुखकारी। मुकुट न होहिं भूप गुन चारी।। + +साम दान अरु दंड बिभेदा। नृप उर बसहिं नाथ कह बेदा।। + +नीति धर्म के चरन सुहाए। अस जियँ जानि नाथ पहिं आए।।धर्महीन प्रभु पद बिमुख काल बिबस दससीस। + +तेहि परिहरि गुन आए सुनहु कोसलाधीस।।38(((क)।। + +परम चतुरता श्रवन सुनि बिहँसे रामु उदार। + +समाचार पुनि सब कहे गढ़ के बालिकुमार।।38(ख)।।रिपु के समाचार जब पाए। राम सचिव सब निकट बोलाए।। + +लंका बाँके चारि दुआरा। केहि बिधि लागिअ करहु बिचारा।। + +तब कपीस रिच्छेस बिभीषन। सुमिरि हृदयँ दिनकर कुल भूषन।। + +करि बिचार तिन्ह मंत्र दृढ़ावा। चारि अनी कपि कटकु बनावा।। + +जथाजोग सेनापति कीन्हे। जूथप सकल बोलि तब लीन्हे।। + +प्रभु प्रताप कहि सब समुझाए। सुनि कपि सिंघनाद करि धाए।। + +हरषित राम चरन सिर नावहिं। गहि गिरि सिखर बीर सब धावहिं।। + +गर्जहिं तर्जहिं भालु कपीसा। जय रघुबीर कोसलाधीसा।। + +जानत परम दुर्ग अति लंका। प्रभु प्रताप कपि चले असंका।। + +घटाटोप करि चहुँ दिसि घेरी। मुखहिं निसान बजावहीं भेरी।।जयति राम जय लछिमन जय कपीस सुग्रीव। + +गर्जहिं सिंघनाद कपि भालु महा बल सींव।।39।।लंकाँ भयउ कोलाहल भारी। सुना दसानन अति अहँकारी।। + +देखहु बनरन्ह केरि ढिठाई। बिहँसि निसाचर सेन बोलाई।। + +आए कीस काल के प्रेरे। छुधावंत सब निसिचर मेरे।। + +अस कहि अट्टहास सठ कीन्हा। गृह बैठे अहार बिधि दीन्हा।। + +सुभट सकल चारिहुँ दिसि जाहू। धरि धरि भालु कीस सब खाहू।। + +उमा रावनहि अस अभिमाना। जिमि टिट्टिभ खग सूत उताना।। + +चले निसाचर आयसु मागी। गहि कर भिंडिपाल बर साँगी।। + +तोमर मुग्दर परसु प्रचंडा। सुल कृपान परिघ गिरिखंडा।। + +जिमि अरुनोपल निकर निहारी। धावहिं सठ खग मांस अहारी।। + +चोंच भंग दुख तिन्हहि न सूझा। तिमि धाए मनुजाद अबूझा।।नानायुध सर चाप धर जातुधान बल बीर। + +कोट कँगूरन्हि चढ़ि गए कोटि कोटि रनधीर।।40।।कोट कँगूरन्हि सोहहिं कैसे। मेरु के सृंगनि जनु घन बैसे।। + +बाजहिं ढोल निसान जुझाऊ। सुनि धुनि होइ भटन्हि मन चाऊ।। + +बाजहिं भेरि नफीरि अपारा। सुनि कादर उर जाहिं दरारा।। + +देखिन्ह जाइ कपिन्ह के ठट्टा। अति बिसाल तनु भालु सुभट्टा।। + +धावहिं गनहिं न अवघट घाटा। पर्बत फोरि करहिं गहि बाटा।। + +कटकटाहिं कोटिन्ह भट गर्जहिं। दसन ओठ काटहिं अति तर्जहिं।। + +उत रावन इत राम दोहाई। जयति जयति जय परी ल���ाई।। + +निसिचर सिखर समूह ढहावहिं। कूदि धरहिं कपि फेरि चलावहिं।।धरि कुधर खंड प्रचंड कर्कट भालु गढ़ पर डारहीं। + +झपटहिं चरन गहि पटकि महि भजि चलत बहुरि पचारहीं।। + +अति तरल तरुन प्रताप तरपहिं तमकि गढ़ चढ़ि चढ़ि गए। + +कपि भालु चढ़ि मंदिरन्ह जहँ तहँ राम जसु गावत भए।।एकु एकु निसिचर गहि पुनि कपि चले पराइ। + +ऊपर आपु हेठ भट गिरहिं धरनि पर आइ।।41।।राम प्रताप प्रबल कपिजूथा। मर्दहिं निसिचर सुभट बरूथा।। + +चढ़े दुर्ग पुनि जहँ तहँ बानर। जय रघुबीर प्रताप दिवाकर।। + +चले निसाचर निकर पराई। प्रबल पवन जिमि घन समुदाई।। + +हाहाकार भयउ पुर भारी। रोवहिं बालक आतुर नारी।। + +सब मिलि देहिं रावनहि गारी। राज करत एहिं मृत्यु हँकारी।। + +निज दल बिचल सुनी तेहिं काना। फेरि सुभट लंकेस रिसाना।। + +जो रन बिमुख सुना मैं काना। सो मैं हतब कराल कृपाना।। + +सर्बसु खाइ भोग करि नाना। समर भूमि भए बल्लभ प्राना।। + +उग्र बचन सुनि सकल डेराने। चले क्रोध करि सुभट लजाने।। + +सन्मुख मरन बीर कै सोभा। तब तिन्ह तजा प्रान कर लोभा।।बहु आयुध धर सुभट सब भिरहिं पचारि पचारि। + +ब्याकुल किए भालु कपि परिघ त्रिसूलन्हि मारी।।42।।भय आतुर कपि भागन लागे। जद्यपि उमा जीतिहहिं आगे।। + +कोउ कह कहँ अंगद हनुमंता। कहँ नल नील दुबिद बलवंता।। + +निज दल बिकल सुना हनुमाना। पच्छिम द्वार रहा बलवाना।। + +मेघनाद तहँ करइ लराई। टूट न द्वार परम कठिनाई।। + +पवनतनय मन भा अति क्रोधा। गर्जेउ प्रबल काल सम जोधा।। + +कूदि लंक गढ़ ऊपर आवा। गहि गिरि मेघनाद कहुँ धावा।। + +भंजेउ रथ सारथी निपाता। ताहि हृदय महुँ मारेसि लाता।। + +दुसरें सूत बिकल तेहि जाना। स्यंदन घालि तुरत गृह आना।।अंगद सुना पवनसुत गढ़ पर गयउ अकेल। + +रन बाँकुरा बालिसुत तरकि चढ़ेउ कपि खेल।।43।।जुद्ध बिरुद्ध क्रुद्ध द्वौ बंदर। राम प्रताप सुमिरि उर अंतर।। + +रावन भवन चढ़े द्वौ धाई। करहि कोसलाधीस दोहाई।। + +कलस सहित गहि भवनु ढहावा। देखि निसाचरपति भय पावा।। + +नारि बृंद कर पीटहिं छाती। अब दुइ कपि आए उतपाती।। + +कपिलीला करि तिन्हहि डेरावहिं। रामचंद्र कर सुजसु सुनावहिं।। + +पुनि कर गहि कंचन के खंभा। कहेन्हि करिअ उतपात अरंभा।। + +गर्जि परे रिपु कटक मझारी। लागे मर्दै भुज बल भारी।। + +काहुहि लात चपेटन्हि केहू। भजहु न रामहि सो फल लेहू।।एक एक सों मर्दहिं तोरि चलावहिं मुंड। + +रावन आ���ें परहिं ते जनु फूटहिं दधि कुंड।।44।।महा महा मुखिआ जे पावहिं। ते पद गहि प्रभु पास चलावहिं।। + +कहइ बिभीषनु तिन्ह के नामा। देहिं राम तिन्हहू निज धामा।। + +खल मनुजाद द्विजामिष भोगी। पावहिं गति जो जाचत जोगी।। + +उमा राम मृदुचित करुनाकर। बयर भाव सुमिरत मोहि निसिचर।। + +देहिं परम गति सो जियँ जानी। अस कृपाल को कहहु भवानी।। + +अस प्रभु सुनि न भजहिं भ्रम त्यागी। नर मतिमंद ते परम अभागी।। + +अंगद अरु हनुमंत प्रबेसा। कीन्ह दुर्ग अस कह अवधेसा।। + +लंकाँ द्वौ कपि सोहहिं कैसें। मथहि सिंधु दुइ मंदर जैसें।।भुज बल रिपु दल दलमलि देखि दिवस कर अंत। + +कूदे जुगल बिगत श्रम आए जहँ भगवंत।।45।।प्रभु पद कमल सीस तिन्ह नाए। देखि सुभट रघुपति मन भाए।। + +राम कृपा करि जुगल निहारे। भए बिगतश्रम परम सुखारे।। + +गए जानि अंगद हनुमाना। फिरे भालु मर्कट भट नाना।। + +जातुधान प्रदोष बल पाई। धाए करि दससीस दोहाई।। + +निसिचर अनी देखि कपि फिरे। जहँ तहँ कटकटाइ भट भिरे।। + +द्वौ दल प्रबल पचारि पचारी। लरत सुभट नहिं मानहिं हारी।। + +महाबीर निसिचर सब कारे। नाना बरन बलीमुख भारे।। + +सबल जुगल दल समबल जोधा। कौतुक करत लरत करि क्रोधा।। + +प्राबिट सरद पयोद घनेरे। लरत मनहुँ मारुत के प्रेरे।। + +अनिप अकंपन अरु अतिकाया। बिचलत सेन कीन्हि इन्ह माया।। + +भयउ निमिष महँ अति अँधियारा। बृष्टि होइ रुधिरोपल छारा।।देखि निबिड़ तम दसहुँ दिसि कपिदल भयउ खभार। + +एकहि एक न देखई जहँ तहँ करहिं पुकार।।46।।सकल मरमु रघुनायक जाना। लिए बोलि अंगद हनुमाना।। + +समाचार सब कहि समुझाए। सुनत कोपि कपिकुंजर धाए।। + +पुनि कृपाल हँसि चाप चढ़ावा। पावक सायक सपदि चलावा।। + +भयउ प्रकास कतहुँ तम नाहीं। ग्यान उदयँ जिमि संसय जाहीं।। + +भालु बलीमुख पाइ प्रकासा। धाए हरष बिगत श्रम त्रासा।। + +हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।। + +भागत पट पटकहिं धरि धरनी। करहिं भालु कपि अद्भुत करनी।। + +गहि पद डारहिं सागर माहीं। मकर उरग झष धरि धरि खाहीं।।कछु मारे कछु घायल कछु गढ़ चढ़े पराइ। + +गर्जहिं भालु बलीमुख रिपु दल बल बिचलाइ।।47।।निसा जानि कपि चारिउ अनी। आए जहाँ कोसला धनी।। + +राम कृपा करि चितवा सबही। भए बिगतश्रम बानर तबही।। + +उहाँ दसानन सचिव हँकारे। सब सन कहेसि सुभट जे मारे।। + +आधा कटकु कपिन्ह संघारा। कहहु बेगि का करिअ बिचारा।। + +माल्यवंत अति ज��ठ निसाचर। रावन मातु पिता मंत्री बर।। + +बोला बचन नीति अति पावन। सुनहु तात कछु मोर सिखावन।। + +जब ते तुम्ह सीता हरि आनी। असगुन होहिं न जाहिं बखानी।। + +बेद पुरान जासु जसु गायो। राम बिमुख काहुँ न सुख पायो।।हिरन्याच्छ भ्राता सहित मधु कैटभ बलवान। + +जेहि मारे सोइ अवतरेउ कृपासिंधु भगवान।।48(क)।। + +कालरूप खल बन दहन गुनागार घनबोध। + +सिव बिरंचि जेहि सेवहिं तासों कवन बिरोध।।48(ख)।।परिहरि बयरु देहु बैदेही। भजहु कृपानिधि परम सनेही।। + +ताके बचन बान सम लागे। करिआ मुह करि जाहि अभागे।। + +बूढ़ भएसि न त मरतेउँ तोही। अब जनि नयन देखावसि मोही।। + +तेहि अपने मन अस अनुमाना। बध्यो चहत एहि कृपानिधाना।। + +सो उठि गयउ कहत दुर्बादा। तब सकोप बोलेउ घननादा।। + +कौतुक प्रात देखिअहु मोरा। करिहउँ बहुत कहौं का थोरा।। + +सुनि सुत बचन भरोसा आवा। प्रीति समेत अंक बैठावा।। + +करत बिचार भयउ भिनुसारा। लागे कपि पुनि चहूँ दुआरा।। + +कोपि कपिन्ह दुर्घट गढ़ु घेरा। नगर कोलाहलु भयउ घनेरा।। + +बिबिधायुध धर निसिचर धाए। गढ़ ते पर्बत सिखर ढहाए।।ढाहे महीधर सिखर कोटिन्ह बिबिध बिधि गोला चले। + +घहरात जिमि पबिपात गर्जत जनु प्रलय के बादले।। + +मर्कट बिकट भट जुटत कटत न लटत तन जर्जर भए। + +गहि सैल तेहि गढ़ पर चलावहिं जहँ सो तहँ निसिचर हए।।मेघनाद सुनि श्रवन अस गढ़ु पुनि छेंका आइ। + +उतर्यो बीर दुर्ग तें सन्मुख चल्यो बजाइ।।49।।कहँ कोसलाधीस द्वौ भ्राता। धन्वी सकल लोक बिख्याता।। + +कहँ नल नील दुबिद सुग्रीवा। अंगद हनूमंत बल सींवा।। + +कहाँ बिभीषनु भ्राताद्रोही। आजु सबहि हठि मारउँ ओही।। + +अस कहि कठिन बान संधाने। अतिसय क्रोध श्रवन लगि ताने।। + +सर समुह सो छाड़ै लागा। जनु सपच्छ धावहिं बहु नागा।। + +जहँ तहँ परत देखिअहिं बानर। सन्मुख होइ न सके तेहि अवसर।। + +जहँ तहँ भागि चले कपि रीछा। बिसरी सबहि जुद्ध कै ईछा।। + +सो कपि भालु न रन महँ देखा। कीन्हेसि जेहि न प्रान अवसेषा।।दस दस सर सब मारेसि परे भूमि कपि बीर। + +सिंहनाद करि गर्जा मेघनाद बल धीर।।50।।देखि पवनसुत कटक बिहाला। क्रोधवंत जनु धायउ काला।। + +महासैल एक तुरत उपारा। अति रिस मेघनाद पर डारा।। + +आवत देखि गयउ नभ सोई। रथ सारथी तुरग सब खोई।। + +बार बार पचार हनुमाना। निकट न आव मरमु सो जाना।। + +रघुपति निकट गयउ घननादा। नाना भाँति करेसि दुर्बादा।। + +अस्त्र सस्त्र आयुध ��ब डारे। कौतुकहीं प्रभु काटि निवारे।। + +देखि प्रताप मूढ़ खिसिआना। करै लाग माया बिधि नाना।। + +जिमि कोउ करै गरुड़ सैं खेला। डरपावै गहि स्वल्प सपेला।।जासु प्रबल माया बल सिव बिरंचि बड़ छोट। + +ताहि दिखावइ निसिचर निज माया मति खोट।।51।।नभ चढ़ि बरष बिपुल अंगारा। महि ते प्रगट होहिं जलधारा।। + +नाना भाँति पिसाच पिसाची। मारु काटु धुनि बोलहिं नाची।। + +बिष्टा पूय रुधिर कच हाड़ा। बरषइ कबहुँ उपल बहु छाड़ा।। + +बरषि धूरि कीन्हेसि अँधिआरा। सूझ न आपन हाथ पसारा।। + +कपि अकुलाने माया देखें। सब कर मरन बना एहि लेखें।। + +कौतुक देखि राम मुसुकाने। भए सभीत सकल कपि जाने।। + +एक बान काटी सब माया। जिमि दिनकर हर तिमिर निकाया।। + +कृपादृष्टि कपि भालु बिलोके। भए प्रबल रन रहहिं न रोके।।आयसु मागि राम पहिं अंगदादि कपि साथ। + +लछिमन चले क्रुद्ध होइ बान सरासन हाथ।।52।।छतज नयन उर बाहु बिसाला। हिमगिरि निभ तनु कछु एक लाला।। + +इहाँ दसानन सुभट पठाए। नाना अस्त्र सस्त्र गहि धाए।। + +भूधर नख बिटपायुध धारी। धाए कपि जय राम पुकारी।। + +भिरे सकल जोरिहि सन जोरी। इत उत जय इच्छा नहिं थोरी।। + +मुठिकन्ह लातन्ह दातन्ह काटहिं। कपि जयसील मारि पुनि डाटहिं।। + +मारु मारु धरु धरु धरु मारू। सीस तोरि गहि भुजा उपारू।। + +असि रव पूरि रही नव खंडा। धावहिं जहँ तहँ रुंड प्रचंडा।। + +देखहिं कौतुक नभ सुर बृंदा। कबहुँक बिसमय कबहुँ अनंदा।।रुधिर गाड़ भरि भरि जम्यो ऊपर धूरि उड़ाइ। + +जनु अँगार रासिन्ह पर मृतक धूम रह्यो छाइ।।53।।घायल बीर बिराजहिं कैसे। कुसुमित किंसुक के तरु जैसे।। + +लछिमन मेघनाद द्वौ जोधा। भिरहिं परसपर करि अति क्रोधा।। + +एकहि एक सकइ नहिं जीती। निसिचर छल बल करइ अनीती।। + +क्रोधवंत तब भयउ अनंता। भंजेउ रथ सारथी तुरंता।। + +नाना बिधि प्रहार कर सेषा। राच्छस भयउ प्रान अवसेषा।। + +रावन सुत निज मन अनुमाना। संकठ भयउ हरिहि मम प्राना।। + +बीरघातिनी छाड़िसि साँगी। तेज पुंज लछिमन उर लागी।। + +मुरुछा भई सक्ति के लागें। तब चलि गयउ निकट भय त्यागें।।मेघनाद सम कोटि सत जोधा रहे उठाइ। + +जगदाधार सेष किमि उठै चले खिसिआइ।।54।।सुनु गिरिजा क्रोधानल जासू। जारइ भुवन चारिदस आसू।। + +सक संग्राम जीति को ताही। सेवहिं सुर नर अग जग जाही।। + +यह कौतूहल जानइ सोई। जा पर कृपा राम कै होई।। + +संध्या भइ फिरि द्वौ बाहनी। लगे सँभारन ��िज निज अनी।। + +ब्यापक ब्रह्म अजित भुवनेस्वर। लछिमन कहाँ बूझ करुनाकर।। + +तब लगि लै आयउ हनुमाना। अनुज देखि प्रभु अति दुख माना।। + +जामवंत कह बैद सुषेना। लंकाँ रहइ को पठई लेना।। + +धरि लघु रूप गयउ हनुमंता। आनेउ भवन समेत तुरंता।।राम पदारबिंद सिर नायउ आइ सुषेन। + +कहा नाम गिरि औषधी जाहु पवनसुत लेन।।55।।राम चरन सरसिज उर राखी। चला प्रभंजन सुत बल भाषी।। + +उहाँ दूत एक मरमु जनावा। रावन कालनेमि गृह आवा।। + +दसमुख कहा मरमु तेहिं सुना। पुनि पुनि कालनेमि सिरु धुना।। + +देखत तुम्हहि नगरु जेहिं जारा। तासु पंथ को रोकन पारा।। + +भजि रघुपति करु हित आपना। छाँड़हु नाथ मृषा जल्पना।। + +नील कंज तनु सुंदर स्यामा। हृदयँ राखु लोचनाभिरामा।। + +मैं तैं मोर मूढ़ता त्यागू। महा मोह निसि सूतत जागू।। + +काल ब्याल कर भच्छक जोई। सपनेहुँ समर कि जीतिअ सोई।।सुनि दसकंठ रिसान अति तेहिं मन कीन्ह बिचार। + +राम दूत कर मरौं बरु यह खल रत मल भार।।56।।अस कहि चला रचिसि मग माया। सर मंदिर बर बाग बनाया।। + +मारुतसुत देखा सुभ आश्रम। मुनिहि बूझि जल पियौं जाइ श्रम।। + +राच्छस कपट बेष तहँ सोहा। मायापति दूतहि चह मोहा।। + +जाइ पवनसुत नायउ माथा। लाग सो कहै राम गुन गाथा।। + +होत महा रन रावन रामहिं। जितहहिं राम न संसय या महिं।। + +इहाँ भएँ मैं देखेउँ भाई। ग्यान दृष्टि बल मोहि अधिकाई।। + +मागा जल तेहिं दीन्ह कमंडल। कह कपि नहिं अघाउँ थोरें जल।। + +सर मज्जन करि आतुर आवहु। दिच्छा देउँ ग्यान जेहिं पावहु।।सर पैठत कपि पद गहा मकरीं तब अकुलान। + +मारी सो धरि दिव्य तनु चली गगन चढ़ि जान।।57।।कपि तव दरस भइउँ निष्पापा। मिटा तात मुनिबर कर सापा।। + +मुनि न होइ यह निसिचर घोरा। मानहु सत्य बचन कपि मोरा।। + +अस कहि गई अपछरा जबहीं। निसिचर निकट गयउ कपि तबहीं।। + +कह कपि मुनि गुरदछिना लेहू। पाछें हमहि मंत्र तुम्ह देहू।। + +सिर लंगूर लपेटि पछारा। निज तनु प्रगटेसि मरती बारा।। + +राम राम कहि छाड़ेसि प्राना। सुनि मन हरषि चलेउ हनुमाना।। + +देखा सैल न औषध चीन्हा। सहसा कपि उपारि गिरि लीन्हा।। + +गहि गिरि निसि नभ धावत भयऊ। अवधपुरी उपर कपि गयऊ।।देखा भरत बिसाल अति निसिचर मन अनुमानि। + +बिनु फर सायक मारेउ चाप श्रवन लगि तानि।।58।।परेउ मुरुछि महि लागत सायक। सुमिरत राम राम रघुनायक।। + +सुनि प्रिय बचन भरत तब धाए। कपि समीप अति आतुर आए।। + +बिकल बिलोकि कीस उर लावा। जागत नहिं बहु भाँति जगावा।। + +मुख मलीन मन भए दुखारी। कहत बचन भरि लोचन बारी।। + +जेहिं बिधि राम बिमुख मोहि कीन्हा। तेहिं पुनि यह दारुन दुख दीन्हा।। + +जौं मोरें मन बच अरु काया। प्रीति राम पद कमल अमाया।। + +तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला। जौं मो पर रघुपति अनुकूला।। + +सुनत बचन उठि बैठ कपीसा। कहि जय जयति कोसलाधीसा।।लीन्ह कपिहि उर लाइ पुलकित तनु लोचन सजल। + +प्रीति न हृदयँ समाइ सुमिरि राम रघुकुल तिलक।।59।।तात कुसल कहु सुखनिधान की। सहित अनुज अरु मातु जानकी।। + +कपि सब चरित समास बखाने। भए दुखी मन महुँ पछिताने।। + +अहह दैव मैं कत जग जायउँ। प्रभु के एकहु काज न आयउँ।। + +जानि कुअवसरु मन धरि धीरा। पुनि कपि सन बोले बलबीरा।। + +तात गहरु होइहि तोहि जाता। काजु नसाइहि होत प्रभाता।। + +चढ़ु मम सायक सैल समेता। पठवौं तोहि जहँ कृपानिकेता।। + +सुनि कपि मन उपजा अभिमाना। मोरें भार चलिहि किमि बाना।। + +राम प्रभाव बिचारि बहोरी। बंदि चरन कह कपि कर जोरी।।तव प्रताप उर राखि प्रभु जेहउँ नाथ तुरंत। + +अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत।।60(क)।। + +भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार। + +मन महुँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार।।60(ख)।।उहाँ राम लछिमनहिं निहारी। बोले बचन मनुज अनुसारी।। + +अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ। राम उठाइ अनुज उर लायउ।। + +सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ। बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ।। + +मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।। + +सो अनुराग कहाँ अब भाई। उठहु न सुनि मम बच बिकलाई।। + +जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहू।। + +सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा।। + +अस बिचारि जियँ जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।। + +जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।। + +अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही।। + +जैहउँ अवध कवन मुहु लाई। नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई।। + +बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं।। + +अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहिहि निठुर कठोर उर मोरा।। + +निज जननी के एक कुमारा। तात तासु तुम्ह प्रान अधारा।। + +सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी। सब बिधि सुखद परम हित जानी।। + +उतरु काह दैहउँ तेहि जाई। उठि किन मोहि सिखावहु भाई।। + +बहु बिधि सिचत सोच बिमोचन। स्त्रवत सलिल राजिव दल लोचन।। + +उमा एक अखंड रघुराई। नर गति भगत कृपाल देखाई।।प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर। + +आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।61।।हरषि राम भेंटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना।। + +तुरत बैद तब कीन्ह उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई।। + +हृदयँ लाइ प्रभु भेंटेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता।। + +कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा। जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा।। + +यह बृत्तांत दसानन सुनेऊ। अति बिषअद पुनि पुनि सिर धुनेऊ।। + +ब्याकुल कुंभकरन पहिं आवा। बिबिध जतन करि ताहि जगावा।। + +जागा निसिचर देखिअ कैसा। मानहुँ कालु देह धरि बैसा।। + +कुंभकरन बूझा कहु भाई। काहे तव मुख रहे सुखाई।। + +कथा कही सब तेहिं अभिमानी। जेहि प्रकार सीता हरि आनी।। + +तात कपिन्ह सब निसिचर मारे। महामहा जोधा संघारे।। + +दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी। भट अतिकाय अकंपन भारी।। + +अपर महोदर आदिक बीरा। परे समर महि सब रनधीरा।।सुनि दसकंधर बचन तब कुंभकरन बिलखान। + +जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान।।62।।भल न कीन्ह तैं निसिचर नाहा। अब मोहि आइ जगाएहि काहा।। + +अजहूँ तात त्यागि अभिमाना। भजहु राम होइहि कल्याना।। + +हैं दससीस मनुज रघुनायक। जाके हनूमान से पायक।। + +अहह बंधु तैं कीन्हि खोटाई। प्रथमहिं मोहि न सुनाएहि आई।। + +कीन्हेहु प्रभू बिरोध तेहि देवक। सिव बिरंचि सुर जाके सेवक।। + +नारद मुनि मोहि ग्यान जो कहा। कहतेउँ तोहि समय निरबहा।। + +अब भरि अंक भेंटु मोहि भाई। लोचन सूफल करौ मैं जाई।। + +स्याम गात सरसीरुह लोचन। देखौं जाइ ताप त्रय मोचन।।राम रूप गुन सुमिरत मगन भयउ छन एक। + +रावन मागेउ कोटि घट मद अरु महिष अनेक।।63।।महिष खाइ करि मदिरा पाना। गर्जा बज्राघात समाना।। + +कुंभकरन दुर्मद रन रंगा। चला दुर्ग तजि सेन न संगा।। + +देखि बिभीषनु आगें आयउ। परेउ चरन निज नाम सुनायउ।। + +अनुज उठाइ हृदयँ तेहि लायो। रघुपति भक्त जानि मन भायो।। + +तात लात रावन मोहि मारा। कहत परम हित मंत्र बिचारा।। + +तेहिं गलानि रघुपति पहिं आयउँ। देखि दीन प्रभु के मन भायउँ।। + +सुनु सुत भयउ कालबस रावन। सो कि मान अब परम सिखावन।। + +धन्य धन्य तैं धन्य बिभीषन। भयहु तात निसिचर कुल भूषन।। + +बंधु बंस तैं कीन्ह उजागर। भजेहु राम सोभा सुख सागर।।बचन कर्म मन कपट तजि भजेहु राम रनधीर। + +जाहु न निज पर सूझ मोहि भयउँ कालबस बीर। 64।।बंधु बचन सुनि चला बिभीषन। आयउ जहँ त्र��लोक बिभूषन।। + +नाथ भूधराकार सरीरा। कुंभकरन आवत रनधीरा।। + +एतना कपिन्ह सुना जब काना। किलकिलाइ धाए बलवाना।। + +लिए उठाइ बिटप अरु भूधर। कटकटाइ डारहिं ता ऊपर।। + +कोटि कोटि गिरि सिखर प्रहारा। करहिं भालु कपि एक एक बारा।। + +मुर् यो न मन तनु टर् यो न टार् यो। जिमि गज अर्क फलनि को मार्यो।। + +तब मारुतसुत मुठिका हन्यो। पर् यो धरनि ब्याकुल सिर धुन्यो।। + +पुनि उठि तेहिं मारेउ हनुमंता। घुर्मित भूतल परेउ तुरंता।। + +पुनि नल नीलहि अवनि पछारेसि। जहँ तहँ पटकि पटकि भट डारेसि।। + +चली बलीमुख सेन पराई। अति भय त्रसित न कोउ समुहाई।।अंगदादि कपि मुरुछित करि समेत सुग्रीव। + +काँख दाबि कपिराज कहुँ चला अमित बल सींव।।65।।उमा करत रघुपति नरलीला। खेलत गरुड़ जिमि अहिगन मीला।। + +भृकुटि भंग जो कालहि खाई। ताहि कि सोहइ ऐसि लराई।। + +जग पावनि कीरति बिस्तरिहहिं। गाइ गाइ भवनिधि नर तरिहहिं।। + +मुरुछा गइ मारुतसुत जागा। सुग्रीवहि तब खोजन लागा।। + +सुग्रीवहु कै मुरुछा बीती। निबुक गयउ तेहि मृतक प्रतीती।। + +काटेसि दसन नासिका काना। गरजि अकास चलउ तेहिं जाना।। + +गहेउ चरन गहि भूमि पछारा। अति लाघवँ उठि पुनि तेहि मारा।। + +पुनि आयसु प्रभु पहिं बलवाना। जयति जयति जय कृपानिधाना।। + +नाक कान काटे जियँ जानी। फिरा क्रोध करि भइ मन ग्लानी।। + +सहज भीम पुनि बिनु श्रुति नासा। देखत कपि दल उपजी त्रासा।।जय जय जय रघुबंस मनि धाए कपि दै हूह। + +एकहि बार तासु पर छाड़ेन्हि गिरि तरु जूह।।66।।कुंभकरन रन रंग बिरुद्धा। सन्मुख चला काल जनु क्रुद्धा।। + +कोटि कोटि कपि धरि धरि खाई। जनु टीड़ी गिरि गुहाँ समाई।। + +कोटिन्ह गहि सरीर सन मर्दा। कोटिन्ह मीजि मिलव महि गर्दा।। + +मुख नासा श्रवनन्हि कीं बाटा। निसरि पराहिं भालु कपि ठाटा।। + +रन मद मत्त निसाचर दर्पा। बिस्व ग्रसिहि जनु एहि बिधि अर्पा।। + +मुरे सुभट सब फिरहिं न फेरे। सूझ न नयन सुनहिं नहिं टेरे।। + +कुंभकरन कपि फौज बिडारी। सुनि धाई रजनीचर धारी।। + +देखि राम बिकल कटकाई। रिपु अनीक नाना बिधि आई।।सुनु सुग्रीव बिभीषन अनुज सँभारेहु सैन। + +मैं देखउँ खल बल दलहि बोले राजिवनैन।।67।।कर सारंग साजि कटि भाथा। अरि दल दलन चले रघुनाथा।। + +प्रथम कीन्ह प्रभु धनुष टँकोरा। रिपु दल बधिर भयउ सुनि सोरा।। + +सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। कालसर्प जनु चले सपच्छा।। + +जहँ तहँ चले बिपुल ना��ाचा। लगे कटन भट बिकट पिसाचा।। + +कटहिं चरन उर सिर भुजदंडा। बहुतक बीर होहिं सत खंडा।। + +घुर्मि घुर्मि घायल महि परहीं। उठि संभारि सुभट पुनि लरहीं।। + +लागत बान जलद जिमि गाजहीं। बहुतक देखी कठिन सर भाजहिं।। + +रुंड प्रचंड मुंड बिनु धावहिं। धरु धरु मारू मारु धुनि गावहिं।।छन महुँ प्रभु के सायकन्हि काटे बिकट पिसाच। + +पुनि रघुबीर निषंग महुँ प्रबिसे सब नाराच।।68।।कुंभकरन मन दीख बिचारी। हति धन माझ निसाचर धारी।। + +भा अति क्रुद्ध महाबल बीरा। कियो मृगनायक नाद गँभीरा।। + +कोपि महीधर लेइ उपारी। डारइ जहँ मर्कट भट भारी।। + +आवत देखि सैल प्रभू भारे। सरन्हि काटि रज सम करि डारे।।। + +पुनि धनु तानि कोपि रघुनायक। छाँड़े अति कराल बहु सायक।। + +तनु महुँ प्रबिसि निसरि सर जाहीं। जिमि दामिनि घन माझ समाहीं।। + +सोनित स्त्रवत सोह तन कारे। जनु कज्जल गिरि गेरु पनारे।। + +बिकल बिलोकि भालु कपि धाए। बिहँसा जबहिं निकट कपि आए।।महानाद करि गर्जा कोटि कोटि गहि कीस। + +महि पटकइ गजराज इव सपथ करइ दससीस।।69।।भागे भालु बलीमुख जूथा। बृकु बिलोकि जिमि मेष बरूथा।। + +चले भागि कपि भालु भवानी। बिकल पुकारत आरत बानी।। + +यह निसिचर दुकाल सम अहई। कपिकुल देस परन अब चहई।। + +कृपा बारिधर राम खरारी। पाहि पाहि प्रनतारति हारी।। + +सकरुन बचन सुनत भगवाना। चले सुधारि सरासन बाना।। + +राम सेन निज पाछैं घाली। चले सकोप महा बलसाली।। + +खैंचि धनुष सर सत संधाने। छूटे तीर सरीर समाने।। + +लागत सर धावा रिस भरा। कुधर डगमगत डोलति धरा।। + +लीन्ह एक तेहिं सैल उपाटी। रघुकुल तिलक भुजा सोइ काटी।। + +धावा बाम बाहु गिरि धारी। प्रभु सोउ भुजा काटि महि पारी।। + +काटें भुजा सोह खल कैसा। पच्छहीन मंदर गिरि जैसा।। + +उग्र बिलोकनि प्रभुहि बिलोका। ग्रसन चहत मानहुँ त्रेलोका।।करि चिक्कार घोर अति धावा बदनु पसारि। + +गगन सिद्ध सुर त्रासित हा हा हेति पुकारि।।70।।सभय देव करुनानिधि जान्यो। श्रवन प्रजंत सरासनु तान्यो।। + +बिसिख निकर निसिचर मुख भरेऊ। तदपि महाबल भूमि न परेऊ।। + +सरन्हि भरा मुख सन्मुख धावा। काल त्रोन सजीव जनु आवा।। + +तब प्रभु कोपि तीब्र सर लीन्हा। धर ते भिन्न तासु सिर कीन्हा।। + +सो सिर परेउ दसानन आगें। बिकल भयउ जिमि फनि मनि त्यागें।। + +धरनि धसइ धर धाव प्रचंडा। तब प्रभु काटि कीन्ह दुइ खंडा।। + +परे भूमि जिमि नभ तें भूधर। हेठ दाबि कपि भालु निसाचर।। + +तासु तेज प्रभु बदन समाना। सुर मुनि सबहिं अचंभव माना।। + +सुर दुंदुभीं बजावहिं हरषहिं। अस्तुति करहिं सुमन बहु बरषहिं।। + +करि बिनती सुर सकल सिधाए। तेही समय देवरिषि आए।। + +गगनोपरि हरि गुन गन गाए। रुचिर बीररस प्रभु मन भाए।। + +बेगि हतहु खल कहि मुनि गए। राम समर महि सोभत भए।।संग्राम भूमि बिराज रघुपति अतुल बल कोसल धनी। + +श्रम बिंदु मुख राजीव लोचन अरुन तन सोनित कनी।। + +भुज जुगल फेरत सर सरासन भालु कपि चहु दिसि बने। + +कह दास तुलसी कहि न सक छबि सेष जेहि आनन घने।।निसिचर अधम मलाकर ताहि दीन्ह निज धाम। + +गिरिजा ते नर मंदमति जे न भजहिं श्रीराम।।71।।दिन कें अंत फिरीं दोउ अनी। समर भई सुभटन्ह श्रम घनी।। + +राम कृपाँ कपि दल बल बाढ़ा। जिमि तृन पाइ लाग अति डाढ़ा।। + +छीजहिं निसिचर दिनु अरु राती। निज मुख कहें सुकृत जेहि भाँती।। + +बहु बिलाप दसकंधर करई। बंधु सीस पुनि पुनि उर धरई।। + +रोवहिं नारि हृदय हति पानी। तासु तेज बल बिपुल बखानी।। + +मेघनाद तेहि अवसर आयउ। कहि बहु कथा पिता समुझायउ।। + +देखेहु कालि मोरि मनुसाई। अबहिं बहुत का करौं बड़ाई।। + +इष्टदेव सैं बल रथ पायउँ। सो बल तात न तोहि देखायउँ।। + +एहि बिधि जल्पत भयउ बिहाना। चहुँ दुआर लागे कपि नाना।। + +इत कपि भालु काल सम बीरा। उत रजनीचर अति रनधीरा।। + +लरहिं सुभट निज निज जय हेतू। बरनि न जाइ समर खगकेतू।।मेघनाद मायामय रथ चढ़ि गयउ अकास।। + +गर्जेउ अट्टहास करि भइ कपि कटकहि त्रास।।72।।सक्ति सूल तरवारि कृपाना। अस्त्र सस्त्र कुलिसायुध नाना।। + +डारह परसु परिघ पाषाना। लागेउ बृष्टि करै बहु बाना।। + +दस दिसि रहे बान नभ छाई। मानहुँ मघा मेघ झरि लाई।। + +धरु धरु मारु सुनिअ धुनि काना। जो मारइ तेहि कोउ न जाना।। + +गहि गिरि तरु अकास कपि धावहिं। देखहि तेहि न दुखित फिरि आवहिं।। + +अवघट घाट बाट गिरि कंदर। माया बल कीन्हेसि सर पंजर।। + +जाहिं कहाँ ब्याकुल भए बंदर। सुरपति बंदि परे जनु मंदर।। + +मारुतसुत अंगद नल नीला। कीन्हेसि बिकल सकल बलसीला।। + +पुनि लछिमन सुग्रीव बिभीषन। सरन्हि मारि कीन्हेसि जर्जर तन।। + +पुनि रघुपति सैं जूझे लागा। सर छाँड़इ होइ लागहिं नागा।। + +ब्याल पास बस भए खरारी। स्वबस अनंत एक अबिकारी।। + +नट इव कपट चरित कर नाना। सदा स्वतंत्र एक भगवाना।। + +रन सोभा लगि प्रभुहिं बँधायो। नागपास देवन्ह भय पायो।।��िरिजा जासु नाम जपि मुनि काटहिं भव पास। + +सो कि बंध तर आवइ ब्यापक बिस्व निवास।।73।।चरित राम के सगुन भवानी। तर्कि न जाहिं बुद्धि बल बानी।। + +अस बिचारि जे तग्य बिरागी। रामहि भजहिं तर्क सब त्यागी।। + +ब्याकुल कटकु कीन्ह घननादा। पुनि भा प्रगट कहइ दुर्बादा।। + +जामवंत कह खल रहु ठाढ़ा। सुनि करि ताहि क्रोध अति बाढ़ा।। + +बूढ़ जानि सठ छाँड़ेउँ तोही। लागेसि अधम पचारै मोही।। + +अस कहि तरल त्रिसूल चलायो। जामवंत कर गहि सोइ धायो।। + +मारिसि मेघनाद कै छाती। परा भूमि घुर्मित सुरघाती।। + +पुनि रिसान गहि चरन फिरायौ। महि पछारि निज बल देखरायो।। + +बर प्रसाद सो मरइ न मारा। तब गहि पद लंका पर डारा।। + +इहाँ देवरिषि गरुड़ पठायो। राम समीप सपदि सो आयो।।खगपति सब धरि खाए माया नाग बरूथ। + +माया बिगत भए सब हरषे बानर जूथ। 74(क)।। + +गहि गिरि पादप उपल नख धाए कीस रिसाइ। + +चले तमीचर बिकलतर गढ़ पर चढ़े पराइ।।74(ख)।।मेघनाद के मुरछा जागी। पितहि बिलोकि लाज अति लागी।। + +तुरत गयउ गिरिबर कंदरा। करौं अजय मख अस मन धरा।। + +इहाँ बिभीषन मंत्र बिचारा। सुनहु नाथ बल अतुल उदारा।। + +मेघनाद मख करइ अपावन। खल मायावी देव सतावन।। + +जौं प्रभु सिद्ध होइ सो पाइहि। नाथ बेगि पुनि जीति न जाइहि।। + +सुनि रघुपति अतिसय सुख माना। बोले अंगदादि कपि नाना।। + +लछिमन संग जाहु सब भाई। करहु बिधंस जग्य कर जाई।। + +तुम्ह लछिमन मारेहु रन ओही। देखि सभय सुर दुख अति मोही।। + +मारेहु तेहि बल बुद्धि उपाई। जेहिं छीजै निसिचर सुनु भाई।। + +जामवंत सुग्रीव बिभीषन। सेन समेत रहेहु तीनिउ जन।। + +जब रघुबीर दीन्हि अनुसासन। कटि निषंग कसि साजि सरासन।। + +प्रभु प्रताप उर धरि रनधीरा। बोले घन इव गिरा गँभीरा।। + +जौं तेहि आजु बधें बिनु आवौं। तौ रघुपति सेवक न कहावौं।। + +जौं सत संकर करहिं सहाई। तदपि हतउँ रघुबीर दोहाई।।रघुपति चरन नाइ सिरु चलेउ तुरंत अनंत। + +अंगद नील मयंद नल संग सुभट हनुमंत।।75।।जाइ कपिन्ह सो देखा बैसा। आहुति देत रुधिर अरु भैंसा।। + +कीन्ह कपिन्ह सब जग्य बिधंसा। जब न उठइ तब करहिं प्रसंसा।। + +तदपि न उठइ धरेन्हि कच जाई। लातन्हि हति हति चले पराई।। + +लै त्रिसुल धावा कपि भागे। आए जहँ रामानुज आगे।। + +आवा परम क्रोध कर मारा। गर्ज घोर रव बारहिं बारा।। + +कोपि मरुतसुत अंगद धाए। हति त्रिसूल उर धरनि गिराए।। + +प्रभु कहँ छाँड़ेसि सूल प्रचंडा। ���र हति कृत अनंत जुग खंडा।। + +उठि बहोरि मारुति जुबराजा। हतहिं कोपि तेहि घाउ न बाजा।। + +फिरे बीर रिपु मरइ न मारा। तब धावा करि घोर चिकारा।। + +आवत देखि क्रुद्ध जनु काला। लछिमन छाड़े बिसिख कराला।। + +देखेसि आवत पबि सम बाना। तुरत भयउ खल अंतरधाना।। + +बिबिध बेष धरि करइ लराई। कबहुँक प्रगट कबहुँ दुरि जाई।। + +देखि अजय रिपु डरपे कीसा। परम क्रुद्ध तब भयउ अहीसा।। + +लछिमन मन अस मंत्र दृढ़ावा। एहि पापिहि मैं बहुत खेलावा।। + +सुमिरि कोसलाधीस प्रतापा। सर संधान कीन्ह करि दापा।। + +छाड़ा बान माझ उर लागा। मरती बार कपटु सब त्यागा।।रामानुज कहँ रामु कहँ अस कहि छाँड़ेसि प्रान। + +धन्य धन्य तव जननी कह अंगद हनुमान।।76।।बिनु प्रयास हनुमान उठायो। लंका द्वार राखि पुनि आयो।। + +तासु मरन सुनि सुर गंधर्बा। चढ़ि बिमान आए नभ सर्बा।। + +बरषि सुमन दुंदुभीं बजावहिं। श्रीरघुनाथ बिमल जसु गावहिं।। + +जय अनंत जय जगदाधारा। तुम्ह प्रभु सब देवन्हि निस्तारा।। + +अस्तुति करि सुर सिद्ध सिधाए। लछिमन कृपासिन्धु पहिं आए।। + +सुत बध सुना दसानन जबहीं। मुरुछित भयउ परेउ महि तबहीं।। + +मंदोदरी रुदन कर भारी। उर ताड़न बहु भाँति पुकारी।। + +नगर लोग सब ब्याकुल सोचा। सकल कहहिं दसकंधर पोचा।।तब दसकंठ बिबिध बिधि समुझाईं सब नारि। + +नस्वर रूप जगत सब देखहु हृदयँ बिचारि।।77।।तिन्हहि ग्यान उपदेसा रावन। आपुन मंद कथा सुभ पावन।। + +पर उपदेस कुसल बहुतेरे। जे आचरहिं ते नर न घनेरे।। + +निसा सिरानि भयउ भिनुसारा। लगे भालु कपि चारिहुँ द्वारा।। + +सुभट बोलाइ दसानन बोला। रन सन्मुख जा कर मन डोला।। + +सो अबहीं बरु जाउ पराई। संजुग बिमुख भएँ न भलाई।। + +निज भुज बल मैं बयरु बढ़ावा। देहउँ उतरु जो रिपु चढ़ि आवा।। + +अस कहि मरुत बेग रथ साजा। बाजे सकल जुझाऊ बाजा।। + +चले बीर सब अतुलित बली। जनु कज्जल कै आँधी चली।। + +असगुन अमित होहिं तेहि काला। गनइ न भुजबल गर्ब बिसाला।।अति गर्ब गनइ न सगुन असगुन स्त्रवहिं आयुध हाथ ते। + +भट गिरत रथ ते बाजि गज चिक्करत भाजहिं साथ ते।। + +गोमाय गीध कराल खर रव स्वान बोलहिं अति घने। + +जनु कालदूत उलूक बोलहिं बचन परम भयावने।।ताहि कि संपति सगुन सुभ सपनेहुँ मन बिश्राम। + +भूत द्रोह रत मोहबस राम बिमुख रति काम।।78।।चलेउ निसाचर कटकु अपारा। चतुरंगिनी अनी बहु धारा।। + +बिबिध भाँति बाहन रथ जाना। बिपुल बरन पताक ध्वज नाना।। + +चले मत्त गज जूथ घनेरे। प्राबिट जलद मरुत जनु प्रेरे।। + +बरन बरद बिरदैत निकाया। समर सूर जानहिं बहु माया।। + +अति बिचित्र बाहिनी बिराजी। बीर बसंत सेन जनु साजी।। + +चलत कटक दिगसिधुंर डगहीं। छुभित पयोधि कुधर डगमगहीं।। + +उठी रेनु रबि गयउ छपाई। मरुत थकित बसुधा अकुलाई।। + +पनव निसान घोर रव बाजहिं। प्रलय समय के घन जनु गाजहिं।। + +भेरि नफीरि बाज सहनाई। मारू राग सुभट सुखदाई।। + +केहरि नाद बीर सब करहीं। निज निज बल पौरुष उच्चरहीं।। + +कहइ दसानन सुनहु सुभट्टा। मर्दहु भालु कपिन्ह के ठट्टा।। + +हौं मारिहउँ भूप द्वौ भाई। अस कहि सन्मुख फौज रेंगाई।। + +यह सुधि सकल कपिन्ह जब पाई। धाए करि रघुबीर दोहाई।।धाए बिसाल कराल मर्कट भालु काल समान ते। + +मानहुँ सपच्छ उड़ाहिं भूधर बृंद नाना बान ते।। + +नख दसन सैल महाद्रुमायुध सबल संक न मानहीं। + +जय राम रावन मत्त गज मृगराज सुजसु बखानहीं।।दुहु दिसि जय जयकार करि निज निज जोरी जानि। + +भिरे बीर इत रामहि उत रावनहि बखानि।।79।।रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा।। + +अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा।। + +नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना।। + +सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना।। + +सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।। + +बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे।। + +ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना।। + +दान परसु बुधि सक्ति प्रचंड़ा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा।। + +अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना।। + +कवच अभेद बिप्र गुर पूजा। एहि सम बिजय उपाय न दूजा।। + +सखा धर्ममय अस रथ जाकें। जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें।।महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर। + +जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर।।80(क)।। + +सुनि प्रभु बचन बिभीषन हरषि गहे पद कंज। + +एहि मिस मोहि उपदेसेहु राम कृपा सुख पुंज।।80(ख)।। + +उत पचार दसकंधर इत अंगद हनुमान। + +लरत निसाचर भालु कपि करि निज निज प्रभु आन।।80(ग)।।सुर ब्रह्मादि सिद्ध मुनि नाना। देखत रन नभ चढ़े बिमाना।। + +हमहू उमा रहे तेहि संगा। देखत राम चरित रन रंगा।। + +सुभट समर रस दुहु दिसि माते। कपि जयसील राम बल ताते।। + +एक एक सन भिरहिं पचारहिं। एकन्ह एक मर्दि महि पारहिं।। + +मारहिं काटहिं धरहिं पछारहिं। सीस तोरि सीसन्ह सन मारहिं।। + +उदर बिदारहिं भुजा उपारहिं। गहि पद अवनि पटकि भट डारहिं।। + +निसिचर भट महि गाड़हि भालू। ऊपर ढारि देहिं बहु बालू।। + +बीर बलिमुख जुद्ध बिरुद्धे। देखिअत बिपुल काल जनु क्रुद्धे।।क्रुद्धे कृतांत समान कपि तन स्त्रवत सोनित राजहीं। + +मर्दहिं निसाचर कटक भट बलवंत घन जिमि गाजहीं।। + +मारहिं चपेटन्हि डाटि दातन्ह काटि लातन्ह मीजहीं। + +चिक्करहिं मर्कट भालु छल बल करहिं जेहिं खल छीजहीं।। + +धरि गाल फारहिं उर बिदारहिं गल अँतावरि मेलहीं। + +प्रहलादपति जनु बिबिध तनु धरि समर अंगन खेलहीं।। + +धरु मारु काटु पछारु घोर गिरा गगन महि भरि रही। + +जय राम जो तृन ते कुलिस कर कुलिस ते कर तृन सही।।निज दल बिचलत देखेसि बीस भुजाँ दस चाप। + +रथ चढ़ि चलेउ दसानन फिरहु फिरहु करि दाप।।81।।धायउ परम क्रुद्ध दसकंधर। सन्मुख चले हूह दै बंदर।। + +गहि कर पादप उपल पहारा। डारेन्हि ता पर एकहिं बारा।। + +लागहिं सैल बज्र तन तासू। खंड खंड होइ फूटहिं आसू।। + +चला न अचल रहा रथ रोपी। रन दुर्मद रावन अति कोपी।। + +इत उत झपटि दपटि कपि जोधा। मर्दै लाग भयउ अति क्रोधा।। + +चले पराइ भालु कपि नाना। त्राहि त्राहि अंगद हनुमाना।। + +पाहि पाहि रघुबीर गोसाई। यह खल खाइ काल की नाई।। + +तेहि देखे कपि सकल पराने। दसहुँ चाप सायक संधाने।।संधानि धनु सर निकर छाड़ेसि उरग जिमि उड़ि लागहीं। + +रहे पूरि सर धरनी गगन दिसि बिदसि कहँ कपि भागहीं।। + +भयो अति कोलाहल बिकल कपि दल भालु बोलहिं आतुरे। + +रघुबीर करुना सिंधु आरत बंधु जन रच्छक हरे।।निज दल बिकल देखि कटि कसि निषंग धनु हाथ। + +लछिमन चले क्रुद्ध होइ नाइ राम पद माथ।।82।।रे खल का मारसि कपि भालू। मोहि बिलोकु तोर मैं कालू।। + +खोजत रहेउँ तोहि सुतघाती। आजु निपाति जुड़ावउँ छाती।। + +अस कहि छाड़ेसि बान प्रचंडा। लछिमन किए सकल सत खंडा।। + +कोटिन्ह आयुध रावन डारे। तिल प्रवान करि काटि निवारे।। + +पुनि निज बानन्ह कीन्ह प्रहारा। स्यंदनु भंजि सारथी मारा।। + +सत सत सर मारे दस भाला। गिरि सृंगन्ह जनु प्रबिसहिं ब्याला।। + +पुनि सत सर मारा उर माहीं। परेउ धरनि तल सुधि कछु नाहीं।। + +उठा प्रबल पुनि मुरुछा जागी। छाड़िसि ब्रह्म दीन्हि जो साँगी।।सो ब्रह्म दत्त प्रचंड सक्ति अनंत उर लागी सही। + +पर्यो बीर बिकल उठाव दसमुख अतुल बल महिमा रही।। + +ब्रह्मांड भवन बिराज जाकें एक सिर जिमि रज कनी। + +��ेहि चह उठावन मूढ़ रावन जान नहिं त्रिभुअन धनी।।देखि पवनसुत धायउ बोलत बचन कठोर। + +आवत कपिहि हन्यो तेहिं मुष्टि प्रहार प्रघोर।।83।।जानु टेकि कपि भूमि न गिरा। उठा सँभारि बहुत रिस भरा।। + +मुठिका एक ताहि कपि मारा। परेउ सैल जनु बज्र प्रहारा।। + +मुरुछा गै बहोरि सो जागा। कपि बल बिपुल सराहन लागा।। + +धिग धिग मम पौरुष धिग मोही। जौं तैं जिअत रहेसि सुरद्रोही।। + +अस कहि लछिमन कहुँ कपि ल्यायो। देखि दसानन बिसमय पायो।। + +कह रघुबीर समुझु जियँ भ्राता। तुम्ह कृतांत भच्छक सुर त्राता।। + +सुनत बचन उठि बैठ कृपाला। गई गगन सो सकति कराला।। + +पुनि कोदंड बान गहि धाए। रिपु सन्मुख अति आतुर आए।।आतुर बहोरि बिभंजि स्यंदन सूत हति ब्याकुल कियो। + +गिर् यो धरनि दसकंधर बिकलतर बान सत बेध्यो हियो।। + +सारथी दूसर घालि रथ तेहि तुरत लंका लै गयो। + +रघुबीर बंधु प्रताप पुंज बहोरि प्रभु चरनन्हि नयो।।उहाँ दसानन जागि करि करै लाग कछु जग्य। + +राम बिरोध बिजय चह सठ हठ बस अति अग्य।।84।।इहाँ बिभीषन सब सुधि पाई। सपदि जाइ रघुपतिहि सुनाई।। + +नाथ करइ रावन एक जागा। सिद्ध भएँ नहिं मरिहि अभागा।। + +पठवहु नाथ बेगि भट बंदर। करहिं बिधंस आव दसकंधर।। + +प्रात होत प्रभु सुभट पठाए। हनुमदादि अंगद सब धाए।। + +कौतुक कूदि चढ़े कपि लंका। पैठे रावन भवन असंका।। + +जग्य करत जबहीं सो देखा। सकल कपिन्ह भा क्रोध बिसेषा।। + +रन ते निलज भाजि गृह आवा। इहाँ आइ बक ध्यान लगावा।। + +अस कहि अंगद मारा लाता। चितव न सठ स्वारथ मन राता।।नहिं चितव जब करि कोप कपि गहि दसन लातन्ह मारहीं। + +धरि केस नारि निकारि बाहेर तेऽतिदीन पुकारहीं।। + +तब उठेउ क्रुद्ध कृतांत सम गहि चरन बानर डारई। + +एहि बीच कपिन्ह बिधंस कृत मख देखि मन महुँ हारई।।जग्य बिधंसि कुसल कपि आए रघुपति पास। + +चलेउ निसाचर क्रुर्द्ध होइ त्यागि जिवन कै आस।।85।।चलत होहिं अति असुभ भयंकर। बैठहिं गीध उड़ाइ सिरन्ह पर।। + +भयउ कालबस काहु न माना। कहेसि बजावहु जुद्ध निसाना।। + +चली तमीचर अनी अपारा। बहु गज रथ पदाति असवारा।। + +प्रभु सन्मुख धाए खल कैंसें। सलभ समूह अनल कहँ जैंसें।। + +इहाँ देवतन्ह अस्तुति कीन्ही। दारुन बिपति हमहि एहिं दीन्ही।। + +अब जनि राम खेलावहु एही। अतिसय दुखित होति बैदेही।। + +देव बचन सुनि प्रभु मुसकाना। उठि रघुबीर सुधारे बाना। + +जटा जूट दृढ़ बाँधै माथे। सोहहिं सु��न बीच बिच गाथे।। + +अरुन नयन बारिद तनु स्यामा। अखिल लोक लोचनाभिरामा।। + +कटितट परिकर कस्यो निषंगा। कर कोदंड कठिन सारंगा।।सारंग कर सुंदर निषंग सिलीमुखाकर कटि कस्यो। + +भुजदंड पीन मनोहरायत उर धरासुर पद लस्यो।। + +कह दास तुलसी जबहिं प्रभु सर चाप कर फेरन लगे। + +ब्रह्मांड दिग्गज कमठ अहि महि सिंधु भूधर डगमगे।।सोभा देखि हरषि सुर बरषहिं सुमन अपार। + +जय जय जय करुनानिधि छबि बल गुन आगार।।86।।एहीं बीच निसाचर अनी। कसमसात आई अति घनी। + +देखि चले सन्मुख कपि भट्टा। प्रलयकाल के जनु घन घट्टा।। + +बहु कृपान तरवारि चमंकहिं। जनु दहँ दिसि दामिनीं दमंकहिं।। + +गज रथ तुरग चिकार कठोरा। गर्जहिं मनहुँ बलाहक घोरा।। + +कपि लंगूर बिपुल नभ छाए। मनहुँ इंद्रधनु उए सुहाए।। + +उठइ धूरि मानहुँ जलधारा। बान बुंद भै बृष्टि अपारा।। + +दुहुँ दिसि पर्बत करहिं प्रहारा। बज्रपात जनु बारहिं बारा।। + +रघुपति कोपि बान झरि लाई। घायल भै निसिचर समुदाई।। + +लागत बान बीर चिक्करहीं। घुर्मि घुर्मि जहँ तहँ महि परहीं।। + +स्त्रवहिं सैल जनु निर्झर भारी। सोनित सरि कादर भयकारी।।कादर भयंकर रुधिर सरिता चली परम अपावनी। + +दोउ कूल दल रथ रेत चक्र अबर्त बहति भयावनी।। + +जल जंतुगज पदचर तुरग खर बिबिध बाहन को गने। + +सर सक्ति तोमर सर्प चाप तरंग चर्म कमठ घने।।बीर परहिं जनु तीर तरु मज्जा बहु बह फेन। + +कादर देखि डरहिं तहँ सुभटन्ह के मन चेन।।87।।मज्जहि भूत पिसाच बेताला। प्रमथ महा झोटिंग कराला।। + +काक कंक लै भुजा उड़ाहीं। एक ते छीनि एक लै खाहीं।। + +एक कहहिं ऐसिउ सौंघाई। सठहु तुम्हार दरिद्र न जाई।। + +कहँरत भट घायल तट गिरे। जहँ तहँ मनहुँ अर्धजल परे।। + +खैंचहिं गीध आँत तट भए। जनु बंसी खेलत चित दए।। + +बहु भट बहहिं चढ़े खग जाहीं। जनु नावरि खेलहिं सरि माहीं।। + +जोगिनि भरि भरि खप्पर संचहिं। भूत पिसाच बधू नभ नंचहिं।। + +भट कपाल करताल बजावहिं। चामुंडा नाना बिधि गावहिं।। + +जंबुक निकर कटक्कट कट्टहिं। खाहिं हुआहिं अघाहिं दपट्टहिं।। + +कोटिन्ह रुंड मुंड बिनु डोल्लहिं। सीस परे महि जय जय बोल्लहिं।।बोल्लहिं जो जय जय मुंड रुंड प्रचंड सिर बिनु धावहीं। + +खप्परिन्ह खग्ग अलुज्झि जुज्झहिं सुभट भटन्ह ढहावहीं।। + +बानर निसाचर निकर मर्दहिं राम बल दर्पित भए। + +संग्राम अंगन सुभट सोवहिं राम सर निकरन्हि हए।।रावन हृदयँ बिचारा भा निसिचर संघार। + +मैं अकेल कपि भालु बहु माया करौं अपार।।88।।देवन्ह प्रभुहि पयादें देखा। उपजा उर अति छोभ बिसेषा।। + +सुरपति निज रथ तुरत पठावा। हरष सहित मातलि लै आवा।। + +तेज पुंज रथ दिब्य अनूपा। हरषि चढ़े कोसलपुर भूपा।। + +चंचल तुरग मनोहर चारी। अजर अमर मन सम गतिकारी।। + +रथारूढ़ रघुनाथहि देखी। धाए कपि बलु पाइ बिसेषी।। + +सही न जाइ कपिन्ह कै मारी। तब रावन माया बिस्तारी।। + +सो माया रघुबीरहि बाँची। लछिमन कपिन्ह सो मानी साँची।। + +देखी कपिन्ह निसाचर अनी। अनुज सहित बहु कोसलधनी।।बहु राम लछिमन देखि मर्कट भालु मन अति अपडरे। + +जनु चित्र लिखित समेत लछिमन जहँ सो तहँ चितवहिं खरे।। + +निज सेन चकित बिलोकि हँसि सर चाप सजि कोसल धनी। + +माया हरी हरि निमिष महुँ हरषी सकल मर्कट अनी।।बहुरि राम सब तन चितइ बोले बचन गँभीर। + +द्वंदजुद्ध देखहु सकल श्रमित भए अति बीर।।89।।अस कहि रथ रघुनाथ चलावा। बिप्र चरन पंकज सिरु नावा।। + +तब लंकेस क्रोध उर छावा। गर्जत तर्जत सन्मुख धावा।। + +जीतेहु जे भट संजुग माहीं। सुनु तापस मैं तिन्ह सम नाहीं।। + +रावन नाम जगत जस जाना। लोकप जाकें बंदीखाना।। + +खर दूषन बिराध तुम्ह मारा। बधेहु ब्याध इव बालि बिचारा।। + +निसिचर निकर सुभट संघारेहु। कुंभकरन घननादहि मारेहु।। + +आजु बयरु सबु लेउँ निबाही। जौं रन भूप भाजि नहिं जाहीं।। + +आजु करउँ खलु काल हवाले। परेहु कठिन रावन के पाले।। + +सुनि दुर्बचन कालबस जाना। बिहँसि बचन कह कृपानिधाना।। + +सत्य सत्य सब तव प्रभुताई। जल्पसि जनि देखाउ मनुसाई।।जनि जल्पना करि सुजसु नासहि नीति सुनहि करहि छमा। + +संसार महँ पूरुष त्रिबिध पाटल रसाल पनस समा।। + +एक सुमनप्रद एक सुमन फल एक फलइ केवल लागहीं। + +एक कहहिं कहहिं करहिं अपर एक करहिं कहत न बागहीं।।राम बचन सुनि बिहँसा मोहि सिखावत ग्यान। + +बयरु करत नहिं तब डरे अब लागे प्रिय प्रान।।90।।कहि दुर्बचन क्रुद्ध दसकंधर। कुलिस समान लाग छाँड़ै सर।। + +नानाकार सिलीमुख धाए। दिसि अरु बिदिस गगन महि छाए।। + +पावक सर छाँड़ेउ रघुबीरा। छन महुँ जरे निसाचर तीरा।। + +छाड़िसि तीब्र सक्ति खिसिआई। बान संग प्रभु फेरि चलाई।। + +कोटिक चक्र त्रिसूल पबारै। बिनु प्रयास प्रभु काटि निवारै।। + +निफल होहिं रावन सर कैसें। खल के सकल मनोरथ जैसें।। + +तब सत बान सारथी मारेसि। परेउ भूमि जय राम पुकारेसि।। + +राम कृपा करि सूत उठावा। तब प्रभु परम क्रोध कहुँ पावा।।भए क्रुद्ध जुद्ध बिरुद्ध रघुपति त्रोन सायक कसमसे। + +कोदंड धुनि अति चंड सुनि मनुजाद सब मारुत ग्रसे।। + +मँदोदरी उर कंप कंपति कमठ भू भूधर त्रसे। + +चिक्करहिं दिग्गज दसन गहि महि देखि कौतुक सुर हँसे।।तानेउ चाप श्रवन लगि छाँड़े बिसिख कराल। + +राम मारगन गन चले लहलहात जनु ब्याल।।91।।चले बान सपच्छ जनु उरगा। प्रथमहिं हतेउ सारथी तुरगा।। + +रथ बिभंजि हति केतु पताका। गर्जा अति अंतर बल थाका।। + +तुरत आन रथ चढ़ि खिसिआना। अस्त्र सस्त्र छाँड़ेसि बिधि नाना।। + +बिफल होहिं सब उद्यम ताके। जिमि परद्रोह निरत मनसा के।। + +तब रावन दस सूल चलावा। बाजि चारि महि मारि गिरावा।। + +तुरग उठाइ कोपि रघुनायक। खैंचि सरासन छाँड़े सायक।। + +रावन सिर सरोज बनचारी। चलि रघुबीर सिलीमुख धारी।। + +दस दस बान भाल दस मारे। निसरि गए चले रुधिर पनारे।। + +स्त्रवत रुधिर धायउ बलवाना। प्रभु पुनि कृत धनु सर संधाना।। + +तीस तीर रघुबीर पबारे। भुजन्हि समेत सीस महि पारे।। + +काटतहीं पुनि भए नबीने। राम बहोरि भुजा सिर छीने।। + +प्रभु बहु बार बाहु सिर हए। कटत झटिति पुनि नूतन भए।। + +पुनि पुनि प्रभु काटत भुज सीसा। अति कौतुकी कोसलाधीसा।। + +रहे छाइ नभ सिर अरु बाहू। मानहुँ अमित केतु अरु राहू।।जनु राहु केतु अनेक नभ पथ स्त्रवत सोनित धावहीं। + +रघुबीर तीर प्रचंड लागहिं भूमि गिरन न पावहीं।। + +एक एक सर सिर निकर छेदे नभ उड़त इमि सोहहीं। + +जनु कोपि दिनकर कर निकर जहँ तहँ बिधुंतुद पोहहीं।।जिमि जिमि प्रभु हर तासु सिर तिमि तिमि होहिं अपार। + +सेवत बिषय बिबर्ध जिमि नित नित नूतन मार।।92।।दसमुख देखि सिरन्ह कै बाढ़ी। बिसरा मरन भई रिस गाढ़ी।। + +गर्जेउ मूढ़ महा अभिमानी। धायउ दसहु सरासन तानी।। + +समर भूमि दसकंधर कोप्यो। बरषि बान रघुपति रथ तोप्यो।। + +दंड एक रथ देखि न परेऊ। जनु निहार महुँ दिनकर दुरेऊ।। + +हाहाकार सुरन्ह जब कीन्हा। तब प्रभु कोपि कारमुक लीन्हा।। + +सर निवारि रिपु के सिर काटे। ते दिसि बिदिस गगन महि पाटे।। + +काटे सिर नभ मारग धावहिं। जय जय धुनि करि भय उपजावहिं।। + +कहँ लछिमन सुग्रीव कपीसा। कहँ रघुबीर कोसलाधीसा।।कहँ रामु कहि सिर निकर धाए देखि मर्कट भजि चले। + +संधानि धनु रघुबंसमनि हँसि सरन्हि सिर बेधे भले।। + +सिर मालिका कर कालिका गहि बृंद बृंदन्हि बहु मिलीं। + +करि रुधिर सरि मज्जनु मनहुँ संग्राम बट पूजन चलीं।।पुनि दसकंठ क्रुद्ध होइ छाँड़ी सक्ति प्रचंड। + +चली बिभीषन सन्मुख मनहुँ काल कर दंड।।93।।आवत देखि सक्ति अति घोरा। प्रनतारति भंजन पन मोरा।। + +तुरत बिभीषन पाछें मेला। सन्मुख राम सहेउ सोइ सेला।। + +लागि सक्ति मुरुछा कछु भई। प्रभु कृत खेल सुरन्ह बिकलई।। + +देखि बिभीषन प्रभु श्रम पायो। गहि कर गदा क्रुद्ध होइ धायो।। + +रे कुभाग्य सठ मंद कुबुद्धे। तैं सुर नर मुनि नाग बिरुद्धे।। + +सादर सिव कहुँ सीस चढ़ाए। एक एक के कोटिन्ह पाए।। + +तेहि कारन खल अब लगि बाँच्यो। अब तव कालु सीस पर नाच्यो।। + +राम बिमुख सठ चहसि संपदा। अस कहि हनेसि माझ उर गदा।।उर माझ गदा प्रहार घोर कठोर लागत महि पर् यो। + +दस बदन सोनित स्त्रवत पुनि संभारि धायो रिस भर् यो।। + +द्वौ भिरे अतिबल मल्लजुद्ध बिरुद्ध एकु एकहि हनै। + +रघुबीर बल दर्पित बिभीषनु घालि नहिं ता कहुँ गनै।।उमा बिभीषनु रावनहि सन्मुख चितव कि काउ। + +सो अब भिरत काल ज्यों श्रीरघुबीर प्रभाउ।।94।।देखा श्रमित बिभीषनु भारी। धायउ हनूमान गिरि धारी।। + +रथ तुरंग सारथी निपाता। हृदय माझ तेहि मारेसि लाता।। + +ठाढ़ रहा अति कंपित गाता। गयउ बिभीषनु जहँ जनत्राता।। + +पुनि रावन कपि हतेउ पचारी। चलेउ गगन कपि पूँछ पसारी।। + +गहिसि पूँछ कपि सहित उड़ाना। पुनि फिरि भिरेउ प्रबल हनुमाना।। + +लरत अकास जुगल सम जोधा। एकहि एकु हनत करि क्रोधा।। + +सोहहिं नभ छल बल बहु करहीं। कज्जल गिरि सुमेरु जनु लरहीं।। + +बुधि बल निसिचर परइ न पार् यो। तब मारुत सुत प्रभु संभार् यो।।संभारि श्रीरघुबीर धीर पचारि कपि रावनु हन्यो। + +महि परत पुनि उठि लरत देवन्ह जुगल कहुँ जय जय भन्यो।। + +हनुमंत संकट देखि मर्कट भालु क्रोधातुर चले। + +रन मत्त रावन सकल सुभट प्रचंड भुज बल दलमले।।तब रघुबीर पचारे धाए कीस प्रचंड। + +कपि बल प्रबल देखि तेहिं कीन्ह प्रगट पाषंड।।95।।अंतरधान भयउ छन एका। पुनि प्रगटे खल रूप अनेका।। + +रघुपति कटक भालु कपि जेते। जहँ तहँ प्रगट दसानन तेते।। + +देखे कपिन्ह अमित दससीसा। जहँ तहँ भजे भालु अरु कीसा।। + +भागे बानर धरहिं न धीरा। त्राहि त्राहि लछिमन रघुबीरा।। + +दहँ दिसि धावहिं कोटिन्ह रावन। गर्जहिं घोर कठोर भयावन।। + +डरे सकल सुर चले पराई। जय कै आस तजहु अब भाई।। + +सब सुर जिते एक दसकंधर। अब बहु भए तकहु गिरि कंदर।। + +रहे बिरंचि संभु मुनि ग्यानी। जिन्ह जिन्ह प्रभु महिमा कछु जानी।।जाना प्रताप ते रहे निर्भय कपिन्ह रिपु माने फुरे। + +चले बिचलि मर्कट भालु सकल कृपाल पाहि भयातुरे।। + +हनुमंत अंगद नील नल अतिबल लरत रन बाँकुरे। + +मर्दहिं दसानन कोटि कोटिन्ह कपट भू भट अंकुरे।।सुर बानर देखे बिकल हँस्यो कोसलाधीस। + +सजि सारंग एक सर हते सकल दससीस।।96।।प्रभु छन महुँ माया सब काटी। जिमि रबि उएँ जाहिं तम फाटी।। + +रावनु एकु देखि सुर हरषे। फिरे सुमन बहु प्रभु पर बरषे।। + +भुज उठाइ रघुपति कपि फेरे। फिरे एक एकन्ह तब टेरे।। + +प्रभु बलु पाइ भालु कपि धाए। तरल तमकि संजुग महि आए।। + +अस्तुति करत देवतन्हि देखें। भयउँ एक मैं इन्ह के लेखें।। + +सठहु सदा तुम्ह मोर मरायल। अस कहि कोपि गगन पर धायल।। + +हाहाकार करत सुर भागे। खलहु जाहु कहँ मोरें आगे।। + +देखि बिकल सुर अंगद धायो। कूदि चरन गहि भूमि गिरायो।।गहि भूमि पार् यो लात मार् यो बालिसुत प्रभु पहिं गयो। + +संभारि उठि दसकंठ घोर कठोर रव गर्जत भयो।। + +करि दाप चाप चढ़ाइ दस संधानि सर बहु बरषई। + +किए सकल भट घायल भयाकुल देखि निज बल हरषई।।तब रघुपति रावन के सीस भुजा सर चाप। + +काटे बहुत बढ़े पुनि जिमि तीरथ कर पाप। 97।।सिर भुज बाढ़ि देखि रिपु केरी। भालु कपिन्ह रिस भई घनेरी।। + +मरत न मूढ़ कटेउ भुज सीसा। धाए कोपि भालु भट कीसा।। + +बालितनय मारुति नल नीला। बानरराज दुबिद बलसीला।। + +बिटप महीधर करहिं प्रहारा। सोइ गिरि तरु गहि कपिन्ह सो मारा।। + +एक नखन्हि रिपु बपुष बिदारी। भअगि चलहिं एक लातन्ह मारी।। + +तब नल नील सिरन्हि चढ़ि गयऊ। नखन्हि लिलार बिदारत भयऊ।। + +रुधिर देखि बिषाद उर भारी। तिन्हहि धरन कहुँ भुजा पसारी।। + +गहे न जाहिं करन्हि पर फिरहीं। जनु जुग मधुप कमल बन चरहीं।। + +कोपि कूदि द्वौ धरेसि बहोरी। महि पटकत भजे भुजा मरोरी।। + +पुनि सकोप दस धनु कर लीन्हे। सरन्हि मारि घायल कपि कीन्हे।। + +हनुमदादि मुरुछित करि बंदर। पाइ प्रदोष हरष दसकंधर।। + +मुरुछित देखि सकल कपि बीरा। जामवंत धायउ रनधीरा।। + +संग भालु भूधर तरु धारी। मारन लगे पचारि पचारी।। + +भयउ क्रुद्ध रावन बलवाना। गहि पद महि पटकइ भट नाना।। + +देखि भालुपति निज दल घाता। कोपि माझ उर मारेसि लाता।।उर लात घात प्रचंड लागत बिकल रथ ते महि परा। + +गहि भालु बीसहुँ कर मनहुँ कमलन्हि बसे निसि मधुकरा।। + +मुरुछित बिलोकि बहोरि पद हत�� भालुपति प्रभु पहिं गयौ। + +निसि जानि स्यंदन घालि तेहि तब सूत जतनु करत भयो।।मुरुछा बिगत भालु कपि सब आए प्रभु पास। + +निसिचर सकल रावनहि घेरि रहे अति त्रास।।98।।तेही निसि सीता पहिं जाई। त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई।। + +सिर भुज बाढ़ि सुनत रिपु केरी। सीता उर भइ त्रास घनेरी।। + +मुख मलीन उपजी मन चिंता। त्रिजटा सन बोली तब सीता।। + +होइहि कहा कहसि किन माता। केहि बिधि मरिहि बिस्व दुखदाता।। + +रघुपति सर सिर कटेहुँ न मरई। बिधि बिपरीत चरित सब करई।। + +मोर अभाग्य जिआवत ओही। जेहिं हौ हरि पद कमल बिछोही।। + +जेहिं कृत कपट कनक मृग झूठा। अजहुँ सो दैव मोहि पर रूठा।। + +जेहिं बिधि मोहि दुख दुसह सहाए। लछिमन कहुँ कटु बचन कहाए।। + +रघुपति बिरह सबिष सर भारी। तकि तकि मार बार बहु मारी।। + +ऐसेहुँ दुख जो राख मम प्राना। सोइ बिधि ताहि जिआव न आना।। + +बहु बिधि कर बिलाप जानकी। करि करि सुरति कृपानिधान की।। + +कह त्रिजटा सुनु राजकुमारी। उर सर लागत मरइ सुरारी।। + +प्रभु ताते उर हतइ न तेही। एहि के हृदयँ बसति बैदेही।।एहि के हृदयँ बस जानकी जानकी उर मम बास है। + +मम उदर भुअन अनेक लागत बान सब कर नास है।। + +सुनि बचन हरष बिषाद मन अति देखि पुनि त्रिजटाँ कहा। + +अब मरिहि रिपु एहि बिधि सुनहि सुंदरि तजहि संसय महा।।काटत सिर होइहि बिकल छुटि जाइहि तव ध्यान। + +तब रावनहि हृदय महुँ मरिहहिं रामु सुजान।।99।।अस कहि बहुत भाँति समुझाई। पुनि त्रिजटा निज भवन सिधाई।। + +राम सुभाउ सुमिरि बैदेही। उपजी बिरह बिथा अति तेही।। + +निसिहि ससिहि निंदति बहु भाँती। जुग सम भई सिराति न राती।। + +करति बिलाप मनहिं मन भारी। राम बिरहँ जानकी दुखारी।। + +जब अति भयउ बिरह उर दाहू। फरकेउ बाम नयन अरु बाहू।। + +सगुन बिचारि धरी मन धीरा। अब मिलिहहिं कृपाल रघुबीरा।। + +इहाँ अर्धनिसि रावनु जागा। निज सारथि सन खीझन लागा।। + +सठ रनभूमि छड़ाइसि मोही। धिग धिग अधम मंदमति तोही।। + +तेहिं पद गहि बहु बिधि समुझावा। भौरु भएँ रथ चढ़ि पुनि धावा।। + +सुनि आगवनु दसानन केरा। कपि दल खरभर भयउ घनेरा।। + +जहँ तहँ भूधर बिटप उपारी। धाए कटकटाइ भट भारी।।धाए जो मर्कट बिकट भालु कराल कर भूधर धरा। + +अति कोप करहिं प्रहार मारत भजि चले रजनीचरा।। + +बिचलाइ दल बलवंत कीसन्ह घेरि पुनि रावनु लियो। + +चहुँ दिसि चपेटन्हि मारि नखन्हि बिदारि तनु ब्याकुल कियो।।देखि महा मर्कट प्रबल रावन कीन्ह बिचार। + +अंतरहित होइ निमिष महुँ कृत माया बिस्तार।।100।।जब कीन्ह तेहिं पाषंड। भए प्रगट जंतु प्रचंड।। + +बेताल भूत पिसाच। कर धरें धनु नाराच।।1।। + +जोगिनि गहें करबाल। एक हाथ मनुज कपाल।। + +करि सद्य सोनित पान। नाचहिं करहिं बहु गान।।2।। + +धरु मारु बोलहिं घोर। रहि पूरि धुनि चहुँ ओर।। + +मुख बाइ धावहिं खान। तब लगे कीस परान।।3।। + +जहँ जाहिं मर्कट भागि। तहँ बरत देखहिं आगि।। + +भए बिकल बानर भालु। पुनि लाग बरषै बालु।।4।। + +जहँ तहँ थकित करि कीस। गर्जेउ बहुरि दससीस।। + +लछिमन कपीस समेत। भए सकल बीर अचेत।।5।। + +हा राम हा रघुनाथ। कहि सुभट मीजहिं हाथ।। + +एहि बिधि सकल बल तोरि। तेहिं कीन्ह कपट बहोरि।।6।। + +प्रगटेसि बिपुल हनुमान। धाए गहे पाषान।। + +तिन्ह रामु घेरे जाइ। चहुँ दिसि बरूथ बनाइ।।7।। + +मारहु धरहु जनि जाइ। कटकटहिं पूँछ उठाइ।। + +दहँ दिसि लँगूर बिराज। तेहिं मध्य कोसलराज।।8।। + +तेहिं मध्य कोसलराज सुंदर स्याम तन सोभा लही। + +जनु इंद्रधनुष अनेक की बर बारि तुंग तमालही।। + +प्रभु देखि हरष बिषाद उर सुर बदत जय जय जय करी। + +रघुबीर एकहि तीर कोपि निमेष महुँ माया हरी।।1।। + +माया बिगत कपि भालु हरषे बिटप गिरि गहि सब फिरे। + +सर निकर छाड़े राम रावन बाहु सिर पुनि महि गिरे।। + +श्रीराम रावन समर चरित अनेक कल्प जो गावहीं। + +सत सेष सारद निगम कबि तेउ तदपि पार न पावहीं।।2।।ताके गुन गन कछु कहे जड़मति तुलसीदास। + +जिमि निज बल अनुरूप ते माछी उड़इ अकास।।101(क)।। + +काटे सिर भुज बार बहु मरत न भट लंकेस। + +प्रभु क्रीड़त सुर सिद्ध मुनि ब्याकुल देखि कलेस।।101(ख)।।काटत बढ़हिं सीस समुदाई। जिमि प्रति लाभ लोभ अधिकाई।। + +मरइ न रिपु श्रम भयउ बिसेषा। राम बिभीषन तन तब देखा।। + +उमा काल मर जाकीं ईछा। सो प्रभु जन कर प्रीति परीछा।। + +सुनु सरबग्य चराचर नायक। प्रनतपाल सुर मुनि सुखदायक।। + +नाभिकुंड पियूष बस याकें। नाथ जिअत रावनु बल ताकें।। + +सुनत बिभीषन बचन कृपाला। हरषि गहे कर बान कराला।। + +असुभ होन लागे तब नाना। रोवहिं खर सृकाल बहु स्वाना।। + +बोलहि खग जग आरति हेतू। प्रगट भए नभ जहँ तहँ केतू।। + +दस दिसि दाह होन अति लागा। भयउ परब बिनु रबि उपरागा।। + +मंदोदरि उर कंपति भारी। प्रतिमा स्त्रवहिं नयन मग बारी।।प्रतिमा रुदहिं पबिपात नभ अति बात बह डोलति मही। + +बरषहिं बलाहक रुधिर कच रज असुभ अति सक को कही।�� + +उतपात अमित बिलोकि नभ सुर बिकल बोलहि जय जए। + +सुर सभय जानि कृपाल रघुपति चाप सर जोरत भए।।खैचि सरासन श्रवन लगि छाड़े सर एकतीस। + +रघुनायक सायक चले मानहुँ काल फनीस।।102।।सायक एक नाभि सर सोषा। अपर लगे भुज सिर करि रोषा।। + +लै सिर बाहु चले नाराचा। सिर भुज हीन रुंड महि नाचा।। + +धरनि धसइ धर धाव प्रचंडा। तब सर हति प्रभु कृत दुइ खंडा।। + +गर्जेउ मरत घोर रव भारी। कहाँ रामु रन हतौं पचारी।। + +डोली भूमि गिरत दसकंधर। छुभित सिंधु सरि दिग्गज भूधर।। + +धरनि परेउ द्वौ खंड बढ़ाई। चापि भालु मर्कट समुदाई।। + +मंदोदरि आगें भुज सीसा। धरि सर चले जहाँ जगदीसा।। + +प्रबिसे सब निषंग महु जाई। देखि सुरन्ह दुंदुभीं बजाई।। + +तासु तेज समान प्रभु आनन। हरषे देखि संभु चतुरानन।। + +जय जय धुनि पूरी ब्रह्मंडा। जय रघुबीर प्रबल भुजदंडा।। + +बरषहि सुमन देव मुनि बृंदा। जय कृपाल जय जयति मुकुंदा।।जय कृपा कंद मुकंद द्वंद हरन सरन सुखप्रद प्रभो। + +खल दल बिदारन परम कारन कारुनीक सदा बिभो।। + +सुर सुमन बरषहिं हरष संकुल बाज दुंदुभि गहगही। + +संग्राम अंगन राम अंग अनंग बहु सोभा लही।। + +सिर जटा मुकुट प्रसून बिच बिच अति मनोहर राजहीं। + +जनु नीलगिरि पर तड़ित पटल समेत उड़ुगन भ्राजहीं।। + +भुजदंड सर कोदंड फेरत रुधिर कन तन अति बने। + +जनु रायमुनीं तमाल पर बैठीं बिपुल सुख आपने।।कृपादृष्टि करि प्रभु अभय किए सुर बृंद। + +भालु कीस सब हरषे जय सुख धाम मुकंद।।103।।पति सिर देखत मंदोदरी। मुरुछित बिकल धरनि खसि परी।। + +जुबति बृंद रोवत उठि धाईं। तेहि उठाइ रावन पहिं आई।। + +पति गति देखि ते करहिं पुकारा। छूटे कच नहिं बपुष सँभारा।। + +उर ताड़ना करहिं बिधि नाना। रोवत करहिं प्रताप बखाना।। + +तव बल नाथ डोल नित धरनी। तेज हीन पावक ससि तरनी।। + +सेष कमठ सहि सकहिं न भारा। सो तनु भूमि परेउ भरि छारा।। + +बरुन कुबेर सुरेस समीरा। रन सन्मुख धरि काहुँ न धीरा।। + +भुजबल जितेहु काल जम साईं। आजु परेहु अनाथ की नाईं।। + +जगत बिदित तुम्हारी प्रभुताई। सुत परिजन बल बरनि न जाई।। + +राम बिमुख अस हाल तुम्हारा। रहा न कोउ कुल रोवनिहारा।। + +तव बस बिधि प्रपंच सब नाथा। सभय दिसिप नित नावहिं माथा।। + +अब तव सिर भुज जंबुक खाहीं। राम बिमुख यह अनुचित नाहीं।। + +काल बिबस पति कहा न माना। अग जग नाथु मनुज करि जाना।।जान्यो मनुज करि दनुज कानन दहन पावक हरि स्वयं। + +जेहि नमत सिव ब्रह्मादि सुर पिय भजेहु नहिं करुनामयं।। + +आजन्म ते परद्रोह रत पापौघमय तव तनु अयं। + +तुम्हहू दियो निज धाम राम नमामि ब्रह्म निरामयं।।अहह नाथ रघुनाथ सम कृपासिंधु नहिं आन। + +जोगि बृंद दुर्लभ गति तोहि दीन्हि भगवान।।104।।मंदोदरी बचन सुनि काना। सुर मुनि सिद्ध सबन्हि सुख माना।। + +अज महेस नारद सनकादी। जे मुनिबर परमारथबादी।। + +भरि लोचन रघुपतिहि निहारी। प्रेम मगन सब भए सुखारी।। + +रुदन करत देखीं सब नारी। गयउ बिभीषनु मन दुख भारी।। + +बंधु दसा बिलोकि दुख कीन्हा। तब प्रभु अनुजहि आयसु दीन्हा।। + +लछिमन तेहि बहु बिधि समुझायो। बहुरि बिभीषन प्रभु पहिं आयो।। + +कृपादृष्टि प्रभु ताहि बिलोका। करहु क्रिया परिहरि सब सोका।। + +कीन्हि क्रिया प्रभु आयसु मानी। बिधिवत देस काल जियँ जानी।।मंदोदरी आदि सब देइ तिलांजलि ताहि। + +भवन गई रघुपति गुन गन बरनत मन माहि।।105।।आइ बिभीषन पुनि सिरु नायो। कृपासिंधु तब अनुज बोलायो।। + +तुम्ह कपीस अंगद नल नीला। जामवंत मारुति नयसीला।। + +सब मिलि जाहु बिभीषन साथा। सारेहु तिलक कहेउ रघुनाथा।। + +पिता बचन मैं नगर न आवउँ। आपु सरिस कपि अनुज पठावउँ।। + +तुरत चले कपि सुनि प्रभु बचना। कीन्ही जाइ तिलक की रचना।। + +सादर सिंहासन बैठारी। तिलक सारि अस्तुति अनुसारी।। + +जोरि पानि सबहीं सिर नाए। सहित बिभीषन प्रभु पहिं आए।। + +तब रघुबीर बोलि कपि लीन्हे। कहि प्रिय बचन सुखी सब कीन्हे।।किए सुखी कहि बानी सुधा सम बल तुम्हारें रिपु हयो। + +पायो बिभीषन राज तिहुँ पुर जसु तुम्हारो नित नयो।। + +मोहि सहित सुभ कीरति तुम्हारी परम प्रीति जो गाइहैं। + +संसार सिंधु अपार पार प्रयास बिनु नर पाइहैं।।प्रभु के बचन श्रवन सुनि नहिं अघाहिं कपि पुंज। + +बार बार सिर नावहिं गहहिं सकल पद कंज।।106।।पुनि प्रभु बोलि लियउ हनुमाना। लंका जाहु कहेउ भगवाना।। + +समाचार जानकिहि सुनावहु। तासु कुसल लै तुम्ह चलि आवहु।। + +तब हनुमंत नगर महुँ आए। सुनि निसिचरी निसाचर धाए।। + +बहु प्रकार तिन्ह पूजा कीन्ही। जनकसुता देखाइ पुनि दीन्ही।। + +दूरहि ते प्रनाम कपि कीन्हा। रघुपति दूत जानकीं चीन्हा।। + +कहहु तात प्रभु कृपानिकेता। कुसल अनुज कपि सेन समेता।। + +सब बिधि कुसल कोसलाधीसा। मातु समर जीत्यो दससीसा।। + +अबिचल राजु बिभीषन पायो। सुनि कपि बचन हरष उर छायो।।अति हरष मन तन पुलक लोचन सज�� कह पुनि पुनि रमा। + +का देउँ तोहि त्रेलोक महुँ कपि किमपि नहिं बानी समा।। + +सुनु मातु मैं पायो अखिल जग राजु आजु न संसयं। + +रन जीति रिपुदल बंधु जुत पस्यामि राममनामयं।।सुनु सुत सदगुन सकल तव हृदयँ बसहुँ हनुमंत। + +सानुकूल कोसलपति रहहुँ समेत अनंत।।107।।अब सोइ जतन करहु तुम्ह ताता। देखौं नयन स्याम मृदु गाता।। + +तब हनुमान राम पहिं जाई। जनकसुता कै कुसल सुनाई।। + +सुनि संदेसु भानुकुलभूषन। बोलि लिए जुबराज बिभीषन।। + +मारुतसुत के संग सिधावहु। सादर जनकसुतहि लै आवहु।। + +तुरतहिं सकल गए जहँ सीता। सेवहिं सब निसिचरीं बिनीता।। + +बेगि बिभीषन तिन्हहि सिखायो। तिन्ह बहु बिधि मज्जन करवायो।। + +बहु प्रकार भूषन पहिराए। सिबिका रुचिर साजि पुनि ल्याए।। + +ता पर हरषि चढ़ी बैदेही। सुमिरि राम सुखधाम सनेही।। + +बेतपानि रच्छक चहुँ पासा। चले सकल मन परम हुलासा।। + +देखन भालु कीस सब आए। रच्छक कोपि निवारन धाए।। + +कह रघुबीर कहा मम मानहु। सीतहि सखा पयादें आनहु।। + +देखहुँ कपि जननी की नाईं। बिहसि कहा रघुनाथ गोसाई।। + +सुनि प्रभु बचन भालु कपि हरषे। नभ ते सुरन्ह सुमन बहु बरषे।। + +सीता प्रथम अनल महुँ राखी। प्रगट कीन्हि चह अंतर साखी।।तेहि कारन करुनानिधि कहे कछुक दुर्बाद। + +सुनत जातुधानीं सब लागीं करै बिषाद।।108।।प्रभु के बचन सीस धरि सीता। बोली मन क्रम बचन पुनीता।। + +लछिमन होहु धरम के नेगी। पावक प्रगट करहु तुम्ह बेगी।। + +सुनि लछिमन सीता कै बानी। बिरह बिबेक धरम निति सानी।। + +लोचन सजल जोरि कर दोऊ। प्रभु सन कछु कहि सकत न ओऊ।। + +देखि राम रुख लछिमन धाए। पावक प्रगटि काठ बहु लाए।। + +पावक प्रबल देखि बैदेही। हृदयँ हरष नहिं भय कछु तेही।। + +जौं मन बच क्रम मम उर माहीं। तजि रघुबीर आन गति नाहीं।। + +तौ कृसानु सब कै गति जाना। मो कहुँ होउ श्रीखंड समाना।।श्रीखंड सम पावक प्रबेस कियो सुमिरि प्रभु मैथिली। + +जय कोसलेस महेस बंदित चरन रति अति निर्मली।। + +प्रतिबिंब अरु लौकिक कलंक प्रचंड पावक महुँ जरे। + +प्रभु चरित काहुँ न लखे नभ सुर सिद्ध मुनि देखहिं खरे।।1।। + +धरि रूप पावक पानि गहि श्री सत्य श्रुति जग बिदित जो। + +जिमि छीरसागर इंदिरा रामहि समर्पी आनि सो।। + +सो राम बाम बिभाग राजति रुचिर अति सोभा भली। + +नव नील नीरज निकट मानहुँ कनक पंकज की कली।।2।।बरषहिं सुमन हरषि सुन बाजहिं गगन निसान। + +गावहिं किंनर ���ुरबधू नाचहिं चढ़ीं बिमान।।109(क)।। + +जनकसुता समेत प्रभु सोभा अमित अपार। + +देखि भालु कपि हरषे जय रघुपति सुख सार।।109(ख)।।तब रघुपति अनुसासन पाई। मातलि चलेउ चरन सिरु नाई।। + +आए देव सदा स्वारथी। बचन कहहिं जनु परमारथी।। + +दीन बंधु दयाल रघुराया। देव कीन्हि देवन्ह पर दाया।। + +बिस्व द्रोह रत यह खल कामी। निज अघ गयउ कुमारगगामी।। + +तुम्ह समरूप ब्रह्म अबिनासी। सदा एकरस सहज उदासी।। + +अकल अगुन अज अनघ अनामय। अजित अमोघसक्ति करुनामय।। + +मीन कमठ सूकर नरहरी। बामन परसुराम बपु धरी।। + +जब जब नाथ सुरन्ह दुखु पायो। नाना तनु धरि तुम्हइँ नसायो।। + +यह खल मलिन सदा सुरद्रोही। काम लोभ मद रत अति कोही।। + +अधम सिरोमनि तव पद पावा। यह हमरे मन बिसमय आवा।। + +हम देवता परम अधिकारी। स्वारथ रत प्रभु भगति बिसारी।। + +भव प्रबाहँ संतत हम परे। अब प्रभु पाहि सरन अनुसरे।।करि बिनती सुर सिद्ध सब रहे जहँ तहँ कर जोरि। + +अति सप्रेम तन पुलकि बिधि अस्तुति करत बहोरि।।110।।जय राम सदा सुखधाम हरे। रघुनायक सायक चाप धरे।। + +भव बारन दारन सिंह प्रभो। गुन सागर नागर नाथ बिभो।। + +तन काम अनेक अनूप छबी। गुन गावत सिद्ध मुनींद्र कबी।। + +जसु पावन रावन नाग महा। खगनाथ जथा करि कोप गहा।। + +जन रंजन भंजन सोक भयं। गतक्रोध सदा प्रभु बोधमयं।। + +अवतार उदार अपार गुनं। महि भार बिभंजन ग्यानघनं।। + +अज ब्यापकमेकमनादि सदा। करुनाकर राम नमामि मुदा।। + +रघुबंस बिभूषन दूषन हा। कृत भूप बिभीषन दीन रहा।। + +गुन ग्यान निधान अमान अजं। नित राम नमामि बिभुं बिरजं।। + +भुजदंड प्रचंड प्रताप बलं। खल बृंद निकंद महा कुसलं।। + +बिनु कारन दीन दयाल हितं। छबि धाम नमामि रमा सहितं।। + +भव तारन कारन काज परं। मन संभव दारुन दोष हरं।। + +सर चाप मनोहर त्रोन धरं। जरजारुन लोचन भूपबरं।। + +सुख मंदिर सुंदर श्रीरमनं। मद मार मुधा ममता समनं।। + +अनवद्य अखंड न गोचर गो। सबरूप सदा सब होइ न गो।। + +इति बेद बदंति न दंतकथा। रबि आतप भिन्नमभिन्न जथा।। + +कृतकृत्य बिभो सब बानर ए। निरखंति तवानन सादर ए।। + +धिग जीवन देव सरीर हरे। तव भक्ति बिना भव भूलि परे।। + +अब दीन दयाल दया करिऐ। मति मोरि बिभेदकरी हरिऐ।। + +जेहि ते बिपरीत क्रिया करिऐ। दुख सो सुख मानि सुखी चरिऐ।। + +खल खंडन मंडन रम्य छमा। पद पंकज सेवित संभु उमा।। + +नृप नायक दे बरदानमिदं। चरनांबुज प्रेम सदा सुभदं।।बिनय ��ीन्हि चतुरानन प्रेम पुलक अति गात। + +सोभासिंधु बिलोकत लोचन नहीं अघात।।111।।तेहि अवसर दसरथ तहँ आए। तनय बिलोकि नयन जल छाए।। + +अनुज सहित प्रभु बंदन कीन्हा। आसिरबाद पिताँ तब दीन्हा।। + +तात सकल तव पुन्य प्रभाऊ। जीत्यों अजय निसाचर राऊ।। + +सुनि सुत बचन प्रीति अति बाढ़ी। नयन सलिल रोमावलि ठाढ़ी।। + +रघुपति प्रथम प्रेम अनुमाना। चितइ पितहि दीन्हेउ दृढ़ ग्याना।। + +ताते उमा मोच्छ नहिं पायो। दसरथ भेद भगति मन लायो।। + +सगुनोपासक मोच्छ न लेहीं। तिन्ह कहुँ राम भगति निज देहीं।। + +बार बार करि प्रभुहि प्रनामा। दसरथ हरषि गए सुरधामा।।अनुज जानकी सहित प्रभु कुसल कोसलाधीस। + +सोभा देखि हरषि मन अस्तुति कर सुर ईस।।112।।जय राम सोभा धाम। दायक प्रनत बिश्राम।। + +धृत त्रोन बर सर चाप। भुजदंड प्रबल प्रताप।।1।। + +जय दूषनारि खरारि। मर्दन निसाचर धारि।। + +यह दुष्ट मारेउ नाथ। भए देव सकल सनाथ।।2।। + +जय हरन धरनी भार। महिमा उदार अपार।। + +जय रावनारि कृपाल। किए जातुधान बिहाल।।3।। + +लंकेस अति बल गर्ब। किए बस्य सुर गंधर्ब।। + +मुनि सिद्ध नर खग नाग। हठि पंथ सब कें लाग।।4।। + +परद्रोह रत अति दुष्ट। पायो सो फलु पापिष्ट।। + +अब सुनहु दीन दयाल। राजीव नयन बिसाल।।5।। + +मोहि रहा अति अभिमान। नहिं कोउ मोहि समान।। + +अब देखि प्रभु पद कंज। गत मान प्रद दुख पुंज।।6।। + +कोउ ब्रह्म निर्गुन ध्याव। अब्यक्त जेहि श्रुति गाव।। + +मोहि भाव कोसल भूप। श्रीराम सगुन सरूप।।7।। + +बैदेहि अनुज समेत। मम हृदयँ करहु निकेत।। + +मोहि जानिए निज दास। दे भक्ति रमानिवास।।8।। + +दे भक्ति रमानिवास त्रास हरन सरन सुखदायकं। + +सुख धाम राम नमामि काम अनेक छबि रघुनायकं।। + +सुर बृंद रंजन द्वंद भंजन मनुज तनु अतुलितबलं। + +ब्रह्मादि संकर सेब्य राम नमामि करुना कोमलं।।अब करि कृपा बिलोकि मोहि आयसु देहु कृपाल। + +काह करौं सुनि प्रिय बचन बोले दीनदयाल।।113।।सुनु सुरपति कपि भालु हमारे। परे भूमि निसचरन्हि जे मारे।। + +मम हित लागि तजे इन्ह प्राना। सकल जिआउ सुरेस सुजाना।। + +सुनु खगेस प्रभु कै यह बानी। अति अगाध जानहिं मुनि ग्यानी।। + +प्रभु सक त्रिभुअन मारि जिआई। केवल सक्रहि दीन्हि बड़ाई।। + +सुधा बरषि कपि भालु जिआए। हरषि उठे सब प्रभु पहिं आए।। + +सुधाबृष्टि भै दुहु दल ऊपर। जिए भालु कपि नहिं रजनीचर।। + +रामाकार भए तिन्ह के मन। मुक्त भए छूटे भव बंधन।। + +सुर अंसिक सब कपि अरु रीछा। जिए सकल रघुपति कीं ईछा।। + +राम सरिस को दीन हितकारी। कीन्हे मुकुत निसाचर झारी।। + +खल मल धाम काम रत रावन। गति पाई जो मुनिबर पाव न।।सुमन बरषि सब सुर चले चढ़ि चढ़ि रुचिर बिमान। + +देखि सुअवसरु प्रभु पहिं आयउ संभु सुजान।।114(क)।। + +परम प्रीति कर जोरि जुग नलिन नयन भरि बारि। + +पुलकित तन गदगद गिराँ बिनय करत त्रिपुरारि।।114(ख)।।मामभिरक्षय रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक।। + +मोह महा घन पटल प्रभंजन। संसय बिपिन अनल सुर रंजन।।1।। + +अगुन सगुन गुन मंदिर सुंदर। भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर।। + +काम क्रोध मद गज पंचानन। बसहु निरंतर जन मन कानन।।2।। + +बिषय मनोरथ पुंज कंज बन। प्रबल तुषार उदार पार मन।। + +भव बारिधि मंदर परमं दर। बारय तारय संसृति दुस्तर।।3।। + +स्याम गात राजीव बिलोचन। दीन बंधु प्रनतारति मोचन।। + +अनुज जानकी सहित निरंतर। बसहु राम नृप मम उर अंतर।।4।। + +मुनि रंजन महि मंडल मंडन। तुलसिदास प्रभु त्रास बिखंडन।।5।।नाथ जबहिं कोसलपुरीं होइहि तिलक तुम्हार। + +कृपासिंधु मैं आउब देखन चरित उदार।।115।।करि बिनती जब संभु सिधाए। तब प्रभु निकट बिभीषनु आए।। + +नाइ चरन सिरु कह मृदु बानी। बिनय सुनहु प्रभु सारँगपानी।। + +सकुल सदल प्रभु रावन मार् यो। पावन जस त्रिभुवन बिस्तार् यो।। + +दीन मलीन हीन मति जाती। मो पर कृपा कीन्हि बहु भाँती।। + +अब जन गृह पुनीत प्रभु कीजे। मज्जनु करिअ समर श्रम छीजे।। + +देखि कोस मंदिर संपदा। देहु कृपाल कपिन्ह कहुँ मुदा।। + +सब बिधि नाथ मोहि अपनाइअ। पुनि मोहि सहित अवधपुर जाइअ।। + +सुनत बचन मृदु दीनदयाला। सजल भए द्वौ नयन बिसाला।।तोर कोस गृह मोर सब सत्य बचन सुनु भ्रात। + +भरत दसा सुमिरत मोहि निमिष कल्प सम जात।।116(क)।। + +तापस बेष गात कृस जपत निरंतर मोहि। + +देखौं बेगि सो जतनु करु सखा निहोरउँ तोहि।।116(ख)।। + +बीतें अवधि जाउँ जौं जिअत न पावउँ बीर। + +सुमिरत अनुज प्रीति प्रभु पुनि पुनि पुलक सरीर।।116(ग)।। + +करेहु कल्प भरि राजु तुम्ह मोहि सुमिरेहु मन माहिं। + +पुनि मम धाम पाइहहु जहाँ संत सब जाहिं।।116(घ)।।सुनत बिभीषन बचन राम के। हरषि गहे पद कृपाधाम के।। + +बानर भालु सकल हरषाने। गहि प्रभु पद गुन बिमल बखाने।। + +बहुरि बिभीषन भवन सिधायो। मनि गन बसन बिमान भरायो।। + +लै पुष्पक प्रभु आगें राखा। हँसि करि कृपासिंधु तब भाषा।। + +चढ़�� बिमान सुनु सखा बिभीषन। गगन जाइ बरषहु पट भूषन।। + +नभ पर जाइ बिभीषन तबही। बरषि दिए मनि अंबर सबही।। + +जोइ जोइ मन भावइ सोइ लेहीं। मनि मुख मेलि डारि कपि देहीं।। + +हँसे रामु श्री अनुज समेता। परम कौतुकी कृपा निकेता।।मुनि जेहि ध्यान न पावहिं नेति नेति कह बेद। + +कृपासिंधु सोइ कपिन्ह सन करत अनेक बिनोद।।117(क)।। + +उमा जोग जप दान तप नाना मख ब्रत नेम। + +राम कृपा नहि करहिं तसि जसि निष्केवल प्रेम।।117(ख)।।भालु कपिन्ह पट भूषन पाए। पहिरि पहिरि रघुपति पहिं आए।। + +नाना जिनस देखि सब कीसा। पुनि पुनि हँसत कोसलाधीसा।। + +चितइ सबन्हि पर कीन्हि दाया। बोले मृदुल बचन रघुराया।। + +तुम्हरें बल मैं रावनु मार् यो। तिलक बिभीषन कहँ पुनि सार् यो।। + +निज निज गृह अब तुम्ह सब जाहू। सुमिरेहु मोहि डरपहु जनि काहू।। + +सुनत बचन प्रेमाकुल बानर। जोरि पानि बोले सब सादर।। + +प्रभु जोइ कहहु तुम्हहि सब सोहा। हमरे होत बचन सुनि मोहा।। + +दीन जानि कपि किए सनाथा। तुम्ह त्रेलोक ईस रघुनाथा।। + +सुनि प्रभु बचन लाज हम मरहीं। मसक कहूँ खगपति हित करहीं।। + +देखि राम रुख बानर रीछा। प्रेम मगन नहिं गृह कै ईछा।।प्रभु प्रेरित कपि भालु सब राम रूप उर राखि। + +हरष बिषाद सहित चले बिनय बिबिध बिधि भाषि।।118(क)।। + +कपिपति नील रीछपति अंगद नल हनुमान। + +सहित बिभीषन अपर जे जूथप कपि बलवान।।118(ख)।। + +कहि न सकहिं कछु प्रेम बस भरि भरि लोचन बारि। + +सन्मुख चितवहिं राम तन नयन निमेष निवारि।।118(ग)।।अतिसय प्रीति देख रघुराई। लिन्हे सकल बिमान चढ़ाई।। + +मन महुँ बिप्र चरन सिरु नायो। उत्तर दिसिहि बिमान चलायो।। + +चलत बिमान कोलाहल होई। जय रघुबीर कहइ सबु कोई।। + +सिंहासन अति उच्च मनोहर। श्री समेत प्रभु बैठै ता पर।। + +राजत रामु सहित भामिनी। मेरु सृंग जनु घन दामिनी।। + +रुचिर बिमानु चलेउ अति आतुर। कीन्ही सुमन बृष्टि हरषे सुर।। + +परम सुखद चलि त्रिबिध बयारी। सागर सर सरि निर्मल बारी।। + +सगुन होहिं सुंदर चहुँ पासा। मन प्रसन्न निर्मल नभ आसा।। + +कह रघुबीर देखु रन सीता। लछिमन इहाँ हत्यो इँद्रजीता।। + +हनूमान अंगद के मारे। रन महि परे निसाचर भारे।। + +कुंभकरन रावन द्वौ भाई। इहाँ हते सुर मुनि दुखदाई।।इहाँ सेतु बाँध्यो अरु थापेउँ सिव सुख धाम। + +सीता सहित कृपानिधि संभुहि कीन्ह प्रनाम।।119(क)।। + +जहँ जहँ कृपासिंधु बन कीन्ह बास बिश्राम। + +सकल देखा�� जानकिहि कहे सबन्हि के नाम।।119(ख)।।तुरत बिमान तहाँ चलि आवा। दंडक बन जहँ परम सुहावा।। + +कुंभजादि मुनिनायक नाना। गए रामु सब कें अस्थाना।। + +सकल रिषिन्ह सन पाइ असीसा। चित्रकूट आए जगदीसा।। + +तहँ करि मुनिन्ह केर संतोषा। चला बिमानु तहाँ ते चोखा।। + +बहुरि राम जानकिहि देखाई। जमुना कलि मल हरनि सुहाई।। + +पुनि देखी सुरसरी पुनीता। राम कहा प्रनाम करु सीता।। + +तीरथपति पुनि देखु प्रयागा। निरखत जन्म कोटि अघ भागा।। + +देखु परम पावनि पुनि बेनी। हरनि सोक हरि लोक निसेनी।। + +पुनि देखु अवधपुरी अति पावनि। त्रिबिध ताप भव रोग नसावनि।।।सीता सहित अवध कहुँ कीन्ह कृपाल प्रनाम। + +सजल नयन तन पुलकित पुनि पुनि हरषित राम।।120(क)।। + +पुनि प्रभु आइ त्रिबेनीं हरषित मज्जनु कीन्ह। + +कपिन्ह सहित बिप्रन्ह कहुँ दान बिबिध बिधि दीन्ह।।120(ख)।।केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं + +शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्। + +पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं + +नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम्।।1।। + +कोसलेन्द्रपदकञ्जमञ्जुलौ कोमलावजमहेशवन्दितौ। + +जानकीकरसरोजलालितौ चिन्तकस्य मनभृङ्गसड्गिनौ।।2।। + +कुन्दइन्दुदरगौरसुन्दरं अम्बिकापतिमभीष्टसिद्धिदम्। + +कारुणीककलकञ्जलोचनं नौमि शंकरमनंगमोचनम्।।3।।रहा एक दिन अवधि कर अति आरत पुर लोग। + +जहँ तहँ सोचहिं नारि नर कृस तन राम बियोग।। + +सगुन होहिं सुंदर सकल मन प्रसन्न सब केर। + +प्रभु आगवन जनाव जनु नगर रम्य चहुँ फेर।। + +कौसल्यादि मातु सब मन अनंद अस होइ। + +आयउ प्रभु श्री अनुज जुत कहन चहत अब कोइ।। + +भरत नयन भुज दच्छिन फरकत बारहिं बार। + +जानि सगुन मन हरष अति लागे करन बिचार।।रहेउ एक दिन अवधि अधारा। समुझत मन दुख भयउ अपारा।। + +कारन कवन नाथ नहिं आयउ। जानि कुटिल किधौं मोहि बिसरायउ।। + +अहह धन्य लछिमन बड़भागी। राम पदारबिंदु अनुरागी।। + +कपटी कुटिल मोहि प्रभु चीन्हा। ताते नाथ संग नहिं लीन्हा।। + +जौं करनी समुझै प्रभु मोरी। नहिं निस्तार कलप सत कोरी।। + +जन अवगुन प्रभु मान न काऊ। दीन बंधु अति मृदुल सुभाऊ।। + +मोरि जियँ भरोस दृढ़ सोई। मिलिहहिं राम सगुन सुभ होई।। + +बीतें अवधि रहहि जौं प्राना। अधम कवन जग मोहि समाना।।राम बिरह सागर महँ भरत मगन मन होत। + +बिप्र रूप धरि पवन सुत आइ गयउ जनु पोत।।1(क)।। + +बैठि देखि कुसासन जटा मुकुट कृस गात। + +राम राम रघुपति जपत स्त्रवत नयन जलजात।।1(ख)।।देखत हनूमान अति हरषेउ। पुलक गात लोचन जल बरषेउ।। + +मन महँ बहुत भाँति सुख मानी। बोलेउ श्रवन सुधा सम बानी।। + +जासु बिरहँ सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाँती।। + +रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता।। + +रिपु रन जीति सुजस सुर गावत। सीता सहित अनुज प्रभु आवत।। + +सुनत बचन बिसरे सब दूखा। तृषावंत जिमि पाइ पियूषा।। + +को तुम्ह तात कहाँ ते आए। मोहि परम प्रिय बचन सुनाए।। + +मारुत सुत मैं कपि हनुमाना। नामु मोर सुनु कृपानिधाना।। + +दीनबंधु रघुपति कर किंकर। सुनत भरत भेंटेउ उठि सादर।। + +मिलत प्रेम नहिं हृदयँ समाता। नयन स्त्रवत जल पुलकित गाता।। + +कपि तव दरस सकल दुख बीते। मिले आजु मोहि राम पिरीते।। + +बार बार बूझी कुसलाता। तो कहुँ देउँ काह सुनु भ्राता।। + +एहि संदेस सरिस जग माहीं। करि बिचार देखेउँ कछु नाहीं।। + +नाहिन तात उरिन मैं तोही। अब प्रभु चरित सुनावहु मोही।। + +तब हनुमंत नाइ पद माथा। कहे सकल रघुपति गुन गाथा।। + +कहु कपि कबहुँ कृपाल गोसाईं। सुमिरहिं मोहि दास की नाईं।।निज दास ज्यों रघुबंसभूषन कबहुँ मम सुमिरन कर् यो। + +सुनि भरत बचन बिनीत अति कपि पुलकित तन चरनन्हि पर् यो।। + +रघुबीर निज मुख जासु गुन गन कहत अग जग नाथ जो। + +काहे न होइ बिनीत परम पुनीत सदगुन सिंधु सो।।राम प्रान प्रिय नाथ तुम्ह सत्य बचन मम तात। + +पुनि पुनि मिलत भरत सुनि हरष न हृदयँ समात।।2(क)।। + +भरत चरन सिरु नाइ तुरित गयउ कपि राम पहिं। + +कही कुसल सब जाइ हरषि चलेउ प्रभु जान चढ़ि।।2(ख)।।हरषि भरत कोसलपुर आए। समाचार सब गुरहि सुनाए।। + +पुनि मंदिर महँ बात जनाई। आवत नगर कुसल रघुराई।। + +सुनत सकल जननीं उठि धाईं। कहि प्रभु कुसल भरत समुझाई।। + +समाचार पुरबासिन्ह पाए। नर अरु नारि हरषि सब धाए।। + +दधि दुर्बा रोचन फल फूला। नव तुलसी दल मंगल मूला।। + +भरि भरि हेम थार भामिनी। गावत चलिं सिंधु सिंधुरगामिनी।। + +जे जैसेहिं तैसेहिं उटि धावहिं। बाल बृद्ध कहँ संग न लावहिं।। + +एक एकन्ह कहँ बूझहिं भाई। तुम्ह देखे दयाल रघुराई।। + +अवधपुरी प्रभु आवत जानी। भई सकल सोभा कै खानी।। + +बहइ सुहावन त्रिबिध समीरा। भइ सरजू अति निर्मल नीरा।।हरषित गुर परिजन अनुज भूसुर बृंद समेत। + +चले भरत मन प्रेम अति सन्मुख कृपानिकेत।।3(क)।। + +ब��ुतक चढ़ी अटारिन्ह निरखहिं गगन बिमान। + +देखि मधुर सुर हरषित करहिं सुमंगल गान।।3(ख)।। + +राका ससि रघुपति पुर सिंधु देखि हरषान। + +बढ़यो कोलाहल करत जनु नारि तरंग समान।।3(ग)।।इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर। कपिन्ह देखावत नगर मनोहर।। + +सुनु कपीस अंगद लंकेसा। पावन पुरी रुचिर यह देसा।। + +जद्यपि सब बैकुंठ बखाना। बेद पुरान बिदित जगु जाना।। + +अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।। + +जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।। + +जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा। मम समीप नर पावहिं बासा।। + +अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी। मम धामदा पुरी सुख रासी।। + +हरषे सब कपि सुनि प्रभु बानी। धन्य अवध जो राम बखानी।।आवत देखि लोग सब कृपासिंधु भगवान। + +नगर निकट प्रभु प्रेरेउ उतरेउ भूमि बिमान।।4(क)।। + +उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहि तुम्ह कुबेर पहिं जाहु। + +प्रेरित राम चलेउ सो हरषु बिरहु अति ताहु।।4(ख)।।आए भरत संग सब लोगा। कृस तन श्रीरघुबीर बियोगा।। + +बामदेव बसिष्ठ मुनिनायक। देखे प्रभु महि धरि धनु सायक।। + +धाइ धरे गुर चरन सरोरुह। अनुज सहित अति पुलक तनोरुह।। + +भेंटि कुसल बूझी मुनिराया। हमरें कुसल तुम्हारिहिं दाया।। + +सकल द्विजन्ह मिलि नायउ माथा। धर्म धुरंधर रघुकुलनाथा।। + +गहे भरत पुनि प्रभु पद पंकज। नमत जिन्हहि सुर मुनि संकर अज।। + +परे भूमि नहिं उठत उठाए। बर करि कृपासिंधु उर लाए।। + +स्यामल गात रोम भए ठाढ़े। नव राजीव नयन जल बाढ़े।।राजीव लोचन स्त्रवत जल तन ललित पुलकावलि बनी। + +अति प्रेम हृदयँ लगाइ अनुजहि मिले प्रभु त्रिभुअन धनी।। + +प्रभु मिलत अनुजहि सोह मो पहिं जाति नहिं उपमा कही। + +जनु प्रेम अरु सिंगार तनु धरि मिले बर सुषमा लही।।1।। + +बूझत कृपानिधि कुसल भरतहि बचन बेगि न आवई। + +सुनु सिवा सो सुख बचन मन ते भिन्न जान जो पावई।। + +अब कुसल कौसलनाथ आरत जानि जन दरसन दियो। + +बूड़त बिरह बारीस कृपानिधान मोहि कर गहि लियो।।2।।पुनि प्रभु हरषि सत्रुहन भेंटे हृदयँ लगाइ। + +लछिमन भरत मिले तब परम प्रेम दोउ भाइ।।5।।भरतानुज लछिमन पुनि भेंटे। दुसह बिरह संभव दुख मेटे।। + +सीता चरन भरत सिरु नावा। अनुज समेत परम सुख पावा।। + +प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी। जनित बियोग बिपति सब नासी।। + +प्रेमातुर सब लोग निहारी। कौतुक कीन्ह कृपाल खरारी।। + +अमित रूप प्रगटे तेहि काला। जथाजोग मिले सबहि कृपा��ा।। + +कृपादृष्टि रघुबीर बिलोकी। किए सकल नर नारि बिसोकी।। + +छन महिं सबहि मिले भगवाना। उमा मरम यह काहुँ न जाना।। + +एहि बिधि सबहि सुखी करि रामा। आगें चले सील गुन धामा।। + +कौसल्यादि मातु सब धाई। निरखि बच्छ जनु धेनु लवाई।।जनु धेनु बालक बच्छ तजि गृहँ चरन बन परबस गईं। + +दिन अंत पुर रुख स्त्रवत थन हुंकार करि धावत भई।। + +अति प्रेम सब मातु भेटीं बचन मृदु बहुबिधि कहे। + +गइ बिषम बियोग भव तिन्ह हरष सुख अगनित लहे।।भेटेउ तनय सुमित्राँ राम चरन रति जानि। + +रामहि मिलत कैकेई हृदयँ बहुत सकुचानि।।6(क)।। + +लछिमन सब मातन्ह मिलि हरषे आसिष पाइ। + +कैकेइ कहँ पुनि पुनि मिले मन कर छोभु न जाइ।।6।।सासुन्ह सबनि मिली बैदेही। चरनन्हि लागि हरषु अति तेही।। + +देहिं असीस बूझि कुसलाता। होइ अचल तुम्हार अहिवाता।। + +सब रघुपति मुख कमल बिलोकहिं। मंगल जानि नयन जल रोकहिं।। + +कनक थार आरति उतारहिं। बार बार प्रभु गात निहारहिं।। + +नाना भाँति निछावरि करहीं। परमानंद हरष उर भरहीं।। + +कौसल्या पुनि पुनि रघुबीरहि। चितवति कृपासिंधु रनधीरहि।। + +हृदयँ बिचारति बारहिं बारा। कवन भाँति लंकापति मारा।। + +अति सुकुमार जुगल मेरे बारे। निसिचर सुभट महाबल भारे।।लछिमन अरु सीता सहित प्रभुहि बिलोकति मातु। + +परमानंद मगन मन पुनि पुनि पुलकित गातु।।7।।लंकापति कपीस नल नीला। जामवंत अंगद सुभसीला।। + +हनुमदादि सब बानर बीरा। धरे मनोहर मनुज सरीरा।। + +भरत सनेह सील ब्रत नेमा। सादर सब बरनहिं अति प्रेमा।। + +देखि नगरबासिन्ह कै रीती। सकल सराहहि प्रभु पद प्रीती।। + +पुनि रघुपति सब सखा बोलाए। मुनि पद लागहु सकल सिखाए।। + +गुर बसिष्ट कुलपूज्य हमारे। इन्ह की कृपाँ दनुज रन मारे।। + +ए सब सखा सुनहु मुनि मेरे। भए समर सागर कहँ बेरे।। + +मम हित लागि जन्म इन्ह हारे। भरतहु ते मोहि अधिक पिआरे।। + +सुनि प्रभु बचन मगन सब भए। निमिष निमिष उपजत सुख नए।।कौसल्या के चरनन्हि पुनि तिन्ह नायउ माथ।। + +आसिष दीन्हे हरषि तुम्ह प्रिय मम जिमि रघुनाथ।।8(क)।। + +सुमन बृष्टि नभ संकुल भवन चले सुखकंद। + +चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नगर नारि नर बृंद।।8(ख)।।कंचन कलस बिचित्र सँवारे। सबहिं धरे सजि निज निज द्वारे।। + +बंदनवार पताका केतू। सबन्हि बनाए मंगल हेतू।। + +बीथीं सकल सुगंध सिंचाई। गजमनि रचि बहु चौक पुराई।। + +नाना भाँति सुमंगल साजे। हरषि नगर निसान बह�� बाजे।। + +जहँ तहँ नारि निछावर करहीं। देहिं असीस हरष उर भरहीं।। + +कंचन थार आरती नाना। जुबती सजें करहिं सुभ गाना।। + +करहिं आरती आरतिहर कें। रघुकुल कमल बिपिन दिनकर कें।। + +पुर सोभा संपति कल्याना। निगम सेष सारदा बखाना।। + +तेउ यह चरित देखि ठगि रहहीं। उमा तासु गुन नर किमि कहहीं।।नारि कुमुदिनीं अवध सर रघुपति बिरह दिनेस। + +अस्त भएँ बिगसत भईं निरखि राम राकेस।।9(क)।। + +होहिं सगुन सुभ बिबिध बिधि बाजहिं गगन निसान। + +पुर नर नारि सनाथ करि भवन चले भगवान।।9(ख)।।प्रभु जानी कैकेई लजानी। प्रथम तासु गृह गए भवानी।। + +ताहि प्रबोधि बहुत सुख दीन्हा। पुनि निज भवन गवन हरि कीन्हा।। + +कृपासिंधु जब मंदिर गए। पुर नर नारि सुखी सब भए।। + +गुर बसिष्ट द्विज लिए बुलाई। आजु सुघरी सुदिन समुदाई।। + +सब द्विज देहु हरषि अनुसासन। रामचंद्र बैठहिं सिंघासन।। + +मुनि बसिष्ट के बचन सुहाए। सुनत सकल बिप्रन्ह अति भाए।। + +कहहिं बचन मृदु बिप्र अनेका। जग अभिराम राम अभिषेका।। + +अब मुनिबर बिलंब नहिं कीजे। महाराज कहँ तिलक करीजै।।तब मुनि कहेउ सुमंत्र सन सुनत चलेउ हरषाइ। + +रथ अनेक बहु बाजि गज तुरत सँवारे जाइ।।10(क)।। + +जहँ तहँ धावन पठइ पुनि मंगल द्रब्य मगाइ। + +हरष समेत बसिष्ट पद पुनि सिरु नायउ आइ।।10(ख)।।अवधपुरी अति रुचिर बनाई। देवन्ह सुमन बृष्टि झरि लाई।। + +राम कहा सेवकन्ह बुलाई। प्रथम सखन्ह अन्हवावहु जाई।। + +सुनत बचन जहँ तहँ जन धाए। सुग्रीवादि तुरत अन्हवाए।। + +पुनि करुनानिधि भरतु हँकारे। निज कर राम जटा निरुआरे।। + +अन्हवाए प्रभु तीनिउ भाई। भगत बछल कृपाल रघुराई।। + +भरत भाग्य प्रभु कोमलताई। सेष कोटि सत सकहिं न गाई।। + +पुनि निज जटा राम बिबराए। गुर अनुसासन मागि नहाए।। + +करि मज्जन प्रभु भूषन साजे। अंग अनंग देखि सत लाजे।।सासुन्ह सादर जानकिहि मज्जन तुरत कराइ। + +दिब्य बसन बर भूषन अँग अँग सजे बनाइ।।11(क)।। + +राम बाम दिसि सोभति रमा रूप गुन खानि। + +देखि मातु सब हरषीं जन्म सुफल निज जानि।।11(ख)।। + +सुनु खगेस तेहि अवसर ब्रह्मा सिव मुनि बृंद। + +चढ़ि बिमान आए सब सुर देखन सुखकंद।।11(ग)।।प्रभु बिलोकि मुनि मन अनुरागा। तुरत दिब्य सिंघासन मागा।। + +रबि सम तेज सो बरनि न जाई। बैठे राम द्विजन्ह सिरु नाई।। + +जनकसुता समेत रघुराई। पेखि प्रहरषे मुनि समुदाई।। + +बेद मंत्र तब द्विजन्ह उचारे। नभ सुर मुनि जय जयति पु��ारे।। + +प्रथम तिलक बसिष्ट मुनि कीन्हा। पुनि सब बिप्रन्ह आयसु दीन्हा।। + +सुत बिलोकि हरषीं महतारी। बार बार आरती उतारी।। + +बिप्रन्ह दान बिबिध बिधि दीन्हे। जाचक सकल अजाचक कीन्हे।। + +सिंघासन पर त्रिभुअन साई। देखि सुरन्ह दुंदुभीं बजाईं।।नभ दुंदुभीं बाजहिं बिपुल गंधर्ब किंनर गावहीं। + +नाचहिं अपछरा बृंद परमानंद सुर मुनि पावहीं।। + +भरतादि अनुज बिभीषनांगद हनुमदादि समेत ते। + +गहें छत्र चामर ब्यजन धनु असि चर्म सक्ति बिराजते।।1।। + +श्री सहित दिनकर बंस बूषन काम बहु छबि सोहई। + +नव अंबुधर बर गात अंबर पीत सुर मन मोहई।। + +मुकुटांगदादि बिचित्र भूषन अंग अंगन्हि प्रति सजे। + +अंभोज नयन बिसाल उर भुज धन्य नर निरखंति जे।।2।।वह सोभा समाज सुख कहत न बनइ खगेस। + +बरनहिं सारद सेष श्रुति सो रस जान महेस।।12(क)।। + +भिन्न भिन्न अस्तुति करि गए सुर निज निज धाम। + +बंदी बेष बेद तब आए जहँ श्रीराम।। 12(ख)।। + +प्रभु सर्बग्य कीन्ह अति आदर कृपानिधान। + +लखेउ न काहूँ मरम कछु लगे करन गुन गान।।12(ग)।।जय सगुन निर्गुन रूप रूप अनूप भूप सिरोमने। + +दसकंधरादि प्रचंड निसिचर प्रबल खल भुज बल हने।। + +अवतार नर संसार भार बिभंजि दारुन दुख दहे। + +जय प्रनतपाल दयाल प्रभु संजुक्त सक्ति नमामहे।।1।। + +तव बिषम माया बस सुरासुर नाग नर अग जग हरे। + +भव पंथ भ्रमत अमित दिवस निसि काल कर्म गुननि भरे।। + +जे नाथ करि करुना बिलोके त्रिबिधि दुख ते निर्बहे। + +भव खेद छेदन दच्छ हम कहुँ रच्छ राम नमामहे।।2।। + +जे ग्यान मान बिमत्त तव भव हरनि भक्ति न आदरी। + +ते पाइ सुर दुर्लभ पदादपि परत हम देखत हरी।। + +बिस्वास करि सब आस परिहरि दास तव जे होइ रहे। + +जपि नाम तव बिनु श्रम तरहिं भव नाथ सो समरामहे।।3।। + +जे चरन सिव अज पूज्य रज सुभ परसि मुनिपतिनी तरी। + +नख निर्गता मुनि बंदिता त्रेलोक पावनि सुरसरी।। + +ध्वज कुलिस अंकुस कंज जुत बन फिरत कंटक किन लहे। + +पद कंज द्वंद मुकुंद राम रमेस नित्य भजामहे।।4।। + +अब्यक्तमूलमनादि तरु त्वच चारि निगमागम भने। + +षट कंध साखा पंच बीस अनेक पर्न सुमन घने।। + +फल जुगल बिधि कटु मधुर बेलि अकेलि जेहि आश्रित रहे। + +पल्लवत फूलत नवल नित संसार बिटप नमामहे।।5।। + +जे ब्रह्म अजमद्वैतमनुभवगम्य मनपर ध्यावहीं। + +ते कहहुँ जानहुँ नाथ हम तव सगुन जस नित गावहीं।। + +करुनायतन प्रभु सदगुनाकर देव यह बर मागहीं। + +मन बचन कर्म बिकार तजि तव चरन हम अनुरागहीं।।6।।सब के देखत बेदन्ह बिनती कीन्हि उदार। + +अंतर्धान भए पुनि गए ब्रह्म आगार।।13(क)।। + +बैनतेय सुनु संभु तब आए जहँ रघुबीर। + +बिनय करत गदगद गिरा पूरित पुलक सरीर।।13(ख)।।जय राम रमारमनं समनं। भव ताप भयाकुल पाहि जनं।। + +अवधेस सुरेस रमेस बिभो। सरनागत मागत पाहि प्रभो।।1।। + +दससीस बिनासन बीस भुजा। कृत दूरि महा महि भूरि रुजा।। + +रजनीचर बृंद पतंग रहे। सर पावक तेज प्रचंड दहे।।2।। + +महि मंडल मंडन चारुतरं। धृत सायक चाप निषंग बरं।। + +मद मोह महा ममता रजनी। तम पुंज दिवाकर तेज अनी।।3।। + +मनजात किरात निपात किए। मृग लोग कुभोग सरेन हिए।। + +हति नाथ अनाथनि पाहि हरे। बिषया बन पावँर भूलि परे।।4।। + +बहु रोग बियोगन्हि लोग हए। भवदंघ्रि निरादर के फल ए।। + +भव सिंधु अगाध परे नर ते। पद पंकज प्रेम न जे करते।।5।। + +अति दीन मलीन दुखी नितहीं। जिन्ह के पद पंकज प्रीति नहीं।। + +अवलंब भवंत कथा जिन्ह के।। प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह कें।।6।। + +नहिं राग न लोभ न मान मदा।।तिन्ह कें सम बैभव वा बिपदा।। + +एहि ते तव सेवक होत मुदा। मुनि त्यागत जोग भरोस सदा।।7।। + +करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ। पद पंकज सेवत सुद्ध हिएँ।। + +सम मानि निरादर आदरही। सब संत सुखी बिचरंति मही।।8।। + +मुनि मानस पंकज भृंग भजे। रघुबीर महा रनधीर अजे।। + +तव नाम जपामि नमामि हरी। भव रोग महागद मान अरी।।9।। + +गुन सील कृपा परमायतनं। प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं।। + +रघुनंद निकंदय द्वंद्वघनं। महिपाल बिलोकय दीन जनं।।10।।बार बार बर मागउँ हरषि देहु श्रीरंग। + +पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग।।14(क)।। + +बरनि उमापति राम गुन हरषि गए कैलास। + +तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास।।14(ख)।।सुनु खगपति यह कथा पावनी। त्रिबिध ताप भव भय दावनी।। + +महाराज कर सुभ अभिषेका। सुनत लहहिं नर बिरति बिबेका।। + +जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं। सुख संपति नाना बिधि पावहिं।। + +सुर दुर्लभ सुख करि जग माहीं। अंतकाल रघुपति पुर जाहीं।। + +सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।। + +खगपति राम कथा मैं बरनी। स्वमति बिलास त्रास दुख हरनी।। + +बिरति बिबेक भगति दृढ़ करनी। मोह नदी कहँ सुंदर तरनी।। + +नित नव मंगल कौसलपुरी। हरषित रहहिं लोग सब कुरी।। + +नित नइ प्रीति राम पद पंकज। सबकें जिन्हहि नमत सिव मुनि अज।। + +मंगन बहु प्रकार पहि���ाए। द्विजन्ह दान नाना बिधि पाए।।ब्रह्मानंद मगन कपि सब कें प्रभु पद प्रीति। + +जात न जाने दिवस तिन्ह गए मास षट बीति।।15।।बिसरे गृह सपनेहुँ सुधि नाहीं। जिमि परद्रोह संत मन माही।। + +तब रघुपति सब सखा बोलाए। आइ सबन्हि सादर सिरु नाए।। + +परम प्रीति समीप बैठारे। भगत सुखद मृदु बचन उचारे।। + +तुम्ह अति कीन्ह मोरि सेवकाई। मुख पर केहि बिधि करौं बड़ाई।। + +ताते मोहि तुम्ह अति प्रिय लागे। मम हित लागि भवन सुख त्यागे।। + +अनुज राज संपति बैदेही। देह गेह परिवार सनेही।। + +सब मम प्रिय नहिं तुम्हहि समाना। मृषा न कहउँ मोर यह बाना।। + +सब के प्रिय सेवक यह नीती। मोरें अधिक दास पर प्रीती।।अब गृह जाहु सखा सब भजेहु मोहि दृढ़ नेम। + +सदा सर्बगत सर्बहित जानि करेहु अति प्रेम।।16।।सुनि प्रभु बचन मगन सब भए। को हम कहाँ बिसरि तन गए।। + +एकटक रहे जोरि कर आगे। सकहिं न कछु कहि अति अनुरागे।। + +परम प्रेम तिन्ह कर प्रभु देखा। कहा बिबिध बिधि ग्यान बिसेषा।। + +प्रभु सन्मुख कछु कहन न पारहिं। पुनि पुनि चरन सरोज निहारहिं।। + +तब प्रभु भूषन बसन मगाए। नाना रंग अनूप सुहाए।। + +सुग्रीवहि प्रथमहिं पहिराए। बसन भरत निज हाथ बनाए।। + +प्रभु प्रेरित लछिमन पहिराए। लंकापति रघुपति मन भाए।। + +अंगद बैठ रहा नहिं डोला। प्रीति देखि प्रभु ताहि न बोला।।जामवंत नीलादि सब पहिराए रघुनाथ। + +हियँ धरि राम रूप सब चले नाइ पद माथ।।17(क)।। + +तब अंगद उठि नाइ सिरु सजल नयन कर जोरि। + +अति बिनीत बोलेउ बचन मनहुँ प्रेम रस बोरि।।17(ख)।।सुनु सर्बग्य कृपा सुख सिंधो। दीन दयाकर आरत बंधो।। + +मरती बेर नाथ मोहि बाली। गयउ तुम्हारेहि कोंछें घाली।। + +असरन सरन बिरदु संभारी। मोहि जनि तजहु भगत हितकारी।। + +मोरें तुम्ह प्रभु गुर पितु माता। जाउँ कहाँ तजि पद जलजाता।। + +तुम्हहि बिचारि कहहु नरनाहा। प्रभु तजि भवन काज मम काहा।। + +बालक ग्यान बुद्धि बल हीना। राखहु सरन नाथ जन दीना।। + +नीचि टहल गृह कै सब करिहउँ। पद पंकज बिलोकि भव तरिहउँ।। + +अस कहि चरन परेउ प्रभु पाही। अब जनि नाथ कहहु गृह जाही।।अंगद बचन बिनीत सुनि रघुपति करुना सींव। + +प्रभु उठाइ उर लायउ सजल नयन राजीव।।18(क)।। + +निज उर माल बसन मनि बालितनय पहिराइ। + +बिदा कीन्हि भगवान तब बहु प्रकार समुझाइ।।18(ख)।।भरत अनुज सौमित्र समेता। पठवन चले भगत कृत चेता।। + +अंगद हृदयँ प्रेम नहिं थोरा। फिरि फिरि च���तव राम कीं ओरा।। + +बार बार कर दंड प्रनामा। मन अस रहन कहहिं मोहि रामा।। + +राम बिलोकनि बोलनि चलनी। सुमिरि सुमिरि सोचत हँसि मिलनी।। + +प्रभु रुख देखि बिनय बहु भाषी। चलेउ हृदयँ पद पंकज राखी।। + +अति आदर सब कपि पहुँचाए। भाइन्ह सहित भरत पुनि आए।। + +तब सुग्रीव चरन गहि नाना। भाँति बिनय कीन्हे हनुमाना।। + +दिन दस करि रघुपति पद सेवा। पुनि तव चरन देखिहउँ देवा।। + +पुन्य पुंज तुम्ह पवनकुमारा। सेवहु जाइ कृपा आगारा।। + +अस कहि कपि सब चले तुरंता। अंगद कहइ सुनहु हनुमंता।।कहेहु दंडवत प्रभु सैं तुम्हहि कहउँ कर जोरि। + +बार बार रघुनायकहि सुरति कराएहु मोरि।।19(क)।। + +अस कहि चलेउ बालिसुत फिरि आयउ हनुमंत। + +तासु प्रीति प्रभु सन कहि मगन भए भगवंत।।!9(ख)।। + +कुलिसहु चाहि कठोर अति कोमल कुसुमहु चाहि। + +चित्त खगेस राम कर समुझि परइ कहु काहि।।19(ग)।।पुनि कृपाल लियो बोलि निषादा। दीन्हे भूषन बसन प्रसादा।। + +जाहु भवन मम सुमिरन करेहू। मन क्रम बचन धर्म अनुसरेहू।। + +तुम्ह मम सखा भरत सम भ्राता। सदा रहेहु पुर आवत जाता।। + +बचन सुनत उपजा सुख भारी। परेउ चरन भरि लोचन बारी।। + +चरन नलिन उर धरि गृह आवा। प्रभु सुभाउ परिजनन्हि सुनावा।। + +रघुपति चरित देखि पुरबासी। पुनि पुनि कहहिं धन्य सुखरासी।। + +राम राज बैंठें त्रेलोका। हरषित भए गए सब सोका।। + +बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप बिषमता खोई।।बरनाश्रम निज निज धरम बनिरत बेद पथ लोग। + +चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग।।20।।दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।। + +सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।। + +चारिउ चरन धर्म जग माहीं। पूरि रहा सपनेहुँ अघ नाहीं।। + +राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परम गति के अधिकारी।। + +अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा।। + +नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना।। + +सब निर्दंभ धर्मरत पुनी। नर अरु नारि चतुर सब गुनी।। + +सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी।।राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं।। + +काल कर्म सुभाव गुन कृत दुख काहुहि नाहिं।।21।।भूमि सप्त सागर मेखला। एक भूप रघुपति कोसला।। + +भुअन अनेक रोम प्रति जासू। यह प्रभुता कछु बहुत न तासू।। + +सो महिमा समुझत प्रभु केरी। यह बरनत हीनता घनेरी।। + +सोउ महिमा खगेस जिन्ह जानी। फिर�� एहिं चरित तिन्हहुँ रति मानी।। + +सोउ जाने कर फल यह लीला। कहहिं महा मुनिबर दमसीला।। + +राम राज कर सुख संपदा। बरनि न सकइ फनीस सारदा।। + +सब उदार सब पर उपकारी। बिप्र चरन सेवक नर नारी।। + +एकनारि ब्रत रत सब झारी। ते मन बच क्रम पति हितकारी।।दंड जतिन्ह कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज। + +जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र कें राज।।22।।फूलहिं फरहिं सदा तरु कानन। रहहि एक सँग गज पंचानन।। + +खग मृग सहज बयरु बिसराई। सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई।। + +कूजहिं खग मृग नाना बृंदा। अभय चरहिं बन करहिं अनंदा।। + +सीतल सुरभि पवन बह मंदा। गूंजत अलि लै चलि मकरंदा।। + +लता बिटप मागें मधु चवहीं। मनभावतो धेनु पय स्त्रवहीं।। + +ससि संपन्न सदा रह धरनी। त्रेताँ भइ कृतजुग कै करनी।। + +प्रगटीं गिरिन्ह बिबिध मनि खानी। जगदातमा भूप जग जानी।। + +सरिता सकल बहहिं बर बारी। सीतल अमल स्वाद सुखकारी।। + +सागर निज मरजादाँ रहहीं। डारहिं रत्न तटन्हि नर लहहीं।। + +सरसिज संकुल सकल तड़ागा। अति प्रसन्न दस दिसा बिभागा।।बिधु महि पूर मयूखन्हि रबि तप जेतनेहि काज। + +मागें बारिद देहिं जल रामचंद्र के राज।।23।।कोटिन्ह बाजिमेध प्रभु कीन्हे। दान अनेक द्विजन्ह कहँ दीन्हे।। + +श्रुति पथ पालक धर्म धुरंधर। गुनातीत अरु भोग पुरंदर।। + +पति अनुकूल सदा रह सीता। सोभा खानि सुसील बिनीता।। + +जानति कृपासिंधु प्रभुताई। सेवति चरन कमल मन लाई।। + +जद्यपि गृहँ सेवक सेवकिनी। बिपुल सदा सेवा बिधि गुनी।। + +निज कर गृह परिचरजा करई। रामचंद्र आयसु अनुसरई।। + +जेहि बिधि कृपासिंधु सुख मानइ। सोइ कर श्री सेवा बिधि जानइ।। + +कौसल्यादि सासु गृह माहीं। सेवइ सबन्हि मान मद नाहीं।। + +उमा रमा ब्रह्मादि बंदिता। जगदंबा संततमनिंदिता।।जासु कृपा कटाच्छु सुर चाहत चितव न सोइ। + +राम पदारबिंद रति करति सुभावहि खोइ।।24।।सेवहिं सानकूल सब भाई। राम चरन रति अति अधिकाई।। + +प्रभु मुख कमल बिलोकत रहहीं। कबहुँ कृपाल हमहि कछु कहहीं।। + +राम करहिं भ्रातन्ह पर प्रीती। नाना भाँति सिखावहिं नीती।। + +हरषित रहहिं नगर के लोगा। करहिं सकल सुर दुर्लभ भोगा।। + +अहनिसि बिधिहि मनावत रहहीं। श्रीरघुबीर चरन रति चहहीं।। + +दुइ सुत सुन्दर सीताँ जाए। लव कुस बेद पुरानन्ह गाए।। + +दोउ बिजई बिनई गुन मंदिर। हरि प्रतिबिंब मनहुँ अति सुंदर।। + +दुइ दुइ सुत सब भ्रातन्ह केरे। भए रूप गु��� सील घनेरे।।ग्यान गिरा गोतीत अज माया मन गुन पार। + +सोइ सच्चिदानंद घन कर नर चरित उदार।।25।।प्रातकाल सरऊ करि मज्जन। बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन।। + +बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं। सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं।। + +अनुजन्ह संजुत भोजन करहीं। देखि सकल जननीं सुख भरहीं।। + +भरत सत्रुहन दोनउ भाई। सहित पवनसुत उपबन जाई।। + +बूझहिं बैठि राम गुन गाहा। कह हनुमान सुमति अवगाहा।। + +सुनत बिमल गुन अति सुख पावहिं। बहुरि बहुरि करि बिनय कहावहिं।। + +सब कें गृह गृह होहिं पुराना। रामचरित पावन बिधि नाना।। + +नर अरु नारि राम गुन गानहिं। करहिं दिवस निसि जात न जानहिं।।अवधपुरी बासिन्ह कर सुख संपदा समाज। + +सहस सेष नहिं कहि सकहिं जहँ नृप राम बिराज।।26।।नारदादि सनकादि मुनीसा। दरसन लागि कोसलाधीसा।। + +दिन प्रति सकल अजोध्या आवहिं। देखि नगरु बिरागु बिसरावहिं।। + +जातरूप मनि रचित अटारीं। नाना रंग रुचिर गच ढारीं।। + +पुर चहुँ पास कोट अति सुंदर। रचे कँगूरा रंग रंग बर।। + +नव ग्रह निकर अनीक बनाई। जनु घेरी अमरावति आई।। + +महि बहु रंग रचित गच काँचा। जो बिलोकि मुनिबर मन नाचा।। + +धवल धाम ऊपर नभ चुंबत। कलस मनहुँ रबि ससि दुति निंदत।। + +बहु मनि रचित झरोखा भ्राजहिं। गृह गृह प्रति मनि दीप बिराजहिं।।मनि दीप राजहिं भवन भ्राजहिं देहरीं बिद्रुम रची। + +मनि खंभ भीति बिरंचि बिरची कनक मनि मरकत खची।। + +सुंदर मनोहर मंदिरायत अजिर रुचिर फटिक रचे। + +प्रति द्वार द्वार कपाट पुरट बनाइ बहु बज्रन्हि खचे।।चारु चित्रसाला गृह गृह प्रति लिखे बनाइ। + +राम चरित जे निरख मुनि ते मन लेहिं चोराइ।।27।।सुमन बाटिका सबहिं लगाई। बिबिध भाँति करि जतन बनाई।। + +लता ललित बहु जाति सुहाई। फूलहिं सदा बंसत कि नाई।। + +गुंजत मधुकर मुखर मनोहर। मारुत त्रिबिध सदा बह सुंदर।। + +नाना खग बालकन्हि जिआए। बोलत मधुर उड़ात सुहाए।। + +मोर हंस सारस पारावत। भवननि पर सोभा अति पावत।। + +जहँ तहँ देखहिं निज परिछाहीं। बहु बिधि कूजहिं नृत्य कराहीं।। + +सुक सारिका पढ़ावहिं बालक। कहहु राम रघुपति जनपालक।। + +राज दुआर सकल बिधि चारू। बीथीं चौहट रूचिर बजारू।।बाजार रुचिर न बनइ बरनत बस्तु बिनु गथ पाइए। + +जहँ भूप रमानिवास तहँ की संपदा किमि गाइए।। + +बैठे बजाज सराफ बनिक अनेक मनहुँ कुबेर ते। + +सब सुखी सब सच्चरित सुंदर नारि नर सिसु जरठ जे।।उत्तर दिसि सरजू बह निर्मल जल गंभीर। + +बाँधे घाट मनोहर स्वल्प पंक नहिं तीर।।28।।दूरि फराक रुचिर सो घाटा। जहँ जल पिअहिं बाजि गज ठाटा।। + +पनिघट परम मनोहर नाना। तहाँ न पुरुष करहिं अस्नाना।। + +राजघाट सब बिधि सुंदर बर। मज्जहिं तहाँ बरन चारिउ नर।। + +तीर तीर देवन्ह के मंदिर। चहुँ दिसि तिन्ह के उपबन सुंदर।। + +कहुँ कहुँ सरिता तीर उदासी। बसहिं ग्यान रत मुनि संन्यासी।। + +तीर तीर तुलसिका सुहाई। बृंद बृंद बहु मुनिन्ह लगाई।। + +पुर सोभा कछु बरनि न जाई। बाहेर नगर परम रुचिराई।। + +देखत पुरी अखिल अघ भागा। बन उपबन बापिका तड़ागा।।बापीं तड़ाग अनूप कूप मनोहरायत सोहहीं। + +सोपान सुंदर नीर निर्मल देखि सुर मुनि मोहहीं।। + +बहु रंग कंज अनेक खग कूजहिं मधुप गुंजारहीं। + +आराम रम्य पिकादि खग रव जनु पथिक हंकारहीं।।रमानाथ जहँ राजा सो पुर बरनि कि जाइ। + +अनिमादिक सुख संपदा रहीं अवध सब छाइ।।29।।जहँ तहँ नर रघुपति गुन गावहिं। बैठि परसपर इहइ सिखावहिं।। + +भजहु प्रनत प्रतिपालक रामहि। सोभा सील रूप गुन धामहि।। + +जलज बिलोचन स्यामल गातहि। पलक नयन इव सेवक त्रातहि।। + +धृत सर रुचिर चाप तूनीरहि। संत कंज बन रबि रनधीरहि।। + +काल कराल ब्याल खगराजहि। नमत राम अकाम ममता जहि।। + +लोभ मोह मृगजूथ किरातहि। मनसिज करि हरि जन सुखदातहि।। + +संसय सोक निबिड़ तम भानुहि। दनुज गहन घन दहन कृसानुहि।। + +जनकसुता समेत रघुबीरहि। कस न भजहु भंजन भव भीरहि।। + +बहु बासना मसक हिम रासिहि। सदा एकरस अज अबिनासिहि।। + +मुनि रंजन भंजन महि भारहि। तुलसिदास के प्रभुहि उदारहि।।एहि बिधि नगर नारि नर करहिं राम गुन गान। + +सानुकूल सब पर रहहिं संतत कृपानिधान।।30।।जब ते राम प्रताप खगेसा। उदित भयउ अति प्रबल दिनेसा।। + +पूरि प्रकास रहेउ तिहुँ लोका। बहुतेन्ह सुख बहुतन मन सोका।। + +जिन्हहि सोक ते कहउँ बखानी। प्रथम अबिद्या निसा नसानी।। + +अघ उलूक जहँ तहाँ लुकाने। काम क्रोध कैरव सकुचाने।। + +बिबिध कर्म गुन काल सुभाऊ। ए चकोर सुख लहहिं न काऊ।। + +मत्सर मान मोह मद चोरा। इन्ह कर हुनर न कवनिहुँ ओरा।। + +धरम तड़ाग ग्यान बिग्याना। ए पंकज बिकसे बिधि नाना।। + +सुख संतोष बिराग बिबेका। बिगत सोक ए कोक अनेका।।यह प्रताप रबि जाकें उर जब करइ प्रकास। + +पछिले बाढ़हिं प्रथम जे कहे ते पावहिं नास।।31।।भ्रातन्ह सहित रामु एक बारा। संग परम प्रिय पवनकुमारा।। + +सुंदर उपबन देखन गए। सब तरु कुसुमित पल्लव नए।। + +जानि समय सनकादिक आए। तेज पुंज गुन सील सुहाए।। + +ब्रह्मानंद सदा लयलीना। देखत बालक बहुकालीना।। + +रूप धरें जनु चारिउ बेदा। समदरसी मुनि बिगत बिभेदा।। + +आसा बसन ब्यसन यह तिन्हहीं। रघुपति चरित होइ तहँ सुनहीं।। + +तहाँ रहे सनकादि भवानी। जहँ घटसंभव मुनिबर ग्यानी।। + +राम कथा मुनिबर बहु बरनी। ग्यान जोनि पावक जिमि अरनी।।देखि राम मुनि आवत हरषि दंडवत कीन्ह। + +स्वागत पूँछि पीत पट प्रभु बैठन कहँ दीन्ह।।32।।कीन्ह दंडवत तीनिउँ भाई। सहित पवनसुत सुख अधिकाई।। + +मुनि रघुपति छबि अतुल बिलोकी। भए मगन मन सके न रोकी।। + +स्यामल गात सरोरुह लोचन। सुंदरता मंदिर भव मोचन।। + +एकटक रहे निमेष न लावहिं। प्रभु कर जोरें सीस नवावहिं।। + +तिन्ह कै दसा देखि रघुबीरा। स्त्रवत नयन जल पुलक सरीरा।। + +कर गहि प्रभु मुनिबर बैठारे। परम मनोहर बचन उचारे।। + +आजु धन्य मैं सुनहु मुनीसा। तुम्हरें दरस जाहिं अघ खीसा।। + +बड़े भाग पाइब सतसंगा। बिनहिं प्रयास होहिं भव भंगा।।संत संग अपबर्ग कर कामी भव कर पंथ। + +कहहि संत कबि कोबिद श्रुति पुरान सदग्रंथ।।33।।सुनि प्रभु बचन हरषि मुनि चारी। पुलकित तन अस्तुति अनुसारी।। + +जय भगवंत अनंत अनामय। अनघ अनेक एक करुनामय।। + +जय निर्गुन जय जय गुन सागर। सुख मंदिर सुंदर अति नागर।। + +जय इंदिरा रमन जय भूधर। अनुपम अज अनादि सोभाकर।। + +ग्यान निधान अमान मानप्रद। पावन सुजस पुरान बेद बद।। + +तग्य कृतग्य अग्यता भंजन। नाम अनेक अनाम निरंजन।। + +सर्ब सर्बगत सर्ब उरालय। बससि सदा हम कहुँ परिपालय।। + +द्वंद बिपति भव फंद बिभंजय। ह्रदि बसि राम काम मद गंजय।।परमानंद कृपायतन मन परिपूरन काम। + +प्रेम भगति अनपायनी देहु हमहि श्रीराम।।34।।देहु भगति रघुपति अति पावनि। त्रिबिध ताप भव दाप नसावनि।। + +प्रनत काम सुरधेनु कलपतरु। होइ प्रसन्न दीजै प्रभु यह बरु।। + +भव बारिधि कुंभज रघुनायक। सेवत सुलभ सकल सुख दायक।। + +मन संभव दारुन दुख दारय। दीनबंधु समता बिस्तारय।। + +आस त्रास इरिषादि निवारक। बिनय बिबेक बिरति बिस्तारक।। + +भूप मौलि मन मंडन धरनी। देहि भगति संसृति सरि तरनी।। + +मुनि मन मानस हंस निरंतर। चरन कमल बंदित अज संकर।। + +रघुकुल केतु सेतु श्रुति रच्छक। काल करम सुभाउ गुन भच्छक।। + +तारन तरन हरन सब दूषन। तुलसिदास प्रभु त्रिभुवन भूषन।।बार बार अस्तुति करि प्रेम सहित सिरु नाइ। + +ब्रह्म भवन सनकादि गे अति अभीष्ट बर पाइ।।35।।सनकादिक बिधि लोक सिधाए। भ्रातन्ह राम चरन सिरु नाए।। + +पूछत प्रभुहि सकल सकुचाहीं। चितवहिं सब मारुतसुत पाहीं।। + +सुनि चहहिं प्रभु मुख कै बानी। जो सुनि होइ सकल भ्रम हानी।। + +अंतरजामी प्रभु सभ जाना। बूझत कहहु काह हनुमाना।। + +जोरि पानि कह तब हनुमंता। सुनहु दीनदयाल भगवंता।। + +नाथ भरत कछु पूँछन चहहीं। प्रस्न करत मन सकुचत अहहीं।। + +तुम्ह जानहु कपि मोर सुभाऊ। भरतहि मोहि कछु अंतर काऊ।। + +सुनि प्रभु बचन भरत गहे चरना। सुनहु नाथ प्रनतारति हरना।।नाथ न मोहि संदेह कछु सपनेहुँ सोक न मोह। + +केवल कृपा तुम्हारिहि कृपानंद संदोह।।36।।करउँ कृपानिधि एक ढिठाई। मैं सेवक तुम्ह जन सुखदाई।। + +संतन्ह कै महिमा रघुराई। बहु बिधि बेद पुरानन्ह गाई।। + +श्रीमुख तुम्ह पुनि कीन्हि बड़ाई। तिन्ह पर प्रभुहि प्रीति अधिकाई।। + +सुना चहउँ प्रभु तिन्ह कर लच्छन। कृपासिंधु गुन ग्यान बिचच्छन।। + +संत असंत भेद बिलगाई। प्रनतपाल मोहि कहहु बुझाई।। + +संतन्ह के लच्छन सुनु भ्राता। अगनित श्रुति पुरान बिख्याता।। + +संत असंतन्हि कै असि करनी। जिमि कुठार चंदन आचरनी।। + +काटइ परसु मलय सुनु भाई। निज गुन देइ सुगंध बसाई।।ताते सुर सीसन्ह चढ़त जग बल्लभ श्रीखंड। + +अनल दाहि पीटत घनहिं परसु बदन यह दंड।।37।।बिषय अलंपट सील गुनाकर। पर दुख दुख सुख सुख देखे पर।। + +सम अभूतरिपु बिमद बिरागी। लोभामरष हरष भय त्यागी।। + +कोमलचित दीनन्ह पर दाया। मन बच क्रम मम भगति अमाया।। + +सबहि मानप्रद आपु अमानी। भरत प्रान सम मम ते प्रानी।। + +बिगत काम मम नाम परायन। सांति बिरति बिनती मुदितायन।। + +सीतलता सरलता मयत्री। द्विज पद प्रीति धर्म जनयत्री।। + +ए सब लच्छन बसहिं जासु उर। जानेहु तात संत संतत फुर।। + +सम दम नियम नीति नहिं डोलहिं। परुष बचन कबहूँ नहिं बोलहिं।।निंदा अस्तुति उभय सम ममता मम पद कंज। + +ते सज्जन मम प्रानप्रिय गुन मंदिर सुख पुंज।।38।।सनहु असंतन्ह केर सुभाऊ। भूलेहुँ संगति करिअ न काऊ।। + +तिन्ह कर संग सदा दुखदाई। जिमि कलपहि घालइ हरहाई।। + +खलन्ह हृदयँ अति ताप बिसेषी। जरहिं सदा पर संपति देखी।। + +जहँ कहुँ निंदा सुनहिं पराई। हरषहिं मनहुँ परी निधि पाई।। + +काम क्रोध मद लोभ परायन। निर्दय कपटी कुटिल मलायन।। + +बयरु अकारन सब काहू सों। जो कर हित अनहित ताहू सों।। + +झूठइ लेना झूठइ देना। झूठइ भोजन झूठ चबेना।। + +बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा। खाइ महा अति हृदय कठोरा।।पर द्रोही पर दार रत पर धन पर अपबाद। + +ते नर पाँवर पापमय देह धरें मनुजाद।।39।।लोभइ ओढ़न लोभइ डासन। सिस्त्रोदर पर जमपुर त्रास न।। + +काहू की जौं सुनहिं बड़ाई। स्वास लेहिं जनु जूड़ी आई।। + +जब काहू कै देखहिं बिपती। सुखी भए मानहुँ जग नृपती।। + +स्वारथ रत परिवार बिरोधी। लंपट काम लोभ अति क्रोधी।। + +मातु पिता गुर बिप्र न मानहिं। आपु गए अरु घालहिं आनहिं।। + +करहिं मोह बस द्रोह परावा। संत संग हरि कथा न भावा।। + +अवगुन सिंधु मंदमति कामी। बेद बिदूषक परधन स्वामी।। + +बिप्र द्रोह पर द्रोह बिसेषा। दंभ कपट जियँ धरें सुबेषा।।ऐसे अधम मनुज खल कृतजुग त्रेता नाहिं। + +द्वापर कछुक बृंद बहु होइहहिं कलिजुग माहिं।।40।।पर हित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।। + +निर्नय सकल पुरान बेद कर। कहेउँ तात जानहिं कोबिद नर।। + +नर सरीर धरि जे पर पीरा। करहिं ते सहहिं महा भव भीरा।। + +करहिं मोह बस नर अघ नाना। स्वारथ रत परलोक नसाना।। + +कालरूप तिन्ह कहँ मैं भ्राता। सुभ अरु असुभ कर्म फल दाता।। + +अस बिचारि जे परम सयाने। भजहिं मोहि संसृत दुख जाने।। + +त्यागहिं कर्म सुभासुभ दायक। भजहिं मोहि सुर नर मुनि नायक।। + +संत असंतन्ह के गुन भाषे। ते न परहिं भव जिन्ह लखि राखे।।सुनहु तात माया कृत गुन अरु दोष अनेक। + +गुन यह उभय न देखिअहिं देखिअ सो अबिबेक।।41।।श्रीमुख बचन सुनत सब भाई। हरषे प्रेम न हृदयँ समाई।। + +करहिं बिनय अति बारहिं बारा। हनूमान हियँ हरष अपारा।। + +पुनि रघुपति निज मंदिर गए। एहि बिधि चरित करत नित नए।। + +बार बार नारद मुनि आवहिं। चरित पुनीत राम के गावहिं।। + +नित नव चरन देखि मुनि जाहीं। ब्रह्मलोक सब कथा कहाहीं।। + +सुनि बिरंचि अतिसय सुख मानहिं। पुनि पुनि तात करहु गुन गानहिं।। + +सनकादिक नारदहि सराहहिं। जद्यपि ब्रह्म निरत मुनि आहहिं।। + +सुनि गुन गान समाधि बिसारी।। सादर सुनहिं परम अधिकारी।।जीवनमुक्त ब्रह्मपर चरित सुनहिं तजि ध्यान। + +जे हरि कथाँ न करहिं रति तिन्ह के हिय पाषान।।42।।एक बार रघुनाथ बोलाए। गुर द्विज पुरबासी सब आए।। + +बैठे गुर मुनि अरु द्विज सज्जन। बोले बचन भगत भव भंजन।। + +सनहु सकल पुरजन मम बानी। कहउँ न कछु ममता उर आनी।। + +नहिं अनीति नहिं कछु प्रभ���ताई। सुनहु करहु जो तुम्हहि सोहाई।। + +सोइ सेवक प्रियतम मम सोई। मम अनुसासन मानै जोई।। + +जौं अनीति कछु भाषौं भाई। तौं मोहि बरजहु भय बिसराई।। + +बड़ें भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथिन्ह गावा।। + +साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा।।सो परत्र दुख पावइ सिर धुनि धुनि पछिताइ। + +कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्या दोष लगाइ।।43।।एहि तन कर फल बिषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई।। + +नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं।। + +ताहि कबहुँ भल कहइ न कोई। गुंजा ग्रहइ परस मनि खोई।। + +आकर चारि लच्छ चौरासी। जोनि भ्रमत यह जिव अबिनासी।। + +फिरत सदा माया कर प्रेरा। काल कर्म सुभाव गुन घेरा।। + +कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस बिनु हेतु सनेही।। + +नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो। सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो।। + +करनधार सदगुर दृढ़ नावा। दुर्लभ साज सुलभ करि पावा।।जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ। + +सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ।।44।।जौं परलोक इहाँ सुख चहहू। सुनि मम बचन ह्रृदयँ दृढ़ गहहू।। + +सुलभ सुखद मारग यह भाई। भगति मोरि पुरान श्रुति गाई।। + +ग्यान अगम प्रत्यूह अनेका। साधन कठिन न मन कहुँ टेका।। + +करत कष्ट बहु पावइ कोऊ। भक्ति हीन मोहि प्रिय नहिं सोऊ।। + +भक्ति सुतंत्र सकल सुख खानी। बिनु सतसंग न पावहिं प्रानी।। + +पुन्य पुंज बिनु मिलहिं न संता। सतसंगति संसृति कर अंता।। + +पुन्य एक जग महुँ नहिं दूजा। मन क्रम बचन बिप्र पद पूजा।। + +सानुकूल तेहि पर मुनि देवा। जो तजि कपटु करइ द्विज सेवा।।औरउ एक गुपुत मत सबहि कहउँ कर जोरि। + +संकर भजन बिना नर भगति न पावइ मोरि।।45।।कहहु भगति पथ कवन प्रयासा। जोग न मख जप तप उपवासा।। + +सरल सुभाव न मन कुटिलाई। जथा लाभ संतोष सदाई।। + +मोर दास कहाइ नर आसा। करइ तौ कहहु कहा बिस्वासा।। + +बहुत कहउँ का कथा बढ़ाई। एहि आचरन बस्य मैं भाई।। + +बैर न बिग्रह आस न त्रासा। सुखमय ताहि सदा सब आसा।। + +अनारंभ अनिकेत अमानी। अनघ अरोष दच्छ बिग्यानी।। + +प्रीति सदा सज्जन संसर्गा। तृन सम बिषय स्वर्ग अपबर्गा।। + +भगति पच्छ हठ नहिं सठताई। दुष्ट तर्क सब दूरि बहाई।।मम गुन ग्राम नाम रत गत ममता मद मोह। + +ता कर सुख सोइ जानइ परानंद संदोह।।46।।सुनत सुधासम बचन राम के। गहे सबनि पद कृपाधाम के।। + +जननि जनक गुर बंधु हमारे। कृपा निधान प्रान ते प्यारे।। + +तनु ���नु धाम राम हितकारी। सब बिधि तुम्ह प्रनतारति हारी।। + +असि सिख तुम्ह बिनु देइ न कोऊ। मातु पिता स्वारथ रत ओऊ।। + +हेतु रहित जग जुग उपकारी। तुम्ह तुम्हार सेवक असुरारी।। + +स्वारथ मीत सकल जग माहीं। सपनेहुँ प्रभु परमारथ नाहीं।। + +सबके बचन प्रेम रस साने। सुनि रघुनाथ हृदयँ हरषाने।। + +निज निज गृह गए आयसु पाई। बरनत प्रभु बतकही सुहाई।।-उमा अवधबासी नर नारि कृतारथ रूप। + +ब्रह्म सच्चिदानंद घन रघुनायक जहँ भूप।।47।।एक बार बसिष्ट मुनि आए। जहाँ राम सुखधाम सुहाए।। + +अति आदर रघुनायक कीन्हा। पद पखारि पादोदक लीन्हा।। + +राम सुनहु मुनि कह कर जोरी। कृपासिंधु बिनती कछु मोरी।। + +देखि देखि आचरन तुम्हारा। होत मोह मम हृदयँ अपारा।। + +महिमा अमित बेद नहिं जाना। मैं केहि भाँति कहउँ भगवाना।। + +उपरोहित्य कर्म अति मंदा। बेद पुरान सुमृति कर निंदा।। + +जब न लेउँ मैं तब बिधि मोही। कहा लाभ आगें सुत तोही।। + +परमातमा ब्रह्म नर रूपा। होइहि रघुकुल भूषन भूपा।।-तब मैं हृदयँ बिचारा जोग जग्य ब्रत दान। + +जा कहुँ करिअ सो पैहउँ धर्म न एहि सम आन।।48।।जप तप नियम जोग निज धर्मा। श्रुति संभव नाना सुभ कर्मा।। + +ग्यान दया दम तीरथ मज्जन। जहँ लगि धर्म कहत श्रुति सज्जन।। + +आगम निगम पुरान अनेका। पढ़े सुने कर फल प्रभु एका।। + +तब पद पंकज प्रीति निरंतर। सब साधन कर यह फल सुंदर।। + +छूटइ मल कि मलहि के धोएँ। घृत कि पाव कोइ बारि बिलोएँ।। + +प्रेम भगति जल बिनु रघुराई। अभिअंतर मल कबहुँ न जाई।। + +सोइ सर्बग्य तग्य सोइ पंडित। सोइ गुन गृह बिग्यान अखंडित।। + +दच्छ सकल लच्छन जुत सोई। जाकें पद सरोज रति होई।।नाथ एक बर मागउँ राम कृपा करि देहु। + +जन्म जन्म प्रभु पद कमल कबहुँ घटै जनि नेहु।।49।।अस कहि मुनि बसिष्ट गृह आए। कृपासिंधु के मन अति भाए।। + +हनूमान भरतादिक भ्राता। संग लिए सेवक सुखदाता।। + +पुनि कृपाल पुर बाहेर गए। गज रथ तुरग मगावत भए।। + +देखि कृपा करि सकल सराहे। दिए उचित जिन्ह जिन्ह तेइ चाहे।। + +हरन सकल श्रम प्रभु श्रम पाई। गए जहाँ सीतल अवँराई।। + +भरत दीन्ह निज बसन डसाई। बैठे प्रभु सेवहिं सब भाई।। + +मारुतसुत तब मारूत करई। पुलक बपुष लोचन जल भरई।। + +हनूमान सम नहिं बड़भागी। नहिं कोउ राम चरन अनुरागी।। + +गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई। बार बार प्रभु निज मुख गाई।।तेहिं अवसर मुनि नारद आए करतल बीन। + +गावन लगे राम कल कीरति सदा नबीन।।50।।मामवलोकय पंकज लोचन। कृपा बिलोकनि सोच बिमोचन।। + +नील तामरस स्याम काम अरि। हृदय कंज मकरंद मधुप हरि।। + +जातुधान बरूथ बल भंजन। मुनि सज्जन रंजन अघ गंजन।। + +भूसुर ससि नव बृंद बलाहक। असरन सरन दीन जन गाहक।। + +भुज बल बिपुल भार महि खंडित। खर दूषन बिराध बध पंडित।। + +रावनारि सुखरूप भूपबर। जय दसरथ कुल कुमुद सुधाकर।। + +सुजस पुरान बिदित निगमागम। गावत सुर मुनि संत समागम।। + +कारुनीक ब्यलीक मद खंडन। सब बिधि कुसल कोसला मंडन।। + +कलि मल मथन नाम ममताहन। तुलसीदास प्रभु पाहि प्रनत जन।।प्रेम सहित मुनि नारद बरनि राम गुन ग्राम। + +सोभासिंधु हृदयँ धरि गए जहाँ बिधि धाम।।51।।गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा। मैं सब कही मोरि मति जथा।। + +राम चरित सत कोटि अपारा। श्रुति सारदा न बरनै पारा।। + +राम अनंत अनंत गुनानी। जन्म कर्म अनंत नामानी।। + +जल सीकर महि रज गनि जाहीं। रघुपति चरित न बरनि सिराहीं।। + +बिमल कथा हरि पद दायनी। भगति होइ सुनि अनपायनी।। + +उमा कहिउँ सब कथा सुहाई। जो भुसुंडि खगपतिहि सुनाई।। + +कछुक राम गुन कहेउँ बखानी। अब का कहौं सो कहहु भवानी।। + +सुनि सुभ कथा उमा हरषानी। बोली अति बिनीत मृदु बानी।। + +धन्य धन्य मैं धन्य पुरारी। सुनेउँ राम गुन भव भय हारी।।तुम्हरी कृपाँ कृपायतन अब कृतकृत्य न मोह। + +जानेउँ राम प्रताप प्रभु चिदानंद संदोह।।52(क)।। + +नाथ तवानन ससि स्रवत कथा सुधा रघुबीर। + +श्रवन पुटन्हि मन पान करि नहिं अघात मतिधीर।।52(ख)।।राम चरित जे सुनत अघाहीं। रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं।। + +जीवनमुक्त महामुनि जेऊ। हरि गुन सुनहीं निरंतर तेऊ।। + +भव सागर चह पार जो पावा। राम कथा ता कहँ दृढ़ नावा।। + +बिषइन्ह कहँ पुनि हरि गुन ग्रामा। श्रवन सुखद अरु मन अभिरामा।। + +श्रवनवंत अस को जग माहीं। जाहि न रघुपति चरित सोहाहीं।। + +ते जड़ जीव निजात्मक घाती। जिन्हहि न रघुपति कथा सोहाती।। + +हरिचरित्र मानस तुम्ह गावा। सुनि मैं नाथ अमिति सुख पावा।। + +तुम्ह जो कही यह कथा सुहाई। कागभसुंडि गरुड़ प्रति गाई।।बिरति ग्यान बिग्यान दृढ़ राम चरन अति नेह। + +बायस तन रघुपति भगति मोहि परम संदेह।।53।।नर सहस्त्र महँ सुनहु पुरारी। कोउ एक होइ धर्म ब्रतधारी।। + +धर्मसील कोटिक महँ कोई। बिषय बिमुख बिराग रत होई।। + +कोटि बिरक्त मध्य श्रुति कहई। सम्यक ग्यान सकृत कोउ लहई।। + +ग्यानवंत कोटिक महँ कोऊ। जी��नमुक्त सकृत जग सोऊ।। + +तिन्ह सहस्त्र महुँ सब सुख खानी। दुर्लभ ब्रह्मलीन बिग्यानी।। + +धर्मसील बिरक्त अरु ग्यानी। जीवनमुक्त ब्रह्मपर प्रानी।। + +सब ते सो दुर्लभ सुरराया। राम भगति रत गत मद माया।। + +सो हरिभगति काग किमि पाई। बिस्वनाथ मोहि कहहु बुझाई।।राम परायन ग्यान रत गुनागार मति धीर। + +नाथ कहहु केहि कारन पायउ काक सरीर।।54।।यह प्रभु चरित पवित्र सुहावा। कहहु कृपाल काग कहँ पावा।। + +तुम्ह केहि भाँति सुना मदनारी। कहहु मोहि अति कौतुक भारी।। + +गरुड़ महाग्यानी गुन रासी। हरि सेवक अति निकट निवासी।। + +तेहिं केहि हेतु काग सन जाई। सुनी कथा मुनि निकर बिहाई।। + +कहहु कवन बिधि भा संबादा। दोउ हरिभगत काग उरगादा।। + +गौरि गिरा सुनि सरल सुहाई। बोले सिव सादर सुख पाई।। + +धन्य सती पावन मति तोरी। रघुपति चरन प्रीति नहिं थोरी।। + +सुनहु परम पुनीत इतिहासा। जो सुनि सकल लोक भ्रम नासा।। + +उपजइ राम चरन बिस्वासा। भव निधि तर नर बिनहिं प्रयासा।।ऐसिअ प्रस्न बिहंगपति कीन्ह काग सन जाइ। + +सो सब सादर कहिहउँ सुनहु उमा मन लाइ।।55।।मैं जिमि कथा सुनी भव मोचनि। सो प्रसंग सुनु सुमुखि सुलोचनि।। + +प्रथम दच्छ गृह तव अवतारा। सती नाम तब रहा तुम्हारा।। + +दच्छ जग्य तब भा अपमाना। तुम्ह अति क्रोध तजे तब प्राना।। + +मम अनुचरन्ह कीन्ह मख भंगा। जानहु तुम्ह सो सकल प्रसंगा।। + +तब अति सोच भयउ मन मोरें। दुखी भयउँ बियोग प्रिय तोरें।। + +सुंदर बन गिरि सरित तड़ागा। कौतुक देखत फिरउँ बेरागा।। + +गिरि सुमेर उत्तर दिसि दूरी। नील सैल एक सुन्दर भूरी।। + +तासु कनकमय सिखर सुहाए। चारि चारु मोरे मन भाए।। + +तिन्ह पर एक एक बिटप बिसाला। बट पीपर पाकरी रसाला।। + +सैलोपरि सर सुंदर सोहा। मनि सोपान देखि मन मोहा।।-सीतल अमल मधुर जल जलज बिपुल बहुरंग। + +कूजत कल रव हंस गन गुंजत मजुंल भृंग।।56।।तेहिं गिरि रुचिर बसइ खग सोई। तासु नास कल्पांत न होई।। + +माया कृत गुन दोष अनेका। मोह मनोज आदि अबिबेका।। + +रहे ब्यापि समस्त जग माहीं। तेहि गिरि निकट कबहुँ नहिं जाहीं।। + +तहँ बसि हरिहि भजइ जिमि कागा। सो सुनु उमा सहित अनुरागा।। + +पीपर तरु तर ध्यान सो धरई। जाप जग्य पाकरि तर करई।। + +आँब छाहँ कर मानस पूजा। तजि हरि भजनु काजु नहिं दूजा।। + +बर तर कह हरि कथा प्रसंगा। आवहिं सुनहिं अनेक बिहंगा।। + +राम चरित बिचीत्र बिधि नाना। प्रेम सहित कर सादर गाना।। + +सुनहिं सकल मति बिमल मराला। बसहिं निरंतर जे तेहिं ताला।। + +जब मैं जाइ सो कौतुक देखा। उर उपजा आनंद बिसेषा।।तब कछु काल मराल तनु धरि तहँ कीन्ह निवास। + +सादर सुनि रघुपति गुन पुनि आयउँ कैलास।।57।।गिरिजा कहेउँ सो सब इतिहासा। मैं जेहि समय गयउँ खग पासा।। + +अब सो कथा सुनहु जेही हेतू। गयउ काग पहिं खग कुल केतू।। + +जब रघुनाथ कीन्हि रन क्रीड़ा। समुझत चरित होति मोहि ब्रीड़ा।। + +इंद्रजीत कर आपु बँधायो। तब नारद मुनि गरुड़ पठायो।। + +बंधन काटि गयो उरगादा। उपजा हृदयँ प्रचंड बिषादा।। + +प्रभु बंधन समुझत बहु भाँती। करत बिचार उरग आराती।। + +ब्यापक ब्रह्म बिरज बागीसा। माया मोह पार परमीसा।। + +सो अवतार सुनेउँ जग माहीं। देखेउँ सो प्रभाव कछु नाहीं।।-भव बंधन ते छूटहिं नर जपि जा कर नाम। + +खर्च निसाचर बाँधेउ नागपास सोइ राम।।58।।नाना भाँति मनहि समुझावा। प्रगट न ग्यान हृदयँ भ्रम छावा।। + +खेद खिन्न मन तर्क बढ़ाई। भयउ मोहबस तुम्हरिहिं नाई।। + +ब्याकुल गयउ देवरिषि पाहीं। कहेसि जो संसय निज मन माहीं।। + +सुनि नारदहि लागि अति दाया। सुनु खग प्रबल राम कै माया।। + +जो ग्यानिन्ह कर चित अपहरई। बरिआई बिमोह मन करई।। + +जेहिं बहु बार नचावा मोही। सोइ ब्यापी बिहंगपति तोही।। + +महामोह उपजा उर तोरें। मिटिहि न बेगि कहें खग मोरें।। + +चतुरानन पहिं जाहु खगेसा। सोइ करेहु जेहि होइ निदेसा।।अस कहि चले देवरिषि करत राम गुन गान। + +हरि माया बल बरनत पुनि पुनि परम सुजान।।59।।तब खगपति बिरंचि पहिं गयऊ। निज संदेह सुनावत भयऊ।। + +सुनि बिरंचि रामहि सिरु नावा। समुझि प्रताप प्रेम अति छावा।। + +मन महुँ करइ बिचार बिधाता। माया बस कबि कोबिद ग्याता।। + +हरि माया कर अमिति प्रभावा। बिपुल बार जेहिं मोहि नचावा।। + +अग जगमय जग मम उपराजा। नहिं आचरज मोह खगराजा।। + +तब बोले बिधि गिरा सुहाई। जान महेस राम प्रभुताई।। + +बैनतेय संकर पहिं जाहू। तात अनत पूछहु जनि काहू।। + +तहँ होइहि तव संसय हानी। चलेउ बिहंग सुनत बिधि बानी।।परमातुर बिहंगपति आयउ तब मो पास। + +जात रहेउँ कुबेर गृह रहिहु उमा कैलास।।60।।तेहिं मम पद सादर सिरु नावा। पुनि आपन संदेह सुनावा।। + +सुनि ता करि बिनती मृदु बानी। परेम सहित मैं कहेउँ भवानी।। + +मिलेहु गरुड़ मारग महँ मोही। कवन भाँति समुझावौं तोही।। + +तबहि होइ सब संसय भंगा। जब बहु काल करिअ सतसंगा।। + +सुनिअ तहाँ हरि कथा सुहाई। नाना भाँति मुनिन्ह जो गाई।। + +जेहि महुँ आदि मध्य अवसाना। प्रभु प्रतिपाद्य राम भगवाना।। + +नित हरि कथा होत जहँ भाई। पठवउँ तहाँ सुनहि तुम्ह जाई।। + +जाइहि सुनत सकल संदेहा। राम चरन होइहि अति नेहा।।बिनु सतसंग न हरि कथा तेहि बिनु मोह न भाग। + +मोह गएँ बिनु राम पद होइ न दृढ़ अनुराग।।61।।मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा। किएँ जोग तप ग्यान बिरागा।। + +उत्तर दिसि सुंदर गिरि नीला। तहँ रह काकभुसुंडि सुसीला।। + +राम भगति पथ परम प्रबीना। ग्यानी गुन गृह बहु कालीना।। + +राम कथा सो कहइ निरंतर। सादर सुनहिं बिबिध बिहंगबर।। + +जाइ सुनहु तहँ हरि गुन भूरी। होइहि मोह जनित दुख दूरी।। + +मैं जब तेहि सब कहा बुझाई। चलेउ हरषि मम पद सिरु नाई।। + +ताते उमा न मैं समुझावा। रघुपति कृपाँ मरमु मैं पावा।। + +होइहि कीन्ह कबहुँ अभिमाना। सो खौवै चह कृपानिधाना।। + +कछु तेहि ते पुनि मैं नहिं राखा। समुझइ खग खगही कै भाषा।। + +प्रभु माया बलवंत भवानी। जाहि न मोह कवन अस ग्यानी।।ग्यानि भगत सिरोमनि त्रिभुवनपति कर जान। + +ताहि मोह माया नर पावँर करहिं गुमान।।62(क)।। + +सिव बिरंचि कहुँ मोहइ को है बपुरा आन। + +अस जियँ जानि भजहिं मुनि माया पति भगवान।।62(ख)।।गयउ गरुड़ जहँ बसइ भुसुंडा। मति अकुंठ हरि भगति अखंडा।। + +देखि सैल प्रसन्न मन भयऊ। माया मोह सोच सब गयऊ।। + +करि तड़ाग मज्जन जलपाना। बट तर गयउ हृदयँ हरषाना।। + +बृद्ध बृद्ध बिहंग तहँ आए। सुनै राम के चरित सुहाए।। + +कथा अरंभ करै सोइ चाहा। तेही समय गयउ खगनाहा।। + +आवत देखि सकल खगराजा। हरषेउ बायस सहित समाजा।। + +अति आदर खगपति कर कीन्हा। स्वागत पूछि सुआसन दीन्हा।। + +करि पूजा समेत अनुरागा। मधुर बचन तब बोलेउ कागा।।नाथ कृतारथ भयउँ मैं तव दरसन खगराज। + +आयसु देहु सो करौं अब प्रभु आयहु केहि काज।।63(क)।। + +सदा कृतारथ रूप तुम्ह कह मृदु बचन खगेस। + +जेहि कै अस्तुति सादर निज मुख कीन्हि महेस।।63(ख)।।सुनहु तात जेहि कारन आयउँ। सो सब भयउ दरस तव पायउँ।। + +देखि परम पावन तव आश्रम। गयउ मोह संसय नाना भ्रम।। + +अब श्रीराम कथा अति पावनि। सदा सुखद दुख पुंज नसावनि।। + +सादर तात सुनावहु मोही। बार बार बिनवउँ प्रभु तोही।। + +सुनत गरुड़ कै गिरा बिनीता। सरल सुप्रेम सुखद सुपुनीता।। + +भयउ तासु मन परम उछाहा। लाग कहै रघुपति गुन गाहा।। + +प्रथमहिं अति अनुराग भवानी। रा��चरित सर कहेसि बखानी।। + +पुनि नारद कर मोह अपारा। कहेसि बहुरि रावन अवतारा।। + +प्रभु अवतार कथा पुनि गाई। तब सिसु चरित कहेसि मन लाई।।बालचरित कहिं बिबिध बिधि मन महँ परम उछाह। + +रिषि आगवन कहेसि पुनि श्री रघुबीर बिबाह।।64।।बहुरि राम अभिषेक प्रसंगा। पुनि नृप बचन राज रस भंगा।। + +पुरबासिन्ह कर बिरह बिषादा। कहेसि राम लछिमन संबादा।। + +बिपिन गवन केवट अनुरागा। सुरसरि उतरि निवास प्रयागा।। + +बालमीक प्रभु मिलन बखाना। चित्रकूट जिमि बसे भगवाना।। + +सचिवागवन नगर नृप मरना। भरतागवन प्रेम बहु बरना।। + +करि नृप क्रिया संग पुरबासी। भरत गए जहँ प्रभु सुख रासी।। + +पुनि रघुपति बहु बिधि समुझाए। लै पादुका अवधपुर आए।। + +भरत रहनि सुरपति सुत करनी। प्रभु अरु अत्रि भेंट पुनि बरनी।।कहि बिराध बध जेहि बिधि देह तजी सरभंग।। + +बरनि सुतीछन प्रीति पुनि प्रभु अगस्ति सतसंग।।65।।कहि दंडक बन पावनताई। गीध मइत्री पुनि तेहिं गाई।। + +पुनि प्रभु पंचवटीं कृत बासा। भंजी सकल मुनिन्ह की त्रासा।। + +पुनि लछिमन उपदेस अनूपा। सूपनखा जिमि कीन्हि कुरूपा।। + +खर दूषन बध बहुरि बखाना। जिमि सब मरमु दसानन जाना।। + +दसकंधर मारीच बतकहीं। जेहि बिधि भई सो सब तेहिं कही।। + +पुनि माया सीता कर हरना। श्रीरघुबीर बिरह कछु बरना।। + +पुनि प्रभु गीध क्रिया जिमि कीन्ही। बधि कबंध सबरिहि गति दीन्ही।। + +बहुरि बिरह बरनत रघुबीरा। जेहि बिधि गए सरोबर तीरा।।प्रभु नारद संबाद कहि मारुति मिलन प्रसंग। + +पुनि सुग्रीव मिताई बालि प्रान कर भंग।।66((क)।। + +कपिहि तिलक करि प्रभु कृत सैल प्रबरषन बास। + +बरनन बर्षा सरद अरु राम रोष कपि त्रास।।66(ख)।।जेहि बिधि कपिपति कीस पठाए। सीता खोज सकल दिसि धाए।। + +बिबर प्रबेस कीन्ह जेहि भाँती। कपिन्ह बहोरि मिला संपाती।। + +सुनि सब कथा समीरकुमारा। नाघत भयउ पयोधि अपारा।। + +लंकाँ कपि प्रबेस जिमि कीन्हा। पुनि सीतहि धीरजु जिमि दीन्हा।। + +बन उजारि रावनहि प्रबोधी। पुर दहि नाघेउ बहुरि पयोधी।। + +आए कपि सब जहँ रघुराई। बैदेही कि कुसल सुनाई।। + +सेन समेति जथा रघुबीरा। उतरे जाइ बारिनिधि तीरा।। + +मिला बिभीषन जेहि बिधि आई। सागर निग्रह कथा सुनाई।।सेतु बाँधि कपि सेन जिमि उतरी सागर पार। + +गयउ बसीठी बीरबर जेहि बिधि बालिकुमार।।67(क)।। + +निसिचर कीस लराई बरनिसि बिबिध प्रकार। + +कुंभकरन घननाद कर बल पौरुष संघ���र।।67(ख)।।निसिचर निकर मरन बिधि नाना। रघुपति रावन समर बखाना।। + +रावन बध मंदोदरि सोका। राज बिभीषण देव असोका।। + +सीता रघुपति मिलन बहोरी। सुरन्ह कीन्ह अस्तुति कर जोरी।। + +पुनि पुष्पक चढ़ि कपिन्ह समेता। अवध चले प्रभु कृपा निकेता।। + +जेहि बिधि राम नगर निज आए। बायस बिसद चरित सब गाए।। + +कहेसि बहोरि राम अभिषैका। पुर बरनत नृपनीति अनेका।। + +कथा समस्त भुसुंड बखानी। जो मैं तुम्ह सन कही भवानी।। + +सुनि सब राम कथा खगनाहा। कहत बचन मन परम उछाहा।।गयउ मोर संदेह सुनेउँ सकल रघुपति चरित। + +भयउ राम पद नेह तव प्रसाद बायस तिलक।।68(क)।। + +मोहि भयउ अति मोह प्रभु बंधन रन महुँ निरखि। + +चिदानंद संदोह राम बिकल कारन कवन। 68(ख)।।देखि चरित अति नर अनुसारी। भयउ हृदयँ मम संसय भारी।। + +सोइ भ्रम अब हित करि मैं माना। कीन्ह अनुग्रह कृपानिधाना।। + +जो अति आतप ब्याकुल होई। तरु छाया सुख जानइ सोई।। + +जौं नहिं होत मोह अति मोही। मिलतेउँ तात कवन बिधि तोही।। + +सुनतेउँ किमि हरि कथा सुहाई। अति बिचित्र बहु बिधि तुम्ह गाई।। + +निगमागम पुरान मत एहा। कहहिं सिद्ध मुनि नहिं संदेहा।। + +संत बिसुद्ध मिलहिं परि तेही। चितवहिं राम कृपा करि जेही।। + +राम कृपाँ तव दरसन भयऊ। तव प्रसाद सब संसय गयऊ।।सुनि बिहंगपति बानी सहित बिनय अनुराग। + +पुलक गात लोचन सजल मन हरषेउ अति काग।।69(क)।। + +श्रोता सुमति सुसील सुचि कथा रसिक हरि दास। + +पाइ उमा अति गोप्यमपि सज्जन करहिं प्रकास।।69(ख)।।बोलेउ काकभसुंड बहोरी। नभग नाथ पर प्रीति न थोरी।। + +सब बिधि नाथ पूज्य तुम्ह मेरे। कृपापात्र रघुनायक केरे।। + +तुम्हहि न संसय मोह न माया। मो पर नाथ कीन्ह तुम्ह दाया।। + +पठइ मोह मिस खगपति तोही। रघुपति दीन्हि बड़ाई मोही।। + +तुम्ह निज मोह कही खग साईं। सो नहिं कछु आचरज गोसाईं।। + +नारद भव बिरंचि सनकादी। जे मुनिनायक आतमबादी।। + +मोह न अंध कीन्ह केहि केही। को जग काम नचाव न जेही।। + +तृस्नाँ केहि न कीन्ह बौराहा। केहि कर हृदय क्रोध नहिं दाहा।।ग्यानी तापस सूर कबि कोबिद गुन आगार। + +केहि कै लौभ बिडंबना कीन्हि न एहिं संसार।।70(क)।। + +श्री मद बक्र न कीन्ह केहि प्रभुता बधिर न काहि। + +मृगलोचनि के नैन सर को अस लाग न जाहि।।70(ख)।।गुन कृत सन्यपात नहिं केही। कोउ न मान मद तजेउ निबेही।। + +जोबन ज्वर केहि नहिं बलकावा। ममता केहि कर जस न नसावा।। + +मच्छर काहि कलंक न ल��वा। काहि न सोक समीर डोलावा।। + +चिंता साँपिनि को नहिं खाया। को जग जाहि न ब्यापी माया।। + +कीट मनोरथ दारु सरीरा। जेहि न लाग घुन को अस धीरा।। + +सुत बित लोक ईषना तीनी। केहि के मति इन्ह कृत न मलीनी।। + +यह सब माया कर परिवारा। प्रबल अमिति को बरनै पारा।। + +सिव चतुरानन जाहि डेराहीं। अपर जीव केहि लेखे माहीं।।ब्यापि रहेउ संसार महुँ माया कटक प्रचंड।। + +सेनापति कामादि भट दंभ कपट पाषंड।।71(क)।। + +सो दासी रघुबीर कै समुझें मिथ्या सोपि। + +छूट न राम कृपा बिनु नाथ कहउँ पद रोपि।।71(ख)।।जो माया सब जगहि नचावा। जासु चरित लखि काहुँ न पावा।। + +सोइ प्रभु भ्रू बिलास खगराजा। नाच नटी इव सहित समाजा।। + +सोइ सच्चिदानंद घन रामा। अज बिग्यान रूपो बल धामा।। + +ब्यापक ब्याप्य अखंड अनंता। अखिल अमोघसक्ति भगवंता।। + +अगुन अदभ्र गिरा गोतीता। सबदरसी अनवद्य अजीता।। + +निर्मम निराकार निरमोहा। नित्य निरंजन सुख संदोहा।। + +प्रकृति पार प्रभु सब उर बासी। ब्रह्म निरीह बिरज अबिनासी।। + +इहाँ मोह कर कारन नाहीं। रबि सन्मुख तम कबहुँ कि जाहीं।।भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप। + +किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनुरूप।।72(क)।। + +जथा अनेक बेष धरि नृत्य करइ नट कोइ। + +सोइ सोइ भाव देखावइ आपुन होइ न सोइ।।72(ख)।।असि रघुपति लीला उरगारी। दनुज बिमोहनि जन सुखकारी।। + +जे मति मलिन बिषयबस कामी। प्रभु मोह धरहिं इमि स्वामी।। + +नयन दोष जा कहँ जब होई। पीत बरन ससि कहुँ कह सोई।। + +जब जेहि दिसि भ्रम होइ खगेसा। सो कह पच्छिम उयउ दिनेसा।। + +नौकारूढ़ चलत जग देखा। अचल मोह बस आपुहि लेखा।। + +बालक भ्रमहिं न भ्रमहिं गृहादीं। कहहिं परस्पर मिथ्याबादी।। + +हरि बिषइक अस मोह बिहंगा। सपनेहुँ नहिं अग्यान प्रसंगा।। + +मायाबस मतिमंद अभागी। हृदयँ जमनिका बहुबिधि लागी।। + +ते सठ हठ बस संसय करहीं। निज अग्यान राम पर धरहीं।।काम क्रोध मद लोभ रत गृहासक्त दुखरूप। + +ते किमि जानहिं रघुपतिहि मूढ़ परे तम कूप।।73(क)।। + +निर्गुन रूप सुलभ अति सगुन जान नहिं कोइ। + +सुगम अगम नाना चरित सुनि मुनि मन भ्रम होइ।।73(ख)।।सुनु खगेस रघुपति प्रभुताई। कहउँ जथामति कथा सुहाई।। + +जेहि बिधि मोह भयउ प्रभु मोही। सोउ सब कथा सुनावउँ तोही।। + +राम कृपा भाजन तुम्ह ताता। हरि गुन प्रीति मोहि सुखदाता।। + +ताते नहिं कछु तुम्हहिं दुरावउँ। परम रहस्य मनोहर गावउँ।। + +सुनहु ��ाम कर सहज सुभाऊ। जन अभिमान न राखहिं काऊ।। + +संसृत मूल सूलप्रद नाना। सकल सोक दायक अभिमाना।। + +ताते करहिं कृपानिधि दूरी। सेवक पर ममता अति भूरी।। + +जिमि सिसु तन ब्रन होइ गोसाई। मातु चिराव कठिन की नाईं।।जदपि प्रथम दुख पावइ रोवइ बाल अधीर। + +ब्याधि नास हित जननी गनति न सो सिसु पीर।।74(क)।। + +तिमि रघुपति निज दासकर हरहिं मान हित लागि। + +तुलसिदास ऐसे प्रभुहि कस न भजहु भ्रम त्यागि।।74(ख)।।राम कृपा आपनि जड़ताई। कहउँ खगेस सुनहु मन लाई।। + +जब जब राम मनुज तनु धरहीं। भक्त हेतु लीला बहु करहीं।। + +तब तब अवधपुरी मैं ज़ाऊँ। बालचरित बिलोकि हरषाऊँ।। + +जन्म महोत्सव देखउँ जाई। बरष पाँच तहँ रहउँ लोभाई।। + +इष्टदेव मम बालक रामा। सोभा बपुष कोटि सत कामा।। + +निज प्रभु बदन निहारि निहारी। लोचन सुफल करउँ उरगारी।। + +लघु बायस बपु धरि हरि संगा। देखउँ बालचरित बहुरंगा।।लरिकाईं जहँ जहँ फिरहिं तहँ तहँ संग उड़ाउँ। + +जूठनि परइ अजिर महँ सो उठाइ करि खाउँ।।75(क)।। + +एक बार अतिसय सब चरित किए रघुबीर। + +सुमिरत प्रभु लीला सोइ पुलकित भयउ सरीर।।75(ख)।।कहइ भसुंड सुनहु खगनायक। रामचरित सेवक सुखदायक।। + +नृपमंदिर सुंदर सब भाँती। खचित कनक मनि नाना जाती।। + +बरनि न जाइ रुचिर अँगनाई। जहँ खेलहिं नित चारिउ भाई।। + +बालबिनोद करत रघुराई। बिचरत अजिर जननि सुखदाई।। + +मरकत मृदुल कलेवर स्यामा। अंग अंग प्रति छबि बहु कामा।। + +नव राजीव अरुन मृदु चरना। पदज रुचिर नख ससि दुति हरना।। + +ललित अंक कुलिसादिक चारी। नूपुर चारू मधुर रवकारी।। + +चारु पुरट मनि रचित बनाई। कटि किंकिन कल मुखर सुहाई।।रेखा त्रय सुन्दर उदर नाभी रुचिर गँभीर। + +उर आयत भ्राजत बिबिध बाल बिभूषन चीर।।76।।अरुन पानि नख करज मनोहर। बाहु बिसाल बिभूषन सुंदर।। + +कंध बाल केहरि दर ग्रीवा। चारु चिबुक आनन छबि सींवा।। + +कलबल बचन अधर अरुनारे। दुइ दुइ दसन बिसद बर बारे।। + +ललित कपोल मनोहर नासा। सकल सुखद ससि कर सम हासा।। + +नील कंज लोचन भव मोचन। भ्राजत भाल तिलक गोरोचन।। + +बिकट भृकुटि सम श्रवन सुहाए। कुंचित कच मेचक छबि छाए।। + +पीत झीनि झगुली तन सोही। किलकनि चितवनि भावति मोही।। + +रूप रासि नृप अजिर बिहारी। नाचहिं निज प्रतिबिंब निहारी।। + +मोहि सन करहीं बिबिध बिधि क्रीड़ा। बरनत मोहि होति अति ब्रीड़ा।। + +किलकत मोहि धरन जब धावहिं। चलउँ भागि तब पूप देखावहिं।।आवत निकट हँसहिं प्रभु भाजत रुदन कराहिं। + +जाउँ समीप गहन पद फिरि फिरि चितइ पराहिं।।77(क)।। + +प्राकृत सिसु इव लीला देखि भयउ मोहि मोह। + +कवन चरित्र करत प्रभु चिदानंद संदोह।।77(ख)।।एतना मन आनत खगराया। रघुपति प्रेरित ब्यापी माया।। + +सो माया न दुखद मोहि काहीं। आन जीव इव संसृत नाहीं।। + +नाथ इहाँ कछु कारन आना। सुनहु सो सावधान हरिजाना।। + +ग्यान अखंड एक सीताबर। माया बस्य जीव सचराचर।। + +जौं सब कें रह ग्यान एकरस। ईस्वर जीवहि भेद कहहु कस।। + +माया बस्य जीव अभिमानी। ईस बस्य माया गुनखानी।। + +परबस जीव स्वबस भगवंता। जीव अनेक एक श्रीकंता।। + +मुधा भेद जद्यपि कृत माया। बिनु हरि जाइ न कोटि उपाया।।रामचंद्र के भजन बिनु जो चह पद निर्बान। + +ग्यानवंत अपि सो नर पसु बिनु पूँछ बिषान।।78(क)।। + +राकापति षोड़स उअहिं तारागन समुदाइ।। + +सकल गिरिन्ह दव लाइअ बिनु रबि राति न जाइ।।78(ख)।।ऐसेहिं हरि बिनु भजन खगेसा। मिटइ न जीवन्ह केर कलेसा।। + +हरि सेवकहि न ब्याप अबिद्या। प्रभु प्रेरित ब्यापइ तेहि बिद्या।। + +ताते नास न होइ दास कर। भेद भगति भाढ़इ बिहंगबर।। + +भ्रम ते चकित राम मोहि देखा। बिहँसे सो सुनु चरित बिसेषा।। + +तेहि कौतुक कर मरमु न काहूँ। जाना अनुज न मातु पिताहूँ।। + +जानु पानि धाए मोहि धरना। स्यामल गात अरुन कर चरना।। + +तब मैं भागि चलेउँ उरगामी। राम गहन कहँ भुजा पसारी।। + +जिमि जिमि दूरि उड़ाउँ अकासा। तहँ भुज हरि देखउँ निज पासा।।ब्रह्मलोक लगि गयउँ मैं चितयउँ पाछ उड़ात। + +जुग अंगुल कर बीच सब राम भुजहि मोहि तात।।79(क)।। + +सप्ताबरन भेद करि जहाँ लगें गति मोरि। + +गयउँ तहाँ प्रभु भुज निरखि ब्याकुल भयउँ बहोरि।।79(ख)।।मूदेउँ नयन त्रसित जब भयउँ। पुनि चितवत कोसलपुर गयऊँ।। + +मोहि बिलोकि राम मुसुकाहीं। बिहँसत तुरत गयउँ मुख माहीं।। + +उदर माझ सुनु अंडज राया। देखेउँ बहु ब्रह्मांड निकाया।। + +अति बिचित्र तहँ लोक अनेका। रचना अधिक एक ते एका।। + +कोटिन्ह चतुरानन गौरीसा। अगनित उडगन रबि रजनीसा।। + +अगनित लोकपाल जम काला। अगनित भूधर भूमि बिसाला।। + +सागर सरि सर बिपिन अपारा। नाना भाँति सृष्टि बिस्तारा।। + +सुर मुनि सिद्ध नाग नर किंनर। चारि प्रकार जीव सचराचर।।जो नहिं देखा नहिं सुना जो मनहूँ न समाइ। + +सो सब अद्भुत देखेउँ बरनि कवनि बिधि जाइ।।80(क)।। + +एक एक ब्रह्मांड महुँ रहउँ बरष सत एक। + +एहि बिधि दे���त फिरउँ मैं अंड कटाह अनेक।।80(ख)।।लोक लोक प्रति भिन्न बिधाता। भिन्न बिष्नु सिव मनु दिसित्राता।। + +नर गंधर्ब भूत बेताला। किंनर निसिचर पसु खग ब्याला।। + +देव दनुज गन नाना जाती। सकल जीव तहँ आनहि भाँती।। + +महि सरि सागर सर गिरि नाना। सब प्रपंच तहँ आनइ आना।। + +अंडकोस प्रति प्रति निज रुपा। देखेउँ जिनस अनेक अनूपा।। + +अवधपुरी प्रति भुवन निनारी। सरजू भिन्न भिन्न नर नारी।। + +दसरथ कौसल्या सुनु ताता। बिबिध रूप भरतादिक भ्राता।। + +प्रति ब्रह्मांड राम अवतारा। देखउँ बालबिनोद अपारा।।भिन्न भिन्न मै दीख सबु अति बिचित्र हरिजान। + +अगनित भुवन फिरेउँ प्रभु राम न देखेउँ आन।।81(क)।। + +सोइ सिसुपन सोइ सोभा सोइ कृपाल रघुबीर। + +भुवन भुवन देखत फिरउँ प्रेरित मोह समीर।।81(ख)भ्रमत मोहि ब्रह्मांड अनेका। बीते मनहुँ कल्प सत एका।। + +फिरत फिरत निज आश्रम आयउँ। तहँ पुनि रहि कछु काल गवाँयउँ।। + +निज प्रभु जन्म अवध सुनि पायउँ। निर्भर प्रेम हरषि उठि धायउँ।। + +देखउँ जन्म महोत्सव जाई। जेहि बिधि प्रथम कहा मैं गाई।। + +राम उदर देखेउँ जग नाना। देखत बनइ न जाइ बखाना।। + +तहँ पुनि देखेउँ राम सुजाना। माया पति कृपाल भगवाना।। + +करउँ बिचार बहोरि बहोरी। मोह कलिल ब्यापित मति मोरी।। + +उभय घरी महँ मैं सब देखा। भयउँ भ्रमित मन मोह बिसेषा।।देखि कृपाल बिकल मोहि बिहँसे तब रघुबीर। + +बिहँसतहीं मुख बाहेर आयउँ सुनु मतिधीर।।82(क)।। + +सोइ लरिकाई मो सन करन लगे पुनि राम। + +कोटि भाँति समुझावउँ मनु न लहइ बिश्राम।।82(ख)।।देखि चरित यह सो प्रभुताई। समुझत देह दसा बिसराई।। + +धरनि परेउँ मुख आव न बाता। त्राहि त्राहि आरत जन त्राता।। + +प्रेमाकुल प्रभु मोहि बिलोकी। निज माया प्रभुता तब रोकी।। + +कर सरोज प्रभु मम सिर धरेऊ। दीनदयाल सकल दुख हरेऊ।। + +कीन्ह राम मोहि बिगत बिमोहा। सेवक सुखद कृपा संदोहा।। + +प्रभुता प्रथम बिचारि बिचारी। मन महँ होइ हरष अति भारी।। + +भगत बछलता प्रभु कै देखी। उपजी मम उर प्रीति बिसेषी।। + +सजल नयन पुलकित कर जोरी। कीन्हिउँ बहु बिधि बिनय बहोरी।।सुनि सप्रेम मम बानी देखि दीन निज दास। + +बचन सुखद गंभीर मृदु बोले रमानिवास।।83(क)।। + +काकभसुंडि मागु बर अति प्रसन्न मोहि जानि। + +अनिमादिक सिधि अपर रिधि मोच्छ सकल सुख खानि।।83(ख)।।ग्यान बिबेक बिरति बिग्याना। मुनि दुर्लभ गुन जे जग नाना।। + +आजु देउँ सब संसय ��ाहीं। मागु जो तोहि भाव मन माहीं।। + +सुनि प्रभु बचन अधिक अनुरागेउँ। मन अनुमान करन तब लागेऊँ।। + +प्रभु कह देन सकल सुख सही। भगति आपनी देन न कही।। + +भगति हीन गुन सब सुख ऐसे। लवन बिना बहु बिंजन जैसे।। + +भजन हीन सुख कवने काजा। अस बिचारि बोलेउँ खगराजा।। + +जौं प्रभु होइ प्रसन्न बर देहू। मो पर करहु कृपा अरु नेहू।। + +मन भावत बर मागउँ स्वामी। तुम्ह उदार उर अंतरजामी।।अबिरल भगति बिसुध्द तव श्रुति पुरान जो गाव। + +जेहि खोजत जोगीस मुनि प्रभु प्रसाद कोउ पाव।।84(क)।। + +भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपा सिंधु सुख धाम। + +सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।84(ख)।।एवमस्तु कहि रघुकुलनायक। बोले बचन परम सुखदायक।। + +सुनु बायस तैं सहज सयाना। काहे न मागसि अस बरदाना।। + +सब सुख खानि भगति तैं मागी। नहिं जग कोउ तोहि सम बड़भागी।। + +जो मुनि कोटि जतन नहिं लहहीं। जे जप जोग अनल तन दहहीं।। + +रीझेउँ देखि तोरि चतुराई। मागेहु भगति मोहि अति भाई।। + +सुनु बिहंग प्रसाद अब मोरें। सब सुभ गुन बसिहहिं उर तोरें।। + +भगति ग्यान बिग्यान बिरागा। जोग चरित्र रहस्य बिभागा।। + +जानब तैं सबही कर भेदा। मम प्रसाद नहिं साधन खेदा।।माया संभव भ्रम सब अब न ब्यापिहहिं तोहि। + +जानेसु ब्रह्म अनादि अज अगुन गुनाकर मोहि।।85(क)।। + +मोहि भगत प्रिय संतत अस बिचारि सुनु काग। + +कायँ बचन मन मम पद करेसु अचल अनुराग।।85(ख)।।अब सुनु परम बिमल मम बानी। सत्य सुगम निगमादि बखानी।। + +निज सिद्धांत सुनावउँ तोही। सुनु मन धरु सब तजि भजु मोही।। + +मम माया संभव संसारा। जीव चराचर बिबिधि प्रकारा।। + +सब मम प्रिय सब मम उपजाए। सब ते अधिक मनुज मोहि भाए।। + +तिन्ह महँ द्विज द्विज महँ श्रुतिधारी। तिन्ह महुँ निगम धरम अनुसारी।। + +तिन्ह महँ प्रिय बिरक्त पुनि ग्यानी। ग्यानिहु ते अति प्रिय बिग्यानी।। + +तिन्ह ते पुनि मोहि प्रिय निज दासा। जेहि गति मोरि न दूसरि आसा।। + +पुनि पुनि सत्य कहउँ तोहि पाहीं। मोहि सेवक सम प्रिय कोउ नाहीं।। + +भगति हीन बिरंचि किन होई। सब जीवहु सम प्रिय मोहि सोई।। + +भगतिवंत अति नीचउ प्रानी। मोहि प्रानप्रिय असि मम बानी।।सुचि सुसील सेवक सुमति प्रिय कहु काहि न लाग। + +श्रुति पुरान कह नीति असि सावधान सुनु काग।।86।।एक पिता के बिपुल कुमारा। होहिं पृथक गुन सील अचारा।। + +कोउ पंडिंत कोउ तापस ग्याता। कोउ धनवंत सूर कोउ दाता।। + +को�� सर्बग्य धर्मरत कोई। सब पर पितहि प्रीति सम होई।। + +कोउ पितु भगत बचन मन कर्मा। सपनेहुँ जान न दूसर धर्मा।। + +सो सुत प्रिय पितु प्रान समाना। जद्यपि सो सब भाँति अयाना।। + +एहि बिधि जीव चराचर जेते। त्रिजग देव नर असुर समेते।। + +अखिल बिस्व यह मोर उपाया। सब पर मोहि बराबरि दाया।। + +तिन्ह महँ जो परिहरि मद माया। भजै मोहि मन बच अरू काया।।पुरूष नपुंसक नारि वा जीव चराचर कोइ। + +सर्ब भाव भज कपट तजि मोहि परम प्रिय सोइ।।87(क)।। + +सत्य कहउँ खग तोहि सुचि सेवक मम प्रानप्रिय। + +अस बिचारि भजु मोहि परिहरि आस भरोस सब।।87(ख)।।कबहूँ काल न ब्यापिहि तोही। सुमिरेसु भजेसु निरंतर मोही।। + +प्रभु बचनामृत सुनि न अघाऊँ। तनु पुलकित मन अति हरषाऊँ।। + +सो सुख जानइ मन अरु काना। नहिं रसना पहिं जाइ बखाना।। + +प्रभु सोभा सुख जानहिं नयना। कहि किमि सकहिं तिन्हहि नहिं बयना।। + +बहु बिधि मोहि प्रबोधि सुख देई। लगे करन सिसु कौतुक तेई।। + +सजल नयन कछु मुख करि रूखा। चितइ मातु लागी अति भूखा।। + +देखि मातु आतुर उठि धाई। कहि मृदु बचन लिए उर लाई।। + +गोद राखि कराव पय पाना। रघुपति चरित ललित कर गाना।।जेहि सुख लागि पुरारि असुभ बेष कृत सिव सुखद। + +अवधपुरी नर नारि तेहि सुख महुँ संतत मगन।।88(क)।। + +सोइ सुख लवलेस जिन्ह बारक सपनेहुँ लहेउ। + +ते नहिं गनहिं खगेस ब्रह्मसुखहि सज्जन सुमति।।88(ख)।।मैं पुनि अवध रहेउँ कछु काला। देखेउँ बालबिनोद रसाला।। + +राम प्रसाद भगति बर पायउँ। प्रभु पद बंदि निजाश्रम आयउँ।। + +तब ते मोहि न ब्यापी माया। जब ते रघुनायक अपनाया।। + +यह सब गुप्त चरित मैं गावा। हरि मायाँ जिमि मोहि नचावा।। + +निज अनुभव अब कहउँ खगेसा। बिनु हरि भजन न जाहि कलेसा।। + +राम कृपा बिनु सुनु खगराई। जानि न जाइ राम प्रभुताई।। + +जानें बिनु न होइ परतीती। बिनु परतीति होइ नहिं प्रीती।। + +प्रीति बिना नहिं भगति दिढ़ाई। जिमि खगपति जल कै चिकनाई।।बिनु गुर होइ कि ग्यान ग्यान कि होइ बिराग बिनु। + +गावहिं बेद पुरान सुख कि लहिअ हरि भगति बिनु।।89(क)।। + +कोउ बिश्राम कि पाव तात सहज संतोष बिनु। + +चलै कि जल बिनु नाव कोटि जतन पचि पचि मरिअ।।89(ख)।।बिनु संतोष न काम नसाहीं। काम अछत सुख सपनेहुँ नाहीं।। + +राम भजन बिनु मिटहिं कि कामा। थल बिहीन तरु कबहुँ कि जामा।। + +बिनु बिग्यान कि समता आवइ। कोउ अवकास कि नभ बिनु पावइ।। + +श्रद्धा बिना धर्म नहिं होई�� बिनु महि गंध कि पावइ कोई।। + +बिनु तप तेज कि कर बिस्तारा। जल बिनु रस कि होइ संसारा।। + +सील कि मिल बिनु बुध सेवकाई। जिमि बिनु तेज न रूप गोसाई।। + +निज सुख बिनु मन होइ कि थीरा। परस कि होइ बिहीन समीरा।। + +कवनिउ सिद्धि कि बिनु बिस्वासा। बिनु हरि भजन न भव भय नासा।।बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु। + +राम कृपा बिनु सपनेहुँ जीव न लह बिश्रामु।।90(क)।। + +अस बिचारि मतिधीर तजि कुतर्क संसय सकल। + +भजहु राम रघुबीर करुनाकर सुंदर सुखद।।90(ख)।।निज मति सरिस नाथ मैं गाई। प्रभु प्रताप महिमा खगराई।। + +कहेउँ न कछु करि जुगुति बिसेषी। यह सब मैं निज नयनन्हि देखी।। + +महिमा नाम रूप गुन गाथा। सकल अमित अनंत रघुनाथा।। + +निज निज मति मुनि हरि गुन गावहिं। निगम सेष सिव पार न पावहिं।। + +तुम्हहि आदि खग मसक प्रजंता। नभ उड़ाहिं नहिं पावहिं अंता।। + +तिमि रघुपति महिमा अवगाहा। तात कबहुँ कोउ पाव कि थाहा।। + +रामु काम सत कोटि सुभग तन। दुर्गा कोटि अमित अरि मर्दन।। + +सक्र कोटि सत सरिस बिलासा। नभ सत कोटि अमित अवकासा।।मरुत कोटि सत बिपुल बल रबि सत कोटि प्रकास। + +ससि सत कोटि सुसीतल समन सकल भव त्रास।।91(क)।। + +काल कोटि सत सरिस अति दुस्तर दुर्ग दुरंत। + +धूमकेतु सत कोटि सम दुराधरष भगवंत।।91(ख)।।प्रभु अगाध सत कोटि पताला। समन कोटि सत सरिस कराला।। + +तीरथ अमित कोटि सम पावन। नाम अखिल अघ पूग नसावन।। + +हिमगिरि कोटि अचल रघुबीरा। सिंधु कोटि सत सम गंभीरा।। + +कामधेनु सत कोटि समाना। सकल काम दायक भगवाना।। + +सारद कोटि अमित चतुराई। बिधि सत कोटि सृष्टि निपुनाई।। + +बिष्नु कोटि सम पालन कर्ता। रुद्र कोटि सत सम संहर्ता।। + +धनद कोटि सत सम धनवाना। माया कोटि प्रपंच निधाना।। + +भार धरन सत कोटि अहीसा। निरवधि निरुपम प्रभु जगदीसा।।निरुपम न उपमा आन राम समान रामु निगम कहै। + +जिमि कोटि सत खद्योत सम रबि कहत अति लघुता लहै।। + +एहि भाँति निज निज मति बिलास मुनिस हरिहि बखानहीं। + +प्रभु भाव गाहक अति कृपाल सप्रेम सुनि सुख मानहीं।।रामु अमित गुन सागर थाह कि पावइ कोइ। + +संतन्ह सन जस किछु सुनेउँ तुम्हहि सुनायउँ सोइ।।92(क)।। + +भाव बस्य भगवान सुख निधान करुना भवन। + +तजि ममता मद मान भजिअ सदा सीता रवन।।92(ख)।।सुनि भुसुंडि के बचन सुहाए। हरषित खगपति पंख फुलाए।। + +नयन नीर मन अति हरषाना। श्रीरघुपति प्रताप उर आना।। + +पाछिल मोह ���मुझि पछिताना। ब्रह्म अनादि मनुज करि माना।। + +पुनि पुनि काग चरन सिरु नावा। जानि राम सम प्रेम बढ़ावा।। + +गुर बिनु भव निधि तरइ न कोई। जौं बिरंचि संकर सम होई।। + +संसय सर्प ग्रसेउ मोहि ताता। दुखद लहरि कुतर्क बहु ब्राता।। + +तव सरूप गारुड़ि रघुनायक। मोहि जिआयउ जन सुखदायक।। + +तव प्रसाद मम मोह नसाना। राम रहस्य अनूपम जाना।।ताहि प्रसंसि बिबिध बिधि सीस नाइ कर जोरि। + +बचन बिनीत सप्रेम मृदु बोलेउ गरुड़ बहोरि।।93(क)।। + +प्रभु अपने अबिबेक ते बूझउँ स्वामी तोहि। + +कृपासिंधु सादर कहहु जानि दास निज मोहि।।93(ख)।।तुम्ह सर्बग्य तन्य तम पारा। सुमति सुसील सरल आचारा।। + +ग्यान बिरति बिग्यान निवासा। रघुनायक के तुम्ह प्रिय दासा।। + +कारन कवन देह यह पाई। तात सकल मोहि कहहु बुझाई।। + +राम चरित सर सुंदर स्वामी। पायहु कहाँ कहहु नभगामी।। + +नाथ सुना मैं अस सिव पाहीं। महा प्रलयहुँ नास तव नाहीं।। + +मुधा बचन नहिं ईस्वर कहई। सोउ मोरें मन संसय अहई।। + +अग जग जीव नाग नर देवा। नाथ सकल जगु काल कलेवा।। + +अंड कटाह अमित लय कारी। कालु सदा दुरतिक्रम भारी।।तुम्हहि न ब्यापत काल अति कराल कारन कवन। + +मोहि सो कहहु कृपाल ग्यान प्रभाव कि जोग बल।।94(क)।। + +प्रभु तव आश्रम आएँ मोर मोह भ्रम भाग। + +कारन कवन सो नाथ सब कहहु सहित अनुराग।।94(ख)।।गरुड़ गिरा सुनि हरषेउ कागा। बोलेउ उमा परम अनुरागा।। + +धन्य धन्य तव मति उरगारी। प्रस्न तुम्हारि मोहि अति प्यारी।। + +सुनि तव प्रस्न सप्रेम सुहाई। बहुत जनम कै सुधि मोहि आई।। + +सब निज कथा कहउँ मैं गाई। तात सुनहु सादर मन लाई।। + +जप तप मख सम दम ब्रत दाना। बिरति बिबेक जोग बिग्याना।। + +सब कर फल रघुपति पद प्रेमा। तेहि बिनु कोउ न पावइ छेमा।। + +एहि तन राम भगति मैं पाई। ताते मोहि ममता अधिकाई।। + +जेहि तें कछु निज स्वारथ होई। तेहि पर ममता कर सब कोई।।पन्नगारि असि नीति श्रुति संमत सज्जन कहहिं। + +अति नीचहु सन प्रीति करिअ जानि निज परम हित।।95(क)।। + +पाट कीट तें होइ तेहि तें पाटंबर रुचिर। + +कृमि पालइ सबु कोइ परम अपावन प्रान सम।।95(ख)।।स्वारथ साँच जीव कहुँ एहा। मन क्रम बचन राम पद नेहा।। + +सोइ पावन सोइ सुभग सरीरा। जो तनु पाइ भजिअ रघुबीरा।। + +राम बिमुख लहि बिधि सम देही। कबि कोबिद न प्रसंसहिं तेही।। + +राम भगति एहिं तन उर जामी। ताते मोहि परम प्रिय स्वामी।। + +तजउँ न तन निज इच्छा मरना। तन बिनु बेद भजन नहिं बरना।। + +प्रथम मोहँ मोहि बहुत बिगोवा। राम बिमुख सुख कबहुँ न सोवा।। + +नाना जनम कर्म पुनि नाना। किए जोग जप तप मख दाना।। + +कवन जोनि जनमेउँ जहँ नाहीं। मैं खगेस भ्रमि भ्रमि जग माहीं।। + +देखेउँ करि सब करम गोसाई। सुखी न भयउँ अबहिं की नाई।। + +सुधि मोहि नाथ जन्म बहु केरी। सिव प्रसाद मति मोहँ न घेरी।।प्रथम जन्म के चरित अब कहउँ सुनहु बिहगेस। + +सुनि प्रभु पद रति उपजइ जातें मिटहिं कलेस।।96(क)।। + +पूरुब कल्प एक प्रभु जुग कलिजुग मल मूल।। + +नर अरु नारि अधर्म रत सकल निगम प्रतिकूल।।96(ख)।।तेहि कलिजुग कोसलपुर जाई। जन्मत भयउँ सूद्र तनु पाई।। + +सिव सेवक मन क्रम अरु बानी। आन देव निंदक अभिमानी।। + +धन मद मत्त परम बाचाला। उग्रबुद्धि उर दंभ बिसाला।। + +जदपि रहेउँ रघुपति रजधानी। तदपि न कछु महिमा तब जानी।। + +अब जाना मैं अवध प्रभावा। निगमागम पुरान अस गावा।। + +कवनेहुँ जन्म अवध बस जोई। राम परायन सो परि होई।। + +अवध प्रभाव जान तब प्रानी। जब उर बसहिं रामु धनुपानी।। + +सो कलिकाल कठिन उरगारी। पाप परायन सब नर नारी।।कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रंथ। + +दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ।।97(क)।। + +भए लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ कर्म। + +सुनु हरिजान ग्यान निधि कहउँ कछुक कलिधर्म।।97(ख)।।बरन धर्म नहिं आश्रम चारी। श्रुति बिरोध रत सब नर नारी।। + +द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन। कोउ नहिं मान निगम अनुसासन।। + +मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा। पंडित सोइ जो गाल बजावा।। + +मिथ्यारंभ दंभ रत जोई। ता कहुँ संत कहइ सब कोई।। + +सोइ सयान जो परधन हारी। जो कर दंभ सो बड़ आचारी।। + +जौ कह झूँठ मसखरी जाना। कलिजुग सोइ गुनवंत बखाना।। + +निराचार जो श्रुति पथ त्यागी। कलिजुग सोइ ग्यानी सो बिरागी।। + +जाकें नख अरु जटा बिसाला। सोइ तापस प्रसिद्ध कलिकाला।।असुभ बेष भूषन धरें भच्छाभच्छ जे खाहिं। + +तेइ जोगी तेइ सिद्ध नर पूज्य ते कलिजुग माहिं।।98(क)।। + +जे अपकारी चार तिन्ह कर गौरव मान्य तेइ। + +मन क्रम बचन लबार तेइ बकता कलिकाल महुँ।।98(ख)।।नारि बिबस नर सकल गोसाई। नाचहिं नट मर्कट की नाई।। + +सूद्र द्विजन्ह उपदेसहिं ग्याना। मेलि जनेऊ लेहिं कुदाना।। + +सब नर काम लोभ रत क्रोधी। देव बिप्र श्रुति संत बिरोधी।। + +गुन मंदिर सुंदर पति त्यागी। भजहिं नारि पर पुरुष अभागी।। + +सौभागिनीं बिभूषन हीना। बिधवन्ह के ���िंगार नबीना।। + +गुर सिष बधिर अंध का लेखा। एक न सुनइ एक नहिं देखा।। + +हरइ सिष्य धन सोक न हरई। सो गुर घोर नरक महुँ परई।। + +मातु पिता बालकन्हि बोलाबहिं। उदर भरै सोइ धर्म सिखावहिं।।ब्रह्म ग्यान बिनु नारि नर कहहिं न दूसरि बात। + +कौड़ी लागि लोभ बस करहिं बिप्र गुर घात।।99(क)।। + +बादहिं सूद्र द्विजन्ह सन हम तुम्ह ते कछु घाटि। + +जानइ ब्रह्म सो बिप्रबर आँखि देखावहिं डाटि।।99(ख)।।पर त्रिय लंपट कपट सयाने। मोह द्रोह ममता लपटाने।। + +तेइ अभेदबादी ग्यानी नर। देखा में चरित्र कलिजुग कर।। + +आपु गए अरु तिन्हहू घालहिं। जे कहुँ सत मारग प्रतिपालहिं।। + +कल्प कल्प भरि एक एक नरका। परहिं जे दूषहिं श्रुति करि तरका।। + +जे बरनाधम तेलि कुम्हारा। स्वपच किरात कोल कलवारा।। + +नारि मुई गृह संपति नासी। मूड़ मुड़ाइ होहिं सन्यासी।। + +ते बिप्रन्ह सन आपु पुजावहिं। उभय लोक निज हाथ नसावहिं।। + +बिप्र निरच्छर लोलुप कामी। निराचार सठ बृषली स्वामी।। + +सूद्र करहिं जप तप ब्रत नाना। बैठि बरासन कहहिं पुराना।। + +सब नर कल्पित करहिं अचारा। जाइ न बरनि अनीति अपारा।।भए बरन संकर कलि भिन्नसेतु सब लोग। + +करहिं पाप पावहिं दुख भय रुज सोक बियोग।।100(क)।। + +श्रुति संमत हरि भक्ति पथ संजुत बिरति बिबेक। + +तेहि न चलहिं नर मोह बस कल्पहिं पंथ अनेक।।100(ख)।।बहु दाम सँवारहिं धाम जती। बिषया हरि लीन्हि न रहि बिरती।। + +तपसी धनवंत दरिद्र गृही। कलि कौतुक तात न जात कही।। + +कुलवंति निकारहिं नारि सती। गृह आनिहिं चेरी निबेरि गती।। + +सुत मानहिं मातु पिता तब लौं। अबलानन दीख नहीं जब लौं।। + +ससुरारि पिआरि लगी जब तें। रिपरूप कुटुंब भए तब तें।। + +नृप पाप परायन धर्म नहीं। करि दंड बिडंब प्रजा नितहीं।। + +धनवंत कुलीन मलीन अपी। द्विज चिन्ह जनेउ उघार तपी।। + +नहिं मान पुरान न बेदहि जो। हरि सेवक संत सही कलि सो।। + +कबि बृंद उदार दुनी न सुनी। गुन दूषक ब्रात न कोपि गुनी।। + +कलि बारहिं बार दुकाल परै। बिनु अन्न दुखी सब लोग मरै।।सुनु खगेस कलि कपट हठ दंभ द्वेष पाषंड। + +मान मोह मारादि मद ब्यापि रहे ब्रह्मंड।।101(क)।। + +तामस धर्म करहिं नर जप तप ब्रत मख दान। + +देव न बरषहिं धरनीं बए न जामहिं धान।।101(ख)।।अबला कच भूषन भूरि छुधा। धनहीन दुखी ममता बहुधा।। + +सुख चाहहिं मूढ़ न धर्म रता। मति थोरि कठोरि न कोमलता।।1।। + +नर पीड़ित रोग न भोग कहीं। अभिम��न बिरोध अकारनहीं।। + +लघु जीवन संबतु पंच दसा। कलपांत न नास गुमानु असा।।2।। + +कलिकाल बिहाल किए मनुजा। नहिं मानत क्वौ अनुजा तनुजा। + +नहिं तोष बिचार न सीतलता। सब जाति कुजाति भए मगता।।3।। + +इरिषा परुषाच्छर लोलुपता। भरि पूरि रही समता बिगता।। + +सब लोग बियोग बिसोक हुए। बरनाश्रम धर्म अचार गए।।4।। + +दम दान दया नहिं जानपनी। जड़ता परबंचनताति घनी।। + +तनु पोषक नारि नरा सगरे। परनिंदक जे जग मो बगरे।।5।।सुनु ब्यालारि काल कलि मल अवगुन आगार। + +गुनउँ बहुत कलिजुग कर बिनु प्रयास निस्तार।।102(क)।। + +कृतजुग त्रेता द्वापर पूजा मख अरु जोग। + +जो गति होइ सो कलि हरि नाम ते पावहिं लोग।।102(ख)।।कृतजुग सब जोगी बिग्यानी। करि हरि ध्यान तरहिं भव प्रानी।। + +त्रेताँ बिबिध जग्य नर करहीं। प्रभुहि समर्पि कर्म भव तरहीं।। + +द्वापर करि रघुपति पद पूजा। नर भव तरहिं उपाय न दूजा।। + +कलिजुग केवल हरि गुन गाहा। गावत नर पावहिं भव थाहा।। + +कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना। एक अधार राम गुन गाना।। + +सब भरोस तजि जो भज रामहि। प्रेम समेत गाव गुन ग्रामहि।। + +सोइ भव तर कछु संसय नाहीं। नाम प्रताप प्रगट कलि माहीं।। + +कलि कर एक पुनीत प्रतापा। मानस पुन्य होहिं नहिं पापा।।कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास। + +गाइ राम गुन गन बिमलँ भव तर बिनहिं प्रयास।।103(क)।। + +प्रगट चारि पद धर्म के कलिल महुँ एक प्रधान। + +जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान।।103(ख)।।नित जुग धर्म होहिं सब केरे। हृदयँ राम माया के प्रेरे।। + +सुद्ध सत्व समता बिग्याना। कृत प्रभाव प्रसन्न मन जाना।। + +सत्व बहुत रज कछु रति कर्मा। सब बिधि सुख त्रेता कर धर्मा।। + +बहु रज स्वल्प सत्व कछु तामस। द्वापर धर्म हरष भय मानस।। + +तामस बहुत रजोगुन थोरा। कलि प्रभाव बिरोध चहुँ ओरा।। + +बुध जुग धर्म जानि मन माहीं। तजि अधर्म रति धर्म कराहीं।। + +काल धर्म नहिं ब्यापहिं ताही। रघुपति चरन प्रीति अति जाही।। + +नट कृत बिकट कपट खगराया। नट सेवकहि न ब्यापइ माया।।हरि माया कृत दोष गुन बिनु हरि भजन न जाहिं। + +भजिअ राम तजि काम सब अस बिचारि मन माहिं।।104(क)।। + +तेहि कलिकाल बरष बहु बसेउँ अवध बिहगेस। + +परेउ दुकाल बिपति बस तब मैं गयउँ बिदेस।।104(ख)।।गयउँ उजेनी सुनु उरगारी। दीन मलीन दरिद्र दुखारी।। + +गएँ काल कछु संपति पाई। तहँ पुनि करउँ संभु सेवकाई।। + +बिप्र एक बैदिक सिव पूजा। करइ स��ा तेहि काजु न दूजा।। + +परम साधु परमारथ बिंदक। संभु उपासक नहिं हरि निंदक।। + +तेहि सेवउँ मैं कपट समेता। द्विज दयाल अति नीति निकेता।। + +बाहिज नम्र देखि मोहि साईं। बिप्र पढ़ाव पुत्र की नाईं।। + +संभु मंत्र मोहि द्विजबर दीन्हा। सुभ उपदेस बिबिध बिधि कीन्हा।। + +जपउँ मंत्र सिव मंदिर जाई। हृदयँ दंभ अहमिति अधिकाई।।मैं खल मल संकुल मति नीच जाति बस मोह। + +हरि जन द्विज देखें जरउँ करउँ बिष्नु कर द्रोह।।105(क)।। + +गुर नित मोहि प्रबोध दुखित देखि आचरन मम। + +मोहि उपजइ अति क्रोध दंभिहि नीति कि भावई।।105(ख)।।एक बार गुर लीन्ह बोलाई। मोहि नीति बहु भाँति सिखाई।। + +सिव सेवा कर फल सुत सोई। अबिरल भगति राम पद होई।। + +रामहि भजहिं तात सिव धाता। नर पावँर कै केतिक बाता।। + +जासु चरन अज सिव अनुरागी। तातु द्रोहँ सुख चहसि अभागी।। + +हर कहुँ हरि सेवक गुर कहेऊ। सुनि खगनाथ हृदय मम दहेऊ।। + +अधम जाति मैं बिद्या पाएँ। भयउँ जथा अहि दूध पिआएँ।। + +मानी कुटिल कुभाग्य कुजाती। गुर कर द्रोह करउँ दिनु राती।। + +अति दयाल गुर स्वल्प न क्रोधा। पुनि पुनि मोहि सिखाव सुबोधा।। + +जेहि ते नीच बड़ाई पावा। सो प्रथमहिं हति ताहि नसावा।। + +धूम अनल संभव सुनु भाई। तेहि बुझाव घन पदवी पाई।। + +रज मग परी निरादर रहई। सब कर पद प्रहार नित सहई।। + +मरुत उड़ाव प्रथम तेहि भरई। पुनि नृप नयन किरीटन्हि परई।। + +सुनु खगपति अस समुझि प्रसंगा। बुध नहिं करहिं अधम कर संगा।। + +कबि कोबिद गावहिं असि नीती। खल सन कलह न भल नहिं प्रीती।। + +उदासीन नित रहिअ गोसाईं। खल परिहरिअ स्वान की नाईं।। + +मैं खल हृदयँ कपट कुटिलाई। गुर हित कहइ न मोहि सोहाई।।एक बार हर मंदिर जपत रहेउँ सिव नाम। + +गुर आयउ अभिमान तें उठि नहिं कीन्ह प्रनाम।।106(क)।। + +सो दयाल नहिं कहेउ कछु उर न रोष लवलेस। + +अति अघ गुर अपमानता सहि नहिं सके महेस।।106(ख)।।मंदिर माझ भई नभ बानी। रे हतभाग्य अग्य अभिमानी।। + +जद्यपि तव गुर कें नहिं क्रोधा। अति कृपाल चित सम्यक बोधा।। + +तदपि साप सठ दैहउँ तोही। नीति बिरोध सोहाइ न मोही।। + +जौं नहिं दंड करौं खल तोरा। भ्रष्ट होइ श्रुतिमारग मोरा।। + +जे सठ गुर सन इरिषा करहीं। रौरव नरक कोटि जुग परहीं।। + +त्रिजग जोनि पुनि धरहिं सरीरा। अयुत जन्म भरि पावहिं पीरा।। + +बैठ रहेसि अजगर इव पापी। सर्प होहि खल मल मति ब्यापी।। + +महा बिटप कोटर महुँ जाई।।रहु अधमाधम अ���गति पाई।।हाहाकार कीन्ह गुर दारुन सुनि सिव साप।। + +कंपित मोहि बिलोकि अति उर उपजा परिताप।।107(क)।। + +करि दंडवत सप्रेम द्विज सिव सन्मुख कर जोरि। + +बिनय करत गदगद स्वर समुझि घोर गति मोरि।।107(ख)।।नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विंभुं ब्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं। + +निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरींह। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं।। + +निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।। + +करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोऽहं।। + +तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।। + +स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा।। + +चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं।। + +मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।। + +प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं।। + +त्रयःशूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं।। + +कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्जनान्ददाता पुरारी।। + +चिदानंदसंदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।। + +न यावद् उमानाथ पादारविन्दं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।। + +न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं।। + +न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं।। + +जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो।।रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये। + +ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति।।9।।सुनि बिनती सर्बग्य सिव देखि ब्रिप्र अनुरागु। + +पुनि मंदिर नभबानी भइ द्विजबर बर मागु।।108(क)।। + +जौं प्रसन्न प्रभु मो पर नाथ दीन पर नेहु। + +निज पद भगति देइ प्रभु पुनि दूसर बर देहु।।108(ख)।। + +तव माया बस जीव जड़ संतत फिरइ भुलान। + +तेहि पर क्रोध न करिअ प्रभु कृपा सिंधु भगवान।।108(ग)।। + +संकर दीनदयाल अब एहि पर होहु कृपाल। + +साप अनुग्रह होइ जेहिं नाथ थोरेहीं काल।।108(घ)।।एहि कर होइ परम कल्याना। सोइ करहु अब कृपानिधाना।। + +बिप्रगिरा सुनि परहित सानी। एवमस्तु इति भइ नभबानी।। + +जदपि कीन्ह एहिं दारुन पापा। मैं पुनि दीन्ह कोप करि सापा।। + +तदपि तुम्हार साधुता देखी। करिहउँ एहि पर कृपा बिसेषी।। + +छमासील जे पर उपकारी। ते द्विज मोहि प्रिय जथा खरारी।। + +मोर श्राप द्विज ब्यर्थ न जाइहि। जन्म सहस अवस्य यह पाइहि।। + +जनमत मरत दुसह दुख होई। अहि स्वल्पउ नहिं ब्यापिहि सोई।। + +कवनेउँ जन्म मिटिहि नहिं ग्याना। सुनहि सूद्र मम बचन प्रवाना।। + +रघुपति पुरीं जन्म तब भयऊ। पुनि तैं मम सेवाँ मन दयऊ।। + +पुरी प्रभाव अनुग्रह मोरें। राम भगति उपजिहि उर तोरें।। + +सुनु मम बचन सत्य अब भाई। हरितोषन ब्रत द्विज सेवकाई।। + +अब जनि करहि बिप्र अपमाना। जानेहु संत अनंत समाना।। + +इंद्र कुलिस मम सूल बिसाला। कालदंड हरि चक्र कराला।। + +जो इन्ह कर मारा नहिं मरई। बिप्रद्रोह पावक सो जरई।। + +अस बिबेक राखेहु मन माहीं। तुम्ह कहँ जग दुर्लभ कछु नाहीं।। + +औरउ एक आसिषा मोरी। अप्रतिहत गति होइहि तोरी।।सुनि सिव बचन हरषि गुर एवमस्तु इति भाषि। + +मोहि प्रबोधि गयउ गृह संभु चरन उर राखि।।109(क)।। + +प्रेरित काल बिधि गिरि जाइ भयउँ मैं ब्याल। + +पुनि प्रयास बिनु सो तनु जजेउँ गएँ कछु काल।।109(ख)।। + +जोइ तनु धरउँ तजउँ पुनि अनायास हरिजान। + +जिमि नूतन पट पहिरइ नर परिहरइ पुरान।।109(ग)।। + +सिवँ राखी श्रुति नीति अरु मैं नहिं पावा क्लेस। + +एहि बिधि धरेउँ बिबिध तनु ग्यान न गयउ खगेस।।109(घ)।।त्रिजग देव नर जोइ तनु धरउँ। तहँ तहँ राम भजन अनुसरऊँ।। + +एक सूल मोहि बिसर न काऊ। गुर कर कोमल सील सुभाऊ।। + +चरम देह द्विज कै मैं पाई। सुर दुर्लभ पुरान श्रुति गाई।। + +खेलउँ तहूँ बालकन्ह मीला। करउँ सकल रघुनायक लीला।। + +प्रौढ़ भएँ मोहि पिता पढ़ावा। समझउँ सुनउँ गुनउँ नहिं भावा।। + +मन ते सकल बासना भागी। केवल राम चरन लय लागी।। + +कहु खगेस अस कवन अभागी। खरी सेव सुरधेनुहि त्यागी।। + +प्रेम मगन मोहि कछु न सोहाई। हारेउ पिता पढ़ाइ पढ़ाई।। + +भए कालबस जब पितु माता। मैं बन गयउँ भजन जनत्राता।। + +जहँ जहँ बिपिन मुनीस्वर पावउँ। आश्रम जाइ जाइ सिरु नावउँ।। + +बूझत तिन्हहि राम गुन गाहा। कहहिं सुनउँ हरषित खगनाहा।। + +सुनत फिरउँ हरि गुन अनुबादा। अब्याहत गति संभु प्रसादा।। + +छूटी त्रिबिध ईषना गाढ़ी। एक लालसा उर अति बाढ़ी।। + +राम चरन बारिज जब देखौं। तब निज जन्म सफल करि लेखौं।। + +जेहि पूँछउँ सोइ मुनि अस कहई। ईस्वर सर्ब भूतमय अहई।। + +निर्गुन मत नहिं मोहि सोहाई। सगुन ब्रह्म रति उर अधिकाई।।गुर के बचन सुरति करि राम चरन मनु लाग। + +रघुपति जस गावत फिरउँ छन छन नव अनुराग।।110(क)।। + +मेरु सिखर बट छायाँ मुनि लोमस आसीन। + +देखि चरन सिरु ���ायउँ बचन कहेउँ अति दीन।।110(ख)।। + +सुनि मम बचन बिनीत मृदु मुनि कृपाल खगराज। + +मोहि सादर पूँछत भए द्विज आयहु केहि काज।।110(ग)।। + +तब मैं कहा कृपानिधि तुम्ह सर्बग्य सुजान। + +सगुन ब्रह्म अवराधन मोहि कहहु भगवान।।110(घ)।।तब मुनिष रघुपति गुन गाथा। कहे कछुक सादर खगनाथा।। + +ब्रह्मग्यान रत मुनि बिग्यानि। मोहि परम अधिकारी जानी।। + +लागे करन ब्रह्म उपदेसा। अज अद्वेत अगुन हृदयेसा।। + +अकल अनीह अनाम अरुपा। अनुभव गम्य अखंड अनूपा।। + +मन गोतीत अमल अबिनासी। निर्बिकार निरवधि सुख रासी।। + +सो तैं ताहि तोहि नहिं भेदा। बारि बीचि इव गावहि बेदा।। + +बिबिध भाँति मोहि मुनि समुझावा। निर्गुन मत मम हृदयँ न आवा।। + +पुनि मैं कहेउँ नाइ पद सीसा। सगुन उपासन कहहु मुनीसा।। + +राम भगति जल मम मन मीना। किमि बिलगाइ मुनीस प्रबीना।। + +सोइ उपदेस कहहु करि दाया। निज नयनन्हि देखौं रघुराया।। + +भरि लोचन बिलोकि अवधेसा। तब सुनिहउँ निर्गुन उपदेसा।। + +मुनि पुनि कहि हरिकथा अनूपा। खंडि सगुन मत अगुन निरूपा।। + +तब मैं निर्गुन मत कर दूरी। सगुन निरूपउँ करि हठ भूरी।। + +उत्तर प्रतिउत्तर मैं कीन्हा। मुनि तन भए क्रोध के चीन्हा।। + +सुनु प्रभु बहुत अवग्या किएँ। उपज क्रोध ग्यानिन्ह के हिएँ।। + +अति संघरषन जौं कर कोई। अनल प्रगट चंदन ते होई।।-बारंबार सकोप मुनि करइ निरुपन ग्यान। + +मैं अपनें मन बैठ तब करउँ बिबिध अनुमान।।111(क)।। + +क्रोध कि द्वेतबुद्धि बिनु द्वैत कि बिनु अग्यान। + +मायाबस परिछिन्न जड़ जीव कि ईस समान।।111(ख)।।कबहुँ कि दुख सब कर हित ताकें। तेहि कि दरिद्र परस मनि जाकें।। + +परद्रोही की होहिं निसंका। कामी पुनि कि रहहिं अकलंका।। + +बंस कि रह द्विज अनहित कीन्हें। कर्म कि होहिं स्वरूपहि चीन्हें।। + +काहू सुमति कि खल सँग जामी। सुभ गति पाव कि परत्रिय गामी।। + +भव कि परहिं परमात्मा बिंदक। सुखी कि होहिं कबहुँ हरिनिंदक।। + +राजु कि रहइ नीति बिनु जानें। अघ कि रहहिं हरिचरित बखानें।। + +पावन जस कि पुन्य बिनु होई। बिनु अघ अजस कि पावइ कोई।। + +लाभु कि किछु हरि भगति समाना। जेहि गावहिं श्रुति संत पुराना।। + +हानि कि जग एहि सम किछु भाई। भजिअ न रामहि नर तनु पाई।। + +अघ कि पिसुनता सम कछु आना। धर्म कि दया सरिस हरिजाना।। + +एहि बिधि अमिति जुगुति मन गुनऊँ। मुनि उपदेस न सादर सुनऊँ।। + +पुनि पुनि सगुन पच्छ मैं रोपा। तब मुनि बोलेउ बचन सकोपा।। + +मूढ़ परम सिख देउँ न मानसि। उत्तर प्रतिउत्तर बहु आनसि।। + +सत्य बचन बिस्वास न करही। बायस इव सबही ते डरही।। + +सठ स्वपच्छ तब हृदयँ बिसाला। सपदि होहि पच्छी चंडाला।। + +लीन्ह श्राप मैं सीस चढ़ाई। नहिं कछु भय न दीनता आई।।तुरत भयउँ मैं काग तब पुनि मुनि पद सिरु नाइ। + +सुमिरि राम रघुबंस मनि हरषित चलेउँ उड़ाइ।।112(क)।। + +उमा जे राम चरन रत बिगत काम मद क्रोध।। + +निज प्रभुमय देखहिं जगत केहि सन करहिं बिरोध।।112(ख)।।सुनु खगेस नहिं कछु रिषि दूषन। उर प्रेरक रघुबंस बिभूषन।। + +कृपासिंधु मुनि मति करि भोरी। लीन्हि प्रेम परिच्छा मोरी।। + +मन बच क्रम मोहि निज जन जाना। मुनि मति पुनि फेरी भगवाना।। + +रिषि मम महत सीलता देखी। राम चरन बिस्वास बिसेषी।। + +अति बिसमय पुनि पुनि पछिताई। सादर मुनि मोहि लीन्ह बोलाई।। + +मम परितोष बिबिध बिधि कीन्हा। हरषित राममंत्र तब दीन्हा।। + +बालकरूप राम कर ध्याना। कहेउ मोहि मुनि कृपानिधाना।। + +सुंदर सुखद मिहि अति भावा। सो प्रथमहिं मैं तुम्हहि सुनावा।। + +मुनि मोहि कछुक काल तहँ राखा। रामचरितमानस तब भाषा।। + +सादर मोहि यह कथा सुनाई। पुनि बोले मुनि गिरा सुहाई।। + +रामचरित सर गुप्त सुहावा। संभु प्रसाद तात मैं पावा।। + +तोहि निज भगत राम कर जानी। ताते मैं सब कहेउँ बखानी।। + +राम भगति जिन्ह कें उर नाहीं। कबहुँ न तात कहिअ तिन्ह पाहीं।। + +मुनि मोहि बिबिध भाँति समुझावा। मैं सप्रेम मुनि पद सिरु नावा।। + +निज कर कमल परसि मम सीसा। हरषित आसिष दीन्ह मुनीसा।। + +राम भगति अबिरल उर तोरें। बसिहि सदा प्रसाद अब मोरें।।-सदा राम प्रिय होहु तुम्ह सुभ गुन भवन अमान। + +कामरूप इच्धामरन ग्यान बिराग निधान।।113(क)।। + +जेंहिं आश्रम तुम्ह बसब पुनि सुमिरत श्रीभगवंत। + +ब्यापिहि तहँ न अबिद्या जोजन एक प्रजंत।।113(ख)।।काल कर्म गुन दोष सुभाऊ। कछु दुख तुम्हहि न ब्यापिहि काऊ।। + +राम रहस्य ललित बिधि नाना। गुप्त प्रगट इतिहास पुराना।। + +बिनु श्रम तुम्ह जानब सब सोऊ। नित नव नेह राम पद होऊ।। + +जो इच्छा करिहहु मन माहीं। हरि प्रसाद कछु दुर्लभ नाहीं।। + +सुनि मुनि आसिष सुनु मतिधीरा। ब्रह्मगिरा भइ गगन गँभीरा।। + +एवमस्तु तव बच मुनि ग्यानी। यह मम भगत कर्म मन बानी।। + +सुनि नभगिरा हरष मोहि भयऊ। प्रेम मगन सब संसय गयऊ।। + +करि बिनती मुनि आयसु पाई। पद सरोज पुनि पुनि सिरु नाई।। + +हरष सहित एहिं आश्रम आयउँ। प्रभु प्रसाद दुर्लभ बर पायउँ।। + +इहाँ बसत मोहि सुनु खग ईसा। बीते कलप सात अरु बीसा।। + +करउँ सदा रघुपति गुन गाना। सादर सुनहिं बिहंग सुजाना।। + +जब जब अवधपुरीं रघुबीरा। धरहिं भगत हित मनुज सरीरा।। + +तब तब जाइ राम पुर रहऊँ। सिसुलीला बिलोकि सुख लहऊँ।। + +पुनि उर राखि राम सिसुरूपा। निज आश्रम आवउँ खगभूपा।। + +कथा सकल मैं तुम्हहि सुनाई। काग देह जेहिं कारन पाई।। + +कहिउँ तात सब प्रस्न तुम्हारी। राम भगति महिमा अति भारी।।ताते यह तन मोहि प्रिय भयउ राम पद नेह। + +निज प्रभु दरसन पायउँ गए सकल संदेह।।114(क)।। + +भगति पच्छ हठ करि रहेउँ दीन्हि महारिषि साप। + +मुनि दुर्लभ बर पायउँ देखहु भजन प्रताप।।114(ख)।।जे असि भगति जानि परिहरहीं। केवल ग्यान हेतु श्रम करहीं।। + +ते जड़ कामधेनु गृहँ त्यागी। खोजत आकु फिरहिं पय लागी।। + +सुनु खगेस हरि भगति बिहाई। जे सुख चाहहिं आन उपाई।। + +ते सठ महासिंधु बिनु तरनी। पैरि पार चाहहिं जड़ करनी।। + +सुनि भसुंडि के बचन भवानी। बोलेउ गरुड़ हरषि मृदु बानी।। + +तव प्रसाद प्रभु मम उर माहीं। संसय सोक मोह भ्रम नाहीं।। + +सुनेउँ पुनीत राम गुन ग्रामा। तुम्हरी कृपाँ लहेउँ बिश्रामा।। + +एक बात प्रभु पूँछउँ तोही। कहहु बुझाइ कृपानिधि मोही।। + +कहहिं संत मुनि बेद पुराना। नहिं कछु दुर्लभ ग्यान समाना।। + +सोइ मुनि तुम्ह सन कहेउ गोसाईं। नहिं आदरेहु भगति की नाईं।। + +ग्यानहि भगतिहि अंतर केता। सकल कहहु प्रभु कृपा निकेता।। + +सुनि उरगारि बचन सुख माना। सादर बोलेउ काग सुजाना।। + +भगतिहि ग्यानहि नहिं कछु भेदा। उभय हरहिं भव संभव खेदा।। + +नाथ मुनीस कहहिं कछु अंतर। सावधान सोउ सुनु बिहंगबर।। + +ग्यान बिराग जोग बिग्याना। ए सब पुरुष सुनहु हरिजाना।। + +पुरुष प्रताप प्रबल सब भाँती। अबला अबल सहज जड़ जाती।।-पुरुष त्यागि सक नारिहि जो बिरक्त मति धीर।। + +न तु कामी बिषयाबस बिमुख जो पद रघुबीर।।115(क)।। + +सोउ मुनि ग्याननिधान मृगनयनी बिधु मुख निरखि। + +बिबस होइ हरिजान नारि बिष्नु माया प्रगट।।115(ख)।।इहाँ न पच्छपात कछु राखउँ। बेद पुरान संत मत भाषउँ।। + +मोह न नारि नारि कें रूपा। पन्नगारि यह रीति अनूपा।। + +माया भगति सुनहु तुम्ह दोऊ। नारि बर्ग जानइ सब कोऊ।। + +पुनि रघुबीरहि भगति पिआरी। माया खलु नर्तकी बिचारी।। + +भगतिहि सानुकूल रघुराया। ताते तेहि डरपति अति माया।। + +राम भगति निरुपम निरुपाधी। बसइ जासु उर सदा अबाधी।। + +तेहि बिलोकि माया सकुचाई। करि न सकइ कछु निज प्रभुताई।। + +अस बिचारि जे मुनि बिग्यानी। जाचहीं भगति सकल सुख खानी।।यह रहस्य रघुनाथ कर बेगि न जानइ कोइ। + +जो जानइ रघुपति कृपाँ सपनेहुँ मोह न होइ।।116(क)।। + +औरउ ग्यान भगति कर भेद सुनहु सुप्रबीन। + +जो सुनि होइ राम पद प्रीति सदा अबिछीन।।116(ख)।।सुनहु तात यह अकथ कहानी। समुझत बनइ न जाइ बखानी।। + +ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी।। + +सो मायाबस भयउ गोसाईं। बँध्यो कीर मरकट की नाई।। + +जड़ चेतनहि ग्रंथि परि गई। जदपि मृषा छूटत कठिनई।। + +तब ते जीव भयउ संसारी। छूट न ग्रंथि न होइ सुखारी।। + +श्रुति पुरान बहु कहेउ उपाई। छूट न अधिक अधिक अरुझाई।। + +जीव हृदयँ तम मोह बिसेषी। ग्रंथि छूट किमि परइ न देखी।। + +अस संजोग ईस जब करई। तबहुँ कदाचित सो निरुअरई।। + +सात्त्विक श्रद्धा धेनु सुहाई। जौं हरि कृपाँ हृदयँ बस आई।। + +जप तप ब्रत जम नियम अपारा। जे श्रुति कह सुभ धर्म अचारा।। + +तेइ तृन हरित चरै जब गाई। भाव बच्छ सिसु पाइ पेन्हाई।। + +नोइ निबृत्ति पात्र बिस्वासा। निर्मल मन अहीर निज दासा।। + +परम धर्ममय पय दुहि भाई। अवटै अनल अकाम बनाई।। + +तोष मरुत तब छमाँ जुड़ावै। धृति सम जावनु देइ जमावै।। + +मुदिताँ मथैं बिचार मथानी। दम अधार रजु सत्य सुबानी।। + +तब मथि काढ़ि लेइ नवनीता। बिमल बिराग सुभग सुपुनीता।।जोग अगिनि करि प्रगट तब कर्म सुभासुभ लाइ। + +बुद्धि सिरावैं ग्यान घृत ममता मल जरि जाइ।।117(क)।। + +तब बिग्यानरूपिनि बुद्धि बिसद घृत पाइ। + +चित्त दिआ भरि धरै दृढ़ समता दिअटि बनाइ।।117(ख)।। + +तीनि अवस्था तीनि गुन तेहि कपास तें काढ़ि। + +तूल तुरीय सँवारि पुनि बाती करै सुगाढ़ि।।117(ग)।। + +एहि बिधि लेसै दीप तेज रासि बिग्यानमय।। + +जातहिं जासु समीप जरहिं मदादिक सलभ सब।।117(घ)।।सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा।। + +आतम अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा।। + +प्रबल अबिद्या कर परिवारा। मोह आदि तम मिटइ अपारा।। + +तब सोइ बुद्धि पाइ उँजिआरा। उर गृहँ बैठि ग्रंथि निरुआरा।। + +छोरन ग्रंथि पाव जौं सोई। तब यह जीव कृतारथ होई।। + +छोरत ग्रंथि जानि खगराया। बिघ्न अनेक करइ तब माया।। + +रिद्धि सिद्धि प्रेरइ बहु भाई। बुद्धहि लोभ दिखावहिं आई।। + +कल बल छल करि जाहिं समीपा। अंचल बात बुझावहिं दीपा।। + +होइ बुद्धि जौं परम सयानी। तिन्ह तन चितव न अनहित जानी।। + +जौं तेहि बिघ्न बुद्धि नहिं बाधी। तौ बहोरि सुर करहिं उपाधी।। + +इंद्रीं द्वार झरोखा नाना। तहँ तहँ सुर बैठे करि थाना।। + +आवत देखहिं बिषय बयारी। ते हठि देही कपाट उघारी।। + +जब सो प्रभंजन उर गृहँ जाई। तबहिं दीप बिग्यान बुझाई।। + +ग्रंथि न छूटि मिटा सो प्रकासा। बुद्धि बिकल भइ बिषय बतासा।। + +इंद्रिन्ह सुरन्ह न ग्यान सोहाई। बिषय भोग पर प्रीति सदाई।। + +बिषय समीर बुद्धि कृत भोरी। तेहि बिधि दीप को बार बहोरी।।तब फिरि जीव बिबिध बिधि पावइ संसृति क्लेस। + +हरि माया अति दुस्तर तरि न जाइ बिहगेस।।118(क)।। + +कहत कठिन समुझत कठिन साधन कठिन बिबेक। + +होइ घुनाच्छर न्याय जौं पुनि प्रत्यूह अनेक।।118(ख)।।ग्यान पंथ कृपान कै धारा। परत खगेस होइ नहिं बारा।। + +जो निर्बिघ्न पंथ निर्बहई। सो कैवल्य परम पद लहई।। + +अति दुर्लभ कैवल्य परम पद। संत पुरान निगम आगम बद।। + +राम भजत सोइ मुकुति गोसाई। अनइच्छित आवइ बरिआई।। + +जिमि थल बिनु जल रहि न सकाई। कोटि भाँति कोउ करै उपाई।। + +तथा मोच्छ सुख सुनु खगराई। रहि न सकइ हरि भगति बिहाई।। + +अस बिचारि हरि भगत सयाने। मुक्ति निरादर भगति लुभाने।। + +भगति करत बिनु जतन प्रयासा। संसृति मूल अबिद्या नासा।। + +भोजन करिअ तृपिति हित लागी। जिमि सो असन पचवै जठरागी।। + +असि हरिभगति सुगम सुखदाई। को अस मूढ़ न जाहि सोहाई।।सेवक सेब्य भाव बिनु भव न तरिअ उरगारि।। + +भजहु राम पद पंकज अस सिद्धांत बिचारि।।119(क)।। + +जो चेतन कहँ ज़ड़ करइ ज़ड़हि करइ चैतन्य। + +अस समर्थ रघुनायकहिं भजहिं जीव ते धन्य।।119(ख)।।कहेउँ ग्यान सिद्धांत बुझाई। सुनहु भगति मनि कै प्रभुताई।। + +राम भगति चिंतामनि सुंदर। बसइ गरुड़ जाके उर अंतर।। + +परम प्रकास रूप दिन राती। नहिं कछु चहिअ दिआ घृत बाती।। + +मोह दरिद्र निकट नहिं आवा। लोभ बात नहिं ताहि बुझावा।। + +प्रबल अबिद्या तम मिटि जाई। हारहिं सकल सलभ समुदाई।। + +खल कामादि निकट नहिं जाहीं। बसइ भगति जाके उर माहीं।। + +गरल सुधासम अरि हित होई। तेहि मनि बिनु सुख पाव न कोई।। + +ब्यापहिं मानस रोग न भारी। जिन्ह के बस सब जीव दुखारी।। + +राम भगति मनि उर बस जाकें। दुख लवलेस न सपनेहुँ ताकें।। + +चतुर सिरोमनि तेइ जग माहीं। जे मनि लागि सुजतन कराहीं।। + +सो मनि जदपि प्रगट जग अहई। राम कृपा ब��नु नहिं कोउ लहई।। + +सुगम उपाय पाइबे केरे। नर हतभाग्य देहिं भटमेरे।। + +पावन पर्बत बेद पुराना। राम कथा रुचिराकर नाना।। + +मर्मी सज्जन सुमति कुदारी। ग्यान बिराग नयन उरगारी।। + +भाव सहित खोजइ जो प्रानी। पाव भगति मनि सब सुख खानी।। + +मोरें मन प्रभु अस बिस्वासा। राम ते अधिक राम कर दासा।। + +राम सिंधु घन सज्जन धीरा। चंदन तरु हरि संत समीरा।। + +सब कर फल हरि भगति सुहाई। सो बिनु संत न काहूँ पाई।। + +अस बिचारि जोइ कर सतसंगा। राम भगति तेहि सुलभ बिहंगा।।ब्रह्म पयोनिधि मंदर ग्यान संत सुर आहिं। + +कथा सुधा मथि काढ़हिं भगति मधुरता जाहिं।।120(क)।। + +बिरति चर्म असि ग्यान मद लोभ मोह रिपु मारि। + +जय पाइअ सो हरि भगति देखु खगेस बिचारि।।120(ख)।।पुनि सप्रेम बोलेउ खगराऊ। जौं कृपाल मोहि ऊपर भाऊ।। + +नाथ मोहि निज सेवक जानी। सप्त प्रस्न कहहु बखानी।। + +प्रथमहिं कहहु नाथ मतिधीरा। सब ते दुर्लभ कवन सरीरा।। + +बड़ दुख कवन कवन सुख भारी। सोउ संछेपहिं कहहु बिचारी।। + +संत असंत मरम तुम्ह जानहु। तिन्ह कर सहज सुभाव बखानहु।। + +कवन पुन्य श्रुति बिदित बिसाला। कहहु कवन अघ परम कराला।। + +मानस रोग कहहु समुझाई। तुम्ह सर्बग्य कृपा अधिकाई।। + +तात सुनहु सादर अति प्रीती। मैं संछेप कहउँ यह नीती।। + +नर तन सम नहिं कवनिउ देही। जीव चराचर जाचत तेही।। + +नरग स्वर्ग अपबर्ग निसेनी। ग्यान बिराग भगति सुभ देनी।। + +सो तनु धरि हरि भजहिं न जे नर। होहिं बिषय रत मंद मंद तर।। + +काँच किरिच बदलें ते लेही। कर ते डारि परस मनि देहीं।। + +नहिं दरिद्र सम दुख जग माहीं। संत मिलन सम सुख जग नाहीं।। + +पर उपकार बचन मन काया। संत सहज सुभाउ खगराया।। + +संत सहहिं दुख परहित लागी। परदुख हेतु असंत अभागी।। + +भूर्ज तरू सम संत कृपाला। परहित निति सह बिपति बिसाला।। + +सन इव खल पर बंधन करई। खाल कढ़ाइ बिपति सहि मरई।। + +खल बिनु स्वारथ पर अपकारी। अहि मूषक इव सुनु उरगारी।। + +पर संपदा बिनासि नसाहीं। जिमि ससि हति हिम उपल बिलाहीं।। + +दुष्ट उदय जग आरति हेतू। जथा प्रसिद्ध अधम ग्रह केतू।। + +संत उदय संतत सुखकारी। बिस्व सुखद जिमि इंदु तमारी।। + +परम धर्म श्रुति बिदित अहिंसा। पर निंदा सम अघ न गरीसा।। + +हर गुर निंदक दादुर होई। जन्म सहस्त्र पाव तन सोई।। + +द्विज निंदक बहु नरक भोग करि। जग जनमइ बायस सरीर धरि।। + +सुर श्रुति निंदक जे अभिमानी। रौरव नरक परहिं ��े प्रानी।। + +होहिं उलूक संत निंदा रत। मोह निसा प्रिय ग्यान भानु गत।। + +सब के निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं।। + +सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दुख पावहिं सब लोगा।। + +मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।। + +काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा।। + +प्रीति करहिं जौं तीनिउ भाई। उपजइ सन्यपात दुखदाई।। + +बिषय मनोरथ दुर्गम नाना। ते सब सूल नाम को जाना।। + +ममता दादु कंडु इरषाई। हरष बिषाद गरह बहुताई।। + +पर सुख देखि जरनि सोइ छई। कुष्ट दुष्टता मन कुटिलई।। + +अहंकार अति दुखद डमरुआ। दंभ कपट मद मान नेहरुआ।। + +तृस्ना उदरबृद्धि अति भारी। त्रिबिध ईषना तरुन तिजारी।। + +जुग बिधि ज्वर मत्सर अबिबेका। कहँ लागि कहौं कुरोग अनेका।।एक ब्याधि बस नर मरहिं ए असाधि बहु ब्याधि। + +पीड़हिं संतत जीव कहुँ सो किमि लहै समाधि।।121(क)।। + +नेम धर्म आचार तप ग्यान जग्य जप दान। + +भेषज पुनि कोटिन्ह नहिं रोग जाहिं हरिजान।।121(ख)।।एहि बिधि सकल जीव जग रोगी। सोक हरष भय प्रीति बियोगी।। + +मानक रोग कछुक मैं गाए। हहिं सब कें लखि बिरलेन्ह पाए।। + +जाने ते छीजहिं कछु पापी। नास न पावहिं जन परितापी।। + +बिषय कुपथ्य पाइ अंकुरे। मुनिहु हृदयँ का नर बापुरे।। + +राम कृपाँ नासहि सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संयोगा।। + +सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय कै आसा।। + +रघुपति भगति सजीवन मूरी। अनूपान श्रद्धा मति पूरी।। + +एहि बिधि भलेहिं सो रोग नसाहीं। नाहिं त जतन कोटि नहिं जाहीं।। + +जानिअ तब मन बिरुज गोसाँई। जब उर बल बिराग अधिकाई।। + +सुमति छुधा बाढ़इ नित नई। बिषय आस दुर्बलता गई।। + +बिमल ग्यान जल जब सो नहाई। तब रह राम भगति उर छाई।। + +सिव अज सुक सनकादिक नारद। जे मुनि ब्रह्म बिचार बिसारद।। + +सब कर मत खगनायक एहा। करिअ राम पद पंकज नेहा।। + +श्रुति पुरान सब ग्रंथ कहाहीं। रघुपति भगति बिना सुख नाहीं।। + +कमठ पीठ जामहिं बरु बारा। बंध्या सुत बरु काहुहि मारा।। + +फूलहिं नभ बरु बहुबिधि फूला। जीव न लह सुख हरि प्रतिकूला।। + +तृषा जाइ बरु मृगजल पाना। बरु जामहिं सस सीस बिषाना।। + +अंधकारु बरु रबिहि नसावै। राम बिमुख न जीव सुख पावै।। + +हिम ते अनल प्रगट बरु होई। बिमुख राम सुख पाव न कोई।।उबारि मथें घृत होइ बरु सिकता ते बरु तेल। + +बिनु हरि भजन न भव तरिअ यह सिद्धांत अपेल।।122(क)।। + +मसकहि करइ बिंरंचि प्रभु अजहि मसक ते हीन। + +अस बिचारि तजि संसय रामहि भजहिं प्रबीन।।122(ख)।।विनिच्श्रितं वदामि ते न अन्यथा वचांसि मे। + +हरिं नरा भजन्ति येऽतिदुस्तरं तरन्ति ते।।122(ग)।।कहेउँ नाथ हरि चरित अनूपा। ब्यास समास स्वमति अनुरुपा।। + +श्रुति सिद्धांत इहइ उरगारी। राम भजिअ सब काज बिसारी।। + +प्रभु रघुपति तजि सेइअ काही। मोहि से सठ पर ममता जाही।। + +तुम्ह बिग्यानरूप नहिं मोहा। नाथ कीन्हि मो पर अति छोहा।। + +पूछिहुँ राम कथा अति पावनि। सुक सनकादि संभु मन भावनि।। + +सत संगति दुर्लभ संसारा। निमिष दंड भरि एकउ बारा।। + +देखु गरुड़ निज हृदयँ बिचारी। मैं रघुबीर भजन अधिकारी।। + +सकुनाधम सब भाँति अपावन। प्रभु मोहि कीन्ह बिदित जग पावन।।आजु धन्य मैं धन्य अति जद्यपि सब बिधि हीन। + +निज जन जानि राम मोहि संत समागम दीन।।123(क)।। + +नाथ जथामति भाषेउँ राखेउँ नहिं कछु गोइ। + +चरित सिंधु रघुनायक थाह कि पावइ कोइ।।123।।सुमिरि राम के गुन गन नाना। पुनि पुनि हरष भुसुंडि सुजाना।। + +महिमा निगम नेति करि गाई। अतुलित बल प्रताप प्रभुताई।। + +सिव अज पूज्य चरन रघुराई। मो पर कृपा परम मृदुलाई।। + +अस सुभाउ कहुँ सुनउँ न देखउँ। केहि खगेस रघुपति सम लेखउँ।। + +साधक सिद्ध बिमुक्त उदासी। कबि कोबिद कृतग्य संन्यासी।। + +जोगी सूर सुतापस ग्यानी। धर्म निरत पंडित बिग्यानी।। + +तरहिं न बिनु सेएँ मम स्वामी। राम नमामि नमामि नमामी।। + +सरन गएँ मो से अघ रासी। होहिं सुद्ध नमामि अबिनासी।।जासु नाम भव भेषज हरन घोर त्रय सूल। + +सो कृपालु मोहि तो पर सदा रहउ अनुकूल।।124(क)।। + +सुनि भुसुंडि के बचन सुभ देखि राम पद नेह। + +बोलेउ प्रेम सहित गिरा गरुड़ बिगत संदेह।।124(ख)।।मै कृत्कृत्य भयउँ तव बानी। सुनि रघुबीर भगति रस सानी।। + +राम चरन नूतन रति भई। माया जनित बिपति सब गई।। + +मोह जलधि बोहित तुम्ह भए। मो कहँ नाथ बिबिध सुख दए।। + +मो पहिं होइ न प्रति उपकारा। बंदउँ तव पद बारहिं बारा।। + +पूरन काम राम अनुरागी। तुम्ह सम तात न कोउ बड़भागी।। + +संत बिटप सरिता गिरि धरनी। पर हित हेतु सबन्ह कै करनी।। + +संत हृदय नवनीत समाना। कहा कबिन्ह परि कहै न जाना।। + +निज परिताप द्रवइ नवनीता। पर दुख द्रवहिं संत सुपुनीता।। + +जीवन जन्म सुफल मम भयऊ। तव प्रसाद संसय सब गयऊ।। + +जानेहु सदा मोहि निज किंकर। पुनि पुनि उमा कहइ बिहंगबर।।तासु चरन सिरु नाइ करि ��्रेम सहित मतिधीर। + +गयउ गरुड़ बैकुंठ तब हृदयँ राखि रघुबीर।।125(क)।। + +गिरिजा संत समागम सम न लाभ कछु आन। + +बिनु हरि कृपा न होइ सो गावहिं बेद पुरान।।125(ख)।।कहेउँ परम पुनीत इतिहासा। सुनत श्रवन छूटहिं भव पासा।। + +प्रनत कल्पतरु करुना पुंजा। उपजइ प्रीति राम पद कंजा।। + +मन क्रम बचन जनित अघ जाई। सुनहिं जे कथा श्रवन मन लाई।। + +तीर्थाटन साधन समुदाई। जोग बिराग ग्यान निपुनाई।। + +नाना कर्म धर्म ब्रत दाना। संजम दम जप तप मख नाना।। + +भूत दया द्विज गुर सेवकाई। बिद्या बिनय बिबेक बड़ाई।। + +जहँ लगि साधन बेद बखानी। सब कर फल हरि भगति भवानी।। + +सो रघुनाथ भगति श्रुति गाई। राम कृपाँ काहूँ एक पाई।।मुनि दुर्लभ हरि भगति नर पावहिं बिनहिं प्रयास। + +जे यह कथा निरंतर सुनहिं मानि बिस्वास।।126।।सोइ सर्बग्य गुनी सोइ ग्याता। सोइ महि मंडित पंडित दाता।। + +धर्म परायन सोइ कुल त्राता। राम चरन जा कर मन राता।। + +नीति निपुन सोइ परम सयाना। श्रुति सिद्धांत नीक तेहिं जाना।। + +सोइ कबि कोबिद सोइ रनधीरा। जो छल छाड़ि भजइ रघुबीरा।। + +धन्य देस सो जहँ सुरसरी। धन्य नारि पतिब्रत अनुसरी।। + +धन्य सो भूपु नीति जो करई। धन्य सो द्विज निज धर्म न टरई।। + +सो धन धन्य प्रथम गति जाकी। धन्य पुन्य रत मति सोइ पाकी।। + +धन्य घरी सोइ जब सतसंगा। धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा।।सो कुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत। + +श्रीरघुबीर परायन जेहिं नर उपज बिनीत।।127।।मति अनुरूप कथा मैं भाषी। जद्यपि प्रथम गुप्त करि राखी।। + +तव मन प्रीति देखि अधिकाई। तब मैं रघुपति कथा सुनाई।। + +यह न कहिअ सठही हठसीलहि। जो मन लाइ न सुन हरि लीलहि।। + +कहिअ न लोभिहि क्रोधहि कामिहि। जो न भजइ सचराचर स्वामिहि।। + +द्विज द्रोहिहि न सुनाइअ कबहूँ। सुरपति सरिस होइ नृप जबहूँ।। + +राम कथा के तेइ अधिकारी। जिन्ह कें सतसंगति अति प्यारी।। + +गुर पद प्रीति नीति रत जेई। द्विज सेवक अधिकारी तेई।। + +ता कहँ यह बिसेष सुखदाई। जाहि प्रानप्रिय श्रीरघुराई।।राम चरन रति जो चह अथवा पद निर्बान। + +भाव सहित सो यह कथा करउ श्रवन पुट पान।।128।।राम कथा गिरिजा मैं बरनी। कलि मल समनि मनोमल हरनी।। + +संसृति रोग सजीवन मूरी। राम कथा गावहिं श्रुति सूरी।। + +एहि महँ रुचिर सप्त सोपाना। रघुपति भगति केर पंथाना।। + +अति हरि कृपा जाहि पर होई। पाउँ देइ एहिं मारग सोई।। + +मन कामना सिद्धि नर पावा। जे यह कथा कपट तजि गावा।। + +कहहिं सुनहिं अनुमोदन करहीं। ते गोपद इव भवनिधि तरहीं।। + +सुनि सब कथा हृदयँ अति भाई। गिरिजा बोली गिरा सुहाई।। + +नाथ कृपाँ मम गत संदेहा। राम चरन उपजेउ नव नेहा।।मैं कृतकृत्य भइउँ अब तव प्रसाद बिस्वेस। + +उपजी राम भगति दृढ़ बीते सकल कलेस।।129।। \ No newline at end of file